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Swami Vivekananda Biography In Hindi,All Information About Swami Vivekananda In Hindi Language With Life History, स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय,Biography Of Swami Vivekananda In Hindi.
1863 कलकत्ता (अब कोलकाता) | |
1902 (उम्र 39) बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज (अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में) | |
, भक्ति योग, ज्ञान योग,माई मास्टर | |
, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये" |
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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai
Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.
bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....
You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.
bahut achha lekh
Very good information about sawami vivekananda
सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
Very nice information
It is very good biography on my idel Swami Vivekananda
अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी
Very nice biography
Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main
swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the
Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya
Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤
kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye
Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga
◦•●◉✿Great man✿◉●•◦
Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji
Thanku so much this information
संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।
आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।
if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like
very nice sir
very informational and high quality article about Swami Vivekananda
आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है
I am able to write my project with it
Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye
/fa-fire/ सदाबहार$type=list.
Swami Vivekananda Biography in Hindi : स्वामी विवेकानंद को भारत में उनको सन्यासी का अमेरिका में उनका नाम पड़ा साइक्लॉनिक हिन्दू का टाटा समूह के पितामह ने उनसे शिक्षा का प्रचार प्रसार का ज्ञान लिया तो कर्म कान्डियो के लिए Swami Vivekananda बन के उभरे एक विद्रोही।
भारत में समाज सुधार की धर्म की, अध्यात्म की दर्शनशास्त्र की, प्रगतिशील विचारों की जब भी बात होगी तो स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda के बिना वो चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी।
उनमे किस तरह का अनूठा Convention Power था स्वामी विवेकानंद में कि वह अपने मस्तिष्क पर कंट्रोल कर सकते थे और फिर कर सकते थे Multitasking।
स्वामी विवेकानंद सबसे कहते थे, कि महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनकी बेहतरी चाहते हैं उनकी हालत सुधारना चाहते हैं तो उनके लिए कुछ करिए नहीं बस उनको अलग छोड़ दीजिए
वह जो करना चाहे वह उन्हें करने का अवसर दीजिए वह पुरुषों से ज्यादा सक्षम है अपनी बेहतरी स्वयं कर सकती हैं महिलाएं भी स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से बेहद प्रभावित रहती थी।
Swami Vivekananda का नाम Cyclonic Hindu क्यों पड़ा
11 सितंबर 1893 में शिकागो मैं हुई विश्वधर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया यह वह भाषण था इस भाषण में उन्होंने सबसे पहले बोला “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” इस को सुनकर वह बैठे सभी लोगो ने खड़े होकर तालिया बजाई।
इस भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद की ख्याति फैल गई जिसके बाद स्वामी विवेकानंद 3 साल तक अमेरिका में रहे अमेरिकी मीडिया ने उनका नाम Cyclonic Hindu Swami Vivekananda रख दिया।
स्वामी विवेकानंद ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना पूरे विश्व के युवाओं मैं एक नई अलख जगाई है उनका प्रमुख नारा भी युवाओं के लिए का युवाओं में दृढ़ इच्छा और विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने यह नारा दिया था।
“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”
स्वामी विवेकानंद | |
नरेंद्रनाथ दत्त | |
12 जनवरी 1863 | |
कोलकाता (पं। बंगाल, भारत) | |
विश्वनाथ दत्त | |
भुवनेश्वरी देवी | |
दुर्गाचरण दत्ता | |
