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मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi

मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज का निबंध नागरिकों के मूल कर्तव्यों पर दिया गया हैं.

भारतीय संविधान में 1976 में ऐसे 11 नागरिकों के दायित्व जोड़े गये जिनकी पालना स्वैच्छिक रखी गई. फंडामेंटल डयूटी का सांवैधानिक प्रावधान करने वाला जापान पहला देश था.

भारत के संविधान में ये प्रावधान सोवियत संघ के संविधान से लिए गये.

मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi

प्रारंभ में हमारे संविधान में केवल मूल अधिकारों  का ही प्रावधान था.उनमें मूल कर्तव्यों  का कोई प्रावधान नही था. सनः 1976 के संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग 4-क एवं अनुच्छेद 51-क जोड़कर मूल कर्तव्य सम्मिलित किये गये.

इसके पीछे कारण यह रहा कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक है. कर्तव्यों के बिना अधिकारों और अधिकारों के बिना कर्तव्यों का कोई महत्व नही रह जाता है. अनुच्छेद 51-क में नागरिकों के निम्नांकित मूल कर्तव्य बताए गए है.

मूल अधिकार व कर्तव्य में विशिष्ट सम्बन्ध हैं. अधिकार व कर्तव्य एक दुसरे के पूरक हैं. एक व्यक्ति के कर्तव्य दुसरे व्यक्ति के अधिकार बन जाते हैं. अतः कर्तव्यों की अनुपस्थिति में अधिकारों की कल्पना संभव नहीं हैं.

संविधान में 1950 में भारतीय नागरिकों के लिए सिर्फ मूल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था. मूल कर्तव्यों का नहीं. लेकिन 1976 में ४२ वां संविधान संशोधन करते हुए यह अनुभव किया गया

कि नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए. अतः संविधान के भाग चार क में 10 कर्तव्यों को जोड़ा गया, इसमें उल्लेख किया गया कि भारत के नागरिक का कर्तव्य ये होंगे.

क्या है मूल कर्तव्य (What Is Fundamental Duties In Hindi)

अधिकारों के साथ स्वाभाविक रूप से कर्तव्य भावना जुड़ी रहती है. कर्तव्यो के बिना अधिकारों का अस्तित्व संभव नही है.

यद्यपि जब भारत का संविधान लागू हुआ उस समय मौलिक अधिकारों के रूप में नागरिक अधिकारों का तथा नीति निर्देशक तत्व के रूप में राज्यों के कर्तव्यों का तो समावेश था,

लेकिन नागरिक कर्तव्य संविधान में शामिल नही थे. हालाँकि भारतीय परम्परा, मिथकों, धर्म व्यवस्था और संस्कार परम्परा में कर्तव्य भावना सदैव विद्यमान रही है.

माता: भूमि पुत्रोअहम प्राथ्विया के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए जननी जन्मभूमिश्च सर्वगाद्पि गरीयसी द्वारा राष्ट्र की एकता अखंडता के प्रति हमारे कर्तव्य बोध को स्पष्ट किया गया है.

42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा संविधान के भाग 4 क व अनुच्छेद 51 क के द्वारा नागरिकों के मूल कर्तव्यों को स्थान दिया गया है.

हालाँकि कर्तव्यों के उल्लंघन के आधार पर नागरिकों को दंडित किया जा सकता है, अथवा नही, इसके बारे में संविधान मौन है. अनुच्छेद 51 क भारत के प्रत्येक नागरिक के ये मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties Of Citizens) है.

भारतीय संविधान में नागरिक के मूल कर्तव्य

11 Fundamental Duties of Indian Citizens 11 भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य:

  • संविधान का पालन करे और उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे.
  • स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलनों को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को ह्रद्य में सजोए रखे और उनका पालन करे.
  • भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखे.
  • देश की रक्षा करे और आव्हान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे.
  • भारत की सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो. ऐसी प्रथाओं का त्याग करे, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है.
  • हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे.
  • प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव है, रक्षा करे और सर्वधन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे.
  • वैज्ञानिक द्रष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे.
  • सार्वजनिक सम्पति को सुरक्षित रखे, और हिंसा से दूर रहे.
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की और बढ़ने का सतत प्रयास करे, जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई उंचाइयो को छू ले.
  • जो माता-पिता या संरक्षक हो, वह 6 से 14 वर्ष के बिच की आयु के अपने बच्चे तथा प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा.

मूल कर्तव्य (Fundamental Duties) व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के सर्वागीण विकास के लिए अपरिहार्य है. हमारी न्यायपालिका ने भी समय-समय पर इन मूल कर्तव्यों का समर्थन किया है.

एम सी मेहता बनाम भारत संघ (1988 एससीसी 47 के) मामले हमारे उच्चतम न्यायालय ने यह अनुशंसा की है कि देश की शिक्षण संस्थाओं में प्रति सप्ताह एक घंटे पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा दी जानी चाहिए.

मूल कर्तव्यों की आलोचना (fundamental duties criticism in hindi)

कर्तव्यों के उल्लंघन पर दंड की व्यवस्था नहीं की गई हैं. मूल कर्तव्यों के उल्लंघन पर हमारे संविधान में किसी तरह के दंड की व्यवस्था नहीं की गई हैं. इससे इसकी पालना भली भांति नहीं हो रही हैं.

मूल कर्तव्य अत्यधिक आदर्शवाद विचारो से प्रेरित हैं. जैसे राष्ट्रीय आदर्शों की पालना, देश की समन्वित संस्कृति व गौरवशाली परम्परा की रक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद ऐसे ही आदर्श है

जो प्रायः व्यवहार में काम नहीं लिए जा रहे हैं. यह सर्व मान्य तथ्य है कि कर्तव्यों की पालना किये बिना अधिकारों का उपयोग संभव नहीं हैं.

ये हमारे नागरिकों के लिए आदर्श के रूप में जोड़े गये हैं. ये राष्ट्रहित व राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने वाले हैं. संविधान में इनकों सम्मिलित करने के पीछे कोई राजनीतिक या दलगत भावना नहीं थी.

ऐसा माना जा रहा हैं. कि नागरिक चेतना के विकास के साथ नागरिक भविष्य में इन कर्तव्यों को धीरे धीरे पालन करने में अभ्यस्त हो जाएगे. प्रत्येक नागरिक द्वारा इन कर्तव्यों का पालन करना सर्वोच्च धर्म समझा जाना चाहिए.

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भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य। Fundamental Duties of Indian Citizens:The Pillars of Nation Building

भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य। Fundamental Duties of Indian Citizens:The Pillars of Nation Building

इस जानकारीपूर्ण लेख के माध्यम से भारतीय संविधान द्वारा यहां के नागरिकों को दिए गए मौलिक कर्तव्यों (fundamental duties of Indian Citizens or maulik kartavya) और महत्व को जानें। और साथ ही साथ हर नागरिक को कितने मौलिक कर्तव्य (maulik kartavya ki sankhya) दिए गए हैं वह क्या-क्या है, सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देने में इनकी भूमिका क्या है इत्यादि के बारे में भी जानेंगे।

इसके अलावा, इस विषय से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में जाने और इन जिम्मेदारियों से जुड़े प्रभाव को भी समझे जो हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

Table of Contents

भारतीय संविधान और मौलिक कर्तव्यों का संक्षिप्त परिचय। Brief Introduction of the Indian Constitution and Fundamental Duties of Indian Citizens in hindi:

भारतीय संविधान, जो देश की रीढ़ के रूप में कार्य करता है, न केवल अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों ( Fundamental Rights or Maulik Adhikar ) को निर्धारित करता है बल्कि देश के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों या मौलिक कर्तव्यों (mul kartavya) को भी दर्शाते हैं।

नागरिक जिम्मेदारी की भावना जगाने, राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देने और देश की प्रगति के उद्देश्य से 1976 में उन्हें 42वें और 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में जोड़ा गया था।

जिस तरह सभी नागरिकों के समान अधिकार हैं, उसी प्रकार उनके समान मौलिक कर्तव्य (molik kartavya or kartavya in hindi) भी है।अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन किए बिना संविधान द्वारा प्रदान किए गए सभी विशेषाधिकारों और स्वतंत्रता की उम्मीद नहीं कर सकते। 

मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि। Historical background of concept of Fundamental Duties:

मौलिक कर्तव्यों (fundamental duties in hindi) की अवधारणा भारतीय संस्कृति में कोई नई नहीं है। यह कई सदियों से चली आ रही है और प्राचीन भारतीय परंपराओं से प्रेरणा लेती रही है।

यह मौलिक कर्तव्य (mool kartavya) ही है जिसने समाज और राष्ट्र के प्रति अपने जिम्मेदारियों को पूरा करने के महत्व पर बल दिया। फिर चाहे वह राजतंत्र का दौर हो या स्वतंत्रता संग्राम के लिए जंग हो।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस विचार को और बल मिला जब भारतीय नेताओं ने राष्ट्र निर्माण में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता को पहचाना। हालाँकि, मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से शामिल करने का कार्य वर्ष 1976 में किया गया।

भारतीय संविधान की स्थापना का संक्षिप्त विवरण। Brief description of the establishment of the Indian Constitution:

भारतीय संविधान जिसे भारतीय कानून के रूप में भी जाना जाता है,  इसके लिखने और लागू करने का विस्तृत इतिहास है जिसे एक पोस्ट या आर्टिकल में समेटना लगभग नामुमकिन है। हम इसके बारे में विस्तार से जानकारी अलग-अलग पोस्ट के माध्यम से अपने पाठकों को देंगे।

यहां पर संविधान के बारे में बहुत ही संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है जोकि मौलिक कर्तव्य के परिपेक्ष में है।

भारत की स्वतंत्रता के बाद आयोजित की गई संविधान सभा की पहली बैठक में संवैधानिक वर्चस्व को स्पष्ट करने के विचार के लिए एक भौतिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता के बारे में चर्चा हुई और इसलिए 29 अगस्त 1947 को एक मसौदा समिति नियुक्त की गई।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को एक स्थायी और संगठित संविधान गठित करने के लिए मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया।

4 नवंबर 1947 को, मसौदा समिति ने संविधान का प्रारंभिक मसौदा प्रस्तुत किया और अंतिम मसौदा 26 नवंबर 1949 को प्रस्तुत किया गया।

24 जनवरी 1950 को, मसौदा समिति द्वारा लिखित रूप प्रस्तुत संवैधानिक मसौदा पर हस्ताक्षर किए गए और 26 जनवरी 1950 में भारत के संविधान के रूप में लागू किया गया।

संविधान में जिन पर मसौदा समिति ने अपना ध्यान केंद्रित रखा था, वे थीं रिपब्लिकन राज्य, एक स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली, मौलिक अधिकार और एक संघीय प्रणाली।

भारत का दुनिया का सबसे लंबा संविधान माना जाता है संविधान भारत के संविधान को बनाने के लिए 2 साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा जिसमें विभिन्न देशों के विभिन्न संविधानों से प्रेरणा प्राप्त की।

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को कब जोड़ा गया? When were fundamental duties added to the Indian Constitution?

1976 में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर मौलिक कर्तव्य (maulik kartavya or fundamental duties in hindi) को संविधान में जोड़े गए थे, जिसका गठन श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के तुरंत बाद संविधान का अध्ययन और संशोधन करने के लिए किया गया था।

सरकार ने 42वें संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना सहित संविधान में कई बदलाव शामिल किए, जिसमें भारतीय संविधान के तहत मौलिक कर्तव्य भी शामिल थे।

इस संशोधन में भारतीय संविधान के भाग IV (savidhan bhag 4) के अनुच्छेद 51-ए (anuched 51a or कलम 51 अ) में दस मौलिक कर्तव्यों की रूपरेखा दी गई है, जिन्हें पूरा करने के लिए प्रत्येक नागरिक को प्रयास करना चाहिए।

हालाँकि, 2002 में 86वें संशोधन द्वारा, भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A (article 51a in hindi), भाग IV-A के तहत मूल 10 कर्तव्यों को बढ़ाकर 11 maulik kartavya कर दिया गया।

ये मूलभूत कर्तव्य (mulbhut kartavya) संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने से लेकर सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने और विभिन्न समूहों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने तक हैं। इन कर्तव्यों को स्थापित करके व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है।

मौलिक कर्तव्यों (molik kartavya) का उद्देश्य नागरिकों में जिम्मेदारी, देशभक्ति और सामाजिक चेतना की भावना पैदा करना है।

मौलिक कर्तव्य कितने हैं? ? maulik kartavya kitne hain or mul kartavya ki sankhya kitni hai or maulik kartavya kitne hote hain?

2002 में 86वें संशोधन को मिलाकर कुल 11 मौलिक कर्तव्य (11 maulik kartavya or 11 fundamental duties in hindi) है जो इस प्रकार है:

  • संविधान का पालन करें और राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें;
  • स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें;
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करें;
  • देश की रक्षा करें और आवश्यक पड़ने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करें;
  • सब के साथ भाईचारे की भावना रखे;
  • सभी संस्कृति का संरक्षण करें;
  • झीलों, वन्यजीवों, नदियों, जंगलों आदि सहित; प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण करें;
  • वैज्ञानिक सोच और मानवतावाद की भावना विकसित करें;
  • सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें;
  • उत्कृष्टता के लिए प्रयास;

11वाँ मौलिक कर्तव्य है: सभी माता-पिता/अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे अपने 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना, करें।

मौलिक कर्तव्यों का महत्व। Significance of fundamental duties or maulik kartavya ka mahatva :

मौलिक कर्तव्य (molik kartavya) सरकार को शासन व्यवस्था बनाए रखने और एक लोकतांत्रिक समाज को सक्षम बनाए रखने में भी मदद करता है।

भारतीय संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों की एक सूची प्रदान करता है। इन कर्तव्यों को नैतिक और सांस्कृतिक आचार संहिता के अनुसार तैयार किया गया है, जिसका पालन लोगों को देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए करना है।

मौलिक कर्तव्य राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सद्भाव और सतत विकास को बढ़ावा देकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यदि कोई व्यक्ति मौलिक कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो इसे संविधान की अवमानना के रूप में देखा जाता है जो कि संविधान के अनुच्छेद 51ए ,{राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971} के तहत दंडनीय है।

मौलिक कर्तव्यों के निहितार्थ और चुनौतियाँ। Implications and Challenges of fundamental duties:

हालांकि मौलिक कर्तव्य (molik kartavya) कानूनी रूप से लागू नहीं किए जा सकते लेकिन, वे नैतिक रूप से बाध्यकारी हैं। इन कर्तव्यों के निहितार्थ या असर भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में देखे जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, देश की समृद्ध विरासत और संस्कृति को संरक्षित करने का कर्तव्य सांस्कृतिक संरक्षण के साथ-साथ पर्यटन को भी बढ़ावा देता है।

दूसरी तरफ, मौलिक कर्तव्यों को प्रभावी को लागू करने और कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। नागरिकों के बीच जागरूकता की कमी और उदासीनता (lack of awareness and apathy), सीमित जवाबदेही (limited accountability) इत्यादि इसमें बाधा उत्पन्न करते हैं।

इस अंतर को कम करने और नागरिकों को अपने कर्तव्यों को सक्रिय रूप से अपनाने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान (education and awareness campaigns), कानूनी सुधार (legal reforms) इत्यादि कुछ महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

मौलिक अधिकारों, और मौलिक कर्तव्यों के बीच संबंध। Relation between fundamental rights and duties or maulik adhikar aur kartavya ke beech sambandh:

भारतीय संविधान नागरिकों के आचरण और नागरिकों के साथ राज्य के आचरण को नियमित करने के लिए मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों (fundamental rights and duties or maulik adhikar aur kartavya) को प्रदान करता है। यह खंड भारतीय संविधान में नागरिकों के व्यवहार और आचरण के लिए अधिकारों, कर्तव्यों को बताते है।

मौलिक कर्तव्य सभी नागरिकों के द्वारा समाज और लोकतंत्र की रक्षा और विकास के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। ये कर्तव्य  भारतीय संविधान के भाग IV-A (savidhan bhag 4) में निर्धारित किए गए हैं।

जबकि मौलिक अधिकारों को सभी नागरिकों के बुनियादी मानव अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है। भारतीय संविधान के भाग III में जाति, धर्म, जाति, या लिंग या जन्म स्थान का भेदभाव किए बिना समान रूप से लागू करता है।

इन मौलिक अधिकारों को बनाने के पीछे मूल विचार नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना और लोकतंत्र को बनाए रखना है।

मौलिक अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए हमारे Fundamental Rights in India or Maulik Adhikar पोस्ट को पढ़ना ना भूले।

मौलिक कर्तव्यों पर निबंध का निष्कर्ष। Conclusion of essay on fundamental duties:

भारत में मौलिक कर्तव्य (fundamental duties in hindi or maulik kartavya) नागरिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय अखंडता के महत्व को रेखांकित करते हैं, जो नागरिकों को समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए एक मार्गदर्शक ढांचा प्रदान करते हैं।

मौलिक कर्तव्य नागरिकों को पास होने का मतलब यह नहीं है कि उनके पास कानूनी बल है लेकिन यह राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका की याद दिलाते हैं।

इन कर्तव्यों का पालन करके, नागरिक अपने और आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य बनाने में सक्रिय रूप से योगदान कर सकते हैं।

Frequently Asked Questions (FAQs)

Q1: मौलिक कर्तव्य क्या हैं maulik kartavya kya hai or maulik kartavya ka kya arth hai.

