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भ्रष्टाचार मुक्त भारत पर निबंध.
सामान्य शब्दों में भ्रष्टाचार का अर्थ है मानव का अपने आचार – विचार से भ्रष्ट या पतित हो जाना। यह एक जाना माना तथ्य है कि भ्रष्टाचार सत्तासीन लोगों को ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों तक को नैतिक रूप से पतित करने वाला एक खतरान तन्तु है। वस्तुतः यह सत्तासीन लोगों एवं सरकारी कर्मचरियों की कार्यकुशलता को बुरी तरह से क्षीण बना देता है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं जहाँ के लोग अपनी कार्यनिष्ठा, और लगन, मेहनत के लिए जाने जाते हैं। लेकिन यहाँ के एक सरकारी कार्यालय का दृश्य देखें तो आम आदमी का शायद सरकार के कार्य प्रणाली से ही विश्वास उठ जाएगा। इन कार्यालयों में फाइल पर वजन (रिश्वत) रखें बगैर कोई काम हो ही नहीं सकता है। रिश्वत भ्रष्टाचार का ही एक रूप है।
भारत में भ्रष्टाचार न सिर्फ बड़े पैमाने पर व्याप्त है, बल्कि वह सुव्यवस्थित, प्रणालीबद्ध नियोजित एवं स्वैच्छिक बनकर रिश्वतखोरों एवं रिश्वत देने वाले दोनों ही पक्षों को फायदा पहुँचाने वाली व्यवस्था का रूप ग्रहण कर चुका है। आज भारत में भ्रष्टाचार के जितने रूप व्याप्त है दुनिया के शायद ही किसी अन्य देशों में मिलता हो।
कदम – कदम पर रिश्वत, भाई – भतीजावाद, मिलावट, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, कमीशनखोरी, दायित्व पालन में विमुखता, सरकारी साधनों का दुरुपयोग, विदेशी मुद्रा हेरा – फेरी, रक्षा सौदा में कमीशन, आयकर चोरी, ठेके आदि देने में जान – पहचान, सरकार बनाने और सरकार बचाने के लिए संसद – सदस्यों और विधान – सभा सदस्यों की खरीद – फरोस्त आदि सभी भ्रष्टाचार के ही रूप है ।इसके परिणामस्वरुप ही प्रगति और विकास का लाभ सामान्य और आम जन तक नहीं पहुँच पा रहा है।
ये तो भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण मात्र है। इनके अलावा भी भ्रष्टाचार के अनगिनत स्वरुप है। अनेक प्रकार के पाप, दुराचार और अन्याय – अत्याचार लगातार बढ़ रहे है । कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है । राजनीति, प्रशासन, धर्म, समाज आदि कोई भी तो क्षेत्र इस भ्रष्टाचार के प्रभाव से अछूता नहीं । इसका प्रमाण तब मिलता है जब एक ही ऑफिस में लगभग समान स्तर पर और साथ – साथ बैठकर काम करने वाला भी एक – दूसरे का काम बिना मुट्ठी गर्म किये नहीं करना चाहता ।
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भारत में भ्रष्टाचार के अनेक कारण है; समाज में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी बहुतों की प्राथमिक सुविधाएँ भी पूरी नहीं करती; फिर तो यह विवश हो जाते है अपवित्रता के मार्ग से करने के लिए।
दूसरा है अधिक धन बनाने की लालसा, लोगों में लालच का भूत इस कदर सवार होता है कि वह अपने नैतिक मूल्यों की चिंता किए बगैर अपने जान की बलि चढ़ाकर पैसे कमाना चाहता है।
तीसरा है लोगों से समाज में प्रतिष्ठा पाने की मानसिकता। इसके लिए एक दूसरे का गला घोटकर वह अपने स्वार्थ को पूरा करना चाहता है।
हालांकि भ्रष्टाचार के रोज नये स्वरुप बनते भी रहते है और अधिक से अधिक लाभ पाने की इच्छा और प्रक्रिया में पता नहीं आज भ्रष्टाचार के कितने रूप इजाद कर लिए गए है । परिणाम हमारे सामने है। जब मानवों की तृष्णा उपलब्ध साधनों से शांत नहीं होती तो उसकी पूर्ति के लिए ही भ्रष्ट तरीके अपनाते है। साधारण शब्दों में कहें तो भौतिक सुख – सुविधाओं को बिना परिश्रम के सरलता से प्राप्त कर लेने की दौड़ ही भ्रष्टाचार का मूल कारण है।
इस प्रकार देखें तो आज समूची नैतिकता, व्यवस्था ही भ्रष्ट होकर रह गयी है। दूध का धुला खोजने पर भी नहीं मिलता है और जो मिलता भी है उसे विनष्ट करने की तमाम चेष्टा की जाती है। ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार मुक्त भारत कैसे बनेगा ?
इस प्रश्न का एक ही उत्तर है कि वे ढेरों कानून-तंत्र जो भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए बनाएं गए हैं उनको निर्दयतापूर्वक देश में लागू करना होगा । कठोर से कठोर कदम उठाने के साथ – साथ सामाजिक व मनोवैज्ञानिक उपाय भी करने होंगे । इसके लिए भारत में भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु समय – समय पर विभिन्न संस्थाओं, कमेटियों एवं आयोगों का गठन किया जाता रहा है जिनमें से प्रमुख है –
लेकिन ये भी एक कटु सत्य है कि कानून बनाकर और कठोर दंड देखकर भय तो उत्पन्न किया जा सकता है पर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता । इसलिए दृढ़ संकल्प और नैतिक सक्रियता भ्रष्टाचार की समस्या से छुटकारा पाने के कारगर उपायों में एक सबसे अच्छा उपाय है । अगर लोग राष्ट्र और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करें । अपने अंदर नैतिकता को जगाये । जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनायें तो भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है ।
इसके अलावा हर धर्म, समाज और राजनीति के अगुआ स्वयं नैतिक बनकर कठोरता से नैतिकता के अनुशासन को लागू करें । जो सर्वविदित और घोषित अपराधी हैं, उनके साथ किसी भी प्रकार की रू-रियायत न बरते ।
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आज जन्म लेने वाली नयी पीढ़ी के सामने जब हम नैतिक मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करना शुरू कर देंगे, जब भ्रष्ट हो चुकी पीढ़ी को बलपूर्वक दबा दिया जायेगा, तब कही जाकर इस स्थितिहीनता और भ्रष्टता का रोकथाम हो सकेगा।
नव – निर्माण और विकास के दौर से गुजर रहे मानवों के लिए ये एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है जो की सारा संसार भ्रष्टाचार रूपी दानव के पंजे में बुरी तरह फंसा है। भारत तो भ्रष्टाचार की दलदल में इतनी बुरी तरह निमग्न हो चूका है कि समझ में नहीं आता पहले यहाँ दलदल था या भ्रष्टाचार ? भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश तभी होगा जब लोग अपने मन पर संयम, इच्छाओं पर नियंत्रण, भौतिक उपलब्धियों की दौड़ से पीछा छुड़ाकर सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना आरम्भ करेंगे । ये सभी उपाएँ मिलकर यक़ीनन भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने में मदद करेंगी ।
आज हम जिस गंभीर विषय पर आपसे कुछ शेयर करने जा रहें है वह है “भ्रष्टाचार”। भ्रष्टाचार सिर्फ हमारे समाज या देश के लिए बड़ी समस्या नहीं है, यद्धपि भ्रष्टाचार पूरे विश्व के लिए एक बड़ी भयानक समस्या है । और आपको बता दे कि यह न ही नई कुप्रथा है और न ही अचेतन कुरीति बल्कि वास्तविकता तो यह कि भ्रष्टाचार सदियों से अपने किसी न किसी रूप में सदैव कायम रहा है और पढ़ी दर पीढ़ी एक परम्परा की भाँती इस भ्रष्टाचार का भी हस्तान्तरण होता आ रहा है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार रोकने के अनेक तरीके होने के बावजूद भी यह लगातार समाज व देश को क्षतिग्रस्त करता रहता है। जैसे की गेहूं में लगा घून उसको तहस-नहस कर देता है ठीक उसी तरह भ्रष्टाचार रूपी घून इस देश की आदर्श और नैतिकता की जड़ों को धीरे – धीरे खोखला करता जा रहा है।
अफ़सोस अगर अब भी इसे रोका नहीं गया तो यह आगामी दस वर्षो में एक सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना हम सबके लिए मुश्किल कर देगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या यही हमारी नियति होगी या बदलेगा भारत का भविष्य । और यह नया भारत क्या एक भ्रष्टाचारमुक्त भारत होगा। तो मैं आप से यही कहूँगी कि बेशक नये भारत का निर्माण होगा। असल में हमारे आचरण एवं व्यवहार का पतन ही तो भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। तो फिर हम दूसरों को क्यों दोषी ठहराएं ?
माफ़ कीजिएगा! बार – बार भ्रष्टाचारी कहना अच्छा तो नहीं लगता, पर वास्तविकता नकारी भी तो नहीं जा सकती । हकीकत यही है कि आज भारत में भ्रष्टाचार के जितने रूप व्याप्त है दुनिया के शायद ही किसी अन्य देशों में मिलता हो। यहाँ तो कदम – कदम पर रिश्वत, भाई – भतीजावाद, मिलावट, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, कमीशनखोरी, दायित्व पालन में विमुखता, सरकारी साधनों का दुरुपयोग, विदेशी मुद्रा हेरा – फेरी, रक्षा सौदा में कमीशन, आयकर चोरी, ठेके आदि देने में जान – पहचान, सरकार बनाने और सरकार बचाने के लिए संसद – सदस्यों और विधान – सभा सदस्यों की खरीद – फरोस्त आदि सभी भ्रष्टाचार के रूप में मौजूद होने के परिणामस्वरुप प्रगति और विकास का लाभ सामान्य और आम जन तक नहीं पहुँच पा रहा है । ये तो भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण मात्र है। इनके अलावा भी भ्रष्टाचार के अनगिनत स्वरुप है ।
यह आवश्यक नहीं कि भ्रष्टाचार केवल धन के ही रूप में हो । अनेक प्रकार के पाप, दुराचार और अन्याय – अत्याचार लगातार बढ़ रहे है । कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है । राजनीति, प्रशासन, धर्म, समाज आदि कोई भी तो क्षेत्र इस भ्रष्टाचार के प्रभाव से अछूता नहीं । इसका प्रमाण तब मिलता है जब एक ही ऑफिस में लगभग समान स्तर पर और साथ – साथ बैठकर काम करने वाला भी एक – दूसरे का काम बिना मुट्ठी गर्म किये नहीं करना चाहता ।
जल्दी से जल्दी अमीर होने की हवस, लालच, मानव मन की इच्छाएँ, सुविधापूर्ण आरामदायक जीवन व्यतीत करने की लालसा के कारण आज यह स्थिति पैदा हुई है। हालांकि भ्रष्टाचार के रोज नये स्वरुप बनते भी रहते है और अधिक से अधिक लाभ पाने की इच्छा और प्रक्रिया में पता नहीं आज भ्रष्टाचार के कितने रूप इजाद कर लिए गए है । परिणाम हमारे सामने है। आज कोई भी भ्रष्टाचार के बल पर अपार सम्पति जुटा लेने वाला संतुष्ट नहीं । फिर भी जब मानवों की तृष्णा उपलब्ध साधनों से शांत नहीं होती तो उसकी पूर्ति के लिए ही भ्रष्ट तरीके अपनाते है। साधारण शब्दों में कहें तो भौतिक सुख – सुविधाओं को बिना परिश्रम के सरलता से प्राप्त कर लेने की दौड़ ही भ्रष्टाचार का मूल कारण है।
भारत में लोक प्रशासन के क्षेत्र का विलक्षण विकास होने के कारण भ्रष्टाचार की मात्रा में असाधारण वृद्धि हुई है । आज यहाँ भ्रष्टाचार के कारण एक मनुष्य ने दूसरे को आतंकित कर रखा है । भ्रष्टाचार की जड़े इतनी फैल चुकी है कि उन्हें काटना सरल नहीं है । ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार मुक्त भारत कैसे बनेगा ? तो इस प्रश्न का एक ही उत्तर हो सकता है कि वे ढेरों कानून-तंत्र जो भ्रष्टाचार रोकते हैं उनको निर्दयतापूर्वक देश में लागू करना होगा । कठोर से कठोर कदम उठाने के साथ – साथ सामाजिक व मनोवैज्ञानिक उपाय भी करने होंगे और इसके लिए भारत में भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु समय – समय पर विभिन्न संस्थाओं, कमेटियों एवं आयोगों का गठन किया जाता रहा है जिनमें से प्रमुख है –
लेकिन ये एक कटु सत्य है कि कानून बनाकर और कठोर दंड देखकर भय तो उत्पन्न किया जा सकता है पर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता । इसलिए दृढ़ संकल्प और नैतिक सक्रियता भ्रष्टाचार की समस्या से छुटकारा पाने के कारगर उपायों में एक सबसे अच्छा उपाय है । अगर लोग राष्ट्र और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करें । अपने अंदर नैतिकता को जगाये । जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनायें तो भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है ।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश तभी होगा जब लोग अपने मन पर संयम, इच्छाओं पर नियंत्रण, भौतिक उपलब्धियों की दौड़ से पीछा छुड़ाकर सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना आरम्भ करेंगे । ये सभी उपाएँ मिलकर यक़ीनन भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने में मदद करेंगी ।
यह भी देखें – भ्रष्टाचार अथवा करप्शन पर नारा
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Thanks for sharing us the nice article on corruption.
