gautam buddha biography book in hindi

भगवान् गौतम बुद्ध जीवन परिचय | Gautam Buddha History

Gautam Budh ki Jivani

“पूरी दुनिया में इतना अँधेरा नही है की वह एक मोमबत्ती के प्रकाश को फीका कर सके।”

भगवान गौतम बुद्ध जिन्होंने अपने महान विचारों और उपदेशों से दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया और समाज में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने में अपना अहम योगदान दिया। गौतम बुद्ध द्धारा दिए उपदेशों को मानकर कई लोग न सिर्फ अपने जीवन में सफल हुए बल्कि उनके मन में समाज के प्रति प्रेम, सदभाव की भावना का भी विकास हुआ।

गौतम बुद्ध, भारत के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु, एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। गौतम बुद्ध ने हिन्दू धर्म में सिद्धार्थ के रूप में जन्म लिया था, बाद में उन्होंने ग्रहस्थ जीवन में भी प्रवेश किया लेकिन अपनी शादी के कुछ समय बाद उन्होनें अपनी पत्नी और बच्चे का त्याग दिया और परिवारिक मोह-माया से अलग होकर वे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बन गए।

आपको बता दें कि भगवान गौतम बुद्ध, दुनिया को जन्म, मृत्यु और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश और सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में लग गए। इसके बाद उन्होनें भौतिकवादी दुनिया में अपना रास्त ढूंढ़ा।

करूणा भाव से भरे हुए और सत्य, अहिंसा को महात्मा गौतम बुद्द ने अपना जीवन का आधार माना और बाद में उन्होनें लोगों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके महान उपदेशों को सुनकर कई लोगों ने अपने जीवन तक बदल डाला चलिए जानते हैं – बौद्द धर्म के संस्थापक Gautam Buddha के जीवन के बारे में और उपलब्धियों के बारे में –

भगवान गौतम बुद्ध जीवन परिचय – Gautam Buddha in Hindi

Gautama Buddha

भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के बारे – Gautam Buddha Information in Hindi

गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन – gautam buddha biography in hindi.

महात्मा गौतम बुद्ध का पूरा नाम सिद्धार्थ गौतम बुद्ध था। उनका जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच कपिलवस्तु के पास लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। आपको बता दें कि कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने पीहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और उन्होने एक बालक को जन्म दिया था।

आपको बता दें कि उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो कि शाक्य के राजा थे। परंपरागत कथाओं के मुताबिक उनकी  माता मायादेवी थि जो कोली वन्श से संबंधित थी, जिनका सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद निधन हो गया था। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी (महाप्रजावती गौतमी) ने किया था। जिसके बाद इनका नाम सिद्धार्थ रख दिया गया।

जिनके नाम का अर्थ  है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो”। अर्थात सिद्ध आत्मा जिसे सिद्धार्थ ने गौतम बुद्ध बनकर अपने कामों से सिद्ध किया। वहीं इनके जन्म के समय  एक साधु ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक महान राजा या किसी महान धर्म का प्रचारक होगा और आगे चलकर साधु महाराज की इस भविष्यवाणी को गौतम बुद्ध ने सही भी साबित किया और वे पवित्र बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बने और समाज में फैली बुराइयों को दूर कर उन्होनें समाज में काफी हद तक सुधार किया।

वहीं जब राजा शुद्धोधन को इस भविष्यवाणी के बारे में पता चला तो वे काफी सतर्क हो गए और उन्होनें इस भविष्यवाणी को गलत साबित करने के लिए अथक प्रयास किए क्योंकि सिद्धार्थ के पिता चाहते थे कि वे उनके राज सिंहासन को संभालें और अपने पुत्र के कर्तव्य को पूरा करें।

वहीं इसलिए वे उन्हें अपने राजमहल से बाहर भी नहीं निकलने देते थे। वे सिदार्थ को अपने महल में सभी ऐशो-आराम देने की कोशिश करते थे। लेकिन बालक सिद्धार्थ का मन बचपन से ही इन आडम्बरों से दूर ही था इसलिए राजा की काफी कोशिशों के बाबजूद भी सिद्धार्थ ने अपने परिवारिक मोह-माया का त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।

आपको बता दें कि गौतम बुद्ध शुरू से ही दयालु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। एक कहानी के मुताबिक जब इनके सौतेले भाई देवव्रत ने एक पक्षी को अपने बाण से घायल कर दिया था, इस घटना से गौतम बुद्ध को काफी दुख हुआ था। जिसके बाद उन्होंने उस पक्षी की सेवा कर उसे जीवन दिया था। वहीं गौतम बुद्ध स्वभाव के इतने दयालु थे कि वे दूसरे के दुख में दुखी हो जाया करते थे। उन्हें प्रजा की तकलीफों को नहीं देखा जाता था लेकिन उनका यह स्वभाव राजा शुद्धोधन को अच्छा नहीं लगता था।

जब परिवारिक मोह को त्याग कर सिद्धार्थ ने लिया सन्यासी बनने का फैसला – Gautam Buddha Story in Hindi

राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ का मन शिक्षा में लगाया, जिसके चलते सिद्धार्थ ने विश्वामित्र से शिक्षा ग्रहण की थी। यही नहीं गौतम बुद्ध को वेद, उपनिषदों के साथ युद्ध कौशल में भी निपुण बनाया गया। सिद्धार्थ को बचपन से ही  घुड़सवारी का शौक था वहीं धनुष-बाण और रथ हांकने वाला एक सारथी में कोई दूसरा मुकाबला नहीं कर सकता था।

वहीं 16 साल की उम्र में उनके पिता ने सिद्धार्थ की शादी राजकुमारी यशोधरा से कर दी। जिससे उन्हें एक बेटे पैदा हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया। गौतम बुद्ध का मन ग्रहस्थ जीवन में लगाने के लिए उनके पिता ने उन्हें सभी तरह की सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाईं। यहां तक कि सिद्धार्थ के पिता ने अपने बेटे के भोग-विलास का भी भरपूर बंदोबस्त किए था।

राजा शुद्दोधनने अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए 3 ऋतुओं के हिसाब से 3 महल भी बनाए थे। जिसमें नाच-गान और ऐशो आराम की सभी व्यवस्थाएं मौजूद थी लेकिन ये चीजें भी सिद्धार्थ को अपनी तरफ आर्कषित नहीं कर सकी। क्योंकि सिद्धार्थ को इन आडम्बरों से दूर रहना ही पसंद था इसलिए वे इस पर कोई खास ध्यान नहीं देते थे। वहीं एक बार जब महात्मा बुद्ध दुनिया को देखने के लिए सैर करने निकले तो उन्हें एक बूढ़ा दरिद्र बीमार मिला जिसे देखकर सिद्धार्थ का मन विचलित हो गया और वे उसके कष्ट के बारे में सोचते रहे।

इस तरह दयालु प्रवृत्ति होने की वजह से उनका मन संसारिक मोह-माया से भर गया। वहीं एक बार भ्रमण के दौरान ही सिद्धार्थ ने एक संन्यासी को देखा, जिसके चेहरे पर संतोष दिखाई दिया, जिसे देखकर राजकुमार सिद्धार्थ काफी प्रभावित हुए और उन्हें सुख की अनुभूति हुई।

वहीं इसके बाद उन्होंने अपने परिवारिक जीवन से दूर जाने और अपनी पत्नी और अपने बच्चे का त्याग करने का फैसला लिया और तपस्वी बनने का फैसला लिया। जिसके बाद वे जंगल की तरफ चले गए।

कठोर तपस्या कर की प्रकाश और सच्चाई की खोज – Gautam Buddha ka Jeevan Parichay

आपको बता दें कि गौतम बुद्ध सिद्धार्थ ने जब घर छोड़ा था तब उनकी आयु महज 29 साल थी। इसके बाद उन्होंने जगह-जगह ज्ञानियों से ज्ञान लिया और तप के मार्ग की महत्ता को जानने की कोशिश की। इसके साथ ही उन्होनें आसन लगाना भी सीखा और साधना शुरु की।

आपको बता दें कि सबसे पहले वो वर्तमान बिहार के राजगीर स्थान पर   जाकर मार्गो पर भिक्षा मांगकर अपना तपस्वी जीवन शुरू किया। वहीं इस दौरान राजा बिम्बिसार ने गौतम बुद्ध सिद्दार्थ को पहचान लिया और उनके उपदेश सुनकर उन्हें सिंहासन पर बैठने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

इसके अलावा कुछ समय के लिए वे आंतरिक शांति की खोज में वो पूरे देश के घूमकर साधू संतो से मिलने लगे। उस दौरान उन्होंने भी एक साधू की तरह भोजन का त्याग कर जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया।

इस दौरान वे शरीर से काफी कमजोर हो गए लेकिन इन्हें कोई संतुष्टि नहीं मिली, जिसके बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि अपने शरीर को तकलीफ देकर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है और फिर उन्होंने सही तरीके से ध्यान लगाना शुरु किया जिसके बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि अति किसी बात की अच्छी नहीं होती और अपने ईश्वर के लिए खुद को कष्ट देना अपराध है। यही नहीं इस सत्य को जानने के बाद महात्मा गौतम बुद्ध ने तपस्या और व्रत के तरीको की निंदा भी की।

भगवान गौतम बुद्ध को हुई ज्ञान की प्राप्ति – Gautam Buddha ki Kahani

एक दिन गौतम बुद्ध बौद्ध गया पहुंचे। वे उस दौरान बहुत थक गए थे, वैशाखी पूर्णिमा का दिन था, वे आराम करने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और ध्यान लगाने लगे। इस दौरान भगवान गौतम बुद्ध ने यह प्रतिज्ञा ली कि जब तक उनको सत्य की खोज नही हो जाती तब तक वो यहां से नही हिलेंगे। 49 दिनों के ध्यान के बाद उन्होंने एक दिव्य रोशनी उनकी ओर आती हुई दिखी।

आपको बता दें कि यह गौतम बुद्ध की खोज का नया मोड़ था। इस दौरान उन्होनें इसकी खोज की थी कि सत्य हर मनुष्य के साथ है और उसे बाहर से ढूंढना निराधार है। इस घटना के बाद से उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया। वहीं उस वृक्ष को बोधिवृक्ष और उस जगह को बोध गया कहा जाने लगा। इसके बाद इन्होंने पालि भाषा में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया।

