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Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics

  • सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
  • अतिवृष्टि पर निबंध – (Flood Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – (Role Of Teacher In Nation Building Essay)
  • नक्सलवाद पर निबंध – (Naxalism In India Essay)
  • साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – (Literature And Society Essay)
  • नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – (Drug Abuse Essay)
  • मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – (It is the Mind which Wins and Defeats Essay)
  • एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – (Gst One Nation One Tax Essay)
  • युवा पर निबंध – (Youth Essay)
  • अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – (Renewable Sources Of Energy Essay)
  • मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – (Price Rise Essay)
  • परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – (Philanthropy Essay)
  • पर्वतीय यात्रा पर निबंध – (Parvatiya Yatra Essay)
  • असंतुलित लिंगानुपात निबंध – (Sex Ratio Essay)
  • मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – (Means Of Entertainment Essay)
  • मेट्रो रेल पर निबंध – (Metro Rail Essay)
  • दूरदर्शन पर निबंध – (Importance Of Doordarshan Essay)
  • दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – (Doordarshan Essay)
  • बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – (Baste Ka Badhta Bojh Essay)
  • महानगरीय जीवन पर निबंध – (Metropolitan Life Essay)
  • दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Dowry Problem Essay)
  • सुरीला राजस्थान निबंध – (Folklore Of Rajasthan Essay)
  • राजस्थान में जल संकट पर निबंध – (Water Scarcity In Rajasthan Essay)
  • खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – (Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay)
  • रंगीला राजस्थान पर निबंध – (Rangila Rajasthan Essay)
  • राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – (Competition Of Rajasthani Folk Essay)
  • मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – (Happiness Essay)
  • मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध नंबर – (My Aim In Life Essay)
  • राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – (Tourist Places Of Rajasthan Essay)
  • नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay)
  • राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – (The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay)
  • देशप्रेम पर निबंध – (Patriotism Essay)
  • पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँ योजना यूपी में लागू निबंध – (Read Daughters, Grow Daughters Essay)
  • सत्संगति का महत्व पर निबंध – (Satsangati Ka Mahatva Nibandh)
  • सिनेमा और समाज पर निबंध – (Cinema And Society Essay)
  • विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत पर निबंध – (Vipatti Kasauti Je Kase Soi Sache Meet Essay)
  • लड़का लड़की एक समान पर निबंध – (Ladka Ladki Ek Saman Essay)
  • विज्ञापन के प्रभाव – (Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay)
  • रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य पर निबंध – (Railway Platform Ka Drishya Essay)
  • समाचार-पत्र का महत्त्व पर निबंध – (Importance Of Newspaper Essay)
  • समाचार-पत्रों से लाभ पर निबंध – (Samachar Patr Ke Labh Essay)
  • समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)
  • व्यायाम का महत्व निबंध – (Importance Of Exercise Essay)
  • विद्यार्थी जीवन पर निबंध – (Student Life Essay)
  • विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध – (Students And Politics Essay)
  • विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध – (Vidyarthi Aur Anushasan Essay)
  • मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – (My Favorite Festival Essay)
  • मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favourite Book Essay)
  • पुस्तक मेला पर निबंध – (Book Fair Essay)
  • मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – (My Favorite Player Essay)
  • सर्वधर्म समभाव निबंध – (All Religions Are Equal Essay)
  • शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
  • खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
  • क्रिकेट पर निबंध – (Cricket Essay)
  • ट्वेन्टी-20 क्रिकेट पर निबंध – (T20 Cricket Essay)
  • मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – (My Favorite Game Cricket Essay)
  • पुस्तकालय पर निबंध – (Library Essay)
  • सूचना प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण निबंध – (Information Technology Essay)
  • कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव निबंध – (Computer Aur Tv Essay)
  • कंप्यूटर की उपयोगिता पर निबंध – (Computer Ki Upyogita Essay)
  • कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Computer Education Essay)
  • कंप्यूटर के लाभ पर निबंध – (Computer Ke Labh Essay)
  • इंटरनेट पर निबंध – (Internet Essay)
  • विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – (Science Essay)
  • शिक्षा का गिरता स्तर पर निबंध – (Falling Price Level Of Education Essay)
  • विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Advantages And Disadvantages Of Science Essay)
  • विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – (Health Education Essay)
  • विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध – (Anniversary Of The School Essay)
  • विज्ञान के वरदान पर निबंध – (The Gift Of Science Essays)
  • विज्ञान के चमत्कार पर निबंध (Wonder Of Science Essay in Hindi)
  • विकास पथ पर भारत निबंध – (Development Of India Essay)
  • कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र–पुरुष – (Computer Essay)
  • मोबाइल फोन पर निबंध (Mobile Phone Essay)
  • मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – (My Unforgettable Trip Essay)
  • मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध – (Mars Mission Essay)
  • विज्ञान की अद्भुत खोज कंप्यूटर पर निबंध – (Vigyan Ki Khoj Kampyootar Essay)
  • भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Freedom Is Our Birthright Essay)
  • सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – (Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay)
  • डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)
  • भारतीय संस्कृति पर निबंध – (India Culture Essay)
  • राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (National Language Hindi Essay)
  • भारत में जल संकट निबंध – (Water Crisis In India Essay)
  • कौशल विकास योजना पर निबंध – (Skill India Essay)
  • हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – (Mera Pyara Bharat Varsh Essay)
  • अनेकता में एकता : भारत की विशेषता – (Unity In Diversity Essay)
  • महंगाई की समस्या पर निबन्ध – (Problem Of Inflation Essay)
  • महंगाई पर निबंध – (Mehangai Par Nibandh)
  • आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप निबंध – (Reservation System Essay)
  • मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)
  • ग्रामीण समाज की समस्याएं पर निबंध – (Problems Of Rural Society Essay)
  • मेरे सपनों का भारत पर निबंध – (India Of My Dreams Essay)
  • भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Caste And Politics In India Essay)
  • भारतीय नारी पर निबंध – (Indian Woman Essay)
  • आधुनिक नारी पर निबंध – (Modern Women Essay)
  • भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध – (Women’s Role In Modern Society Essay)
  • चुनाव पर निबंध – (Election Essay)
  • चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन निबन्ध – (An Election Booth Essay)
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध – (Dependence Essay)
  • परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – (Nuclear Energy Essay)
  • यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो हिंदी निबंध – (If I were the Prime Minister Essay)
  • आजादी के 70 साल निबंध – (India ofter 70 Years Of Independence Essay)
  • भारतीय कृषि पर निबंध – (Indian Farmer Essay)
  • संचार के साधन पर निबंध – (Means Of Communication Essay)
  • भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – (Telecom Revolution In India Essay)
  • दूरसंचार में क्रांति निबंध – (Revolution In Telecommunication Essay)
  • राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध (Importance Of National Integration)
  • भारत की ऋतुएँ पर निबंध – (Seasons In India Essay)
  • भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – (Future Of Sports Essay)
  • किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध – (Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay)
  • राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – (Criminalization Of Indian Politics Essay)
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हिन्दी निबंध – (Narendra Modi Essay)
  • बाल मजदूरी पर निबंध – (Child Labour Essay)
  • भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi)
  • महिला सशक्तिकरण पर निबंध – (Women Empowerment Essay)
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao)
  • गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay)
  • बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – (Child Marriage Essay)
  • राष्ट्रीय एकीकरण पर निबंध – (Importance of National Integration Essay)
  • आतंकवाद पर निबंध (Terrorism Essay in hindi)
  • सड़क सुरक्षा पर निबंध (Road Safety Essay in Hindi)
  • बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Increasing Materialism Reducing Human Values Essay)
  • गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – (The Good Of The Country: Cleaning The Ganges Essay)
  • सत्संगति पर निबंध – (Satsangati Essay)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध – (Women’s Role In Society Today Essay)
  • यातायात के नियम पर निबंध – (Traffic Safety Essay)
  • बेटी बचाओ पर निबंध – (Beti Bachao Essay)
  • सिनेमा या चलचित्र पर निबंध – (Cinema Essay In Hindi)
  • परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – (Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay)
  • पेड़-पौधे का महत्व निबंध – (The Importance Of Trees Essay)
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली – (Modern Education System Essay)
  • महिला शिक्षा पर निबंध (Women Education Essay In Hindi)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध (Women’s Role In Society Essay In Hindi)
  • यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध – (If I Was The Principal Essay)
  • बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay)
  • शिक्षित बेरोजगारी की समस्या निबंध – (Problem Of Educated Unemployment Essay)
  • बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध – (Unemployment Problem And Solution Essay)
  • दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)
  • जनसँख्या पर निबंध – (Population Essay)
  • श्रम का महत्त्व निबंध – (Importance Of Labour Essay)
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – (Problem Of Increasing Population Essay)
  • भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – (Corruption Problem And Solution Essay)
  • मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – (Social Responsibility Of Media Essay)
  • हमारे जीवन में मोबाइल फोन का महत्व पर निबंध – (Importance Of Mobile Phones Essay In Our Life)
  • विश्व में अत्याधिक जनसंख्या पर निबंध – (Overpopulation in World Essay)
  • भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध – (Problem Of Unemployment In India Essay)
  • गणतंत्र दिवस पर निबंध – (Republic Day Essay)
  • भारत के गाँव पर निबंध – (Indian Village Essay)
  • गणतंत्र दिवस परेड पर निबंध – (Republic Day of India Essay)
  • गणतंत्र दिवस के महत्व पर निबंध – (2020 – Republic Day Essay)
  • महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay)
  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध – (Dr. A.P.J. Abdul Kalam Essay)
  • परिवार नियोजन पर निबंध – (Family Planning In India Essay)
  • मेरा सच्चा मित्र पर निबंध – (My Best Friend Essay)
  • अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay)
  • देश के प्रति मेरे कर्त्तव्य पर निबंध – (My Duty Towards My Country Essay)
  • समय का सदुपयोग पर निबंध – (Samay Ka Sadupyog Essay)
  • नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर निबंध (Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi)
  • ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – (Global Warming Essay)
  • जल जीवन का आधार निबंध – (Jal Jeevan Ka Aadhar Essay)
  • जल ही जीवन है निबंध – (Water Is Life Essay)
  • प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – (Pollution Problem And Solution Essay)
  • प्रकृति संरक्षण पर निबंध (Conservation of Nature Essay In Hindi)
  • वन जीवन का आधार निबंध – (Forest Essay)
  • पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Environment Essay)
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environmental Pollution Essay in Hindi)
  • पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (Environment Protection Essay In Hindi)
  • बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – (Vehicle Pollution Essay)
  • योग पर निबंध (Yoga Essay)
  • मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – (Adulterated Foods And Health Essay)
  • प्रकृति निबंध – (Nature Essay In Hindi)
  • वर्षा ऋतु पर निबंध – (Rainy Season Essay)
  • वसंत ऋतु पर निबंध – (Spring Season Essay)
  • बरसात का एक दिन पर निबंध – (Barsat Ka Din Essay)
  • अभ्यास का महत्व पर निबंध – (Importance Of Practice Essay)
  • स्वास्थ्य ही धन है पर निबंध – (Health Is Wealth Essay)
  • महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Tulsidas Essay)
  • मेरा प्रिय कवि निबंध – (My Favourite Poet Essay)
  • मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favorite Book Essay)
  • कबीरदास पर निबन्ध – (Kabirdas Essay)

इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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> अनुक्रमांक- 303 (अ) प्रांभिक स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के प्रयोग का प्रभाव > अनुक्रमांक- 305 (अ ) राष्ट्र  के समग्र विकास में गुणवत्तापूर्णा शिक्षा का योगदान > अनुक्रमांक 313   योग साधना एवं तनाव मुक्त जिंदगी > अनुक्रमांक 320 योग साधना एवं तनाव मुक्त जिंदगी > अनुक्रमांक 318   योग साधना एवं तनाव मुक्त जिंदगी

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) - छात्र जीवन में विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध (essay in hindi) लिखने की आवश्यकता होती है। हिंदी निबंध लेखन (essay writing in hindi) के कई फायदे हैं। हिंदी निबंध से किसी विषय से जुड़ी जानकारी को व्यवस्थित रूप देना आ जाता है तथा विचारों को अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने की गतिविधि से इन विषयों पर छात्रों के ज्ञान के दायरे का विस्तार होता है जो कि शिक्षा के अहम उद्देश्यों में से एक है। हिंदी में निबंध या लेख लिखने से विषय के बारे में समालोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। साथ ही अच्छा हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने पर अंक भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हिंदी निबंध (hindi nibandh) किसी विषय से जुड़े आपके पूर्वाग्रहों को दूर कर सटीक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे अज्ञानता की वजह से हम लोगों के सामने शर्मिंदा होने से बच जाते हैं।

आइए सबसे पहले जानते हैं कि हिंदी में निबंध की परिभाषा (definition of essay) क्या होती है?

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

कुछ सामान्य विषयों (common topics) पर जानकारी जुटाने में छात्रों की सहायता करने के उद्देश्य से हमने हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) और भाषणों के रूप में कई लेख तैयार किए हैं। स्कूली छात्रों (कक्षा 1 से 12 तक) एवं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हिंदी निबंध (hindi nibandh), भाषण तथा कविता (useful essays, speeches and poems) से उनको बहुत मदद मिलेगी तथा उनके ज्ञान के दायरे में विस्तार होगा। ऐसे में यदि कभी परीक्षा में इससे संबंधित निबंध आ जाए या भाषण देना होगा, तो छात्र उन परिस्थितियों / प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर पाएँगे।

महत्वपूर्ण लेख :

  • 10वीं के बाद लोकप्रिय कोर्स
  • 12वीं के बाद लोकप्रिय कोर्स
  • क्या एनसीईआरटी पुस्तकें जेईई मेन की तैयारी के लिए काफी हैं?
  • कक्षा 9वीं से नीट की तैयारी कैसे करें

छात्र जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सबसे सुनहरे समय में से एक होता है जिसमें उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वास्तव में जीवन की आपाधापी और चिंताओं से परे मस्ती से भरा छात्र जीवन ज्ञान अर्जित करने को समर्पित होता है। छात्र जीवन में अर्जित ज्ञान भावी जीवन तथा करियर के लिए सशक्त आधार तैयार करने का काम करता है। नींव जितनी अच्छी और मजबूत होगी उस पर तैयार होने वाला भवन भी उतना ही मजबूत होगा और जीवन उतना ही सुखद और चिंतारहित होगा। इसे देखते हुए स्कूलों में शिक्षक छात्रों को विषयों से संबंधित अकादमिक ज्ञान से लैस करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की पाठ्येतर गतिविधियों के जरिए उनके ज्ञान के दायरे का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। इन पाठ्येतर गतिविधियों में समय-समय पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) या लेख और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शामिल है।

करियर संबंधी महत्वपूर्ण लेख :

  • डॉक्टर कैसे बनें?
  • सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बनें
  • इंजीनियर कैसे बन सकते हैं?

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति ही निबंध है।

अन्य महत्वपूर्ण लेख :

  • हिंदी दिवस पर भाषण
  • हिंदी दिवस पर कविता
  • हिंदी पत्र लेखन

आइए अब जानते हैं कि निबंध के कितने अंग होते हैं और इन्हें किस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से लिखकर आकर्षक बनाया जा सकता है। किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) के मोटे तौर पर तीन भाग होते हैं। ये हैं - प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार।

प्रस्तावना (भूमिका)- हिंदी निबंध के इस हिस्से में विषय से पाठकों का परिचय कराया जाता है। निबंध की भूमिका या प्रस्तावना, इसका बेहद अहम हिस्सा होती है। जितनी अच्छी भूमिका होगी पाठकों की रुचि भी निबंध में उतनी ही अधिक होगी। प्रस्तावना छोटी और सटीक होनी चाहिए ताकि पाठक संपूर्ण हिंदी लेख (hindi me lekh) पढ़ने को प्रेरित हों और जुड़ाव बना सकें।

विषय विस्तार- निबंध का यह मुख्य भाग होता है जिसमें विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसमें इसके सभी संभव पहलुओं की जानकारी दी जाती है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) के इस हिस्से में अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखकर अभिव्यक्त करने की खूबी का प्रदर्शन करना होता है।

उपसंहार- निबंध का यह अंतिम भाग होता है, इसमें हिंदी निबंध (hindi nibandh) के विषय पर अपने विचारों का सार रखते हुए पाठक के सामने निष्कर्ष रखा जाता है।

ये भी देखें :

अग्निपथ योजना रजिस्ट्रेशन

अग्निपथ योजना एडमिट कार्ड

अग्निपथ योजना सिलेबस

अंत में यह जानना भी अत्यधिक आवश्यक है कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं। मोटे तौर निबंध को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है-

वर्णनात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें त्योहार, यात्रा, आयोजन आदि पर लेखन शामिल है। इनमें घटनाओं का एक क्रम होता है और इस तरह के निबंध लिखने आसान होते हैं।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है। अक्सर ये किसी समस्या – सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत- पर लिखे जाते हैं। विज्ञान वरदान या अभिशाप, राष्ट्रीय एकता की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि ऐसे विषय हो सकते हैं। इन हिंदी निबंधों (hindi nibandh) में विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार व्यक्त किया जाता है और समस्या को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है। इनमें कल्पनाशीलता के लिए अधिक छूट होती है। भाव की प्रधानता के कारण इन निबंधों में लेखक की आत्मीयता झलकती है। मेरा प्रिय मित्र, यदि मैं डॉक्टर होता जैसे विषय इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

ये भी पढ़ें-

  • केंद्रीय विद्यालय एडमिशन
  • नवोदय कक्षा 6 प्रवेश
  • एनवीएस एडमिशन कक्षा 9

जिस प्रकार बातचीत को आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए लोग मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविताओं आदि की मदद लेते हैं, ठीक उसी तरह निबंध को भी प्रभावी बनाने के लिए इनकी सहायता ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए मित्रता पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखते समय तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की मदद ले सकते हैं -

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिन्हिं बिलोकत पातक भारी।

यानि कि जो व्यक्ति मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है, उनको देखने से बड़ा पाप होता है।

हिंदी या मातृभाषा पर निबंध लिखते समय भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों का प्रयोग करने से चार चाँद लग जाएगा-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

प्रासंगिकता और अपने विवेक के अनुसार लेखक निबंधों में ऐसी सामग्री का उपयोग निबंध को प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं। इनका भंडार तैयार करने के लिए जब कभी कोई पंक्ति या उद्धरण अच्छा लगे, तो एकत्रित करते रहें और समय-समय पर इनको दोहराते रहें।

उपरोक्त सभी प्रारूपों का उपयोग कर छात्रों के लिए हमने निम्नलिखित हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तैयार किए हैं -

सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेता थे और बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। इसके माध्यम से भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। विद्यार्थियों को अक्सर कक्षा और परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस जयंती (subhash chandra bose jayanti) या सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध (subhash chandra bose essay in hindi) लिखने को कहा जाता है। यहां सुभाष चंद्र बोस पर 100, 200 और 500 शब्दों का निबंध दिया गया है।

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के सम्मान में स्कूलों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन सभी स्कूलों, सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में झंडोत्तोलन होता है। राष्ट्रगान गाया जाता है। मिठाईयां बांटी जाती है और अवकाश रहता है। छात्रों और बच्चों के लिए 100, 200 और 500 शब्दों में गणतंत्र दिवस पर निबंध पढ़ें।

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया, इसमें भारत को गणतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाने की राह तैयार की गई। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण (रिपब्लिक डे स्पीच) देने के लिए हिंदी भाषण की उपयुक्त सामग्री (Republic Day Speech Ideas) की यदि आपको भी तलाश है तो समझ लीजिए कि गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day speech in Hindi) की आपकी तलाश यहां खत्म होती है। इस राष्ट्रीय पर्व के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक बनाने और उनके ज्ञान को परखने के लिए गणतत्र दिवस पर निबंध (Republic day essay) लिखने का प्रश्न भी परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से Gantantra Diwas par nibandh लिखने में भी मदद मिलेगी। Gantantra Diwas par lekh bhashan तैयार करने में इस लेख में दी गई जानकारी की मदद लें और अच्छा प्रदर्शन करें।

मोबाइल फ़ोन को सेल्युलर फ़ोन भी कहा जाता है। मोबाइल आज आधुनिक प्रौद्योगिकी का एक अहम हिस्सा है जिसने दुनिया को एक साथ लाकर हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल में इंटरनेट के इस्तेमाल ने कई कामों को बेहद आसान कर दिया है। मनोरंजन, संचार के साथ रोजमर्रा के कामों में भी इसकी अहम भूमिका हो गई है। इस निबंध में मोबाइल फोन के बारे में बताया गया है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने जनभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इस दिन की याद में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। वहीं हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) मनाया जाता है। इस लेख में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) और विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के बारे में चर्चा की गई है।

मकर संक्रांति का त्योहार यूपी, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में 14 जनवरी को मनाया जाता है। इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद पूजा करके दान करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड, चिउड़ा-दही खाने का रिवाज है। प्रयागराज में इस दिन से कुंभ मेला आरंभ होता है। इस लेख में मकर संक्रांति के बारे में बताया गया है।

पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते समय ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा अक्सर होती है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध वैश्विक तापमान में वृद्धि से है। इसके अनेक कारण हैं। इनमें वनों का लगातार कम होना और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रमुख है। वनों का विस्तार करके और ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण करके हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठा सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- कारण और समाधान में इस विषय पर चर्चा की गई है।

भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। समाचारों में अक्सर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। अलग-अलग एजेंसियां भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करती रहती हैं। फिर भी आम जनता को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। हालांकि डिजीटल इंडिया की पहल के बाद कई मामलों में पारदर्शिता आई है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले कम हुए है, समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार पर निबंध के माध्यम से आपको इस विषय पर सभी पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

समय-समय पर ईश्वरीय शक्ति का एहसास कराने के लिए संत-महापुरुषों का जन्म होता रहा है। गुरु नानक भी ऐसे ही विभूति थे। उन्होंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत कर दिया। गुरु नानक की तर्कसम्मत बातों से आम जनमानस उनका मुरीद हो गया। उन्होंने दुनिया को मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। भारत, पाकिस्तान, अरब और अन्य जगहों पर वर्षों तक यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक जयंती पर निबंध से आपको उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी मिलेगी।

कुत्ता हमारे आसपास रहने वाला जानवर है। सड़कों पर, गलियों में कहीं भी कुत्ते घूमते हुए दिख जाते हैं। शौक से लोग कुत्तों को पालते भी हैं। क्योंकि वे घर की रखवाली में सहायक होते हैं। बच्चों को अक्सर परीक्षा में मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। यह लेख बच्चों को मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने में सहायक होगा।

स्वामी विवेकानंद जी हमारे देश का गौरव हैं। विश्व-पटल पर वास्तविक भारत को उजागर करने का कार्य सबसे पहले किसी ने किया तो वें स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने ही विश्व को भारतीय मानसिकता, विचार, धर्म, और प्रवृति से परिचित करवाया। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में जानने के लिए आपको इस लेख को पढ़ना चाहिए। यह लेख निश्चित रूप से आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन करेगा।

हम सभी ने "महिला सशक्तिकरण" या नारी सशक्तिकरण के बारे में सुना होगा। "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाने और सभी लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिए किए गए कार्यों को संदर्भित करता है। व्यापक अर्थ में, यह विभिन्न नीतिगत उपायों को लागू करके महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित है। प्रत्येक बालिका की स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को अनिवार्य बनाना, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस लेख में "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जो निश्चित रूप से सभी के लिए सहायक होंगे।

भगत सिंह एक युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए बहुत कम उम्र में ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। देश के लिए उनकी भक्ति निर्विवाद है। शहीद भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वह इसे हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार थे। उनके निधन से पूरे देश में देशभक्ति की भावना प्रबल हो गई। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया गया था। वह हमेशा हमारे बीच शहीद भगत सिंह के नाम से ही जाने जाएंगे। भगत सिंह के जीवन परिचय के लिए अक्सर छोटी कक्षा के छात्रों को भगत सिंह पर निबंध तैयार करने को कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से आपको भगत सिंह पर निबंध तैयार करने में सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है"। यह महा उपनिषद् से लिया गया है। वसुधैव कुटुंबकम वह दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह वाक्यांश संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, सभी की गरिमा का ध्यान रखने के साथ ही सबके प्रति दयाभाव रखना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पोषित करने की आवश्यकता सदैव रही है पर इसकी आवश्यकता इस समय में पहले से कहीं अधिक है। समय की जरूरत को देखते हुए इसके महत्व से भावी नागरिकों को अवगत कराने के लिए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध या भाषणों का आयोजन भी स्कूलों में किया जाता है। कॅरियर्स360 के द्वारा छात्रों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर यह लेख तैयार किया गया है।

गाय भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण पशु में से एक है जिस पर न जाने कितने ही लोगों की आजीविका आश्रित है क्योंकि गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली हर वस्तु का उपयोग भारतीय लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में किया जाता है। ना सिर्फ आजीविका के लिहाज से, बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी भारत में गाय एक महत्वपूर्ण पशु है क्योंकि भारत में मौजूद सबसे बड़ी आबादी यानी हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए गाय आस्था का प्रतीक है। ऐसे में विद्यालयों में गाय को लेकर निबंध लिखने का कार्य दिया जाना आम है। गाय के इस निबंध के माध्यम से छात्रों को परीक्षा में पूछे जाने वाले गाय पर निबंध को लिखने में भी सहायता मिलेगी।

क्रिसमस (christmas in hindi) भारत सहित दुनिया भर में मनाए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक वर्ष इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का महत्व समझाने के लिए कई बार स्कूलों में बच्चों को क्रिसमस पर निबंध (christmas in hindi) लिखने का कार्य दिया जाता है। क्रिसमस पर एग्जाम के लिए प्रभावी निबंध तैयार करने का तरीका सीखें।

रक्षाबंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरी तरह से भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को कोई तोहफा देने के साथ ही जीवन भर उनके सुख-दुख में उनका साथ देने का वचन देते हैं। इस दिन छोटी बच्चियाँ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन पर हिंदी में निबंध (essay on rakshabandhan in hindi) आधारित इस लेख से विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के त्योहार पर न सिर्फ लेख लिखने में सहायता प्राप्त होगी, बल्कि वे इसकी सहायता से रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भी समझ सकेंगे।

होली त्योहार जल्द ही देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला है। होली आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। होली पर हिंदी में निबंध (hindi mein holi par nibandh) को पढ़ने से होली के सभी पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी और यदि परीक्षा में holi par hindi mein nibandh लिखने को आया तो अच्छा अंक लाने में भी सहायता मिलेगी।

दशहरा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बच्चों को विद्यालयों में दशहरा पर निबंध (Essay in hindi on Dussehra) लिखने को भी कहा जाता है, जिससे उनकी दशहरा के प्रति उत्सुकता बनी रहे और उन्हें दशहरा के बारे पूर्ण जानकारी भी मिले। दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख में हम देखेंगे कि लोग दशहरा कैसे और क्यों मनाते हैं, इसलिए हिंदी में दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

हमें उम्मीद है कि दीवाली त्योहार पर हिंदी में निबंध उन युवा शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो इस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं। हमने नीचे दिए गए निबंध में शुभ दिवाली त्योहार (Diwali Festival) के सार को सही ठहराने के लिए अपनी ओर से एक मामूली प्रयास किया है। बच्चे दिवाली पर हिंदी के इस निबंध से कुछ सीख कर लाभ उठा सकते हैं कि वाक्यों को कैसे तैयार किया जाए, Class 1 से 10 तक के लिए दीपावली पर निबंध हिंदी में तैयार करने के लिए इसके लिंक पर जाएँ।

बाल दिवस पर भाषण (Children's Day Speech In Hindi), बाल दिवस पर हिंदी में निबंध (Children's Day essay In Hindi), बाल दिवस गीत, कविता पाठ, चित्रकला, खेलकूद आदि से जुड़ी प्रतियोगिताएं बाल दिवस के मौके पर आयोजित की जाती हैं। स्कूलों में बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए उपयोगी सामग्री इस लेख में मिलेगी जिसकी मदद से बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस के लिए निबंध तैयार करने में मदद मिलेगी। कई बार तो परीक्षाओं में भी बाल दिवस पर लेख लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। इसमें भी यह लेख मददगार होगा।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत देश अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में, हिंदी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस पर भाषण के लिए उपयोगी जानकारी इस लेख में मिलेगी।

हिन्दी में कवियों की परम्परा बहुत लम्बी है। हिंदी के महान कवियों ने कालजयी रचनाएं लिखी हैं। हिंदी में निबंध और वाद-विवाद आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व हिंदी कविताओं और कविता-पाठ का भी है। हिंदी दिवस पर विद्यालय या अन्य किसी आयोजन पर हिंदी कविता भी चार चाँद लगाने का काम करेगी। हिंदी दिवस कविता के इस लेख में हम हिंदी भाषा के सम्मान में रचित, हिंदी का महत्व बतलाती विभिन्न कविताओं की जानकारी दी गई है।

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत 200 सालों के अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। यही वजह है कि यह दिन इतिहास में दर्ज हो गया और इसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते तो हैं ही और साथ ही इसके बाद वे पूरे देश को लालकिले से संबोधित भी करते हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री का पूरा भाषण टीवी व रेडियो के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा देश भर में इस दिन सभी कार्यालयों में छुट्टी होती है। स्कूल्स व कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी जो निश्चित तौर पर आपके लिए लेख लिखने में सहायक सिद्ध होगी।

प्रदूषण पृथ्वी पर वर्तमान के उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ और बहुत ही तेजी के साथ किए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध के ज़रिए हम इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानेंगे। वायु प्रदूषण पर लेख (Essay on Air Pollution) से इस समस्या को जहाँ समझने में आसानी होगी वहीं हम वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पहलुओं के बारे में भी जान सकेंगे। इससे स्कूली विद्यार्थियों को वायु प्रदूषण पर निबंध (Essay on Air Pollution) तैयार करने में भी मदद होगी। हिंदी में वायु प्रदूषण पर निबंध से परीक्षा में बेहतर स्कोर लाने में मदद मिलेगी।

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। पृथ्वी ग्रह का बुखार (तापमान) लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, इसे स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर ईमानदारी से काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन पर निबंध के जरिए छात्रों को इस विषय और इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान के बारे में जानने को मिलेगा।

हमारी यह पृथ्वी जिस पर हम सभी निवास करते हैं इसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के दौरान हुई थी। पहला विश्व पर्यावरण दिवस (Environment Day) 5 जून 1974 को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) स्लोगन/थीम के साथ मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी भाग लिया था। इसी सम्मलेन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी स्थापना की गई थी। इस विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों के भीतर पर्यावरण (Environment) के प्रति जागरूकता लाना और साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी है। इसी विषय पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तथा 1987 से हर वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने के लिए अलग-अलग देश को चुना गया।