Ans1: मौलिक कर्तव्य (maulik kartavya) भारतीय संविधान में उल्लिखित जिम्मेदारिया है जिसे समाज और राष्ट्र को बेहतर बनाने के लिए नागरीको से अपेक्षा की जाती है।

Q2: मौलिक कर्तव्य क्यों महत्वपूर्ण हैं? why are fundamental duties important or maulik kartavya ka mahatva kya hai?

Ans2: मौलिक कर्तव्य महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे जिम्मेदारी, सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देते हैं। मौलिक कर्तव्य नागरिकों को जिम्मेदार व्यवहार करने और देश की समग्र प्रगति और कल्याण में योगदान करने के लिए प्रेरित करते हैं।

Q3: क्या मौलिक कर्तव्य कानूनी रूप से लागू किए जा सकते हैं? fundamental duties are enforceable by law?

Ans3: नहीं, मौलिक कर्तव्य कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं। हालाँकि, उन्हें नैतिक रूप से बाध्यकारी माना जाता है, और नागरिकों को स्वेच्छा से उन्हें पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

Q4: भारतीय संविधान में कितने मौलिक कर्तव्य हैं? bhartiya sanvidhan mein maulik kartavya kitne hain ?

Ans4: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (anuchchhed 51A) के तहत भारत में हर नागरिक के पास कुल ग्यारह मौलिक कर्तव्य (11 maulik kartavya) हैं। वर्ष 2002 में संविधान के 86वें संशोधन के बाद 11वाँ मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।

Q5: मौलिक कर्तव्यों के उदाहरण क्या हैं? What are examples of fundamental duties?

Ans5: मौलिक कर्तव्यों के उदाहरणों में संविधान का सम्मान करना, सभी नागरिकों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना शामिल है।

Q6: क्या मौलिक कर्तव्यों को पूरा न करने पर नागरिकों को दंडित किया जा सकता है? Can citizens be punished for non-fulfilment of fundamental duties?

Ans6: नहीं, मौलिक कर्तव्यों को पूरा नहीं करने के लिए नागरिकों को दंडित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता हैं। हालांकि, जागरूकता को बढ़ावा देना और नागरिकों को इन कर्तव्यों (nagrik ke kartavya)  के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

Q7: भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य कब शामिल किए गए थे? When were the fundamental duties included in the Indian Constitution?

Ans 7: मौलिक कर्तव्यों को 1976 में 42वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है। इससे पहले, संविधान में स्पष्ट रूप से मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था।

Q8: मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों से कैसे संबंधित हैं? How are fundamental duties related to fundamental rights?

Ans8: मौलिक कर्तव्य और मौलिक अधिकार साथ-साथ चलते हैं। मौलिक अधिकार व्यक्तियों को कुछ स्वतंत्रताओं के साथ सशक्त बनाते हैं, जबकि मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं।

Q9: क्या मौलिक कर्तव्यों को बदला या संशोधित किया जा सकता है? Can fundamental duties be changed or amended?

Ans9: मौलिक कर्तव्यों को संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया के माध्यम से संसद द्वारा संशोधित किया जा सकता है। किए गए किसी भी बदलाव को संविधान की भावना और न्याय, समानता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।

Q10: नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों को कैसे पूरा कर सकते हैं? How can citizens fulfill their fundamental duties?

Ans10: नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में  भाग लेकर, दूसरों के अधिकारों  का सम्मान करके, पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान देकर, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देकर और जीवन के सभी क्षेत्रों में काम करके पूरा कर सकते हैं।

मौलिक कर्तव्यों की सिफारिश किस समिति ने की थी? Which committee recommended fundamental duties?

1976 में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़े गए थे, जिसका गठन श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के तुरंत बाद संविधान का अध्ययन और संशोधन करने के लिए किया गया था।

नोट: ऊपर दिए गए उत्तर मौलिक कर्तव्यों की सरल समझ प्रदान  करने के लिए हैं।

 ऐसे ही अन्य लेखों के लिए हमारे  Rights and Duties of Indian Citizens  वेब पेज को विजिट करना पढ़ना ना भूले।

अस्वीकरण (Discliamer): इस लेख का उद्देश्य भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों के बारे आप पाठकों को सरल भाषा में बताना और जानकारी प्रदान करना है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हमारे इस लेख को या इस पेज पर प्रदान की गई जानकारी को कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए। कानून और विनियम विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं, और यह हमेशा सलाह दी जाती है कि व्यक्तिगत मामलों के लिए योग्य कानूनी पेशेवर से परामर्श करें।

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आंचल बृजेश मौर्य एक एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है और अपनी पढ़ाई के साथ साथ भारतीय कानूनों और विनियमों (Indian laws and regulations), भारतीय संविधान (Indian Constitution) और इससे जुड़ी जानकारियों के बारे में लेख भी लिखती है। आंचल की किसी भी जटिल विषय को समझने और सरल भाषा में लेख लिखने की कला और समर्पण ने लॉपीडिया (LawPedia) की सामग्री को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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The Bharat Varsh

मूल कर्तव्य PDF | Fundamental Duties In Hindi | Maulik Kartavya

प्रारंभ में, अनुच्छेद 51 (ए) के तहत 10 मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था। बाद में 2002 में, 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने सूची में एक और कर्तव्य जोड़ा। इस प्रकार, भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्तव्य ( Fundamental Duties In Hindi) हैं।

Table of Contents

मौलिक कर्तव्य ( Fundamental Duties In Hindi)

1. संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थानों और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना: भारत के प्रत्ये क नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और इसके आदर्शों, संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करे।

2. राष्ट्रीय आंदोलन के प्रेरक आदर्शों का पालन करना: प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह स्व तंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोए और उनका पालन करे।

3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना: भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा क रना और बनाए रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है। इसे भारतीय नागरिकों का सर्वोच्च कर्तव्य कहा जा सकता है।

4. देश की रक्षा और राष्ट्र की सेवा: यह प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह देश की रक्षा करे और जब ऐसा करने के लिए बुलाया जाए तो राष्ट्र की सेवा करे।

5. भारत के लोगों के बीच सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देना: धार्मिक, भाषा, क्षेत्र या अनुभागीय मतभेदों से परे भारत के सभी हिस्सों में सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना और महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।

इस प्रकार दो कर्तव्यों को समझ में आया है:

सभी भारतीयों के बीच सद्भाव और भाईचारे की भावना विकसित करना।

महिलाओं का सम्मान करें।

6. एकीकृत संस्कृति की गौरवशाली परंपरा की रक्षा करें: हमारी एकीकृत संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के महत्व को समझें और इसे संरक्षित करें।

7. प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और सभी जीवित प्राणियों के लिए करुणा: वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए करुणा रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद और सीखने का विकास: यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक स्वभाव मानवतावाद और सीखने और सुधार की भावना विकसित करे।

9. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और हिंसा से बचना: सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से बचना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

10. व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करे ताकि राष्ट्र निरंतर बढ़ सके और प्रगति और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू सके।

11. अनुच्छेद 51क में संशोधन करके 86वें संविधान संशोधन 2002 द्वारा सम्मिलित नए खंड के अनुसार, प्रारंभिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए, माता-पिता का भी यह कर्तव्य है कि वे छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

कर्तव्यों का कार्यान्वयन

42वें संशोधन द्वारा संविधान में शामिल कर्तव्य सांविधिक कर्तव्य हैं और कानून द्वारा प्रवर्तनीय होंगे।

संसद, कानून द्वारा, उन कर्तव्यों का पालन करने में विफलता के लिए दंड लगाने के लिए कानून बनाएगी।

हालांकि, इस प्रावधान की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि किस तरह से और किन व्यक्तियों पर इन कर्तव्यों को लागू किया जाता है।

मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएं

मौलिक कर्तव्यों में नैतिक और नागरिक दोनों कर्तव्य शामिल हैं। उदाहरण के लिए, ‘स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना’ एक नैतिक कर्तव्य है।

“संविधान का पालन करना और इसके आदर्शों, संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना” एक नागरिक कर्तव्य है।

गौरतलब है कि कुछ मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों के लिए भी उपलब्ध हैं लेकिन मौलिक कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होते हैं।

संविधान के अनुसार, मौलिक कर्तव्य गैर-न्यायसंगत या गैर-प्रवर्तनीय हैं यानी उनके उल्लंघन के मामले में सरकार द्वारा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।

संविधान के तहत उल्लिखित मौलिक कर्तव्य भी भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म और प्रथाओं से संबंधित हैं।

मौलिक कर्तव्यों का महत्व

समाज व्यक्ति की तुलना में व्यापक है, इसलिए मौलिक कर्तव्यों द्वारा लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक किया जाता है।

मौलिक कर्तव्यों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाया जा सकता है जिसे कानून द्वारा अनिवार्य बनाया गया है।

मौलिक कर्तव्य कानूनों की वैधता का परीक्षण करने में मदद करते हैं।

अधिकारों की मांग के अलावा, मौलिक कर्तव्यों का पालन भी लोगों द्वारा किया जा रहा है।

मौलिक कर्तव्यों की आलोचना

दिए गए मौलिक कर्तव्यों में स्पष्टता की कमी है।

मौलिक कर्तव्य लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है क्योंकि यह राज्य को अधिक महत्व देता है और व्यक्ति को कम।

एक ऐसे देश में जहां दो-तिहाई आबादी निरक्षर है, मौलिक कर्तव्य ों का कोई महत्व नहीं होगा।

मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता

संविधान में मौलिक कर्तव्यों को शामिल किए जाने के तीन दशक बाद भी नागरिकों में पर्याप्त जागरूकता का अभाव है।

2016 में दायर एक जनहित याचिका में इस तथ्य को प्रकाश में लाया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों, न्यायाधीशों और सांसदों सहित देश के लगभग 99-9 प्रतिशत नागरिक संविधान के अनुच्छेद 51 ए में निहित कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं।

इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। वर्तमान में, भारत की प्रगति के लिए मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन करने की आवश्यकता पर जोर देना अनिवार्य हो गया है।

गौरतलब है कि हाल की कई घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि हम देश में भाईचारे की भावना को बनाए रखने में सक्षम नहीं हो पाए हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जब तक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उपयोग के साथ-साथ अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे, तब तक हम भारतीय समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत नहीं कर पाएंगे।

ध्वज विवाद और नया ध्वज कोड

पुराने ध्वज संहिता में, जिसमें प्राचीन प्रावधानों की एक लंबी सूची थी, ध्वज फहराने का अधिकार केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार था।

आठ साल पहले जिंदल समूह के उपाध्यक्ष नवीन जिंदल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर झंडा फहराने के उनके अधिकार पर लगे प्रतिबंधों को चुनौती दी थी।

तिरंगा फहराने को मौलिक अधिकार बताने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश और ध्वज संहिता के उदारीकरण के सवाल की जांच के लिए एक समिति गठित करने की सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश के बाद सरकार ने समिति का गठन किया. समिति की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तिरंगा फहराने से संबंधित अनावश्यक कड़े नियमों में ढील देने का फैसला किया है।

नया ध्वज कोड

राष्ट्रीय ध्वज केवल सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही फहराया जा सकता है।

राष्ट्रीय ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3: 2 होना चाहिए।

किसी भी पोशाक, तकिया या नैपकिन पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं छपना चाहिए।

राष्ट्रीय ध्वज को कफन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

झंडे को ऊपर से नीचे की ओर नहीं फहराना चाहिए। इसे जमीन को नहीं छूना चाहिए।

ध्वज को संयुक्त राष्ट्र या अन्य देशों के झंडे को छोड़कर अन्य झंडे की तुलना में अधिक ऊंचाई पर फहराना चाहिए।

राष्ट्रीय ध्वज फटी हुई हालत में नहीं होना चाहिए।

राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित संशोधित संहिता 26 जनवरी, 2003 को लागू हुई।

राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान

श्याम नारायण चौकसे मामले (राष्ट्रगान आदेश) में सुप्रीम कोर्ट ने सभी सिनेमाघरों को फिल्मों की शुरुआत में राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया।

विधान और नियम

भारत के संविधान के अनुच्छेद 51AAA के तहत, भारत के प्रत्येक नागरिक पर यह मौलिक कर्तव्य है कि वह अपने आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करे।

राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971 संविधान राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के अपमान के मुद्दे से संबंधित है और इन प्रतीकों के अपमान पर दंडात्मक प्रावधान करता है।

भारतीय ध्वज संहिता, 2002 कोई कानून नहीं है बल्कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए कार्यकारी अनुदेशों का समेकन है, जिसमें राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को रोकने वाली प्रथाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।

राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान

दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों को फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के एक नोटिस के जवाब में केंद्र सरकार ने दृढ़ता से कहा है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना राष्ट्रीय गौरव का विषय है और इस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने श्याम नारायण चौकसे द्वारा दायर जनहित याचिका के संदर्भ में नोटिस जारी किया।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से सरकार को संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में दिशानिर्देश परिभाषित करने या तैयार करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों को फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया था।

मौलिक कर्तव्य क्या है?