आपको बता दें कि उस समय आम लोगों की भी पाली भाषा थी। यही वजह थी लोगों ने इसे आसानी से अपना लिया क्योंकि अन्य प्रवर्तक उस दौरान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते थे। जिसे समझना लोगों के लिए थोड़ा कठिन था। इस वजह से भी लोग गौतम बुद्ध और बोद्ध धर्म की तरफ ज्यादा से ज्यादा आर्कषित हुए। देखते ही देखते बौद्ध धर्म की लोकप्रियता लोगों के बीच बढ़ती गई।

वहीं इसके बाद भारत में कई अलग-अलग प्रदेशों में कई हजार अनुयायी फैल गए। जिनसे उनके संघ का गठन हुआ। वहीं इस संघ ने बौद्ध धर्म के उपदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया। जिसके बाद बौद्ध धर्म की अनुयायिओं की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई।

गौतम बुद्ध ने लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलकर सरल मार्ग अपनाने का ज्ञान दिया। आपको  बता दें कि किसी भी धर्म के लोग बौद्ध धर्म अपना सकते थे क्योंकि यह सभी जाति-धर्मों से एकदम दूर था। आपको बता दें कि गौतम बुद्ध को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का रूप माना गया था इसलिए इन्हें भगवान बुद्ध कहा जाने लगा। इसके अलावा बौद्ध धर्म की इस्लाम में भी अपनी एक अलग जगह थी। बौद्ध धर्म में अहिंसा को अपनाने और सच्चाई के मार्ग पर चलकर सभी मानव जाति एवं पशु-पक्षी को सामान प्रेम का दर्ज देने को कहा गया। इसके साथ ही आपको बता दें कि महात्मा बुद्ध के पिता और उनके बेटे राहुल दोनों ने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया था।

गौतम बुद्ध के उपदेशों एवं प्रवचनों का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा सम्राट अशोक ने किया। दरअसल कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को अपनाते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुंचाया। यही नहीं सम्राट अशोक ने विदेशों में भी बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गौतम बुद्ध की दी गयी शिक्षा – Gautam Buddha Teachings in Hindi

गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रुढियों और अन्धविश्वासों का खंडन कर एक सहज मानवधर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा की जीवन संयम, सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए पवित्र और सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए।

उन्होंने कर्म, भाव और ज्ञान के साथ ‘सम्यक्’ की साधना को जोड़ने पर बल दिया, क्योंकि कोई भी ‘अति’ शांति नहीं दे सकती। इसी तरह पीड़ाओ तथा मृत्यु भय से मुक्ति मिल सकती है और भयमुक्ति एवं शांति को ही उन्होंने निर्वाण कहा है।

उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था,वह आज भी उतनाही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाए झेली।

गहरे चिंतन – मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के निचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ था। और उन्होंने सर्व प्रथम पांच शिष्यों को दिक्षा दी थी।

गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण – Gautam Buddha Death

आपको बता दें कि 80 साल की आयु में गौतम बुद्द ने अपने निर्वाण की घोषणा की थी। समाधि धारण करने के बाद गौतम बुद्ध के अनुनयायियों ने बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार-प्रसार किया था। उस दौरान महात्मा बुद्ध द्दारा दिए गए उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की गई और बड़े स्तर पर लोगों ने बौद्ध धर्म के उपदेशों का अनुसरण भी किया। भारत के अलावा भी चीन, थाईलैंड, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशों ने बौद्ध बौद्ध धर्म को अपनाया था।

बौद्ध धर्म का प्रचार – Promotion of Buddhism

तत्पश्चात अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गये।उंका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जापान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है।

उनके द्वारा बताये गयी बातो की स्थानिक लोग बड़ी श्रद्धा से मानते थे और उनकी मृत्यु के बाद भी लोग उनके द्वारा बताये गए रास्तो पर चलते थे और उनकी बातो का पालन करते थे। उनकी बातो को कई लोगो ने अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन समृद्ध बनाया है और उनकी मृत्यु के 400 साल बाद भी लोग उन्हें भगवान का रूप मानते थे।

दुखों से मक्ति दिलाने के लिए बुद्ध ने बताया अष्टांगिक मार्ग – Ashtang marg 

महात्मा बुद्ध के उपदेश बड़े ही सीधे और सरल थे। उन्होंने कहा था कि समस्त संसार दु:खों से भरा हुआ है और यह दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है। इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है। उन्होंने लोगों को ये भी बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक- भाव, सम्यक- भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है। भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं।

महात्मा बुद्ध का जीवन वाकई प्रेरणा देना वाला है। उन्होंने मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने खुद  राजसी भोग विलास त्याग दिया और कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना किया। उन्होनें ज्ञान और सत्य  की खोज के लिए कठोर साधना की। जिसके बाद ही उन्हें बिहार में बोधिवृक्ष के नीचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ।

आपको बता दें कि महात्मा बुद्ध ने अपने 5 शिष्यों को दिक्षा भी दी थी यहां तक की कई बुद्धिमान और प्रतापी राजा भी महात्मा बुद्ध के उपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनते थे और उनका अनुसरण करते थे और वे भी गौतम बुद्ध के अनुयायी बन गए थे। इस तरह बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़ी तेजी से फैल गया था।

भगवान गौतम बुद्ध के मुताबिक  मानव जीवन दुखों से भरा पड़ा है। उन्होंने बताया कि पूरे संसार मे सारी वस्तुएं दु:खमय है। इसके अलावा भगवान गौतम बुद्ध में मानव जीवन और मरण के चक्र को दुखों का मूल कारण माना और बताया कि किसी भी धर्म का मूल उद्देश्य मानव को इस जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाना होना चाहिए।

महात्मा गौतम बुद्ध ने संसार में व्याप्त न सिर्फ दुखों के बारे में बताया बल्कि दुख उत्पन्न होने के कई कारण भी बताए। इसके अलावा भगवान गौतम बुद्ध ने दुखों से छुटकारा दिलाने के मार्ग को भी बताया है। आपको बता दें कि इसके लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को उपयुक्त बताया है।

अष्टांग मार्ग – Ashtang marg 

सम्यक दृष्टि –  सत्य तथा असत्य को पहचानने कि शक्ति। महात्मा बुद्ध के मुताबिक जो भी शख्स दुखों से मुक्ति जाना चाहता है। उसमें सत्य और असत्य को पहचानने की शक्ति  होनी चाहिए।

सम्यक संकल्प – इच्छा एवं हिंसा रहित संकल्प। महात्मा बुद्ध के मुताबिक जो लोग दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं। उन्हें ऐसे संकल्प लेने चाहिए जो कि हिंसा रहित हो और उनकी इच्छा प्रवल हो।

सम्यक वाणी – सत्य एवं मृदु वाणी। दुखों से निजात पाने के लिए महात्मा बुद्ध ने सम्यक वाणी का भी वर्णन किया है। बुद्ध की माने तो सत्य और मधुर बोलने से इंसान को सुख की अनुभूति होती है और दुख उसके आस-पास भी नहीं भटकता है।

सम्यक कर्म – सत्कर्म, दान, दया, सदाचार, अहिंसा इत्यादि। दया, करूणा का भाव रखना और दान-पुण्य और अच्छे कर्मों से भी मनुष्य दुखों से दूर रहता है।

सम्यक आजीव –जीवन यापन का सदाचार पूर्ण एवं उचित मार्ग। गौतम बुद्ध ने सम्यक आजीव को भी  जीवन यापन का उचित मार्ग बताया है।

सम्यक व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न। महात्मा बुद्ध ने दुखों को दूर करने के लिए सम्यक व्यायाम करने को भी कहा। उनका कहना था कि किसी काम को करने के लिए अगर विवेकपूर्ण प्रयास किए जाएं तो सफलता जरूर अर्जित होती है और मानव दुखों से दूर रहता है।

सम्यक स्मृति – अपने कर्मो के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सजग रहने कि शिक्षा देता है।

महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन के दुखों को दूर करने के लिए अपने कर्मों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सजग रहने की भी शिक्षा दी है।

सम्यक समाधि – चित कि एकाग्रता। महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन में एकाग्रता के महत्वों को भी बताया है उन्होंने कहा सम्यक समाधि लेने से मनुष्य दुखों से दूर रहता है।

इसके अलावा गौतम बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्न दस शीलों पर बल दिया।

अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह(किसी प्रकार कि संपत्ति न रखना), मध सेवन न करना, असमय भोजन न करना, सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना, धन संचय न करना, स्त्रियो से दूर रहना, नृत्य गान आदि से दूर रहना।

इसके साथ ही भगवान बुद्ध ने जीवों पर दया करने का भी उपदेश दिया और हवन , पशुबलि जैसे आडम्बरों की जमकर निंदा की है। इसके अलावा महात्मा बुद्ध ने बुद्ध ने सनातन धर्म के कुछ संकल्पाओं का प्रचार और प्रसार किया था जैसे – अग्निहोत्र और गायत्री मन्त्र।

बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण बातें – Important Teachings of Buddhism

बौद्ध धर्म सभी जातियों और पंथों के लिए खुला है। उसमें हर आदमी का स्वागत है। ब्राह्मण हो या चांडाल, पापी हो या पुण्यात्मा, गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी सबके लिए उनका दरवाजा खुला है। उनके धर्म में जात-पाँत, ऊँच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं है।

महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों से न सिर्फ कई लोगों की जिंदगी को सफल बनाया बल्कि लोगों की सोच भी विकसित की। इसके साथ ही लोगों में करुणा और दया का भाव भी पैदा करने में अपनी अहम भूमिका निभाई।

बौद्ध शब्द का अर्थ इन्सान के अंतरात्मा को जगाना है। वहीं जब लोगों को बौद्ध धर्म के बारे में पता लगना शुरु हुआ तो लोग इस धर्म की तरफ आर्कषित हुए। अब न सिर्फ भारत के लोग बल्कि दुनिया के कई करोड़ लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। इस तरह गौतम बुद्ध के अनुयायी पूरी दुनिया में फैल गए।

गौतम बुद्ध की जयंती या बुद्ध पूर्णिमा कब मनाई जाती है ? – Buddha Purnima Information in Hindi

गौतम बुद्ध की जयंती या फिर वैशाख की पूर्णिमा, हिन्दी महीने के दूसरे महीने में मनाई जाती है। इसलिए इसे वेसक या फिर हनमतसूरी भी कहा जाता है। खासकर यह पर्व बौद्ध धर्म के प्रचलित है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोग बुद्धि पूर्णिमा ( Buddha Purnima ) को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, क्योंकि यह उनका एक प्रमुख त्यौहार भी है।

आपको बता दें बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। जबकि ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ नहीं हुआ है। इसलिए इसी दिन को गौतम बुद्ध की जयंती या फिर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।

गौतम बुद्ध के और सुविचार – More Quotes on Gautam Buddha

  • “वह हमारा खुद का ही दिमाग होता है, हमारे दुश्मन का नही होता- जो हमें गलत रास्तो पर ले जाता है।”
  • “दर्द तो निश्चित है, कष्ट वैकल्पिक है।”
  • “जहा आप खाते हो, चलते हो यात्रा करते हो, वही रहने की कोशिश करे. नहीं तो आप अपने जीवन में बहोत कुछ खो सकते हो।”
  • “हमेशा याद रखे एक गलती दिमाग पर उठाए भारी बोझ के सामान है।”
  • “आप तब तक रास्ते पर नही चल सकते जब तक आप खुद अपना रास्ता नही बना लेते।”
  • चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास
  • मौर्य शासक बिन्दुसार का इतिहास

Note: If you have more information about “Gautam Buddha history in Hindi” or if I have something wrong, we will keep updating this as soon as we wrote a comment and email.