आज के युग में जब हम अपना अधिकतर समय पढाई पर केंद्रित करने का प्रयास करते नजर आते हैं और साथ ही अपना ज़्यादातर समय ऑनलाइन रह कर व्यतीत करना पसंद करते हैं, ऐसे में हमारे जीवन में खेलों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खेल हमारे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, अपितु हमारे सर्वांगीण विकास का एक माध्यम भी है। हमारे जीवन में खेल उतना ही जरूरी है, जितना पढाई करना। आज कल के युग में मानव जीवन में शारीरिक कार्य की तुलना में मानसिक कार्य में बढ़ोतरी हुई है और हमारी जीवन शैली भी बदल गई है, हम रात को देर से सोते हैं और साथ ही सुबह देर से उठते हैं। जाहिर है कि यह दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और इसके साथ ही कार्य या पढाई की वजह से मानसिक तनाव पहले की तुलना में वृद्धि महसूस की जा सकती है। ऐसी स्थिति में जब हमारे जीवन में शारीरिक परिश्रम अधिक नहीं है, तो हमारे जीवन में खेलो का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’, जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढती गई, वैसे-वैसे उसने अपनी सुविधा के लिए अविष्कार करना आरंभ किया। विज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे व्यवस्थित ज्ञान से है जो विचार, अवलोकन तथा प्रयोगों से प्राप्त किया जाता है, जो कि किसी अध्ययन की प्रकृति या सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिए भी किया जाता है, जो तथ्य, सिद्धांत और तरीकों का प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करता है।

शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु माँ होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही बड़ा और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना भी उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़को पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था जिन्होंने 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।

हम उम्मीद करते हैं कि स्कूली छात्रों के लिए तैयार उपयोगी हिंदी में निबंध, भाषण और कविता (Essays, speech and poems for school students) के इस संकलन से निश्चित तौर पर छात्रों को मदद मिलेगी।

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बाल श्रम को बच्चो द्वारा रोजगार के लिए किसी भी प्रकार के कार्य को करने के रूप में परिभाषित किया गया है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा डालता है और उन्हें मूलभूत शैक्षिक और मनोरंजक जरूरतों तक पहुंच से वंचित करता है। एक बच्चे को आम तौर व्यस्क तब माना जाता है जब वह पंद्रह वर्ष या उससे अधिक का हो जाता है। इस आयु सीमा से कम के बच्चों को किसी भी प्रकार के जबरन रोजगार में संलग्न होने की अनुमति नहीं है। बाल श्रम बच्चों को सामान्य परवरिश का अनुभव करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और उनके शारीरिक और भावनात्मक विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें बाल श्रम या फिर कहें तो बाल मजदूरी पर निबंध।

एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती आला दर्जे के वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रभावी नेता के तौर पर भी होती है। वह 21वीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक हैं। कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने, अपने कार्यकाल में समाज को लाभ पहुंचाने वाली कई पहलों की शुरुआत की। मेरा प्रिय नेता विषय पर अक्सर परीक्षा में निबंध लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें अपने प्रिय नेता: एपीजे अब्दुल कलाम पर निबंध।

हमारे जीवन में बहुत सारे लोग आते हैं। उनमें से कई को भुला दिया जाता है, लेकिन कुछ का हम पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। भले ही हमारे कई दोस्त हों, उनमें से कम ही हमारे अच्छे दोस्त होते हैं। कहा भी जाता है कि सौ दोस्तों की भीड़ के मुक़ाबले जीवन में एक सच्चा/अच्छा दोस्त होना काफी है। यह लेख छात्रों को 'मेरे प्रिय मित्र'(My Best Friend Nibandh) पर निबंध तैयार करने में सहायता करेगा।

3 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन, दोनों ही पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुई। सरोजिनी नायडू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

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Frequently Asked Question (FAQs)

किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- ये हैं- प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार (conclusion)।

हिंदी निबंध लेखन शैली की दृष्टि से मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

वर्णनात्मक हिंदी निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है।

विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

निबंध में समुचित जगहों पर मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविता का प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाने में मदद मिलती है। हिंदी निबंध के प्रभावी होने पर न केवल बेहतर अंक मिलेंगी बल्कि असल जीवन में अपनी बात रखने का कौशल भी विकसित होगा।

कुछ उपयोगी विषयों पर हिंदी में निबंध के लिए ऊपर लेख में दिए गए लिंक्स की मदद ली जा सकती है।

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति निबंध है।

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Data Administrator

Database professionals use software to store and organise data such as financial information, and customer shipping records. Individuals who opt for a career as data administrators ensure that data is available for users and secured from unauthorised sales. DB administrators may work in various types of industries. It may involve computer systems design, service firms, insurance companies, banks and hospitals.

Bio Medical Engineer

The field of biomedical engineering opens up a universe of expert chances. An Individual in the biomedical engineering career path work in the field of engineering as well as medicine, in order to find out solutions to common problems of the two fields. The biomedical engineering job opportunities are to collaborate with doctors and researchers to develop medical systems, equipment, or devices that can solve clinical problems. Here we will be discussing jobs after biomedical engineering, how to get a job in biomedical engineering, biomedical engineering scope, and salary. 

Ethical Hacker

A career as ethical hacker involves various challenges and provides lucrative opportunities in the digital era where every giant business and startup owns its cyberspace on the world wide web. Individuals in the ethical hacker career path try to find the vulnerabilities in the cyber system to get its authority. If he or she succeeds in it then he or she gets its illegal authority. Individuals in the ethical hacker career path then steal information or delete the file that could affect the business, functioning, or services of the organization.

GIS officer work on various GIS software to conduct a study and gather spatial and non-spatial information. GIS experts update the GIS data and maintain it. The databases include aerial or satellite imagery, latitudinal and longitudinal coordinates, and manually digitized images of maps. In a career as GIS expert, one is responsible for creating online and mobile maps.

Data Analyst

The invention of the database has given fresh breath to the people involved in the data analytics career path. Analysis refers to splitting up a whole into its individual components for individual analysis. Data analysis is a method through which raw data are processed and transformed into information that would be beneficial for user strategic thinking.

Data are collected and examined to respond to questions, evaluate hypotheses or contradict theories. It is a tool for analyzing, transforming, modeling, and arranging data with useful knowledge, to assist in decision-making and methods, encompassing various strategies, and is used in different fields of business, research, and social science.

Geothermal Engineer

Individuals who opt for a career as geothermal engineers are the professionals involved in the processing of geothermal energy. The responsibilities of geothermal engineers may vary depending on the workplace location. Those who work in fields design facilities to process and distribute geothermal energy. They oversee the functioning of machinery used in the field.

Database Architect

If you are intrigued by the programming world and are interested in developing communications networks then a career as database architect may be a good option for you. Data architect roles and responsibilities include building design models for data communication networks. Wide Area Networks (WANs), local area networks (LANs), and intranets are included in the database networks. It is expected that database architects will have in-depth knowledge of a company's business to develop a network to fulfil the requirements of the organisation. Stay tuned as we look at the larger picture and give you more information on what is db architecture, why you should pursue database architecture, what to expect from such a degree and what your job opportunities will be after graduation. Here, we will be discussing how to become a data architect. Students can visit NIT Trichy , IIT Kharagpur , JMI New Delhi . 

Remote Sensing Technician

Individuals who opt for a career as a remote sensing technician possess unique personalities. Remote sensing analysts seem to be rational human beings, they are strong, independent, persistent, sincere, realistic and resourceful. Some of them are analytical as well, which means they are intelligent, introspective and inquisitive. 

Remote sensing scientists use remote sensing technology to support scientists in fields such as community planning, flight planning or the management of natural resources. Analysing data collected from aircraft, satellites or ground-based platforms using statistical analysis software, image analysis software or Geographic Information Systems (GIS) is a significant part of their work. Do you want to learn how to become remote sensing technician? There's no need to be concerned; we've devised a simple remote sensing technician career path for you. Scroll through the pages and read.

Budget Analyst

Budget analysis, in a nutshell, entails thoroughly analyzing the details of a financial budget. The budget analysis aims to better understand and manage revenue. Budget analysts assist in the achievement of financial targets, the preservation of profitability, and the pursuit of long-term growth for a business. Budget analysts generally have a bachelor's degree in accounting, finance, economics, or a closely related field. Knowledge of Financial Management is of prime importance in this career.

Underwriter

An underwriter is a person who assesses and evaluates the risk of insurance in his or her field like mortgage, loan, health policy, investment, and so on and so forth. The underwriter career path does involve risks as analysing the risks means finding out if there is a way for the insurance underwriter jobs to recover the money from its clients. If the risk turns out to be too much for the company then in the future it is an underwriter who will be held accountable for it. Therefore, one must carry out his or her job with a lot of attention and diligence.

Finance Executive

Product manager.

A Product Manager is a professional responsible for product planning and marketing. He or she manages the product throughout the Product Life Cycle, gathering and prioritising the product. A product manager job description includes defining the product vision and working closely with team members of other departments to deliver winning products.  

Operations Manager

Individuals in the operations manager jobs are responsible for ensuring the efficiency of each department to acquire its optimal goal. They plan the use of resources and distribution of materials. The operations manager's job description includes managing budgets, negotiating contracts, and performing administrative tasks.

Stock Analyst

Individuals who opt for a career as a stock analyst examine the company's investments makes decisions and keep track of financial securities. The nature of such investments will differ from one business to the next. Individuals in the stock analyst career use data mining to forecast a company's profits and revenues, advise clients on whether to buy or sell, participate in seminars, and discussing financial matters with executives and evaluate annual reports.

A Researcher is a professional who is responsible for collecting data and information by reviewing the literature and conducting experiments and surveys. He or she uses various methodological processes to provide accurate data and information that is utilised by academicians and other industry professionals. Here, we will discuss what is a researcher, the researcher's salary, types of researchers.

Welding Engineer

Welding Engineer Job Description: A Welding Engineer work involves managing welding projects and supervising welding teams. He or she is responsible for reviewing welding procedures, processes and documentation. A career as Welding Engineer involves conducting failure analyses and causes on welding issues. 

Transportation Planner

A career as Transportation Planner requires technical application of science and technology in engineering, particularly the concepts, equipment and technologies involved in the production of products and services. In fields like land use, infrastructure review, ecological standards and street design, he or she considers issues of health, environment and performance. A Transportation Planner assigns resources for implementing and designing programmes. He or she is responsible for assessing needs, preparing plans and forecasts and compliance with regulations.

Environmental Engineer

Individuals who opt for a career as an environmental engineer are construction professionals who utilise the skills and knowledge of biology, soil science, chemistry and the concept of engineering to design and develop projects that serve as solutions to various environmental problems. 

Safety Manager

A Safety Manager is a professional responsible for employee’s safety at work. He or she plans, implements and oversees the company’s employee safety. A Safety Manager ensures compliance and adherence to Occupational Health and Safety (OHS) guidelines.

Conservation Architect

A Conservation Architect is a professional responsible for conserving and restoring buildings or monuments having a historic value. He or she applies techniques to document and stabilise the object’s state without any further damage. A Conservation Architect restores the monuments and heritage buildings to bring them back to their original state.

Structural Engineer

A Structural Engineer designs buildings, bridges, and other related structures. He or she analyzes the structures and makes sure the structures are strong enough to be used by the people. A career as a Structural Engineer requires working in the construction process. It comes under the civil engineering discipline. A Structure Engineer creates structural models with the help of computer-aided design software. 

Highway Engineer

Highway Engineer Job Description:  A Highway Engineer is a civil engineer who specialises in planning and building thousands of miles of roads that support connectivity and allow transportation across the country. He or she ensures that traffic management schemes are effectively planned concerning economic sustainability and successful implementation.

Field Surveyor

Are you searching for a Field Surveyor Job Description? A Field Surveyor is a professional responsible for conducting field surveys for various places or geographical conditions. He or she collects the required data and information as per the instructions given by senior officials. 

Orthotist and Prosthetist

Orthotists and Prosthetists are professionals who provide aid to patients with disabilities. They fix them to artificial limbs (prosthetics) and help them to regain stability. There are times when people lose their limbs in an accident. In some other occasions, they are born without a limb or orthopaedic impairment. Orthotists and prosthetists play a crucial role in their lives with fixing them to assistive devices and provide mobility.

Pathologist

A career in pathology in India is filled with several responsibilities as it is a medical branch and affects human lives. The demand for pathologists has been increasing over the past few years as people are getting more aware of different diseases. Not only that, but an increase in population and lifestyle changes have also contributed to the increase in a pathologist’s demand. The pathology careers provide an extremely huge number of opportunities and if you want to be a part of the medical field you can consider being a pathologist. If you want to know more about a career in pathology in India then continue reading this article.

Veterinary Doctor

Speech therapist, gynaecologist.

Gynaecology can be defined as the study of the female body. The job outlook for gynaecology is excellent since there is evergreen demand for one because of their responsibility of dealing with not only women’s health but also fertility and pregnancy issues. Although most women prefer to have a women obstetrician gynaecologist as their doctor, men also explore a career as a gynaecologist and there are ample amounts of male doctors in the field who are gynaecologists and aid women during delivery and childbirth. 

Audiologist

The audiologist career involves audiology professionals who are responsible to treat hearing loss and proactively preventing the relevant damage. Individuals who opt for a career as an audiologist use various testing strategies with the aim to determine if someone has a normal sensitivity to sounds or not. After the identification of hearing loss, a hearing doctor is required to determine which sections of the hearing are affected, to what extent they are affected, and where the wound causing the hearing loss is found. As soon as the hearing loss is identified, the patients are provided with recommendations for interventions and rehabilitation such as hearing aids, cochlear implants, and appropriate medical referrals. While audiology is a branch of science that studies and researches hearing, balance, and related disorders.

An oncologist is a specialised doctor responsible for providing medical care to patients diagnosed with cancer. He or she uses several therapies to control the cancer and its effect on the human body such as chemotherapy, immunotherapy, radiation therapy and biopsy. An oncologist designs a treatment plan based on a pathology report after diagnosing the type of cancer and where it is spreading inside the body.

Are you searching for an ‘Anatomist job description’? An Anatomist is a research professional who applies the laws of biological science to determine the ability of bodies of various living organisms including animals and humans to regenerate the damaged or destroyed organs. If you want to know what does an anatomist do, then read the entire article, where we will answer all your questions.

For an individual who opts for a career as an actor, the primary responsibility is to completely speak to the character he or she is playing and to persuade the crowd that the character is genuine by connecting with them and bringing them into the story. This applies to significant roles and littler parts, as all roles join to make an effective creation. Here in this article, we will discuss how to become an actor in India, actor exams, actor salary in India, and actor jobs. 

Individuals who opt for a career as acrobats create and direct original routines for themselves, in addition to developing interpretations of existing routines. The work of circus acrobats can be seen in a variety of performance settings, including circus, reality shows, sports events like the Olympics, movies and commercials. Individuals who opt for a career as acrobats must be prepared to face rejections and intermittent periods of work. The creativity of acrobats may extend to other aspects of the performance. For example, acrobats in the circus may work with gym trainers, celebrities or collaborate with other professionals to enhance such performance elements as costume and or maybe at the teaching end of the career.

Video Game Designer

Career as a video game designer is filled with excitement as well as responsibilities. A video game designer is someone who is involved in the process of creating a game from day one. He or she is responsible for fulfilling duties like designing the character of the game, the several levels involved, plot, art and similar other elements. Individuals who opt for a career as a video game designer may also write the codes for the game using different programming languages.

Depending on the video game designer job description and experience they may also have to lead a team and do the early testing of the game in order to suggest changes and find loopholes.

Radio Jockey

Radio Jockey is an exciting, promising career and a great challenge for music lovers. If you are really interested in a career as radio jockey, then it is very important for an RJ to have an automatic, fun, and friendly personality. If you want to get a job done in this field, a strong command of the language and a good voice are always good things. Apart from this, in order to be a good radio jockey, you will also listen to good radio jockeys so that you can understand their style and later make your own by practicing.

A career as radio jockey has a lot to offer to deserving candidates. If you want to know more about a career as radio jockey, and how to become a radio jockey then continue reading the article.

Choreographer

The word “choreography" actually comes from Greek words that mean “dance writing." Individuals who opt for a career as a choreographer create and direct original dances, in addition to developing interpretations of existing dances. A Choreographer dances and utilises his or her creativity in other aspects of dance performance. For example, he or she may work with the music director to select music or collaborate with other famous choreographers to enhance such performance elements as lighting, costume and set design.

Social Media Manager

A career as social media manager involves implementing the company’s or brand’s marketing plan across all social media channels. Social media managers help in building or improving a brand’s or a company’s website traffic, build brand awareness, create and implement marketing and brand strategy. Social media managers are key to important social communication as well.

Photographer

Photography is considered both a science and an art, an artistic means of expression in which the camera replaces the pen. In a career as a photographer, an individual is hired to capture the moments of public and private events, such as press conferences or weddings, or may also work inside a studio, where people go to get their picture clicked. Photography is divided into many streams each generating numerous career opportunities in photography. With the boom in advertising, media, and the fashion industry, photography has emerged as a lucrative and thrilling career option for many Indian youths.

An individual who is pursuing a career as a producer is responsible for managing the business aspects of production. They are involved in each aspect of production from its inception to deception. Famous movie producers review the script, recommend changes and visualise the story. 

They are responsible for overseeing the finance involved in the project and distributing the film for broadcasting on various platforms. A career as a producer is quite fulfilling as well as exhaustive in terms of playing different roles in order for a production to be successful. Famous movie producers are responsible for hiring creative and technical personnel on contract basis.

Copy Writer

In a career as a copywriter, one has to consult with the client and understand the brief well. A career as a copywriter has a lot to offer to deserving candidates. Several new mediums of advertising are opening therefore making it a lucrative career choice. Students can pursue various copywriter courses such as Journalism , Advertising , Marketing Management . Here, we have discussed how to become a freelance copywriter, copywriter career path, how to become a copywriter in India, and copywriting career outlook. 

In a career as a vlogger, one generally works for himself or herself. However, once an individual has gained viewership there are several brands and companies that approach them for paid collaboration. It is one of those fields where an individual can earn well while following his or her passion. 

Ever since internet costs got reduced the viewership for these types of content has increased on a large scale. Therefore, a career as a vlogger has a lot to offer. If you want to know more about the Vlogger eligibility, roles and responsibilities then continue reading the article. 

For publishing books, newspapers, magazines and digital material, editorial and commercial strategies are set by publishers. Individuals in publishing career paths make choices about the markets their businesses will reach and the type of content that their audience will be served. Individuals in book publisher careers collaborate with editorial staff, designers, authors, and freelance contributors who develop and manage the creation of content.

Careers in journalism are filled with excitement as well as responsibilities. One cannot afford to miss out on the details. As it is the small details that provide insights into a story. Depending on those insights a journalist goes about writing a news article. A journalism career can be stressful at times but if you are someone who is passionate about it then it is the right choice for you. If you want to know more about the media field and journalist career then continue reading this article.

Individuals in the editor career path is an unsung hero of the news industry who polishes the language of the news stories provided by stringers, reporters, copywriters and content writers and also news agencies. Individuals who opt for a career as an editor make it more persuasive, concise and clear for readers. In this article, we will discuss the details of the editor's career path such as how to become an editor in India, editor salary in India and editor skills and qualities.

Individuals who opt for a career as a reporter may often be at work on national holidays and festivities. He or she pitches various story ideas and covers news stories in risky situations. Students can pursue a BMC (Bachelor of Mass Communication) , B.M.M. (Bachelor of Mass Media) , or  MAJMC (MA in Journalism and Mass Communication) to become a reporter. While we sit at home reporters travel to locations to collect information that carries a news value.  

Corporate Executive

Are you searching for a Corporate Executive job description? A Corporate Executive role comes with administrative duties. He or she provides support to the leadership of the organisation. A Corporate Executive fulfils the business purpose and ensures its financial stability. In this article, we are going to discuss how to become corporate executive.

Multimedia Specialist

A multimedia specialist is a media professional who creates, audio, videos, graphic image files, computer animations for multimedia applications. He or she is responsible for planning, producing, and maintaining websites and applications. 

Quality Controller

A quality controller plays a crucial role in an organisation. He or she is responsible for performing quality checks on manufactured products. He or she identifies the defects in a product and rejects the product. 

A quality controller records detailed information about products with defects and sends it to the supervisor or plant manager to take necessary actions to improve the production process.

Production Manager

A QA Lead is in charge of the QA Team. The role of QA Lead comes with the responsibility of assessing services and products in order to determine that he or she meets the quality standards. He or she develops, implements and manages test plans. 

Process Development Engineer

The Process Development Engineers design, implement, manufacture, mine, and other production systems using technical knowledge and expertise in the industry. They use computer modeling software to test technologies and machinery. An individual who is opting career as Process Development Engineer is responsible for developing cost-effective and efficient processes. They also monitor the production process and ensure it functions smoothly and efficiently.

AWS Solution Architect

An AWS Solution Architect is someone who specializes in developing and implementing cloud computing systems. He or she has a good understanding of the various aspects of cloud computing and can confidently deploy and manage their systems. He or she troubleshoots the issues and evaluates the risk from the third party. 

Azure Administrator

An Azure Administrator is a professional responsible for implementing, monitoring, and maintaining Azure Solutions. He or she manages cloud infrastructure service instances and various cloud servers as well as sets up public and private cloud systems. 

Computer Programmer

Careers in computer programming primarily refer to the systematic act of writing code and moreover include wider computer science areas. The word 'programmer' or 'coder' has entered into practice with the growing number of newly self-taught tech enthusiasts. Computer programming careers involve the use of designs created by software developers and engineers and transforming them into commands that can be implemented by computers. These commands result in regular usage of social media sites, word-processing applications and browsers.

Information Security Manager

Individuals in the information security manager career path involves in overseeing and controlling all aspects of computer security. The IT security manager job description includes planning and carrying out security measures to protect the business data and information from corruption, theft, unauthorised access, and deliberate attack 

ITSM Manager

Automation test engineer.

An Automation Test Engineer job involves executing automated test scripts. He or she identifies the project’s problems and troubleshoots them. The role involves documenting the defect using management tools. He or she works with the application team in order to resolve any issues arising during the testing process. 

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70+विषयों पर निबंध (Essay In Hindi) | Nibandh

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निबंध (Essay In Hindi)- निबंध (Nibandh) या हिंदी निबंध (Hindi Essay) हिंदी गद्य का एक अहम और पुराना भाग है। हम लोग पिछले कई वर्षों से हिंदी में निबंध (Hindi Me Nibandh) पढ़ते और लिखते हुए आ रहे हैं। हिंदी निबंध पढ़ने और लिखने की शुरुआत स्कूल से ही हो जाती है। स्कूल और कॉलेज में आज भी विद्यार्थियों को वर्तमान विषयों पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है, जिसमें वह निबंध लेखन के विषय को याद करके अपनी समझ से लिखते हैं। लेकिन कुछ विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिन्हें निबंध लिखने में कठिनाई होती है और वह एक अच्छा निबंध हिंदी में (In Hindi Essay) नहीं लिख पाते हैं।

निबंध (Essay In Hindi)

जो विद्यार्थी हिंदी में निबंध (Essay Hindi) नहीं लिख पाते हैं, उनके लिए ये पोस्ट काफी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इस पोस्ट में हम आपको निबंध हिंदी (Nibandh Hindi) से जुड़ी सभी जानकारी देंगे, जैसे- निबंध क्या है (Nibandh Kya Hai), निबंध का अर्थ और परिभाषा क्या है, निबंध के कितने प्रकार होते हैं, निबंध की विशेषताएं क्या हैं, निबंध के मुख्य अंग कौन से हैं, निबंध लेखन क्या है, निबंध कैसे लिखते हैंं, निबंध लिखते समय हमें किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए आदि। इसके अतिरिक्त हमने इस पोस्ट में हिंदी निबंध विषय (Hindi Essay Topics) सहित हिंदी के प्रसिद्ध निबंध भी दे रखे हैं, जिन्हें पढ़कर आप निबंध लेखन की कला को आसानी से समझ सकते हैं।

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निबंध क्या है?

निबंध हिंदी गद्य लेखन की ही एक विधा या एक प्रकार की गद्य रचना है। निबंध में किसी भी विषय, व्यक्ति या वस्तु के बारे क्रमबद्ध तरीके से लिखा जाता है और उसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। दूसरे शब्दों में अगर हम समझें, तो किसी विषय पर विस्तारपूर्वक अपने विचार प्रकट करना निबंध कहलाता है।

ये भी पढ़ें

निबंध का अर्थ

निबंध शब्द दो शब्दों के मेल नि+बंध से बना हुआ एक शब्द है, जिसका सीधा सा अर्थ है अच्छी तरह से बँधा हुआ या जुड़ा हुआ। निबंध को अंग्रेजी में एस्से (Essay) कहा जाता है। अगर हम देखें तो हमारे सामने निबंध के कई अर्थ निकल कर आते हैं, जैसे निबंध का संबंध लेख, अभिलेख, रचना आदि सभी से है, जिसमें अपने विचारों को सरल और रोचक भाषा में एक साथ पिरौकर पाठक के समकक्ष रखा जाता है।

निबंध की परिभाषा

किसी विषय को क्रमबद्ध, सविस्तार और विवरणात्मक तरीके से अपनी भाषा शैली में तथ्यों और विचारों के साथ जोड़ने की क्रिया को निबंध कहते हैं। हिंदी साहित्य जगत के विद्वानों ने निबंध की परिभाषा को अपने-अपने अनुसार लिखा है, जो इस प्रकार है-

बाबू गुलाबराय के अनुसार- ‘‘निबंध उस गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।’’

आचार्य शुक्ल लिखते हैं- ’’यदि गद्य कवियों को कसौटी है, तो निबंध गद्य की।’’

पंडित श्यामसुंदर दास कहते हैं- ’’निबंध वह लेख है जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तारपूर्वक और पाण्डित्यपूर्व ढंग से विचार किया गया हो।’

डाॅ. भगीरथ मिश्र ने लिखा है- ’’निबंध वह गद्य रचना है, जिसमें लेखक किसी भी विषय पर स्वच्छन्दतापूर्वक परन्तु एक विशेष सौष्ठव, संहिति, सजीवता और वैयक्तिकता के साथ अपने भावों, विचारों और अनुभवों को व्यक्त करता है।’’

निबंध के प्रकार

निबंध के मुख्य रूप से चार प्रकार होते हैं- 1. वर्णनात्मक निबंध, 2. विचारात्मक निबंध, 3. भावात्मक निबंध, 4. साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध।

  • वर्णनात्मक निबंध- वर्णनात्मक निबंध में किसी घटना, वस्तु या स्थान का वर्णन होता है जैसे- होली, दीपावली, ताजमहल, यात्रा, खेल आदि।
  • विचारात्मक निबंध- विचारात्मक निबंध में अपने विचारों के माध्यम से किसी विचारात्मक विषय जैसे- अहिंसा, बाल मजदूरी, विधवा-विवाह आदि पर निबंध लिखना होता है, जो काफी कठिन होता है।
  • भावात्मक निबंध- भावनात्मक निबंध का संबंध हमारे मन के भावों से जुड़ा हुआ होता है। भावनात्मक निबंध में वास्तविक और कल्पनात्मक दोनों विषय आते हैं, जैसे- बरसात का पहला दिन वास्तविक विषय है जबकि यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता एक काल्पनिक विषय है।
  • साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध- साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध किसी मशहूर साहित्यकार, साहित्यिक विधा या साहित्यिक कृति पर लिखा जाता है, जैसे- मुंशी प्रेमचंद, आधुनिक हिन्दी कविता आदि।

निबंध के मुख्य अंग

निबंध के मुख्य रूप से चार अंग निर्धारित हैं, जो किसी भी निबंध के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। निबंध के मुख्य चार अंगों के नाम इस प्रकार हैं-

  • शीर्षक- निबंध का सबसे पहला अंग होता है शीर्षक यानी कि जिस विषय पर आप निबंध लिख रहे हैं उसका नाम। आपका शीर्षक जितना आकर्षक होगा उतना ही लोगों में आपके निबंध को पढ़ने की उत्सुकता बढ़ेगी।
  • प्रस्तावना या भूमिका- प्रस्तावना या भूमिका निबंध का दूसरा अंग होती है, जिसे निबंध की नींव भी कहा जाता है। प्रस्तावना से पता चलता है कि आपके निबंध की भाषा शैली कैसी है। प्रस्तावना हमेशा रोचक, आकर्षक और छोटी होनी चाहिए ताकि जो भी आपके निबंध को पढ़ रहा है उसे पूरा पढ़ने का मन करे। प्रस्तावना इस प्रकार की हो जो यह स्पष्ट कर सके कि आपके निबंध की विषयवस्तु क्या है।
  • विस्तार- विस्तार निबंध का तीसरा व सबसे प्रमुख अंग होता है। विस्तार में लेखक निबंध के विषय के बारे में विस्तारपूर्वक लिखता। वह निबंध के विषय से संबंधित जानकारी को इकट्ठा करके अपनी भाषा व अपने शब्दों में लिखता है। इसके अलावा वह विस्तार में अपने विचारों को भी रखता है और निबंध को संतुलित बनाने का प्रयास करता है। विस्तार में ही निबंधकार के दृष्टिकोण का पता चलता है।
  • उपसंहार या निष्कर्ष- उपसंहार या निष्कर्ष निबंध का चौथा व आखिरी अंग होता है, जिसमें निबंध को समापन की ओर ले जाना होता है। निबंध को समाप्त करने के लिए लेखक अपना दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है और किसी विशेष व्यक्ति के उपदेश, विचार या कविता का भी प्रयोग करता है।

हिंदी निबंध लेखन (Hindi Essay Writing) हिंदी गद्य लेखन की एक खास कला है। वर्तमान में विभिन्न विषयों पर हिंदी में निबंध (Nibandh In Hindi) लिखे जा रहे हैं। हिंदी निबंध लेखन (Hindi Essay Writing) मुख्य रूप से स्कूल और कॉलेज में अधिक होता है। यहाँ पर विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में निबंध लेखन होता है और परीक्षाओं में भी विद्यार्थियों को अलग-अलग विषय पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इसके अलावा स्कूल और कॉलेज में हिंदी दिवस जैसे खास अवसर पर हिंदी निबंध लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें छात्र बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। विद्यार्थियों के अलावा अन्य लोगों की भी निबंध लेखन के प्रति रुचि बढ़ रही है, लेकिन हिंदी निबंध लेखन के संबंध में लोगों का एक सवाल हमेशा रहता है कि हिंदी में निबंध कैसे लिखें?, जिसकी चर्चा आगे की गई है।

निबंध कैसे लिखें?