Corruption is a major issue in India and have written well about causes and mitigation of corruption.Very good article.
भ्रस्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है उस पर इतना सुन्दर निबंध शेयर करने के लिए शुक्रिया
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विषय-सूचि
भारत में भ्रष्टाचार:.
अपने सरलतम अर्थों में, भ्रष्टाचार को स्वार्थी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रिश्वतखोरी या सार्वजनिक स्थिति या शक्ति के दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है या व्यक्तिगत संतुष्टि प्राप्त करने के लिए ऐसा करना कहा जाता है। इसे “व्यक्तिगत लाभ के विचार के परिणामस्वरूप अधिकार के दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे मौद्रिक होने की आवश्यकता नहीं है”।
हाल के सेंचुरीज़ में भारत ने दुनिया के तीन सबसे भ्रष्ट देशों में जगह बनाई है। भारत में भ्रष्टाचार नौकरशाही, राजनीति और अपराधियों के बीच सांठगांठ का परिणाम है। भारत को अब एक नरम राज्य नहीं माना जाता है। यह अब एक विचारशील राज्य बन गया है जहाँ एक विचार के लिए सब कुछ हो सकता है। आज, ईमानदार छवि वाले मंत्रियों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। एक समय में, रिश्वत का भुगतान गलत चीजों को करने के लिए किया जाता था, लेकिन अब सही समय पर सही चीजें प्राप्त करने के लिए रिश्वत का भुगतान किया जाता है।
यह अच्छी तरह से स्थापित है कि राजनेता दुनिया भर में बेहद भ्रष्ट हैं। वास्तव में, एक ईमानदार राजनेता को पाकर लोग आश्चर्यचकित होते हैं। ये भ्रष्ट राजनेता दाग मुक्त, अस्वस्थ और अप्रभावित हैं। लाल बहादुर शास्त्री या सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेता अब एक दुर्लभ नस्ल हैं, जिनकी मृत्यु के समय बहुत कम बैंक बैलेंस था। देश में घोटालों और घोटालों की सूची अंतहीन है।
अब हाल ही में 2010 से शुरू होने से पहले कॉमन वेल्थ गेम्स भ्रष्टाचार आम धन खेल के साथ प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 1986 के बोफोर्स अदायगी घोटाले में सेना के लिए एक स्वीडिश फर्म से बंदूकें खरीदने में कुल 1750 करोड़ रुपये शामिल थे। 1982 के सीमेंट घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शामिल थे, 1994 के चीनी घोटाले में केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री, यूरिया घोटाला और निश्चित रूप से 1991 का हवाला घोटाला, बिहार में चारा घोटाला को कोई नहीं भूल सकता है। या स्टांप घोटाला जिसने न केवल राजनीतिक क्षेत्र बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया था।
भ्रष्टाचार एक कैंसर है, जिसे हर भारतीय को ठीक करने का प्रयास करना चाहिए। सत्ता में आने पर कई नए नेता भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा करते हैं, लेकिन जल्द ही वे खुद भ्रष्ट हो जाते हैं और बड़ी संपत्ति अर्जित करने लगते हैं।
भ्रष्टाचार के बारे में कई मिथक हैं, जिनका विस्फोट करना होगा यदि हम वास्तव में इसका मुकाबला करना चाहते हैं। इनमें से कुछ मिथक हैं: भ्रष्टाचार जीवन का एक तरीका है और इसके बारे में कुछ भी नहीं किया जा सकता है। केवल अविकसित या विकासशील देशों के लोग ही भ्रष्टाचार के शिकार होते हैं। हमें भ्रष्टाचार से लड़ने के उपायों की योजना बनाते समय इन सभी कच्चे तेल के संकटों से बचना होगा।
सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करके भ्रष्टाचार को मारना या हटाना संभव नहीं है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि जो लोग भ्रष्ट हैं, उनमें से अधिकांश आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं हैं, निश्चित रूप से वे एक उल्लेखनीय सामाजिक स्थिति वाले होंगे।
“भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों और विनियमों की स्थापना में एक दशक की प्रगति के बावजूद, ये परिणाम दर्शाते हैं कि दुनिया के सबसे गरीब नागरिकों के जीवन में सार्थक सुधार देखने से पहले बहुत कुछ किया जाना बाकी है।”
लालची व्यापारी लोगों और बेईमान निवेशकों को राजनीतिक कुलीनों को रिश्वत देना बंद करना चाहिए। वे या तो प्राप्त करने वाले या रिश्वत देने वाले छोर पर नहीं होंगे। राजनीती के लोगों को समाज की भलाई से पहले अपने निजी मामलों को रखना बंद करना होगा। सरकार को भ्रष्टाचार से संबंधित पाठ्य पुस्तकों में एक अध्याय और उसके परिणाम की इच्छा शामिल करनी चाहिए।
हम सभी को भ्रष्टाचार के बारे में बात करके इसे रोकने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार तभी खत्म होने वाला है जब हमारे जैसे लोग खड़े होकर बोलेंगे।
यदि हम भ्रष्टाचार को जड़ से हटाने के लिए कदम नहीं उठाते हैं, तो विकासशील देश शब्द हमेशा हमारे देश भारत से जुड़ा रहेगा। इसलिए हम आम आदमी हमारे भारत से भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए समाधान कर रहे हैं और इसलिए हम अपने देश को विकसित बनाने में भी सहायक होंगे। यह संभव है..आज की पीढ़ी इस व्यवस्था को बदलने की इच्छुक है। और जल्द ही भारत से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। भ्रष्टाचार से बचने के लिए हर व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारी होनी चाहिए।
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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
Paper leak: लाचार व्यवस्था, हताश युवा… पर्चा लीक का ‘अमृत काल’, केंद्र ने पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टोरल फ़ेलोशिप के लिए वन-स्टॉप पोर्टल किया लॉन्च, एडसिल विद्यांजलि छात्रवृत्ति कार्यक्रम का हुआ शुभारंभ, 70 छात्रों को मिलेगी 5 करोड़ की छात्रवृत्ति, one thought on “भ्रष्टाचार को कैसे रोका जा सकता है”.
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Landslide in kerala: वायनाड भूस्खलन- प्राकृतिक हादसा या मानव जनित, paris olympic 2024: “जलवायु आपातकाल” के बीच ऐतिहासिक आयोजन, 25 जुलाई को मनाया जायेगा संविधान हत्या दिवस – अमित शाह.
इस लेख में भ्रष्टाचार पर निबंध (Essay on Corruption in Hindi) लिखा गाय है जिसमें हमने प्रस्तावना, भ्रष्टाचार के विविध रूप, कारण, निवारण, भ्रष्टाचार पर 10 लाइन के बारे में बताया है।
Table of Contents
भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है भ्रष्ट और आचार । भ्रष्ट का अर्थ है बिगड़ा हुआ या खराब तथा आचार का अर्थ है अच्छा आचरण या व्यवहार है।
इस प्रकार किसी व्यक्ति के द्वारा अपनी गरिमा से गिरकर किया हुआ कार्य भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार पूरे विश्व में बहुत ही तेजी से फैल रहा है। भारत के साथ-साथ अब यह अन्य देशों को भी दीमक की तरह खाते जा रहा है।
वर्तमान में भ्रष्टाचार के जड़ व्यापक रूप से बहुत ही तेजी से फैले हुए हैं इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
रिश्वत लेना – किसी भी कार्य को शीघ्र से, बिना जांच पड़ताल, नियम विरुद्ध, पैसे ले कर करने के काम को रिश्वत लेना कहलाता है। भ्रष्टाचार का रूप पूरी दुनिया मे फैल चुका है।
भाई-भतीजावाद – अपने पद और सत्ता का गलत उपयोग करके लोग भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। इसमें वह अपने सगे संबंधी जो उसके लायक नहीं होते है उसे वह पद दे देते हैं, जिससे योग्य व्यक्ति का हक छीन जाता है। यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा रूप है।
कमीशन- आज हर क्षेत्र में कमीशन देना पड़ता है जैसे स्कूलों में दाखिला के लिए कमीशन, सड़क बनने के लिए कमीशन, कहीं पर कोई बिल्डिंग बनाना है तो कमीशन। यानी की सुविधा प्रदाता द्वारा आपके लाभ में से कुछ प्रतिशत ले लेता है उसे ही कमीशन कहते हैं। वर्तमान में सरकारी, अर्द्ध सरकारी, ठेके के कार्य में कमीशन बाजी बहुत ही अधिक हो रही है। इसके कारण समाज में कोई भी काम से नहीं हो पा रहा है।
शोषण- शोषण भ्रष्टाचार का नवीन रूप है। कोई शक्तिशाली व्यक्ति किसी व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के जरिए उसके मजबूरी का फायदा उठाकर उसका शोषण करता है शोषण कहलाता है।
भ्रष्टाचार के कारण निम्नलिखित है –
भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत ही मजबूत है इसे दूर करने के लिए जन आंदोलन चलाया जाए, अच्छे कानून बनाए जाएं तभी हम भ्रष्टाचार को दूर कर सकते हैं। इससे पूरे देश को अंदर ही अंदर खोखला करते जा रहा है।
हमें ना ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना चाहिए और ना ही भ्रष्टाचार में भागीदारी देना चाहिए। यदि आपको हमारा यह लेख भ्रष्टाचार पर निबंध (Essay on Corruption in Hindi) अच्छा लगा हो तो हमें कमेंट करें धन्यवाद।
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भ्रष्टाचार: कारण और रोकथाम पर निबंध | Essay on Corruption : Causes and Prevention in Hindi!
भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय समस्या है । ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्यों की अवहेलना कर निजी स्वार्थ में लिप्त रहते हैं ‘भ्रष्टाचारी’ कहलाते हैं । आज हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरे तक समाहित हैं ।
कोई भी मंत्रालय, कोई भी विभाग शेष नहीं बचा है जहाँ पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों । मुनष्य की स्वार्थ लोलुपता व वर्तमान परिवेश में उसकी भोगवादी प्रवृत्ति भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी समझी जाती है । भ्रष्टाचार हर एक दृष्टि में देश व समाज के घातक होता है ।
जब तक इस राष्ट्रीय समस्या का स्थाई निदान नहीं मिलता तब तक कोई देश या राष्ट्र पूर्ण रूप से उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकता । यह पथ-पथ पर प्रगति की राह का अवरोधक बनता रहेगा । भ्रष्टाचार के कारणों का यदि हम गहन अध्ययन करें तो हम देखते हैं कि इसके मूल में अनेक कारण हैं जो भ्रष्टाचार के लिए कारण बनते हैं । सबसे प्रमुख कारण है आदमी में असंतोष की प्रवृत्ति ।
मनुष्य कितना भी कुछ हासिल कर ले परंतु उसकी और अधिक प्राप्त कर लेने की लालसा कभी समाप्त नहीं होती है । किसी वस्तु की आकांक्षा रखने पर यदि उसे वह वस्तु सहज रूप से प्राप्त नहीं होती है तब वह येन-केन प्रकारेण उसे हासिल करने के लिए उद्यत हो जाता है । इस प्रकार की परिस्थितियाँ भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं ।
भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण है- मनुष्य की स्वार्थ की प्रवृत्ति । बात चाहे एक व्यक्ति की हो या फिर किसी समाज या संप्रदाय की, लोगों में निजी स्वार्थ की भावना परस्पर असामानता को जन्म देती है । यह असामानता आर्थिक, सामाजिक व प्रतिष्ठा के मतभेद को बढ़ावा देती है ।
किसी उच्च पद पर आसीन अधिकारी प्राय: गुणवत्ता की अनदेखी कर अपने समाज, परिवार अथवा संप्रदाय के लोगों को प्राथमिकता देता है तो उसका यह कृत्य भ्रष्टाचार का ही रूप है । भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति सदैव न्याय की अनदेखी करता है ।
ADVERTISEMENTS:
” एक छोटी , एक सीधी बात , विश्व में छायी हुई है वासना की रात । ”
देश में चारों ओर व्याप्त सांप्रदायिकता, भाषावाद, भाई-भतीजावाद, जातीयता आदि से पूरित वातावरण भ्रष्टाचार के प्रेरणा स्त्रोत हैं । भ्रष्टाचार के कारण ही कार्यालयों, दफ्तरों व अन्य कार्यक्षेत्रों में चोरबाजारी, रिश्वतखोरी आदि अनैतिक कृत्य पनपते हैं । दुकानों में मिलावटी सामान बेचना, धर्म का सहारा लेकर लोगों को पथभ्रमित करना तथा अपना स्वार्थ सिद्ध करना, दोषी व अपराधी तत्वों को रिश्वत लेकर मुक्त कर देना अथवा रिश्वत के आधार पर विभागों में भरती होना आदि सभी भ्रष्टाचार के प्रारुप हैं ।
हमारे देश के लिए यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है कि युधिष्टिर, हरिश्चंद्र जैसे धर्मनिष्ठ शासकों व साधु-संतों की इस पावन धरती पर आज भ्रष्टाचार का विष फैल चुका है । छोटे से छोटे कर्मचारियों से लेकर देश की सत्ता पर बैठे हमारे शीर्षस्थ नेतागण भी आज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।
समस्त भारतीय राजनीतिक परिवेश आज कुरसीवाद पर सिमट गया है । कुरसी के लिए हमारे राजनीतिज्ञ कोई भी सीमा लाँघने के लिए तैयार हैं । देश की रक्षा करने हेतु उच्च पदों पर आसीन मंत्री व अधिकारियों पर ही जहाँ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हों, उस देश के भविष्य की कल्पना बड़े ही सहज रूप से की जा सकती है ।
भ्रष्टाचार के फलस्वरूप राष्ट्र को अनेकों विषमताओं का सामना करना पड़ रहा है । सभी ओर अव्यवस्था व असमानता तथा देश के नवयुवकों में व्याप्त चिंता, भय व आक्रोश, भ्रष्टाचार के ही दुष्परिणाम हैं ।
यदि इसी भाँति भ्रष्टाचार फलता-फूलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी समस्त शक्तियाँ क्षीण होती चली जाएँगी । हमारी राष्ट्रीय एकता खंड़ित होने के कगार पर पहुँच जाएगी । अत: राष्ट्र की एकता व अखंडता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम भ्रष्टाचार को मिटाने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ ।
भ्रष्टाचार के समाधान के लिए आवश्यक है कि भ्रष्टाचार संबंधी नियम और भी सख्त हों तथा भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले । इसके लिए सख्त और चुस्त प्रशासन अनिवार्य है । इस समस्या के निदान के लिए केवल सरकार ही उत्तरदायी नहीं है, इसके लिए सभी धार्मिक, सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को एकजुट होना होगा । सभी को संयुक्त रूप से इसे प्रोत्साहन देने वाले तत्वों का विरोध करना होगा ।
सभी भारतीय नागरिकों को इसे दूर करने हेतु कृतसंकल्प होने की आवश्यकता है । भ्रष्टाचार के दोषी व्यक्तियों का पूर्णरूपेण सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए ताकि ऐसे लोगों के मनोबल को खंडित किया जा सके जिससे वह इसकी पुनरावृत्ति न कर सके । भ्रष्टाचार के विरोध में राष्ट्रीय जन-जागृति ही राष्ट्र को भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों से मुक्त करा सकती है ।
उसी समय हम गर्व से कह सकते हैं कि :
” अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर
छिटका जीवन हरियाली पर मगंल कुंकुम सारा ।
अरुण यह मधुमय देश हमारा ! ”
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भ्रष्टाचार देश के लिए एक ज्वलंत समस्या है. भारत समेत अन्य विकसित देशों में भ्रष्टाचार काफी तेजी से फैलता जा रहा है. भ्रष्टाचार जैसी समस्या के लिए हम सभी ज्यादातर देश के राजनेताओं को ज़िम्मेदार मानते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि देश का आम नागरिक भी भ्रष्टाचार के विभिन्न स्वरूप में भागीदार हैं. वर्तमान समय में कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है, प्रत्येक क्षेत्र भ्रष्ट्राचार से घिरा है. तो आज हम आपसे इसी के बारे में बात करेंगे कि भ्रष्ट्राचार क्या है? Corruption Essay in Hindi
Table of Contents
भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘ भ्रष्ट और आचरण ‘ से मिलकर बना है. इसका शाब्दिक अर्थ भ्रष्ट आचरण होता है. ऐसा कार्य जो मनुष्य के द्वारा अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज के नैतिक मूल्यों को दाव पर रख कर किया जाता है, भ्रष्टाचार कहलाता है. रिश्वत, कालाबाजारी, जमाखोरी, मिलावट ये सभी भ्रष्ट्राचार के ही रूप है. आज के समय में सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज इसकी चपेट में आ गया है.
आज के समय में व्यक्ति अपनी खुद की छोटी-छोटी इच्छाओं की पूर्ति हेतु, देश को संकट में डालने में तनिक भी देर नहीं करता है. देश के नेताओं द्वारा किया गया घोटाला ही भ्रष्टाचार नहीं है अपितु दूकानदार द्वारा ग्राहकों को मिलावट राशन देना भी भ्रष्टाचार का स्वरूप है. साधारण भाषा में कहा जाए तो, अवैध तरीके से धन अर्जित करना भ्रष्ट्राचार है.
भूमिका- भ्रष्टाचार एक ज्वलंत समस्या है. आज के समय में शिक्षा, स्वास्थ्य , व्यापार, राजनीति, सामाजिक कार्य जैसी अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार विद्यमान है. कोई भी ऐसा क्षेत्र बाकी नहीं है, जहाँ भ्रष्टाचार न हो. नेता, अधिकारी रिश्वत ले रहे हैं, तो व्यापारी जमाखोरी, कालाबाजारी और वस्तुओं में मिलावट कर रहे हैं. आम नागरिक भी किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में भागीदार हैं. सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज भ्रष्टाचार जैसी समस्या से ग्रसित है.
अर्थ- भ्रष्टाचार दो शब्दों- ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है. भ्रष्ट का अर्थ है निकष्ट ‘विचार’ और ‘आचार’ का अर्थ है आचरण करना. इसके वश में होकर मनुष्य अपना सदाचार भूलकर भ्रष्ट आचरण करने लगता है.
यह एक विचित्र वृक्ष के समान है, जिसकी जड़े ऊपर की ओर तथा शाखाएं निचे की ओर बढ़ती है. इसकी विषैली शाखाओं पर बैठकर मनुष्य, मनुष्य का खून चूस रहा है. इस घृणित प्रकृति के कारण आज हमारे प्रयोग की हर वस्तु दूषित हो गई है, और होती ही जा रही है.
स्वरूप- भ्रष्टाचार को कई रूपों में देखा जा सकता है. जैसे शुद्ध वस्तुओं में मिलावट, जमाखोरी , रिश्वत वसूलना और कालाबाजारी ये सभी भ्रष्टाचार रूपी परिवार के ही सदस्य है. आज सम्पूर्ण समाज तथा राष्ट्र इसके चपेट में आ गयी है.
चारों और फैले आर्थिक अभाव के वातावरण में समाज के समर्थ लोग अपने तथा अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा हेतु, भ्रष्ट तरीके अपनाने से जरा भी नहीं कतराते. भ्रष्टाचार का विष समाज के प्रत्येक मानव में फैलता जा रहा है.
कारण- भ्रष्टाचार के लिए किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता बल्कि दोषी तो वह व्यवस्था है, जो धन-दौलत को मानवता से ऊपर समझती है. अतः हर प्रकार के भ्रष्ट आचरण द्वारा धनसंग्रह को बल मिला है. भ्रष्टाचार के कई कारण हो सकते हैं,
समाधान के उपाय-
निष्कर्ष- ये सभी कारक भ्रष्टाचार के उत्तरदायी है, भ्रष्टाचार से जुड़े सभी व्यक्तियों को दंड मिलना चाहिए. भ्रष्टाचार जैसी गंभीर समस्या का निदान कारण भारत के लिए अति आवश्यक है. वरना सभी प्रगतिशील योजनाएँ मात्र कागज पर ही बनती रहेगी. यह एक गंभीर समस्या है, इसका निदान करना अतिआवश्यक है.
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Corruption Essay in Hindi – भ्रष्टाचार किसी भी प्रकार के रिश्वत के बदले व्यक्तियों या समूह द्वारा किए गए किसी भी कार्य को संदर्भित करता है। भ्रष्टाचार को एक बेईमान और आपराधिक कृत्य माना जाता है। साबित होने पर, भ्रष्टाचार कानूनी दंड का कारण बन सकता है। अक्सर भ्रष्टाचार के कार्य में कुछ के अधिकार और विशेषाधिकार शामिल होते हैं। भ्रष्टाचार की सभी विशेषताओं और पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी परिभाषा खोजना बहुत कठिन है। हालांकि, राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक के रूप में, हम सभी को भ्रष्टाचार के सही अर्थ और उसके हर रूप में प्रकट होने के बारे में जागरूक होना चाहिए ताकि जब भी हम इसका सामना करें तो हम इसके खिलाफ आवाज उठा सकें और न्याय के लिए लड़ सकें।
इनके बारे मे भी जाने
भ्रष्टाचार का अर्थ उन प्रथाओं या निर्णयों से है जो कम पक्षों के लिए प्रतिकूल समाधान में परिणत होते हैं। जब नैतिक पतन होता है, और कोई भी ईमानदार मूल्यांकन आपको यह एहसास नहीं करा सकता है कि आप गलत रास्ते पर चले गए हैं, तो यह भ्रष्टाचार की ओर ले जाता है। सत्ता और धन की लालसा अक्सर भ्रष्टाचार के सामान्य कारण होते हैं। भ्रष्टाचार एक व्यक्ति को उसके चरित्र से दूर कर देता है, और इससे कर्तव्यों की क्षमता बिगड़ जाती है। विभिन्न देशों के कई राजनीतिक नेता इसमें शामिल होते हैं और यह तेजी से निचले स्तर तक भी फैलता है। महाशक्तिशाली देश भी इससे अछूते नहीं हैं।
आज कोई भी देश भ्रष्टाचार की बीमारी से अछूता नहीं है। सभी देश और हर देश इसमें अनैच्छिक रूप से भाग लेता है क्योंकि यही अविश्वसनीय सफलता और शक्ति की कुंजी है। और शक्ति धन की राशि से आती है, इसलिए लोग नैतिक रूप से खुद को नीचा दिखाते हैं और नकदी के लिए गलत दिशा में भागते हैं। सभी देशों में भ्रष्टाचार की मात्रा में अंतर हो सकता है, लेकिन यह सभी समान है।
सार्वजनिक जीवन, व्यक्तिगत जीवन, राजनीति, प्रशासन, शिक्षा और यहाँ तक कि अनुसंधान और सुरक्षा भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है। शायद ही कोई अपवाद हो। अन्य देशों में भ्रष्टाचार को उचित दंड दिया जाता है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है, क्योंकि किसी भी भ्रष्टाचार के लिए कोई विशिष्ट सजा नहीं है। भ्रष्टाचार एक ऐसा अपराध है जो जीवन को बर्बाद नहीं करता बल्कि परिवारों को भी बर्बाद करता है क्योंकि एक बार जब व्यक्ति को इसकी आदत हो जाती है तो उसे खुद के अलावा कोई नहीं रोक सकता है।
कई घोटाले ऐसे हैं जो लोगों की नजरों में तो नहीं आते लेकिन बहुत प्रभावित हुए हैं। उन्हें भ्रष्टाचार के नाम से जाना जाता है। भ्रष्टाचार विश्वासघात का एक ऐसा कार्य है जो शायद ही किसी ने या किसी स्थान को छोड़ा हो। अस्पतालों से लेकर निगमों और सरकारों तक, कुछ भी और कोई भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है। भ्रष्टाचार उच्च स्तरों से शुरू होता है और तेजी से निचले स्तरों तक चला जाता है, जिससे कम मेहनत और धोखा देने वाले परिणामों का माहौल बनता है।
इस बात के भी प्रमाण हैं कि राजनेताओं को ड्रग लॉर्ड्स और तस्करों द्वारा संसाधन उपलब्ध कराए गए थे, और जब उन्हें या उनके अस्तित्व को खतरा होता है, तो उनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ज्यादातर मौत हो जाती है। यहां तक कि सबसे प्रभावशाली देश भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हैं क्योंकि सत्ता और सफलता किसे पसंद नहीं होगी? और ऐसा करने का सबसे आसान तरीका है अत्यधिक धन अर्जित करना। भ्रष्टाचार उन्हें अपमानजनक प्रभाव से रोकता है। हालाँकि, भ्रष्टाचार उनकी नैतिकता या मूल्यों के पतन को नहीं रोक सकता है और यह उसी को बढ़ाता है। हममें से कोई भी कल्पना भी नहीं कर सकता है कि व्यक्तिगत संचय के लिए उनके खाते में कितना पैसा जाता है। भ्रष्टाचार अब एक ऐसा कीड़ा है जो सरकार के हर विभाग और कार्यक्षेत्र के अंदर कपटी है। भ्रष्टाचार ने अब हमारी अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है, और इसके कारण हमारे कार्य अस्त-व्यस्त हो गए हैं।