92 thoughts on “भगवान् गौतम बुद्ध जीवन परिचय | Gautam Buddha History”

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Sandaar anubhav hai budhh ko padna art of living hai unka jivan duniya me ahinsaaa vaadi hona sabse bada dhrem hai

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बहुत ही अच्छा धर्मगुरु थे भगवन गौतम बुद्ध

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Nice article, good work

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गौतम बुद्ध - हिंदी - ऑडियो - प्रेरक जीवनी

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Uploaded by arvind gupta on July 17, 2023

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Gautam Buddha In Hindi | गौतम बुद्ध का जीवन परिचय

gautam budh

गौतम बुद्ध का जन्म , gautam buddha in hindi

गौतम बुद्ध (gautam buddha)का जन्म लुंबिनी में   563 ई पूर्व के आस पास माना जाता है बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । उनका जन्म नेपाल की तराई मे स्थित शाक्य गणराज्य मे हुआ था । उनके पिता का नाम शुद्धोदन था और माता का नाम माया था ।

उनके पिता शुद्धोदन गण राजा थे। जन्म के सातवें दिन ही बुद्ध की माता का देहांत हो गया और उनका लालन पालन उनकी मौसी महाप्रजापती गौतमी के यहा हुआ था । सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील बालक थे।

gautam buddha, गौतम बुद्ध का विवाह  

बड़े होने पर उनका विवाह कोलिया गणराज्य की एक सुंदर कन्या यशोधरा से हुआ । गौतम बुद्ध की पत्नी का नाम गोपा अथवा विम्बा भी दिया गया है । इनके पुत्र का नाम राहुल था ।

बाद के बौद्ध ग्राथों मे कहा गया है कि बुद्ध के जन्म के समय ही एक सन्यासी ने यह भविष्यवाणी की थी कि बड़ा होने पर यह बालक चक्रवर्ती राजा बनेगा या सन्यासी ।

गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म क्या है

सिद्धार्थ सन्यासी न बने और संसार मे उनका मन लगा रहे इसलिए उनके पिता के उनके लिए महल मे सारे संसारिक सुख की सारी वस्तुए जुटा दी थी । पर संसार के सारे सुख सिद्धार्थ को अधिक दिनों तक नहीं रोक सका ।

गौतम बुद्ध (gautam buddha) का जीवन 

इस युग मे परिवाजक वृति का बड़ा प्रभाव था । भारी  संख्या मे लोग सन्यास जीवन अपना कर सत्य की खोज मे लगे होते थे।

सिद्धार्थ भी एक दिन अपनी पत्नी और पुत्र को सोता छोड़कर घर से निकल गए । इस समय उनकी आयु 29 वर्ष की थी ।

ज्ञान की खोज मे वो अपने समय के कई आचार्यों के पास के गए बौद्ध ग्रंथो मे आलारपुत्त कालाम और उद्धक रामपुत्त का नाम मिलता है ।

पर सिद्धार्थ को उनकी शिक्षाओं से संतुष्टि और शान्ति नहीं मिली ,फिर लगभग साढ़े छः वर्षों तक उन्होने घोर तपस्या का मार्ग अपनाया पर उससे भी उन्होने अपने को ज्ञान के निकट पहुंचा हुआ अनुभव नहीं किया ।

उन्हें एका एक याद आया की वो बचपन मे ध्यान किया करते थे और वे इस मार्ग को साधने का निश्चय किया ।

वे गया मे एक वृक्ष के नीचे इस दृढ़ निश्चय के साथ ध्यान लगा कर बैठ गए की तब तक नहीं उठेगें जब तक ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता । यहीं उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । यह वृक्ष बोधि वृक्ष कहलाया और सिद्धार्थ अब बुद्ध (ज्ञानी) कहलाए। अब वे अहर्त (योग्य) हुए ।

सारनाथ   मे उन्होने अपना पहला उपदेश दिया । बौद्ध इस घटना को धर्म चक्र – परवर्तन ( धर्म का चक्का जो रुक गया था उसे फिर से चलाया जाना ) कहते है ।   

महावीर के समान गौतम बुद्ध(gautam buddha) ने भी अपने सिद्धांतों का उपदेश करने मे बिताया । भारी संख्या मे लोग उनके शिष्य बने ।

अनुयायी भिक्षुओं से उन्होने बौद्ध संघ की स्थापना की । गृहस्थों मे समाज के हर वर्गों के लोग उनके अनुयायी बने जिनमें विभिन्न धनी ,श्रेष्ठ और राजा राजकुमार सम्मिलित थे ।

गौतम बुद्ध की मृत्यु  

80 वर्ष की आयु मे कुसिनारा नामक स्थान पर उन्होने देह त्याग दिया । बुद्ध और महावीर का कर्म क्षेत्र आज का पूर्वी  उत्तर प्रदेश तथा बिहार था । दोनों ही अपने समय के बहुत ही लोकप्रिय धार्मिक पुरुष थे ।

Biography of Lord Gautam Buddha In Hindi - भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी

Lord Gautam Buddha Biography In Hindi – भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है ,आज हम Lord Gautam Buddha Biography In Hindi में भारत के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु, एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जीवन परिचय बताने वाले है। 

भारत देश को अपने विचारो से नया रास्ता दिखाने वाले भगवान गौतम बुद्ध की शादी यशोधरा के साथ हुई और शादी से बाद एक बालक का जन्म हुआ था जिसका नाम राहुल रखा गया लेकिन विवाह के कुछ समय बाद Gautam बुद्ध ने अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़ दिया था। आज हम gautama buddha teachings , gautam buddha speech और when was buddha born की सम्पूर्ण जानकारी बताने वाले है। क्योकि गौतम बुद्ध की कहानियाँ बहुत प्रचलित है। 

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय | Gautama Buddha Biography in Hindi

महात्मा गौतम बुद्ध (अंग्रेजीः Gautama Buddha) का बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था। उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। ऐसा माना जाता है कि वह विष्णु के नौवें अवतार थे जिन्होंने कृष्ण के बाद जन्म लिया था।

कई सालों की तपस्या व ध्यान के बाद गौतम समझ गए कि इंसान जन्म और पुनर्जन्म के जाल में फंसा रहता है। चीजों को पाने के लिए दुखी रहता है तथा सांसारिक मोह माया में फंसा रहता है। दोस्तों आज इस पोस्ट में हम महात्मा गौतम बुद्ध (Gautama Buddha) की जीवनी के बारे में बात करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

Table of Contents

गौतम बुद्ध का परिचय (Introduction to Gautama Buddha)

महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य राज्य के लुंबिनी शहर (वर्तमान समय नेपाल) में हुआ था।  उनके पिता शुद्धोधन, एक राजा थे जिनका शासन वर्तमान नेपाल तथा उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों पर था। उनकी माता मायावती, एक महारानी थी। महात्मा बुद्ध का जन्म का नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया था।

उनका पालन पोषण कपिलवस्तु नामक प्राचीन शहर में हुआ। संभवतया यह शहर वर्तमान समय में उत्तरप्रदेश का पिपरहवा गांव ही था। कपिलवस्तु तथा लुंबिनी के बीच मात्र 24 किलोमीटर की दूरी थी।

सतधारा के अनुसार जब सिद्धार्थ की माता मायावती गर्भवती थी तो उन्होंने बच्चे को जन्म देने के लिए कपिलवस्तु को छोड़कर अपने पति के शासन यहां जाना चाहा तुरंत में उन्होंने लूंगी शहर के एक बगीचे में पूर्णिमा की रात को एक बच्चे को जन्म दिया। हर वर्ष की उस पूर्णिमा को, बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। 

प्रत्येक वर्ष गौतम (Gautama Buddha) के जीवन दिवस को मनाने के लिए थेरवाड़ा (बुद्ध का एक पुराना स्कूल) में बौद्ध भिक्षुक एकत्रित होते हैं। 

बुद्ध पर भविष्यवाणी (Predictions on Gautama Budhha)

सिद्धार्थ को जन्म देने के बाद उसकी माता उसे शुद्धोधन के महल में लेकर गई। बच्चे का अभी नामकरण नहीं हुआ था। उस समय पर असिता नाम के एक गुरु ने उसके शरीर पर 32 दिन को पहचानते हुए भविष्यवाणी की कि यह बच्चा या तो एक बहुत बड़ा राजा बनेगा या फिर एक महान धार्मिक नेता बनेगा।

 जन्म के पांचवें दिन सिद्धार्थ का नामकरण होना था और उसी दिन उसके पिता शुद्धोधन ने 8 ब्राह्मणों को उसका भविष्य जानने के लिए बुलाया। उन 8 ब्राह्मणों ने भी लगभग एक जैसी भविष्यवाणी की। उनमें से कोन्दना नाम के एक ब्राह्मण ने यह भविष्यवाणी की कि यह बच्चा एक बौद्ध बनेगा।

गौतम बुद्ध का महल छोड़ना (Gautama Buddha Leaving the Palace)

राजकुमार सिद्धार्थ गौतम का विवाह हो चुका था और उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम राहुल था। एक दिन उनके मन में विचार आया कि जीवन हमेशा वृद्धता व मृत्यु की तरफ अग्रसर होता है तथा इंसान सांसारिक चीजों के पीछे भागता हुआ मौत के पास ही जाता है। वह अपनी जिंदगी में मुक्त नहीं हो पाता। 