श्री रामकृष्ण परमहंस | |
4 जुलाई 1902 (उम्र 39) | |
हिन्दू | |
भारतीय |
प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन- (Swami Vivekananda life History)
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन 6:35 पर सूर्य उदय से पहले भारत के कोलकाता शहर में उनके पैतृक घर में होता है। स्वामी विवेकानंद का का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे। वह नए विचारों को मानने वाले आदमी थे।
और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्म कर्म में मानने वाली गृहिणी थी। वह नरेंद्र नाथ को रामायण रामायण और महाभारत के किस्से कहानियां सुनाया करती थी इस कारण बचपन से ही नरेंद्र की हिंदू धर्म ग्रंथों मैं बहुत रुचि थी। नरेंद्र नाथ का पालन पोषण बहुत ही खुशहाली मैं हुआ क्योंकि उनका परिवार बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार था।
यह भी पढ़ें – 10 सर्वश्रेष्ठ हिंदी उपन्यास – Best Hindi Novels
स्वामी विवेकानंद की मां ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि भगवान शिव आप मुझे एक प्यारा सा बेटा दीजिए, तब भुवनेश्वरी देवी के सपने में शिव भगवान आते हैं और उनको कहा कि तुम परेशान मत हो मैं आ रहा हूं और स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।
Swami Vivekananda के परिवार में उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता भी जो की संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान् थे। वह ईश्वर की साधना में मग्न रहते थे और एक दिन ऐसा आया कि उन्होंने 25 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे।
नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही शरारती और नटखट थे उनकी शरारतों के कारण सभी तंग रहते थे एक दिन की बात है नरेंद्र कुछ शरारत कर के भाग खड़े हुए उनकी बहन उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ी, यह देखकर नरेंद्र घबरा गया और वह नाली के पास जाकर नाली का कीचड़ अपने ऊपर लगा लिया और फिर अपनी बहन से बोले अब पकड़कर दिखाओ मुझे, यह देखकर उनकी बहन आश्चर्यचकित रह गई और नरेंद्र को वह पकड़ नहीं पाई क्योंकि नरेंद्र कीचड़ में लिपटा हुआ था।
एक बार नरेंद्र नाथ अपने शहर में लगा मेला देखने गए तब नरेंद्र की उम्र सिर्फ 8 साल थी वह मेले में तरह तरह के रंग बिरंगे चीजें देखकर बहुत ही प्रसन्न हो गई और पूरे दिन मेले में घूमते रहे।
और जैसे ही शाम ढलने लगी घर जाने का समय हुआ तो स्वामी विवेकानंद दें एक दुकानदार से मिट्टी का शिवलिंग खरीद लिया इसके बाद उनके पास बहुत कम 4 आने वैसे ही बचे थे इसके बाद वह सोच रहे थे कि भी इन 4 आने को कहां खर्च करें तभी उनको एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।
जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो तो बच्चे ने बहुत ही सैनी से आवाज में जवाब दिया कि वह अपने घर से कुछ पैसे लेकर आया था लेकिन मेले में कहीं गुम हो गए अगर वह खाली हाथ घर गया तो उसकी मां उसको बहुत मारेगी यह देख नरेंद्र के मन में दयालुता का भाव उमड़ा और उन्होंने अपने बचे हुए 4 आने उस बच्चे को दे दिए।
इस घटना से यह पता चलता है कि स्वामी जी बचपन से ही कितने दयालु स्वभाव के थे।
जब नरेंद्र की माता को इस बात का पता चला तो उनकी मां ने उनको गले से लगा लिया और कहा कि जीवन में सदैव ही ऐसे काम करते रहना।
यह भी पढ़ें – स्वामी विवेकानंद की रोचक कहानियां
नरेंद्र की उम्र 8 साल थी तब उनका दाखिला ईश्वर चंद विद्यासागर मेट्रो मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में करवाया गया, उनके पिताजी चाहते थे कि कि उनका बेटा अंग्रेजी पढ़े लेकिन बचपन से ही स्वामी विवेकानंद का मन वेदों की ओर था। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम दिया और परीक्षा को फर्स्ट डिवीजन से पास करने वाले पहले विद्यार्थी बने।
वे दर्शन शास्त्र, इतिहास, धर्म, सामाजिक ज्ञान, कला और साहित्य सभी विषयों के बड़े उत्सुक पाठक थे बहुत रुचि थी उनको इन सभी विषयों में बचपन से ही हिंदू धर्म ग्रंथों मैं उनकी बहुत रुचि थी और साथ ही उनको योग करना, खेलना बहुत पसंद था।
भारतीय अध्यात्म, भारतीय दर्शन और धर्म के साथ-साथ नरेंद्र की दिलचस्पी पश्चिमी जीवन और यूरोपीय इतिहास मैं भी बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (वर्तमान – स्कॉटिश चर्च कॉलेज) से किया था। उस जमाने के सभी वेस्टर्न राइटरस उन्होंने बहुत गहन अध्ययन किया था।
उन्होंने 1881 में ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी।