उत्तर: मौलिक कर्तव्य: सरल शब्दों में, कुछ करने के दायित्व को कर्तव्य कहा जाता है। मौलिक कर्तव्य वे मूल कर्तव्य हैं जो एक व्यक्ति को अपनी प्रगति और विकास के लिए और समाज और देश की प्रगति के लिए करना चाहिए।

वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या क्या है?

मूल रूप से संख्या में दस, मौलिक कर्तव्यों को 2002 में 86 वें संशोधन द्वारा ग्यारह तक बढ़ा दिया गया था, जिसने प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक पर यह सुनिश्चित करने के लिए एक कर्तव्य जोड़ा कि उनके बच्चे या वार्ड को छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान किए गए थे।

मौलिक कर्तव्य कहां से लिया गया है??

मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान से प्रेरित है। इन्हेंस्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।

11 मौलिक कर्तव्य क्या हैं?

86वें संविधान संशोधन 2002 के बाद 11वां मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया। यह मौलिक कर्तव्य 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने और माता-पिता या अभिभावक के रूप में यह सुनिश्चित करने के लिए कहता है कि उनके बच्चे को ऐसे अवसर प्रदान किए जा रहे हैं।

भारत में मौलिक कर्तव्यों की शुरुआत कब की गई थी??

उस वर्ष की शुरुआत में सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर, 1976 में 42 वें संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया था।

मौलिक कर्तव्य क्या हैं?

संविधान का पालन करना और इसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।

10 मौलिक कर्तव्यों को कब जोड़ा गया था?

इसलिए स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के आधार पर अनुच्छेद 51-ए के तहत संविधान के भाग IV-A में दस मौलिक कर्तव्य जोड़े गए।

सबसे महत्वपूर्ण मौलिक कर्तव्य क्या हैं?

भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना। देश की रक्षा करना और बुलाए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना। धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे भारत के लोगों के बीच सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना।

किस भाग में मौलिक कर्तव्य है

अनुच्छेद 51ए संविधान के भाग IV में सन्निहित मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है।

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य कहां से लिए गए हैं??  

मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान से प्रेरित है। इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान के भाग IV-ए में शामिल किया गया था।

भाग IVA में क्या है?

भाग IV-A: 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976 ने संविधान में भाग IV-A की स्थापना की जिसके तहत सभी मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया है। 86वां संशोधन: 11वें मौलिक कर्तव्य को बाद में 2002 के 86वें संशोधन अधिनियम द्वारा सूची में शामिल किया गया।

संविधान में मौलिक कर्तव्य क्या है??

संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। उन महान आदर्शों का पालन करना जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।

वर्तमान में कितने मौलिक कर्तव्य हैं?

मूल रूप से मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया। सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग-IV-ए) में सूचीबद्ध हैं।

1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा भाग IV में 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। 2002 में 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया। उत्तर। भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं।

11वां मौलिक कर्तव्य कौन सा है?

11वां मौलिक कर्तव्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना है। यह कर्तव्य 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।

मौलिक कर्तव्यों का क्या महत्व है?

मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। दोनों का महत्व नीचे सूचीबद्ध है: यह नागरिकों को निरंतर अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते समय, उन्हें अपने राष्ट्र और अन्य नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक होना चाहिए।

क्या मौलिक कर्तव्य अनिवार्य हैं?

ये कर्तव्य कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं। हालाँकि, किसी मामले पर फैसला सुनाते समय अदालत उन्हें ध्यान में रख सकती है। नागरिकों द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों के बदले में उनके दायित्व पर जोर देने के लिए उन्हें संविधान का हिस्सा बनाया गया था।

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मौलिक अधिकार और कर्तव्य पर निबंध। Our Fundamental Rights & Duties

हमारे मौलिक अधिकार और कर्तव्य, भारतीय नागरिकों को कुछ अधिकार और कर्तव्यों का पालन करना होता है। भारतीय संविधान ने नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं जो उनकी सुरक्षा और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए हैं। ये मौलिक अधिकार समानता, स्वतंत्रता, जीवन की सुरक्षा, और शिक्षा के अधिकार जैसे होते हैं।

इसके साथ ही, नागरिकों को कुछ कर्तव्यों का भी पालन करना होता है, जैसे कि समाज में भागीदारी, कानूनों का पालन करना, और राष्ट्रभक्ति। ये कर्तव्य उनके सामाजिक और नागरिक जीवन को सही दिशा में ले जाने में मदद करते हैं।

मौलिक अधिकारों का ज्ञान महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नागरिकों को उनके हकों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाए रखता है और उन्हें अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित करता है। इससे समाज में न्याय और समरसता का माहौल बनता है और देश का समृद्धि और सामरिक सुरक्षा में योगदान होता है।

इसलिए, हर भारतीय नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों का समझना और उनका पूरा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि समृद्धि, समानता, और न्याय की दिशा में हम सभी मिलकर काम कर सकें।

मौलिक अधिकार और कर्तव्य

भारतीय संविधान के भाग III और भाग IV A में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों को कवर किया गया है।

  • मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): भाग III में मौलिक अधिकारों का विस्तार है, जो भारतीय नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए हैं। इनमें समानता, स्वतंत्रता, जीवन की सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता, और शिक्षा के अधिकार शामिल हैं। इन अधिकारों का पालन राज्य के प्रति नागरिकों का अधिकार और कर्तव्य है।
  • मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties): भाग IV A में मौलिक कर्तव्यों का वर्णन है, जो नागरिकों के दायित्वों को बढ़ावा देने के लिए शामिल किए गए हैं। इनमें राष्ट्रभक्ति, सामाजिक समरसता, और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति दायित्व शामिल हैं। यह भारतीय नागरिकों को समर्पण और जवाबदेही की भावना से युक्त करने के लिए है।

1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ने से, एक सकारात्मक सामाजिक और नैतिक माहौल बनाने का प्रयास किया गया। इससे नागरिकों को अपने समाजिक और राष्ट्रिय कर्तव्यों के प्रति जागरूकता और समर्पण की भावना बढ़ाने का प्रयास किया गया है। मौलिक अधिकार और कर्तव्य

मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का परिचय

1947 से 1949 तक की अवधि में, भारतीय संविधान ने नागरिकों के मौलिक अधिकार, कर्तव्यों, और राज्य के दिशा-निर्देशों को विकसित करने के लिए कई धाराएं बनाई गईं। ये धाराएं संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण थीं और नागरिकों को समर्थन और सुरक्षा प्रदान करने का कारगर तरीका बनाई गई थीं। यहां कुछ मुख्य धाराएं हैं जो इस प्रक्रिया में शामिल थीं:

  • अनुच्छेद 12: यह अनुच्छेद नागरिकों को भूमि या सम्पत्ति के हक को बचाने का अधिकार प्रदान करता है। इसमें स्वास्थ्य, अस्पताल, यातायात, विनियोजन, और अन्य सामाजिक उद्देश्यों के लिए भूमि को उपयोग करने के लिए नागरिकों को अधिकार प्राप्त होता है।
  • अनुच्छेद 14: इस अनुच्छेद के तहत, नागरिकों को भाषा, जाति, धर्म, लिंग, और समाज के किसी भी वर्ग से किए गए भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है।
  • अनुच्छेद 19: इस अनुच्छेद में स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय की अपीलक्रिया की सुरक्षा है।
  • अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद जीवन के हक की रक्षा करता है और यहां शामिल हैं अच्छूत अधिकार, ग़ुलामी में प्रतिष्ठा का अधिकार, और स्वतंत्रता के साथ समान इस सामाजिक विषयों के प्रति हक।
  • अनुच्छेद 32: इस अनुच्छेद के अंतर्गत नागरिकों को संघर्ष करने का अधिकार है, जिससे वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 39: इसमें राज्य को सामाजिक न्याय और समाज की समृद्धि के लिए उद्देश्य करने का आदान-प्रदान किया गया है।

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights):

भारतीय संविधान ने मौलिक अधिकारों को स्थापित किया, जिन्हें नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए दिया गया है। इनमें समानता, स्वतंत्रता, जीवन की सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता, और अन्य अधिकार शामिल हैं।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy):

ये नीतियाँ राज्य को एक आदर्श समाज की दिशा में कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करती हैं। इनमें समाज कल्याण, सामाजिक न्याय, और सामूहिक समृद्धि के लिए कदम उठाने के लिए राज्य को दिशा मिलती है।

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties):

मौलिक कर्तव्यें 1976 के संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ी गईं गई हैं। इनमें राष्ट्र के प्रति वफादारी, अपने समाज के प्रति सहानुभूति, विज्ञान को बढ़ावा देना, अपनी मातृभूमि की रक्षा, स्वच्छता की रक्षा, और न्याय की प्रणाली का पालन शामिल है।

एक भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकारों की परिभाषा कहती है कि ये सभी नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकार हैं, जिन्हें संविधान के भाग III में परिभाषित किया गया है। इन अधिकारों का पालन करने का हक सभी नागरिकों को बिना किसी नस्ल, जन्म स्थान, धर्म, जाति, पंथ, या लिंग के भेदभाव के बिना है। ये अधिकार विशिष्ट प्रतिबंधों के अधीन होते हैं और अदालतों द्वारा प्रबंधित किए जा सकते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार, इन महत्वपूर्ण अधिकारों में से कुछ निम्नलिखित हैं।

  • समानता का अधिकार (Right to Equality): यह अधिकार सभी नागरिकों को किसी भी दिक्कत के आधार पर विचारित करने, समानता के साथ आपसी सम्बन्ध बनाए रखने, और समान अवसरों की सुनिश्चित करने का हक प्रदान करता है।
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom): इसमें भाषण, स्वतंत्रता, समाचार और जानकारी का हक, एकता में सभी के साथ होने का हक, और अन्य मुक्तियों को शामिल हैं।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation): यह अधिकार मानव तस्करी और बच्चों के उपहार में प्रतिबंधिति और श्रमिकों की गुलामी के खिलाफ है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion): इसके तहत, प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का चयन करने, अपने धर्म का प्रचार करने, और धार्मिक प्रथाओं का पालन करने का हक है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights): इसमें नागरिकों को अपनी भाषा, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा का हक है, जिससे विभिन्न समृद्धि जोनों को सही से बढ़ावा मिले।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies): यह अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल करने का हक प्रदान करता है।

एक भारतीय के जीवन में मौलिक कर्तव्य

इन्हें देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने और भारत की एकता को बनाए रखने और व्यक्तियों और राष्ट्र की चिंता करने में मदद करने के लिए सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग IVA में शामिल, निदेशक सिद्धांतों की तरह, वे कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं। आइए संविधान के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा पालन किए जाने वाले कर्तव्यों पर निम्नलिखित जानकारी पर एक नजर डालें:

  • संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना: नागरिकों का संविधान के प्रति समर्पण और इसके आदर्शों, ध्वज, और राष्ट्रगान के प्रति समर्पित रहना।
  • उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया: स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं और क्रांतिकारियों के उदाहरणों से प्रेरणा लेना और उनके मूल्यों का समर्पण करना।
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना: राष्ट्र के एकता में योगदान करना और भारतीय समाज को एक संपर्कशील और सामरिक शक्ति के रूप में बनाए रखने का धरोहर सांजिधान करना।
  • देश की रक्षा करना और बुलाए जाने पर देश की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना: राष्ट्र की सुरक्षा में सकारात्मक योगदान देना और आवश्यकता पर राष्ट्रीय सेवा में सामिल होना।
  • भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना: समाज में अवसाद, भेदभाव, और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करना और सभी के साथ सद्भावपूर्ण संबंध बनाए रखना।
  • देश की मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना: भारतीय संस्कृति, भाषा, और विरासत की सुरक्षा और समृद्धि में योगदान करना।
  • जंगलों, झीलों, नदियों, वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना: प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना, पर्यावरण संरक्षण में सहायक होना।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद तथा जिज्ञासा एवं सुधार की भावना का विकास करना: वैज्ञानिक अनुसंधान, मानविकी, और सुधार के क्षेत्र में योगदान करना और जिज्ञासा बनाए रखना।
  • सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना: सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए हिंसा का त्याग करना।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना: स्वयं को और अपने समुदाय को उन्नति की दिशा में प्रेरित करना और राष्ट्र को एक विकसित और समृद्ध देश में बनाए रखने के लिए सहयोग करना।
  • माता-पिता या अभिभावक कौन है, उसे छह से चौदह वर्ष की आयु के अपने बच्चे या, जैसा भी मामला हो, प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करना: शिक्षा के महत्व को समझना और अपने बच्चों को उच्च शिक्षा का अवसर प्रदान करने के लिए काम करना।
  • 2002 में 86वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार, यह भारत के लोगों का कर्तव्य है कि वे भारत को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाएं, स्वच्छ रहें और आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाएं और किसी को शारीरिक और मानसिक रूप से चोट न पहुंचाएं: अपने आसपास के स्थान को सुरक्षित और स्वच्छ बनाए रखना और अपने आत्मनिर्भरता और अनुकूलता का समर्थन करना।

मौलिक अधिकारों के बारे में

ये अधिकार मानवाधिकारों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां आपकी जानकारी को और बढ़ाने के लिए कुछ और विवरण हैं:

  • समानता का अधिकार (Right to Equality): इस अधिकार के तहत, सभी नागरिकों को धर्म, लिंग, जाति, या किसी अन्य कारण से भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता है। इसमें समान अधिकार, समान सामाजिक और नागरिक अधिकार, और औरों के साथ समानता का हक शामिल है।
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom): यह अधिकार नागरिकों को भाषण, अभिव्यक्ति, सभा, संघर्ष, और आजादी से अन्य कई क्षेत्रों में स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation): इसमें मानव तस्करी के खिलाफ होने वाले अधिकार शामिल हैं, जो व्यक्तियों को बचाने का प्रयास करता है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion): इसके तहत, सभी नागरिकों को अपने धर्म का अनुष्ठान करने, बदलने और प्रचार करने का अधिकार है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights): यह अधिकार भारतीय सांस्कृतिक और भाषा की सुरक्षा, और सभी नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies): इसके तहत, नागरिकों को संविधानीय उपचार की गारंटी है यदि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

ये मौलिक अधिकार संविधान के तहत भारतीय नागरिकों को सशक्त करने, सुरक्षित रखने, और समृद्धि में सहायक होने के लिए हैं।

मौलिक कर्तव्यों के बारे में

ये कर्तव्य भारतीय नागरिकों के द्वारा पूरा किया जाने वाले जिम्मेदारियों को दर्शाते हैं और समृद्धि में सहायक होने के लिए हैं। इन कर्तव्यों के पालन से समाज में सद्भाव, सामूहिक उत्कृष्टता, और राष्ट्र की सुरक्षा को मजबूती मिलती है।

दिए गए 11 मौलिक कर्तव्यों को इस प्रकार से है:

  • भारतीय संविधान का पालन करें और इसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें: संविधान और राष्ट्रीय संपत्ति का सम्मान करना राष्ट्रभक्ति की भावना को बढ़ावा देता है।
  • महान आदर्शों का पालन करें जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया: इससे आदर्शों की महत्वपूर्णता और उनके योगदान को मान्यता मिलती है।
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखें और उसकी रक्षा करें: यह सामाजिक और राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देता है।
  • देश की रक्षा करें और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करें: इससे सुरक्षा बढ़ती है और राष्ट्र का समृद्धि में योगदान होता है।
  • भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना: सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है और विभिन्न समृद्धि जोनों को एक साथ लाने में मदद करता है।
  • देश की मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व दें और उसका संरक्षण करें: भारतीय सांस्कृतिक और विरासत की महत्वपूर्णता को बढ़ावा देता है।
  • प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करें और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखें: यह जागरूकता फैलाने में मदद करता है और पर्यावरण संरक्षण में योगदान करता है।
  • वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद तथा जिज्ञासा एवं सुधार की भावना का विकास करें: इससे विज्ञान और मानवता की समझ में सुधार होती है।
  • सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें: सार्वजनिक संपत्ति का ध्यान रखना समृद्धि में सहायक होता है।
  • राष्ट्र के विकास के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करें: सभी क्षेत्रों में योगदान से राष्ट्र का विकास होता है।
  • छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के उसके बच्चे या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करें: शिक्षा का महत्वपूर्ण होना और बच्चों को उच्चतम शिक्षा तक पहुंचाना राष्ट्र के विकास में मदद करता है।

निष्कर्ष 

भारतीय संविधान ने नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार बनाया है। ये मौलिक अधिकार नस्ल, जन्म स्थान, धर्म, जाति, पंथ, और लिंग के आधार पर नहीं बल्कि सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का हक देते हैं। साथ ही, नागरिकों को देशभक्ति, सामाजिक एकता, और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने के लिए कई कर्तव्यों का पालन करने का भी कर्तव्य है। इन मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करना समृद्धि, समाजिक समृद्धि, और राष्ट्रिय विकास में सहायक होता है। मौलिक अधिकार और कर्तव्य

भारतीय संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है, जिसने देश के नागरिकों के अधिकार, कर्तव्य, और राजनीतिक प्रणाली को स्थापित किया है।

मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में निहित बुनियादी मानवाधिकार हैं, जैसे समानता, स्वतंत्रता, और शोषण के खिलाफ हक।

मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में उल्लेखित कई कर्तव्य हैं, जैसे देशभक्ति, एकता की रक्षा, और सामाजिक समृद्धि के लिए योजना बनाएं।

स्वतंत्रता के अधिकार में भाषण, अभिव्यक्ति, सभा, संगठन, और रहने की स्वतंत्रता शामिल है।

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था।

भारतीय संविधान में कुल 470 अनुच्छेद हैं।

मौलिक अधिकार नागरिकों को उनके अधिकारों की सुरक्षा और समानता की भावना प्रदान करते हैं।

राष्ट्रीय सेवा में योगदान देने के लिए व्यक्ति को विभिन्न परीक्षाओं के माध्यम से चयन किया जाता है।

संवैधानिक उपचारों का मतलब है कि यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो व्यक्ति उचित उपायों की तलाश में सुनिश्चित न्याय प्राप्त कर सकता है।

भारतीय संविधान में दो भाषाएं, अंग्रेजी और हिंदी, रोमन लिपि में लिखी गई हैं।

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fundamental duties essay in hindi

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7 Feb 2024 3:30 AM GMT

Fundamental Duties : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-ए के अनुसार

भारतीय संविधान एक सुप्रीम कानून है जो भारत के नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों को निर्धारित करता है। मौलिक कर्तव्य भी इसी संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो नागरिकों को राष्ट्रभक्ति और सामाजिक संबंधों में यथाशक्ति योगदान करने का कर्तव्य देता है।

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties) क्या हैं:

मौलिक कर्तव्य वह उत्तरदाताओं की श्रेणी है जो संविधान द्वारा निर्दिष्ट किए गए हैं और जिन्हें हर नागरिक को अपनाना चाहिए। ये कर्तव्य सामाजिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखते हैं ताकि समृद्धि और सामरिक समृद्धि में योगदान किया जा सके।

मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान से प्रेरित है (erstwhile Soviet Union). इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था। मूल रूप से 10 की संख्या में, 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और शुल्क जोड़ा गया था। वे कानून और नीतियां बनाते समय विधायिका के लिए दिशा-निर्देशों के रूप में भी कार्य करते हैं।

प्रत्येक भारतीय नागरिक द्वारा अनुच्छेद 51-ए के तहत 11 मौलिक कर्तव्यों की सूची नीचे दी गई तालिका में दी गई हैः

1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।

2. स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।

3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।

4. देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।

5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं

6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।

7. प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते हैं, रक्षा करें और संवर्द्धन करें त्तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें

8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।

9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।

10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

11. 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्त्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।

मौलिक कर्तव्यों का पालन करने से समाज में सशक्त, सामरिक और नैतिक समृद्धि होती है। इन कर्तव्यों का पालन करने से समाज में एक गहरा समर्पण एवं सजीव समर्थन का संवाद बना रहता है।

सुप्रीम कोर्ट के रंगनाथ मिश्रा निर्णय (2003) में कहा गया कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों द्वारा बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिए।

एम्स छात्र संघ बनाम एम्स 2001 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों के समान ही महत्वपूर्ण हैं।

इस प्रकार, मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान के साथी हैं जो नागरिकों को एक एकत्रित, समृद्धि शील और समृद्धिसाधक समाज की दिशा में अग्रणी बनाने का कार्य करते हैं।

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Maulik kartavya Wednesday 28th of August 2024

Maulik kartavya,1976 में संविधान में 42वां संशोधन करते समय संविधान के चतुर्थ भाग के बाद भाग चतुर्थ क जोड़ा गया, जिसमें नागरिकों के लिए 10 मूल कर्तव्यों.मौलिक कर्तव्य से जुड़ी अति महत्वपूर्ण जानकारियां और उससे संबंधित सामान्य ज्ञान से जुड़ी बातें, fundamental duties in hindi,fundamental duties of india,duties of indian citizen,how many fundamental duties,fundamental duties pdf,11 fundamental duties,molik kartavya. Maulik kartavya सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन 1976 ईस्वी के द्वारा मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया इसे रूस के संविधान से लिया गया है।

Maulik kartavya मौलिक कर्तव्य

Maulik kartavya (मौलिक कर्तव्य).

1950 में लागू भारतीय संविधान में नागरिकों के केवल मूल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था, मूल कर्तव्यों का नहीं। लेकिन 1976 में संविधान में 42वां संशोधन करते समय संविधान के चतुर्थ भाग के बाद भाग "चतुर्थ क" जोड़ा गया, जिसमें नागरिकों के लिए 10 मूल कर्तव्यों की व्यवस्था की गई। वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के बाद मूल कर्तव्यों की संख्या 11 हो गई है इसे भाग 4 क में अनुच्छेद 51 क के तहत रखा गया है।जो इस प्रकार है।

1-प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।

2-स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।

3-भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें।

4-देश की रक्षा करें।

5-भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें।

6-हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परीक्षण करें।

7-प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करें।

8-वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करें।

9-सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें।

10-व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें।

11-माता पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना। (86 वां संशोधन द्वारा जोड़ा गया)

और अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें....

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मौलिक कर्तव्य

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties) का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 (क) एवं भाग 4 (क) में किया गया हैं। वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है, अर्थात 11 मौलिक कर्तव्य है जिनका पालन करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य हैं। मौलिक कर्तव्यों में उन समस्त बातों को जोड़ा गया है जो राष्ट्र की भावना एवं संप्रभुता को बढ़ावा देते हैं।

मौलिक कर्तव्यों के निर्माण के पीछे यह उद्देश्य है कि प्रत्येक नागरिकों को यह एहसास कराया जाए कि सर्वप्रथम राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं संप्रभुता है, अर्थात प्रत्येक कार्य एवं प्रत्येक लक्ष्य के आगे राष्ट्रहित होना चाहिए। भारतीय मौलिक कर्तव्यों में संविधान का पालन करना, तिरंगे का सम्मान, राष्ट्रगान के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखना एवं सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने जैसे विचारों को सम्मिलित किया गया हैं।

तो आइए जानते है कि मौलिक कर्तव्य क्या हैं (What is Fundamental Duties) और हमारे कौन-कौन से मौलिक कर्तव्य हैं।

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties) क्या हैं?

भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों हेतु 11 मौलिक कर्तव्यों का निर्माण किया गया है जिसे प्रत्येक नागरिक द्वारा मानना अनिवार्य हैं। मौलिक कर्तव्यों को 42 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में अंगीकार किया गया। इसकी संरचना का निर्माण रूस की संरचना के आधार पर किया गया हैं। सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर इसकी संरचना निर्धारित की गई हैं।

प्रारंभ में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी। जिसके बाद 11 वें कर्तव्य को भारतीय संविधान के 86 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ा गया। तो आइए जानते है कि हमारे 11 मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं-

1. प्रथम कर्तव्य यह है कि समस्त भारतीय नागरिकों को संविधान का आदर-सम्मान करना होगा और साथ ही उसको सर्वमान्य मानकर उसका पालन करना होगा और इसके साथ ही तिरंगा व राष्ट्रगान का आदर-सम्मान करना।

2. जिन गौरवपूर्ण व्यक्तियों के कार्यों ने हमें आजादी दिलवाई एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिन्होंने अपना बलिदान दिया उनका आदर व सम्मान करना।

3. राष्ट्र की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना और उसका आदर एवं गौरवपूर्ण सम्मान करना।

4. राष्ट्र की विचारधारा और राष्ट्र के आदर्श मूल्यों की रक्षा करना।

5. भारतीय संस्कृति का संरक्षण कर उसे बढ़ावा देना।

6. प्रत्येक नागरिकों को एकसमान आदर एवं सम्मान देना एवं उसको प्राप्त अधिकारों का सम्मान करना।

7. प्राकृतिक संपदा का संरक्षण करना और उसकी वृद्धि हेतु अनेको प्रयत्न करना।

8. वैज्ञानिक मानदंडों को अपनाना और राष्ट्र के विकास हेतु नवीन ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि करना।

9. भारतीय सार्वजनिक संपत्ति की प्रत्येक परिस्थिति में रक्षा करना उसे हानि न पहचाना।

10. राष्ट्र के विकास हेतु सामाजिक कार्यो में अपना योगदान देना।

11. यह प्रत्येक माता-पिता का उत्तरदायित्व होगा कि वह अपने बच्चो को प्राथमिक निःशुल्क शिक्षा (6 से 14 वर्ष) प्रदान करवाए।

इन समस्त मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties) को प्रत्येक नागरिक के पालन करने हेतु प्रावधान किया गया हैं। इन समस्त कर्तव्यों को आदर-सम्मान एवं इन्हें अपना उत्तरदायित्व समझकर इनका पालन करना अनिवार्य घोषित किया गया हैं।

दोस्तों आज आपने जाना कि मौलिक कर्तव्य क्या है और कितने हैं? अगर आपको हमारी यह पोस्ट अच्छी और ज्ञानवर्द्धक लगी हो तो इसे अपने मित्रो के साथ भी सांझा करें। जिससे वह भी राष्ट्र के प्रति अपने उत्ततदायित्वो को समझकर उसका पालन करें।

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18 thoughts on “मौलिक कर्तव्य”.

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Jai hind dost

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Thank you brother

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I have a sociology question … Can you give me answer??

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yes nikita ask.

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Nice brother

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Sir ap bhut ache se simple vakya bnate h jese jada smj aata h . Sir ap jada material bnaya kro . Apke website se pdna bhut acha lgta h ap isi trha simple words bnate rhana .

सुरुचि आपके इस सुझाव से हमें अति प्रशन्नता हुई।

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आपका यह मौलिक कर्तव्य की जानकारी लोगों तक पहुंचाना आपका अत्यंत सराहनीय कार्य है इससे एक अच्छे राष्ट्र निर्माण के लिए मौलिक कर्तव्य की जानकारी एवं उनका सम्मान करना निश्चय ही राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए आपको हृदय से बहुत-बहुत आभार।

apka dhanywad anil

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nyc information

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Nicely explained👍🏻

Nicely explained👍🏻. Thank you

Saniya apka dhanywad..

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दा इंडियन वायर

नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य पर निबंध

fundamental duties essay in hindi

By विकास सिंह

fundamental rights and duties essay in hindi

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ इसके नागरिक स्वतंत्र रूप से रहते हैं लेकिन उनके देश के प्रति उनके बहुत सारे अधिकार और जिम्मेदारियाँ (rights and duties) हैं। अधिकार और जिम्मेदारियां एक सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों पक्ष साथ-साथ चलते हैं। यदि हमारे अधिकार हैं, तो हमारे पास उनकी जिम्मेदारियां भी होनी चाहिए। अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ हमारे साथ होती हैं जहाँ हम घर, समाज, गाँव, राज्य या देश में रहते हैं।

नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य पर निबंध (100 शब्द)

नागरिक वह व्यक्ति है जो राज्य और देश के किसी भी गांव या शहर में एक निवासी के रूप में रहता है। हम सभी अपने देश के नागरिक हैं और हमारे गांव, शहर, समाज, राज्य और देश के प्रति विभिन्न अधिकार और जिम्मेदारियां हैं। प्रत्येक नागरिक के अधिकार और कर्तव्य बहुत मूल्यवान और अंतर-संबंधित हैं।

प्रत्येक राज्य या देश अपने नागरिकों को कुछ मौलिक नागरिक अधिकार प्रदान करता है जैसे कि व्यक्तिगत अधिकार, धार्मिक अधिकार, सामाजिक अधिकार, नैतिक अधिकार, आर्थिक अधिकार और राजनीतिक अधिकार। देश के नागरिक के रूप में हमें नैतिक और कानूनी रूप से अपने कर्तव्यों को हमेशा एक साथ पूरा करने की आवश्यकता है।

हमें एक दूसरे से प्यार और सम्मान करना चाहिए और बिना किसी अंतर के साथ रहना चाहिए। हमें अपने देश की रक्षा के लिए समय-समय पर बलिदान की उम्मीद है।

150 शब्द:

देश में रहने वाले नागरिकों को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को जानना चाहिए। सरकार द्वारा प्रस्तुत सभी नियमों और विनियमन को समझने से प्रत्येक नागरिक को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में मदद मिल सकती है। हमें अपने स्वयं के कल्याण और देश में स्वतंत्रता के साथ-साथ समुदायों और देश के लिए अपने अधिकारों को समझना चाहिए।

भारत का संविधान (जिसे भारत का सर्वोच्च कानून कहा जाता है) 26 जनवरी को 1950 में लागू हुआ जिसने भारतीय नागरिक को लोकतांत्रिक अधिकार दिए हैं। भारतीय संविधान के अनुसार, भारत के लोगों के पास विभिन्न अधिकार और जिम्मेदारियां हैं।

भारतीय नागरिकों के लगभग छह मौलिक अधिकार हैं जिनके बिना कोई भी लोकतांत्रिक तरीके से नहीं रह सकता है। मतलब, देश में लोकतंत्र तभी काम कर सकता है, जब उसके नागरिकों के अधिकार हों। इस तरह के अधिकार सरकार को तानाशाही और क्रूर होने से रोकते हैं।

मौलिक अधिकार लोगों को उनके नैतिक, भौतिक और व्यक्तित्व विकास में मदद करते हैं। किसी के अधिकारों के उल्लंघन के मामले में, अदालतें उनकी रक्षा और सुरक्षा कर सकती हैं। देश की शांति और समृद्धि के लिए कुछ मूलभूत जिम्मेदारियां भी हैं।