इसी विचार से प्रभावित होकर उन्होंने महल को छोड़कर वनों में जाने का निर्णय किया ताकि वे इस सांसारिक मोह माया से निकलकर ज्ञान प्राप्त कर सकें।

वनों में जाकर उन्होंने साधु का भेष बना लिया और अपने बाल कटवा लिए। जब वह महल छोड़कर जा रहे थे तब उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया परंतु वे रुके नहीं। बेटे को जाते देख उनकी आंखें आंसुओं से भर आई। 

 सिद्धार्थ (Gautama Buddha) के जाने से पहले उसके पिता उसे राज्य के कई क्षेत्रों में घूमने के लिए लेकर गए थे। 

ब्राह्मणों के द्वारा की गई भविष्यवाणी में दो विकल्प दिए गए थे कि या तो सिद्धार्थ एक राजा बनेगा या फिर एक महान धार्मिक नेता। उसके पिता चाहते थे कि सिद्धार्थ एक राजा बने। 

इसलिए वह सिद्धार्थ को राज्य की यात्रा पर ले कर गए। भ्रमण के वक्त सिद्धार्थ ने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा। तो सारथी ने बताया कि सभी मनुष्यों को वृद्ध होना है और यही जीवन की सत्यता है। 

सिद्धार्थ इस बात से गहनता से जुड़ गए। इसके बाद उन्होंने कई यात्राएं की जहां पर उन्होंने एक बीमार व्यक्ति और एक सन्यासी व्यक्ति को देखा। सन्यासी के जीवन से प्रभावित हुए। 

वापस महल में आने के बाद उन्होंने महल छोड़कर सन्यासी बनने का निर्णय लिया था।

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गौतम बुद्ध का 2 गुरुओं से मिलन (Gautam Budhha Meets with Two Gurus)

महल छोड़ने के बाद महात्मा बुद्ध जंगलों में ही रहने लगे। इस दौरान उन्होंने 2 गुरुओं से योग ध्यान सीखा। उनके गुरु अराड़ा कलम ने उन्हें “कुछ नहीं के गोले” के ऊपर ध्यान करना सिखाया। परंतु सिद्धार्थ कुछ और सीखना चाहते थे। वह अरड़ा से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि यह शिक्षा उन्हें शांति, बदलाव, विराग, समापन, ज्ञान, जागृत इत्यादि का बोध नहीं कराती थी।

 इसके बाद वे एक दूसरे गुरु उद्राका राम पुत्र के पास गए। रामपुत्र की शिक्षा से भी दह संतुष्ट नहीं हुए। इसलिए वे उन्हें छोड़कर आगे चले गए।

अब उन्होंने जंगल में ही ध्यान लगाना शुरू किया और कई सप्ताहों तथा महीनों तक ध्यान में बैठे रहते। कोई भी अन पानी ग्रहण नहीं करते। उन्होंने अपना खानपान एकदम कम कर दिया जिससे उनके (Gautama Buddha) शरीर की हड्डिया त्वचा में से दिखाई पड़ने लग गई थी।

बोधि वृक्ष से प्राप्त हुआ ज्ञान (Got Knowledge from Bodhi Tree)

महात्मा बुद्ध को अब यह पता चल गया था कि एकाग्र ध्यान से ही दिमाग को वश में करके ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाना शुरू किया और यह प्रण लिया कि जब तक उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक वे वहां से उठेंगे नहीं।

इस पीपल के वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से जाना गया जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान का बौद्ध हुआ था। यह वृक्ष वर्तमान समय में बोधगया, बिहार में है।

सिद्धार्थ (Gautama Buddha) को ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन्हें सब लोग बुद्ध कहने लगे। “बुद्ध” का मतलब होता है कि वह जो जागृत है या सब जानता है। उन्होंने सांसारिक मोह माया से आजादी प्राप्त कर ली थी। अब वह घृणा, इच्छा, तृष्णा, उपेक्षा आदि से मुक्त हो चुके थे।

महात्मा बुद्ध चले लोगों को सिखाने (Gautama Buddha Started Teaching Others)

बोधि वृक्ष के नीचे आत्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद वे चाहते थे कि इस ज्ञान को लोगों को सिखाया जाए। परंतु उन्होंने ऐसा करना ठीक नहीं समझा क्योंकि उन्होंने माना कि अधिकांश लोग उनकी बात को नहीं समझेंगे। तो भगवान विष्णु ने उनको समझाया और लोगों को ज्ञान सिखाने के लिए कहा।

बुद्ध अब लोगों को सिखाने के लिए चल पड़े। उन्होंने सबसे पहले अपने 2 गुरुओं को ज्ञान सिखाना चाहा परंतु जब वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उन दोनों की ही मृत्यु हो चुकी थी।

इसके बाद उन्होंने कई साथियों को भी सिखाना चाहा परंतु उन्होंने इन बातों को मुख्यतया अस्वीकृत कर दिया।

 सारनाथ के एक बगीचे में 5 महात्मा सन्यासियों से मिले और उन्हें अपने विश्वासों के बारे में बताया। इन 5 सन्यासियों ने उनकी बातों को माना। 

यह बुद्ध का पहला उपदेश था जिसे बनारस का उपदेश भी कहते हैं। इस उपदेश के बाद कौण्डिय नाम का व्यक्ति पहला बौद्ध भिक्षु बना था। और यहीं से महात्मा ने बौद्ध संघ की शुरुआत की थी

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बौद्ध संघ का विस्तार (Extension of Bodh Sangha)

याशा नाम का एक अध्यापक भी बौद्ध संघ से जुड़ गया। उसने अपने परिवार व मित्रों को भी बौद्ध भिक्षुक बनने के लिए कहा। ऐसे करते-करते वर्षा ऋतु के अंत तक इस संघ में 60 से ज्यादा भिक्षुक जुड़ चुके थे। 

बौद्ध भिक्षुओं ने अब लोगों को ध्यान व सांसारिक ज्ञान देना शुरू कर दिया जिससे बहुत सारे लोग इस संघ से जुड़ते जा रहे थे।

 बुद्ध (Gautama Buddha) के पिता, पुत्र तथा परिवार के लोग भी इस संघ से जुड़ गए थे। सिद्धार्थ के चचेरे भाई आनंद, बहिन अनुराधा तथा नाई उपाली ने भी अपने आप को बौद्ध भिक्षुक बना लिया था। 

अनथापिंडिका नाम के एक अमीर व्यापारी ने बौद्ध संघ के शुरुआती समय में भिक्षुकों को सोने के सिक्के दान किए थे।

इस बौद्ध संघ में महिलाएं भी जुड़ने लगी। सबसे पहली महिला उसकी सौतेली माता महाप्रजापति गौतमी थी जिसने अपने बाल कटवा कर भिक्षुणी का रूप धारण किया। भगवान बुद्ध का नाम इतना प्रसिद्ध हो गया था कि अब हर एक अपने आप को इस संघ से जोड़ने में लगा था। 

बढ़ते संघ को देखते हुए गौतम ने कई नियम बनाए ताकि भिक्षुकों के बीच में कोई भी मतभेद ना हो तथा वे नियमों की पालना करें।

किसी भी बड़े कार्यक्रम व समारोह में अब गौतम बुद्ध (Gautama Buddha) को बुलाया जाता था। उन्होने संसार के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में जाकर लोगों को ज्ञान दिया तथा उन्हें बताया कि सांसारिक तृष्णा का त्याग करना चाहिए। 

गौतम बुद्ध को मारने की साजिश (Conspiracy to Kill Gautama Buddha)

भगवान गौतम बुद्ध वृद्ध हो चुके थे। उनकी पीठ में में दर्द होने लग गया था तथा पढ़ाना उनके लिए थोड़ा सा मुश्किल हो गया था। पर उन्होंने अपनी वर्धावस्था में भी पढ़ना जारी रखा।

गौतम का एक चचेरा भाई देवदत्त था जो कि एक बौद्ध भिक्षुक था। परंतु वह गौतम को मार कर बौध संघ पर नियंत्रण लेना चाहता था।

उसने बुद्ध के खिलाफ षड्यंत्र रचा। परंतु वह सफल नहीं हो सका। उसने कई सारे भिक्षुकों को अपनी तरफ मिला करके बौद्ध संघ को विभाजित करने का प्रयत्न किया।

गौतम ने अपने दो मुख्य शिष्यों सरीपुत्त तथा मोगराना को उन बौद्ध भिक्षुओं को वापस बुलाने के लिए भेजा।

बुद्ध का अंतिम जीवन (Final Life of Buddha)

वृद्ध बुद्ध के जीवन का आखिरी वर्ष युद्ध का समय था। वजियन वंश पर आक्रमण करने के लिए अजयसेत्तु राजा ने अपने मंत्री को गौतम के पास सलाह लेने के लिए भेजा।

गौतम (Gautama Buddha) ने कहा कि वह भिक्षुको का भला चाहते हैं। बौद्ध भिक्षुक तभी धनवान होंगे अगर हम साथ रहेंगे, योग्य को नवाजेंगे, भलाई का कार्य करेंगे। इस तरह से उन्होंने अजयसेतु की प्रश्न का उत्तर दिया और बौद्ध भिक्षुको के लिए अच्छा करने को कहा।

गौतम बुद्ध की मृत्यु (Death of Gautama Buddha)

गौतम बुद्ध ने अपने जीवन की आखिरी समय में एक कुंडा नाम के लोहार से भोजन ग्रहण किया था। उन्हें आभास हो गया था कि उनकी मृत्यु का समय नजदीक है तो उन्होंने अपने उपस्थिक आनंद को कहा कि तुम कुंडा को कहना कि उसका भोजन बहुत अच्छा था और गौतम बुद्ध की मृत्यु उसके भोजन की वजह से नहीं बल्कि वृद्धावस्था के कारण हुई है।

लगभग 483 ईशा पूर्व में भगवान महात्मा गौतम बुद्ध का 80 साल की उम्र में कुशीनगर में देहांत हुआ था।

उनकी मृत्यु की निश्चित वर्ष का कहीं उल्लेख नहीं है इसलिए उनकी मृत्यु के बारे में 2 वर्षों को अनुमानित किया गया है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक उनकी मृत्यु 483 ईशा पूर्व में ही हुई थी और वहीं कुछ सूत्रों के मुताबिक उनकी मृत्यु 400 ईसा पूर्व में हुई थी।