उस जमाने के जाने माने शिक्षा वेद और फ़लॉसफ़र William Hastie ने एक जगह लिखा है कि नरेंद्र बहुत होशियार है और मैंने दुनिया भर के विद्यार्थियों को देखा है और अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में गया हूं लेकिन जब Philosophy (दर्शनशास्त्र) का सवाल आता है तो नरेंद्र के दिमाग और कुशलता के आगे मुझे कोई और स्टूडेंट नहीं दिखता।
नरेंद्र पढ़ने लिखने लिखने में बहुत ही अच्छे छात्र थे लेकिन उनका मन हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा था सांसारिक मोह माया के पीछे वह नहीं भागते थे लेकिन जब तक उनके पिताजी जिंदा थे स्वामी विवेकानंद का मन दीन-दुनिया से अलग नहीं हुआ था उनका मोह भंग नहीं हुआ था
वेदांत में योग में इन सब में उनकी दिलचस्पी तो पहले भी थी। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद Swami Vivekananda का मन दीन- दुनिया से उठ गया।
एक दिन की बात है जब William Hastie धर्म और दर्शन पर व्याख्या कर रहे थे और उन्होंने देखा कि नरेंद्र नाथ आंखें बंद करके बैठे हुए हैं उन्होंने तुरंत नरेंद्र को कहा कि क्या तुम सो रहे हो, नरेंद्र ने तुरंत आंखें खोली और कहां जी नहीं William Hastie मैं कुछ सोच रहा था
William Hastie ने कहा किस विषय में सोच रहे हो तुम, तब नरेंद्र ने कहा क्या आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे।
William Hastie ने कहा क्यों नहीं बोलो नरेंद्र क्या प्रश्न पूछना चाहते हो तुम।
नरेंद्र ने कहा क्या आपने कभी ईश्वर के दर्शन किए हैं
तब William Hastie ने कहा नरेंद्र नाथ तुमने बहुत ही कठिन प्रश्न पूछा है तुम इस प्रश्न के उत्तर के लिए गंभीर भी हो, निराश ना हो मैं तुम्हें एक ऐसे संत का नाम बताऊंगा जो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सही प्रकार से दे सकते हैं यदि वास्तव में ही ईश्वर के दर्शन करना और सत्य की प्राप्ति ही तुम्हारा उद्देश्य है तो तुम दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के पास चले जाओ, वही तुम्हें ईश्वर के विषय में बता देते हैं।
नरेंद्र को William Hastie की बात सही लगी और 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने चले गए।
और वहां पहुंच कर उन्होंने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस ने किया लेकिन रामकृष्ण परमहंस नए जब नरेंद्र को देखा तो वह उन्हें एकटक देखते ही रहे मानो जैसे वह दोनों एक दूसरे से पहले से ही परिचित थे।
फिर उन्होंने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हां मैंने ईश्वर को देखा है ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं यदि कोई सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है तो वह अवश्य ईश्वर से मिल सकता है।इसके बाद रामकृष्ण परमहंस ने कहा की यदि तुम मेरे कहे अनुसार कार्य करो तो मैं तुम्हें भी ईश्वर के दर्शन करा सकता हूं।
रामकृष्ण की इन बातों का नरेंद्र पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। और वह उनकी ओर आकर्षित होने लगे। इसके बाद महेंद्र रामकृष्ण परमहंस के सच्चे शिष्य बन गए उन्होंने उनके विचारों को अपनाया और अपने जीवन में उतारा।
नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी उसके बाद उनके घर की हालत इतनी खराब हो गयी कि उनके खाने के भी लाले पड़ गये। उनका परिवार अगर सुबह भोजन कर लेता तो शाम का पता नही होता था। कई कई बार तो वे 2-3 दिन तक भोजन नहीं करते थे। स्वामी विवेकानंद के पास पहनने को कपड़े भी नहीं थे।
विवेकानंद के दोस्त उन्हें खाने के लिए देते भी थे लेकिन वह यह बोल कर मना कर देते थे की उनका परिवार भूखा होगा। वह ईश्वर को कोसने लगे थे। फिर वह सब कुछ छोड़ छाड़ के अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास चले गए।
रामकृष्ण ने उनके परिवार के हालत की सुधार के लिए उनको मां काली की उपासना करने को कहा लेकिन विवेकानंद मूर्ति और धातु पूजा में नहीं मानते थे क्योंकि कॉलेज के दिनों में उनका ध्यान ब्रह्म समाज की ओर हो गया था। ब्रह्म समाज मूर्ति पूजा को नहीं मानता था इसलिए विवेकानंद ने भी मां काली की उपासना करने से मना कर दिया।
और विरोध करने लगे और रामकृष्ण का उपहास भी उड़ाया। लेकिन रामकृष्ण परमहंस यह सब शांति पूर्वक देखते रहे और नरेंद्र की शांत होने पर उन्होंने कहा कि ”सभी दृष्टिकोणों से सत्य जानने का प्रयास करे” ।
नरेंद्र को भी यह बात सही लगी तब उन्होंने मां काली की उपासना करना चालू कर दिया और अंत में उनको मां काली के दर्शन हुए उन्होंने मां काली से सब कुछ मांगा और जब वे ध्यान से बाहर आए तो रामकृष्ण ने कहा कि तुमने अपने प्यार के लिए सब कुछ मांग लिया।
तो नरेंद्र ने कहा मांग लिया तो रामकृष्ण ने कहा तुमने अपने परिवार के लिए धन मांगा कि नहीं…
फिर नरेंद्र ने उत्तर दिया कि नहीं वह तो मैं भूल गया..