200 शब्द:

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भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को उनकी प्रगति के लिए अच्छे जीवन की बुनियादी और आवश्यक शर्तों के लिए उन्हें दिया जाता है। ऐसे अधिकारों के बिना कोई भी भारतीय नागरिक अपने व्यक्तित्व और आत्मविश्वास को विकसित नहीं कर सकता है। ये मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में संरक्षित हैं।

मौलिक अधिकारों द्वारा नागरिकों को मौलिक अधिकारों की रक्षा और गारंटी दी जाती है जबकि सामान्य कानून द्वारा सामान्य अधिकारों को। नागरिकों के मौलिक अधिकार सामान्य स्थिति में हिंसक नहीं हैं, हालांकि कुछ उचित परिस्थितियों में उन्हें निलंबित किया जा सकता है लेकिन अस्थायी रूप से।

भारतीय संविधान के अनुसार छह मौलिक अधिकार समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 – अनुच्छेद 18), धर्म का अधिकार (अनुच्छेद 25 – अनुच्छेद 28), शोषण के खिलाफ अधिकार (अनुच्छेद 23 – अनुच्छेद 24), संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29) – अनुच्छेद 30), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 – अनुच्छेद 22), और संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)।

देश में कहीं भी रहने वाले नागरिक अपने मौलिक अधिकारों का आनंद लेते हैं। वह / वह कानूनी सहायता के लिए अदालत में जा सकती है यदि उसके अधिकारों का बल द्वारा उल्लंघन किया जाता है। अच्छे नागरिकों के लिए विभिन्न जिम्मेदारियाँ भी होती हैं जिनका हर किसी को पालन करना चाहिए ताकि परिवेश में सुधार हो और आंतरिक शांति प्राप्त हो।

देश के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह देश के लिए स्वामित्व की भावना देता है। देश का एक अच्छा नागरिक होने के नाते, हमें बिजली, पानी, प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक संपत्ति आदि को बर्बाद नहीं करना चाहिए, हमें सभी नियमों और कानूनों का पालन करना चाहिए और साथ ही समय पर कर का भुगतान करना चाहिए।

250 शब्द:

भारतीय नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार संविधान का अनिवार्य हिस्सा हैं। ऐसे मौलिक अधिकारों को संसद द्वारा विशेष प्रक्रिया का उपयोग करके बदला जा सकता है। भारतीय नागरिक के अलावा किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रता, जीवन और व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार के अलावा ऐसे अधिकारों का आनंद लेने की अनुमति नहीं है।

जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकार आपातकाल के समय निलंबित किए जा सकते हैं। यदि किसी नागरिक को अपने अधिकारों का उल्लंघन करते हुए पाया गया तो वह प्रवर्तन के लिए अदालत (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) जा सकता है।

कुछ मौलिक अधिकार प्रकृति में सकारात्मक या नकारात्मक हैं और हमेशा सामान्य कानूनों से बेहतर बनते हैं। कुछ मौलिक अधिकार जैसे बोलने की स्वतंत्रता, सभा, सांस्कृतिक अधिकार और शैक्षिक अधिकार केवल नागरिकों तक सीमित हैं।

1950 में लागू होने के बाद भारत के संविधान में कोई मौलिक कर्तव्य संरक्षित नहीं थे। हालांकि, 1976 में भारत के संविधान के 42 वें संशोधन में दस मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51 ए द्वारा कवर) को जोड़ा गया था। निम्नलिखित मौलिक जिम्मेदारियां हैं भारतीय नागरिकों की:

  • भारतीय नागरिक को अपने राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए।
  • उन्हें स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में इस्तेमाल किए गए सभी महान आदर्शों का सम्मान, मूल्य और पालन करना चाहिए।
  • उन्हें देश की शक्ति, एकता और अखंडता की रक्षा करनी होगी।
  • वे देश की रक्षा करते हैं और सामान्य भाईचारे की भावना को बनाए रखते हैं।
  • उन्हें सांस्कृतिक विरासत स्थलों की रक्षा और संरक्षण करना चाहिए।
  • उन्हें प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा, संरक्षण और सुधार करना होगा।
  • उन्हें सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए।
  • उन्हें वैज्ञानिक स्वभाव और जांच की भावना विकसित करनी चाहिए।
  • उन्हें व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

300 शब्द:

भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख 1976 में भारत के संविधान के 42 वें संशोधन में किया गया है। देश के महत्वपूर्ण हितों के लिए सभी जिम्मेदारियां बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं। वे नागरिक कर्तव्य या नैतिक कर्तव्य हो सकते हैं जो नागरिकों द्वारा अदालतों द्वारा भी कानूनी रूप से लागू नहीं किए जा सकते हैं।

एक को दंडित नहीं किया जा सकता है यदि वह अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है, क्योंकि इन कर्तव्यों को नियंत्रित करने वाला कोई कानूनी बल नहीं है। मौलिक कर्तव्य (समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार) भारतीय संविधान का अभिन्न अंग है जिसका भारतीय नागरिकों पर नैतिक प्रभाव और शिक्षात्मक मूल्य है।

देश की प्रगति, शांति और समृद्धि के लिए संविधान में ऐसी जिम्मेदारियों को शामिल करना महत्वपूर्ण है। भारत के संविधान में उल्लिखित कुछ मौलिक जिम्मेदारियां राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान के प्रति सम्मान की तरह हैं, नागरिकों को अपने देश की रक्षा करनी चाहिए, जब भी आवश्यकता हो, राष्ट्रीय सेवा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हों, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें, आदि ऐसे अधिकार और जिम्मेदारियां बहुत हैं देश के राष्ट्रीय हित के लिए महत्वपूर्ण हालांकि लोगों पर बलपूर्वक लागू नहीं किया गया है।

अधिकारों का पूरी तरह से आनंद लेने के लिए, लोगों को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाना चाहिए क्योंकि अधिकार और जिम्मेदारियां एक दूसरे से संबंधित हैं। जैसे-जैसे हमें अधिकार मिलते हैं, व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण के प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं। दोनों ही देश की समृद्धि के संबंध में वियोज्य और महत्वपूर्ण नहीं हैं।

देश के एक अच्छे नागरिक के रूप में, हमें अपने समाज और देश के कल्याण के लिए अपने सभी अधिकारों और कर्तव्यों को जानना और सीखना होगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि समाज की अच्छी या बुरी स्थिति के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। हमें अपने समाज और देश में कुछ सकारात्मक प्रभाव लाने के लिए अपनी सोच को कार्रवाई में बदलने की आवश्यकता है।

यदि किसी व्यक्ति द्वारा की गई व्यक्तिगत कार्रवाई जीवन को बदल सकती है; क्यों नहीं, हमारे सहयोगी कार्यों का समाज और देश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए, नागरिकों की ड्यूटी समाज और पूरे देश की समृद्धि और शांति के लिए बहुत मायने रखती है।

fundamental rights and duties essay in hindi (400 शब्द)

जैसा कि हम एक सामाजिक जानवर हैं, हमारे पास विकास के लिए बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं और साथ ही समाज और देश में समृद्धि और शांति लाते हैं। अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए हमने भारत के संविधान द्वारा कुछ अधिकार दिए हैं। नागरिकों को उनके व्यक्तिगत विकास और सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए अधिकार बहुत आवश्यक हैं।

देश की लोकतांत्रिक प्रणाली पूरी तरह से अपने नागरिकों को उनके अधिकारों का आनंद लेने की स्वतंत्रता पर आधारित है। हमारे संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है जिन्हें सामान्य समय में हमसे वापस नहीं लिया जा सकता है। हमारा संविधान हमें छह अधिकार देता है जैसे:

स्वतंत्रता का अधिकार: यह बहुत महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है जो लोगों को भाषण, लेखन या अन्य माध्यमों से अपने विचारों और विचारों को व्यक्त करने में सक्षम बनाता है। इस अधिकार के अनुसार, कोई भी व्यक्ति सरकारी नीतियों के खिलाफ आलोचना, आलोचना या बोलने के लिए स्वतंत्र है। वह देश के किसी भी कोने में किसी भी व्यवसाय को करने के लिए स्वतंत्र है।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार: देश में कई राज्य हैं जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म को पसंद करने, उसका प्रचार करने और उसका पालन करने के लिए स्वतंत्र है। किसी को भी किसी के विश्वास के साथ हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

समानता का अधिकार: भारत में रहने वाले नागरिक समान हैं और अमीर और गरीब या उच्च और निम्न के बीच कोई अंतर और भेदभाव नहीं है। किसी भी धर्म, जाति, पंथ, लिंग या स्थान का व्यक्ति सर्वोच्च पद प्राप्त कर सकता है जिसके लिए उसके पास योग्यता और आवश्यक योग्यताएं हों

शिक्षा और संस्कृति का अधिकार: प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अधिकार है और वह किसी भी स्तर तक किसी भी संस्थान में शिक्षा प्राप्त कर सकता है।

शोषण के विरूद्ध अधिकार: किसी को भी अधिकार नहीं है कि वह किसी को बिना मजदूरी के या उसकी इच्छा के विरुद्ध या 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ काम करने के लिए मजबूर कर सके।

संवैधानिक उपचार का अधिकार: यह सबसे महत्वपूर्ण है जो सभी मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों को किसी भी हालत में नुकसान पहुंचाया जा रहा है, तो वह न्याय मांगने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि कर्तव्य और अधिकार दोनों साथ-साथ चलते हैं। कर्तव्यों के बिना हमारे अधिकार निरर्थक हैं और इस प्रकार दोनों अविभाज्य हैं। यदि देश के सुचारू रूप से चलने के लिए हम अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन नहीं करते हैं तो हमें अधिकारों से लाभान्वित होने का अधिकार नहीं है।

देश के नागरिक होने के नाते, हमारी जिम्मेदारियां और कर्तव्य निम्न हैं:

  • हमें राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करना चाहिए।
  • हमें अपने देश के कानूनों का सम्मान और पालन करना चाहिए।
  • हमें स्वतंत्रता और दूसरों के अधिकारों के हस्तक्षेप के बिना सीमा के तहत अधिकारों और स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहिए।
  • जब भी आवश्यकता हो हमें अपने देश की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • हमें राष्ट्रीय संपत्ति और सार्वजनिक संपत्ति (जैसे रेलवे, डाकघर, पुल, रोडवेज, स्कूल, कॉलेज, ऐतिहासिक इमारतें, स्थान, जंगल, आदि) का सम्मान और सुरक्षा करनी चाहिए।
  • हमें अपने करों का भुगतान ईमानदारी के साथ समय पर करना चाहिए।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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मौलिक कर्त्तव्य | Fundamental Duties in Hindi

मौलिक कर्त्तव्य (fundamental duties upsc in hindi).

वर्ष 1976 में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42 वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया। इसके अंतर्गत संविधान में एक नया भाग IV को जोड़ा गया। संविधान के इस नए भाग IV में अनुच्छेद 51 क जोड़ा गया, जिसमें 10 मौलिक कर्त्तव्यों को रखा गया था। वर्ष 2002 में 86 वें संविधान संशोधन द्वारा भाग IV में एक और मौलिक कर्त्तव्य को जोड़ा गया।

प्रारंभ में मौलिक कर्तव्यों  ( Fundamental Duties)   की संख्या 10 थी। वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है, जिनका पालन करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्त व्य हैं।

भाग  IV   —   51  क   —   मौलिक कर्तव्य  ( Fundamental Duties) — भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा -

  • संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों , संस्थाओं , राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
  • स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
  • भारत की संप्रभुता , एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
  • देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  • भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म , भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो , ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  • हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  • प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन , झील , नदी और वन्य जीव आते हैं , रक्षा करें और संवर्द्धन करें त्तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  • सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  • 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्त्तव्य 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 2002 द्वारा जोड़ा गया।

प्रश्न & उत्तर

Q. 11 मौलिक कर्तव्य संविधान में कब शामिल किया गया?

A. वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा भाग IV में 11 मौलिक कर्त्तव्य को जोड़ा गया।

Q. भारतीय संविधान में कितने मौलिक कर्तव्य है?

A. भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य है.

Q. भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य कब जोड़ा गया?

A. वर्ष 1976 में 10 मौलिक कर्त्तव्यों को और वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा एक और मौलिक कर्त्तव्य को जोड़ा गया।

Q. 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान में कुल कितने मौलिक कर्तव्य थे?

A. 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य एक भी नहीं थे.

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1 टिप्पणी:

netik adhopatan kya hai iski paribhasha khi likhi ho to ya cirkular jari hua ho to

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fundamental duties essay in hindi

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भारतीय नागरिक के मौलिक कर्त्तव्य। (Fundamental Duties of Indian Citizen in Hindi.)

किसी ज्ञानवान पुरुष द्वारा यह कहा गया है की “महान शक्तियों के साथ ही बड़ी जिम्मेदारियाँ भी आती हैं”, इसी प्रकार से हमारे भारत के संविधान के द्वारा जैसे अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार (आम नागरिक के हाथों में स्वतंत्रता और सशक्तता की शक्तियाँ प्रदान करना) प्रदान की गयी है ठीक वैसे ही संविधान ने उन्हें मौलिक कर्त्तव्य (आम नागरिकों की अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियाँ) भी प्रदान कियें हैं, जो की संविधान में “भारतीय नागरिक के मौलिक कर्त्तव्य (Bhartiya Nagrik ke Maulik Kartavya)” के नाम से अंकित है।

भारतीय नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य सहसंबद्ध और अविभाज्य हैं क्यूंकि अधिकार स्वयं कर्तव्यों की श्रृंखला का सृजन करता है। जिस प्रकार से हम अपने देश में अधिकारों का उपयोग करतें हैं ठीक उसी प्रकार हमे अपने देश के प्रति कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए। 

bhartiya nagrik ke maulik kartavya

मूलतः संविधान के निर्माताओं ने मौलिक कर्त्तव्य को संविधान में अंकित नहीं किए थें क्योंकि उन्होंने इसकी आवश्यकता नहीं समझी लेकिन 1975-77 में आतंरिक आपातकाल के दौरान सरकार ने इसकी महत्ता को समझने के लिए एक समिति का गठन किया, जिसका नाम ‘स्वर्ण सिंह समिति’ था और इसी समिति के द्वारा मौलिक कर्तव्यों के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें दी गयी और इस समिति ने इस बात पर जोर दिया कि नागरिकों को जागरूक होना चाहिए कि अधिकारों के आनंद के अलावा, उनके कुछ कर्तव्यों का भी पालन करना है।

सरकार ने स्वर्ण सिंह समिति की मौलिक कर्तव्यों के प्रति सिफारिशें जानने के बाद, Maulik Kartavya को संविधान का हिस्सा बनाने के लिए सन 1976 में 42वां संविधान संशोधन अधिनियमित किया और इस संसोधन ने संविधान में एक नए भाग ‘भाग IV ए’ को जोड़ा, जहाँ ‘अन्नुछेद 51ए’ के भीतर भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य को वृस्तृत किया गया है।

और पढ़ें:- भारत में खाद्य सुरक्षा का महत्व।

Table of Contents

मौलिक कर्त्तव्य क्या होतें है ?