एक उद्धरण कहता है कि “भ्रष्टाचार से लड़कर कोई नहीं लड़ सकता” और यह पूरी तरह से सही है। भ्रष्टाचार का अर्थ है वह कार्य जो धन की लालसा या लालच से उत्पन्न होता है और अवैध कार्यों को करने के लिए किसी भी हद तक जाने की आवश्यकता होती है। भ्रष्टाचार दुनिया के हर हिस्से और देश में सक्रिय है। भ्रष्टाचार को किसी भी तरह से रोका या क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। इसे तभी समाप्त किया जा सकता है जब मनुष्य के हृदय में इसे रोकने की बात हो। भ्रष्टाचार के कई तरीके हैं, और सबसे आम रिश्वतखोरी है।
रिश्वत का अर्थ उस युक्ति से है जिसका उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए उपकार या उपहारों का उपयोग करने के लिए किया जाता है। इसमें तरह-तरह के उपकार शामिल हैं। दूसरा गबन है जिसका अर्थ है संपत्ति को रोकना जिसका उपयोग आगे चोरी के लिए किया जा सकता है। आमतौर पर, इसमें एक या एक से अधिक व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्हें इन संपत्तियों को सौंपा जाता है, और इसे वित्तीय धोखाधड़ी भी कहा जा सकता है। तीसरा ‘भ्रष्टाचार’ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी राजनेता की शक्ति का अवैध उपयोग। यह ड्रग लॉर्ड्स या नारकोटिक बैरन्स द्वारा सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
जबरन वसूली का अर्थ है किसी संपत्ति, भूमि या संपत्ति पर अवैध रूप से दावा करना। पक्षपात या भाई-भतीजावाद भी इन दिनों पूर्ण प्रवाह में है जब केवल सत्ता में बैठे लोगों के पसंदीदा व्यक्ति या प्रत्यक्ष रिश्तेदार ही अपनी क्षमता में वृद्धि करते हैं। भ्रष्टाचार को रोकने के कई तरीके नहीं हैं, लेकिन वे मौजूद हैं।
सरकार अपने कर्मचारियों को बेहतर वेतन दे सकती है जो उनके काम के बराबर है। काम का बोझ कम करना और कर्मचारियों को बढ़ाना भी इस प्रभावशाली और अवैध प्रथा को रोकने का एक शानदार तरीका हो सकता है। इसे रोकने के लिए सख्त कानून की जरूरत है और मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका; यह दोषी अपराधियों को उनके अंत तक पहुँचाने का तरीका है। सरकार देश में महंगाई के स्तर को कम रखने के लिए काम कर सकती है ताकि वे उसके अनुसार काम कर सकें। भ्रष्टाचार से लड़ा नहीं जा सकता और इसे केवल रोका जा सकता है।
भ्रष्टाचार एक व्यक्ति या एक समूह द्वारा एक बेईमान कार्य को संदर्भित करता है, जो दूसरों के उचित विशेषाधिकारों से समझौता करता है। भ्रष्टाचार किसी देश के आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास को कम करता है और इसके लोगों की भलाई के लिए अब तक की सबसे संभावित बाधा है।
भ्रष्टाचार के तरीके
भ्रष्टाचार के दो बहुत सामान्य तरीके हैं – रिश्वतखोरी, गबन और भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार एक प्रकार का राजनीतिक भ्रष्टाचार है। व्यक्तिगत लाभ के लिए जनता के लिए किए गए फंड के दुरुपयोग को संदर्भित करने के लिए अमेरिका में इस शब्द का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
भ्रष्टाचार के प्रकार / उदाहरण
नीचे हमारे दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न विभागों/क्षेत्रों में भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण दिए गए हैं।
इसमें सरकार द्वारा लोक कल्याण और अन्य विकास योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के भीतर भ्रष्टाचार शामिल है। यह अब तक का सबसे प्रचलित प्रकार का भ्रष्टाचार है जो बड़ी संख्या में सामान्य आबादी के हितों को प्रभावित करता है।
न्यायिक भ्रष्टाचार न्यायाधीशों द्वारा कदाचार के एक कार्य को संदर्भित करता है, जिसमें वे व्यक्तिगत लाभ की पेशकश के बदले तथ्यों और सबूतों की अनदेखी करते हुए पक्षपातपूर्ण निर्णय देते हैं।
पिछले कुछ दशकों से, भारत के कुछ राज्यों में शिक्षा विभाग को सबसे भ्रष्ट विभाग माना जाता था। इस दावे को पुष्ट करने के कई कारण थे – शिक्षकों और कर्मचारियों की अनुचित और अवैध नियुक्तियाँ, परिणामों/ग्रेडों में हेरफेर, छात्रों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन का गबन, आदि। निरक्षरता और स्कूल छोड़ने वालों की दर में वृद्धि के लिए शिक्षा में भ्रष्टाचार भी जिम्मेदार है। मुख्य रूप से देश के दूरस्थ ग्रामीण स्थानों में।
पुलिस की कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक व्यक्ति को संविधान में निहित न्याय का समान अधिकार मिले। पुलिस जाति, पंथ, धर्म, आयु, लिंग या अन्य विभाजनों के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव नहीं करने के लिए कर्तव्यबद्ध और नैतिक रूप से बाध्य है। पुलिस काफी हद तक इस तरह से कार्य करती है कि उसे करना चाहिए; हालांकि, कभी-कभी इसके अधिकारियों के खिलाफ पक्षपात के गंभीर आरोप लगाए जाते हैं। पुलिस व्यवस्था को प्रभावी ढंग से और निष्पक्ष तरीके से काम करने के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र बनाना बहुत आवश्यक है।
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली एक आवश्यक क्षेत्र है जो लाखों आम नागरिकों के जीवन को प्रभावित करता है। एक भ्रष्टाचार मुक्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली केवल यह सुनिश्चित करती है कि स्वास्थ्य सेवा का लाभ गरीब से गरीब व्यक्ति तक पहुंचे और किसी भी आकस्मिक स्थिति में कोई भी चिकित्सा सहायता के बिना न रहे। दुर्भाग्य से, यह उतना अच्छा नहीं है जितना लगता है। यह क्षेत्र धन के गबन का शिकार रहा है, जिसमें रोगियों के लिए बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के लिए आवंटित धन को भ्रष्ट अधिकारियों, डॉक्टरों और अन्य पदाधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए गबन किया जाता है। साथ ही जमीनी स्तर पर लाभार्थी तक सभी मुफ्त दवा व अन्य सुविधाएं नहीं पहुंच पाती हैं।
भ्रष्टाचार एक राष्ट्र के विकास और इसके लोगों के कल्याण में सबसे संभावित बाधा है। यह केवल एक विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है और इसमें कार्यालयों, विभागों, क्षेत्रों आदि की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। लोगों को इसके प्रभावों के बारे में जागरूक करके और सख्त भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को लागू करके ही प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
प्रश्न 1. भ्रष्टाचार का क्या अर्थ है.
उत्तर. भ्रष्टाचार का मतलब शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों द्वारा बेईमानी करना है।
उत्तर. हाँ, यह एक अपराध है और यह समाज और राष्ट्र के विकास को धीमा करता है।
उत्तर. दक्षिण सूडान को दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश कहा जाता है।
उत्तर. डेनमार्क दुनिया का ऐसा देश है जहां सबसे कम भ्रष्टाचार है।
उत्तर. यह सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायों में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए 1988 में भारत सरकार द्वारा पारित एक अधिनियम है।
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भ्रष्टाचार पर छोटे-बड़े निबंध (essay on corruption in hindi), भ्रष्टाचार : कारण और निवारण अथवा भारत का राष्ट्रीय चरित्र और भ्रष्टाचार – (corruption: causes and prevention or national character and corruption of india).
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
प्रस्तावना- ‘आचारः परमोधर्मः’ भारतीय संस्कृति का सर्वमान्य सन्देश रहा है। सदाचरण को व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का आधार मानने के कारण ही भारतभूमि ने विश्व में प्रतिष्ठा पाई थी। आज देश के सामने उपस्थित समस्याएँ और संकट, भ्रष्ट आचरण के ही परिणाम हैं।
सत्य, प्रेम, अहिंसा, धैर्य, क्षमा, अक्रोध, विनय, दया, अस्तेय (चोरी न करना), शूरता आदि ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक समाज में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। इन गुणों की उपेक्षा करना या इनके विरोधी दुर्गुणों को अपनाना ही आचरण से भ्रष्ट होना या भ्रष्टाचार है, किन्तु आज भ्रष्टाचार से हमारा तात्पर्य अनैतिक आचरण द्वारा जनता के धन की लूट से है।
भ्रष्टाचार के विविध रूप- आज भ्रष्टाचार देश के हर वर्ग और क्षेत्र में छाया हुआ है। चाहे शिक्षा हो, चाहे धर्म, चाहे व्यवसाय हो, चाहे राजनीति, यहाँ तक कि कला और विज्ञान भी इस घृणित व्याधि से मुक्त नहीं हैं। सरकारी कार्यालयों में जाइए तो बिना सुविधा शुल्क के आपका काम. नहीं होगा।
भ्रष्टाचार की व्यापकता- भारत में भ्रष्टाचार का कारण वह औपनिवेशिक जनविरोधी केन्द्रीयकृत प्रशासनिक ढाँचा है, जो देश को अंग्रेजी साम्राज्य से विरासत में मिला है। नेतृत्व की कमजोरी के कारण इसको जनोपयोगी बनाने का प्रयास ही नहीं हो सका है।
भ्रष्टाचार निरन्तर फैलता गया है। जब से भारत में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, बाजारीकरण की नीतियाँ बनी हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गयी है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, एंट्रेक्स-इसरो घोटाला, अवैध खनन घोटाला, आईपीएल घोटाला, नोट के बदले वोट घोटाला, पिछली केन्द्रीय सरकार के खनन तथा ‘टूजी’ घोटाले भ्रष्टाचार की अटूट परंपरा का स्मरण कराते हैं।
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ-यथा राजा तथा प्रजा की कहावत के अनुसार भ्रष्टाचार शासकों से जनता की ओर फैल रहा है। अकेले टू जी घोटाले में सरकारी धन की जो लूट हुई है, उससे सभी भारतीय परिवारों को भोजन दिया जा सकता है शिक्षा के कानूनी अधिकार को हकीकत में बदला जा सकता है।
सरकार की जनविरोधी नीतियाँ- पिछली सरकारों की आर्थिक नीतियाँ, जिनको उदारवाद या आर्थिक सुधार का ‘शुगर कोटेड’ रूप देकर पेश किया गया, जन विरोधी थीं। इनके द्वारा जनता के धन को कानूनी वैध रूप देकर लूटा गया है।
जैसे सट्टा गैर-कानूनी है पर शेयर बाजार तथा वायदा बाजार का सट्टा पूरी तरह कानूनी है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी निजीकरण ने भी भ्रष्टाचार में वृद्धि की है।
जल, जंगल, जमीन, खनिज, प्राकृतिक संसाधन आदि को कानून बदलकर कम्पनियों तथा पूँजीपतियों को लुटाया जाना। किसानों, मजदूरों, गरीबों, आदिवासियों के शोषण का दुष्परिणाम नक्सलवाद के रूप में सामने आ चुका है। टू जी घोटाले में टाटा, रिलायन्स आदि के नाम भी हैं। इन कम्पनियों ने सरकार से सस्ते आवंटन प्राप्त कर विदेशी कम्पनियों को बेचकर करोड़ों रुपयों का लाभ कमाया है।
निवारण के उपाय- भ्रष्टाचार की इस बाढ़ से जनजीवन की रक्षा केवल चारित्रिक दृढ़ता ही कर सकती है। समाज और देश के व्यापक हित में जब व्यक्ति अपने नैतिक उत्तरदायित्व का अनुभव करे और उसका पालन करे तभी भ्रष्टाचार का विनाश हो सकता है।
भ्रष्टाचार का अन्त करने के लिए वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था को बदलना भी जरूरी है। इसके लिए आई.ए.एस. अधिकारियों को प्राप्त शक्तियों में कमी करना आवश्यक है। निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की योग्यता, आयु तथा कर्त्तव्य परायणता तय होनी चाहिए। अयोग्य जन प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार जनता को होना चाहिए।
चुनाव में खड़े होने वाले व्यक्ति की सम्पत्ति तथा आचरण की जाँच होनी चाहिए। राजनीति में अपराधियों का प्रवेश रुकना चाहिए। पूँजीवादी आर्थिक नीतियाँ जो विदेशी पूँजी पर आधारित हैं, बदलकर जनवादी स्वदेशी अर्थनीति को अपनाया जाना चाहिए। प्रशासन में शुचिता और पारदर्शिता होनी चाहिए।
उपसंहार- भारत में भ्रष्टाचार की दशा अत्यन्त भयावह है। बड़े-बड़े पूँजीपति, राजनेता तथा प्रशासनिक अधिकारियों का गठजोड़ इसके लिए जिम्मेदार है। इससे मुक्ति के लिए निरन्तर सजग रहकर प्रयास करना जरूरी है।
सौभाग्य से जनता को सजग रहकर उनका समर्थन और सहयोग करना चाहिए। वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने एक सीमा तक उच्चस्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का प्रयास किया है। पारदर्शिता पर भी जोर दिया गया है।
भ्रष्टाचार से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा शक्तिशाली स्थिति में होकर बेईमानी या अनैतिक आचरण का कोई कार्य करना है। कई लोगों को विशेष रूप से युवा छात्रों को भ्रष्टाचार और इसके असंतोष के बारे में विस्तार से जानने के लिए बहुत जिज्ञासा होता है और ऐसा इसलिए क्योंकि यह हमारे देश के आर्थिक विकास और समृद्धि को प्रभावित कर रहा है। भ्रष्टाचार पर हमारी स्पीच खासकर की लम्बी वाली स्पीच इस विषय पर विस्तृत जानकारी को साझा करती है। स्पीच इतनी प्रभावशाली है कि यह आपके दर्शकों पर असर छोड़ने में आपकी मदद भी कर सकती है।
भाषण – 1.