निबंध लिखना कोई कठिन कार्य नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि निबंध लिखना बहुत आसान है, लेकिन लिखने से पहले ज़रूरी है पढ़ना। आप जितना ज़्यादा पढ़ेंगे उताना ज़्यादा ही अच्छा लिख पाएंगे, क्योंकि पढ़ना भरना है और लिखना झलकना। पढ़ने से आपका बौद्धिक विकास होगा, आपको नए शब्द सीखने को मिलेंगे, आपको दूसरों के विचारों के बारे में पता चलेगा, आप जिस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं उस विषय की जानकारी आपके पास होगी और तब आप एक अच्छा निबंध लिख पाएंगे।

निबंध लिखने के 10 आसान टिप्स

निबंध लिखने के 10 ज़रूरी टिप्स इस प्रकार हैं-

  • निबंध लिखने की शुरुआत करने से पहले उस निबंध से जुड़े विषय के अन्य निबंधों को पढ़ें।
  • निबंध को अपने शब्दों में लिखने का प्रयास करें।
  • निबंध को सरल, सहज और स्पष्ट भाषा में लिखें।
  • निबंध को उसके मुख्य अंगों शीर्षक, प्रस्तावना, विस्तार और निष्कर्ष के साथ ही लिखें।
  • निबंध लिखते समय छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करें।
  • निबंध को क्रमबद्ध तरीके से लिखें।
  • निबंध में एक बार कही गई बात को दोबारा दोहराने से बचें।
  • निबंध में अपने विचार अवश्य जोड़ें।
  • निबंध पूरा होने के बाद उसे कम से कम दो से तीन बार ज़रूर पढ़ें।
  • निबंध में गलतियां मिलने पर उन्हें सुधारें।

अच्छे निबंध की विशेषताएं

एक अच्छे निबंध की विशेषताएं या अच्छे निबंध के गुण इस प्रकार हैं-

  • संक्षिप्तता
  • प्रभावोत्पादकता
  • स्वच्छन्दता
  • गद्यात्मकता

निबंध लेखन के विषय

नीचे हमने हिंदी में निबंध के लिए विषय (Topic For Essay In Hindi) दिए हुए हैं। आप हमारे द्वारा दिए गए Essay Topic In Hindi में अलग-अलग हिंदी के प्रसिद्ध निबंध पढ़ सकते हैं और निबंध लेखन की शैली को समझ सकते हैं।

धार्मिक त्योहार

राष्ट्रीय त्योहार, मौसमी त्योहार, भारत के प्रमुख दिवस, अन्य विषयों पर निबंध.

प्रश्न- हिंदी में निबंध कैसे लिखें?

उत्तरः हिंदी में निबंध आसान और स्पष्ट भाषा में लिखें।

प्रश्न- निबंध क्या है in Hindi?

उत्तरः निबंध हिंदी गद्य की एक विधा है।

प्रश्न- निबंध के कुल कितने अंग है?

उत्तरः निबंध के कुल चार अंग हैं, 1. शीर्षक, 2. प्रस्तावना, 3. विस्तार, 4. निष्कर्ष।

प्रश्न- निबंध में प्रस्तावना में क्या लिखते हैं?

उत्तरः निबंध में प्रस्तावना में पूरे निबंध की विषयवस्तु के बारे में लिखा जाता है।

प्रश्न- निबंध की तीन विशेषताएं क्या हैं?

उत्तरः नवीनता, रोचकता और मौलिकता।

प्रश्न- निबंध के मुख्य दो प्रकार कौन से हैं ?

उत्तरः वर्णनात्मक और विचारात्मक।

प्रश्न- निबंध के अंत में हमें क्या लिखना चाहिए?

उत्तरः निबंध के अंत में हमें उपसंहार लिखना चाहिए।

प्रश्न- लेख और निबंध में क्या अंतर है?

उत्तरः लेख छोटे और कम शब्दों के होते हैं जबकि निबंध बड़े और ज़्यादा शब्दों के होते हैं।

1 thought on “70+विषयों पर निबंध (Essay In Hindi) | Nibandh”

शुक्रिया सर, आपने बहुत ही बेहतरीन तरीके से “निबंध लिखने के नियम” को प्रस्तुत किया है? इसकी सहायता से आज मै दुसरे साइटो के लिये निबंध लिखकर पैसे कमा पा रहा हू। धन्यवाद

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Hindi Essay Book By Nirman IAS

Last Updated on April 14, 2024 by admin Leave a Comment

Hindi Essay Book By निर्माण आईएएस

Hindi Essay Book By Nirman IAS निबंध हिंदी निबंध संग्रह एस्से राइटिंग इन हिंदी essay in Hindi list of Hindi essay topics निबंध लेखन हिंदी हिंदी निबंध पुस्तक हिंदी निबंध पुस्तक pdf.

Table of Contents

Hindi Essay Book By Nirman IAS:- Hi students welcome to the world of knowledge. On this page, I’m going to share ‘ Hindi Essay Book By Nirman IAS ‘ which is a very good book for UPSC students in Hindi. This essay book helps students to get higher marks in the examination.

Hindi Essay Book By Nirman IAS

Essay writing is an important part of competitive exams like UPSC. So It is very important to focus on an essay on writing and to learn how to write an essay. Some great coachings like Nirman IAS and Drishti IAS create and publish educational contents for students which help to get higher ranks in the exam.

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Essay in Hindi – ‎हिन्दी निबंध

Essay in Hindi: Here you can learn Hindi Essay pdf for Class 12, Class11, Class 10, Class 9, Class 8, Class 7, Class 6 in Hindi. Full Hindi Essay pdf download, Hindi Essay free book solutions.

Essay in Hindi – हिन्दी निबंध

  • नदी पर निबंध
  • राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध
  • देश प्रेम पर निबंध
  • भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध
  • समय का सदुपयोग पर निबंध
  • पेड़ों का महत्व पर निबंध
  • आदर्श विद्यार्थी पर निबंध
  • मेरा भारत महान पर निबंध
  • क्रिसमस का पर्व पर निबंध (बड़ा दिन का त्योहार)
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  • गणेश चतुर्थी पर निबंध
  • छठ पूजा पर निबंध लिखें
  • दुर्गा पूजा पर निबंध लिखे
  • मकर संक्रांति पर निबंध
  • Essay on GST in Hindi
  • महात्मा गांधी पर निबंध
  • प्रदूषण पर निबंध
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध

हम उम्मीद रखते है कि यह Class 12 Hindi Essay आपकी स्टडी में उपयोगी साबित हुए होंगे | अगर आप लोगो को इससे रिलेटेड कोई भी किसी भी प्रकार का डॉउट हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूंछ सकते है |

यदि इन नोट्स से आपको हेल्प मिली हो तो आप इन्हे अपने Classmates & Friends के साथ शेयर कर सकते है और  HindiLearning.in  को सोशल मीडिया में शेयर कर सकते है, जिससे हमारा मोटिवेशन बढ़ेगा और हम आप लोगो के लिए ऐसे ही और मैटेरियल अपलोड कर पाएंगे |

हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है।

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निबंध (Hindi Essay)

आजकल के समय में निबंध लिखना एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है, खासतौर से छात्रों के लिए। ऐसे कई अवसर आते हैं, जब आपको विभिन्न विषयों पर निबंधों की आवश्यकता होती है। निबंधों के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने इन निबंधों को तैयार किया है। हमारे द्वारा तैयार किये गये निबंध बहुत ही क्रमबद्ध तथा सरल हैं और हमारे वेबसाइट पर छोटे तथा बड़े दोनो प्रकार की शब्द सीमाओं के निबंध उपलब्ध हैं।

निबंध क्या है?

कई बार लोगो द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि आखिर निबंध क्या है? और निबंध की परिभाषा क्या है? वास्तव में निबंध एक प्रकार की गद्य रचना होती है। जिसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया हो। एक अच्छा निबंध लिखने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए जैसे कि – हमारे द्वारा लिखित निबंध की भाषा सरल हो, इसमें विचारों की पुनरावृत्ति न हो, निबंध के विभिन्न हिस्सों को शीर्षकों में बांटा गया हो आदि।

यदि आप इन बातों का ध्यान रखगें तो एक अच्छा निबंध(Hindi Nibandh) अवश्य लिख पायेंगे। अपने निबंधों के लेखन के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़े क्योंकि ऐसा करने पर आप अपनी त्रुटियों को ठीक करके अपने निबंधों को और भी अच्छा बना पायेंगे।

हम अपने वेबसाइट पर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के निबंध(Essay in Hindi) उपलब्ध करा रहे हैं| इस प्रकार के निबंध आपके बच्चों और विद्यार्थियों की अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों जैसे: निबंध लेखन, वाद-विवाद प्रतियोगिता और विचार-विमर्श में बहुत सहायक हो साबित होंगे।

ये सारे ‎हिन्दी निबंध (Hindi Essay) बहुत आसान शब्दों का प्रयोग करके बहुत ही सरल और आसान भाषा में लिखे गए हैं। इन निबंधों को कोई भी व्यक्ति बहुत ही आसानी से समझ सकता है। हमारे वेबसाइट पर स्कूलों में दिये जाने वाले निबंधों के साथ ही अन्य कई प्रकार के निबंध उपलब्ध है। जो आपके परीक्षाओं तथा अन्य कार्यों के लिए काफी सहायक सिद्ध होंगे, इन दिये गये निबंधों का आप अपनी आवश्यकता अनुसार उपयोग कर सकते हैं। ऐसे ही अन्य सामग्रियों के लिए भी आप हमारी वेबसाइट का प्रयोग कर सकते हैं।

Essay in Hindi

Nibandh

निबंध | निबन्ध | निबंध लेखन | हिंदी निबंध -

nibandh.net एक वेबसाइट (Website) है जो हिंदी निबंध के लिए है। यहाँ आप विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध पढ़ और सिख सकते है जो स्कूलों और कॉलेज विद्यार्थियों को पूछे जाते है। यहाँ आप विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध, निबंध लेखन, पत्र लेखन, कहानी लेखन और वृत्तांत लेखन पढ़ और सिख सकते है जो सभी छात्रों एवं आम नागरिकों के लिए उपयोगी है। इस वेबसाइट पर मैंने व्यवस्थित रूप से सभी प्रकार के निबंध का संग्रह तैयार किया है। यहाँ दिए गए निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और स्नातक के विद्यार्थियों और शिक्षक के लिए उपयोगी है। यहाँ आप सभी तरह के टॉपिक्स (Topics) पर निबंध पढ़ सकते है और निबंध लिखना भी सीख सकते है।

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nibandh.net is a Online Learning Website. Here you can read and learn various topics of Hindi Essay or related to essay which is helpful for every person. Also here you can learn and improve your Essay Writing in Hindi, Letter Writing in Hindi, Story Writing in Hindi and Report Writing in Hindi which is helpful for Kids, Students, Teachers and Other person.

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आइये सबसे पहले हम जान लेते है की निबंध का अर्थ क्या है ? निबंध लेखन क्या होता है ? और इसे पढ़ना (Reading) लिखना (Writing) और सीखना (Learning) क्यों महत्वपूर्ण है।

निबंध (Essay) एक गद्य रचना को कहते हैं जिस में हम किसी भी विषय का वर्णन करते हैं। निबंध’ दो शब्दों से मिलकर बना है- "नि" और "बंध"। जिसका अर्थ है अच्छी तरह बंधी हुई वर्णन करना। निबंध के माध्यम से लेखक किसी भी विषय के बारे में अपने विचारों और भावों को बड़े प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने की कोशिश करता है। निबंध लिखना और पढ़ना एक महत्वपूर्ण विषय है सभी के लिए। एक श्रेष्ठ निबंध लेखक को विषय का अच्छा ज्ञान होना चाहिए, उसकी भाषा पर अच्छी पकड़ होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अभिव्यक्ति होती है। इसलिए एक ही विषय पर हमें अलग-अलग तरीकों से लिखे गए निबंध मिलते हैं। इसीलिए निबंधों के इस महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने इन निबंधों का संग्रह तैयार किया है ।

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निबंध क्या है❓.

निबंध एक प्रकार की गद्य रचना होती है, जिसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा जाता है.. निबंध के प्रमुख अंग, निबंध की प्रमुख प्रकार, निबंध की प्रमुख विशेषताएं..

UPSC के लिए निबंध का संग्रह

निबंध लिखने के लिए आपको सही शब्दों का चयन करना चाहिए. निबंध की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा संवैधानिक होनी चाहिए और साथ में ..

Essay Writing In Hindi | Short Essay In Hindi -

नये निबंध :.

लॉकडाउन पर निबंध

कोरोना वायरस पर निबंध

पानी की समस्या पर निबंध

महंगाई पर निबंध

बेरोजगारी पर निबंध

मेक इन इंडिया पर निबंध

भ्रष्टाचार पर निबंध

भारत का किसान पर निबंध

भारत की आधुनिक समस्याएँ पर निबंध

बाल श्रम पर निबंध

Nibandh Category

[PDF] Best Essay Books In Hindi For UPSC & SSC Exams

Karthik M

  • February 26, 2024
  • Education , Pavithran.Net , SSC Exams , UPSC Exams

The UPSC exam is a competitive one and it may feel impossible to get through without proper knowledge of the various topics. It is one of the toughest exams in the country. It’s not just because it’s competitive, but also because you need to know a lot of things about India and its history.

Table of Contents

Essay Books in Hindi PDF

Do you want to clear the exam with flying colors? Do you want to get a high rank? Read on! Here, are some of the best books for UPSC in Hindi that will help you improve your preparation.

1. Arihant 221 Nibandhmala Essay Book in Hindi PDF

221 Nibandhmala book includes topics about building the skill of writing essays with knowledge about specific topics, being disciplined in thoughts, being analytical when drawing conclusions, being expressive when writing thoughts which are relevant to the essay. Grammatical accuracy & coherence are also key skills that are discussed.

Arihant 221 Nibandhmala Essay Book in Hindi

Salient Features:-

  • This book has various topics including economics, education, social, politics etc. It touches on a lot of areas which is why you should give it a go.
  • It provides a vast library of pre-written essays for students who need to learn how to deliver clear and concise arguments. It also provides guidance on the process of essay writing from brainstorming to revision.
  • Designed this Book keeping the needs of students and various exams in mind.
  • This book is beginner friendly and provides the necessary skill-sets in order to excel in SSC, Bank and other state government job exams as well.

Book Details:-

2. disha’s 151 nibandh essay book in hindi pdf.

Disha Publications has put together 151 essays for IAS/ PCS and other competitive exams. This comprehensive collection of essays covers the UPSC Mains exam and State PCSs. All topics are relevant to the IAS/ PCS exams and include complete theoretical guidance on the specific topics. The essays have been written in an impressive style, incorporating detailed information on the topic, ideas for contextual writing, rich vocabulary and analytical skills to arrive at a conclusion.

151 Nibandh for IAS, PCS & other Competitive Exams - Disha Experts

3. Disha’s 7 Years UPSC IAS/PCS Mains Nibandh PDF

Disha’s 7 years UPSC IAS/IPS Mains nibandh Paper 1 – year-wise solved papers (2013 – 2019) Book includes the past 7 years of solved papers for Mains Paper 1 of IAS. The main USP of this product is that word limit for each subscore is strictly followed as per UPSC requirements

7 Years UPSC IAS_ IPS Mains Nibandh - Disha Experts

  • All essays are formatted in an introduction section, main content (including proofreading) and end; coherent development of ideas; with thoroughly updated facts & stats; with no grammatical or syntactical errors.
  • Each nibandh is backed with in-depth research and written in some of the most fluent and eloquent language you will find.
  • I think it’s a good book if you’re an aspiring UPSC, but one thing that I missed was a mock paper that could have helped me practice.

4. Niband Bodh (Hindi Edition) PDF – Spectrum Books

Niband Bodh Book by Spectrum covers a variety of topics and writing styles, and acquaints the reader with the nuances of essay-writing. One great feature of Nidandh is a section containing a large selection of quotations from various famous people on writing style.

This book has been revised to include new information, facts, figures etc. The obsolete info has been removed. Some essays have also been rewritten. Several new essays have been added; there is a new set of essays on issues of current importance.

Niband Bodh (Hindi Edition) - Spectrum Books Editorial Team

  • Each of the topics is thoroughly researched and written in a flawless language.
  • Have been sorted alphabetically by subject to make it easier to find the right information.
  • The book covers topics in different styles and helps readers learn how to write an essay.

5. Disha 7 Varsh UPSC IAS_ IPS Mains Hindi PDF

Disha 7 years UPSC Civil Services IAS Mains nibandh year-wise solved (2013 – 2019) Book contains detailed explanations of the most frequently asked questions on the IAS Mains Paper 1, specifically geared towards meeting with UPSC requirements. You can always use this book to hone your skills before exam day arrives.

7 Varsh UPSC IAS_ IPS Mains Hindi - Disha Experts

Useful Essay Books you should prepare for:-

Some important essays in hindi.

अ’पनी छोटी परंपरा के बावजूद निबंध अपनी संपन्‍नता और विविधता में श्लाघ्य उअः । समाज से संबंधित सभी विषयों पर निबंध लिखे जाते हैं और इसीलिए इसमें शिल्पगत विविधता तथा शक्ति-सम्पन्नता मिलती है। निबंध, गद्य की सर्वाधिक सम्पन्न विधा है और इसमें भाषा का मानक तथा प्रांजल रूप सामने आता है। निबंध के विषय में लिखने का अभिप्राय न तो इसकी परिभाषा बतानी है, न इसका इतिहास बताना है और न ही इसकी शब्द-निष्पत्ति को विश्लेषित करना ही है, अपितु इसके विस्तृत क्षेत्र को उललेखित करना है। निबंध तो अपने खुलेपन के कारण किसी भी परिभाषा से परे है। वस्तुतः, यदि देखा जाए, तो परिभाषा किसी भी विधा को शासित और नियंत्रित नहीं करती। निबंध अपनी स्वच्छंद प्रवृत्ति के कारण अनेक दिशाओं में व्याप्त है। यह एक समृद्ध साहित्यिक विधा है और सम्प्रेषण का उत्कृष्ट साधन भी। निबंध अंग्रेजी साहित्य से हिंदी जगत में आई नवीन साहित्यिक विधा है। निबंध को अंग्रेजी शब्द “8554५” का अनुवाद माना जाता है जिसकी उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के शब्द “8559 से हुई है, जिसका अर्थ है ‘प्रयास करना” या “गद्य में छोटी रचना!। इसका सर्वप्रथम प्रयोग 580 में मान्तेन द्वारा अपनी छोटी रचनाओं के लिए किया गया। मान्तेन को आधुनिक निबंध का जनक माना जाता है। उनके विचार में निबंध लेखक के व्यक्तिगत विचारों, उद्धरणों तथा कथाओं का मिश्रण है जो दूसरो तक सम्प्रेषित किए जाते हैं। अर्थात्‌ निबंध लेखक के अपने व्यक्तित्व तथा विचारों का प्रक्षेपण है। इसी प्रकार ऑक्सफोर्ड कन्साइज डिक्शनरी के अनुसार, निबंध किसी विषय पर आधारित एक ऐसी साहित्यिक रचना है जो आकार में लघु तथा गदूय में रची जाती है। एक निबंध प्रायः कुछ पृष्ठों का होता है, लेकिन इसकी कोई निश्चित लम्बाई नहीं होती (एक परीक्षा में, हालांकि, प्रायः शब्द सीमा दी जाती है; यदि नहीं दी गई है तो समय सीमा इसकी लम्बाई को सुनिश्चित करती है। तीन घंटे की समय सीमा की स्थिति में, आपसे| लगभग 2000-2500 शब्दों का निबंध लिखने की आशा की जाती है।॥)। विभिन्‍न प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध को शामित्र करने का उट्टेश्य अभ्यर्थी की

भआषिक क्षमता के साथ-साथ उसकी वैचारिक दृष्टि तथा मानसिक प्रवृत्ति को परखना है। यही बात अभ्यर्थी को निबंध लेखन के लिए समझना अत्यंत आवश्यक है कि विषय कोई भी हो, आपके पास कितने भी तथ्य क्‍यों न हों, कितना ही ज्ञान भले क्यों न हो, परन्तु व्यक्तिगत दृष्टिकोण के बिना अच्छा निबंध लिखना अत्यंत दुष्कर कार्य है।

अभ्यर्थी को निबंध, प्रबंध तथा लेख में भी स्पष्ट अंतर ज्ञात होना चाहिए। परीक्षक को पर्याप्त अनुभव तथा ज्ञान होता है और वह भल्री-भांति निबंध, प्रबंध तथा लेख मैं उपस्थित अंतर को जानता है। इसलिए अभ्यर्थी के लिए भी इसे समझना आवश्यक है। प्रबंध में लेखक विषय संबंधी ज्ञानचातुर्य को सूक्ष्म विवेचन के आधार पर विशिष्ट आषा शैली क॑ माध्यम से प्रस्तुत करता है। लेखक के अदृश्य रहने से उसके व्यक्तित्व का समावेश प्रवंध में नहीं होता तथा आकार की दृष्टि से भी यह निबंध से कई गुना हो सकता है, जबकि निवंध में लेखक के निजी विचारों तथा हृदयानुभूति को लघु आकार होने पर भी पूरा स्थान मिलता है।

प्रबंध में पुस्तकीय ज्ञान का महत्व अधिक होता है और निबंध में हार्दिकता तथा विचार का समन्वय होता है। प्रबंध और निबंध की भाषा-शैली में भी बहुत अंतर होता है। प्रबंध की भाषा तथा रचना शैली विद्धतापूर्ण, यहां तक कि कभी-कभी पारिभाषिक शब्दावली जैसी, शुष्क तथा धीर-गंभीर होती है और निबंध की भाषा और शैली मनोरम, सुगम तथा सरस होती है।

इसी प्रकार लेख (१7४०९) निबंध की तुलना मैं भावगत विशेषताओं के आधार पर प्रबंध के अधिक निकट होता है। लेख सूचना प्रधान होता है, जिसमें तथ्यों की महत्ता दूसरी विधाओं की तुलना में अधिक होती है। लेख में लेखक के व्यक्तित्व की छाप भी रहती है, लेकिन निबंध की तुलना में वेहद कम क्योंकि लेख में सूचना का तत्व प्रभावी हो जाता है और निबंध में लेखक की आत्माभिव्यक्ति को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

“निवंध’ को ‘संघ लोक सेवा आयोग’ के साथ-साथ विभिन्‍न राज्यों के लोक सेवाआयोगों की मुख्य परीक्षाओं में एक विषय के रूप मैं स्थापित किया गया है। “संघ लोक सेवा आयोग’ की मुख्य परीक्षा में जब से निबंध को विषय के रूप में स्थापित किया गया है, तब से परीक्षा की उत्तीर्णता में इसकी अहम भूमिका हो गयी है। निबंध के लिए 250 अंक निर्धारित किए गए हैं जिसमें दो खण्डों (खण्ड क और खण्ड ख) के अंतर्गत प्रत्येक में एक निबंध करना होता है और प्रत्येक निबंध की शब्द सीमा 000-200 के बीच होनी चाहिए। यदि इसमें सम्यक्‌ विषय का चयन कर शिल्प एवं कथ्य दोनों की सम्पुष्ट अभिव्यक्ति की जाए, तो अधिकाधिक अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं में एक-एक अंक कितने मायने रखते हैं, यह तो इसके अभ्यर्थी अच्छी तरह से जानते ही हैं।

निबंध के प्रकार

प्रकृति के आधार पर विद्वान निबंध के मुख्यतः चार प्रकार मानते हैं. 0) वर्णनात्मक; (४) भावात्मक; (॥) व्याख्यात्मक; तथा (५) विचारात्मक। वर्णनात्मक किसी घटना, वस्तु एवं दृश्य का सजीव वर्णन रोचक तरीके से किया जाता है।

भावात्मक कल्पना प्रधान, चिंतन मनन से हटकर जीवन में राग और भावना का संचार करने वाले विषयों को भावात्मक निबंधों की श्रेणी में रखा जाता है।

व्याख्यात्मक किसी विषय जैसे ऐतिहासिक, पौराणिक तथा जीवनियां आदि से संबंधित कहानी तथा कथा का रोचक वर्णन इसके अंतर्गत आता है।

विचारात्मक मनोवैज्ञानिक, साहित्यिक, सामाजिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं विषय संबंधी जैसे अर्थशास्त्र आदि से संबंधित सिद्धांत तथा विचार सूत्र इसके अंतर्गत आते हैं। चिंतन, मनन, अनुभव तथा तर्क के आधार पर विचारात्मक निबंधों का सृजन होता है।

विभिन्‍न प्रकार के निबंधों में से विचारात्मक निबंधों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि केवल विचारात्मक निबंधों में ही लेखक को अपने भावों तथा भाषा की पूर्ण अभिव्यक्ति करने का पूरा स्थान और अवसर प्राप्त होता है। इसलिए सामान्यतः विचारात्मक निबंध को अन्य की अपेक्षा श्रेष्ठ माना जाता है। यद्यपि भावात्मक निबंध की अपनी विशेष महत्ता है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी निबंधकार विचारात्मक एवं भावात्मक में से किसी भी तत्व की अवहेलना कर निबंध की रचना नहीं कर सकता। विचारों और भावों की यथोचित युति से ही उत्तम श्रेणी के निबंधों की रचना होती है।

परीक्षार्थियों से निबंध के संदर्भ में जो अपेक्षाएं रखी जाती हैं, उन्हें निम्न बिंदुओं के आलोक में परखा जा सकता है

() विषय का चयन; (॥) विचारों की क्रमबद्धता; (॥) विषय से निकटता; (0) संक्षिप्तता; (४) प्रभावशीलता एवं अभिव्यक्ति की सटीकता; (छा) भाषागत शुद्धि; (शत) कध्य एवं शिल्प का सुंदर समायोजन। निबंध का प्रारूप निबंध लेखन की दृष्टि से निबंध का प्रारूप अत्यंत महत्वपूर्ण है। सामान्यतः निबंध को तीन भागों 0) भूमिका या विषय-निरूपण; (8) कथ्य या व्याख्या या मुख्य भाग; (99) निष्कर्ष या उपसंहार में रखा जाता है।

Useful Books for Competitive Exams

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Best Books for Competitive Exams [PDF]

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Basic Hindi I

hindi essay in pdf

Rajiv Ranjan, Michigan State University

Copyright Year: 2021

ISBN 13: 9781626101050

Publisher: LibreTexts

Language: English

Formats Available

Conditions of use.

Attribution

Learn more about reviews.

Reviewed by Carl Polley, Instructor, Kapiolani Community College on 11/30/21

A solid first-semester introduction to the Hindi language, this textbook includes an introductory chapter on Hindi script and the sounds represented by Hindi letters, as well as a variety of lessons that are focused either on topics of... read more

Comprehensiveness rating: 4 see less

A solid first-semester introduction to the Hindi language, this textbook includes an introductory chapter on Hindi script and the sounds represented by Hindi letters, as well as a variety of lessons that are focused either on topics of conversation like family and common places (home, school, market) or on functional elements of the language like expressions of actions in the past, present, and future. Numerous instructional videos accompany the lesson materials. An overall glossary of vocabulary terms is not included, though each chapter does contain lists of key vocabulary items specific to each lesson.

Content Accuracy rating: 5

The English content is accurate, generally error-free, and unbiased. As a reviewer who specializes in second-language instruction for other languages, and not Hindi, I’m not in a position myself to comment on the accuracy of the Hindi lesson texts.

Relevance/Longevity rating: 5

Lesson content is presented in a way that will be helpful for true beginners to the language, focusing on basic conversational settings and fundamentals of Hindi grammar. Each chapter includes review activities relevant to a study abroad setting, making the course more relevant and meaningful for students who are preparing for a study abroad experience in a Hindi-speaking area.

One of this textbook’s key strengths is the abundance of interactive activities and review exercises throughout all of the chapters. Interactive activities are programmed in H5P, allowing for instant feedback. There are also some task-based speaking activities that require a classroom setting where students can interact with each other, and individual speaking activities that involve self-directed audio recording of student responses.

Clarity rating: 4

The text is clear and concise, and should be accessible to most undergraduate students. Common grammar concepts such as gender and case marking for nouns, as well as tense and aspect marking for verbs, are introduced in a somewhat perfunctory manner and may require additional explanation on the part of the instructor, where students are not already familiar with such concepts. The reading examples in certain lessons, such as the one on family, include clickable glosses for key vocabulary, but other readings in later lessons do not include any glosses.

Consistency rating: 4

The textbook is highly consistent across chapters, with each chapter including a number of reading and listening examples. Transliteration of Hindi script is provided only for the first lesson. An area for further improvement could be to provide alternative views of the reading examples including transliteration and glosses for all of the lessons.

Modularity rating: 4

Introductory foreign language textbooks generally do not lend themselves to modular presentation since certain language skills, such as an introduction to the script and pronunciation, provide a foundation for more generalized learning. With that in mind, the book is reasonably divided into smaller reading sections and activities that make sense for a first-semester college course.

The format in which the dialogues are presented, in table format with separate sentences in each line and translations in each column, is relatively static and does not allow for easy adaptation or reorganization.

Organization/Structure/Flow rating: 5

The topics in the text are presented in a clear fashion, which follows a logic of introducing progressively more advanced grammar points over the course of study.

Interface rating: 5

The text is straightforward to use. All of the accompanying instructional videos include full transcripts.

Future iterations of the textbook could be further improved by including supplementary materials that would make the course content even more easily navigated and managed, such as a full glossary of vocabulary with links to lesson pages for each vocab item, and vocabulary flashcard materials that could either be provided in OER format or hosted on an external site like Quizlet or Memrise.

Grammatical Errors rating: 5

The text contains very few grammatical errors.

Cultural Relevance rating: 5

The text is culturally appropriate for native-English learners of Hindi who are learning in a college setting. Additional content and cultural notes in each chapter provide ample additional opportunities for learning about culture.

Table of Contents

  • Chapter 1: Hindi Letters & Script
  • Chapter 2: Beginning Conversations
  • Chapter 3: परिवार "Family"
  • Chapter 4: Describing Places
  • Chapter 5: Expressing Likes, Dislikes, Needs, and Possession
  • Chapter 6: Giving Instruction and Making Request
  • Chapter 7: Expressing Present, Past, and Future Actions
  • Chapter 8: Talking About the Past and Completed Actions

Ancillary Material

About the book.

Basic Hindi I is an online, interactive, and tech-enhanced textbook that promotes speaking, listening, reading, writing, and cultural skills. Each Chapter in this book has clear stated learning outcomes, a review of previous chapters, reading/listening sections, study abroad section, relevant grammatical items, and cultural notes. The pedagogical approach in the book is mixed and informed by the socio-cultural approaches and the generative approaches of the Second Language Acquisition theory. The mixed theoretical backgrounds match diverse learning and teaching philosophies and styles. Following the learning outcomes guided by American Council of Teaching Foreign Language (ACTFL), this textbook aims for the novice learners to attain intermediate low to mid-level proficiency level. The textbook incorporates pictures, audio-visual materials, and activities developed on the H5P platform to keep learners engaged.