भारतीय Maulik Kartavya नागरिकों को अपने देश, समाज, संविधान, सम्प्रभुत्ता, एकता, राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज, स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान का ज्ञात करवाती है और नागरिकों के भीतर अपने देश के प्रति देशभक्ति का सृजन करती है। मौलिक कर्त्तव्य देश के सभी नागरिकों को माननी चाहिए क्यूंकि हमारी पहचान हमारे देश से है और हमारा कर्त्तव्य ही हमारे भारत को महान बनाता है और साथ ही देश के लिए हमारे भीतर समर्पण की भावना भी उत्पन्न करता है।

संविधान में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ने की प्रेरणा भारत ने यु.एस.एस.आर (रूस) के संविधान से ली है और भारतीय संविधान में Maulik Kartavya ‘भाग IVए के अन्नुछेद 51ए’ में वृस्तृत किये गएँ हैं, जो की निम्नलिखित हैं:-

  • सभी भारतीय नागरिकों को संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए।
  • स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों के महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना हर एक नागरिक का कर्त्तव्य है।
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने में अपना सहयोग प्रदान करना और उसकी रक्षा करने के लिए तत्पर रहना।
  • अपने देश की रक्षा करना और ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करने में अपने भागीदारी देना।
  • भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय या विविधताओं के बीच सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना और महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
  • भारत की समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना भी सभी भारतीय नागरिक के कर्त्तव्य हैं।
  • वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना देश के नागरिकों के कर्त्तव्य के साथ नैतिकता की भावना को दर्शाता है।
  • भारत में वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद, पूछताछ और सुधार की भावना विकसित करना।
  • देश की सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा को समाप्त करना भी नागरिकों का परम कर्त्तव्य है। 
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र लगातार प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर की ओर बढ़ता जाए।

मूलतः संविधान में Maulik Kartavya को जोड़ते वक़्त केवल 10 कर्त्तव्य ही भारत के नागरिकों को सौपें गएँ थें लेकिन सन 2002 में 86वां संविधान संसोधन अधिनियम के जरिये मौलिक कर्तव्यों में 11वां कर्तव्य को जोड़ा गया।

  • भारत नागरिक अथवा अभिभावक अपने छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चे या प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करें।

हमारे संविधान के द्वारा प्रदान किये गए इन सभी मौलिक कर्तव्यों के प्रति देश के हर एक नागरिक को निष्ठावान और ईमानदार रहना चाहिए क्यूंकि अगर हम अपने मूल अधिकारों के लिए लड़ सकतें हैं तो देश के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने में भी पीछे नहीं हटना है। हमे देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना होगा क्यूंकि भारत में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हे देश के नागरिक होने के बावजूद उन्हें अपने देश के प्रति कर्तव्यों के बारे में पता नहीं होता है।

और पढ़ें:- बच्चों में गेमिंग की लत का प्रभाव।

मौलिक कर्तव्यों का महत्व।

भारतीय संविधान में मूलतः मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान निर्माणकर्ताओं द्वारा शामिल नहीं किया गया था क्यूंकि उन्होंने इसकी जरुरत को महसूस नहीं किया लेकिन तीन दसक के बाद सरकार ने इसके महत्व को समझने के लिए समिति का गठन किया, जिसके बाद सरकार ने समिति की सिफारिशों पर मौलिक कर्त्तव्यों को भारतीय नागरिकों को सौंपना महत्त्वपूर्ण समझा। इसकी महत्व समस्त देशवासियों के मन में देशप्रेम को और बढ़ाएगा।

  • Maulik Kartavya समस्त नागरिकों को देश के प्रति उनकी जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करती है और उन्हें उनके कर्तव्यों का स्मरण करवाती है।
  • Maulik Kartavya नागरिकों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करती हैं और उनमें अनुशासन, भाईचारा और प्रतिबद्धता की भावना को बढाती हैं।
  • Maulik Kartavya भारत की प्रतिष्ठा की सुरक्षा को बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय ध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने आदि जैसी राष्ट्रविरोधी और असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करती हैं।
  • Maulik Kartavya कानून द्वारा प्रवर्तनीय हैं। इसलिए संसद उनमें से किसी को भी पूरा करने में विफलता के लिए उचित जुर्माना या दंड लगाने का प्रावधान कर सकती है।

और पढ़ें:- भारत में इ-कचरा प्रबंधन।

हमे गर्व करना चाहिए की हम भारत जैसे देश के नागरिक हैं, जहाँ कर्त्तव्य को श्रेष्ठ माना जाता है और गीता के श्लोक भी हमे हमारे कर्तव्यों पर ध्यान देने की बात करतें हैं जिसमे लिखा है की ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, अगर हम अपने कर्तव्यों को पूरा करेंगे तभी हम अपने अधिकारों को प्राप्त करने के काबिल हैं।

ऐसे ही हमारे देश के संविधान ने भी अपने नागरिकों को मूल अधिकारों के साथ कुछ कर्तव्यों का भी निष्पादन करने की आशा की है कयुँकि हमारा देश हमारे कर्तव्यों से समृद्ध राष्ट्र बनता है। इसलिए, देश के प्रति हर एक नागरिक अपनी देशभक्ति का प्रमाण अपने मूल कर्तव्यों को निभाकर दे सकता है।

दोस्तों, अगर आप अपने देश और समाज से सम्बंधित ऐसे और भी लेख पढ़ना चाहतें हैं तो, यहाँ क्लिक करके पढ़ सकतें हैं। 

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मौलिक कर्तव्यों पर निबंध | Essay on Fundamental Duties of India in Hindi

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Essay on Fundamental Duties of India in Hindi:भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्य संविधान का एक अभिन्न अंग हैं। मौलिक कर्तव्य देश के नागरिकों के लिए नैतिक रूप से दायित्वों का अनुमान लगाने का साधन हैं। देशभक्ति को बढ़ावा देने और भारत की संप्रभुता के उत्थान के लिए उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। ये कर्तव्य संविधान के 42वें और 86वें संशोधन में संविधान द्वारा प्रदान किए गए थे। कर्तव्यों का कोई कानूनी विवाद नहीं है, लेकिन प्रत्येक नागरिक द्वारा पालन किया जाना है। यहां एक लंबा निबंध है जिसमें एक भारतीय नागरिक के मौलिक कर्तव्यों से संबंधित हर चीज का उल्लेख है।

भारत के मौलिक कर्तव्यों पर लंबा निबंध

भारत के मौलिक कर्तव्य निबंध – 1250 शब्द.

भारत के नागरिक राज्य के भीतर लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए कुछ मौलिक अधिकारों का आनंद लेते हैं। लेकिन, जहां अधिकार आते हैं, वहां कुछ कर्तव्य हैं जो हमें अधिकारों का आनंद लेने की अनुमति देते हैं। इन्हें मौलिक कर्तव्यों के रूप में जाना जाता है। लोकतंत्र के एक भाग के रूप में लोग कुछ अधिकारों और स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं; दूसरी ओर, उन्हें देश के प्रति थोड़ा कर्तव्य निभाना चाहिए। इन कर्तव्यों का भारतीय नागरिकों द्वारा सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, लेकिन अनफॉलो करने से कोई नुकसान नहीं होगा। भारतीय संविधान के भाग IV A के तहत, मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख अनुच्छेद 51A में किया गया है।

इन कर्तव्यों को इस तरह समझा जा सकता है कि यदि राज्य या देश अपने नागरिकों को कुछ अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है, तो यह लोगों की जिम्मेदारी है कि वे राज्य के प्रति कुछ जिम्मेदारियों का ध्यान रखें और उनका पालन करें। ये मौलिक कर्तव्य नागरिकों को राष्ट्रीय प्रतीकों का ध्यान रखने और उनका पालन करने के लिए कहते हैं।

हमारे मौलिक कर्तव्य क्या हैं?

मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान के 42वें और 86वें संशोधन में शामिल किया गया था। चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक राज्य है, इसलिए देश के नागरिकों पर मौलिक कर्तव्यों को लागू नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन भारत के लोगों द्वारा इसका पालन किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख इस प्रकार है-

  • अनुच्छेद 51 (ए) (ए) नागरिक को राष्ट्रगान और ध्वज का सम्मान करने और भारत के संविधान को मजबूर करने के लिए कहता है।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (बी) नागरिक को स्वतंत्रता संग्राम के महान विचारों की पूजा करने और उनका पालन करने के लिए बाध्य करता है।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (सी) भारत के नागरिक को भारत की अखंडता, संप्रभुता और एकता की रक्षा करने के लिए कहता है।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (डी) कहता है, “देश की रक्षा करें और जब देश को इसकी आवश्यकता हो तो अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों को पूरा करें”।
  • प्रत्येक नागरिक को भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना चाहिए और अनुच्छेद 51 (ए) (ई) के तहत महिलाओं के खिलाफ सभी अपराधों का त्याग करना चाहिए।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (एफ) हमारी एकीकृत संस्कृति की समृद्ध राष्ट्रीय विरासत को संजोने और संरक्षित करने का आग्रह करता है।
  • नागरिकों को अनुच्छेद 51 (ए) (जी) के तहत झीलों, वन्य जीवन, नदियों, जंगलों आदि सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना चाहिए।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (एच) के अनुसार वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और शोध भावना का विकास करें।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (i) के अनुसार नागरिकों को सभी सार्वजनिक वस्तुओं की रक्षा करना आवश्यक है।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (जे) के अनुसार नागरिकों को सभी व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना चाहिए।
  • अनुच्छेद 51 (ए) (के) 6-14 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए शैक्षिक अवसर प्रदान करने का पालन करता है और माता-पिता के रूप में यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि ये अवसर उनके बच्चों को उपलब्ध हों।

मौलिक कर्तव्यों का इतिहास क्या है? (महत्व)

मौलिक कर्तव्यों को उस समय जोड़ा गया था जब भारतीय लोकतंत्र एक काले दौर से गुजर रहा था, आपातकाल। इसे स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता वाली 12 सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर लागू किया गया था। रिपोर्ट को ध्यान में रखा गया और 1976 में मौलिक कर्तव्यों को लागू किया गया, यह 42 . था रा संशोधन। मौलिक कर्तव्यों को जोड़ने का विचार संघ सोवियत समाजवादी गणराज्य के संविधान से लिया गया था। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 29(1) पर भी समिति की रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने पर विचार किया गया था।

पहले केवल 10 मौलिक कर्तव्य थे। 11 वां 86 . में कर्तव्य जोड़ा गया था वां 2002 में संविधान का संशोधन। न्यायमूर्ति वर्मा समिति की स्थापना की गई और इन कर्तव्यों को हर प्रकार के शैक्षणिक संस्थान में लागू करने के लिए कदम उठाया। यही कारण है कि छात्रों को हर सुबह राष्ट्रगान करना चाहिए।

क्या है NS मौलिक कर्तव्यों का महत्व?

यदि हम अपने कार्यों और कर्तव्यों को नहीं जानेंगे और उनका पालन नहीं करेंगे तो मौलिक कर्तव्य भी मौलिक अधिकारों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं। फिर, हमें अधिकार नहीं मांगना चाहिए। ये अधिकार न केवल नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते हैं बल्कि उन परिस्थितियों में देशभक्ति और सामाजिक मूल्यों के बारे में जानने में भी मदद करते हैं। इन कर्तव्यों से कोई कानूनी समस्या नहीं होगी लेकिन नागरिकों को पालन करने के लिए कहा जाता है। मौलिक कर्तव्यों के कुछ महत्वपूर्ण महत्व नीचे सूचीबद्ध हैं-

  • यह देश में निरक्षरता को कम कर सकता है।
  • प्रकृति को संरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में एक अच्छे पर्यावरण की गारंटी दी जा सके।
  • यह मौलिक अधिकारों का दावा करने की अनुमति देता है, किसी को अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए और इसकी अदालत में जांच की जाएगी। यदि कोई व्यक्ति अपने मूल कर्तव्यों को पूरा नहीं करता है, तो अपने मूल अधिकारों का दावा करना मुश्किल हो जाता है।
  • यह वफादार भाईचारे को बढ़ा सकता है और पुरुषों की सामूहिक कार्रवाई देश को सभी भौतिक क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर ले जाती है।
  • यह नागरिकों को सरकार के खिलाफ आक्रामक कार्य नहीं करने की चेतावनी देता है।

भारतीय नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों का पालन क्यों करना चाहिए?

बहुत से लोग पूछ सकते हैं कि क्या भारतीय नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हैं। बात महत्वपूर्ण और विचारणीय है। हालांकि कानून उनके लिए विशेष कानून है जो अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं लेकिन भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का पालन करना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह सामाजिक, देशभक्ति और नैतिक रूप से होने के तरीके की गारंटी देता है। हालांकि, कई भारतीय नागरिक इन कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं। यह बात अलग है कि हममें से बहुत से लोग इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। भारतीय नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करने के कारणों का उल्लेख नीचे किया गया है-

  • ये कर्तव्य नागरिकों को एक स्वतंत्र, स्वस्थ और जिम्मेदार समाज के निर्माण की याद दिलाते हैं।
  • यह अनिवार्य है कि नागरिक अखंडता का सम्मान करते हुए इन सभी दायित्वों का सम्मान करें और देश में सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने में योगदान दें।
  • बच्चों को शिक्षा प्रदान करने और मानवाधिकारों की रक्षा करने के ये दायित्व आज के समाज में मौजूदा सामाजिक अन्याय को मिटाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

मौलिक कर्तव्य संविधान का हिस्सा हैं जो हमें देश के लिए देशभक्ति को बढ़ावा देने और सम्मान करने के लिए प्रेरित करते हैं। देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, हमें राष्ट्र के प्रति अपने मूल कर्तव्यों को जानना चाहिए। कर्तव्य हमें अपने देश का सम्मान करने और इसकी समृद्ध और विरासत संस्कृति को संरक्षित करने के लिए बाध्य करते हैं। यह हमें वन्यजीवों, जंगलों आदि के रूप में पर्यावरण की देखभाल करने का भी आग्रह करता है। कर्तव्यों से सामाजिक संरचना और नैतिक विचारों की भावना विकसित होती है। शिक्षण संस्थानों में, इन कर्तव्यों को छात्रों को अच्छे तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए ताकि वे उनका पालन कर सकें या दूसरों को उनका पालन करने के लिए कह सकें। अगर हमें देश से कुछ चाहिए तो हमें देश को कुछ देना होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q.1 मौलिक कर्तव्यों की परिभाषा क्या है?

उत्तर। देश की देशभक्ति और संप्रभुता को बढ़ावा देने के लिए मौलिक कर्तव्य किसी देश के नागरिक का कानूनी दायित्व है।

Q.2 भारत में कितने मौलिक कर्तव्य हैं?

उत्तर। भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है।

Q.3 किस वर्ष मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था?

उत्तर। मौलिक कर्तव्यों को वर्ष 1976 और 2002 में जोड़ा गया था।

Q.4 मौलिक कर्तव्य कहाँ से लिए जाते हैं?

उत्तर। मौलिक कर्तव्य यूएसएसआर के संविधान और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 29(1) से लिए गए हैं।

Q.5 कौन सा लेख मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है?