उनके अंतिम संस्कार पर दूरदराज के भिक्षुक व बड़े-बड़े लोग आए थे तथा फूलों की वर्षा व गाजे-बाजे के साथ भगवान गौतम बुद्ध (Gautama Buddha) का अंतिम संस्कार किया गया।

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गौतम बुद्ध का जीवन परिचय | Gautama Buddha Biography in Hindi

Gautama Buddha Biography in Hindi

Gautama Buddha Biography in Hindi : आज इस लेख में माध्यम से आपको गौतम बुद्ध जीवन परिचय गौतम बुद्ध का जीवन परिचय बताएँगे महात्मा बुध बौद्ध धर्म का संस्थापक के साथ-साथ धर्म सुधारक एवं अध्यात्मिक गुरु थे बुद्ध का जन्म हिंदू धर्म में क्षत्रिय शासक के यहां हुआ था।

बुद्ध के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिसकी वजह से ऐसे जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे जो शुरू से अंत तक दुखों से भरा हों इसलिए वह सच्चे जीवन एवं ज्ञान की खोज में घर-परिवार को त्याग कर निकल पड़े और उसके बाद उन्होंने गया (वर्तमान में बिहार का एक जिला) में एक वटवृक्ष के नीचे तपस्या करके सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।

उसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान को दूसरों तक उपदेश देकर पहुंचाया और चारों ओर बौद्ध धर्म का प्रचार किया बौद्ध धर्म बहुत ही तीव्र गति से चारों दिशाओं में फैला बौद्ध धर्म के तीव्र गति से प्रसार होने का सबसे मुख्य कारण महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व था।

बुद्ध का व्यक्तित्व सहनशीलता स्नेही दया करुणा क्षमा का प्रतिरूप था बुद्ध के प्रभावशाली व्यक्तित्व से जो भी हम के संपर्क में आता जो प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता केनेथ ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार का मुख्य श्रेय  महात्मा बुद्ध  के व्यक्तित्व को ही दिया हैं।

उनके शब्दों में, जब शुद्ध हृदय व दया भाव एक ही व्यक्ति में निहित होते हैं तो वह व्यक्ति श्रद्धा का पात्र और आराध्य बन जाता है बौद्ध धर्म की सफलता का यह एक मुख्य कारण था आइये आपको Gautama Buddha Biography पुरे विस्तार से बताते है।

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Gautama Buddha Biography in Hindi

महात्मा बुद्ध का जन्म.

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के पास लुंबिनी वन में हुआ था लुंबिनी वन, नेपाल राज्य की तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु से लगभग 14 मील दूर स्थित है गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था, जो क्षत्रिय शाक्य कुल के शाक्यों के राज्य कपिलवस्तु के राजा थे बुद्ध की माता का नाम माया था जो कोलीय वंश के देवदह राज्य की राजकुमारी थी।

बुद्ध का जन्म लुंबिनी के वन में 2 साल वृक्षों के बीच तब हुआ जब उनकी माता माया कपिलवस्तु से अपने पिता के घर जा रही थी बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था बुद्ध के जन्म के सातवें दिन ही उनकी माता माया का देहांत हो गया जिसके बाद गौतम बुद्ध का पालन पोषण उनकी मौसी और विमाता (सौतेली मां) महाप्रजापति गौतमी ने किया बुद्ध का गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम कहलाए।

बुद्ध के जन्म के पांचवे दिन राजा शुद्धोधन द्वारा नामकरण समारोह आयोजित किया गया जिसमें 8 ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी पढ़ी और कहा यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या फिर एक महान पथ प्रदर्शक बनेगा। ब्राह्मणों द्वारा की गई यह भविष्यवाणी सत्य साबित हुई और आगे चलकर यह बालक बौद्ध धर्म का प्रवर्तक बना।

महात्मा बुद्ध की शिक्षा

महात्मा बुद्ध ने सिद्धार्थ अपने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद का ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही साथ युद्ध विद्या और राजकाज की शिक्षा भी ग्रहण किया सिद्धार्थ का कुश्ती, तीर कमान, रथ हांकने एवं घुड़दौड़ में बराबरी करने वाला कोई नहीं था सिद्धार्थ बचपन से ही यशस्वी एवं तेजस्वी थे।

महात्मा बुद्ध की विवाहित जीवन

महात्मा बुद्ध का विवाह रामग्राम के कोलिय गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ जब बुद्ध का विवाह हुआ तब उनकी उम्र महज 16 वर्ष की थी विवाह के पश्चात उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम राहुल रखा गया था।

पुत्र प्राप्ति का समाचार सुनकर उन्होंने कहा “आज मेरे बंधन पर श्रृंखला में एक कड़ी और जुड़ गई” सिद्धार्थ लगभग 12 वर्षों तक गृहस्थ जीवन व्यतीत किया लेकिन गौतम बुद्ध को गृहस्थ जीवन बिल्कुल भी नहीं भाया।

महात्मा बुद्ध का घर त्याग

गौतम बुद्ध बचपन से ही चिंतनशील एवं गंभीर स्वभाव के थे और वे एकांत में बैठकर घंटों चिंतन करते थे सांसारिक कष्टों को देखकर बुद्ध का ह्रदय करुणा से भर जाते थे और वह इन सभी कष्टों से मुक्ति पाने के उपाय के बारे में सोचा करते थे बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन की इच्छा थी कि सिद्धार्थ राजकीय वैभव में लिप्त रहे और सांसारिक क्रियाकलापों में भाग ले।

इसलिए राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को अत्यंत ही सुख एवं विलास से पाला और केवल 16 वर्ष के उम्र में उनका विवाह कर दिया लेकिन इसके बावजूद भी सिद्धार्थ का ह्रदय सांसारिक दुखों से ओझल नहीं हो सका।

सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन चाहते थे की सिद्धार्थ मेरे बाद राजकाज संभाले और राजा की भांति अपनी जीवन व्यतीत करें सिद्धार्थ के लिए उनके पिता राजा शुद्धोधन ने ऋतुओ के अनुसार तीन महल बनवाए थे जिसमें नाच गाने एवं ऐसो-आराम की सभी व्यवस्थाएं की गई थी लेकिन फिर भी सिद्धार्थ के मन में इन भोग-विलासओ का कोई असर नहीं हुआ।

सिद्धार्थ का ह्रदय बचपन से ही करुणा और दया का सोच था जब सिद्धार्थ घुड़दौड़ करते थे तो घोड़े के मुंह से झाग निकलते देख घोड़े को थका हुआ समझ कर वही रोक देते थे जिससे घोड़े को आराम मिल सके ऐसा करने से वह जीता हुआ रेस भी हर जाया करते थे उनके लिए रेस जीतने से अधिक महत्व घोड़े का थक ना जाना था इससे यह पता चलता है की उनके हृदय में दया और करुणा का भंडार था।

एक बार सिद्धार्थ के चचेरा भाई देवदत्त ने उनके सामने की एक हंस को तीर से घायल कर दिया जिसे देखकर सिद्धार्थ बहुत ही आहत हुए और हंस के प्राणों की रक्षा भी की बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सांसारिक जीवन त्यागने का विचार सिद्धार्थ के मस्तिष्क में चार घटनाओं से आया।

एक बार जब बुद्ध (सिद्धार्थ) सैर पर निकले तब उन्होंने एक वृद्ध को देखा, जो कॉफी कमजोर और हाथ में लाठी लिए सड़क पर कांपते हुए धीरे-धीरे चला जा रहा था दूसरी बार जब सीधा बगीचे में शहर के निकले तो उन्होंने एक रोगी को देखा जिसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी पेट फुला हुआ था चेहरा पीला पड़ गया था और वह अन्य व्यक्ति के सहारे बहुत मुश्किल से चल भी पा रहा था।

फिर तीसरी बार सिद्धार्थ एक लाश को देखा जिसे चार व्यक्ति अगर ले जा रहे थे और उसके घर वाले पीछे-पीछे रोते बिलखते, छाती पीटते जा रहे थे यह देखकर सिद्धार्थ के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उसी समय उनके मन में यह विचार आया की क्या फायदा ऐसे जीवन का जो इतने सारे कष्टों से भरी हैं।

फिर अगली बार उन्होंने एक सन्यासी को देखें जो सारी सांसारिक बंधनों मोह माया को त्याग कर मोक्ष के लिए प्रयत्नशील था। इन सभी घटनाओं में सिद्धार्थ को घर त्यागने के लिए प्रेरित किया।

सिद्धार्थ के पास किसी चीज की कमी नहीं थी उनका जीवन चारों ओर से सुख-समृद्धि भरा था इतना सब कुछ होते हुए भी सिद्धार्थ के मन को शांति प्राप्त नहीं थी उपरोक्त घटित घटनाओं ने उनके हृदय को काफी परिवर्तित किया और फिर एक रात अपने सभी सुख-सुविधाओं के साथ-साथ अपने घर-परिवार पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़कर सच्चे ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

महात्मा बुद्ध सच्ची ज्ञान की प्राप्ति

महात्मा बुद्ध ज्ञान की खोज में घर छोड़ने के पश्चात बुद्ध इधर उधर भटकते रहे और वह मगध की राजधानी राजगृह में अलार तथा उद्रक नामक दो प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वानों से मिलें लेकिन उन्हें वहां संतुष्टि नहीं हुई फिर वह घूमते हुए निरंजना नदी के किनारे उरवेल नामक वन में पहुंचे, जहां उन्हें कई अन्य तपस्वीयों से भेंट हुई।

बुद्ध उन तपस्वीयों के साथ अन्न और जल त्याग कर घोर तपस्या की जिससे उनका शरीर सूखकर जर्जर हो गया और उन्हें फिर भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अब बुद्ध समझ गए थे कि अपने शरीर को कष्ट देकर मोक्ष की प्राप्ति नहीं की जा सकती है इसके बाद उन्होंने फिर से अन्न और जल का ग्रहण करना शुरू किया।

यह देख कर अन्य तपस्वी उनका साथ छोड़ दिया। अब इसके बाद सिद्धार्थ (बुद्ध) गया (वर्तमान में बिहार राज्य का एक जिला) पहुंचे वहां पहुंचकर उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे अपनी समाधि लगाई और यह प्रण किया कि जब तक ज्ञान की प्राप्ति नही हो जाती है तब तक वह वहां से नहीं हटेंगे।