रामकृष्ण ने कहा तुम फिर से ध्यान लगाओ और अपने परिवार के लिए धन मांगो।
नरेंद्र ने करीब 3 बार ध्यान लगाया लेकिन तीनों ही बार वह सब कुछ मांग लेते लेकिन अपने परिवार के लिए धन मांगना भूल जाते थे।
तब उनको एहसास हो गया कि धन और मोह माया उनके लिए नहीं बनी है इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को गुरु मान लिया । और रामकृष्ण परमहंस ने भी उनको शिष्य बनाया और जितना भी ज्ञान उनको था वह पूरा ज्ञान नरेंद्र को दे दिया।
लेकिन कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस बीमार रहने लगे थे उन्हें पता चल गया था कि अब उनके जीवन के अधिक दिन नहीं रह गए हैं उन्हें पता चला कि उनको कैंसर हैं।इसलिए 1885 में रामकृष्ण परमहंस को इलाज के लिए कोलकाता जाना पड़ा लेकिन वह वहां पर ठीक नहीं हो पाये।
फिर नरेंद्र ने उनके अंतिम दिनों में उनकी सेवा की, रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। करीब 1 वर्ष के बाद 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई। उन्होंने अपना जीवन गुरुदेव श्री रामकृष्ण को समर्पित कर दिया 25 साल की उम्र में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए यानी कि उन्होंने सन्यास ले लिया और निकल गए पूरे भारत की यात्रा पर।
श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद नरेंद्र ही उनके उत्तराधिकारी बने वे केवल नाम के ही उत्तराधिकारी नहीं थे उन्होंने वैसा कार्य भी करके दिखाया। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की गुरु के विचारों का पूरी दुनिया में विस्तार किया और देश की दीन दुखियों की सहायता की और अनेक कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई।
स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा था “मुझे ईश्वर में विश्वास है, मुझे मनुष्य में विश्वास है, मुझे दिन दुखियों की सहायता में विश्वास है और यही मेरा कर्तव्य है” ।
इसी दृढ़ निश्चय को लेकर उन्होंने भारत के अंतिम शहर कन्याकुमारी के समुंद्र में चट्टान थी वहां पर उन्होंने 2 दिन 2 रात तक अटूट ध्यान किया इसी ध्यान के दौरान उनके मन में अतीत और वर्तमान भारत के चित्र उभर आए जिस शिला पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था वह आज विवेकानंद स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है आज भी लाखों लोग कन्याकुमारी में स्थित उस शीला के दर्शन करने आते हैं।
1893 जब नरेंद्र नाथ दत्त बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए एक सन्यासी के रूप में यात्रा करने लगे और वह पूरे भारत में जगह-जगह भ्रमण करने लगे थे इस बीच उनकी मुलाकात 4 जून 1891 को माउंट आबू में खेतड़ी के राजा अजीत सिंह से हुई।
नरेंद्र और अजीत सिंह की कुछ बात हुई नरेंद्र की ज्ञान की बातें सुनकर राजा अजीत सिंह बहुत खुश हुए। और उन्होंने नरेंद्र नाथ को अपने महल खेतड़ी में आने के लिए निमंत्रण दिया।
नरेंद्र ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 1891 को भारत का भ्रमण करते हुए खेतड़ी राजस्थान पहुंचे। वहां पर राजा अजीत सिंह ने उनका स्वागत किया और नरेंद्र वहां पर कुछ दिन रुके इस बीच राजा अजीत सिंह और नरेंद्र के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी।
तब राजा अजय सिंह ने नरेंद्र को पगड़ी बांधने का सुझाव दिया और राजस्थानी वेशभूषा पहनने को कहा इस बात पर नरेंद्र राजी हो गए और तभी से स्वामी विवेकानंद ने पगड़ी बांधना चालू किया था। यह देख कर राजा अजीत सिंह ने उनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद रख दिया था जिसका मतलब “ समझदार ज्ञान का आनंद ” था।