About the Contributors

Rajiv Ranjan , Michigan State University

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Hindi Essay

भारत पर निबंध | Essay on India in Hindi 1000 Words | PDF

Essay on india in hindi.

Essay on India in Hindi class 6, 7, 8, 9, 10 (Downlaod PDF) भारत पर निबंध – भारत अपने कई अलग-अलग रूप और विविधताओं के लिए जाना जाता है – जैसे – भाषाएं, संस्कृति, भोजन, विशाल आबादी, इसकी प्राकृतिक परिदृश्य, शास्त्रीय नृत्य, बॉलीवुड या हिंदी फिल्म उद्योग, योग का जन्मस्थान, प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिकता, आदि। भारत के कई राज्यों का कुछ दसक में विभाजन हो चूका है।  आइये जानते है भारत के बारे में कुछ विशेषताएं इस निबंध के माध्यम से – Essay on India in Hindi

भारत एक महान देश है और हमारी जन्मभूमि है, यहां के लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं लेकिन राष्ट्रभाषा हिंदी है। इसलिए भारत हमें जान से भी प्यारा है। भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों, जातियों, पंथों से भरा है लेकिन सभी एक साथ रहते हैं। प्रत्येक देशभक्त व्यक्ति अपने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहता है क्योंकि यह उसे सबसे प्रिय है। यही कारण है कि भारत “विविधता में एकता” की आम कहावत के लिए प्रसिद्ध है।

वास्तव में भारत सबसे महान देश है। हमारी संस्कृति महान है। ऋषियों का कहना है कि इस पवित्र भूमि पर जन्म लेने के लिए देवता भी स्वर्ग में तरसते हैं क्योंकि यह भूमि मोक्ष और उच्च श्रेणी को प्राप्त करने का मार्ग है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है और इसके 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं।

ऐतिहासिक परिचय

प्राचीन काल में भारत नाम का एक प्रतापी राजा था, जिसका प्रताप सूर्य की भांति समस्त पृथ्वी पर व्याप्त था। उन्होंने अपने बल और विक्रम से अखण्ड भारत की स्थापना की। जम्बू द्वीप या आर्यव्रत के सभी निवासी एकता के सूत्र में बंधे थे। सभी लोगों को अपने बेटे की तरह प्यार करता था। उन्हें वत्सल कहा जाता था। आर्यव्रत या जम्बूद्वीप का नाम भारत में उनके नाम पर रखा गया था।

भारत की भावी संतान को भारत कहा गया। तब से अब तक इस देश को भारत के नाम से पुकारा जाता है। मुस्लिम शासन के दौरान इस देश को हिंदुस्तान कहा जाता था। अंग्रेजों ने इसका नाम इंडिया रखा। स्वतंत्र भारत के संविधान में इस देश का नाम भारत रखा गया। इसके अलावा यह “भारत” के रूप में प्रसिद्ध है।

भूगोल और संस्कृति

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला देश है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम, जैन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म जैसे विभिन्न धर्मों के लोग प्राचीन काल से यहां एक साथ रहते आए हैं। “वंदे मातरम” भारत का राष्ट्रीय गीत है और “जन गण मन” भारत का राष्ट्रगान है। भारत तीन तरफ से महासागरों से घिरा हुआ है जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिंद महासागर हैं।

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इसे भारत, हिंदुस्तान और आर्यावर्त के नाम से भी जाना जाता है। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है और मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। आम भारत का राष्ट्रीय फल है। यह ऐतिहासिक इमारतों, स्मारकों, संग्रहालयों, मकबरों, चर्चों, मंदिरों, वन्यजीव अभयारण्यों, प्राकृतिक सुंदरता, वास्तुकला से समृद्ध है।

भारत का ध्वज

भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग शामिल हैं। ध्वज में पहला रंग, जो केसरिया है, पवित्रता का प्रतीक है। दूसरा रंग, जो ध्वज के बीच में सफेद रंग है, शांति का प्रतीक है। तीसरा रंग जो झंडे में सबसे नीचे है वह हरा है और यह हरियाली का प्रतीक है। ध्वज के बीच में नीला अशोक चक्र है, जिसमें चौबीस तीलियाँ हैं और समान रूप से विभाजित हैं।

महापुरुषों की भूमि

प्राचीन काल से ही यह देश ऋषियों और महापुरुषों की पवित्र भूमि रही है। यहां ऐसे तत्वदर्शी महर्षि हुए जिनकी व्यापक प्रतिभा से उन्हें त्रिकालदर्शी कहा जाता है। ऐसे विद्वान पुरुषों ने इस देश को सुशोभित किया। यह विधा का ठिकाना बन गया। ऐसा कोई अनुशासन या कला नहीं है जिसका ज्ञान यहां उच्च स्तर पर नहीं था।

कोई भी विषय हमारे ऋषियों से अछूता नहीं रहा। साहित्य की रचना किसी अन्य भूमि पर नहीं हुई है, जितनी प्राचीन काल में यहाँ होती थी। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में यहां के ऋषियों ने ऐसे आविष्कार किए जो आज भी संभव नहीं हैं। आयुर्वेद इसका प्रत्यक्ष गवाह है।

प्राचीन काल में भी यहाँ की वस्तु कला अपने चरम पर थी। विज्ञान उन्नत अवस्था में था। वायुयान, जहाज की चर्चा पुराने ग्रंथों में सर्वत्र उपलब्ध है। अस्त्र-शस्त्रों के क्षेत्र में यह इतना उन्नत था कि यहाँ पर विनाशकारी अस्त्रों का भी आविष्कार हो चुका था।

यहां के महापुरुषों ने भारत का सर्वांगीण विकास किया। व्यास, वाल्मीकि, कालिदास, माघ, भवभूति जैसे कवि यहाँ रहते थे। अशोक, हर्ष, चंद्रगुप्त, अकबर, महाराजा रणजीत सिंह, शिवाजी जैसे शासक यहां थे जिन्होंने देश को व्यवस्थित शासन दिया। बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर, दयानंद सरस्वती, विवेकानंद जैसे समाज सुधारक यहीं पैदा हुए थे, जिन पर आज भी भारत को गर्व है।

प्रकृति ने भारत को अपने संसाधनों से समृद्ध बनाया है। लेकिन आजादी मिलने के बाद भी भारत उतनी प्रगति नहीं कर पाया है, जितनी उसे होनी चाहिए थी। क्योंकि कुशल और देशभक्त शासकों के अभाव में कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता।

आज स्थिति ऐसी हो गई है कि भारत की 50 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। दूसरी ओर पूंजीपतियों की पूंजी बढ़ती जा रही है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। उच्च दर्जे के लोगों में भ्रष्टाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी, अधिक बढ़ गई है। एक तरफ देश की दौलत बढ़ती जा रही है।

आज गरीबों और अमीरों की आय का अनुपात एक और लाख में है। ऐसी असमानता दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलती। इसका कारण यह है कि हमारे राजनेताओं और अधिकारियों में राष्ट्रीय भावना का अभाव है। हमारे शासक और प्रशासक ब्रिटिश शासकों के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। अंग्रेजी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर आगे आने वाले ही आज भारत में उच्च पदों पर जा सकते हैं। अंग्रेजी योगिता की कसौटी बना ली गई है।

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जिन बच्चों ने विदेशी भाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया है और उनमें देश के प्रति स्नेह और आत्मीयता नहीं हो सकती है। जिन लोगों में लोगों के प्रति आत्मीयता और प्रेम नहीं है, उनमें राष्ट्रवाद की भावना नहीं हो सकती। भ्रष्टाचार, कदाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी, राष्ट्रीय भावना के अभाव में ही फलता-फूलता है। आज अंग्रेजी जीवन के हर क्षेत्र के लिए योग्यता का आधार बन गई है, इसलिए भारत प्रगति की दौड़ में पिछड़ रहा है।

आज हमें तरक्की की ओर बढ़ने के लिए अपने नैतिक मूल्यों को ऊपर उठाना होगा। जब तक प्रशासक अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा से प्रेम नहीं करते, वे राष्ट्र के प्रति निष्ठा नहीं रख सकते। देश को प्रगति के शिखर पर ले जाने के लिए हमें हर क्षेत्र में राष्ट्रीय भावना के साथ लगन से काम करना होगा। भारत के प्रत्येक नागरिक को हर समय जागरूक रहना चाहिए। हमें आपसी भेदभाव को मिटाकर देश की प्रगति में शामिल होना चाहिए। आज भी हमें भारत को विश्व गुरु बनाना चाहिए और इसकी ख्याति फैलानी चाहिए।

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Q&A. on India in Hindi

भारत किस लिए प्रसिद्ध है.

उत्तर – भारत के कई अलग-अलग रूप और विविधताओं के लिए जाना जाता है – जैसे – भाषाएं, संस्कृति, भोजन, विशाल आबादी, इसकी प्राकृतिक परिदृश्य, शास्त्रीय नृत्य, बॉलीवुड या हिंदी फिल्म उद्योग, योग का जन्मस्थान, प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिकता, आदि।

भारत में कितने राज्य है?

उत्तर – भारत के कई राज्यों का कुछ दसक में विभाजन हो चूका है, इसलिए आज भारत में 28  राज्य है।

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Hindi Essay | हिंदी में निबंध for Class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12

Hindi essay for classes 3 to 12 students.

hindi essay

Benefits of essay writing:

To be efficient in any language it is crucial to enhance the writing power in that significant language. Essay writhing is the most positive way of developing students’ skills and knowledge upon writing. Students get to know about different topics when they research to write about any important fact. Besides that, essay writing is beneficial to increase the vocabulary power of students as they use various words to express their views and thoughts. From essay writing students will be encouraged to upgrade their other skills. They will be interested to participate in many events of writing which is effective to improve their talents in extra-curricular activities. When students get the correct guidance and suggestions from their school environment they will eventually start to focus on a specific aspect of learning more. So, it is teachers’ responsibility to encourage children for writing essays on their own language for expressing their thoughts. Essay writing in Hindi is equally important for students who have Hindi as a subject in school. If they focus on Hindi learning from the beginning level then they do not have to worry about learning critical chapters in higher studies. Besides that they should focus on enhancing their essay writing skills which will enable them to give better performance in final exam. As a result, they will score well in exam and feel satisfied with their learning outcomes. The most important fact is that, essay writing skill will reduce the fear of writing among students. They will feel more interested to write essay on any given topic at any time after gathering the knowledge about the perfect ways of writing essays.

Essay writing in Hindi:

It is quite natural that students having Hindi as important subject in school must learn Hindi from the basic concepts. We find Hindi as important basically in CBSE and ICSE schools where students have options to choose Hindi or any other regional language. But for schools governed by state boards the entire education mode comes in Hindi medium. So, in both cases students have to focus on learning their Hindi language from the starting level. Essay writing is the significant part of their Hindi curriculum like all other languages. It will be beneficial for themselves if they focus on writing Hindi essays from the beginning level. They should understand each part of Hindi essays including pattern, style, word count to present a compete essay. By understanding each part students will be efficient in writing Hindi essays which will affect their overall score in exam. Some students may find it difficult to write Hindi essays on any topic smoothly. For that we are advising to grasp the basic knowledge of writing pattern and expressing their thoughts in a definite way. It is not possible for students to write Hindi essays from the beginning of their academics. They first need proper guidance and suggestions which they can find in examples of Hindi essays on different topics. Students of state level boards have to write Hindi essays from the primary section whereas CBSE and ICSE students write Hindi essays after primary education. We have provided Hindi essays on significant topics for all classes based on different boards. Students will be definitely benefitted if they follow the writing pattern and style of using language in those essays completely. They can rely on the essays fully as all are prepared according to the board guidelines by expert teachers. We are hopeful that students will take the help of these Hindi essays for enhancing their writing quality and using of language. We have provided the direct links to download all essays in this article. So, students do not need to search here and there for getting list of Hindi essays. They can easily download all the essays from the links in pdf format and read according to their convenience.

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Conclusion:

It is mandatory for all students learning Hindi to follow essay writing pattern and styles closely. Students of all classes require study materials of Hindi essays for overviewing the knowledge on different topics and practice regularly before exam. With the aim of helping students to go through effectively in essay writing in Hindi we have attached many Hindi essays on significant and important topics. We are hopeful that students will find all the topics important from exam perspective and satisfied after reading the essays with its quality writing. Students will get chances of self-analysis from their essay writing which is essential for improving their writing skills. They should practice more by following the writing pattern in the given Hindi essays for enhancing their skills. They will feel more encouraged to writing Hindi essays after getting proper guidance. They will be efficient to solve all their queries regarding Hindi essay writing after practicing regularly. Students are advised to focus on Hindi essay writing from the basic level to grasp complete knowledge over writing.

FAQs:      

  • Who need to write Hindi essays?

Answer. Students studying in CBSE, ICSE and different state boards who have Hindi as a significant language in syllabus have to learn essay writing in Hindi language.

  • What is beneficial for Hindi essay writing?

Answer. Students should focus on learning Hindi language from the basic level with which they can understand the pattern and style of essay writing completely.

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Class 10 Hindi Essay Notes PDF (Handwritten Short & Revision)

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Why Should Students Utilise Class 10 Hindi Essay Notes?

Students should utilise the class 10 Hindi Essay notes so that they can finish their Class 10 Hindi Essay syllabus from their comfort zone. This is one of the characteristics of class 10 notes Hindi Essay, other features are: 

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The best time to take class 10 Hindi Essay notes is after completing all the chapters from the NCERT book. In the NCERT book, each topic is elaborated in a proper way so that students don’t get stuck in any of the topics. Through the class 10 notes of Hindi Essay, students can remember important points without any complexity or difficulty. 

How to Prepare for Class 10 Hindi Essay Board Exam With The Help of Notes?

Students are advised to make a strategy plan to prepare for class 10 Hindi Essay board exam, they can make their own strategy with the help of class 10 Hindi Essay notes, those tips are: 

  • Find Good Place to Study: Students should find their own place to prepare well for class 10 Hindi Essay exam. A good place is created so that there are no distractions or loud music, etc while preparing for class 10 Hindi Essay exam. 
  • Try to Reward Yourself: It is important for students to reward themselves: candy, chocolates, chips, etc as it motivates them to attain daily goals to complete Class 10 Syllabus . 
  • Try to Study With Groups: Students can complete the class 10 Hindi Essay syllabus in groups as friends can help each other to cope up with difficult topics. By completing difficult topics, students can improvise their score in class 10 Hindi Essay board exam. 
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  • Solve Doubts: Students need to solve their doubts regarding the class 10 Hindi Essay notes PDF with the help of teacher’s guidance so that they can get involved in group discussions. 
  • Take a Break: Students need to take breaks: short walk, meditate, listen to song, etc while preparing for topics and concepts included in class 10 Hindi Essay. 
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  • Adapt Daily Goals: Try to adapt daily goals to complete class 10 Hindi Essay syllabus so that students can lay a strong foundation for the subject. 

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Essay Previous Year Question Paper

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Class 12th Important Hindi Nibandh

कक्षा 12वी के महत्वपूर्ण हिंदी निबंध | Class 12th Important Hindi Nibandh

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मैं खुद 12वीं का टॉपर रहा हूं और मुझे पता है कि 12वीं की परीक्षा में किस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। वर्तमान में, मैं एक शिक्षक की भूमिका भी निभा रहा हूँ, और अपने छात्रों को कक्षा 12वीं की महत्वपूर्ण जानकारी और विषयों का अभ्यास भी कराता हूँ। मैंने यह लेख 5 वर्षों से अधिक के अपने अनुभव के साथ लिखा है। इस पोस्ट की मदद से आप परीक्षा में इस अध्याय से भूगोल में बहुत अच्छे अंक प्राप्त कर सकेंगे।

Table of Contents

कक्षा 12वी के महत्वपूर्ण हिंदी निबंध | Class 12th Important Hindi Nibandh PDF

Class 12th Important Hindi Nibandh

1.महँगाई की समस्या

महँगाई की समस्या से भारतीय जनता त्रस्त हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है भारत की आर्थिक स्थिति की चरमराहट। आज आर्थिक दिवालियापन पूरे समाज का खून चूस रही है। 

कभी तो यह बनावटी और पूँजीपतियों को गोद में पलने वाले हमारे नेतागण जो समाज सोया अथवा सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने के लिए कसम खाते हैं, उन्हीं के इशारे पर वस्तुओं की कीमत बढ़ाई जाती है और मंच से इसका कारण कुछ और बताया जाता है। 

छद्मवेशी राजनीतिज्ञों का प्रतिफलन है महँगाई की समस्या हम रोज-रोज महँगाई का इतिहास रचते हैं। बेचारी आम जनता, जिसकी कमर लगभग टूट चुकी होती है, इस अभिशाप को झेलने के लिए बाध्य है। 

आजाद हिन्दुस्तान का नक्शा महँगाई की तूलिका से बढ़ाया जाता है। जब से हिन्दुस्तान स्वतंत्र हुआ है तब से हम इस मार से मरते आये हैं। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के समय मूल्यों में 35% की वृद्धि हुई और तीसरी योजना के समय 32% की। उसके पश्चात् केवल एक ही साल में 1967-68 में 11% मूल्य की वृद्धि हो गयी। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो यह समस्या और गम्भीर हो गयी। 

1974 में महँगाई की कोई सीमा नहीं रही। अब तो यह कहना भी कठिन हो गया है कि किस वर्ष मूल्य का सूचकांक क्या था और क्या रहेगा। देश के विकास के लिए अनेक तरह के प्रयास किये गये हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आये हैं। लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन भी आया है, लेकिन यह प्रतिशत बहुत कम है। 

हमारी जरूरत अत्यधिक बढ़ गयी है। जिसके पास दो जून की रोटी नहीं है, वह भौतिक सुख-साधनों का जमकर प्रयोग नहीं करता है। जैसे टी. वी., रेडियो, सिनेमा, शराब, सिगरेट, सूती और विभिन्न तरह के सौन्दर्य प्रसाधन। इससे माँग और पूर्ति में खास अंतर आ जाता है जिसके कारण मूल्य वृद्धि होना स्वाभाविक हो जाता है। इस स्वाभाविकता के शिकार निम्न मध्यवर्गीय और निम्न वर्ग के लोग अधिक हुए हैं।

माँग और पूर्ति के बीच असंतुलन होने के कारण जनसंख्या में असामान्य वृद्धि हुई है। प्रायः यहाँ तीन सेकेण्ड में चार बच्चे जन्म लेते हैं, जिनके लिये जीवनयापन की वस्तुएँ आवश्यक होती हें। यही सही है कि मृत्यु भी होती रहती है, परन्तु जन्म-दर के प्रतिशत में मृत्यु दर काफी कम है। 

मूल्यवृद्धि के लिए राज्य, समाज और व्यक्ति सभी समान रूप से दोषी हैं। तय सवाल यह उपस्थित होता है कि सरकार उस बुराई को क्यों नहीं रोकती है। सरकार इस दिशा में कई तरह से सार्थक प्रयास कर रही है, लेकिन वह लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण उसके सारे प्रयास निरर्थक सावित होने के भय से चलता है, वैसा चलने देती है। 

जिसका परिणाम होता है कि कर्मचारी और सरकार के बीच एक सेतु तैयार हो जाता है और गरीब जनता का जमकर शोषण होता है। जिसे नसीब का खेल मानकर जनता चुचाप यह बोझ सह लेती है। सरकारी तंत्र का एक भी ऐसा दफ्तर नहीं है जहाँ लक्ष्मी का खेल नहीं होता है अर्थात् चारों तरफ ब्रह्म राक्षसों का ढेर लग चुका है।

आज सरकार ने जो आर्थिक परिवर्तन लागू किया है, उनके कोटा-परमिट भी एक पद्धति है जिसमें एक नये वर्ग का उदय हुआ है, वह वर्ग है दलाली का। 

यह वर्ग उनलोगों का है जो शत राजनीतिक दल के सदस्य हैं और कोटा-परमिट प्राप्त करके बेचते हैं। कोटा-परमिट के द जमाखोरी की प्रवृति को अधिक बल मिला है। विक्रेता और उपभोक्ता दोनों ही अधिक से अि माल अपने पास रखना चाहते हैं। इसका कारण है फिर न मिलने का भय ।

विक्रेता और उपभोक्ता के बीच संतुलन रखने हेतु असंख्य अफसरान बैठाये गये हैं। लक्ष्मी का नृत्य उन्हें भी मोहित कर लेता है, और भ्रष्टाचार का व्यापार कम होने के बजाय दिन- लेते है रात चौगुनी बढ़ती ही जाती है। 

इस भ्रष्ट प्रशासन ने देश के आर्थिक ढाँचे को चरमरा दिया उसपर उच्चतम शासन करने में असमर्थ हैं। कारण स्पष्ट है ये दुकानदार से घूस उद्योगपतियों से चुनावों के लिए पार्टी के नाम पर चंदा लेते हैं। तब कौन किसको कहे और किस इस प्रकार भ्रष्टाचार का यह विषम चक्र चलता ही रहता है। 

महँगाई बढ़ने पर मूल्य के सूचकांक उठने पर प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक वर्ग के कर्मचारी वेतनवृद्धि के लिए माँग, आन्दोलन, हड़ताल अ करते हैं। मजदूर वर्ग भी अपनी मजदूरी बढ़वा लेते हैं। बढ़े हुए वेतनों के भुगतान के लिए सर नयी मुद्रा जारी करती है और इस प्रकार मुद्रास्फीति होती है, जो महँगाई का एक अन्य कारण है

मूल्यवृद्धि के दो अन्य महत्त्वपूर्ण कारण हैं-राजनीतिक और सामाजिक । हमारे श्रमिक छोटा- भी बहाना मिल जाने पर तालाबंदी या हड़ताल कर देते हैं। उन्हें तत्काल राजनीतिक समर्थन प्राप्त जाता है। फलतः काम न भी करने पर पूरा वेतन देना पड़ता है। 

उत्पादन गिरता है, लागत में वृ होती है और कीमत अपने आप बढ़ जाती है। सामाजिक संस्कृति के कारण भी मूल्यवृद्धि बढ़ जा है— जिसमें हमारा पर्व-त्योहार, शादी-ब्याह, श्राद्ध कर्म प्रवृत्ति हैं। इन अवसरों पर उपभोग सामा की मांग बढ़ जाती है और एक अवधि विशेष के लिए मूल्यवृद्धि हो जाती है। फिर वह अपनी नि सूचकांक पर कभी नहीं आती।

महँगाई की समस्या का समाधान तो हो सकता है, लेकिन उसके लिए जनता और सरकार दे को प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। सरकार को कीमतों पर नियंत्रण करना पड़ेगा और दण्ड- व्यवस्था का कठोर करना पड़ेगा, 

जिससे यह होगा कि पूँजीपति या व्यापारी वर्ग वस्तुओं का मनचाहा मूल्य बढ़ाने पायेंगे । प्रत्येक वस्तु का दाम यदि सरकार निर्धारित कर दे तो उपभोक्त को भी राहत होगी अ

बाजार भी स्थिर रहेगा। इससे व्यापारी वर्ग का मनोबल गिरेगा और उनमें एक डर भी बना रहेगा। माँग और पूर्ति दोनों में संतुलन बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन की शकि को बढ़ाया जाए। जबतक माँग और पूर्ति में अन्तर रहेगा तबतक मूल्यवृद्धि पर कोई प्रभाव प वाला नहीं है।

2.समाचार-पत्र अथवा समाचार-पत्रों का महत्त्व अथवा समाचार-पत्र और लोकतंत्र 

मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु है। वह जिस समाज में रहता है, उसकी पूरी जानकारी चाहता है इस बहाने वह शेष दुनिया से जुड़ता है। उसके सुख-दुख में सुखी दुखी होता है। इसी प्रवृत्ति । कारण ही समाचार-पत्र का उदय हुआ ।

समाचार -पत्र का तात्पर्य उस दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक पत्र से है जिस देश-विदेश की जानकारियों छपी होती हैं और वह आम जनता के लिए सुलभ होता है। विश्व सबसे पहला समाचार-पत्र कहाँ से शुरू हुआ, इसके बारे में विवाद है। 

भारत में पह समाचार -पत्र ‘इंडिया गजट’ नाम से प्रकाशित हुआ। हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र ‘उ मा कोलकाता से प्रकाशित हुआ। आज हिंदी-अंग्रेजी के सैकड़ों समाचार-पत्र निकल रहे ! 

इनमें से प्रमुख हैं —हिंदुस्तान, हिंदुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, ट्रिव्यून, स्टेट्समैन, टाइम ऑफ इंडिया, दैनिक जागरण, जनसत्ता, पंजाब केसरी, अमृत बाजार पत्रिका, पायोनियर इंडि एक्सप्रेस आदि।

विश्व भर से जोड़ने का साधन-समाचार-पत्र मनुष्य को विश्व भर से जोड़ता है। प्रातः होने ही सारे संसार की महत्वपूर्ण जानकारियाँ समाचार-पत्र द्वारा उपलब्ध हो जाती है। इसलिए जेम्स एलिस ने कहा था- “समाचार-पत्र संसार के दर्पण हैं।” उसे देखकर आप समय की गति और स्वभाव को जान सकते हैं। किसी देश या प्रांत की स्थिति जाननी हो तो उस क्षेत्र का दैनिक समाचार पत्र देख लें।

लोकतंत्र का प्रहरी – समाचार पत्र लोकतंत्र का सजग प्रहरी है। लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि जनता सब कुछ जाने और अपनी इच्छा अनिच्छा को प्रकट करे। ऐसी जनता ही जागरूक और लोकतंत्र के योग्य कही जाती है। 

जनसत्ता का ध्येय वाक्य इस दृष्टि से बहुत सटीक है- “सबकी खबर ले, सबको खबर दे।” बड़े-बड़े तानाशाह भी समाचार-पत्र से भयभीत रहते हैं। नेपोलियन कहा करता था “मैं लाखों संगीनों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार पत्र से अधिक डरता हूँ।”

जनमत बनाने का साधन – ‘समाचार-पत्र साधारण जनता के शिक्षक हैं।-बीचर का यह कवन एकदम ठीक है। समाचार-पत्रों के संपादक, संवाददाता या अन्य अधिकारी जिस समाचार को जिस ढंग से देना चाहें, दे सकते हैं। वे किसी भी घटना को जनता के लिए सुखद बनाकर पेश कर सकते हैं। आम जनता समाचार-पत्रों से सीधे प्रभावित होती है। समाचार-पत्रों में जनता के विचार जानने के लिए भी कॉलम होते हैं। उनके द्वारा जनता

अपने विचार सरकार या समाज तक पहुँचाती है। इससे भी जनमत जानने में सहायता मिलती है। विभिन्न समाज सुधारक, चिंतक, विचारक, आंदोलनकर्ता, क्रांतिकारी अपने विचारों को टापकर जनता को प्रभावित कर सकते हैं।

ज्ञान-वृद्धि का साधान – आजकल समाचार पत्र पाठकों की ज्ञान- वृद्धि भी करते हैं। विशेष रूप से रविवारीय पृष्ठों में छपी जानकारियाँ, नित्य नए आविष्कार, नए साधन, नए पाठ्यक्रमों की जानकारी, अद्भुत संसार की अद्भुत जानकारियाँ पाठकों का ज्ञान बढ़ाती हैं। रोगों को छापकर जनता को प्रभावित कर सकते हैं। 

ज्ञान-वृद्धि का साधन – आजकल समाचार-पत्र पाठकों के लिए मनोरंजन की रंग-बिरंगी सामग्री लेकर उपस्थित होते हैं। खेल संसार, फिल्मी संसार, पुटकुले, कहानियाँ, पहेलियों, रंग भरो प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चे, किशोर और तरुण भी समाचार-पत्रों पर जान छिड़कते हैं। व्यापार के लाभ-समाचार-पत्रों से सर्वाधिक लाभ व्यापारियों, उद्योगपतियों और फैक्ट्रियों को होता है। प्रचार और विज्ञापन के द्वारा इनका माल रातोंरात देशव्यापी बन जाता है।

अन्य अनेक सुविधाएँ – समाचार पत्र अलादीन के चिराग की भाँति सबका सेवक है। वह बेरोजगारों को रोजगार दिलाता है, पत्नीविहीनों को पत्नी दिलाता है, सूनी गोद वालों को बच्चे गोद दिलाता है। नीकरों को काम दिलवाता है तो मालिकों को नौकर दिलवाता है। इसके माध्य से हम अपनी संपत्ति खरीद-बेच सकते हैं, सोना-चाँदी और शेयरों के दैनिक भाव जान सकते हैं। सचमुच समाचार-पत्र सांसारिक सिद्धियों का भंडार है। यह ऐसा शब्द संसार है जिसमें पूरा संसार बसा है।

3.बेकारी की समस्या अथवा बेरोजगारी

भारत में बेकारी की समस्या प्रसन्नता के लोक में दुःख का प्रवेश है और हर्ष की पूनम रात्रि में राहु का चन्द्रग्रहण है। यह आर्थिक व्यवस्था की अक्षमता एवं दुर्बलता का प्रतीक है। दूसरी ओर बेकारी की समस्या देश की प्रशासनिक दुर्बलता का परिचय देती है। इस समस्या ने भारत की शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया है। राष्ट्र का नैतिक पतन हो रहा है और सुख-समृद्धि टूट रही है।

बेकारी निकम्मेपन और भटकाव की नियति है। हट्टा-कट्ठा नौजवान जिसकी भुजाओं में ताकत है और मन में काम करने का उत्साह, वह भी आज चारों ओर से हार थक कर बैठ चुका है। उसकी आँखों के सामने ताश के पत्ते की तरह पत्नी की चाहत, बहन की शादी, बूढ़े माँ-बाप की बीमारी, नवजात शिशु की परवरिश की जिम्मेदारियाँ बिछी हैं। वह एक-एक कर नहीं, एक साथ सब को निपटाना चाहता है, पर आर्थिक अभाव उसके सारे विचारों को तह कर देता है । 

पिता की द आँखें उसकी पढ़ाई के लिए दिये गये खर्च का प्रतिदान चाहती हैं, पर बेटे की आँखें रूबरू होने कतराती हैं । परिणामत: वह अपने दरवाजे पर नहीं, चौराहे पर की चाय दुकान वाले अड्डे पर बै 1 लगा है, बैठकबाजों ने मौका ताक कर उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया है। उसकी रचनात प्रतिभा कुन्द हो गई है।

योग्यता और क्षमता रहने पर भी अनुकूल नौकरी और व्यवसाय नहीं मिलना भी बंद कहलाती है। भारत की बेकारी की समस्या अपने सहस्त्र फन फुंफकार रही है। यह विष-वमन। रही है और उसके विष से सारा राष्ट्र विषाक्त हो रहा है। इसके भयंकर अभिशाप से चतुर्दिक क निराशा व्याप्त हो रही है । 