इसके बाद उन्होंने लगातार 7 दिन और 7 रात समाधि में रहा जिसके पश्चात उन्हें आठवें दिन वैशाख के पूर्णिमा के दिन सच्चे ज्ञान का प्रकाश मिला इस घटना को संबोघी (Great Enlightenment) कहा गया है अब इसके बाद उन्होंने जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया उससे बोधि वृक्ष और गया को बोध गया कहा गया और साथ ही सिद्धार्थ को भी महात्मा बुद्ध कहा जाने लगा।

महात्मा बुद्ध द्वारा ज्ञान एवम् बौद्ध धर्म का प्रसार

महात्मा बुद्ध का उद्देश्य केवल स्वयं ही ज्ञान प्राप्त करना नहीं था वह अन्य लोगों मैं भी अपने ज्ञान का प्रसार करके उन्हें दुखों से मुक्त कराना चाहते थे अब महात्मा बुद्ध काशी की ओर चल पड़े और ऋषिपतन (सारनाथ) पहुंचे सारनाथ में पहुंचकर सबसे पहले पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया यह सभी ब्राह्मण महात्मा बुद्ध से अति प्रसन्न हुए और उनके शिष्य बन गए।

इन शिष्यों को ‘पंचवर्गीय’ कहा जाता है और महात्मा बुद्ध द्वारा दिए गए इन शिष्यों के उपदेशों की घटना को धर्म-चक्र-प्रवर्तन कहा जाता है महात्मा बुद्ध का यश बहुत जल्द ही चारों तेजी से फैलने लगा और उनके शिष्यों की संख्या 60 हो गई इसके बाद बुद्ध ने एक संघ की स्थापना की और अपने शिष्यों को अपने धर्म का प्रचार करने के लिए चारों ओर भेजा डॉक्टर राजबलि पांडे जी ने लिखा है कि यह संसार का पहला प्रचारक संस्था था।

इसके बाद महात्मा बुद्ध सारनाथ से उरवेल गए, फिर उसके बाद मगध की राजधानी पहुंचे जहां उन्होंने बड़ी संख्या में स्थित से बनाएं जिनमें मोग्गलान और सारिपुत्र प्रमुख थे मगध का शासक बिंबिसार भी उनका बहुत बड़े प्रशंसक बन गए राजगृह का ही एक व्यापारी अनाथपिंडक भी बुद्ध का शिष्य बन गया और जीत वन खरीदकर वहा एक बिहार की स्थापना भी कराई।

वैसे तो महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म की आधारशिला मगध राज्य में रखी थी किंतु बौद्ध धर्म का वास्तविक प्रगति कोशल राज्य में हुई साथी कौशल राज्य का राजा प्रसेनजीत भी बुद्ध का शिष्य बन गया अब इसके बाद महात्मा बुद्ध अपने देश (राज्य) कपिलवस्तु भी गए जहां उनकी पत्नी पुत्र व अनेक शाक्य वंशीय व्यक्ति उनके शिष्य बन गए इसके बाद महात्मा बुद्ध वैशाली गए जहां वहां की प्रसिद्ध राजनर्तकी आम्रपाली उनकी शिष्या बन गई।

जब वे वैशाली में थे तभी उनकी भी माता गौतमी, शुद्धोधन के मृत्यु से दुखी होकर बुद्ध के पास आई और संघ में प्रवेश करने की अनुमति मांगने लगी लेकिन महात्मा बुद्ध स्त्रियों को संघ में सम्मिलित नहीं करना चाहते थे लेकिन अपने प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह पर उन्होंने अनुमति दे दी लेकिन फिर भी स्त्रियों के लिए एक पृथक संघ की स्थापना की गई इसके बाद महात्मा बुध आजीवन अलग-अलग राज्यों मगध, काशी, शाक्य, को, मल्ल आदि में जाकर अपने धर्म का प्रचार करते रहे।

मौर्य काल के आते-आते बौद्ध धर्म भारत से निकलकर अनेक दूसरे देशों चीन, मंगोलिया, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, जापान, कोरिया आदि देशों में फैल चुका था और आज भी इन सभी देशों में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

महात्मा बुद्ध का मृत्यु

महात्मा बुद्ध 80 वर्ष की उम्र में घूमते हुए पावा पहुंचे थे जहां उन्हें अतिसार रोग हो गया था इसके पश्चात वे कुशीनगर पहुंचे और उस समय कुशीनगर मल्लो की राजधानी थी 483 ईसा पूर्व वैशाख के पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध का देहांत हो गया इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।

इससे पहले कुंडा नामक एक लोहार ने महात्मा बुद्ध के लिए भोजन भेंट के रूप में दिया था जिसे खाने के बाद महात्मा बुद्ध गंभीर रूप से बीमार पड़ गए इसके बाद बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद को निर्देश दिया कि वह कुंडा को समझाएं कि उसके दिए गए भोजन में कोई दोष नहीं हैं और वह भोजन बहुत अतुल्य हैं।

महात्मा बुद्ध के उपदेश

महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार प्राचीन काल के अन्य धर्मपदेशकों के समान ही मौखिक रूप से किया। सर्वप्रथम बुद्ध ने सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया महात्मा बुद्ध बहुत समय तक अपने शिष्य को उपदेश मौखिक रूप से ही दिया था इसके बाद कुछ निकटतम शिष्यों ने बुद्ध के वचनों वह उपदेशों का संकलन त्रिपिटकों के रूप में किया इन्हीं त्रिपिटकों द्वारा बुद्ध धर्म के सिद्धांतों का पता चलता है।

महात्मा बुद्ध ने बताया मनुष्य जीवन शुरू से लेकर अंत तक दुखों से भरा हैं महात्मा बुद्ध ने स्वयं कहा था “मैं बराबर तो ही मुख्य उपदेश देता हूं दुख और दुख निरोध” इस दुख से मुक्त होने के लिए बुद्ध ने चार आर्य सत्य व अष्टांगिक मार्ग पालन करने को कहा। महात्मा बुद्ध जिओ के हत्या का विरोध करते थे और हिंसा के घोर विरोधी थे महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार हैं।

  • चार आर्य सत्य
  • अष्टांगिक मार्ग
  • मध्यम मार्ग
  • सदाचारी जीवन
  • कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत

Q : महात्मा बुद्ध के गुरु का नाम क्या था?

Ans : आलार कलाम

Q : महात्मा बुद्ध का जन्म कहा हुआ था?

Ans : लुंबिनी वन में

Q : महात्मा बुद्ध जयंती कब है?

Ans : 26 मई को

Q : महात्मा बुद्ध के कितने संतान थे?

Ans : 1 ही पुत्र था जिसका नाम राहुल था।

Q : गौतम बुद्ध किसके अवतार थे?

Ans : भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे।

Q : गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई थी?

Ans : वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

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S. Radhakrishnan

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Gautam Buddha: Jeevan Aur Darshan (Hindi Edition)

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Gautam Buddha: Jeevan Aur Darshan (Hindi Edition) Kindle Edition

  • Print length 55 pages
  • Language Hindi
  • Publisher Rajpal and Sons
  • Publication date 20 March 2017
  • File size 793 KB
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About the author.

Sarvapalli Radhakrishnan has written numerous books on the topic of philosophy and understanding of beliefs. Some of his famous books are Bhartiya Darshan-I, Bhartiya Darshan-II and Gautam Buddha: Jeevan Aur Darshan.

Product details

  • ASIN ‏ : ‎ B06XRT7LMG
  • Publisher ‏ : ‎ Rajpal and Sons (20 March 2017)
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • File size ‏ : ‎ 793 KB
  • Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
  • Screen Reader ‏ : ‎ Supported
  • Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
  • Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
  • Print length ‏ : ‎ 55 pages
  • #1,054 in Asian History (Books)
  • #32,908 in Kindle eBooks

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S. radhakrishnan.

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gautam buddha biography book in hindi

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भगवान गोतम बुद्ध | Bhagwan Gautam Buddh

Bhagwan Gautam Buddh by रामचंद्र गोविंद कोलंगडे - Ramchandra Govinda Kolangade

अन्य पुस्तकें :

  • श्रीमत् सायणाचार्य - [Hindi]

सम्बंधित पुस्तकें :

  • भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध - [Hindi]
  • भगवान बुद्ध - [Hindi]
  • भगवान बुद्ध का जीवन और दर्शन - [Hindi]
  • भगवान बुद्ध की आत्मकथा - [Hindi]
  • जैनागमों में भगवान् महावीर - [Hindi]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचंद्र गोविंद कोलंगडे - Ramchandra Govinda Kolangade

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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Gautama Buddha Biography in Hindi | गौतम बुद्ध जीवन परिचय

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  •  गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में पिता राजा शुद्धोधन और माता मायादेवी के घर हुआ था।
  • उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। लेकिन “गौतम” गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था।
  • गौतम के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता मायादेवी का निधन हो गया था। उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी (सौतेली माँ) और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया।
  • जब गौतम बुद्ध के जन्म समारोह को आयोजित किया गया, तब उस समय के प्रसिद्ध साधु दृष्टा आसित ने एक भविष्यवाणी की, कि यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या एक महान पथ प्रदर्शक।
  • उन्होंने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद्‌ की शिक्षा प्राप्त की। यही-नहीं वेदों की शिक्षा के अलावा उन्होंने कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान जैसी कला को एक क्षत्रिय की भांति सीखा।
  • कम उम्र में शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में कोली वंश की कन्या यशोधरा से हुआ था।
  • उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था। उनके लिए तीन ऋतुओं के आधार पर अलग-अलग तीन महल बनवा दिए गए थे। जहां नाच-गाना और मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था थी। इसके साथ-साथ हर समय दास दासी सेवा करने में होते रहते थे। परन्तु, ये सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोह-माया में बांध नहीं सकी।
  • एक बार जब वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ, वह सड़क पर चल रहा था। जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तब उनकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। जिसकी साँसे तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार जब सिद्धार्थ को सैर करते हुए एक अर्थी दिखाई दी। जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे बहुत से लोग रो रहे थे, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन सभी दृश्यों को देख कर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है ऐसी जवानी का जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है ऐसे स्वास्थ्य का जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है ऐसे जीवन का जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर लेता है। और मन ही मन विचार करने लगे क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी ? उसके बाद जब सिद्धार्थ चौथी बार बगीचे की सैर को निकले, तब उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिया। जो संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त होकर प्रसन्नचित्त प्रतीत हो रहा था। जिससे गौतम बुद्ध काफी प्रोत्साहित हुए और एक सन्यासी बनने का निर्णय किया।
  • राज्य का मोह छोड़कर सिद्धार्थ तपस्या के लिए राजगृह पहुँचे। जहां उन्होंने भिक्षा मांगनी शुरू की और घूमते-घूमते आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास जा पहुँचे। जिससे उन्होंने योग-साधना सीखी, समाधि लगाना सीखा। लेकिन सिद्धार्थ को उससे भी संतोष नहीं हुआ। जिसके बाद वह उरुवेला पहुँचे और वहाँ पर अलग तरह से तपस्या करने लगे।