आदरणीय शिक्षकगण और छात्रों को मेरा शुभ नमस्कार!
आज की स्पीच का विषय भ्रष्टाचार है और मैं उसी पर अपने विचारों को साझा करूँगा विशेष रूप से राजनीतिक भ्रष्टाचार पर। हमारे देश के गठन के बाद से सब कुछ राजनीतिक नेताओं और सरकारी क्षेत्रों में शासन करने वालों द्वारा तय होता है। जाहिर है हम एक लोकतांत्रिक देश हैं लेकिन जो भी सत्ता में आ जाता है वह उस शक्ति का दुरुपयोग करके अपने निजी लाभ के लिए धन और संपत्ति हासिल करने की कोशिश करता है। आम लोग खुद को हमेशा अभाव की स्थिति में पाते हैं।
हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच का अंतर इतना बढ़ गया है कि यह हमारे देश में भ्रष्टाचार का एक स्पष्ट उदाहरण है जहां समाज के एक वर्ग के पास समृद्धि और धन है और वहीँ दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी रेखा से नीचे रहती है। यही कारण है कि कुछ देशों की अर्थव्यवस्था को गिरावट का सामना करना पड़ रहा है जैसे अमरीका की अर्थव्यवस्था।
यदि हम अपने देश के जिम्मेदार नागरिक हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि यह भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्र के आर्थिक विकास में खाई है और हमारे समाज में अपराध को जन्म दे रहा है। यदि हमारे समाज का बहुसंख्यक वर्ग अभाव और गरीबी में रहना जारी रखेगा और किसी भी रोजगार का अवसर नहीं मिलेगा तो अपराध दर कभी कम नहीं होगी। गरीबी लोगों की नैतिकता और मूल्यों को नष्ट कर देगी जिससे लोगों के बीच नफरत में वृद्धि होगी। हमारे इस मुद्दे को हल करने और हमारे देश के संपूर्ण विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु संघर्ष करने का यह सही समय है।
इस तथ्य की परवाह किए बिना कि असामाजिक तत्व हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था के भीतर हैं या बाहर हैं संसद को इनके खिलाफ सख्त कानूनों को पारित करना चाहिए। हमारे देश में सभी के लिए एक समान व्यवहार होना चाहिए।
यदि कोई भ्रष्टाचार के पीछे कारणों का विचार और मूल्यांकन करता है तो यह अनगिनत हो सकते हैं। हालांकि भ्रष्टाचार के रोग फैलने के लिए जिम्मेदार कारणों में मेरा मानना है कि सरकार के नियमों और कानूनों के प्रति लोगों का गैर-गंभीर रुख तथा समाज में बुराई फ़ैलाने वालों के प्रति सरकार का सहारा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों को भ्रष्टाचार का अंत करने के लिए नियोजित किया जाता है वे स्वयं अपराधी बन जाते हैं और इसे प्रोत्साहित करते हैं। हालांकि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई सख्त कानून हैं जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम, भारतीय दंड संहिता 1860 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 आदि लेकिन इन कानूनों का कोई गंभीर क्रियान्वयन नहीं है।
भ्रष्टाचार के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण नौकरशाही और सरकारी कार्यों की पारदर्शिता है। विशेष रूप से सरकार के अधीन चलाए जाने वाले संस्थान गंभीर मुद्दों के तहत नैतिक अस्पष्टता दिखाते हैं। जो धन गरीब लोगों के उत्थान के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए वह खुद राजनीतिज्ञों ने अपने इस्तेमाल के लिए रख लिया। इससे भी बदतर जो लोग समृद्ध नहीं हैं और सत्ता में बैठे लोगों को रिश्वत नहीं दे सकते वे अपना काम नहीं करवा पा रहे हैं इसलिए उनकी काम की फ़ाइल कार्रवाई के बजाए धूल फांक रही है। जाहिर है किसी भी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में गिरावट तब-तब आएगी जब-जब भ्रष्ट अधिकारियों ने देश पर शासन किया है।
स्थिति बहुत तनावग्रस्त हो गई है और जब तक सामान्य जनता कोई कदम ना उठाए और सतर्क नहीं हो जाती तब तक भ्रष्टाचार को हमारे समाज से उखाड़ फेंका नहीं जा सकता है। तो आइए हम एक साथ खड़े हो और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ें।
हमारे आदरणीय प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल, साथी सहकर्मियों और मेरे प्रिय छात्रों सभी को नमस्कार!
मैं इतिहास विभाग के वरिष्ठ संकाय सदस्यों में से एक स्वतंत्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर आप सभी का स्वागत करता हूं। उत्सव और प्रसन्नता के बीच संकाय सदस्यों द्वारा हमारे गंभीर संकट को दूर करने पर विचार किया गया है, जो मुख्यतः भ्रष्टाचार है, जिससे हमारे देश की जनसँख्या पीड़ित है।
यद्यपि हमारे महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम को सालों पहले जीता था लेकिन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी आदि जैसे गंभीर मुद्दे अभी भी हमारे देश की अर्थव्यवस्था को खा रहे हैं और इसे विकसित करने में सक्षम नहीं हैं। शासन या समाज में पूरी तरह से समस्या कहां है? हमें उन क्षेत्रों की पहचान करने की जरूरत है जो भ्रष्टाचार को फ़ैलाते हैं और उन कारणों को समाप्त करने के लिए सख्त उपाय अपनाने की जरुरत है। ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल करना एक चीज थी लेकिन हम अपनी स्वतंत्रता का मज़ा तब उठा पाएंगे जब इस देश का हर नागरिक जीवित रहने के बुनियादी मानकों का आनंद उठा पाएंगे। उसके बाद हमारे समाज में कोई बुराई नहीं रहेगी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा देश प्रकृति और उज्ज्वल परिदृशयों का देश है। हालांकि हमारी भूमि की सुंदरता और सद्भावना आगामी भ्रष्ट गतिविधियों से जूझ रही है जो चारों ओर हो रही हैं। लगभग हर क्षेत्र में हम भ्रष्ट कर्मियों को देख सकते हैं जो अपनी भूमिकाएं और जिम्मेदारियों को तब तक सही तरीके से नहीं निभाते जब तक कि आम लोगों द्वारा उन्हें रिश्वत नहीं दी जाती। इस तरह की अवैध गतिविधियां दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। हम इस देश के निवासी के रूप में इन लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और उनके खिलाफ कोई सख्त कार्यवाही भी नहीं की जा रही है।
इसके अलावा ऐसे लोगों का मानना है कि वे आसानी से कानूनों से बच सकते हैं और सुरक्षित रह सकते हैं। अधिक अधिकार और शक्तियों की वजह से अधिकारी भ्रष्ट हो गए हैं और स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अगर किसी आम आदमी को सरकारी कर्मचारी या प्रशासन से काम करवाने की ज़रूरत होती है तो उसे भ्रष्ट विधि को अपनाना होगा। वास्तव में आपको प्रशासन में वरिष्ठ पदों और जूनियर स्टाफ से लेकर लिपिक पदों पर भ्रष्ट आदमी काम करते मिल पाएंगे। एक आम आदमी के लिए यह वास्तव में मुश्किल है कि वह उनसे बचे या अपना काम पूरा करे।
न केवल शहर बल्कि छोटे क़स्बे और गांव भी इसके प्रभाव में आ गए हैं। मुझे लगता है कि यह सही समय है जब हम अपने देश के नागरिक के रूप में अपनी धरती मां के चेहरे से भ्रष्टाचार को खत्म करने और हमारे देश की अगली पीढ़ी के लिए एक भ्रष्ट मुक्त देश बनाने तथा इस पर गर्व महसूस करने की जिम्मेदारी ले।
जाहिर है हमारे विद्यार्थी ही इस देश का भविष्य हैं। इसलिए आपको किसी भी स्थिति में किसी भ्रष्ट पथ को अपनाने की प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए और वास्तव में आप किसी भी गैरकानूनी या अवैध गतिविधि के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। जब हम जान-बूझ आँख बंद कर लेते हैं तो समस्याएं बढ़ जाती हैं परन्तु मैं आशा करता हूं कि हम सभी हमारे देश में कहीं भी होने वाली भ्रष्ट गतिविधियों का कड़ा विरोध करेंगे और ऐसे अधिकारियों का पर्दाफाश करेंगे जो हमारे विकास के क्षेत्र में रुकावट डालने का काम करते हैं।
सुप्रभात प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय मित्रों,
इस सभा का विषय है, ‘भ्रष्टाचार’। भ्रष्टाचार एक जहर है जो व्यक्तियों और देश के मूल्यों को नष्ट कर देता है।
भ्रष्टाचार के साधन के रूप में मेरा दृष्टिकोण यह है कि यह एक ऐसा कृत्य है जो जानबूझ कर किया जाता है जिससे देश की प्रामाणिकता और गुणवत्ता कम हो जाती है। लोग भ्रष्टाचार को एक सरल बात के रूप में इस तरह समझाते हैं, ‘मुझे जल्दी थी इसलिए मैंने थोड़े पैसे देकर अपना काम तुरंत करवा लिया’ लेकिन मेरे प्यारे दोस्तों यह सरल वक्तव्य इतनी हानिकारक है कि यह सीधे देश की छवि और कद पर असर करता है।
हमें व्यक्तियों के रूप में समझना चाहिए कि भले ही हमारा काम पैसे देकर तुरंत हो जाता है लेकिन भीतर ही भीतर यह हमारे जीवन की गुणवत्ता को बिगाड़ती जा रही है। यह देश की बुरी छवि बनाता है और हमारे देश को भ्रष्टाचार देशों की सूचि में ऊपर पहुंचाता है। हालाँकि यह बड़ी बात नहीं है कि हम अतिरिक्त राशि का भुगतान करके या कुछ लोगों से लाभ लेने के लिए उन्हें रिश्वत दूँ लेकिन मुझे विश्वास है कि आप एक बार गहराई से सोचे तो आपको पता चलेगा की यह लोगों के नैतिक गुणों या मूल्यों को खत्म करता है।
मनुष्य का गिरता आत्ममूल्य केवल उस व्यक्ति का नहीं है जो रिश्वत ले रहा है बल्कि उस व्यक्ति का भी है जो इसे देता है। भ्रष्टाचार देश और व्यक्ति की प्रामाणिक समृद्धि और विकास के बीच बाधा है। यह देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सभी पहलुओं के विकास को प्रभावित करता है।
भ्रष्टाचार से तात्पर्य सरकार द्वारा बनाए गए सभी नियमों को तोड़कर कुछ निजी लाभों के लिए सार्वजनिक शक्ति का अनुचित उपयोग भी है। हमारे देश में भ्रष्टाचार का एक सामान्य उदाहरण नकद रूप में काला धन प्राप्त करना भी है। यहां तक कि चुनावों के दौरान ऐसा भी देखा जाता है कि कुछ मंत्रियों के परिसर में छापे मारे जाते हैं या घर में नकदी मिलती हो।
जी हां, ये सब भ्रष्टाचार के रूप हैं। कई राजनीतिक नेताओं का कहना है कि हम भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं लेकिन ईमानदारी से मैंने इसको खत्म करने का कोई ठोस प्रयास नहीं देखा है। भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए हमें मूल कारणों पर काम करना होगा। हमारे देश की जड़ों के अंदर गहराई तक भ्रष्टाचार फ़ैल गया है और इसका उन्मूलन करने के लिए हमें पूर्ण समर्पण के साथ एक बड़ी गतिविधि या एक परियोजना चलानी चाहिए।