यह राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को धूमिल कर रही है। यह समस्त राष्ट्र अभिशाप है। विश्व के प्रगतिशील राष्ट्र अमरीका, रूस आदि सभ्य देशों में बेकारी का उल्लेख नहीं है। सभ्य राष्ट्र अपने श्रम की महत्ता को पहचानता है। श्रम का उचित मूल्यांकन ही राष्ट्र उज्ज्वल भविष्य होता है।

बेकारी का तीन वर्ग भारत के सामने खड़ा है। एक वर्ग निरक्षरों का है और दूसरा वर्ग सा का है। बेकारी का तीसरा वर्ग शिक्षितों का है। निरक्षर बेरोजगार मजदूर वर्ग के हैं। ऐसे लोग विहीन हैं और उन्हें किसी कारखाने में भी नौकरी नहीं मिल पायी है। अपने गाँव में कोई ऐसा क भी उन्हें नहीं मिल पाता है, जिससे उन्हें रोजी-रोटी मिल सके। इनमें से कुछ नौकरी की खोज शहर की ओर जाते हैं और किसी प्रकार अपना पेट भर पाते हैं। 

इनमें से ही कुछेक ऐसे निकल पह हैं जो अत्यन्त ही निराश होकर चोरी, डकैती का कार्य करते हैं। निरक्षर बेरोजगार वर्ग की पत्नियाँ तो खेत में काम करती हैं अथवा चौका बर्तन कर अपना पेट भर पाती हैं, लेकिन सर्वहरा वर्ग के लि बेकारी को समस्या मध्य वर्ग के समान कठिन और दुरूह नहीं है।

मध्यवर्ग की स्त्रियाँ न तो खेत में काम कर पाती हैं और न वह शहर में मजदूरी ही कर पाती है। शारीरिक श्रम करने की शक्ति उनकी नहीं होती है। वे बलहीन होते हैं। शारीरिक योग्यता के अभ में वे घोर निराशा का जीवन जीते हैं। विद्यालय और महाविद्यालय की शिक्षा समाप्त कर वे जीवन की वास्तविक धरती पर खड़ा होते हैं तब उन्हें कल्पना के सुन्दर महल ढहते प्रतीत होते हैं।

उनका दिव्य स्वप्न बिखर जाता है। वे आदर्श के लोक से यथार्थ के लोक में आ गिरते हैं। किर- की नौकरी भी उन्हें नहीं मिल पाती है। वे घोर निराशा का जीवन जीते हैं।

स्वतंत्र भारत का युवा विकृति स्वरूप वर्तमान को कम्पित करता है और भविष्य को एक चुन दे रहा है। संत विनोबा ने इस विकट समस्या का निदान शिक्षा नीति में परिवर्तन लाना माना है। व सैद्धान्तिक शिक्षा को व्यावहारिक शिक्षा से जोड़ना चाहते हैं। भारत की प्राथमिक शिक्षा को वह कृ प्रधान बनाना चाहते हैं । महात्मा गाँधी ने इस कारण ही गृह उद्योग धंधा पर बल देना चाहा है, लेकि दुर्भाग्य का विषय यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत से कुटीर उद्योग धंधा लुप्त होता रहा है । 

भारत के कृषक खेती के लिए आसमान की ओर निहारते हैं। वे अपने बेरोजगार शिक्षित के साथ वर्ष के चार महीने चौपाल के गम के साथ काटते हैं। महात्मा गाँधी द्वारा प्रसाि आमन्त्रण – “खेत की ओर लौटो और गाँव की ओर चलो, जीवन आशा की ज्योति दिखाता है।’

बेकारी के समाधान के लिए जरूरी है कि शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाया जाय, खेती क वैज्ञानिक उपकरणों को सहायता से समुन्नत किया जाय, गाँव और शहर में कुटीर और भारी उद्य का जाल बिछा दिया जाय तथा सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं के बदले बेरोजगारों को रोजगार खपाने के लिए एक वर्ष की योजना बनाई जाय । 

4.तिलक दहेज प्रथा अथवा दहेज दानव

शादी के पूर्व वर पक्ष की ओर से कन्या पक्ष के सामने रुपये, सामान आदि की शर्त तिलब अथवा दहेज कहलाती है । पद और प्रतिष्ठा के हिसाब से वर का भाव कमता या बढ़ता है। इस प्रम द्वारा वर पक्ष कन्या-पक्ष का शोषण कर अपनी सामन्तवादी प्रवृत्ति का परिचय देता है। अनेका कन्या- पिता इस शोषणवृत्ति के भयंकर अभिशाप से अभिशप्त है। तिलक-दहेज प्रथा के भयंक

प्रचलन के कारण ही कन्या का जन्म लेना ईश्वरीय अभिशाप माना जाता है। यह तिलक दहेज प्रथा ऐसी कलकनी प्रथा है जो शादी को दो हृदय का मेल न बना कर खरीद-बिक्री का सौदा बनाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि दहेज प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है। पुराणों, प्राचीन ग्रन्थों में इसकी चर्चा आयी है।

जनक ने भी सीता की शादी में दहेज दिया है। लेकिन तब की बात और थो उस समय कोई शर्त नहीं थी। शादी के बाद कन्या की विदाई के समय लोग खुशी से सामर्थ्य के

अनुसार दहेज देते थे। आज तो स्थिति ही विपरीत है। दहेज का अर्थ हो गया है लड़के की बिक्री । इस प्रथा ने हमारी कोमल भावनाओं का गला टीप दिया है। पुत्री के जन्मोत्सव के समय पिता भावी संकट का अनुमान लगाने लगता है। पाई-पाई जोड़कर वह बैंक के हवाले करने में ल जाता है। 

अपनी सुख-सुविधाओं को वह बैंकों के हवाले कर देता है। जब लड़की बड़ी होकर सयानी हो जाती है तब पिता के जूते घिसने लगते हैं। लड़की लाख पढ़ी-लिखी सुन्दर और सुघड़ हो, भला उसे कौन पूछता है। इस प्रथा के कारण कन्या अपने पिता के घर में रोदन का कारण बन गई है तथा पति के घर में भी निरादर तथा अपमान पाती है।

दहेज प्रथा के इतने कुपरिणाम हैं जिसे शब्दों में व्यजित करना भी आसान नहीं है। अनमेल विवाह, बहू को जलाना, पिता की दीनता आदि कितना गिनाया जाय। अखबारों में रोज एक न एक खबर ऐसी जरूर मिलती है, जिसमें इस कुप्रथा का दुष्परिणाम दिखायी देता है। दहेज लोभियों का कारनामा बहू-हत्या के रूप में दिखायी देता है। लेकिन हाँ, दहेज प्रथा की खामियाँ तभी दिखाई पड़ती हैं जब हम तटस्थ होते हैं या फिर

लड़की के पिता होते हैं। जब लड़के का बाप होते हैं तो पगड़ी ऊँची हो ही जाती है। इस प्रथा को रोकना तभी संभव होगा जब सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाया जायेगा। इसमें महिलाओं को सामने आना होगा। 

कल दहेज के चलते रोती हुई बालिका जब आज लड़के की माँ हो जाती है तो अपना दुख भूल जाती है। इस तरह महिलाओं को आगे बढ़ना होगा। सच कहा जाय तो यह काम महिला से ही सम्भव हो सकता है। इसे रोकने के लिए प्रेम-विवाह को बढ़ावा देना होगा। लेकिन

यह प्रेम-विवाह परिपक्वता के साथ हो। इसे रोकने के लिए कठोर कानून की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकारी- कानून के माध्यम से इस प्रथा को रोकने के लिए बहुत उपाय किये गये हैं। लेकिन जबतक सामाजिक मनोवृत्तियों में परिवर्तन नहीं होता है तबतक सब बेकार है। कानून के निर्माता और नियंता भी इससे अपने-आपको अलग कहाँ कर पाते हैं। इसलिए नवयुवक और नवयुवतियों तथा महिलाओं को आगे बढ़कर इसे रोकने का कोई ठोस उपाय सोचना चाहिए।

5.साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता एक मनोभाव है जो आदमी को विस्तार से संकुचित बनाता है। यह ऐसी भावना है जिससे आदमी की मूल्यवत्ता समाप्त हो जाती है। मानवता के नाम पर यह दानवता का आवरण है। हमारे राष्ट्र के लिए तो यह ऐसी बीमारी है जो लाइलाज होती जा रही है। यह राष्ट्रीय एकता को जद को कमजोर करने वाली है। स्नेह, प्रेम और भ्रातृत्व को ऊँची है साम्प्रदायिकता ।

किसी धार्मिक मतवाद या सम्प्रदाय के प्रति आग्रह जो असहिष्णुता को जन्म देता है, उसे साम्प्रदायिकता कहते हैं। यह ऐसी मनोभावना है जिसके प्रभाव से दूसरे धर्म को सहन करना सम्भव नहीं, बल्कि उसका मूलाच्छेद ही करना चाहता है। इस प्रकार हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि धर्मों से सम्बन्धित साम्प्रदायिकता हो सकती है।

साम्प्रदायिकता का जन्म हमारे देश में तब हुआ जब मुसलमान शासकों द्वारा जबर्दस्ती हिन्दू से मुसलमान बनाने का अभियान शुरू हुआ। इस्लाम को स्वीकार नहीं करने पर दीवार में चुनवाने तथा तलवार के घाट उतारने के कुकाण्ड के विरोध में हिन्दुओं में भी सनातन धर्म के प्रति आग्रह उत्पन्न हुआ । 

इससे हिन्दू और मुसलमान के बीच एक लम्बी खाई उत्पन्न हो गयी। इस साम्प्रदायिकता को अंग्रेजों ने और अधिक हवा दी। उसने तो धर्म के नाम पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच फूट और वैर का ऐसा विरवा लगाया कि उससे आज तक उबर पाना सम्भव नहीं। 

‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति अपनाकर अँग्रेजों ने भारत में साम्प्रदायिकता की भावना को हमेशा पल्लवित और पुष्टि किया। इसका भयानक परिणाम हुआ भारत का विभाजन ।

भारत-विभाजन के पूर्व हिन्दू-मुसलमान की आपसी लड़ाई ने तो गृहयुद्ध का रूप ले लिया था रक्तपात, हत्या, लूट, बलात्कार के ऐसे अनेक कलंकित धब्बे आज भी स्मृति को ताजा कर रहे हैं साम्प्रदायिकता ने भाई-भाई के बीच खून की होली का वातावरण उत्पन्न किया। हम अपने ही भाइय के रक्त से अपनी उँगलियाँ रंग ली। 

आदमी के अन्दर का जानवर जाग गया और हिंसक होकर अपन इंसानियत को छोड़ दिया। इस भयानक वातावरण की याद तो रोमांच पैदा करती है। लाखों क संख्या में शरणार्थियों का आना, हजारों की संख्या में इसी तरह दूसरी जगह जाना-आखिर आदमी क बसा-बसाया संसार समाप्त हो गया। नोआखाली और तारापुर की घटनायें तो मानवता के नाम प कलंक ही हैं।

साम्प्रदायिकता एक सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह है जो समय-समय पर जागती रहती है। कभी इलाहाबाद तो कभी मेरठ, कभी नागपुर, कभी जबलपुर, कभी गुजरात आदि जगहों में साम्प्रदायिकत रह-रहकर हिलोरें लेती रहती है। कभी पीपल के पेड़ खड़कने से तो कभी कब्रिस्तान की धूल उड़ने से साम्प्रदायिकता जागती है। 

साम्प्रदायिकता की आग में शहर और गाँव दोनों झुलसने लगते हैं। बच्चे, बूढ़े, जवान सबके सब इसके शिकार होते हैं। हिंसा, रक्तपात, लूट और बलात्कार का बोलबाला हो जाता है। मंदिर और मस्जिद का यह झगड़ा लाखों-लाख लोगों को मौत के घाट उतार देता है। भारत-विभाजन से भी इस समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा।

साम्प्रदायिकता की आग को फैलानेवाले और कोई नहीं, हमारे ही बीच श्रेष्ठ कहलाने वाले लोग हैं। धर्मों की आड़ में अपना उल्लू सीधा करनेवाले लोग इसे बढ़ावा देते हैं। धर्म की गलत व्याख्या और बेतुका अर्थ निकालकर आपस में फूट और वैर का बीज बोना इनलोगों का काम रहा है। मुल्ला-मौलवी, महंथ धर्मगुरु आदि ने धर्म के मर्म को समझा ही नहीं है। 

इतना ही नहीं, साम्प्रदायिकता के जहर को फैलाने में राजनीतिक पार्टियों का कम बड़ा हाथ नहीं है। धर्म, सम्प्रदाय और जाति की हवा देकर राजनीतिज्ञ लोग अपने वोट की रोटी सेंकने से कभी बाज नहीं आते हैं। चुनाव के समय तो उम्मीदवारों का चयन भी इसी आधार पर होता है। साम्प्रदायिकता की आग में केवल हिन्दू और मुसलमान ही नहीं, सिख और अन्य धर्म के बीच भी यह आग फैली हुई है। पंजाब समस्या के पीछे साम्प्रदायिकता का सबसे अधिक जोर है।

साम्प्रदायिकता की इस बीमारी का इलाज हो सकता है। इसके लिए हमें आध्यात्मिक दृष्टि में परिवर्तन करना होगा। एक नयी आध्यात्मिकता को जन्म देना होगा। राजनीतिक लाभ उठानेवाले अगर अपनी बुरी नीयत से बाज आये तो बहुत कुछ सम्भव है कि इसका समाधान मिल जाय। 

चुनाव-युद्ध में साम्प्रदायिकता के हथकण्डे से लड़नेवाले कुटिल राजनेता अपनी इंसानियत की राह लें तो इसका समाधान हो सकता है। हमें शिक्षा को एक समान बनाना होगा। पूरे देश की शिक्षा समान होनी चाहिए। सामाजिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाओं को स्वस्थ और वैज्ञानिक बनाना होगा। सरकार साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले संगठनों, संस्थानों, पत्रों को केवल रोके नहीं, बल्कि उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों को सजा दे। 

इससे बड़ी बात है कि हमें एक राष्ट्रीय जीवन-दृष्टि पैदा करना चाहिए । जबतक संकीर्णता के समीप में हम पलते रहेंगे तबतक साम्प्रदायिकता की भावना बनी रहेगी । इसलिए हमें उदार और व्यापक जीवन दृष्टि से काम करना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए- इसी मुल्क में हुए और हम यहीं रहेंगे आगे भी, लड़-मर कर सह चुके बहुत, क्या और सहेंगे आगे भी ? 

6.जातिवाद / जातीयता एक अभिशाप

जाति-व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज की एक उपयोगी संस्था रही है। यह समाज की आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप थी। उपयोगिताओं के बल पर यह लम्बे समय तक हिन्दू समाज के सामाजिक जीवन का अंग बनकर रही है; लेकिन आज के युग में इसकी उपयोगिता नहीं रह गई है। इसका स्वरूप इतना विकृत हो चुका है कि इससे आम आदमी को घृणा हो गयी है। 

इस विकृति को लाने में राजनीतिक पार्टियाँ सबसे अधिक सक्रिय रही हैं। जाति के भरोसे राजनीति करने वाले लोग सत्ता के गलियारे में पहुँच गये और अपनी दादागिरी जमाने के लिए या पार्टी पर प्रभाव जमाने के लिए जातीय उन्माद फैलाने में काफी मदद किया है। न इनके पास जनाधार था, न इसके पास शिक्षा। मगर राजनीति के गुरु माने जाने लगे, ये लोग। 

सच्चाई को दरकिनार कर एक झूठा सत्य को सामने खड़ा किया गया है। झूठा सत्य, सत्य के खिलाफ खड़ा कैसे हो सकता है ? लेकिन जमाने का रंग बदला है, परिवेश की गति बदली है। ईमानदारी की गति धीमी पड़ गयी है। इस अवस्था में तो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक कुंठाएँ जन्म तो लेगी ही।

जाति-व्यवस्था के कार्य आज अनेक संस्थाएँ कर रही हैं, जिसका दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहा है। जाति-व्यवस्था समाज का खण्डात्मक विभाजन करती है तथा विभिन्न खण्डों के बीच ऊँच-नीच का संक्रमण पैदा करती है। ऊँच-नीच की भावना छुआछूत को जन्म देती है । उच्च जाति के लोग निम्न जाति से छुए जाते हैं। 

तात्पर्य यह है कि उच्च जाति के व्यक्ति में निम्न जाति के व्यक्ति के छू जाने का, साथ खा लेने से उच्च जाति की पवित्रता नष्ट हो जाती है तथा उच्च जाति के अपवित्र होने की सम्भावना अधिक रहती है। इस भावना को अस्पृश्यता की समस्या कहा जाता है। छुआछूत की भावना समाज के दो निम्न जाति समूह को पृथक करती है। 

एक दूसरे से घृणा करना सिखाती है। इससे समाज में तनाव का वातावरण पैदा हो जाता है। सामाजिक न्याय एवं बन्धुत्व की भावना के यह विपरीत है। भारतीय समाज में फैलती अस्पृश्यता पर विश्व के दूसरे देशों के लोग हँसते हैं, अस्पृश्यता हिन्दू समाज का कलंक है। निम्न जाति के अछूत हिन्दू जातियाँ भारी संख्या में ईसाई तथा इस्लाम धर्म को स्वीकार कर रहे हैं जो खतरनाक स्थिति है।

जाति-व्यवस्था विभिन्न जाति समूह के बीच तनाव एवं संघर्ष की स्थिति को बढ़ावा देती है। जाति प्रथा में समाज का खण्डात्मक विभाजन रहता है तथा विभिन्न खण्डों से ऊँच-नीच की भावना पायी जाती है। विभिन्न जातियों को सामाजिक एवं धार्मिक अयोग्यताएँ एवं विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। 

लोग सामुदायिक हित को द्वितीय तथा जाति हित को प्रथम स्थान देते हैं। उपर्युक्त परिस्थितियों से समाज में विषमता, विद्वेष, फूट तथा असहयोग की स्थिति आ जाती है। परिणामस्वरूप सामाजिक विसंगतियाँ, तनाव तथा संघर्ष में परिणत हो जाती है। 

समाज की शांति भंग हो जाती है। आये दिन भारत के अनेक राज्यों में जाति के नाम पर दंगे-फसाद होते रहे हैं। सामूहिक आगजनी, लूट, बलात्कार तथा हत्याएँ जाति के नाम पर होती देखी जा रही हैं। सामाजिक संगठन की दृष्टि से यह विषम एवं खतरनाक स्थिति का पैगाम है।

सामाजिक प्रगति को अवरुद्ध करने का कार्य जाति-व्यवस्था करती है। जाति के नाम पर समाज में तनाव एवं संघर्ष की स्थिति विभिन्न जातियों के बीच रहती है। इससे समाज में एकता, सहयोग तथा शांति की स्थिति नहीं रह पाती है। लोगों का ध्यान सामाजिक सुदृढ़ता की ओर न लगकर जातीय सुदृढ़ता में लगा रहता है, जिसका परिणाम पूरे समाज को भोगना पड़ता है।

जाति प्रथा के कारण स्त्रियों की स्थिति निम्न हो गई है। जाति रक्षा के नाम पर स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने आदि से रोका जाता है। छोटी आयु में उनका विवाह कर दिया जाता है। उनका काम संतान उत्पन्न करना और चूल्हा-चक्की तक सीमित रह जाता है।

विभिन्न जातियाँ अपने सदस्यों पर विवाह, खान-पान, सहवास आदि से सम्बंधित नियमों को लागू करती हैं। इससे व्यक्ति का व्यवहार नियंत्रित रहता है। जाति के विरुद्ध काम करने से जाति-बहिष्कार का दण्ड सदस्यों को दिया जाता है।

कुछ जातियों में मंदिरा-पान, यौन-संबंधी छूट, दहेज, बाल-विवाह की परम्परा है। सामाजिक नियमों तथा परम्परागत व्यवहारों के चलते जाति-व्यवस्था में अनेक प्रकार के दोष आ गये हैं। इस तरह दहेज-प्रथा, भिक्षावृति, बहु-विवाह, छुआछूत, वेश्यावृति, बाल-विवाह, सामाजिक कृत्यों में अनावश्यक व्यय आदि समस्याएँ समाज में जाति-व्यवस्था के चलते ही होती हैं। जाति-व्यवस्था प्रजातंत्र की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है।

जाति एवं प्रजातंत्र एक दूसरे को विरोधी होता है। प्रजातंत्र एकता, समानता, सामाजिक न्याय, व्यवसाय की स्वतंत्रता आदि सिद्धान्त पर प्रतिबंध या सामाजिक न्याय के विरुद्ध नहीं होती है। इस कारण वैसे देशों में जाति-व्यवस्थ अस्तित्व में रहती है, प्रजातंत्र की सफलता में प्रश्नचिह्न लग जाता है। 

जाति एवं प्रजातंत्र की विषमत के फलस्वरूप अनेक समस्या उठ खड़ी होती है। आज जाति-व्यवस्था की स्थिति अत्यन्त दुःखद एवं घृणास्पद हो चुकी है। जाति का नग्ननृत्य सरकारी स्तर से लेकर ग्रामीण अंचल तक पहुँच चुका है। आज जब नवयुवक साक्षात्कार में जाता है।

तो उससे पहले जाति पूछा जाता है। यह कितनी विस्मयजनक स्थिति है, क्या इससे प्रतिभा का दुरुपयोग नहीं होगा ? क्या इससे राज्य का अहित नहीं होगा ? अयोग्य लोग योग्य हो जायेंगे और योग्य अयोग्य हो जायेंगे तो क्या स्थिति होगी स्वयं सोचने की बात है।

7.देश में भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार राष्ट्र का महानतम शत्रु है। राष्ट्र की प्रगति का वह सबसे बड़ा बाधक है। आर्थिक, राजनीतिक और औद्योगिक सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। जनता, नेता एवं सरकार सभी यह जानते हैं कि हमारे बीच ठीक उसी तरह रच-बस गया है जिस तरह फल के ठीक कर्म में कीड़ा रच-बस जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि सामाजिक न्याय की गहरी आकांक्षा होते हुए भी इसे मिटाने की वैसी इच्छा नहीं है।

भ्रष्टाचार एक परम्परा के रूप में शाहजहाँ एवं औरंगजेब के दरबार में फ्रांसीसी यात्री डॉ० यनियर के अनुसार, भारत में एक परम्परा के रूप में भ्रष्टाचार व्याप्त है। इन्होंने स्पष्ट रूप से कहाँ है कि पूर्व में परम्परानुसार बड़े लोगों के पास खाली हाथ नहीं जाया जाता, नजराने की यह प्रथा शताब्दियों पुरानी है। आज नजराने के निकटतम साथी भ्रष्टाचार व्यापक होता जा रहा है और अपनी जड़ें गहरी जमाता जा रहा है। विडम्बना तो इस बात में है कि भ्रष्टाचार उन सरकारी अफसरों में भी व्याप्त है जो महत्त्वपूर्ण पदों पर है।

विभाग एवं न्यायालयों में भ्रष्टाचार – एक पत्र के अनुसार, पुलिस एवं न्यायालयों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक दारोगा से दो गुणा वेतन पानेवाला सामान्य गृहस्थ उस शान से नहीं रह सकता जिस शान से दारोगा रहता है। न्यायालयों में कदम-कदम पर लोगों को ‘उनलोगों’ का हक देना पड़ता है।

नकल लेने की तारीख देने की तारीख की जानकारी प्राप्त करने की और उसी प्रकार के अन्य कार्यों की गैर-कानूनी फीस है। कहीं-कहीं तो पेशकार लोग यहाँ तक कह देते हैं कि उन्हें हाकिमों के बंगले पर साग-सब्जी आदि का प्रबंध करना पड़ता है जिनका इन्तेजाम इस तरह करने पर मजबूर हैं।

सरकारी सुविधाओं एवं नियंत्रणों में भ्रष्टाचार — सन् 1968-69 वर्ष के एक राज्य के सतर्कता आयोग का विवरण भी महत्त्वपूर्ण है। इसके प्रतिवेदन में कहा गया है कि अधिकांश भ्रष्टाचार परम्परागत और ग्रामीणों द्वारा चुपचाप अपना ली जाने वाली वस्तु समझा जाता है।

पम्प, बिजली, ऋण आदि सरकारी सुविधाओं तथा नियंत्रणों के सिलसिले में गाँवों में व्यक्तियों एवं समुदायों से धड़धड़ धन वसूल किया जाता है। चिकित्सा विभाग में भी इस अपराध की परम्परा का उल्लेख किया गया है। इसके अन्तर्गत सरकारी अस्पतालों में इलाज एवं भोजन की वस्तुओं के लिए तथा दवाइयों के लिए मरीजों से पैसा माँगा जाता है।

प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार – प्रशासनिक स्तर पर भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। बोफोर्स घोटाला, शेयर घोटाला आदि प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण ही हुए हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् की गतिविधियों की जाँच के लिए ए० के० सरकार समिति नियुक्त की गयी थी। इस समिति ने परिषद् के कर्मचारी के बारे में टीका-टिप्पणी करते हुए

लिखा है कि बड़ी-बड़ी जगहों पर बिना किसी विज्ञापन और जाँच के कुछ लोगों को नियुक्त कर लिया गया। यह भी कहा कि बिना किसी आवश्यकता के बड़े-बड़े वेतनों वाली नौकरियाँ बना ली गयीं और उनपर कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को नियुक्त कर लिया गया।

भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व० डॉ० राधाकृष्णन ने अपने एक दीक्षांत भाषण में कहा था कि आज देश में नैतिक संकट जिस मात्रा में है उतना संकट न तो खाद्य का है और न वस्त्र का नैतिक संकट के कारण ही आज समाज की मान्यताएँ बदल रही हैं। सभी क्षेत्रों के लोग नैतिकता और उसकी मान्यताओं को व्यर्थ की वस्तु समझने लगे हैं। 

उनकी यह धारणा बन गई है कि ईमानदारी को राह चलना और कष्ट उठाना एक बेवकूफी है। दूसरों को धोखा देकर, रिश्वत लेकर जब अन्य लोग कुछ ही दिनों में मालोमाल हो जाता है और सारी सुविधाएँ उपलब्ध कर लेते हैं तब मात्र से ही ईमानदारी क्यों बरते और कष्ट क्यों झेलें। 

परिणामस्वरूप वे भी रिश्वत लेने लगते हैं और यह अनैतिकता की भावना जन-जन में प्रसार पाती जाती है। भ्रष्टाचार के जनक केवल आर्थिक दृष्टि से विपन्न और संकटग्रस्त व्यक्ति मात्र नहीं हैं प्रत्युत वे भी हैं जो संपन्न हैं और उनका भ्रष्टाचार तो और भी निकृष्ट कोटि का है।

इस तरह से स्पष्ट है कि भारत में भ्रष्टाचार व्याप्त है। किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्ण तंत्र ही भ्रष्टाचारी हो गया है। कभी-कभी बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और देश का बड़ा भयावह रूप चित्रित किया जाता है। स्थिति ऐसी नहीं है, इसे दूर किया जा सकता है। नैतिक शिक्षा पर जोर डाला जाना आवश्यक है। सत्तारूढ़ व्यक्तियों की जाँच के लिए उचित आयोगों का निर्माण भी आवश्यक है। 

कुछ ऐसे आचारों का बनाया जाना भी आवश्यक है जो पदासीन व्यक्तियों के व्यवहारों का निर्धारण कर सकें। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि ये व्यवहार उन व्यक्तियों के लिए लागू किये जा सकते हैं जो सत्ताधारियों पर आरोप लगाते हैं और उनके कार्य-कलापों की निन्दा करते हैं। भ्रष्टाचार में पकड़े गये मामलों में यदि उच्चाधिकारियों को प्रश्रय न दिया जाय और भ्रष्टाचारी के प्रति उचित दण्ड विधान का प्रयोग किया जाय तो भ्रष्टाचार के निर्मूल होने में सफलता मिल सकती है।

8.हमारी शिक्षा व्यवस्था के दोष अथवा वर्तमान शिक्षा प्रणाली

ज्ञान के बिना मनुष्य पूर्ण नहीं होता, उनका जीवन सार्थक नहीं होता। ज्ञान है जो अनुभव से मिलता है, शिक्षा से प्राप्त होता है। उधर आज के विद्यार्थी, शिक्षक और शिक्षण संस्थाएँ हैं जिनमें अनेक प्रश्नवाचक लगे हुए हैं। विद्यार्थियों को उद्दण्ड और अनुशासनहीन माना जाता है। शिक्षकों को अयोग्य और उत्तरदायित्वहीन कहा जाता है। 

शिक्षण संस्थाओं को अनाथालयों के समतुल्य गिना जाता है। अतः कुछ ऐसे तत्त्व अवश्य हैं जो अधिकृत रूप से शिक्षा संसार में घुसे हुए हैं। इन्हें निकाल बाहर करना और इनके स्थान पर उपयुक्त तत्त्वों का समावेश करना परम आवश्यक है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय स्तर पर सुनियोजित नहीं है। पढ़कर नौकरी प्राप्त करना ही उसका उद्देश्य है । लार्ड मेकाले की भूमिका अभी भी चली आ रही है। आज अंग्रेजी भाषा भले ही शिक्षा का माध्यम न हो फिर भी अंग्रेजी के प्रति आकर्षण बना हुआ ही है। 

सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी ने अपने पत्र ‘यंग इण्डिया’ में लिखा था— “आज हमारी मातृभाषाओं को पदच्युत करके अंग्रेजी ने बलात्, हमारे हृदय पर अधिकार कर लिया है, अंग्रेजी के ज्ञान के बिना ही भारतीय प्रतिभा का पूर्ण विकास होना चाहिए। स्वतंत्रता मिलते ही 21 सितम्बर सन् 1947 ई० के हरिजन में गाँधी जी ने लिखा था—“इस आवश्यक परिवर्तन के लिए एक दिन की देर भी राष्ट्र की सांस्कृतिक क्षति है । परन्तु आज भी अंग्रेजी के प्रति व्यापक मोह बना हुआ है।”

विषयों की अधिकता आज भी शिक्षा का दोष है। विद्यार्थियों को अनेक ऐसे विषयों का अध्ययन करना पड़ता है जिनका उसको भावी जीवन से कोई संबंध नहीं। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों को वहीं विषय पढ़ाया जाता था जिसका संबंध भावी जीवन से होता था। आज की परीक्षा-प्रणाली भी दूषित है। वर्ष भर के कार्य को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता ।

वर्षान्त की लिखित परीक्षा ही पास होने की कसौटी होती है। परिणामस्वरूप विद्यार्थी वर्ष भर इधर-उधर की बातों में रहकर परीक्षा के एक या दो महीने पूर्व दिन-रात परिश्रम करते हैं। स्वास्थ की हानि भी होती है, सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अनुशीलन भी नहीं हो पाता। पुनः परीक्षा के सम अनुचित साधनों का प्रयोग भी ये विद्यार्थी करते हैं। शिक्षक और विद्यार्थियों में कर्तव्य के प्रति उदासीनता की भावना भी बढ़ती जा रही है। 

उन आपस के संबंध भी यथोचित एवं मधुर नहीं हैं। अधिकांश स्कूल एवं विद्यालय शिक्षा का मंदिर होकर शिक्षा के बाजार बन गये हैं। न आज के शिक्षक आदर्श शिक्षक है, न आज के विद्यार्थी आदर विद्यार्थी। ऊँचे से ऊंचे दाम पर अपने मस्तिष्क को बेचना शिक्षक का उद्देश्य होता है, बिना ठकि आभार व्यक्त किये अभिभावकों की आर्थिक स्थिति के अनुसार ज्ञान को खरीदना विद्यार्थियों के उद्देश्य होता है। 

शिक्षक ट्यूशन पढ़ाने के लिए मजबूर होते हैं, विद्यार्थी भी ट्यूशन पढ़ने के लिए मजबूर होते हैं। इतना होते हुए भी न तो शिक्षकों की आर्थिक समस्या सुलझ पाती है न विद्यार्थिय की संतोषजनक पढ़ाई हो पाती है। आजकल की अधिकांश शिक्षण संस्थाएँ मानो धर्मशाला बनी हुई हैं। इन शालाओं में ये नवयुवक आते हैं जिन्हें बेकारी का समय काटना होता है। अच्छी नौकरी मिलते ही वे संस्था से विद हो जाते हैं।

अनेक गैर-सरकारी शिक्षण संस्थाओं के अधिकारी वर्ग का उद्देश्य आर्थिक लाभ एवं व्यक्तिगत प्रभाव होता है। अध्यापक-अध्यापिकाओं एवं छात्र-छात्राओं के चुनाव में इनकी विशेष नीति का पालन किया जाता है। अधिकारी वर्ग छात्रों के प्रवेश, उनके शिक्षण एवं परीक्षाफल में अनुचित हस्तक्षेप भी करते हैं। शिक्षण संस्थाओं में उचित पुस्तकों का भी अभाव होता है। पुस्तकें यदि होती भी हैं तो अनुभवहीन एवं अनधिकारी व्यक्तियों की ये पुस्तकें धनोपार्जन के व्यापारिक उद्देश्य से लिखी हुई

होती हैं। विद्यार्थियों को मस्तिष्क की भूख इन पुस्तकों से शांत नहीं हो सकती। अनुत्तीर्ण छात्रों की विशाल संख्या भी इस संदर्भ में विचारणीय है। दूसरे देशों की तुलना में भारत के अनुतीर्ण छात्रों की संख्या कहीं अधिक है।

अभिभावकों की उदासीनता भी आज की शिक्षा का एक दोष है। बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिला देना और पुस्तकों आदि का प्रबंध कर देना मात्र ही वे अपना कर्त्तव्य समझते हैं। उनका अध्ययन किस तरह चल रहा है, वे पाठशाला जा रहे या और कहीं ? उनकी गतिविधियाँ क्या हैं?