लाहौर संग्रहालय में गौतम बुद्ध का तपस्या से क्षीण शरीर

  • छः साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई।
  • एक दिन बुद्ध के मध्यम मार्ग से होकर कुछ स्त्रियाँ गुजरती हैं, जहाँ गौतम बुद्ध तपस्या कर रहे थे। उन स्त्रियों का एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना भी मत कसो कि वे टूट जाएँ।’ यह बात सिद्धार्थ को जँच गई और मान गए कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है।

बोधगया में स्थापित बोधिवृक्ष

  • 80 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने धर्म का संस्कृत की जगह उस समय की सरल भाषा “पाली” में प्रचार किया।
  • कुछ समय के बाद वह काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। जहाँ उन्होंने सबसे पहले धर्मोपदेश दिया।
  • पाली सिद्धांत के अनुसार 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वह जल्द ही परिनिर्वाण के लिए रवाना होंगे। जहां गौतम बुद्ध ने एक लोहार के घर अपना आखिरी भोजन ग्रहण किया, जिससे उनकी तबीयत ख़राब हो गई थी। तभी बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहा कि वह कुन्डा (लोहार) को कहे कि उनसे कोई गलती नहीं हुई है और उनका भोजन भी ठीक है।
  • उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया और अहिंसा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की। बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है – अग्निहोत्र तथा गायत्री मन्त्र का प्रचार, ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि, मध्यमार्ग का अनुसरण, चार आर्य सत्य, अष्टांग मार्ग, इत्यादि।
  • गौतम बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजना शुरू किया। इसके अलावा अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम भूमिका निभाई। मौर्यकाल तक आते-आते भारत के अतिरिक्त बौद्ध धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में फैल गया था। इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है।
  • हिन्दू धर्म के अनुसार, गौतम बुद्ध को भगवन विष्णु का अवतार माना जाता है।

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अंजलि तेंदुलकर

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गौतम बुद्ध - जीवन और शिक्षाएं [एनसीईआरटी यूपीएससी के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास नोट्स]

गौतम बुद्ध की शिक्षाएं जीवन के मध्य मार्ग, ज्ञानोदय के लिए आठ गुना मार्ग और चार महान सत्य के इर्द-गिर्द घूमती हैं। यह लेख भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के लिए बुद्ध, बुद्ध के दर्शन और गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर एनसीईआरटी के प्रासंगिक नोट्स प्रदान करेगा।

एनसीईआरटी ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के महत्वपूर्ण विषयों पर नोट जारी किए ये नोट अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे बैंकिंग पीओ, एसएससी, राज्य सिविल सेवा परीक्षा आदि के लिए भी उपयोगी होंगे।

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Download the e-book now, गौतम बुद्ध – यूपीएससी के लिए तथ्य.

  • बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध ने की थी।
  • बुद्ध का जन्म 566 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में) के पास लुंबिनी में राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था।
  • वह शुद्धोधन और महामाया के पुत्र थे। शुद्धोधन शाक्य वंश का प्रमुख था। इसी कारण बुद्ध को ‘शाक्यमुनि’ भी कहा जाता था।
  • या तो उन्हे जन्म देने के बाद या सात दिनों के बाद उसकी माँ की मृत्यु हो गई। सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था। इससे उनका नाम ‘गौतम’ पड़ा।
  • उनका विवाह यशोधरा से हुआ था और उनका एक पुत्र राहुला था।
  • उन्होंने तपस्वी बनने के लिए 29 वर्ष की आयु में अपना घर छोड़ दिया। इस घटना को महाभिष्क्रमण कहते हैं।
  • बुद्ध के मन में त्याग का विचार तब आया जब उन्होंने मनुष्य की चार अलग-अलग अवस्थाओं को देखा – बीमार आदमी, बूढ़ा, लाश और तपस्वी।
  • बुद्ध सात साल तक भटकते रहे और 35 साल की उम्र में निरंजना नदी के तट पर एक पीपल के पेड़ (अंजीर के पेड़ / फिकस धर्मियोसा) के नीचे ध्यान करते हुए उरुवेला में ज्ञान प्राप्त किया। इस पेड़ को ‘बोधि वृक्ष’ के रूप में जाना जाने लगा और यह स्थान बोधगया (बिहार में) बन गया।
  • उन्होंने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में दिया था। इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन / धम्मचक्कप्पवत्ताना कहा जाता है।
  • कुशीनगर (उत्तर प्रदेश में) में एक साल के पेड़ के तहत 483 ईसा पूर्व में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
  • ‘बुद्ध’ शब्द का अर्थ है ‘प्रबुद्ध’।
  • बुद्ध के महत्वपूर्ण समकालीन महावीर जैन, राजा प्रसेनजित, बिंबिसार और अजातशत्रु थे।

बौद्ध दर्शन/बुद्ध की शिक्षाएं

शिक्षण का उल्लेख नीचे किया गया है:

  • यह बीच का रास्ता सिखाता है, जिसमें कृपा और सख्त संयम जैसे कठोर कदमों को त्यागना शामिल है।
  • बौद्ध धर्म में चार महान सत्य (आर्या सत्य) हैं:

• बौद्ध धर्म में अष्टांगिक मार्ग है:

  • बौद्ध धर्म के त्रि रत्न हैं: बुद्ध, धम्म और संघ। विवरण नीचे उल्लिखित हैं:
  • बुद्ध को ईश्वर या आत्मा पर विश्वास नहीं था।
  • कर्म और अहिंसा पर जोर दिया।
  • वे वर्ण व्यवस्था के विरूद्ध थे। बुद्ध पाली में पढ़ाते थे।
  • बौद्ध धर्म भारत के बाहर कई देशों में फैल गया। चीन ने पहली शताब्दी ईस्वी में बौद्ध धर्म को अपनाया था। [/su_box

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गौतम बुद्ध की 7 प्रेरणादायक कहानियां | Best 7 Story of Gautam Buddha in Hindi | लघु कहानियाँ महात्मा बुद्ध की | gautam buddha stories in hindi

By: savita mittal

गौतम बुद्ध की 7 प्रेरणादायक कहानियां | gautam buddha stories in hindi | बुद्ध की जातक कथाएं

भगवान बुद्ध का दूसरा नाम क्या है, भगवान बुद्ध ने ज्ञान कैसे प्राप्त किया, क्या बुद्ध ईश्वर को मानते थे, बुद्ध का अंतिम शिष्य कौन था, गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | मेरे जीवन मे इतना दुख क्यो है hindi video parikshit jobanputra, गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | gautam buddhas inspirational story in hindi | parikshit jobanputra, gautam buddhas inspirational story in hindi buddha and followers गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी, gautam buddhas inspirational story-होश या जागरण क्या है- गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी.

यहाँ पढ़ें : सम्पूर्ण जातक कथाएँ हिन्दी कहानियाँ

गौतम बुद्ध जैसे महान विचारक को कौन नहीं जानता होगा उनकी जिंदगी में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जो हमें शिक्षा देते हैं बुद्ध से सम्बन्धी कथाओं में भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। प्रत्येक कथा में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान बुद्ध की जीवन तथा कुछ गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी हैं। 

इन कथाओं मे मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। इसलिए गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी में यह भी दिया गया है कि कौन से कर्म करने योग्य हैं और किन्हें नहीं करना चाहिए। इस प्रकार इस लेख  में महात्मा बुद्ध द्वारा कही गई ऐसी कथाएं हैं जो व्यक्ति को नैतिकता सत्य, धर्म, प्रेम और भाईचारे का संदेश देती हैं। बुद्ध की बहुत की कथाएँ हैं जिनमे से इस लेख मे हम 7 प्रचलित गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी के बारे मे बता रहे है।

भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था ज्ञान प्राप्ति के बाद वह बुद्ध के नाम से जाने जाने लगे।

भगवान बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई, तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

महात्मा बुद्ध को उनके अनुयायी ईश्वर में विश्वास न रखने वाला नास्तिक मानते हैं। धर्मदेव जी कहते हैं कि अष्टाध्यायी के ‘अस्ति नास्ति दिष्टं मतिं’ इस सुप्रसिद्ध सूत्र के अनुसार जो परलोक और पुनर्जन्म आदि के अस्तित्व को स्वीकार करता है वह आस्तिक है और जो इन्हें नहीं मानता वह नास्तिक कहाता है।

इतिहासकारों के अनूसार आनंद उनका परम प्रिय शिष्य था और वह चौबीस घंटे बुद्ध के साथ रहकर उनकी सेवा कर रहा था।

यहाँ पढ़ें : मुंशी प्रेमचंद सम्पूर्ण हिन्दी कहानियाँ पंचतंत्र की 101 कहानियां – विष्णु शर्मा विक्रम बेताल की संपूर्ण 25 कहानियां 40 अकबर बीरबल की कहानियाँ

reference- gautam buddha stories

gautam buddha biography book in hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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Jivani Jano

Buddha Books in Hindi PDF | Download Free

आज की इस पोस्ट में हम आपको Buddha Books in Hindi PDF मुफ्त में उपलब्ध करवाने वाले है, जिसे आप पोस्ट में दिए गए डाउनलोड लिंक की सहायता से आसानी से फ्री में डाउनलोड कर सकते है।

इस पोस्ट में हम आपको बुद्धा पुस्तक को उपलबध करवाने जा रहे है, जो मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के बारे में विस्तार पूर्वक व्याख्या करती है। बौद्ध धर्म सबसे पौराणिक धर्म में से एक है। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म की स्थापना आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध के द्वारा की गयी थी।

यदि आप बुद्धा पुस्तक को मुफ्त में डाउनलोड करना चाहते है तथा इससे सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो इस पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक ध्यानपूर्वक जरूर पढ़े, जो आपके लिए काफी मददगार साबित होगी।