विश्व धर्म सम्मेलन का दिन उनके लिए बहुत बड़ा साबित हुआ क्योंकि उस दिन के बाद उन्होंने पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर ली थी वह अब हर देश जाकर ज्ञान बांटने लगे थे लेकिन आपको हम उनके विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के पहले की बात बताते हैं।
Swami Vivekananda के पास विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ध्यान नहीं था इसलिए वह दोबारा अपने मित्र राजा अजीत सिंह से मिलने खेतड़ी गए वह 21 अप्रैल 1893 से 10 मई 1893 तक खेतड़ी में रहे। उन्होंने अजीत सिंह को बताया कि वह विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होना था चाहते हैं तो अजीत सिंह ने कहा कि आप धर्म सम्मेलन में शामिल हुई है धन की परवाह मत कीजिए वह सब बंदोबस्त कर दूंगा।
बड़ी कठिनाइयों के बाद स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शहर शिकागो पहुंचे लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनको पता चला कि विश्व धर्म सम्मेलन की तारीख आगे बढ़ा दी गई है इसलिए उनको बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पास तो सिर्फ 4 से 5 दिन के खर्चे के लिए ही धनराशि थी और वह वापस भी नहीं लौट सकते थे इसलिए उन्होंने वही ठहरने का निर्णय लिया।
लेकिन शिकागो जैसे शहर में एक आम भारतीय संत का रहना बहुत ही मुश्किल था। फिर उनको वहीं के एक प्रोफेसर मिले वह उनको अपने घर लेकर गए और उनको अपने घर में रहने को कहा उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बहुत सेवा की।
1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद का आयोजन हुआ स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे भारत के प्रतिनिधि के बतौर यह वह दौर था जब यूरोप और अमेरिका के लोग भारत वासियों को बहुत ही ही दृष्टि से देखते थे कुछ लोगों का मानना है कि उस धर्म परिषद में पहले यह भी तय नहीं हुआ था की विवेकानंद जी पर कोई भाषण देंगे।
क्योंकि विश्व धर्म सम्मेलन में अपने विचार प्रकट करने का कोई विधिवत निमंत्रण नहीं मिला था। जब गई पश्चिमी सभ्यता के लोग बोल चुके हैं उनका संबोधन हो चुका था तो कुछ अमेरिकी प्रोफेसर ने इस बात पर जोर दिया अब कुछ मौका पूर्व से आने वालों को भी दिया जाए।
तब सबका ध्यान गया गेरुआ वस्त्र पहने एक खूबसूरत भारतीय नौजवान पर जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद , जब Swami Vivekananda ने खड़े होकर बोलना शुरू किया और जिस धारा प्रवाह अंग्रेजी में उन्होंने बहुत ही पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी और
बोले “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” इतना सुनकर वहां के सभी लोगों ने करीब 2 मिनट तक खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई थी। क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे अलग व्यक्ति थे जिन्होंने रटे-रटाए धर्मों और ग्रंथों के अलावा कुछ नई बात कही थी।
विश्व कवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि अगर आपको भारत की संस्कृति धर्म और इतिहास के बारे में जानना है तो आपको स्वामी विवेकानंद का अध्ययन करना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अंतिम दिनों तक ध्यान करने की अपनी दिनचर्या को नहीं बदला वह रोज सुबह 2 से 3 घंटे ध्यान लगाते थे दमा और शुगर के साथ उन्हें कई शारीरिक बीमारियों ने घेर लिया था उन्होंने एक जगह लिखा भी कि “यह बीमारियां मुझे 40 वर्ष की आयु को पार नहीं करने देंगी” और उनकी यह वाणी सच भी हुई।
सत्येंद्र मजमूदार ने अपनी किताब विवेक चरित्र में लिखा है कि 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ थे । सुबह स्वामी जी ने अपने शिष्यों को बुलाया और अपने हाथों से सभी शिष्यों के पाव धोए।