आदि बातों की चिन्ता उन्हें नहीं होती। धार्मिक और नैतिक शिक्षा का अभाव भी खटकने वाला है। ऐसी शिक्षा से कर्त्तव्य के प्रति दृढ़ता, कर्त्तव्य पालन के प्रति लगाव आदि की भावनाएँ आती हैं। उच्च शिक्षा सबके लिए सुलभ भी नहीं है। अत्यधिक व्यय साध्य होने के कारण योग्य एवं परिश्रमी, किन्तु निर्धन छात्र उसे प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली के अभावों को दूर करना और उनकी त्रुटियों को परिमार्जित करना आज की राष्ट्रीय आवश्यकता है। शिक्षण पद्धति में सुधार करके अच्छी और सस्ती पाठ्य-पुस्तकें तैयार करके, छुट्टियों को कम करके और शिक्षण का कार्यकाल बढ़ाकर अध्यापन के स्तर को ऊंचा उठाना होगा। शिक्षक और विद्यार्थियों का संबंध घनिष्ठ बनाना होगा। अच्छे शिक्षकों को अधिक संख्या में रखना होगा।

आज की परीक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन आवश्यक है। विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करते समय वर्ष भर के कार्य को दृष्टि में रखना होगा। विद्यालयों में उनके व्यवहार, आचरण एवं उनकी कार्य-प्रणाली को भी परीक्षा फल के समय महत्त्व देना होगा। पुनः आवश्यकता एवं योग्यता के अनुसार विद्यार्थियों के लिए विषयों का चुनाव करना भी आवश्यक है। मातृभाषाओं के माध्यम से

शिक्षा देने में भी अनेक कठिनाइयाँ दूर हो जाएँगी। इन व्यवस्थाओं के द्वारा ही हम विद्यार्थियों को पूर्ण जीवन के लिए तैयार कर सकेंगे।

पर्यावरण प्रदूषण या प्रदूषण पर्यावरण ‘परि’ और ‘आवरण’ शब्दों के मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ होता है चारों और, आवरण का अर्थ घेरा से है। अतः पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘पृथ्वी के चारों ओर है जो आवरण’। अतः हमारी समस्त धरती और इसपर विद्यमान सभी वस्तु हमारा पर्यावरण है। इसके अन्तर्गत वे सभी परिस्थितियाँ भी आ जाती हैं जो हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव डालती हैं। हमारे पर्यावरण के अन्तर्गत मुख्यतः हवा, जल और भूमि आते हैं, किन्तु इसमें साथ रहने वाले

समस्त जीव जन्तु और पेड़ पौधे भी आ जाते हैं। पर्यावरण को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है—भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत हवा, जल और भूमि आते हैं। जैविक पर्यावरण के अन्तर्गत पेड़-पौधे और छोटे-बड़े सभी जीव आते हैं।

प्रदूषण (Pollution ) – प्रकृति या पर्यावरण के अवयवों की संरचना या संतुलन में व्यवधान उत्पन्न करना पारिस्थितिकी असंतुलन या प्रदूषण कहलाता है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, जनसंख्या में वृद्धि का हास तथा नाभिकीय कचरे इत्यादि प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। ज्ञान-विज्ञान का विकास और जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ स्वच्छता की समस्या प्रादुर्भूत हुई हैं। बड़े नगरों में नालियों के गंदे पानी, मल-मूत्र, कारखानों की राख, रासायनिक गैस अधिक मात्रा में निकलते हैं, फलतः हवा, जल, पृथ्वी स्थित सभी जन्तु प्रदूषण से प्रभावित होते हैं।

प्रदूषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-

(क) पर्यावरण प्रदूषण, (ख) जल प्रदूषण (ग) स्थलीय प्रदूषण (घ) रेडियोधर्मी प्रदूषण (ङ) ध्वनि प्रदूषण ।

पर्यावरण प्रदूषण-पर्यावरण को प्रदूषित करने में मोटर वाहनों की भूमिका सर्वाधिक है। इसके अलावे बड़े-बड़े नगरों में कारखानों की बड़ी-बड़ी चिमनियाँ काले एवं भयंकर धुआँ उगलती रहती हैं जो प्राणियों के लिए भयानक संकट उत्पन्न कर रही है। 

जल प्रदूषण — औद्योगिक नगरों में बड़े पैमाने पर दूषित पदार्थ नदियों में प्रवाहित किया जा रहा

है जिससे उसका पानी इस योग्य नहीं रह गया है कि उसका उपयोग किया जा सके। स्थलीय प्रदूषण – पौधों को चूहों, कीटाणुओं तथा परजीवी कीड़ों से रक्षा के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। हवा में विसर्जित प्रदूषण तत्त्व सोखनेवाले अवांछनीय ध्वनि का शोषण करके शोर की तीव्रता को कम करनेवाले वृक्षों के उन्मूलन किए जाने से हमारे स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ रहा है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण वर्तमान युग में परमाणु बम विस्फोट परीक्षणों से वायुमंडल में जो रेडियोधर्मी विष फैलता है उससे वर्तमान ही नहीं, भावी पीढ़ी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। ध्वनि प्रदूषण – विभिन्न प्रकार के परिवहन, कारखानों के सायरन, मशीन चलने से उत्पन्न शोर

आदि के द्वारा ध्वनि प्रदूषण होते हैं। ताप प्रदूषण – पर्यावरण में अत्यधिक अवशिष्ट ऊर्जा का मोचन विशेष रूप से ऊर्जा संयंत्रों को ठंडा करने हेतु शीतलन टावरों (Cooling towers) से निकला गर्म पानी जो नदियों तथा झीलों में जाकर मिल जाता है । इसके कारण कुछ जलीय जीव मर जाते हैं और ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी हो जाती है

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज विश्व के सामने एक भयंकर समस्या बनकर उपस्थित है। यदि पर्यावरण को प्रदूषित होने से नहीं रोका गया तो शीघ्र ही वर्त्तमान सृष्टि समाप्त हो जाएगी।

इसके लिए अभी आवश्यक है कि पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार की झाड़ियों एवं फूलों के पौधे लगाए जायें। पेड़-पौधे हानिकारक गैसों को ही नहीं, अपितु स्थलीय एवं ध्वनि प्रदूषण को भी रोकते हैं और हमें साँस लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। अतः बड़े पैमाने पर नये वन लगाने, भू-संरक्षण के उपाय करने और समुद्र के तटवर्ती क्षेत्रों में रक्षा कवच लगाने की आवश्यकता है।

विश्व के कुछ विकसित देशों, जैसे—– अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि में प्रदूषण को रोकने के लि 1 महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं । पर्यावरण प्रदूषण आज मानव अस्तित्व के लिए एक जटिल चुन है। यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह धरती तपती रेत के सागर में लीन हो जायेगी

9.विज्ञान : अभिशाप या वरदान अथवा विज्ञान के चमत्कार अथवा विज्ञान और मानव-हित

मानव की अद्भुत सृष्टि विज्ञान के चमत्कार हैं। ईश्वर अपनी कृति धरती की रचना पर विमुत है और मानव अपनी रचना वैज्ञानिक आविष्कारों पर चकित है। मस्तिष्क की अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति ने विज्ञान को जन्म दिया है। विस्तृत ज्ञान ही विज्ञान है। मानव अपनी इस अद्भुत कृति पर दम भरता है। वह अहं में मानवता को ठुकरा देता है।

विज्ञान मानव क्षेत्रों की अनोखी चमक है। जीवन का संगीत है। आधुनिक जीवन के व्यापक क्षेत्रों विज्ञान ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। कृषक ट्रैक्टर के नीरस स्वर में जीवन के सरस गो का आनन्द खोजता है। बैलों के गले की घंटी के रुनझुन स्वर के स्थान पर मोटर के हॉर्न का कर्कर स्वर सुनाता है। अब वह बैलगाड़ी पर बैठकर विरहा नहीं गाता है। 

चारवाहे भैंस की पीठ पर बैठक बाँसुरी पर उँगलियाँ नहीं छेड़ता है। वह ट्रॉजिस्टर के चंचल गीतों के साथ अपने जीवन के स्वरों क बाँध चुका है । व्यवसाय, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि समस्त क्षेत्रों में विज्ञान अपना आधिपत्य स्थापित का चुका है। यह विज्ञान के उत्कर्ष का युग है। 

विज्ञान के बल पर समय और दूरी जीवन के समीप आकर संकुचित परिधि में बंध गयी है। विश्व के छोर-छोर में निवास करने वाला मानव एक दूसरे के समीप बैठकर जीवन की समस्या का समाधान टटोलता है। प्रकृति विज्ञान के समक्ष नतशिर है। मनुष्य की कोमल मुट्ठी में विशाल गगन है और उसके लघु चरणों में विशाल समुद्र है

विज्ञान अंधों की दृष्टि है। बहिरों को सुनने की शक्ति है और जड़ प्राणी की जीवन शक्ति है। निस्सन्देह हो विज्ञान ने मनुष्य को अपार शक्ति प्रदान की है। प्रकृति उसके समक्ष नतमस्तक है और चंचल पवन उसके द्वार पर उपस्थित है। समय की सीमा और स्थान की दूरी विज्ञान की सुदृढ़ चरण में समर्पित है। 

दूर रहने वाली वस्तु उसके नामों के समक्ष है और समय की दूरी उसकी सीमा में बँधी है। अतीत वर्तमान पर समर्पित है और भविष्य वर्तमान के हाथों में है। विज्ञान ने मनुष्य के मस्तिष्क को ज्ञान का कोष अवश्य दिया है। उसने उसे गगन में उड़ने को शक्ति अवश्य दी है। कवि दिनकर ने विज्ञान के इस चमत्कार की प्रशंसा में यह भी कहा है-—- 

‘आज की दुनिया विचित्र नवीन, प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन । है बँधे नर के करों में पारि विद्युत, भाप, हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप ।

लाँध सकता है नर सरित, गिरि, सिन्धु एक समान ।’ विज्ञान के इस विकसित स्वरूप को देखकर मन जहाँ एक ओर रीझता है, वहीं उसके भयंकर प्रयोग से मानव का चित्त काँपता भी है। विज्ञान ने मनुष्य को ज्ञान का समुद्र दिया है, किन्तु हृदय को क्षुद्र बना दिया है। मानवता का घोर पतन हो गया है। 

विज्ञान के उत्कर्ष स्वरूप को प्राप्त कर हृदयहीन दर्प से झूम रहा है। पारस्परिक एकता, प्रेम और बंधुत्व की भावना को विज्ञान ने हनन कर दिया है। प्रतिक्षण व्यस्त रहनेवाला आधुनिक विज्ञान प्रभावित जन-जीवन के आनंद को भुला चुका है। विज्ञान ने मनुष्य की स्वार्थ प्रवृत्ति को प्रबल बना दिया है।

जन-जीवन परस्पर द्वेष और ईर्ष्या की भावना से जल रहा है। विज्ञान दाहक अग्नि-स्वरूप प्रज्वलित होकर जन-जीवन को जला रहा है। यह विश्वदाहक और मृत्यु का संदेशवाहक है। यह बुद्धि का इंद्रजाल है। यह जीवन का उपहार नहीं, जीवन का अभिशाप है। कवि दिनकर ने इस सत्य को ही इन पंक्तियों में उजागर किया है-

“यह नहीं विज्ञान, विद्या बुद्धि का यह आग्नेय, विश्व- दाहक, मृत्यु- वाहक, सृष्टि का संताप, भ्रांत पथ पर अंध बढ़ते ज्ञान का अभिशाप । भ्रमित प्रज्ञा का कुतुव यह इंद्रजाल विचित्र, श्रेय मानव के न आविष्कार ये अपवित्र सावधान मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार ।’

विज्ञान तलवार बनकर आधुनिक मानव की गर्दन पर लटक रहा है। वह प्रतिहिंसा और द्वेष की भावना से जलता है। वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा मनुष्य, मनुष्य पर आक्रमण करता है। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मनुष्य के इस स्वरूप को अपने निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ में पश्चाताप भाव व्यक्त किया है। मनुष्य के चरित्र गठन के कारण लेखक ने मनुष्य को लाख वर्ष पूर्व वाला नखदन्तावलम्बी जीव माना है। वह उ नख के स्थान पर बम का प्रयोग करता है। मनुष्य की हीन प्रवृति जागृत है।

निष्कर्षत : विज्ञान विनम्र सेवक है। उसका किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। मानव का सद्भाव विज्ञान को वरदान बना देता है और असद्भाव अभिशाप बना देता है। विज्ञान के कारण ही विश्व के समग्र राष्ट्र युद्ध के ज्वर-भय से पीड़ित हैं। विज्ञान ज्ञान की ज्योति के साथ-साथ प्रेम का दीपक जलाएगा, तभी मानव कल्याण संभव हो सकेगा।

10.छात्र और राजनीति

प्राचीन काल में विद्यार्थी घर से बाहर निकलकर गुरु आश्रम में विद्या अर्जन करने जाता था, जहाँ उनको ‘ब्रह्मचारी’ कहा जाता था। यानी ब्रह्मचारी का पालन करते हुए योग्यता हासिल करनी होती थी। यही ब्रह्मचारी शब्द बाद में चलकर (विद्यार्थी) का पर्याय बन गया। 

विद्यार्थी अपने ज्ञान कोष को सहृदय के साथ ग्रहण करना चाहता है, ताकि उनका जीवन पथ में सूर्य और चन्द्रमा के सदृश प्रकाशमान हो । चन्द्रमा के शीतल चंचल किरणें उसके व्यक्तित्व में सहायक हो। इसलिए यह पूर्ण मनोयोग से अध्ययन, पठन-पाठन में लगा रहता है। इतिहास, गणित, ज्योतिष, साहित्य, कला, संगीत एवं विज्ञान आदि विषयों का वह निष्ठापूर्वक अध्ययन करता है। 

इन विषयों के अन्तर्गत एक अन्य विषय होता है, जिसे हम राजनीति की संज्ञा प्रदान करते हैं तथा अन्य विषयों के साथ उसका भी अपना गौरवपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी जीवन तथा पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजनीति शास्त्र एक ऐसे विषय के रूप में परिणत हो गया है कि आज हर वर्ग का छात्र इस विषय का पठन-पाठन अपने लिए आवश्यक मानने लगा है। आज चाहे विज्ञान का छात्र हो या कलाशंका या वाणिज्य का, सब इसे अपरिहार्य मानने लगा है। 

आज विद्यार्थी विश्व काल खण्ड में जीना चाहता , है। दिल्ली, पटना, बम्बई उसका घर हो गया है। इस घर से बाहर निकलकर वह अमरीका, रूस, जापान, इंगलैंड के सड़कों पर घूम रहा है। अब यहाँ सवाल उठता है कि छात्रों को राजनीति में भाग लेना चाहिए अथवा नहीं। यह एक विवादास्पद प्रश्न है। इसके बिना अध्ययन कर सम्यक् उत्तर देना कठिन कार्य है।

दिग्भ्रमित और दायित्वहीन राष्ट्र को कर्तव्य पथ पर ले चलने का उत्तरदायित्व छात्रों के कंधों पर ही होता है। वह निश्छल, निर्विकार और निर्मल चरित्र से जब राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है तो राष्ट्र के दुर्भाग्य की घटा अवश्य ही हट जायेगी। एक अखण्ड प्रकाशपुंज का उदय होगा। चतुर्दिक शांति और आनन्द की सरिता प्रवाहित होगी। 

सुख सरिता में अवगाहन कर जनजीवन प्रसन्न हो उठेगा। संभवतः इस उद्देश्य को ही दृष्टि पथ में रखकर क्रांतिकारी लाला लाजपत राय ने कहा है, “आज ऐसे विद्यार्थी की आवश्यकता है जो आत्म-सम्मान और गौरव की रट लगाये हुए अपने भौतिक सुखों को महत्त्व न देते हों, जो समाज सेवा और देश-प्रेम के लिए हर तरह का कष्ट सहन करने के लिए तैयार हों। जो उदार हों, जो अपने अन्दर देख सकें और अपने आपको सुधारने के लिए यत्न करें।”

छात्र और राजनीति पर भिन्न-भिन्न विचार विभिन्न विद्वानों के मिलते हैं। एक मत यह भी है कि छात्र और राजनीति का संबंध विपरीत का संबंध है। राजनीति के पंक में फँसकर छात्र जीवन का कमल खिलता नहीं है। उसका ओज, तेज और सौरभ फलित होने के पूर्व ही मुरझा जाता है। राजनीति के छल-प्रपंच की धूलि उसके सरल जीवन को मलिन कर देता है। वह विशिष्ट राजनीतिक प्रभात में अपने जीवन के कमल-कोमल दल को नष्ट कर देता है। उसका स्वच्छ निर्मल चरित्र लक्ष्य से वंचित हो जाता है। 

उसके अध्ययन का समय राजनीति को मंत्रणाओं में बीतता है। वह अपने जीवन के निर्माण के अमूल्य गुणों को ध्वंस के क्षणों में परिवर्तित करता है। राजनीतिक लहरों के चंचल थपेड़ों से वह लक्ष्यविहीन हो जाता है। उसकी दृष्टि धूमिल हो जाती है। सत्य-असत्य का विवेचन दृष्टि वह खो बैठता है। 

वह पूर्वाग्रहित विचारधाराओं से प्रेरित होता है। स्वार्थी नेताओं को चक्कर में वह अपना अमूल्य जीवनधन खो देता है। ऐसे छात्रों का दुरुपयोग कर नेता अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं, ऐसे नौनिहाल छात्र द्वार-द्वार से अवहेलना और तिरस्कार पाते हैं। कभी-कभी किसी राजनीतिक प्रदर्शन में वे गोली का शिकार भी बनते हैं। उग्र जन भीड़ का नेतृत्व करनेवाला भारत का यह अमूल्य रत्न अपने प्राण खो बैठते हैं। यह उम्र अनुभवहीन और भावुकता प्रधान होती है। नेताओं के छलपूर्ण भाषण के प्रभाव में आकर वे अपना जीवन गँवा बैठते हैं।

छात्र और राजनीति के पारस्परिक सम्बन्ध पर विचार करने में दूसरा मत यह मानता है कि आज के छात्र ही भविष्य के जन-नेता हैं। वे ही सच्चे युग-पारखी हैं। उनके कंधे पर ही भविष्य का संचालन सूत्र रहेगा। छात्र जीवन से ही उसे राजनीति के उथल-पुथल, दाव-पेंच, छल-प्रपंच और हार-जीत का ज्ञान होना चाहिए। 

उनकी दृष्टि में छात्र जीवन भविष्य जीवन की तैयारी है। उसके वर्तमान जीवन में ही भविष्य के सूर्य की लालिमा दिखायी पड़ती है। राजनीति राष्ट्रीय जीवन का अनिवार्य अंग है । अतएव छात्र को राजनीति से दूर नहीं रहना चाहिए। ऐसे विद्वान के मत में यह भी संकेत किया जाता है कि स्वतंत्रता-विभा को राष्ट्र की धरती पर उतरने में विद्यार्थी ही सक्षम है। छात्रों के रक्तदान से ही राष्ट्र की सुरक्षा हो सकती है।

निस्सन्देह ही छात्र और राजनीति का संबंध एक विचारणीय प्रश्न है। यह कथापि अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि आधुनिक जन-जीवन राजनीति से प्रभावित है। राजनीति ही दिशा-निर्देश करती है, लक्ष्य निर्धारण करती है और जीवन के समस्त क्षेत्रों को परिचालित करती है। जीवन के प्रत्येक पल में राजनीति प्रविष्ट कर गयी है। राजनीतिक शिक्षा अर्थक्षेत्र, विज्ञान, साहित्य आदि पर अपना आधिपत्य कर चुकी है। 

आज का अर्थशास्त्रवेत्ता विशिष्ट राजनीतिज्ञ से प्रभावित होकर शिक्षा के मानदण्ड का निर्माण करते हैं। साहित्य शुद्ध और निर्मल है तथा अपनी बाधा में भी राजनीति की साँस लेता है। ऐसे विकट कठिन युग में छात्र का राजनीति से पृथक रहना एक अस्वाभाविक प्रश्न है। और उचित भी नहीं है। किन्तु छात्रों को राजनीति के प्रति सदा सजग और निष्पक्ष रहना है। 

वह अपनी विवेक दृष्टि से राजनीति के उथल-पुथल, चहल-पहल और कोलाहल का अध्ययन करेगा। अपनी तटस्थ नीति से भला-बुरा की विवेचना करेगा, प्रपंच और शुद्धता की मीमांसा करेगा एवं सत्य पथ का निर्देश करेगा। ऐसे ही आदर्शयुक्त छात्र जीवन का राजनीति में प्रवेश एक प्रशंसनीय चरण होगा। राजनीति के दल-दल रो जन-सामान्य के जीवन को मुक्त करना ही आदर्श छात्र का कर्तव्य होगा।

आज जिस तरह से विद्यार्थी समुदाय को राजनीतिक लिबास पहनाकर विश्वविद्यालय या महाविद्यालयों को प्रदूषित किया जा रहा है, यह एक दुःखद तथ्य है। राजनीति से अपरिचित रहने की बात हम नहीं कहते कि विद्यार्थियों, मगर उसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। विद्यार्थी का युग सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से राजनीति को परखना चाहिए और स्वाध्याय में सक्रियता दिखानी चाहिए। यहाँ उसके लिए श्रेयष्कर होगा।

11.अनुशासन अथवा छात्र और अनुशासन

जीवन और जगत में व्यापक संबंध है। जीवन प्राप्त करते ही मनुष्य को जगत के नियमों के अनुरूप कार्य सम्पादन करना होता है। सामाजिक नियमों का पालन ही अनुशासन है। वस्तुतः अनुशासन को पालन करते हुए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है। जीवन में अनुशासन का महत्त्व अत्यधिक है। इसके अभाव में समाज में उच्छृंखलता बढ़ जाएगी और अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी । 

अनुशासन की आवश्यकता प्रत्येक मनुष्य के लिए है। चाहे हम शिक्षक हों या छात्र, शासक हों या शासित, मालिक हो या नौकर, अपनी सीमान्तर्गत अनुशासन का पालन हमारे लिए नितान्त आवश्यक हो जाता है। एक वाक्य में हम कह सकते हैं कि अनुशासन वह सौत्रिक तन्तु है जिसका संबंध समाज रूपी जीवन के अंग-प्रत्यंग से है।

अनुशासन का उद्गम स्थल पारिवारिक सदस्यों का संपर्क है। यह संबंध बच्चों के क्रमिक विकास के साथ बढ़ता जाता है। बच्चा अनुशासन की प्रारंभिक शिक्षा परिवार से ही प्राप्त करने लगता है। जो परिवार जितना ही अधिक समुन्नत और अनुशासित होता है, उस परिवार के बच्चे भी स्वभावत: अनुशासन की स्वस्थ शिक्षा प्राप्त कर भविष्य में समाज की सच्ची सेवा करने में समर्थ हो पाते हैं। ऐसे अनुशासित व्यक्ति ही कुशल नागरिक बन सकते हैं। 

इसीलिए तो किसी ने ठीक ही कहा है— The child learns the best lesson of citizenship between the kisses of the mother and cares of the father.”

यों तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन की आवश्यकता एक समान ही है, पर छात्र जीवन में अनुशासन की आवश्यकता कुछ विशेष परिमाण में होती है। छात्र देश के भावी कर्णधार होते हैं। आज के छात्र कल के गाँधी, जवाहर और लाल बहादुर बनेंगे। 

“”The morning shows the day”. की कहावत के अनुसार छात्र के प्रारंभिक जीवन से ही उसके भविष्य के परिष्कृत व्यक्तित्व की झलक मिलनी चाहिए।

पर खेद की बात है कि वर्तमान समय में छात्र जीवन में अनुशासन का अभाव होता जा रहा है। अपनी जवाबदेही से अवगत नहीं होने के कारण छात्र अपने को अनुशासनहीन बनाये जा रहे हैं। विद्यार्थयों को चाहिए कि वे अपनी भूल का सुधार करें अन्यथा देश को खतरे की गंभीर स्थिति से गुजरने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

अतः विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की नितान्त आवश्यकता है। जिस प्रकार गन्धहीन पुष्प, शीतलता रहित जल तथा उष्णता रहित अग्नि का कोई अस्तित्व नहीं होता, उसी प्रकार अनुशासनहीन छात्र का जीवन भी अनुपयोगी होता है अतः छात्रों को अनुशासन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

राष्ट्र प्रेम अथवा देशभक्ति या मातृभूमि प्रेम और भक्ति जीवन के संस्कारगत भाव हैं। हृदय-प्रदेश में निवास करने वाले ये भाव ही मनुष्य के शाश्वत गुण हैं। वेदों में राष्ट्र को माता कहकर अभिनन्दित किया गया है। जन्मभूमि माता तुल्य है। यही कारण

है कि जन्मभूमि को मातृभूमि कहकर सम्बोधित किया गया है। कवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में— जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

पुनश्च जिसका न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है। प्रेम की रिमझिम मधुर वर्षा से भींगा मानव-जीवन दिव्यलोक में विचरण करता है। यह जीवन की चिर सनातन आवश्यकता है। प्रेम की डोरी से बँधा रहने के कारण ही मनुष्य को सामाजिक प्राणी की संज्ञा मिली है। मनुष्य परस्पर सौहार्द्र और प्रेम एवं सद्भावना ग्रहण करता है। 

गेहूँ जीवन के तत्त्व  का पोषण करता है, किन्तु प्रेम मनुष्य के प्राणत्व की रक्षा करता है। माँ की गोद से उतर कर मनुष्य सर्वप्रथम जन्मभूमि की गोद और हिँडोले में झूलता है। जन्मभूमि माता के समान लालन-पालन करती है और स्नेह की अमृत दुग्ध-धारा से जीवन शक्ति प्रदान करती है।

माँ-पिता के संरक्षण के पश्चात् मनुष्य परिवार, समाज और राष्ट्र से स्नेहयुक्त संरक्षण प्राप्त करता है। उसके समक्ष माँ प्रत्यक्ष रूप से खड़ी रहती है। किन्तु जन्मभूमि अप्रत्यक्ष रूप में उसके जीवन की प्रत्येक धड़कन में प्रविष्ट रहती है । देश के कण-कण से उसका रागात्मक संबंध स्थापित हो जाता है।

स्वार्थ की क्षुद्र प्रेम-वृत्ति व लाँघकर मनुष्य समाज और राष्ट्र के वृहद सीमाहीन प्रेम में प्रवेश कर जाता है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । स्वर्ग की अटूट कामना भी जन्मभूमि के स्नेह के समक्ष फीकी और त्याज्य है। उपन्यास सम्रा बंकिम चंद्र ने भी माता कहकर वंदना की है-

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् । ‘मातृभूमि’ शब्द के उच्चारण मात्र से ही हृदय में श्रद्धा और भक्ति का भाव उमड़ आता है स्वदेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव होना एक स्वाभाविक तथ्य है। स्वामी रामतीर्थ स्वदेश प्रे का दिव्य-स्वरूप इस प्रकार निर्धारित करते हैं-“ओह, मेरे शरीर की आकृति कैसी है। मेरी अन्तरात्म विश्वात्मा है । अब मैं चलता हूँ। यही देशभक्ति का सर्वोत्तम साक्षात्कार है, व्यावहारिक वेदांत है ।। 

प्रत्येक मनुष्य अपने जन्मभूमि के प्रति कृतज्ञ होता है। उसके रोम-रोम में मातृभूमि के प्रति कृतज्ञत का भाव प्रकट होता है, किंतु मातृभूमि का निरादर करना कृतघ्नता है। ऐसा व्यक्ति राष्ट्र में कभी भी क्षम्य नहीं है। वह देशद्रोही और पापी है। राष्ट्रप्रेम का भाव मनुष्य के हृदय में जब उदित होता है त वह मनुष्य देवता की पंक्ति में खड़ा हो जाता है। 