Buddha Books in Hindi PDF Details

Buddha Books in Hindi PDF

Buddha Books in Hindi PDF | विषय सूचि

  • बुद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांत
  • बुद्ध धर्म के आचार सम्बन्धित आज्ञाएं
  • बौद्ध धर्म के भेद
  • बौद्ध के धर्म साम्राज्य का विस्तार
  • बौद्ध धर्म साहित्य
  • बौद्ध काल में सामजिक जीवन
  • बौद्ध धर्म में स्त्रियों का स्थान
  • महान बुद्ध सम्राट अशोक
  • बौद्ध काल का सामाजिक जीवन
  • एक राज कनिष्ठ अंतिम बौद्ध सम्राट
  • दो अमर बौद्ध भिक्षु
  • नालंदा विश्वविद्यालय
  • बौद्ध धर्म का अस्त

Buddha Books in Hindi PDF | बुद्ध और बौद्ध धर्म

इस पुस्तक में आपको बुद्ध धर्म का इतिहास उपलब्ध करवाया गया है। इस पुस्तक के लेखक आचार्य श्रीचतुरसेन शास्त्री है। भारत वर्ष में लगभग 2600 वर्ष पूर्व मगध साम्राज्य का बड़ा भारी प्रताप था। मगध राज्य का विस्तार वर्तमान में दक्षिण बिहार में गंगा के दक्षिण शोमा नदी तक फैला हुआ था।

मगध की राजधानी राजगृह नगरी थी। मगध राज्य के उत्तर में लिछवियो का प्रबल गणतंत्र राज्य था। लिछवियो की राजधानी वैशाली थी, जो गंगा के उत्तर में स्थित थी।

वर्तमान में पूर्वी बिहार को प्राचीन काल में अंग देश के नाम से जाना जाता था। गंगा नदी के उत्तर-पश्चिम किनारों पर कौशलों का राज्य था। कौशलों की प्राचीन राजधानी अयोध्या थी, जो पूर्णतया उजाड़ चुकी थी।

उसके बाद कौशलों की नयी राजधानी श्रावस्ती बनी, जो पूर्णतया हरी-भरी थी। वही दूसरी ओर दक्षिण की ओर काशियों का प्राचीन राज्य स्थित था। जो श्रावस्ती के राजाओ के अधीन था।

रोहिणी नदी के दोनों किनारो के आमने सामने दो जातियां स्वतंत्र रूप से निवास कर रही थी। इन जातियों में एक “शाक्य” और दूसरी “कोली” जाति थी। इन जातियों की स्वतंत्रता उनके सामर्थ्य के आधार पर नहीं थी।

यदि आप इस भाग को विस्तारपूर्वक पढ़ना चाहते है, तो पोस्ट में दी गयी Pdf डाउनलोड कर सकते है, जिसके अंतर्गत प्रथम अध्याय महान बुद्ध को पढ़ सकते है।

बुद्ध की आचार सम्बन्धी आज्ञाएं

बुद्ध ने जिस प्रकार अपने पवित्रता,त्याग और सदाचार के आधार पर अपने सिद्धांतो का प्रचार किया था और जिस प्रकार से सफलता के साथ महान गुरु बन गए थे, उनकी आचार सम्बन्धी आज्ञायें कितनी महान थी, इस बात पर बिना गौर किये हम आगे नहीं बढ़ सकते।

यहाँ हम कुछ आज्ञाओ का उल्लेख करने वाले है, जो वास्तव में बौद्ध धर्म की शोभा है। बुद्ध की पांचो मुख्य आज्ञाएं लघु रूप में निम्न प्रकार है –

  • कोई किसी भी जीव को न मारे।
  • जो वास्तु न दी गयी हो, उसे न लें।
  • झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  • नशे की वास्तु नहीं पीनी चाहिए।
  • निकृष्ट आचरण नहीं करना चाहिए।

इन पांच नियमो के अतिरिक्त तीन नियम और दिए गए है, जो कि अत्यावशयक माने गए है। यह नियम तीन निम्न है –

  • रात्रि में देर से भोजन नहीं करना चाहिए।
  • कभी भी माला नहीं पहननी चाहिए और सुगन्धि भी नहीं लगानी चाहिए।
  • सदैव ही भूमि पर सोना चाहिए।

ये आठों आज्ञाएं एक भिक्षु के लिए थी उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार पंचशील गृहस्थों के लिए आवश्यक है ।

FAQs : Gautam Buddha Book in Hindi Pdf

बौद्ध धर्म में किसकी पूजा की जाती है.

भगवान गौतम बुद्ध जैन धर्म के आराध्य है। इसके अतिरिक्त उत्तरी भारत में भगवान श्री कृष्ण के आठवें अवतार के बाद गौतम बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार माना गया है।

क्या बौद्ध और हिंदू धर्म एक ही है?

हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म प्राचीन धर्म है, जिनकी उत्पति भारत में ही हुई है। इसके अतिरिक्त हिन्दू सम्प्रदाय में उत्तरी भारत के लोगो के स्वरा गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु को नौवा अवतार माना गया है। परन्तु बौद्ध धर्म के लोग इसे नहीं मानते है।

बौद्ध धर्म में मृत्यु के बाद क्या होता है?

ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शव को बहुत ऊंची जगह पर ले जाया जाता है। बौद्ध धर्म के लोगों का मानना है उनके मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार आकाश में किया जाता है। तिब्बत में बौद्ध धर्म के मृत व्यक्तियों के लिए अंतिम संस्कार के लिए पहले से ही ऊंची जगह का इंतजाम कर दिया गया है।

Buddha Books in Hindi PDF कैसे डाउनलोड करें?

बुद्धा पुस्तक को Pdf फॉर्मेट में डाउनलोड करने के लिए पोस्ट में दिए गए डाउनलोड लिंक पर क्लिक करके आसानी से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते है।

Conclusion :-

इस पोस्ट में Buddha Books in Hindi PDF मुफ्त में उपलब्ध करवाई गयी है। साथ ही इस पुस्तक से सम्बंधित जानकारी प्रदान की गयी है। उम्मीद करते है कि Gautam Buddha Books in Hindi Pdf डाउनलोड करने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई होगी।

यह पोस्ट आपको जरूर पसंद आयी होगी। यदि आपको Buddha Books Pdf डाउनलोड करने में किसी भी प्रकार की समस्या आ रही हो तो कमेंट करके जरूर बताये। साथ ही Buddha Pdf in Hindi को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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Buddha Purnima 2024: Who is Gautam Buddha? Know The Real Story of Siddharth Gautam

Buddha purnima, may 23, 2024: seeking to end suffering, siddhartha practiced meditation and asceticism for years. he advocated a balanced approach, avoiding extremes, and offered the four noble truths and eightfold path as a guide. finally, at bodh gaya, he achieved enlightenment, becoming the buddha..

The story of Gautam Buddha

The story of Gautam Buddha

Buddha Purnima 2024 will be observed on Thursday, May 23, 2024. The day marks the birth anniversary of Gautama Buddha. On this occasion, let's learn more about who is Siddharth Gautam and how did he became Gautam Buddha.

Siddhartha Gautama, more commonly known as the Buddha, wasn't always an enlightened teacher. Born a prince in Lumbini (present-day Nepal) around the 6th or 5th century BCE, he lived a privileged life sheltered from hardship. However, a deep desire for understanding human suffering led him to renounce his royal life and embark on a spiritual quest.

Driven by a burning question 'how to overcome suffering?' Siddhartha embarked on a path of self-discovery. He spent years practicing meditation and asceticism, searching for answers. Finally, at Bodh Gaya in India , he attained enlightenment, a state of liberation known as Nirvana . This experience transformed him into the Buddha, the Enlightened One.

The real story of Siddharth Gautam

Siddhartha, amidst the opulence of the palace, married with a son, enjoyed every luxury as his father's heir until he encountered the Four Signs. Whether he witnessed the old man, the sick man, the dead man, and the ascetic in quick succession during a single carriage ride, or over four days, the narrative describes how he questioned his charioteer, " Am I also subject to this? " The charioteer affirmed that aging, sickness, and death were inevitable for all.

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Upon reflection, Siddhartha realized that everything he cherished, including his lavish attire, steeds, and gems, would inevitably be lost to him, as he was not immune to aging, illness, and mortality. The prospect of such loss was intolerable, yet he observed the serene ascetic, equally mortal, and inquired about his contentment. The ascetic explained his commitment to spiritual introspection and renunciation, perceiving the world and its allurements as mere illusions, thus he was indifferent to loss, having relinquished all possessions.

Siddhartha was aware that his father would forbid such a spiritual quest, and his duties to his wife and son would also hinder him. Nevertheless, the idea of enduring a life destined for loss and suffering was insufferable. One night, after contemplating his attachments and observing his wife and son asleep, he exited the palace, abandoned his regal garments, donned an ascetic's robe, and set forth into the forest. Depending on the version, his departure is either aided by supernatural forces or is a solitary venture.

The Teachings of the Buddha

The Buddha dedicated the rest of his life to sharing his newfound wisdom. He emphasized a middle path between indulgence and self-denial , advocating for a life of moderation and ethical conduct. His core teachings, the Four Noble Truths and the Noble Eightfold Path, offered a roadmap to escape suffering.

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Happy Buddha Purnima 2024: Best Messages, Quotes, Wishes and Images to share on Buddha Purnima

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COMMENTS

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  2. भगवान् गौतम बुद्ध जीवन परिचय

    भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के बारे - Gautam Buddha Information in Hindi. पूरा नाम (Name) सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ( Siddharth Gautam Buddha) जन्म (Birthday) 563 ईसा पूर्व, लुम्बिनी. मृत्यु (Death ...

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  4. Gautam Buddha In Hindi

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    गौतम बुद्ध जीवनी - Biography of Gautama Buddha in Hindi Jivani. महात्मा बुद्ध के मन में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगा। राजकुमार बुद्ध ने नगर में घुमने की इच्छा ...

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    गौतम बुद्ध का परिचय (Introduction to Gautama Buddha) महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य राज्य के लुंबिनी शहर (वर्तमान समय नेपाल) में हुआ था ...

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  10. Gautam Buddha: Jeevan Aur Darshan (Hindi Edition)

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  21. PDF Buddha and his Dhamma-Hindi

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  22. Buddha की हिंदी पुस्तकें

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    Know The Real Story of Siddharth Gautam. Buddha Purnima, May 23, 2024: Seeking to end suffering, Siddhartha practiced meditation and asceticism for years. He advocated a balanced approach ...

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