शिष्यों ने कहा कि यह क्या कर रहे हैं Swami Vivekananda जी का उत्तर था कि Jesus Christ ने भी अपने शिष्यों के पाव धोए थे फिर सभी ने साथ बैठकर खाना खाया उसके बाद विवेकानंद जी ने कुछ आराम किया दोपहर 1:30 बजे सभी सभागार में इकट्ठे हुए और डेढ़ 2 घंटे तक काफी हंसी-मजाक चला शाम को विवेकानंद जी मठ में घूमकर अपने कमरे में वापस चले गए।
और दरवाजे और खिड़कियां बंद की और ध्यान में बैठ गए उसके बाद उन्होंने खिड़कियां खोली और बिस्तर पर लेट गए। और ओम का उच्चारण करते हुए उन्होंने प्राण त्यागे।
“संत विवेकानंद अमर तुम, अमर तुम्हारी पवन वाणी तुम्हें सदा ही शीश नवाते भारत के प्राणी प्राणी”
1) स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बन गए थे।
2) बचपन में स्वामी विवेकानंद बड़े शरारती और नटखट स्वभाव के थे।
3) 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए थे।
4) 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।
5) स्वामी विवेकानंद 1893 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।
6) स्वामी विवेकानंद पहली बार राजा अजीत सिंह से 4 अगस्त 1891 को माउंट आबू में मिले थे।
7) 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद नहीं शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन मैं अपना पहला भाषण दिया था।
8) स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन 12 जनवरी को अब पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस” के रुप में मनाया जाता है।
9) 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में अपने प्राण त्याग दिए।
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Swami Vivekananda Quotes in Hindi – स्वामी विवेकानंद के विचार
Swami Vivekananda Biography in Hindi आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएंगे अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके बताएं और शेयर करना ना भूले।
This article will help me a lot.
Thank you Dilip Singh Sisodiya.
very nice Biography …Today we need just like Biography who show to our society and new generation…my new generation going to wrong side about RELIGION…
Thank you Devendra Nath Thakur for appreciation, keep visiting hindi yatra.
आपने स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी दी है। आपने विवेकानंद के सभी विषय को बहुत खूबसूरती से समझाया है।
निरंजन सुबेदी, सराहना के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे ही ही हिंदी यात्रा पर आते रहे
hame aise hi sant ki jaroorat hai jo hamari dharm ,sanskrit ka prachar prasar kare aur apne desh ki shiksha padhat hamare desh ke p.m. lagu kare.
Premnath Yadav ji aap ne shi bola, agar hum unke vicharo par chle toek acche samaj ka nirmaan kar sakte hai. Hindi yatra par aane ke liye ka bhut bhut dhanyawad.
Bahut hi gajab biography h
Thank you Mohammed Azam khan for appreciation.
स्वामी विवेकानंद 1828 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।
ye Date Galat hai..har jagah. isko sudhar liya jaye
Raj Singh ji hame hmari galti batane ke liye Dhanyawad, hamne galti ko thik kar liya hai.
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Uploaded by vivekavani on January 17, 2021
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स्वामी विवेकानंद कौन थे इन हिंदी.