महाराणा प्रताप, गाँधी, लोकमान्य तिलक, नेहरू भगत सिंह, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि इस कोटि के ही महात्मा हैं। देश की पुकार जन्मभूमि की पुकार है। मातृभूमि की बलिवेदी पर प्राण समर्पण की कामना रखने वाले वीर सेनानी रूप में कविवर माखनलाल चतुर्वेदी पूज्य हैं—

“मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तू फेंक ! मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।”

12.राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति की भावना 

देशहित के लिए अत्यंत ही अनिवार्य है। स्वार्थ भावना का – त्याग कर ही कोई व्यक्ति देश का सच्चा सेवक हो सकता है। | किन्तु मातृभूमि के प्रेम कदापि विश्व प्रेम-भाव का हनन नहीं करता है। यद्यपि कुछ विद्वान देश के प्रेम-भाव को संकुचित भाव-साधना मानते हैं, लेकिन यह दृष्टिदोष है। अपनी माता के प्रति असीम प्रेम-भावना दूसरे की माता के प्रति निरादर का भाव नहीं है। 

उच्चकोटि की देश-प्रेम भावना विश्व बंधुत्व को जन्म देती है। मानवीय प्रेम की दिव्य ज्योति देशप्रेम से परिपूर्ण पवित्र हृदय से ही उदित होती है। डॉ० जानसन देशप्रेम को दूषित मानते हैं। उनकी दृष्टि में देशप्रेम दुरात्मा के लिए अन्तिम शरण है। बर्नार्ड शॉ तो यह मानते हैं कि देशभक्ति भावना के नष्ट होने पर ही विश्व शांति के भाव का उदय हो सकता है। किन्तु ये समस्त धारणाएँ अतार्किक हैं। 

देशभक्ति की भावना विश्वप्रेम के लिए प्रेरित करती है। देशप्रेमी मातृभक्त गाँधी ने ही ‘बसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रायोगिक प्रचार किया है। राष्ट्रप्रेम और मातृभक्ति चारित्रिक और आत्मिक बल प्रदान करती है। 

देशभक्तों के चरित्र में मानवीय भाव जन्म लेता है और वे विश्व रक्षा के निमित्त अपने प्राणों की आहूति देते हैं। और तब कवि प्रसाद के स्वर में- हिमालय के आँगन में उसे दे प्रथम किरणों का उपहार । ऊषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार ।।

13.भारतीय किसान

भारतीय किसान आत्मविश्वास, धैर्य, साहस, कर्मठता और दृढ़ चरित्रता का प्रतीक है। यह जितना कठोर श्रम करता है उतना शायद ही किसी और पेशे के लोग करते हों। फिर भी अभाव और जिल्द-जल्लात की जिन्दगी बसर करने के लिए मजबूर हैं। हल-कुदाल और माथे पर खाची की टोकरी लेकर सुबह होते ही अपने कर्मक्षेत्र की ओर उन्मुख हो जाता है।

न इस किसान के पाँव में पनही है, न सिर पर टोपी, घुटने तक धोती, अंधविश्वासों से घिरा, रूढ़ियों से जकड़ा, मुख-मंडल पर चिन्ता की रेखाएँ स्पष्ट रूप से अपनी दरिद्रता की कहानी कहती नजर आती है।

भारतीय किसान न छद्मवेशी राजनीतिज्ञों की राजनीति जानता है न कृष्ण की गीता। कर्मयोग क्या है ? इसे यह नहीं जानता। फिर भी कर्मयोग से सुपरिचित है। कर्म करना हो इसका प्रधान धर्म है। धर्म की परिभाषा क्या है ? इसे भी नहीं जानता। सच्चाई के साथ अपने कर्मों का इतिहास बुलंद करता है। 

भाग्य की थाती को ही सब कुछ समझता है। खेत जोत कर उसमें बीज डाल देता है। उस बीज को उगाने के लिए कठोर श्रम भी करता है मगर भाग्य भरोसे। ईश्वर पर इतना विश्वास करता है कि उसके सहारे सारे परिणाम की आशा करने लगता है। ईश्वर ने बीज में दाना दिया तो भी ठीक, नहीं दिया तो भी ठीक वह अपनी सनातन व्यवस्था पर मोर्चे सम्भाले रहता है।

जेठ की दुपहरी हो या पूस की रात भारतीय किसान पर कोई असर पड़ने वाला नहीं। धनवान जेठ की गर्मी से बचने के लिए कूलर, पंखे, बर्फ पता नहीं क्या-क्या चीजों का उपयोग करता है, मगर किसानों के पाँवों में पनही भी नसीब नहीं होती।

कैसी विडम्बना है, जो दुनिया का पेट भरता है उसे ही भूख की पीड़ा और दरिद्रता घेरे रहती है। जाड़े से काँपती हुई उसकी हड्डियाँ किसी की सहारा नहीं माँगती, बल्कि उस अवस्था में भी किसी का सहारा बनकर अपने को सौभाग्यशाली मानता है।

भारतीय किसान निरक्षर भले ही है, अशिक्षित नहीं। इसने जीवन के खेत-खलिहान में वृहत् शिक्षा पायी है। अतः इसकी शिक्षा जीवनोपयोगी और व्यावहारिक है। आसमान का रंग और हवा का रुख देखकर यह बतला देगा कि पानी बरसने वाला है या आँधी आने वाला है। प्राणि विज्ञान या वनस्पति विज्ञान का यह क, ख, ग भी नहीं जानता, पर गाय-बैलें और अपनी फसल के दुःख दर्द की भाषा अच्छी तरह समझता है। 

भारतीय किसान नीरस होता है, उसकी जिन्दगी नीरसता के आवरण में अपने को फैला नहीं पाता । इस बात को मैं मानने से साफ इन्कार करता हूँ। सरस प्रकृति के साथ रहने वाले इस किसान की सरसता अगर देखनी हो तो इसके विरहे का अलाप सुनें, ढोलक-झाल लेकर जब यह ‘होली’ और ‘चैती’ गाने बैठता है तो इसकी तन्मयता देखते ही बनता है। 

फाल्गुन की बयार शरीर में लगते ही जब वह मस्त होकर ‘ब्रज में खेलें मोहन होली रे’ कह उठता तब इसके हृदय की पुकार को समझे। हाँ, इतना अवश्य है कि इसकी सरसता बाबुओं की तरह उच्छृंखल और अव्यावहारिक नहीं होता ।

त्रिमुंड लगाकर, गैरिक वस्त्रों में विभूषित बड़े-बड़े तपस्वी जब भारतीय किसान की तपस्या देखते हैं तो उसकी मनःस्थिति काँप उठता है। जिसने जीवन में आराम को हराम समझा है, श्रम को भगवान माना है, कर्म को पूजा ।

इसकी निश्छलता और निर्विकार भावनाओं को सबने आदर दिया, मगर दबे जुबान से। सच्चाई को कह पाने की सामर्थ्य शायद ही किसी में हो। भारतीय किसान हिमालय की गोद से अपने लिए जड़ी-बूटियाँ लाता है, उसी के पवित्र जल को जीवन का अमृत समझता है।

14.आपके प्रिय कवि 

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पर जावें वीर अनेक ।”

इन पंक्तियों के अमर गायक स्वर्गीय राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी हैं जो मुझे अत्यधिक प्रिय हैं। इनकी वाणी राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत है। कविवर चतुर्वेदी अपने देश को प्यार ही नहीं करते, उस पर गर्व भी करते हैं।

इस प्रेम और गर्व की मिली-जुली अनुभूति के कारण उसपर अत्याचार करनेवालों के प्रति उसके मन में आक्रोश की भावना है, और है खुलकर ललकारने का साहस। यह निर्भीकता, क्रूरता का पर्याय नहीं है। वीरता की यह भावना उसे विद्रोह की ओर ले जाती है। इस विद्रोह में आत्म-दान की भावना है। 

कवि बीज के समान स्वयं मिटकर वृक्ष की हरी-भरी शाखाओं के समान जग के संतप्त प्राणियों को सुख देना चाहता है। इस विनाश में चिरंतन विकास के सूत्र हैं। इस प्रकार देश-प्रेम उसे वीर-भाव की ओर ले जाते हैं, वीर-भाव विद्रोह की ओर, विद्रोह आत्म-त्याग की ओर । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि माखनलाल चतुर्वेदी की राष्ट्रीय कविताएँ एक भिन्न प्रकार के प्रगतिशील तत्त्वों से ओत-प्रोत हैं। 

इनकी राष्ट्रीय भावना पर लोकमान्य तिलक और महात्मा गाँधी दोनों के सम्मिलित प्रभाव की छाया पड़ी है। इसी से उसमें एक और आग दूसरी ओर त्याग। इसमें निर्भीकता, आवेश और विद्रोह के तत्त्व हैं, जो आत्म-दान, सेवा और श के भी । कुल मिलाकर इनकी रचनाओं का केन्द्रीय भाव देशानुराग है।

इस लोकप्रिय कवि का जन्म सन् 1888 में मध्यप्रदेश में होशंगाबाद जिले के अन्तर्गत बा नामक स्थान में हुआ था। जाति के ये ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम पं० नंदलाल चतुर्वेदी और का सुन्दरबाई था। पिता गाँव की पाठशाला में अध्यापक थे। पहले ये गाँव के स्कूल में प्रविष्ट हुए मिडिल पास करने के उपरांत वे सन् 1903 में अध्यापक नियुक्त हो गये । 

सन् 1912 में इन्हें अध्ययन-कार्य से त्याग-पत्र दे दिया। सन् 1914 में इनकी पत्नी का देहान्त हो गया, जिससे इन हृदय को गहरा आघात लगा। उस समय ये पच्चीस-छब्बीस वर्ष के थे।

बहु माखनलाल चतुर्वेदी जी पहले क्रांतिकारी दल के सदस्य थे, बाद में महात्मा गाँधी के प्रभाव आए। अपने जीवन में ये लोकमान्य तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी और माधव राव सप्रे से प्रभावित थे । स्वाधीनता संग्राम के सम्बन्ध में इन्हें सन् 1921, 1923 और 1930 में तीन बार के हुआ । 

इनकी बहुत-सी कविताएँ कारागृह में लिखी गई हैं। ‘एक भारतीय आत्मा’ इनका दूसरा नाम है, जिसे इन्होंने अपनी राष्ट्रीय रचनाओं द्वारा सार्थक कर के दिखा दिया है। पं० माखनलाल चतुर्वेदी त्याग और तपस्या की मूर्ति थे। स्वभाव से स्पष्टवादी और स्वाभिमानं

थे। इनके निम्नलिखित काव्य संग्रह हैडिम किरीटिनी (1943), हिम- तरंगिनी (1949), न (1951), युग-चरण (1956), वेणु लो, गूँजे धरा (1960), मरण-ज्वार (1963)। चतुर्वेदी जी जिस युग में लिखना प्रारंभ किये थे, वह युग राष्ट्रीय चेतना का युग था। जिन लोग के सम्पर्क में ये रहे, उनकी नस-नस में राष्ट्र प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। इस परिवेश में प्रभावित हो, इनकी आत्मा में जो स्फुरण हुआ, उसने इन्हें वाणी से नहीं, कर्म से भी राष्ट्रवादी बन दिया । 

इन्होंने जो कहा, व्यवहार में उसे पूरा कर दिखा दिया। अपने देश-प्रेम के लिए ये विदेशी सत्त के कोपभाजन बने। कई बार इन्होंने जेल का कष्टमय जीवन व्यतीत किया। ‘कैदी और कोकिला इनकी अत्यंत प्रसिद्ध रचना है जिसमें जेल का वातावरण एकदम सजीव हो उठा है। रात के अन्धका में जब कोकिल कूक उठती है तो राजनीतिक बंदी का दुख और घनीभूत हो उठता है;

क्योंकि वा दुःख अपने लिए नहीं, देश के लिए है, इसी से उसके अन्तर में विद्रोह की भावना भी उसी मात्रा में तीव्र हो उठती है। कविता का आशावादी अन्त भविष्य के प्रति कवि का आशावादी दृष्टि का परिचायक है। इस रचना का अंश द्रष्टव्य है—

फिर कुहू ! अरे क्या बंद न होगा गाना ? इस अन्धकार में मधुराई दफनाना ? नभ सीख चुका है कमजोरों को खाना क्यों बना रही अपने को उसका दाना ? और सवेरे हो जायेगा कोकिल बोलो तो ! उलट-पुलट जग सारा ? कोकिल बोलो तो ।

चतुर्वेदी जी की रचनाओं में ओज और कोमलता, आवेग और शांति, उक्ति-वैचि साक्षणिकता के एक साथ दर्शन होते हैं। संक्षेप में, वे प्रलय प्रणय के कवि हैं, इसी से मुझे अधिक प्रिय है।

15.आपका प्रिय ग्रंथ अथवा पुस्तक

हिन्दू धर्म के लिए रामचरितमानस सर्वोत्तम ग्रन्थ है। रामचरितमानस न केवल तुलसीदास बारह प्रामाणिक ग्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ है, वरन् समग्र हिन्दी साहित्य का श्रेष्ठ गौरव ग्रन्थ है, भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कहा जाता है। इस ग्रन्थ का साहित्य, दर्शन, आचारशास्त्र, शिक्षा समाज-सुधार, साहित्यिक, मनोरंजन आदि कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। रामचरितमानस की लोकप्रियता तो ऐसी है कि विगत चार सौ वर्षों से यह उत्तर भारत की जनता का कंठहार बना आ रहा है। 

इसकी लोकप्रियता की तुलना में कोई भी दूसरा ग्रन्थ उपस्थित नहीं किया जा सकता। इसकी लोकप्रियता के अनेक कारणों में एक प्रमुख कारण यह भी है कि रामचरितमानस से केवल तत्कालीन अन्यकार-ग्रस्त समाज की मार्गदर्शन मिला बल्कि समाज में प्रत्येक स्तर का व्यक्ति इस ग्रन्थ में अपने लिए कर्त्तव्य एवं करणीय का संदेश एवं निर्देश प्राप्त कर सकता है। 

यही कारण है कि यह ग्रन्थ सामान्य जनता और बुद्धिजीवी वर्ग दोनों घरातलों पर सामान्य रूप से आदृत है। यही एक महाकाव्य है जो सृजन साहित्य और जन साहित्य के मध्य समान प्रतिष्ठा रखता है। इसका सबसे बड़ा कारण इसकी आचार शास्त्रीयता है।

रामचरितमानस की रचना मुगल प्रशासन के काल में हुई थी। उस समय की जनता के सामने कोई ऐसा प्रकाश स्तम्भ नहीं था जिससे पराधीन हिन्दू समाज को पथ-प्रदर्शन मिल पाता। रामचरितमानस ने जनता का नेतृत्व किया। राम कथा पर पहले से वाल्मीकि रामायण, भवभूतिकृत उत्तर रामचरितमानस का अधिक प्रचार एवं प्रसार हुआ। 

सत्यासत्य निर्धारण, करणीय-अकरणीय, निवेदन, औचित्य अनौचित्य इत्यादि की व्यवस्था के कारण ही रामचरितमानस में पांडित्य प्रदर्शन नहीं करती।

पति का पत्नी के प्रति जो सन्देश इसमें है, वह आदर्श और अनुकरणीय है। रामचरितमानस में भ्रातृ-स्नेह का भी आदर्श कम महत्वपूर्ण नहीं है। राम, लक्षण, भरत तथा शत्रुधन इन चारों भाइयों का परस्पर स्नेह महान और उत्तम है। माता का भी आदर्श रामचरितमानस में उपस्थित किया है।

पिता-पुत्र का सम्बन्ध भी रामचरितमानस में आदर्श है। चौदह वर्ष वनवास की बात को लघु बात समझते हैं। रामचरितमानस में गुरु-शिष्य सम्बन्ध का आदर्श भी उत्तम है। स्वामी सेवक सम्बन्धों की मर्यादा का पालन कई स्थलों पर हुआ है। हनुमान का सेवा भाव तो जगत प्रसिद्ध है। रामचरितमानस राम सुग्रीव का मैत्री भाव आदर्श उपस्थित करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि रामचरितमानस में विभिन्न प्रकार के आदर्श सम्बन्ध उपस्थित किए गए हैं।

इस प्रकार रामचरितमानस तुलसीदास का बेजोड़ कृति है। यही एक ऐसा भारतीय ग्रन्थ है। जिसका नाम पंडित से मूर्ख तक सभी जानते हैं। रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम के चरित्र पर पूर्णतया प्रकाश डाला है जो अपने-आप में अनूठा है।

16.आपके प्रिय कहानीकार या लेखक (प्रेमचन्द )

कथा – सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी के उन अग्रपक्तेिय कथाकारों में से हैं जिन्होंने कहानी और उपन्यास के शैशव काल में ही उसमें एक अप्रतिम गाम्भीर्य जन-चेतना और समाज-चेतना भर दी थी, कि आज भी वह उससे आगे बहुत कम बढ़ सका है।

कल्पनाओं से भरे ऐय्यारी और जासूसी-तिलस्मी उपन्यासों को प्रधानता के बीच पहली बार प्रेमचन्द जी ने ही समाज में व्याप्त असहनीय कुंठा, नैराश्य एवं समग्रतः उस जन-हाहाकार को कथात्मक अभिव्यक्ति दी और एक युग को युग की सारी प्रवृत्तियाँ और तमाम मनोवृत्तियों, मान्यताओं के साथ, परिवर्तित कर डाला। 

उन्होंने कथा को नया नामकरण, नया संस्कार और नया घरातल ही नहीं दिया, उसे एक नयी चिन्तनधारा, एक नयी चेतना -भूमि और नयी सामाजिकता भी दी। प्रेमचन्द जी ने कथा, उपन्यास, नाटक, समीक्षा, निबंध आदि सब लिखे, लेकिन कविता की ओर वे कभी उन्मुख नहीं हुए। ऐसा प्रतीत होता है कि कविता के ऊपर उनका भरोसा नहीं रहा । 

कारण कि वे जो कहना चाहते थे वह कविता में कह नहीं पाते थे। इस तरह की विवशता हो सकती है, इसलिए अपनी मानसिकता को जोड़ नहीं पाते थे। जैसा कि उन्होंने स्वीकार किया है—“हमारे लिए कविता दृढ़ हो जाय, जिससे संसार की नैराश्य छा जाय। वे प्रेम-कहानी हमारे मासिक पत्रों के

पृष्ठ में भरे रहते हैं, हमारे लिए अर्थहीन है, अगर वे हममें हरकत और गरमी पैदा नहीं करती। आ हमने दो नवयुवक की प्रेम-कहानी कह डाली, पर उससे हमारे सौन्दर्य-प्रेम पर कोई असर नहीं प और पड़ा भी तो केवल इतना ही कि हम उनकी विरह व्यथा पर न रोये, तो इससे हममें कौन- मानसिकता व रुचि संबंधी गति पैदा हुई। 

इन बातों से किसी जमाने में हमें भावावेश हो जाता रहा पर आज के लिए वे बेकार हैं। इस भावोत्तेजक कला का अब जमाना नहीं रहा। अब तो उस क की आवश्यकता है जिसमें कर्म का संदेश हो। “

प्रेमचन्द का ऐसा विश्वास था कि साहित्यकार को एक मानदण्ड के अन्तर्गत अपने दायित्व पूरा करना चाहिए, जिससे सामाजिक सच को आयाम मिले। इसलिए वे कहते हैं कि-“साहित्य शराब-कबाब और राग-रंग का मुखापेक्षी बना रहना उसे पसन्द नहीं। वह उसे उद्योग और कर्म संदेश वाहक बनाने का दावेदार है। उसे भाषा से बहस नहीं है।

आदर्श व्यापक होने से भाषा अपने आप सरल हो जाता है। भाव-सौन्दर्य, बनावट शृंगार बेपरवाही ही दिखा सकता है। जो साहित्यकार अमीरों का मुँह जोहने वाला है, वह रईसी रचना-शैल स्वीकार करता है, जो जनसाधारण का है, वह जनसाधारण की भाषा में लिखता है। 

हमारा उद्देश्य दे में ऐसा वायुमंडल पैदा कर देना है जिसमें अभीष्ट प्रकार का साहित्य उत्पन्न हो सके और पन सके। हम चाहते हैं कि साहित्य केन्द्रों में हमारी परिषदें स्थापित हों और वहाँ साहित्य की रचनात्म प्रवृत्तियों पर नियमपूर्वक चर्चा हो, नियम पढ़े जाएँ, बहस हो, आलोचना- प्रत्यालोचना हो, तभी व वायुमंडल तैयार होगा।”

वास्तव में, प्रेमचन्द जी ने अपने इन आदशों का अपनी रचनाओं में भरपूर निर्वाह किया है। लकी का फकीर बनकर नहीं, बल्कि सच्चाई के साथ उनके उपन्यासों, कहानियों, नाटकों आदि में ज समाज की पीड़ा है वह यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई है। इस कारण सामाजिक संदर्भों के चित्र में सफल रहे । 

प्रेमचन्द ने कथा निर्माण की प्रक्रिया में अपने-आप को आहुत कर दिया। उन विशेषकर कहानियों में वह आत्मा छिपी हुई है जो समग्र भारतीय का प्रतिनिधित्व करती है। भारती समाज के ग्रामीण और नगर के वर्गों को आधार बनाकर उन्होंने उसकी विविध क्षेत्रीय समस्याओं च समाधान अपनी कृतियों में किया है। जिन आदशों को उन्होंने स्वीकृति दी है, उन्हें व्यवहृत करने भी वे सक्षम थे। लिहाजा इस कारण हिन्दी कथा-साहित्य के प्रथम समस्यामूलक कथाकार थे।

मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 ई० में काशी के निकटवर्ती लमही ग्राम में हुआ था उनका बचपन का नाम धनपतराय था। उर्दू में नवाबराय के नाम से वे लिखते थे। उनके पित का नाम अजायब राय था और पत्नी का नाम शिवरानी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। बा में क्वींस कॉलेज से इन्होंने मैट्रिक पास किया। बचपन में ही माँ और पिता के साये से वंचित गये ।

 इस कारण रोजी-रोटी की चिंता ने उन्हें विवश कर दिया। तदुपरान्त ये मास्टर की नौकरी चले गये। उर्दू पढ़ने-लिखने के कारण उर्दू साहित्य में उनकी काफी दिलचस्पी थी। इसी क्रम म मौलाना शर, पं० रतननाथ सदर, मिर्जा रुसवा एवं मौलवी मुहम्मद अली आदि का उनपर अत्यधिक प्रभाव पड़ा।

प्रेमचन्द ने हिन्दी कथा-साहित्य को तिलस्मी और ऐय्यारी के घेरे से बाहर निकाल कर स्वच् सामाजिक परिवेश में पहुँचा दिया। प्रेमचन्द के कारण ही जो पात्र उपेक्षित, दीन-हीन, दलित-पीड़ित थे, पहली बार हिन्दी-कथा साहित्य में उपस्थित हुए। उनकी कहानियों में पहली बार गाँव और किसान अपने सच्चे तस्वीर के साथ उपस्थित हुआ। 

उन्होंने सामाजिक विवशताओं की ओर ध्यान दिया तो सामाजिक कुरीतियों पर भी चोट की। उन्होंने अपने साहित्य में शोषण और गरीबों का भीषण और नग्न रूप रखा। शोषण का विरोध करना और सामाजिक सुधार उनके साहित्य का एकमात्र उद्देश्य था। यही कारण है कि महाजनी सभ्यता पर, सूद-व्यापार पर उन्होंने कड़ा प्रहार किया है। किसी ने उनसे पूछा था कि आपके साहित्य का उद्देश्य क्या है ? तो उन्होंने उत्तर दिया- ‘गरीबी की दुश्मनी’।

प्रेमचन्द पथार्थ चित्रण मात्र को पर्याप्त नहीं मानते थे। वह समाज को हीन दशा से निकालकर श्री-समृद्ध दशा की ओर उन्मुख करना चाहते थे। वस्तुतः वह मानवता को सर्वोपरि स्थान देते थे।

यह ध्वंस के नहीं, निर्माण के साहित्यकार थे । सम्भवतः इसी कारण वह आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के संस्थापक थे। वह साहित्य को मात्र जीवन का मनोरंजन नहीं अपितु आलोचना भी मानते थे । इसी कारण वह ‘कला, कला के लिए’ सिद्धान्त के विरोधी थे और यथार्थवाद के साथ-साथ आदर्शवादी भी थे। उनकी रचनाओं में यथार्थवाद और आदर्शवाद का समन्वय साफ दिखायी पड़ता है। प्रेमचन्द ने अपने कथा-साहित्य में जीवन के विभिन्न दृश्यों का चित्रण किया है, साथ ही

समाधान भी ढूंढा है । दहेज-प्रथा, स्त्रियों में आभूषण प्रेम, विधवा-विवाह, वेश्यावृत्ति, साम्प्रदायिकता, शोषण, जमींदारों और किसानों का संघर्ष, मालिक-मजदूर संघर्ष, वर्ग संघर्ष, दीनता-भुखमरी, विवशता, पारिवारिक कलह आदि सामाजिक कुप्रवृत्तियों के चित्रण के साथ प्रेमचन्द ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन का भी चित्रण किया है तथा समस्याओं के प्रति समाधान ढूँढने में भी अग्रसर हुए हैं। 

प्रारंभ में प्रेमचन्द गाँधीवादी थे, किन्तु बाद में मार्क्सवादी हो गये। शोषण के खिलाफ वर्ग संघर्ष का स्थान अपने साहित्य में प्रमुखता के साथ किया। ‘ईदगाह’ जैसी कहानी में जहाँ गरीबों की मार्मिकता है, वहाँ कफन में नग्न यथार्थ का आक्रोश वर्ग संघर्ष को आमंत्रित करता हुआ प्रतीत होता है ! उनके अन्तिम उपन्यास ‘गोदान’ में वर्ग संघर्ष पूर्णरूप से उभर कर आया है।

प्रेमचन्द की भाषा और शैली की विशेषता है कि उनकी कहानियों को पढ़ते समय ऐसा अनुभव होता है कि यह घटना देखी हुई है या बात भोगी हुई है। उनकी भाषा भाव को वहन करने में पूर्णतः समर्थ है। सरल सहज भाषा में उन्होंने यथार्थ को उद्घाटित कर दिया है, यह उनकी समर्थ एवं सक्षम भाषा का परिचायक है। उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं के कारण इनकी भाषा में लालित्य आ गया है। 

इस पर इनकी निजता की छाप है। मुहावरेदार भाषा लिखने में प्रेमचन्द माहिर थे। इसलिए वे अपनी शैली के निर्माता स्वयं हैं। इनकी कहानी कहने का ढंग बिल्कुल अपना है जनता की व्यथा-कथा जनता की भाषा में ही है। भाव और भाषा के इसी यथार्थमय समन्वय के कारण प्रेमचन्द का साहित्य जीवंत 5 है। 

आज भी प्रेमचन्द जबकि हिन्दी कथा-साहित्य की यात्रा बड़ी लम्बी हो गयी है, दूर से उच्च शिखर पर विराजमान दिखाई पड़ते हैं। ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘काकी’ आदि इनकी कहानियाँ तथा ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘सेवासदन’, ‘गोदान’ आदि इनके उपन्यास हिन्दी कथा-साहित्य की अमर निधि हैं और प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य के अमर कथाकार हैं।

17.वसंत ऋतु

“सखि, वसंत आया। किसलय-वसना नव-वय लतिका भरा हर्ष वन के मन नवोत्कर्ष छाया मिली मधुर प्रिय उरू- तर पतिका मधुप-वृन्द बंदी पिक-स्वर नभ-सरसाया।”

ऋतुओं का प्रजापति वसंत है जिसे ऋतुराज भी कहा जाता है। जब इसका आगमन होता है तो जन-जन का हृदय बाग-बाग उठता है, मानो बहुत दिनों से जिसका इन्तजार था वह अचानक हाथ लग गया हो । 

एक हिन्दी-साहित्य के मर्मज्ञ आलोचक का कहना है कि ‘वसंत आता नहीं लाया जाता है’ अर्थात् हृदय तरंगिनी की उन्मुक्ता जब उसके अधरों पर नाचने लगती है तभी उस व्यक्ति के लिए वास्तव में वसंत आता है अथवा नहीं।

ऐसे तो वसंत ऋतु का आगमन हमलोग शीत ऋतु से मान लेते हैं। माघ के शुक्लपक्ष की पंचमी को ही वसंत ऋतु मान लेते हैं, पर वास्तविकता यह है कि चैत्र और वैशाख हो वसंत ऋतु के महीने हैं।

“वसंत के चपल चरण, पीकी पुकारती रही धरा गगन, मगर कहीं रुके नहीं वसंत के चपल चरण ।

यति के आप ही वसुन्धरा लता-कुंजों में सजकर उसकी आरती उतारती हुई अपने को समझती है। वसंत अपना परिचय देते हुए कहता है-

“मैं वसंत, मैं मदन सखा सुकुमार त्रिभुवन पर मेरा अखण्ड अधिकार मैं मरु-उर में उद्भिद का अवतार मैं धरती का यौवन, मैं श्रृंगार ऋतुएँ करती है मेरा मनुहार ।”

अर्थात् तीनों लोकों में मेरा अखण्ड अधिकार है। मैं बालू जैसी निर्जीवं एवं कठोर वस्तु में.. सजीव पादपों को उगा सकता है, अर्थात् जिसका हृदय प्रेम-शून्य है उसमें भी सरसता ला सकता है। मुझे ब्रह्म का वरदान प्राप्त है कि मैं नित्य दिन नई सृष्टि की रचना करता हूँ। मैं धरती का यौवन रस हूँ, श्रृंगार हूँ। इसलिए ऋतुराज हूँ और ऋतुएँ मेरा मनुहार करती हैं।

वसंत प्रकृति में जो वायु है, उसमें भी प्रच्छन्न रूप से विद्यमान रहता है। वायु के मंद-मंद झॉ से सबको उल्लासित करता है। सबको अधीर बनाये रखता है। यही नहीं, पुष्प की सुगन्ध से, वार के माध्यम से सब में मादकता भरता है। वसंत अपनी चंचलता से सबको चंचल बनाये रहता है। कस्तूरी और खस भी वसंत के प्रभाव से ही चारों तरफ सौरभ बिखेरते हैं।

“वसंत नर कोकिल है, जिसके पंचम तान सुनने के लिए लोगों के कान खड़े रहते हैं। उसक आवाज में मधुरस है। इसे जो सुन लेता है, वह मस्त हो जाता है। वसंत की आवाज में ऐसी जादू कि इसे सुनते ही प्रेमी-प्रेमिका मिलन के लिए आतुर हो उठते हैं। इसकी कुहू कुहू की आवाज सुनते ही बिरही जन के मिलन की आशा बंध जाती है। वसंत भौर के रूप में गुंजन करता है और पुष्पों से सम्बन्ध जोड़ता है। वह अपने गुंजार से