उत्तर। भाग IV (ए) में अनुच्छेद 51 (ए) भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है।

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मौलिक अधिकारों पर निबंध (Fundamental Rights Essay in Hindi)

मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) भारतीय संविधान का अभिन्न अंग हैं। सभी नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग-III में यह कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के लिंग, जाति, धर्म, पंथ या जन्म स्थान की स्थिति के आधार पर भेदभाव ना करके उन्हें ये अधिकार दिए जाते हैं। ये सटीक प्रतिबंधों के अधीन न्यायालयों द्वारा लागू होते हैं। इन्हें नागरिक संविधान के रूप में भारत के संविधान द्वारा गारंटी दी जाती है जिसके अनुसार सभी लोग भारतीय नागरिकों के रूप में सद्भाव और शांति में अपना जीवन-यापन कर सकते हैं।

मौलिक अधिकारों पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Fundamental Rights in Hindi, Maulik Adhikaron par Nibandh Hindi mein)

मौलिक अधिकारों पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

मौलिक अधिकार ऐसे मूलभूत अधिकार है जो लोगों को सुगमता से जीवन जीने के लिए शक्ति प्रदान करते है। मौलिक अधिकार भारत के संविधान में निहित अधिकार है, जो प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार प्रदान करते है। फ्रेंच क्रांति और अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के बाद नागरिकों को मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) प्रदान करने की आवश्यकता महसूस हुई।

मौलिक अधिकारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

फ्रांसीसी नेशनल असेंबली द्वारा 1789 में “दी डिक्लेरेशन ऑफ़ राइट्स ऑफ़ मैन” को अपनाया गया था। अमरीकाके संविधान में मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) पर एक सेक्शन भी शामिल था। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया जिसे दिसंबर 1948 में बनाया गया था। इसमें लोगोंके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल थे। भारत में नागरिकों के मूल अधिकारों के रूपमें धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को शामिल करने का सुझाव 1928 में नेहरू समिति की रिपोर्ट ने दिया था।

मौलिक अधिकारोंका महत्व

1947 में स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा ने भविष्य के सुशासन के लिए शपथ ली। इसने एक संविधान की मांग की जो भारत के सभी लोगों को – न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता, नौकरी के समान अवसर, विचारों की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, विश्वास, संघ, व्यवसाय और कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन कार्रवाई की गारंटी देता है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति के लोगों के लिए विशेष सुविधाओं की गारंटी भी दी गई।

संविधान में व्यक्त समानता का अधिकार भारत गणराज्य में लोकतंत्र की संस्था के प्रति एक ठोस कदम के रूप में है। भारतीय नागरिकों को इन मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के माध्यम से आश्वासन दिया जा रहा है कि वे जब तक भारतीय लोकतंत्र में रहेंगे तब तक वे अपने जीवन को सद्भाव में जी सकते हैं।

यूट्यूब पर देखें : मौलिक अधिकारों पर निबंध

निबंध – 2 (400 शब्द)

भारतीय संविधान में शामिल मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि लोग देश में सभ्य जीवन जीते हैं। इन अधिकारों में कुछ अनोखी विशेषताएं हैं जो आमतौर पर अन्य देशों के संविधान में नहीं मिलती हैं।

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के विशिष्ट लक्षण

मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) पूर्ण नहीं हैं वे उचित सीमाओं के अधीन हैं। वे एक व्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा के बीच स्थिरता को निशाना बनाते हैं लेकिन उचित प्रतिबंध कानूनी समीक्षा के अधीन हैं। यहां इन अधिकारों की कुछ विशिष्ट विशेषताओं पर एक नजर डाली गई है:

  • सभी मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को निलंबित किया जा सकता है। देश की सुरक्षा और अखंडता के हित में आपातकाल के दौरान स्वतंत्रता के अधिकार को स्वचालित रूप से निलंबित कर दिया जाता है।
  • अनेक मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) भारतीय नागरिकों के लिए हैं लेकिन कुछ मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का फायदा देश के नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के द्वारा उठाया जा सकता है।
  • मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) में संशोधन किया जा सकता है लेकिन उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को खत्म करने से संविधान की बुनियादी नीवं का उल्लंघन होगा।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) दोनों सकारात्मक और नकारात्मक हैं। नकारात्मक अधिकार देश को कुछ चीजें करने से रोकते हैं। यह देश को भेदभाव करने से रोकता है।
  • कुछ अधिकार देश के खिलाफ उपलब्ध हैं। कुछ अधिकार व्यक्तियों के विरुद्ध उपलब्ध हैं।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) न्यायसंगत हैं। अगर किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का उल्लंघन होता है तो वह न्यायालय में जा सकता है।
  • कुछ बुनियादी अधिकार रक्षा सेवाओं में काम करने वाले व्यक्तियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि वे कुछ अधिकारों से प्रतिबंधित हैं।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) प्रकृति में राजनीतिक और सामाजिक हैं। भारत के नागरिकों को कोई आर्थिक अधिकार की गारंटी नहीं दी गई है हालांकि उनके बिना अन्य अधिकार मामूली या महत्वहीन हैं।
  • प्रत्येक अधिकार कुछ कर्तव्यों से सम्बन्धित है।
  • मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का एक व्यापक दृष्टिकोण है और वे हमारे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक हितों की रक्षा करते हैं।
  • ये संविधान का एक अभिन्न अंग हैं। इसे आम कानून से बदला या हटाया नहीं जा सकता।
  • मौलिक अधिकार हमारे संविधान का अनिवार्य हिस्सा हैं।
  • चौबीस आर्टिकल इन बुनियादी अधिकारों के साथ शामिल हैं।
  • संसद एक विशेष प्रक्रिया द्वारा मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) में संशोधन कर सकती है।
  • मौलिक अधिकार का उद्देश्य व्यक्तिगत हित के साथ सामूहिक हित बहाल करना है।

ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिससे संबंधित कोई दायित्व नहीं है। हालांकि यह याद रखने की बात है कि संविधान ने बड़े पैमाने पर अधिकारों का विस्तार किया है और कानून की अदालतों के पास अपनी सुविधा के अनुरूप कर्तव्यों को मरोड़ना-तोड़ना शामिल नहीं है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

भारत का संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) की गारंटी देता है और नागरिकों के पास भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार हो सकता है लेकिन इन अधिकारों से जुड़े कुछ प्रतिबंध और अपवाद भी हैं।

मौलिक अधिकार  पर रोक

एक नागरिक पूरी तरह से मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का प्रयोग नहीं कर सकता लेकिन कुछ संवैधानिक प्रतिबंध के साथ वही नागरिक अपने अधिकारों का आनंद उठा सकता है। भारत का संविधान इन अधिकारों को इस्तेमाल में लाने पर कुछ तर्कसंगत सीमाएं लागू करता है ताकि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य बरकरार रहे।

संविधान हमेशा व्यक्तिगत हितों के साथ-साथ सांप्रदायिक हितों की भी रक्षा करता है। उदाहरण के लिए धर्म का अधिकार सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य हित में राज्य द्वारा सीमाओं के अधीन है ताकि धर्म की स्वतंत्रता अपराध या असामाजिक गतिविधियां करने के लिए इस्तेमाल में ना लाई जाए।

इसी प्रकार अनुच्छेद -19 द्वारा अधिकारों का तात्पर्य पूर्ण स्वतंत्रता की गारंटी नहीं है। किसी भी वर्तमान स्थिति से पूर्ण व्यक्तिगत अधिकारों का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है। इसलिए हमारे संविधान ने देश को उचित सीमाएं लागू करने के लिए अधिकार दिया है क्योंकि यह समुदाय के हित के लिए आवश्यक है।

हमारा संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक नियंत्रण के बीच संतुलन को रोकने और एक कल्याणकारी राज्य स्थापित करने का प्रयास करता है जहां सांप्रदायिक हित व्यक्तिगत हितों पर महत्व देता है। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी राज्य द्वारा अपमान, अदालत की अवमानना, सभ्यता या नैतिकता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, अपमान के लिए उत्तेजना, सार्वजनिक व्यवस्था और भारत की अखंडता तथा संप्रभुता के रखरखाव के लिए तर्कसंगत प्रतिबंधों के अधीन है।

सभा करने की स्वतंत्रता भी राज्य द्वारा लगायी जाने वाली उचित सीमाओं के अधीन है। सभा अहिंसक और हथियारों के बिना होनी चाहिए और सार्वजनिक आदेशों के हित में होनी चाहिए। प्रेस की स्वतंत्रता, जो अभिव्यक्ति की व्यापक स्वतंत्रता में शामिल है, को भी उचित सीमाओं के अधीन किया जाता है और सरकार प्रेस की स्वतंत्रता पर देश के बेहतर हित में या अदालत की अवमानना, मानहानि या उत्पीड़न से बचने के लिए प्रतिबंध लगा सकती है।

भारत सरकार के लिए बहु-धार्मिक, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राष्ट्र में शांति और सद्भाव बनाए रखना परम कर्तव्य है। 1972 में मौजूद सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस चिंता को समझा जा सकता है – जब बांग्लादेश की आजादी का युद्ध खत्म हो चुका था और देश उस वक़्त भी शरणार्थी अतिक्रमण से उबरने की कोशिश कर रहा था। उस समय के दौरान शिवसेना और असम गण परिषद जैसे स्थानीय और क्षेत्रीय दलों में अधिक असंतोष उत्पन्न हो रहा था और आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक संगठन के स्वर और कृत्य हिंसक हो गए थे। फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत सरकार ने इन सबसे निपटने में आईपीसी के सेक्शन लागू करने के बारे में अधिक प्रतिक्रिया दिखाई।

कोई स्वतंत्रता बिना शर्त या पूरी तरह से अप्रतिबंधित नहीं हो सकती है। हालांकि लोकतंत्र में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखना और रक्षा करना आवश्यक है इसलिए भी सामाजिक आचरण के रखरखाव के लिए इस आजादी पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। तदनुसार अनुच्छेद 19 (2) के तहत सरकार सार्वजनिक व्यवस्था, संप्रभुता और भारत की अखंडता की सुरक्षा के हित में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अभ्यास पर या न्यायालय की अवमानना ​​के संबंध में व्यावहारिक प्रतिबंधों को लागू कर सकती है।

Essay on Fundamental Rights in Hindi

निबंध – 4 (600 शब्द)

कुछ बुनियादी अधिकार हैं जो मानव अस्तित्व के लिए मौलिक और मानव विस्तार के लिए महत्वपूर्ण होने के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन अधिकारों की अनुपस्थिति में किसी भी आदमी का अस्तित्व बेकार होगा। इस प्रकार जब राजनीतिक संस्थाएं बनाई गईं, उनकी भूमिका और जिम्मेदारी मुख्य रूप से लोगों को (विशेषकर अल्पसंख्यकों को) समानता, सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ जीने के लिए केंद्रित की गयी।

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का वर्गीकरण

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को 6 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। य़े हैं:

समानता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार

शोषण के खिलाफ अधिकार

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

संवैधानिक उपाय करने का अधिकार

आईये जानते हैं अब हम संक्षिप्त में इन 6 मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के बारे में:

इसमें कानून के सामने समानता शामिल है जिसका मतलब है कि जाति, पंथ, रंग या लिंग के आधार पर कानून का समान संरक्षण, सार्वजनिक रोजगार, अस्पृश्यता और टाइटल के उन्मूलन पर प्रतिबंध। यह कहा गया है कि सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं और किसी के साथ किसी भी तरीके का कोई भेदभाव नहीं हो सकता है। यह अधिकार यह भी बताता है कि सभी की सार्वजनिक स्थानों पर समान पहुंच होगी।

समान अवसर प्रदान करने के लिए, सरकार की सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के सिवाय सैनिकों की विधवाएँ और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को कोई आरक्षण नहीं होगा। यह अधिकार मुख्य रूप से अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए बनाया गया था जिसका दशकों से भारत में अभ्यास किया गया था।

इसमें भाषण की अभिव्यक्ति, बोलने की स्वतंत्रता, यूनियन और सहयोगी बनाने की स्वतंत्रता तथा भारत में कहीं भी यात्रा करने की स्वतंत्रता, भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने की स्वतंत्रता और किसी पेशे का चयन करने की स्वतंत्रता शामिल है।

इस अधिकार के तहत यह भी कहा गया है कि भारत के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में संपत्ति खरीदने, बेचने और बनाए रखने का पूर्ण अधिकार है। लोगों को किसी भी व्यापार या व्यवसाय में शामिल होने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार यह भी परिभाषित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता है और उसे स्वयं के खिलाफ गवाह के रूप में खड़ा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

इसमें किसी भी तरह की जबरन मजदूरी के खिलाफ़ प्रतिबंध शामिल है। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खानों या कारखानों, जहां जीवन का जोखिम शामिल है, में काम करने की अनुमति नहीं है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह से दूसरे व्यक्ति का फायदा उठाने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार मानव तस्करी और भिखारी को कानूनी अपराध बनाया गया है और इसमें शामिल पाए गए लोगों को दंडित किए जाने का प्रावधान शामिल है। इसी तरह बेईमान उद्देश्यों के लिए महिलाओं और बच्चों के बीच दासता और मानव तस्करी को अपराध घोषित किया गया है। मजदूरी के लिए न्यूनतम भुगतान को परिभाषित किया गया है और इस संबंध में किसी भी तरह के समझौता करने की अनुमति नहीं है।

इसमें कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों के लिए विवेक की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। सभी को अपनी पसंद के धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, अभ्यास करने और फैलाने का अधिकार होगा और केंद्र और राज्य सरकार किसी भी तरह के किसी भी धार्मिक मामलों में किसी भी तरह से बाधा उत्पन्न नहीं करेगा। सभी धर्मों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों को स्थापित करने और बनाए रखने का अधिकार होगा और इनके संबंध में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र होगा।

यह सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है क्योंकि शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का प्राथमिक अधिकार माना जाता है। सांस्कृतिक अधिकार कहता है कि हर देश अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना चाहता है। इस अधिकार के अनुसार सभी अपनी पसंद की संस्कृति को विकसित करने के लिए स्वतंत्र हैं और किसी भी तरह की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी संस्कृति, जाति या धर्म के आधार पर किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा। सभी अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार है।

यह नागरिकों को दिया गया एक बहुत खास अधिकार है। इस अधिकार के अनुसार हर नागरिक को अदालत में जाने की शक्ति है। यदि उपर्युक्त मौलिक अधिकारों में से किसी भी अधिकार की पालन नहीं की गई तो अदालत इन अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ एक गार्ड के रूप में खड़ी है। अगर किसी भी मामले में सरकार बलपूर्वक या जानबूझकर किसी व्यक्ति के साथ अन्याय करती है या किसी व्यक्ति को बिना किसी कारण या अवैध कार्य से कैद किया जाता है तो संवैधानिक उपाय करने का अधिकार व्यक्ति को अदालत में जाने और सरकार के कार्यों के खिलाफ न्याय प्राप्त करने की अनुमति देता है।

नागरिकों के जीवन में मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अधिकार जटिलता और कठिनाई के समय बचाव कर सकते हैं और हमें एक अच्छे इंसान बनने में मदद कर सकते हैं।

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मौलिक अधिकार (भाग- 1)

  • 21 May 2021
  • 21 min read
  • सामान्य अध्ययन-II
  • मौलिक अधिकार

परिचय 

मौलिक अधिकारों के बारे में:

  • संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है।
  • ‘मैग्नाकार्टा' अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।
  • समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
  • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
  • इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर संवैधानिक संशोधन को चुनौती दी जा सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते हैं। ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा। 

मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ:

  • कुछ अधिकार सिर्फ नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक, विदेशी या कानूनी व्यक्ति हों जैसे- परिषद एवं कंपनियाँ।
  • राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है।
  • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 19 में उल्लिखित 6 मौलिक अधिकारों को उस स्थिति में स्थगित किया जा सकता है, जब युद्ध या विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो। इन्हें सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता है।
  • ऐसे इलाकों में भी इनका क्रियान्वयन रोका जा सकता है, जहाँ फौजी कानून का मतलब ‘सैन्य शासन’ से है, जो असामान्य परिस्थितियों में लगाया जाता है।

मौलिक अधिकार:

Rights

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18):

  • प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी सब पर यह अधिकार लागू होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति शब्द में विधिक व्यक्ति अर्थात् संवैधानिक निगम, कंपनियाँ, पंजीकृत समितियाँ या किसी भी अन्य प्रकार का विधिक व्यक्ति सम्मिलित है।
  • अनुच्छेद 361-A के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि संसद या राज्य विधानसभा के दोनों सदनों या दोनों में से किसी एक की सत्य कार्यवाही से संबंधित विषय-वस्तु का प्रकाशन समाचार-पत्र में करता है तो उस पर किसी भी प्रकार का दीवानी या फौजदारी मुकदमा देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 105 के अनुसार, संसद या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। 
  • अनुच्छेद 194 के अनुसार, राज्य के विधानमंडल में या उसकी किसी समिति में विधानमंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
  • विदेशी संप्रभु (शासक), राजदूत एवं कूटनीतिज्ञ, दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों से मुक्त होंगे।
  • अपवाद: महिलाओं, बच्चों, सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों के उत्थान (जैसे- आरक्षण और मुफ्त शिक्षा तक पहुँच) के लिये कुछ प्रावधान किये जा सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त किसी संस्था या इसके कार्यकारी परिषद के सदस्य या किसी भी धार्मिक आधार पर व्यवस्था की जा सकती है।
  • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का प्रचार।
  • किसी भी व्यक्ति को किसी भी दुकान, होटल, सार्वजनिक पूजा स्थल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थान में प्रवेश करने से रोकना।
  • अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों या छात्रावासों में सार्वजनिक हित के लिये प्रवेश से रोकना।
  • पारंपरिक, धार्मिक, दार्शनिक या अन्य आधारों पर अस्पृश्यता को उचित ठहराना।
  • अस्पृश्यता के आधार पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति का अपमान करना।
  • यह निषेध करता है कि राज्य सेना या शिक्षा संबंधी सम्मान के अलावा और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
  • यह निषेध करता है कि भारत का कोई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा।
  • कोई विदेशी, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि भारत के राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।
  • राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19, 20, 21 और 22):

  • यह प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति दर्शाने, मत देने, विश्वास एवं अभियोग लगाने की मौखिक, लिखित, छिपे हुए मामलों पर स्वतंत्रता देता है।
  • यह व्यवस्था हिंसा, अव्यवस्था, गलत संगठन एवं सार्वजनिक शांति भंग करने के लिये नहीं है।
  • संगम या संघ बनाने का अधिकार
  • इसमें राजनीतिक दल बनाने का अधिकार, कंपनी, साझा फर्म, समितियाँ, क्लब, संगठन, व्यापार संगठन या लोगों की अन्य इकाई बनाने का अधिकार शामिल है।
  • संचरण की स्वतंत्रता के दो भाग हैं- आंतरिक (देश में निर्बाध संचरण), (अनुच्छेद 19) और बाहरी (देश के बाहर घूमने का अधिकार तथा देश में वापस आने का अधिकार), (अनुच्छेद 21)।
  • जनजातीय क्षेत्रों में उनकी संस्कृति भाषा एवं रिवाज के आधार पर बाहर के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित किया जा सकता है। देश के कई भागों में जनजातियों को अपनी संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु नियम-कानून बनाने का अधिकार है।
  • इस अधिकार में कोई अनैतिक कृत्य शामिल नहीं है, जैसे- महिलाओं या बच्चों का दुरुपयोग या खतरनाक (हानिकारक औषधियों या विस्फोटक आदि) व्यवसाय।
  • किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिये तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसा कोई कार्य करते समय, (जो व्यक्ति अपराध के रूप में आरोपित है) किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है।
  • किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक से अधिक बार  अभियोजित या दंडित नहीं किया जाएगा।
  • किसी भी अपराध के लिये अभियुक्त व्यक्ति को स्वंय अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • प्राण या दैहिक स्वतंत्रता में अधिकार के कई प्रकार है- इसमें ‘प्राण के अधिकार’ को शारीरिक बंधनों में नहीं बाँधा गया है बल्कि इसमें मानवीय सम्मान और इनसे जुड़े अन्य पहलुओं को भी रखा गया है।
  • यह प्रावधान केवल आवश्यक शिक्षा के एक मौलिक अधिकार के अंतर्गत है, न कि उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के संदर्भ में।
  • यह प्रावधान 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 के अंतर्गत किया गया था।
  • 86वें संशोधन से पहले भी संविधान में भाग IV के अनुच्छेद 45 के तहत बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान था।
  • दंड विषयक हिरासत, एक व्यक्ति, जिसने अपराध स्वीकार कर लिया है और न्यायालय में उसे दोषी ठहराया जा चुका है, को दंड देती है।
  • निवारक हिरासत वह है, जिसमें बिना सुनवाई के न्यायालय में दोषी ठहराया जाए। 
  • गिरफ्तार करने के आधार पर सूचना देने का अधिकार।
  • विधि व्यवसायी से परामर्श और प्रतिरक्षा करने का अधिकार।
  • दंडाधिकारी (मजिस्ट्रेट) के सम्मुख 24 घंटे के अंदर, यात्रा के समय को मिलाकर, पेश होने का अधिकार।
  • दंडाधिकारी द्वारा बिना अतिरिक्त निरोध के 24 घंटे में रिहा करने का अधिकार।
  • किसी व्यक्ति की हिरासत अवधि तीन महीने से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती, जब तक कि सलाहकार बोर्ड (उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश) इस बारे में उचित कारण न बताएँ।
  • निरोध का आधार संबंधित व्यक्ति को बताया जाना चाहिये।
  • निरोध वाले व्यक्ति को यह अधिकार है कि निरोध के आदेश के विरुद्ध अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।

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  • अगस्त 28, 2024

Essay on Unity in Hindi

हमारे जीवन में हर स्तर पर और हर कदम पर एकता महत्वपूर्ण है। जो लोग एकजुट रहने के महत्व को समझते हैं और उसका पालन करते हैं, वे एक खुशहाल और संतुष्ट जीवन जीते हैं। जो लोग इसके महत्व को नहीं समझते हैं, उन्हें अक्सर जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एकता और सहयोग को बढ़ावा देकर, हम अपने लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। इसके बारे में छात्रों को बताने के लिए उन्हें विद्यालय में Essay on Unity in Hindi लिखने को दिया जाता है, इसलिए इस ब्लॉग में आपकी मदद के लिए कुछ सैंपल दिए गए हैं।

This Blog Includes:

एकता पर निबंध 100 शब्दों में – 100 words essay on unity in hindi, एकता पर निबंध 500 शब्दों में – 500 words essay on unity in hindi, एकता निर्माण में सरकार की भूमिका, एकता के लाभ, एकता में शक्ति का अर्थ.

एकता में शक्ति है, इसका मतलब है कि हर परिस्थिति में एकजुट रहना। जीवन के हर क्षेत्र में इसका बहुत महत्व है। जब हम एकजुट होते हैं तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। हमारे समाज और देश का विकास इसी भावना पर निर्भर करता है। वास्तव में सभ्यता लोगों के बीच एकता के कारण ही अस्तित्व में आई। शांतिपूर्ण और पूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों का एकजुट रहना बहुत जरूरी है। दुर्भाग्य से, यह एकता शब्द केवल प्रेरक और प्रेरणादायक बातों तक ही सीमित रह गया है। 1947 तक भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था। अंग्रेज व्यापारी बनकर भारत आए थे, लेकिन 200 साल तक राज करते रहे। ऐसा सिर्फ़ इसलिए हुआ क्योंकि देश के लोगों में आपसी एकता की कमी थी। जब भारतीयों को लगा कि अंग्रेजों से आज़ादी ज़रूरी है, तो वे एकजुट हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़े।

एकता पर निबंध 200 शब्दों में – 200 Words Essay on Unity in Hindi

एकता की ताकत का सबसे अच्छा उदाहरण स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष है। अंग्रेज बहुत शक्तिशाली थे। उन्होंने कई सालों तक भारतीयों को नियंत्रित किया और उन पर अत्याचार किए। हालाँकि, जब भारतीय एकजुट होकर उनके खिलाफ खड़े हुए तो शक्तिशाली ब्रिटिश अधिकारियों को भी हार माननी पड़ी। उस समय कई देशभक्त नेता उभरे। प्रत्येक की अपनी विचारधारा थी और उन्होंने उसी के अनुसार अंग्रेजों से लड़ने की कोशिश की। इन नेताओं ने बड़ी संख्या में भारतीयों को प्रेरित किया जो बड़ी संख्या में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए आगे आए।

उस दौरान कई विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकाले गए। इन घटनाओं से ब्रिटिश सरकार हिल गई। लोगों को एक साथ खड़े होने का महत्व समझ में आया और जल्द ही उनके प्रयास रंग लाए। स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों की व्यापक भागीदारी के कारण अंग्रेजों को देश छोड़ना पड़ा। अगर कुछ लोग ही लड़ने के लिए आगे आते तो अंग्रेज आसानी से उन्हें चुप करा सकते थे और अपना शासन जारी रख सकते थे। इस प्रकार, हम देखते हैं कि एकता किसी राष्ट्र के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाती है।

500 शब्दों में Essay on Unity in Hindi इस प्रकार है –

एकता का बहुत महत्व है। कई कहानियों के साथ-साथ वास्तविक जीवन की घटनाओं ने साबित किया है कि एकजुट रहने से लोगों को ताकत मिलती है और उन्हें एक सामंजस्यपूर्ण और पूर्ण जीवन जीने में मदद मिलती है। हालाँकि, बहुत से लोग अभी भी एकजुट रहने के महत्व को नहीं समझते हैं। वे तुच्छ चीजों पर लड़ते रहते हैं और अंततः अकेले पड़ जाते हैं।

एकता तभी हासिल की जा सकती है जब हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों को त्यागकर पूरे देश की बेहतरी के लिए काम करने के लिए तैयार हो। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे इसे हासिल किया जा सकता है –

  • भ्रष्टाचार समाप्त करें – अगर किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्ट है तो वह कभी समृद्ध नहीं हो सकता। राजनीतिक नेताओं को अत्यंत सावधानी से चुना जाना चाहिए। उन्हें एकजुट रहना चाहिए और राष्ट्र के विकास के साझा लक्ष्य की दिशा में काम करना चाहिए, न कि एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहिए 
  • कम आर्थिक असमानता – हमारे देश में बहुत ज़्यादा आर्थिक असमानता है। हमारे देश में अमीर लोग हर गुज़रते दिन के साथ और ज़्यादा अमीर होते जा रहे हैं और ग़रीब और भी ज़्यादा ग़रीब होते जा रहे हैं। इससे ग़रीब तबके में द्वेष पैदा होता है और वे अक्सर आपराधिक तरीक़े अपनाते हैं जिससे राष्ट्रीय विकास में बाधा आती है। सरकार को इस अंतर को पाटना चाहिए और सभी को उचित मज़दूरी देनी चाहिए ताकि हर नागरिक उत्पादक कार्यों में शामिल होने के लिए प्रेरित हो।
  • लोगों को जानकारी दें  – लोगों को एकजुट रहने के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। इसे स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए और विभिन्न अन्य तरीकों से भी इस पर जोर दिया जाना चाहिए। जब ​​लोग एकजुट रहने के महत्व को समझेंगे तभी वे इसे हासिल करने की दिशा में काम करेंगे।

एकता के कुछ लाभ इस प्रकार हैं –

  • सहायता और समर्थन – जो लोग एक साथ मिलकर रहते हैं, वे कभी भी विपत्ति में अकेले नहीं रहते। वे एक-दूसरे की मदद करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर नैतिक और वित्तीय सहायता भी देते हैं। दूसरी ओर, अकेले रहना और अपने आस-पास के लोगों से बेखबर रहना आपको असुरक्षित और अंतर्मुखी महसूस करा सकता है।
  • अच्छा मार्गदर्शन – जब हम समाज के एक हिस्से के रूप में एकजुट रहते हैं और आस-पास के सभी लोगों के साथ अच्छे संबंध रखते हैं, तो हम व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों मामलों में उनसे मार्गदर्शन ले सकते हैं। बुजुर्ग लोग या जो अधिक शिक्षित और अनुभवी होते हैं, वे विभिन्न मामलों में अच्छा मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और हम उन्हें अच्छी तरह से संभाल सकते हैं।
  • उचित विकास – एकजुट रहना हमारे विकास और वृद्धि के लिए अच्छा है। एक दूसरे के साथ एकता में रहने से विचारों और राय को साझा करने में मदद मिलती है जो हमारे दिमाग के अच्छे विकास के लिए बहुत ज़रूरी है। जिन परिवारों और समाजों में लोग एकजुट रहते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं, वहाँ बच्चों को बढ़ने के लिए एक स्वस्थ वातावरण मिलता है। यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अच्छा है।
  • प्रेरणा का स्रोत – जब हम साथ मिलकर काम करते हैं, तो हम प्रेरित होते हैं और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। हम लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे को प्रेरित करते हैं और यह एक महान प्रेरक कारक के रूप में काम करता है। हम हर उपलब्धि पर एक-दूसरे को प्रोत्साहित और सराहते भी हैं। यह फिर से एक प्रेरक शक्ति के रूप में काम करता है। इस तरह लोग और भी बेहतर काम करने और बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित होते हैं।

एकता में ताकत है, यह एक पुरानी कहावत है जो लोगों को एक टीम या समूह के रूप में एक साथ मजबूत होने के बारे में बताती है। एक एकजुट समूह एक-दूसरे का समर्थन करने और अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए अत्यधिक प्रेरित होता है। जब लोग एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए हाथ मिलाते हैं, तो उनकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है।

हम देखते हैं कि एकता किसी राष्ट्र के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। बच्चों को शुरू से ही एकजुट रहने का महत्व सिखाया जाना चाहिए। उन्हें बताया जाना चाहिए कि यह उनके और उनके देश के लिए कैसे अच्छा हो सकता है। सरकार को भी लोगों को एकजुट रखने के लिए अपना काम करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे राष्ट्र के विकास के लिए मिलकर काम करें

मैटी स्टेपानेक ने कहा, “एकता में शक्ति है।”

एकता में शक्ति है अर्थात जब हम एक साथ होते हैं तो हम मजबूत बनते हैं।

एकता महत्वपूर्ण है क्योंकि एकता स्वतंत्रता, शांति, सफलता, साहस, शक्ति और आशा लाती है।

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