सख्त कार्रवाइयों को नीतियों में प्रलेखित किया जाना चाहिए और उन्हें उन पर लागू करना चाहिए जो भ्रष्टाचार को अपने लालच के लिए अभ्यास में लाते हैं।
इस सभा का हिस्सा बनने के लिए आप सभी का धन्यवाद। मुझे खुशी है कि हमने इस महत्वपूर्ण विषय को हमारी चर्चा बिंदु के रूप में चुना है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया जहाँ भी दिखे वहां भ्रष्टाचार को रोकें। हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिए और बस हमारी सुविधा के बारे में सोचना चाहिए। मुझे आशा है कि आप सब मेरी और हमारे देश को भ्रष्टाचार के इस बदसूरत कार्य से मुक्ति दिलाने में मदद करेंगे।
धन्यवाद। आप सभी का दिन शुभ हो। हम सभी को मिल कर भ्रष्टाचार खत्म करना है।
आप सभी को नमस्कार! इस अवसर का हिस्सा बनने और इसके लिए समय निकालने के लिए धन्यवाद।
इस शाम के लिए मेरी चर्चा का विषय ‘भ्रष्टाचार’ का कैंसर है जिसने हमारी जिंदगी बीमार बना दी है। भ्रष्टाचार एक प्राधिकरण या प्रभावशाली पार्टी के मापन पर एक गैरकानूनी व्यवहार है जो कि अवैध, भ्रष्ट या सैद्धांतिक मूल्यों के साथ अपरिवर्तनीय हैं। हालांकि यह शब्द किसी भी देश को परिभाषित करने के लिए बहुत आसान है लेकिन इससे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है। भ्रष्टाचार सबसे बड़ा अनैतिक कार्य है जो देश की छवि को कमजोर और नकारात्मक बना देता है।
भ्रष्टाचार में धन की रिश्वतखोरी और गबन सहित कई गतिविधियां शामिल हो सकती हैं। भ्रष्टाचार ने भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकार को इतना प्रभावित किया है कि इसका उन्मूलन करने के लिए कोई आसान समाधान नहीं है। अगर किसी देश के नागरिक भ्रष्ट होते हैं तो यह उस देश के मूल्यों में कमी को बढ़ाता है। हमें नहीं पता है कि हम जो करते हैं, कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं उन सब का एक हिस्सा बन जाता है।
भ्रष्ट लोग हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के नकली चेहरे के पीछे खुद को छिपाते हैं। हमेशा भ्रष्टाचार को नौकरशाही-राजनीतिक-पुलिस के गठजोड़ के रूप में जाना जाता है जो कि लोकतंत्र को खाती है।
ज्यादातर बार भ्रष्टाचार उच्च स्तर से शुरू होता है और यह बहुत कम स्तर तक भी जाता है। भ्रष्टाचार की ऊँचाई उस हद तक पहुंच गई है जहां इन भ्रष्ट लोगों के न्याय का कोई उचित कानून नहीं हैं। अत्यधिक भ्रष्ट लोग, जो पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं, की वजह से आम आदमी या गरीब लोगों के लिए जीवित रहना बहुत मुश्किल हो गया है।
भ्रष्टाचार का स्तर उतना कम हो सकता है जब ट्रैफिक पुलिस अधिकारी को हेलमेट नहीं पहनने के लिए रिश्वत देनी पड़े या निजी ठेकेदार सरकारी व्यक्तियों को सार्वजनिक काम की निविदा प्राप्त करने या नौकरी पाने के लिए रिश्वत देनी पड़े। आज भ्रष्टाचार विकास में बाधा पैदा करने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक है और लोकतंत्र को नुकसान भी पहुंचाता है। भ्रष्टाचार एक राष्ट्र के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
हम सभी को यह समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार देश की प्रगति के रास्ते में एक बाधा के रूप में कार्य कर रहा है। हम में से हर एक को उन कृत्यों से सावधान रहना चाहिए जो हम करते हैं। हम अपनी पसंदीदा सीट आवंटन के लिए यात्रा टिकट इंस्पेक्टर (टीटीआई) को 100-200 रुपये दे देते हैं लेकिन गहराई से देखे तो उस व्यक्ति ने सभी लोगों से पैसे लेकर सीट देना आदत ही बना ली है।
इस वार्तालाप का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद। मेरे सत्र के निष्कर्ष के रूप में मैं आपको सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि भ्रष्ट न केवल वह व्यक्ति है जो अवैध धन प्राप्त करता है बल्कि वह भी है जो रिश्वत देता है। मुझे आशा है कि अब से आप सभी किसी को रिश्वत नहीं देंगे और दूसरों को भी नियंत्रित करेंगे। हम चीजों को छोटे कर्मों के रूप में देखते हैं लेकिन अंत में ये छोटे कार्य ही भ्रष्टाचार के प्रति जागरूकता पैदा करते हैं।
धन्यवाद! आप सभी का दिन शुभ रहे और इस सन्देश को तब तक साझा करते रहें जब तक हमारा देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो जाता।
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By: Amit Singh
भूमिकाः भ्रष्टाचार समाज पर एक अभिशाप से कम नहीं है। भ्रष्टाचार के अंतर्गत व्यक्ति अनुचित लाभ के लिए लोगों की मजबूरी, संसाधनों का गलत फायदा उठाता है। आज भ्रष्टाचार की वजह से भी कहीं न कही समाज में समुदायों के बीच की खाई चौङी हो चुकी है। भ्रष्टाचार की वजह से देश के विकास में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभाव पङता है।
भ्रष्टाचार का क्या अर्थ है
भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट+आचार’ के मेल से बना है जिसमें ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है बुरा और ‘आचार’ से अभिप्राय आचरण से है। इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ ऐसा आचरण जो बुरा हो। वहीं भ्रष्टाचार करने वाले व्यक्ति को भ्रष्टाचारी कहा जाता है। भ्रष्टाचारी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने स्वार्थों की पुर्ति के लिए गलत आचरण रखता है। वह न्याय व्यवस्था के विरुद्ध जाते हुए अपने हितों को साधता है।
भ्रष्टाचार कईं अलग-अलग तरीके से किया जाता है। कोई काला-बाजारी, चोरी, रिश्वत तो, चीजों के ज्यादा दाम लेना, गरीबों का पैसा हङपना जैसे हथकंडो के जरिए भ्रष्टाचार को अंजाम देता है।
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भ्रष्टाचार के तरीकें
भ्रष्टाचार को कई तरीको के जरिए अंजाम दिया जाता है। आइए जानते हैं इसके विभिन्न प्रकारो के बारें में-
भ्रष्टाचार के क्या कारण होते हैं ?
यूं तो प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों से वाकिफ है। लेकिन इनके अलावा भी भ्रष्टाचार के पीछे कई कारण विद्यमान है तो चलिए इन कारणों को भी जान लेते हैः-
भ्रष्टाचार के परिणाम
भ्रष्टाचार ने हमेशा हमारे समाज तथा देश में नकारात्मक प्रभाव डाला है। आइए जानते हैं इसके कुछ दुष्परिणामों के बारे में-
भ्रष्टाचार को कैसे रोकें ?
भ्रष्टाचार को कई उपायों को अपनाकर रोका जा सकता है। आइए जानते हैं उनके बारे में।
कठोर दंड व्यवस्था – भ्रष्टाचार रोकने के लिए कठोर दंड व्यवस्था का प्रावधान किया जाना चाहिए। क्योंकि जब लोगों में कानून का डर होगा तभी वे इस तरह के गैरकानूनी कृत्य करने से डरेंगे।
डिजिटलीकरण को बढावा देकर – अगर हम डिजिटलीकरण को बढावा देतें हैं तो इसके जरिए भ्रष्टाचार में कमी लाई जा सकती है। क्योंकि जब पैसों के लेन-देन में तीसरे व्यक्ति की आवश्यक्ता ही नहीं होगी तो रिश्वत और घूसखोरी की नोबत ही नहीं आएगी।
गैरकानूनी कारखानों पर ताला – गैरकानूनी कारखानों पर किसी भी तरह की कार्यवाही से बेहतर है कि उन्हें बंद कर दिया जाए। जिससे अन्य लोग भी इसे उदाहरण के तौर पर कुछ सीख सकें।
पारदर्शिता – सरकारी कामकाज में गोपनीयता रखने के बजाय जनता के समक्ष प्रत्येक कार्य का लेखा-जोखा रखना चाहिए।
जागरुकता – भ्रष्टाचार को लेकर जितने ज्यादा से ज्यादा लोग जागरुक होंगे उतना ही प्रभावी तरीके से हम इसकी रोकथाम कर सकेंगे।
ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई कदम अभी तक नहीं उठाएं गए है। दरअसल, भ्रष्टाचार को लेकर कई कानून बनाएं गए है जिनमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 , धन शोधन निवारण अधिनियम, कंपनी अधिनियम, विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 आदि प्रमुख हैं।
भारत में भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार देश-दुनिया के कोने-कोने में विध्यमान है। भारत जैसे विकासशील देश में तो भ्रष्टाचार विकराल रुप धारण कर चुका है। आकङों की माने तो आज भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर पहुंच चुका है।
अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस
भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में ही नहीं ब्लकि पूरे विश्वभर में विद्धमान है। इसलिए दुनियाभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 9 दिसंबर को भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है। दरअसल, इस दिन को मनाने का क्षेय संयुक्त राष्ट्र को जाता है जिसने 31 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार दिवस मनाएं जाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि भ्रष्टाचार एक जघन्य अपराध है और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार यह दिन, यह देखने के लिए भी मनाया जाता है कि विभिन्न देशों की सरकारें भ्रष्टाचार को लेकर क्या कदम उठा रहीं हैं। इसके साथ ही विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति को जानने के लिए प्रत्येक वर्ष करप्शन परसेप्शन इंडेक्स नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए क्या कदम उठाया गया है और इन देशों में भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है।
इस साल आए इस रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले में 194 देशों में से भारत 82वें स्थान पर है। जो कि काफी चिंताजनक है। पिछले वर्ष की रिपोर्ट में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 77वें स्थान पर था। लेकिन इस बार वह 5 पायदान नीचे खिसक गया है।
उपसंहार – भ्रष्टाचार एक संक्रामक रोग की तरह पूरे विश्वभर में फैल रहा है। भ्रष्टाचार की जङे भारत में भी काफी ज्यादा मजबूत हो चूंकि है। भ्रष्टाचार की स्थिति इतनी ज्यादा खराब हो गई है कि आज रिश्वत लेने के मामले में पकङा गया व्यक्ति फिर रिश्वत देकर छूट जाता है।
अगर भ्रष्टाचार को लेकर कङे कानून नहीं बनाएं जाते तो यह धीरे-धीरे पूरे देश को खोखला कर देगा। कङे कानून के साथ इसे लेकर जागरूकता भी फैलानी चाहिए।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
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Essay on corruption in hindi भ्रष्टाचार पर निबंध.