स्वामी विवेकानंद की जीवनी pdf स्वामी विवेकानन्द समाज के हीरो थे समाज मे फैले अंधविश्वास को दूर करना इनका प्रमुख कार्य था। स्वामी विवेकानंद जी विश्व विख्यात और प्रतिभाशाली छवि के व्यक्ति थे उन्होंने अमरीका स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया जो आज विश्व में विश्व ख्याति प्राप्त है उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की वे एक महान समाज सुधारक और महान व्यक्ति थे।
स्वामी विवेकानंद सदियों से हर भारतीय युवा के लिए आदर्श रहे हैं। विवेकानंद बचपन से जिज्ञासु और एक विशेष प्रतिभा के धनी थे। उनका आदर्श विचार और शक्तिशाली व्यक्तित्व आज भी दुनिया को प्रेरित करती है।
स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download – स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था स्वामी विवेकानंद जी को नरेंद्र के नाम से भी जाना जाता था स्वामी विवेकानंद जी के पिताजी वकालत करते थे।
स्वामी विवेकानन्द के पिता जी एक विचारक अति उदार गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे।
स्वामी विवेकानंद जी की माता जी भुवनेश्वरी देवी जो सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थी इनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होंने बहोत कम आयु में लगातार प्रयास और संघर्ष से 39 वर्ष की आयु में पूरे विश्व में छा गए थे । स्वमी विवेकानंद जी हिन्दू सभ्यता के शिरोमणि संत थे।
स्वामी विवेकानन्द जी बचपन से हैं चिंतनशील प्रवृत्ति के व्यक्ति थे उनके माता-पिता ने इसका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया।
स्वामी विवेकानंद का नाम विवेकानंद कैसे पड़ा स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों मैं जाने के लिए पैसे नहीं थे इसीलिए नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। इस प्रकार नरेंद्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।
स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर में स्थित काली मन्दिर के प्रसिद्ध पुजारी थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट 1881 में हुई थी।
दक्षिणेश्वर के इसी काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के चरणों में बैठकर ईश्वर संबंधी ज्ञान पाया था। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ पाच वर्षों 1882 से लेकर 1886 तक रह सके।
स्वामी विवेकानंद समाज में व्याप्त समस्याओं को जड़ से नष्ट करना चाहते थे स्वामी विवेकानंद समाज के विभिन्न समस्या पर उन्होंने अपना महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।
स्वामी विवेकानंद भारतीय समाज में व्याप्त राष्ट्रीयता छुआछूत पर कटि प्रहार किया वह उच्चव निम्न जातियों के भेद को मिटाना चाहते थे वे कहते थे तुम्हारे मन में जो ईश्वर स्थित है वही मेरे मन में भी है फिर यह भेदभाव क्यों यह समानता क्यों।
जातियों द्वारा निम्न जातियों के किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध थे। स्वामी विवेकानन्द प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्त्री जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए जो राष्ट्र स्त्रियो का आदर नहीं करते वो कभी उन्नति नहीं कर पाए और न भविष्य में ही कर पाएंगे ऐसा कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था।
स्वामी विवेकानन्द जी ने स्त्रियों और धार्मिक तथा चरित्र संबंधित शिक्षा देने पर बल दिया स्वामी विवेकानंद जी ने बाल विवाह का विरोध किया बाल विवाह की आलोचना की विवेकानन्द ने समाज में रहकर हिंदू और मुस्लिम की एकता पर बल दिया स्वामी विवेकानंद ने आज समाज में फैली व्यर्थ कुरुतिया को हटाकर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने पर बल दिया समाज में जितनी भी कुरुतिया थी उनकी कटु आलोचना की।
स्वामी विवेकानन्द संगीत साहित्य और दर्शन उनका शौक था स्वामी विवेकानन्द ने 25 वर्ष की आयु में ही वेद पुराण बाईबल कुरान पूंजीवाद अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र संगीत साहित्य आदि की तमाम तरह के विचारधाराओं को ग्रहण कर लिया था जैसे बड़े होते गए विवेकानंद सभी धर्म और दर्शन के प्रति अविश्वास हो गया।
विवेकानन्द ने कहा है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए इस कथन के माध्यम से उन्होंने भारत के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया वर्तमान समय में भी विवेकानंद जी का यह संदेश युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है जो कि अब युवाओं का मूल मंत्र भी बन चुका है।
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है
तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता
सत्य को हजार तारीख को से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा
शिखागो के व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने प्रेम एवं मानवता का संदेश दिया था। स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागों शहर में 11 सितंबर 1893 को हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक अविस्मरणीय व्याख्यान दिया था।
स्वामी विवेकानन्द जी की मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई। मृत्यु के पहले शाम के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया। शाम के करीब 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई।
ऐसा कहा जाता है की स्वामी विवेकानन्द जी ने समाधि ले थी स्वामी विवेकानंद की मृत्यु दिमाग की नसे फटने के कारण हुई थी।
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