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भ्रष्टाचार पर निबंध Essay on Corruption in Hindi 200 Words
विचार-बिंदु – • अर्थ • भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति • भ्रष्टाचार के कारण • हल।
भ्रष्टाचार का अर्थ है – भ्रष्ट आचरण अर्थात् पतित व्यवहार। रिश्वत, कामचोरी, मिलावट, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, भाई-भतीजावाद, जमाखोरी, अनुचित कमीशन लेना, चोरों-अपराधियों को सहयोग देना आदि सब भ्रष्टाचार के रूप हैं। दुर्भाग्य से आज भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार के दलदल में लथपथ हैं। लज्जा की बात यह है कि स्वयं सरकारी मंत्रियों ने करोड़ों-अरबों के घोटाले किए हैं। भ्रष्टाचार फैलने का सबसे बड़ा कारण है-प्रबल भोगवाद। हर कोई संसार-भर की संपत्ति को अपने पेट, मुँह और घर में भर लेना चाहता है। दूसरा बड़ा कारण है – नैतिक, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव। तीसरा कारण है – पैसे को सलाम।
अन्य कुछ कारण हैं – भूख, गरीबी, बेरोजगारी आदि। भ्रष्टाचार को मिटाना सरल नहीं है। जब तक कोई ईमानदार शासक प्रबल इच्छा शक्ति से भ्रष्टाचार के गढ़ को नहीं तोड़ता, तब तक इसे सहना होगा। इसके लिए भी शिक्षकों, कलाकारों और साहित्यकारों को अलख जगानी होगी।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत पर निबंध (Corruption Free India Essay in Hindi) – Essay on Corruption in Hindi 300 Words
भ्रष्टाचार का अर्थ है “भ्रष्ट + आचार”, जहा भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। भ्रष्टाचार किसी भी व्यक्ति के साथ-साथ देश के लिए बहुत बुरी समस्या है, जो दोनों के विकास और प्रगति में रुकावट डालता है। जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थके लिए न्याय व्यवस्था के नियमो से विरुद्ध जाकर गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है।
भ्रष्टाचार एक सामाजिक बुराई है, जो इंसान की सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक क्षमता के साथ खेल रहा है। लालच की वजह से भ्रष्टाचार की जड़ें और मजबूत होती जा रही है। भ्रष्टाचार दरअसल सत्ता, पद, शक्ति और सार्वजनिक संस्थान का दुरुपयोग है। अब तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत इस वक्त विश्व में भ्रष्टाचार के मामले में 84 वे स्थान पर है। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार सिविल सेवा, राजनीति, व्यापार और गैरकानूनी क्षेत्रों में फैला है, जहा भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना।
विश्व में भारत अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से इस को बहुत क्षति पहुंच रही है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार यहां के राजनीतिज्ञ है, जिनसे हम ढेर सारी उम्मीदें रखते हैं, चुनावो के दौरान यह बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं, जिनको हम वोट देते हैं और चुनाव जीतने के बाद यह सभी चुनावी वायदे भूल कर अपने असली रंग में आ जाते हैं। मुझे पूरा यकीन है की अगर राजनीतिज्ञ अपने लालच को त्याग देंगे, तो हमारे देश से भ्रष्टाचार की बीमारी दूर हो जाएगी। देश को आगे बढ़ाने के लिए हमें सरदार पटेल और शास्त्री जैसे ईमानदार नेता को चुनना चाहिए क्योंकि केवल ऐसे नेता ही देश को सही दिशा दे सकते है और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ सकते हैं। केवल राजनीतिज्ञ को ही नहीं बल्कि देश के नागरिकों को भी भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं का सामना करने के लिए एकजुट होना होगा। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 8 नवंबर को 500 और 1000 के बड़े नोटों को बंद करके बहुत ही इतिहासिक कदम उठाया, जिसकी सभी तारीफ कर रहे है।
भ्रष्टाचार मुक्त समाज पर निबंध – Essay on Corruption in Hindi 400 Words
वर्तमान समय में भ्रष्टाचार के दानव से संपूर्ण समाज त्रस्त है। अधिकांश व्यक्ति अनुचित व्यवहार द्वारा अधिक धन अर्जित करने के प्रयास में लगे रहते हैं। असंख्य व्यक्ति रिश्वत लेते हैं। अधिकांश नेता चुनाव जीतने के लिए अनैतिक साधनों का प्रयोग करते हैं। व्यापारी लोग भी खाद्य पदार्थों में मिलावट करते हैं। किसान भी सब्जियों तथा फलों में इंजैक्शन लगाकर अथवा कैमिकल का प्रयोग कर उन्हें दूषित करते हैं तथा महंगे दामों पर बेचते हैं। दूध, घी, मिठाइयों आदि में मिलावट तो सामान्य बात है। न्यायालयों में अनेक न्यायाधीश रिश्वत लेते हैं। यह सब कुछ भ्रष्टाचार के अन्तर्गत ही आता है। वस्तुतः वर्तमान समाज में भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमारे प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मिटाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
आज के संदर्भ में दूरदर्शन भ्रष्टाचार फैलाने का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है। विभिन्न चैनलों पर इतने अश्लील कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि टी०वी० के प्रोग्राम भी परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते। किशोरवर्ग तथा युवावर्ग के लिए चरित्रहीनता सम्मान की वस्तु बन गई है। अवैध संबंधों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया जा रहा है। फिल्मों में हिंसा और नग्नता का खुलेआम प्रदर्शन भी समाज की व्यवस्था को अपाहिज बनाने में पूरा योगदान दे रहा है। फैशन के नाम पर नारी शरीर को ‘उत्पाद’ की तरह प्रस्तुत किया जाता है। प्रतिदिन हो रहे फैशन शो हमारी भ्रष्ट होती सामाजिक व्यवस्था का प्रमाण हैं। आजकल पारिवारिक संबंधों में भी भ्रष्टाचार ने विषबीज बो दिए हैं। तथाकथित ‘कज़िन’ (Cousin) तथा ‘अंकल’ किस प्रकार परिवार के बच्चों को शारीरिक शोषण करते हैं, इसका प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। अनेक परिवारों में निकट के रिश्तेदार किशोरियों को अपनी कामपिपासा की पूर्ति का साधन बनाते हुए ज़रा भी हिचकिचाते नहीं।
वर्तमान समाज में लाखों लड़कियाँ ‘कालगर्ल’ का काम करती हैं। लाखों स्त्रियाँ वेश्याएँ हैं। धन कमाने के लिए ये स्त्रियाँ समाज की व्यवस्था को विकृत करने का प्रयास कर रही हैं। समाज में मदिरा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। मदिरा पीकर लोग अनेक प्रकार के अनैतिक कार्य करते हैं। इस प्रकार सामाजिक जीवन अपनी विषबल फैलाता जा रहा है। इसे रोकने के लिए ‘संचार माध्यम’ (मीडिया) बहुत सहायक तथा कठोर कानून भी इस पर रोक लगाने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
भ्रष्टाचार पर निबंध Long Essay on Corruption in Hindi 500 Words
मनुष्य के चरित्र और आचरण में गिरावट, उसका पतित हो जाना, कर्तव्य पथ से विमुख हो जाना और समाज विरोधी बन जाना भ्रष्टाचार कहलाता है। आचरण और चरित्र सम्बन्धी हमारी कुछ स्थापित मर्यादाएं हैं। इन्हीं पर हमारा जीवन और समाज टिका हुआ है। इन्हीं के आधार पर हमारी संस्कृति और सभ्यता का विकास हुआ है। भ्रष्ट व्यक्ति समाज के लिए और स्वयं अपने लिये भी हानिकारक होता है। आज के स्वार्थपूर्ण और भौतिकवादी युग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सारा समाज पतित राजनेताओं, मौका-परस्त सरकारी अधिकारियों, पदलोलुप और रिश्वतखोर अफसरों आदि से भरा पड़ा है। जमाखोरों, चोर बाजारियों और मुनाफाखोरों की एक श्रेणी देखी जा सकती है।
भ्रष्टाचार के अनेक रूप, प्रकार और अवस्थाएं हैं। उनको पूरी तरह गिनना या उनका वर्णन करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। भ्रष्टाचार कैंसर या एड्स की तरह है, जो हमारे सम्पूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था को उजाड़ रहा है। जीवन के हर क्षेत्र में यह आज व्याप्त है। धर्म राजनीति, शिक्षा, व्यापार, सरकारी सेवा, लेन-देन आदि सभी जीवन के कार्य इससे ग्रस्त हैं। धार्मिक नेता और तथाकथित गुरु, मुल्ला-मौलवी आदि अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे साम्प्रदायिक हिंसा, वैमनस्य और घृणा फैलाने से भी नहीं चूकते। धर्म और भगवान के नाम पर लोगों से पैसा एंठकर वे अपनी जेबें भरने में व्यस्त हैं।
लोगों के अंधविश्वासों का वे पूरा लाभ उठा रहे हैं। धर्म जहां जोडने, नैतिकता का विस्तार करने और पारस्परिक सद्भाव का माध्यम होना चाहिये, वहीं आज अशांति, कलह, संघर्ष और पतन का कारण बना हुआ है। व्यापारी मिलावट और जमाखोरी के काले धंधों में पूरी तरह लिप्त हैं। कर की चोरी तो उनके लिए एक सामान्य बात है। राजनीतिक नेताओं तथा दलों को वे चंदा आदि देकर अपनी मनचाही कर रहे हैं। कहीं किसी का डर या भय नहीं है।
कुर्सी के लोभ और राजनीतिक स्वार्थों में अंधे हमारे राजनेताओं और प्रशासकों ने तो सभी सीमाएं तोड़ दी हैं। जो रक्षक होने चाहिये थे, वहीं अब भक्षक बन गये हैं। दल बदलुओं की आज चांदी है। राजनेताओं के संरक्षण में अपराधी फलफूल रहे हैं। धन के बल पर चुनाव जीतकर वे संसद तथा विधान सभाओं में पहुंच रहे हैं। अनेक अपराधी छवि के लोग आज मंत्री बने हुए हैं या कोई अन्य लाभ के महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन हैं। सत्ता और संकीर्ण स्वार्थों में आज जो कुछ हो रहा है, वह सब जानते हैं। इस बेशर्मी और भ्रष्टाचार से लोग परेशान हैं परन्तु कहीं कोई उपचार नज़र नहीं आता। भ्रष्टाचार से शिक्षक और डॉक्टर भी अछूते नहीं हैं।
पैसे के लालच में परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक कर दिये जाते हैं। झूठे प्रमाणपत्र और डिग्रीयां बाँटी जाती हैं और महत्त्वपूर्ण पदों पर लोगों को नियुक्त किया जा रहा है। अध्यापक कक्षा में पढ़ाने के बजाए टयूशन्स में लगा हुआ है। डॉक्टर झूठे प्रमाण पत्र देकर लोगों को अनुचित लाभ प्राप्त करने में सहायता कर रहे हैं। अस्पतालों से दवाइयां तथा दूसरे महत्त्वपूर्ण उपकरण काले बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे हैं।
नैतिकता, आदर्श, परोपकार, जीवन मूल्य आदि शब्द मात्र रह गये हैं जिनका अस्तित्व, पुस्तकों या शब्दकोषों तक ही सीमित रह गया है। आज सब स्वार्थ की बात करते हैं, सिद्धान्तों या नैतिकता की नहीं । शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, राशन-वितरण, बिजली, कृषि, किसी भी विभाग में चले जाएं भ्रष्टाचार के उदाहरण आपको मिल जायेंगे। असीमित आशा-आकांक्षाएं, भौतिक अंधी दौड़ और पश्चिमी सभ्यता की विवेकहीन नकल ने हमें पागल कर दिया है। हम तुरन्त धन और यश का पहाड़ खड़ा करना चाहते हैं और परिश्रम नहीं करना चाहते। अतः हम भ्रष्ट उपाय अपनाते हैं और दूसरों को भी भ्रष्ट बनने को तैयार कर लेते हैं।
आज हमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण, महात्मा गाँधी, रफी अहमद किदवई, लाल बहादुर शास्त्री, दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं की बड़ी आवश्यकता है। उन जैसा त्यागी, तपस्वी, निस्वार्थ समाजसेवी और आदर्शों पर चलने वाला कोई भी नेता आज दिखाई नहीं देता। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सामाजिक क्रांति और आंदोलन की आज बड़ी आवश्यकता है। सबसे पहली आवश्यकता है कि चुनावों को निष्पक्ष और स्वच्छ बनाया जाए। अपराधियों और भ्रष्ट लोगों को चुनाव लड़ने, मंत्री बनने तथा लाभ का कोई पद न प्राप्त करने दिया जाए। चुनाव आयोग और न्यायालयों को इस कार्य में और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
युवा वर्ग इस मामले में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। युवकों को आगे आकर भ्रष्ट लोगों का पर्दाफाश करना चाहिये। उन्हें प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि वे कभी भी किसी भी अवस्था में न तो रिश्वत देंगे न लेंगे। दहेज लेना और देना भी एक भ्रष्टाचार है। नवयुवक और नवयुवतियां दहेज के बिना विवाह द्वारा एक बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। युवा वर्ग को भ्रष्ट लोगों के बहिष्कार का आंदोलन प्रारम्भ करना चाहिये।
भ्रष्टाचार को मिटाना असंभव तो नहीं है, परन्तु कठिन अवश्य है। इस पुण्य कार्य के लिए समाज के सभी वर्गों और लोगों को कमर कसनी चाहिये। भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का ऊंचा स्थान है। यह हमारे लिए बड़ी शर्म की बात है। नेताओं का यह कर्तव्य है कि वे अपने आचरण, व्यवहार तथा चरित्र से आदर्श प्रस्तुत करें जिससे कि जनता उनका अनुसरण कर सके। हमारी सभ्यता और संस्कृति हमसे यह मांग करती है कि हम जीवन के हर क्षेत्र में नैतिकता और कर्तव्य परायणता को सर्वोच्च स्थान दें।
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by Meenu Saini | Jul 13, 2022 | Hindi | 0 comments
इस लेख में हम यूपीएससी (UPSC) छात्र के लिए भारत में भ्रष्टाचार पर निबंध लिखखेगे | भ्रष्टाचार होता क्या है, भ्रष्टाचार के कारण, भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय, भारत सरकार की भ्रष्टाचार दूर करने के लिए बनाई गई नीतियां के बारे में जानेगे |
भ्रष्टाचार एक व्यापक संक्रामक परजीवी है जो प्रणालियों, विभागों, संस्थानों, व्यक्तियों या समूहों के जीवन को चूस रहा है और जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर चुका है, चाहे वह सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक या नैतिक हो। यह वास्तव में शर्म की बात है कि भारत दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है। हमारे देश में जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र होगा जहां हमें भ्रष्टाचार सामना न करना पड़े।
इस लेख में हम भ्रष्टाचार के कारण, प्रभाव, भ्रष्टाचार को कम करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बारे में बात करेंगे।
भारतीय समाज कैसे भ्रष्टाचार मुक्त बन सकता है.
भ्रष्टाचार एक बहुत पुरानी सामाजिक बुराई है।
यह मानव समाज में हमेशा किसी न किसी रूप में मौजूद रहा है। गौरतलब है कि ‘अथर्ववेद’ लोगों को भ्रष्टाचार से दूर रहने की चेतावनी देता है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में भ्रष्ट लोगों द्वारा सरकारी धन के दुरुपयोग के लिए अपनाए गए चालीस तरीकों का उल्लेख है। दिल्ली के सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी को अपने भू-राजस्व कर्मचारियों को भ्रष्टाचार में लिप्त होने से बचाने के लिए उनके वेतन में काफी वृद्धि करनी पड़ी।
” अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अनुसार, “भ्रष्टाचार से लड़ना केवल सुशासन नहीं है। यह आत्मरक्षा है। यह देशभक्ति है।”
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) भ्रष्टाचार को “निजी लाभ के लिए सौंपी गई शक्ति का दुरुपयोग” के रूप में परिभाषित करता है। भ्रष्टाचार का अर्थ है सत्ता के दुरुपयोग और दुरुपयोग का कार्य, विशेष रूप से सरकार में उनके द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए या तो धन या एक पक्ष के लिए। भारत में 50% से अधिक लोगों ने सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँचने के दौरान रिश्वत देना स्वीकार किया है।
भ्रष्टाचार के कारणों की जांच एक सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक-प्रशासनिक परिदृश्य की एक विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करती है जो दैनिक आधार पर भ्रष्टाचार को जन्म देती है।
भारत में भ्रष्टाचार के निम्नलिखित कारण हैं।
पिछले 10 वर्षों में लोकसभा चुनावों के लिए घोषित खर्च में 400% से अधिक की वृद्धि हुई है। जबकि उनकी आय का 69% अज्ञात स्रोतों से आया है।
ऐसे उद्यम आमतौर पर अधिकारियों को उन कानूनों के दायरे से बाहर रखने के लिए रिश्वत देते हैं।
राजनीति का अपराधीकरण और नौकरशाही का राजनीतिकरण राज्य सत्ता के दुरुपयोग के लिए एकदम सही मंच प्रस्तुत करता है।
सीबीआई, ईडी, आईटी-विभाग, एसीबी जैसे प्रवर्तन अधिकारियों का दुरुपयोग और स्वायत्तता की कमी भी कानून के प्रतिरोध मूल्य को कमजोर करती है।
सिविल सेवकों को संविधान के अनुच्छेद 309 और 310 के तहत प्रदान की गई अतिरिक्त सुरक्षा और सिविल सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता समस्या को और बढ़ा देती है।
वैश्वीकरण से प्रेरित जीवनशैली में बदलाव ने समाज में नैतिकता और मानवता को और गिरा दिया है।
भ्रष्टाचार के भारतीय समाज में निम्न प्रभाव हुए हैं।
भारत सरकार ने भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए समय समय पर कानून लाती रही है और पुराने कानूनों में संशोधन करती रही है।
भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए निम्न प्रकार की नीतियां व कानून बनाए गए।
भ्रष्टाचार के लिए एक परिभाषा प्रदान करता है और उन कृत्यों को सूचीबद्ध करता है जो भ्रष्टाचार के रूप में होंगे जैसे कि रिश्वत, एहसान के लिए उपहार आदि।
यह अधिनियम भ्रष्ट लोगों को बेनकाब करने और ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।
एक अधिकारी के अभियोजन के लिए सरकार से मंजूरी की आवश्यकता होती है। इसमें केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारी, सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी, राष्ट्रीयकृत बैंक आदि शामिल हैं।
इस अधिनियम के तहत परीक्षण के लिए विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है जो उपयुक्त मामलों में संक्षिप्त सुनवाई का आदेश दे सकते हैं।
हाल के संशोधनों ने बेनामी संपत्ति की परिभाषा को विस्तृत किया है और सरकार को अदालत की मंजूरी के बिना किसी परेशानी के ऐसी संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति दी है।
इसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग की घटनाओं को रोकना और भारत में ‘अपराध की आय’ के उपयोग को प्रतिबंधित करना है।
मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में सख्त सजा का प्रावधान है, जिसमें 10 साल तक की कैद और आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति की कुर्की (जांच के प्रारंभिक चरण में भी और जरूरी नहीं कि सजा के बाद भी) शामिल है।
सीवीसी को वैधानिक दर्जा देता है।
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में पीएम, एमएचए और एलओपी की एक समिति की सिफारिश पर की जाएगी।
जांच करते समय आयोग के पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियां होती हैं।
यह अधिनियम पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए सूचना के प्रकटीकरण को जनता का कानूनी अधिकार बनाता है।
इसके अंतर्गत धारा 4 सूचना के सक्रिय प्रकटीकरण और अभिलेखों के डिजिटलीकरण को अनिवार्य करती है।
कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इसका इस्तेमाल सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में अनियमितताओं को सामने लाने के लिए किया है।
जैसे; मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला।
कॉर्पोरेट प्रशासन और कॉर्पोरेट क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए प्रदान करता है।
‘धोखाधड़ी’ शब्द की व्यापक परिभाषा दी गई है और यह कंपनी अधिनियम के तहत एक आपराधिक अपराध है।
विशेष रूप से धोखाधड़ी से जुड़े मामलों में, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) की स्थापना की गई है, जो कंपनियों में सफेदपोश अपराधों और अपराधों से निपटने के लिए जिम्मेदार है।
एसएफआईओ कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत जांच करता है।
भारतीय दंड संहिता, 1860 उन प्रावधानों को निर्धारित करता है जिनकी व्याख्या रिश्वत और धोखाधड़ी के मामलों को कवर करने के लिए की जा सकती है, जिसमें आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी से संबंधित अपराध शामिल हैं।
लोक सेवकों द्वारा गलत काम करने की शिकायतों की जांच के लिए केंद्र में एक स्वतंत्र प्राधिकरण लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति करता है
लोकपाल की नियुक्ति पीएम, एलओपी, सीजेआई, स्पीकर और एक प्रख्यात न्यायविद की समिति द्वारा की जाएगी।
एसएआरसी और संथानम समिति जैसे विभिन्न आयोगों ने महत्वपूर्ण और व्यवहार्य सिफारिश की है कि एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
नागरिकों को सशक्त बनाने और भारतीय समाज को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:
भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए, भारत सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 को अधिनियमित किया है और मुख्य सतर्कता आयोग की स्थापना की है, जो भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटने के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करता है। हालांकि न्यायिक प्रक्रिया के लंबे गलियारों के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन न्यायपालिका में गवाहों की कमी और भ्रष्टाचार से शायद ही कोई फर्क पड़ सकता है।
कुशल समाधानों में जन जागरूकता, भ्रष्ट सौदों का बार-बार संपर्क, और सबसे बढ़कर व्हिसलब्लोअर की भूमिका शामिल है। व्हिसलब्लोअर की अवधारणा पश्चिमी है, लेकिन अगर बड़ी संख्या में लोग भ्रष्ट अधिकारियों पर नजर रखते हैं, उनकी जासूसी करते हैं और संबंधित विभागों से परामर्श करते हैं, तो चीजें बेहतर हो सकती हैं।
सरकार ने अब जवाबदेही पर जोर दिया है और भारत भविष्य के लिए सकारात्मक हो सकता है क्योंकि डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के साथ सब कुछ डिजिटाइज़ करने से भ्रष्टाचार उच्च स्तर तक कम हो जाएगा क्योंकि सिस्टम में बिचौलियों के लिए कोई जगह नहीं होगी, और सरकार हर चीज की निगरानी करेगी।
हां, भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है लेकिन इसे व्यवस्थित और सही प्रयासों से खत्म किया जा सकता है।
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February 14, 2024 by Prasanna
Corruption Free India Essay: A long lost dream for many Indians, a corruption-free India is something that every Indian always dreams of. But how do we achieve a corruption-free India? Is it just India or the rest world also has problems with corruption. Is there are a country that has zero corruption? Most importantly, what is corruption exactly? How long has corruption been part of our lives? Are politicians solely responsible for corruption in India? How do we prevent corruption in India?
These are some burning questions that one always ponders upon when the issue of corruption in India comes up. Through this particular essay on corruption free India , we hope some of the questions will be answered.
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India, mostly in recent years, has become popular around the world because of the various scandals and corruption issues that have broken out in the power corridors of the country. Corruption has been a part of India ever since its birth. Corruption is not just something that is associated with politicians and businessmen, corruption is a problem in India that exists in all the levels, right from ministers to watchmen. Basically let us answer a few questions,
What is corruption?
Corruption is an act of dishonesty and a criminal offense conducted by a person or a group of people or an organisation by abusing and taking advantage of their power and position of authority. This means that anything unethical done, for the greed of money, which is beyond the boundaries of the legality of the land, will be termed as corruption. Corruption can be on various levels. A minister taking bribes to provide a license for a businessman, a pion taking kickbacks and bribes to let you inside a government office, a doctor taking a bribe from you to provide you with a fake medical certificate are all the different levels of corruption. One thing we should remember is, giving bribe is as bad and unethical as taking a bribe. Whether the bribe is Rs. 10 or Rs. 10,000 crore does not matter, a bribe is a bribe.
While it is easy to say that we shouldn’t pay bribes, the ground relates to it are far from easy. Imagine your loved one has severe health issues and you don’t have enough money to go to a private hospital. So you have taken them to a government hospital, where you are required to pay a bribe for the authorities to get your loved admitted into the hospital. The question of ethical dilemma becomes faded here and saving the life of our loved one takes precedence. One can’t expect to follow rules and integrity in a time of crisis like this. So how do we tackle corruption in India?
The tacking of corruption should come from higher authorities and the strongest laws and regulations should be in place. There are many laws in places such as the Prevention of corruption act and Jan Lokpal to name a few. While laws are robust in nature, its implementation is somehow weakened. This essay on corruption free India is mostly confined to corruption in the public sector. There is massive corruption in private sectors as well who circumvent the law of the land to make quick money.
To prevent corruption, we have to understand why corruption takes place in the first place.
Why does corruption take place in India?
Whose responsibility is to prevent corruption
We simply can’t expect everything to be done by the government when in some cases, the government leaders are themselves involved in massive corruption scandals. The responsibility lies equally with everyone, right from top-level ministers to mid-level government employees and low-level watchmen and workers. The responsibility also lies with the customer and common citizen of the country. He or she should be vigilant and record the acts of corruption and expose such people in accordance with the law.
How to prevent corruption?
While there is no one good answer to that question, here are some steps that should be taken to prevent corruption.
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A corruption-free India is a dream that every politician promises his voters during elections but forgets it during the regime. While corruption is usually associated with public sector employees and politicians, we cannot deny the fact that massive corruption and criminal offences exist even in the private sector of India.
Preventing corruption is not an easy task, especially in a democratic country like India. India is a free-market country with strong laws on privacy and human rights. But this is not the case in authoritarian regimes like North Korea or China. When a state is a complete police state, it becomes easier to tackle corruption since there would be no resistance. But in India, even the anti-corruption officers need to follow the course of the law to prevent corruption.
It is a tricky situation since the criminals circumvent the law while the people catching them has to follow the law. Red tape bureaucracy, lack of accountability and inefficient leadership are some of the reasons for the rising corruption rates in Inda. For India to become truly corruption free, strong laws, the autonomy of power to government officers and good awareness campaigns for the general public should be done.
Question 1. Which is the most corrupt country in the world
Answer: South Sudan is considered as the most corrupt country in the world
Question 2. Which is the biggest corruption scandal in India?
Answer: The Common Wealth Games, popularly known as CWG scam is the biggest scam in India
Question 3. What are the types of corruption?
Answer: Bribery, extortion, embezzlement, graft and peddling are few types of corruption
Question 4. What is the effect of corruption?
Answer: The effect of corruption is seen in the development and economic distress
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