प्राणियों के मन में मादकता भरता है। इसीलिए वसंत को हो संगीत प्रिय जन-गन्धर्व से अधिक मीठी आवाज सुनना पसन्द करते हैं।

वसंत झिल्लीरव के रूप में भी अविरत झंकार करता है, उसकी झंकार से उदासी समाप्त हो जाती है और गहराई विस्तार पाती है। धीर, उदात्त सभी नायक समान भाव से इसके स्वर को सुनकर चिन्तामुक्त होते हैं।

वसंत ऋतु में पेड़-पौधे हरे हो जाते हैं, पुष्पों में भाँति-भाँति के रंग एवं सुगन्ध आ जाती है। चंचल वसन्ती हवा बहने लगती है। कोयल की मधुर कोकली तथा भ्रमरों का मादक गुंजार समूची प्रकृति को अनुगुजित किये रहता है। संध्या समय झींगुरों की झंकार से भी वातावरण की उदासी समाप्त हो जाती है। 

इस प्रकार वसंत के आते ही पूरी प्रकृति में सरसता एवं शोभा तथा चंचलता और मादकता व्याप्त हो जाती है। वस्तुतः यह अल्हड़पन और मस्ती को ऋतु है। इस ऋतु में युवकों में मस्ती और अल्हड़पन छा जाती है। वसंत ऋतु का प्रभाव ही ऐसा है कि वह सब में श्रृंगार रस का संचार कर देता है। |

सृष्टि में, सभी मनुष्य समुदाय में, कामदेव अनेक रूप में विद्यमान हैं। वसंत कामदेव का सहचर है, चिर-सखा है। मनुष्य मन में काम भावना का सृजन करने तथा सृष्टि को चलाने में वसंत कामदेव की सहायता करता है— कोमल मित्र वसंत में ही साहचर्य से कामदेव मनुष्य-मन को रसाभिभूत कर मनुष्य के प्रवाह अथवा सृष्टि में सातत्य को जीवित रखता है।

जन-जीवन को आनन्दित, उल्लसित एवं आह्लादित करना और श्रृंगार रस का उद्रेक एवं संचार करना ही वसंत का कार्य है, जो कामदेव के काम का ही अंग है। वसंत कालीन प्रकृति के सारे उपादान कामदेव के कार्य में सहायक होते हैं। कम्प्यूटर का आधुनिक जीवन में महत्त्व

कम्प्यूटर आधुनिक विज्ञान का अद्भूत करिश्मा है, जिसने सारे विश्व को एक बार तो अपने आकर्षण में जकड़ लिया है। कोई वैज्ञानिक प्रतिष्ठान हो या औद्योगिक प्रतिष्ठान, बैंक हो या या बीमा निगम, रेलवे स्टेशन हो या बस डिपो, सार्वजनिक स्थल हो या सेना का मुख्यालय – सभी जगह कम्प्यूटर का बोल-बाला है। 

यही आज के बुद्धिजीवियों के चिंतन का विषय बन रहा है और यही स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों की रुचि का केंद्र लगता है कि भारत तेजी से इसके माध्यम से इक्कीसवीं शताब्दी की ओर अग्रसर हो रहा है। हमारे नता भी यह मानने लगे हैं कि बिना कम्प्यूटर के देश सर्वोमुखी विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता। इसलिए रेडियो, टी.वी. इसकी विकसित अन्वेषण का उच्च स्वर में गुणगान करने लगे हैं। अखवारें और पत्र-पत्रिकाएँ इसी के यश के गीत गाने लगे हैं।

अब शिक्षा, प्रशासनिक आदि सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर प्रणाली की आवश्यकता अविलंब प्राप्त करने की आवश्यकता अनुभव होने लगी है। मनुष्य की व्यस्तता विज्ञान की प्रगति के कारण चारों और ज्ञान का जो विस्फोट हो रहा है तथा विश्व के तीन शक्तिशाली देश जिस तेजी से सृष्टि को अपनी मुट्ठी में बंद करने के लिए उत्सुक हैं, उस दृष्टि से प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने, समृद्ध होने और अपने देश की अखंडता तथा प्रभुसत्ता की रक्षा के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग आवश्यक हीं नहीं अनिवार्य बन गया है।

मानव का स्वभाव है कि वह हर कार्य को सरलतापूर्वक शीघ्र से शीघ्र कर लेना चाहता है। वह अपनी बुद्धि के प्रयोग से नित नये ढंग खोजता है जिससे जटिल कार्य सरलता से संभव हो सकेंगे। प्राचीन काल से ही गणित की जटिल समस्याओं को सरल ढंग से करने का यत्न किया जाता रहा है। 

मानव ने इसी स्वभाव का परिणाम ही कम्प्यूटर की खोज है जिसने मानसिक गणनाओं की तीव्रता को कहीं पीछे छोड़ दिया है। प्राचीनकाल से ही मानव अंकगणित का प्रयोग करता आ रहा है। अंकों के इस प्रयोग को सरल, सुलभ तथा आसान बनाने के लिए अनेक पूरक विधियों का विकास हुआ और ईसा के लगभग चार हजार वर्ष पूर्व एक विधि “गणक पटल” का निर्माण हुआ। 

यह गणक पटल आयाताकार होता था जिसमें कई तार समांतर लगे होते हैं और तारों के बीच गोल दाने होते हैं। ये गोलदाने तार के इस सिरे से उस सिरे तक की सरलता से खिसकाये जा सकते थे। आज की गणक, बच्चों को गिनती और पहाड़ याद करने के काम आता है। व्यवसाय का विस्तार और प्रगति जैसे-जैसे होती गई वैसे ही अंकगणित को आधुनिकतम बनाने की दिशा में भी वैज्ञानिकों का मस्तिष्क काम कर रहा है। सामाजिक जीवन और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मणित की गिनतियाँ जटिल और विस्तृत होती गई। 

युद्ध के समय बम वर्षक विमान, पनडुब्बी पर लगी अधिक रेंज वाली बंदूकों तथा टैंक किस तरीके से शत्रु के निश्चित ठिकाने पर हमला करके भी शत्रु की मार से सुरक्षित रहे, ऐसे प्रश्न सामने थे। भयंकर शस्त्रों की मारक गति इतनी तीव्र तथा नियंत्रित कैसे की जाए कि शत्रु के ठिकानों को अचूक रूप से नष्ट किया जा सके। 

अतः इस गति की गणना इतनी विस्तृत तथा जटिल हो गई कि मानव मस्तिष्क सप्ताहों तक गणना करके भी गति की गणना को सही नहीं कर सके, साथ ही गणना सही है, उसमें कहीं रत्ती भर भी भूल नहीं हुई उसकी गारंटी कौन ले दुनिया को एक ऐसी मशीन की आवश्यकता पड़ी जो अति तीव्र गति से सही गणना करके आवश्यकता को पूरा कर सके तथा मानव का लंबा, कठिन श्रम बच जाए।

गणना की त्रुटि होने से बच जाए। उसकी विश्वासपूर्वक सहीं की गारंटी ली दी जा सके। बस अनेक मस्तिष्कों का एक रूपात्मक तथा समन्वयातम्क योग और गुणात्मक घनत्व है जो तीव्रतम गति से न्यूनतम समय में सही गणना कर सके या यो कहिए की त्रुटिहीन गणना कर सके। इस कम्प्यूटर मशीन के पाँच प्रमुख भाग होते हैं—

मैमोरी या स्मरण यंत्र जिसमें सभी प्रकार की सूचनाएँ भरी जाती हैं। इन्हीं के आधार पर कम्प्यूटर गणना करता है। कंट्रोल या नियंत्रण कक्ष- इस कक्ष के परिणाम से यह पता चलता है कि कम्प्यूटर अपेक्षित गणना को सही कर रहा है या कहीं त्रुटिपूर्ण गणना हो गई। अंकगणित का अंग- इस हिस्से द्वारा गणना संबंधी प्रक्रिया संपन्न होती है। 

इनपुट यंत्र या आंतरिक यंत्र भाग इस भाग में ही सब प्रकार की जानकारियों या उससे सम्बन्धित निर्देश संकलित रहते हैं। आऊटपुट यंत्र बाहूय यंत्र – कम्प्यूटर प्रणाली में इन चारों अंगों की प्रक्रिया के द्वारा जो सूचनाएँ संकलित हुई उनका विश्लेषण करना और संभावित परिणाम को बताना जिसको कि छाप कर घोषित किया जाता है। 

सूचनाएँ एकत्र करने के लिए कम्प्यूटर में अलग भाषा और संकेत भरे जाते हैं, हिंदी या अंग्रेजी अथवा अन्य किसी भी भाषा की वर्णमाला या अक्षर नहीं होते। अतः सभी सूचनाओं पहले कम्प्यूटर भाषा में परिवर्तित किया जाता है जो तकनीक दृष्टि से ‘ऑफ’, ‘ऑन’ शून्य त एक है जिसको द्विचर संख्या कहते हैं। 

इन ‘बिट्स’ के द्वारा ही भाषा को अर्कोों में परिवर्तित कर हैं। कम्प्यूटर प्रणाली में 6 बिट्स को 64 विधियों में प्रयुक्त कर सकते हैं। मान लीजिए कि कम्प्यूटर में वर्णमाला या अंकों के लिए 6 बिट्स का प्रयोग करना है तो संख्या को 3 को कंप्यूट शैली में 000011 के द्वारा प्रकट करेंगे। उसी प्रकार संख्या 5 को 000101 से प्रकट करेंगे कम्प्यूटर के इनपुट उपकरण में जिसे की बोर्ड या कुंजीपटल कहते हैं, पर अंग्रेजी के 26 वर्ण 10 अंकों, आवश्यक विराम चिन्हों कों गणित संबंधी कुछ संकेतों से प्रकट करते हैं। 

यह जानका बिट्स में बदल जाती है। अंत में नियंत्रण उपकरण की सहायता से विश्लेषण तैयार होता है और अंतिम परिणाम कम्प्यूटर टर्मिनल पर छपकर बाहर आ जाता है। कम्प्यूटर जटिल मस्तिष्कों जटिल यांत्रिक प्रक्रिया कहा जाता है।

कम्प्यूटर आज के युग में अनिवार्य बन चुका है। कोई भी प्रतिष्ठान इसके अभाव में अपूरा-सा प्रतीत होता है क्योंकि इसके न होने से कार्य में तेजी नहीं आ पाती।

इसका प्रयोग अ हर बड़े व्यवसाय, तकनीकी संस्थान, बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों की गणितीय गणना, समूह रूप में बड़े-बड़े उत्पादों का लेखा-जोखा, भावी उत्पादन का अनुमान, बड़ी-बड़ी मशीनों की परीक्षा और भविष्य गणना, गणना परीक्षाफलों की विस्तृत विशाल गणना, वर्गीकरण, जोड़, घटाव, गुणा, भाग, अंतरिक्ष यात्रा, मौसम संबंधी जानकारी, भविष्यवाणियाँ, व्यवसाय, चिकित्सा और अखबारी दुनिया में आज कम्प्यूटर प्रणाली ही सर्वाधिक उपयोगी और त्रुटिहीन जानकारी देता है।

कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि मानव मस्तिष्क और कम्प्यूटर में क्या अंतर है तथा दोनों में कौन श्रेष्ठ है ? निश्चित रूप से मानव मस्तिष्क ही श्रेष्ट है क्योंकि प्यूटर प्रणाली का निर्माण 7 भी तो मानव मस्तिष्क ने ही किया है। मानव मस्तिष्क में खोज और आविष्कार की जो चेतन है, अच्छे बुरे की परख है वह कम्प्यूटर में नहीं है, वहाँ तो आँकड़ों की गतियुक्त गणना है और वे आँकड़े किसी परिस्थिति के प्रभाव के विश्लेषण की उपलब्धि हैं। 

जिनकी गणना त्रुटिपूर्ण भी हो सकती है, भविष्यफल गलत भी हो सकता है वहाँ कठिन नियंत्रण, एक वैज्ञानिक प्रक्रिया और जटिल गणना है, इस प्रक्रिया के बीच में किसी कारण तनिक भी त्रुटि हो गई हो तो सारी गणना का प्रतिफल ही उलट जाएगा। दूसरे मानव को कलात्मक कृति, संगीत, पेटिंग रिझा सकती है, बोर कर सकती है, उनकी नापसंद हो सकती है। मनुष्य का ज्ञान, रुचि, अनुभव चिंतन, विचार क्रिया को प्रभावित कर सकते हैं किंतु कम्प्यूटर का मस्तिष्क इन सबसे परे यांत्रिक गति के नियंत्रण में आबद्ध हैं वह तो भावना से रहित होता है। 

उसमें मानव के समान निर्णय लेने की शक्ति नहीं है। कम्प्यूटर आदमी की तरह स्वयं कुछ भी नहीं सोच सकता। किंतु इस पर भी मानव मस्तिष्क में अनेक त्रुटियाँ, कमियाँ हैं। वह अब रुकता है, एक ही परिस्थति में उसके निष्कर्ष भिन्न-भिन्न हो सकते है गणना में दोष रह सकता है। निरंतर बिना थके एक ही गति से कार्य नहीं कर सकता। आदि । 

अतः कम्प्यूटर मानव मस्तिष्क की इन त्रुटियों को दूर करता है। गणना लंबी और जटिल हो, शुद्ध और जटिल गणना शीघ्र मानव मस्तिष्क नहीं कर सकता तब कम्प्यूटर ही काम करता है। कम्प्यूटर की स्मरण शक्ति असीमित है। मनुष्य बहुत प्रयत्न के बाद भी जब तथ्यों, नामों, स्थानों और सूचनाओं को स्मरण नहीं कर पाता तब कम्प्यूटर ये सारे काम आनन-फानन में कर डालता है। नाम, तिथि, स्थल से सरलता से कम्प्यूटर प्रणाली से ज्ञात और स्मरण हो सकते हैं।

आंकिक कार्यों को करने की गति, इलेक्ट्रॉनिक्स की प्रगति में कम्प्यूटर प्रणाली का सबसे अधिक योगदान है। आधुनिक कम्प्यूटर एक सेकंड में दस लाख तक की गणना सरलता से कर म देता है। बिना थके, बिना ध्यान बटे शुद्ध गणना ही कम्प्यूटर की विशेषता है। आज परिवहन, इंडस्ट्रीज, चिकित्सा क्षेत्र, मौसम की आगामी सूचनाओं के सही संग्रह में कम्प्यूटर बेजोड़ है।

कम्प्यूटर के कारण प्रत्येक क्षेत्र में विकास की गति दस गुनी से लेकर हजार गुनी तक बढ़ सकेगी। वास्तव में कम्प्यूटर मानव को प्राप्त हुई वह अचूक शक्ति है जिसके सदुपयोग से वह असंभव से प्रतीत होने वाले कार्यों को अद्भुत तीव्रता से कर सकता है।

18.इंटरनेट का महत्व

देश और काल अब मानव के हाथों कटपुतली बनकर रह गए हैं। कालक्रम में काल का व्यवधान एवं दूरी का परिणाम अपनी अहमियत खोते चले गए। फिर आया युग सूचना-क्रांति का । 

ज्ञान का द्वार सबके लिए खुल गया, सूचनाओं पर मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार जाता रहा। एक नए अंतरिक्ष की परिकल्पना उभरी, जिसे ‘साइबरस्पेस’ कहा गया। ‘साइबरस्पेस’ एक परिकल्पित आकाश है, जिसमें होते हैं कम्प्यूटर और केवल कम्प्यूटर उनमें भरी हुई सूचनाएँ और उन सूचनाओं का परिवहन तंत्र। ‘साइबरस्पेस’ की इसमें यात्रा करने वाले यात्रीगण, प्रायः सूचना राजपथ (इनफॉर्मेशन हाइये) के नाम से पुकारते हैं। 

साइबरस्पेस के अनेकानेक घटक हैं, जैसे- इन्टरनेट, अर्नेट, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, आईनेट आदि । पर इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है- इन्टरनेट । इन्टरनेट सर्वाधिक गति से विकसित होने वाला अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का कम्प्यूटर आधारित नेटवर्क है । लगभग 4 करोड़ कम्प्यूटर इन्टरनेट से जुड़े हुए हैं और प्रतिवर्ष इन्टरनेट के सूचना नए सदस्यों की संख्या 1 करोड़ 60 लाख की दर से बढ़ती जा रही है ।

इन्टरनेट का संचालन व प्रबंधन 1157 की इन्टरनेट की संस्था करती है । वस्तुतः इसका उद्भव अर्पानेट की संकल्पना से 1969 और अमेरिकी रक्षामंत्रालय ने इसकी शुरूआत उच्च शोष परियोजना एजेन्सी के नेटवर्क के रूप में शोध परियोजना से सम्बद्ध वैज्ञानिकों के बीच प्रत्यक्ष संचार की सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की थी। किन्तु आज इन्टरनेट के माध्यम से पूरा विश्व सिमटकर एक गाँव का रूप लेता जा रहा है।

इन्टरनेट और भारत-मुम्बई स्थित 14 अगस्त, 1945 विदेश संचार निगम लिमिटेड के ‘गेटवे पैकेट स्विचिंग सिस्टम’ के जरिए ‘निकनेट’ की ‘इन्टरनेट’ से सम्बद्ध कर दिया गया है। जिसके कारण आज हम बड़ी द्रुत गति से संसार के किसी कोने से सूचना आदान-प्रदान कर सकते हैं तथा बटन दबाते ही कम्प्यूटर के पर्दे पर अपनी मनचाही सूचना या आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं। प्रथम चरण में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई का जोड़ा गया तम्बा दूसरे चरण में पूणे एवं बंगलौर को इस तंत्र से जोड़ने की योजना बनाया गया है। धीरे-धीरे अन्य नगर संगठन इससे जुड़ते जा रहे हैं।

उपयोग —इन्टरनेट पर दुनियाँ के किसी भी कोने में रहनेवाले अपने मित्र से बातचीत की जा सकती है। इस पर हम इलेक्ट्रॉनिक अखबार पढ़ सकते हैं, विभिन्न दुकानों में बिकने वाली वस्तुओं को देख सकते हैं, ऑर्डर दे सकते हैं, मंडियों, शेयर बाजारों पर नजर रख सकते हैं, अपने उत्पादों का विक्रय कर सकते हैं, अपने उत्पादन और सेवाओं का विज्ञापन कर सकते हैं, पुस्तकालयों से जरूरी सूचना पा सकते हैं और अपना मत दुनियाँ के सामने रख सकते हैं । 

इन्टरनेट का सर्वाधिक कल्याणकारी उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में है। टी.वी. कैमरे और कम्प्यूटर को जोड़कर ऐसी व्यवस्था बनाई गई है कि दिल्ली के अस्पताल में हो रहा ऑपरेशन वाशिंगटन में बैठा सर्जन देख सके और वहीं से निर्देश भी दे सके। इस प्रकार एक चिकित्सक अपने मरीज के इलाज के लिए विश्वभर के चिकित्सकों के अनुभव का लाभ उठा सकता है।

इन्टरनेट का दुरूपयोग —चूँकि इन्टरनेट विभिन्न देशों के करोड़ों कम्प्यूटरों का एक भुक्त संयोजन है और इसका कोई केन्द्रीभूत प्रशासन नहीं है, अतः इसके दुरूपयोग की संभावना को भी नहीं नकारा जा सकता।

(1) यह व्यक्ति को कमरे में कैद कर देता है, जिससे वे दुनियाँ से कटते चले जाते हैं। इससे मान्यको आत्मीयता समाप्त होने लगती है।

(2) इन्टरनेट के सूचना महामार्ग से गुजरने वाली जानकारी की चोरी की जा सकती है और कम्प्यूटर वायरस के जरिए इसे ध्वस्त किया जा सकता है । 

(3) इन्टरनेट पर पोनोग्राफी और अश्लील सामग्री का प्रदर्शन घड़ल्ले से हो रहा है जो कि सांस्कृतिक विनाश का कारण बन सकता है। वैसे तो अमरीका में इन्टरनेट पर से पोर्नोग्राफी (अश्लील साहित्य) दूर करने के लिए उपाय किए जा रहे हैं, वहीं भारत में अश्लील कार्यक्रमों रोकने वाले सॉफ्टवेयर ही उपलब्ध नहीं है।

(4) अपराधी इन्टरनेट की ई-मेल सुविधा का उपयोग करके अपराधों को बढ़ा रहे हैं। इस आपराधिक गतिविधियों को रोकना बहुत कठिन है। क्योंकि अपराधी अपने सन्देश बहुत छोटे- टुकड़ों में भेजते हैं जिससे सन्देश की पूरी जानकारी के बिना उसका मतलब निकालना असंभव । 

(5) इन्टरनेट से जुड़े कम्प्यूटरों के सामने एक बड़ी समस्या इलेक्ट्रॉनिक व गुप्तर की समस्या है। गुप्त सूचनाओं को इन्टरनेट पर प्रसारित करने वालों के खिलाफ कोई कदम उठा आसान नहीं है। इन्टरनेट के असंगठित नेटवर्क पर ट्रेडमार्क या कॉपीराइट्स का कानून लागू करना संभ नहीं है जिसके चलते प्रकाशकों को सर्वाधिक आर्थिक क्षति होती है ।

सूचनाओं का भंडार इन्टरनेट एक कम्प्यूटर क्रांति है जिसने आज के युग में कम्प्यूटर, मान और संचार को एक सूत्र में बाँध दिया है। नवीनतम ज्ञान और सूचनाओं का द्वार इन्टरनेट जरिये सभी के लिए खुल गया है। अपनी असाधारण बनावट और महत्व के कारण य अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार व्यवस्था के लिए प्रतिस्पर्धी हो गया है। अन्ततः कहा जा सकता है | इन्टरनेट के दुरूपयोग होने से इन्टरनेट की महत्ता कम नहीं हो जाती, क्योंकि समुद्र की महत उससे होनेवाले लाभ से आँकी जाती है न कि उस पर तैरते हुए व्यर्थ पदार्थों से।

19.पुस्तकालय

पुस्तकालय का सन्धि-विच्छेद है—पुस्तक + आलय तथा सरलार्थ है-पुस्तक का घर। किन्तु, य इसका अतिसाधारण अर्थ है। इससे इसकी विशिष्टता और महत्ता का थोड़ा भी संकेत नहीं मिलत पुस्तकालय वह मन्दिर है, जिसमें विद्या की देवी सरस्वती का अधिवास है, वह तीर्थराज है, जहाँ संसा के सर्वोत्तम ज्ञान और विचारों का सम्मिलन होता है, ऐसा पुण्यसरोवर है, जिसमें हर क्षण ज्ञान के सुरभि सम्पन्न कमल खिलते हैं।

हमारे ऋषियों ने कहा है ‘स्वाध्यायान्मा प्रमद’ अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करो। देववाणी कहती है—’यावज्जीवमधीते विप्रः, अर्थात् ब्राह्मण वह है, जिसका सारा जीवन अध्ययन में रमा रहे पुस्तकधारिणी सरस्वती की सतत् समर्चना के लिए पुस्तक से बढ़कर और कोई साधन नहीं है। पुस्तक पूर्णिमा की दुग्धपवल रात्रि है, जिसके द्वारा अज्ञान का अन्धकार दूर होता है। 

ग्रन्थ हमारे सबसे बड़े मित्र हैं, जिनसे हम हर घड़ी वार्तालाप कर सकते हैं तथा अपने चित्त का परिष्कार कर सकते हैं। बड़े-से-बड़े कुबेर-पुत्र के लिए भी हर प्रकार की पुस्तकें जुटाना सम्भव नहीं । 

अतः सबके लिए पुस्तकालय एकमात्र शरण है। विद्यालय हमें तैरना सिखलाते हैं, ज्ञान के पानी में उतरने का तरीक बताते हैं। पुस्तकालय वह विशाल महासागर है, जहाँ हम गोते लगाकर ज्ञान के दुर्लभ मूल्यवान मोठं प्राप्त कर सकते हैं। अतः इसका महत्व निर्विवाद है।

पुस्तकालय से लाभ ही लाभ है। आप पुस्तकालय में चले जायें और चाहें तो गोस्वामी तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ के भरत की ‘भायप भगति’ पर मुग्ध हों या शेक्सपियर के मैकबेथ के विश्वासघाटा पर क्रुद्ध राजनीति, दर्शन, विज्ञान, साहित्य-जिस विषय पर आप चाहें, पुस्तकें प्राप्त करें और अध्ययन करें। 

पुस्तकालय में बैठकर संसार के किसी देश की संस्कृति एवं सभ्यता का ज्ञान अर्जि करें तथा उनके मोड़ों और उनके हास-विकास के कारणों की छानबीन करें। यह हमारे वैयक्तिक उन्नयन का पथ प्रशस्त करता है, साथ ही साथ सामाजिक जीवन के विकास का भी रहस्य-प खोलता है। इसमें सारा विज्ञान और सारी संस्कृति का ज्ञान भरा रहता है। यही कारण है कि बाब से मार्क्स तक इसके श्रेष्ठ प्रेमी रहे। यही कारण है कि इसको प्यार करनेवाले सभी हैं, पर विरोध एक भी नहीं।

पुस्तकालय चाहे विद्यालयीय हो या विश्वविद्यालयीय, वैयक्तिक हो या सामूहिक, राजकीय हो अराजकीय, चल हो या अचल-इसके संचालन में बड़ी सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

हम इस नयी-नयी ज्ञान-सरिता का जल नये-नये ग्रन्थों द्वारा भरते रहें, तभी यह हमारे लिए अधिक हितक हो सकता है। संसार का सबसे बड़ा पुस्तकालय सोवियत संघ में कीय का राष्ट्रीय पुस्तकालय है जिसमें पुस्तकों की संख्या 70,97,000 है, जबकि हमारे यहाँ राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता में पुस्तकों की संख्या केवल दस लाख है।

हमारे देश के पिछड़े होने का यही कारण है कि अन्य उन्नत देशों के मुकाबले हमारे पुस्तकालय काफी पिछड़े हैं, हमारे यहाँ पुस्तकालय-प्रेमी सबसे कम हैं। हमें यह स्थिति समाप्त करने पर ही उन्नति प्राप्त होगी, अन्यथा नहीं।

पुस्तकालय विश्व का स्नायु केन्द्र है। यह वह गंगोत्तरी है, जहाँ ज्ञान की गंगा सतत् प्रवाहित होती रहती है, और वह तपोवन है, जहाँ विवेक के बन्द नेत्र खुलते रहते हैं। अतः हम अपनी सतत् निष्ठा एवं सतर्कता से अपने देश में जितना शीघ्र समृद्ध पुस्तकालयों का निर्माण कर सकेंगे, उतना ही शीघ्र हम विद्या और बुद्धि के महासागर पर स्वत्व स्थापित कर सकेंगे।

20.जनसंख्या विस्फोट

आज विश्व की आबादी दिन दूनी रात चौगनी बढ़ रही है और विश्व के साथ ही भारत के समक्ष यह समस्या एक गंभीर प्रश्न बनकर खड़ी हो गयी है।

किसी भी देश में जनसंख्या के आधिक्य जाँचने के दो उपाय हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री माल्थस के अनुसार जब किसी भी देश में वहाँ के निवासियों को भरपेट भोजन प्राप्त न हो सके, जनसंख्या की वृद्धि तीव्रगति से हो, खाद्य सामग्री का उत्पादन कम हो तब उस देश में जनसंख्या का आधिक्य होता है।

यदि बढ़ती हुई जनसंख्या पर स्वाभाविक प्रतिबंध न लगाया गया तो प्रकृति अग्मि, बाढ़, भूकम्प, महामारी, दुर्भिक्ष, युद्ध आदि के माध्यम से उसमें संतुलन लाती है। यह संतुलन तब पुनः बिगड़ता है जब जनसंख्या की वृद्धि पुनः होती है। प्राकृतिक विरोध पुनः अपना प्रभाव दिखाता है।

महात्मा गाँधी की दृष्टि में जहाँ भारत में जनसंख्या का आधिक्य है वहीं टामस की दृष्टि में लगभग 70 प्रतिशत भूमि बेकार पड़ी है जिसमें उत्पादन किया जा सकता है। अतः भारत में जनाधिक्य नहीं है। आज भारत की जनसंख्या 11 मई, 2000 को 100 करोड़ हो गयी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से लगभग दूना है और हर वर्ष 24.80% की दर से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। यदि इस दर से जनसंख्या में भारत में वृद्धि होती रही तो विकास के नाम पर भारत शून्य रहेगा।

भारत की उक्त जनसंख्या का अर्थ है दुनिया का हर पाँचवाँ आदमी भारतवासी है। भारत का क्षेत्रफल 32,87,782 वर्ग किलोमीटर है। यह दुनिया के कुल क्षेत्रफल का केवल 2.4 प्रतिशत है जबकि दुनिया के 15.53 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि भारत दुनिया की अधिक घनी आबादी वाले देशों में से एक है। 

जनसंख्या का घनत्व यहाँ 221 तक पहुँच गया है। पर इससे पूरी बात का पता नहीं चलता । संघीय क्षेत्रों में तो दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व 5178 है और राज्यों में केरल का 65410 इसके बाद नम्बर आता है पश्चिम बंगाल 614 और बिहार 402 का।

जनसंख्या वृद्धि के कारण-पौष्टिक आहार, सफाई, स्वच्छता, चिकित्सा और स्वास्थ्य की सुविधाओं से मृत्यु का परिणाम घटता जा रहा है। इसलिए जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती जा रही है। भारतीय जनसंख्या की वृद्धि के और भी कई कारण हैं। यथा-

(1) बाल विवाह की प्रथा-यह प्रथा कानून की दृष्टि से भले ही अमान्य हो, किन्तु आज भी भारत के कुछ स्थलों में एक वर्ष के शिशुओं का विवाह हो जाता है। 

(2) गर्म जलवायु भारत की जलवायु गर्म होने के कारण बालिकाएँ बड़ी जल्दी ऋतुमती हो जाती हैं। 

(3) अविवेकपूर्ण मातृत्व-भारत की मांताएँ चार-पांच बच्चों को जन्म देने के बाद भी अधिक बच्चों को जन्म देती ही रहती हैं।

(4) मनोरंजन के साधनों का अभाव — भारतीय विशेषकर गरीब होते हैं। अतः मनोरंजन के मनोरंजन का साधन होती है। फलस्वरूप बच्चों की उत्पत्ति तीव्र होती है। साधन प्राप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उसके लिए पैसों की जरूरत होती है। 

(5) सामाजिक बन्धन- भारतीय परम्परा में विवाह एक अनिवार्य कर्त्तव्य माना जाता है। अधिक आयु तक यदि विवाह न हुआ तो समाज की दृष्टि से लड़का या लड़की के आचरण बुरे मान जाते हैं। उन्हें बुरी दृष्टि से देखा जाता है।

(6) संतति निरोध का अभाव — भारतीय संतति निरोध से अनभिज्ञ हैं । सन्तति निरोध को हैद दृष्टि से भी देखा जाता है। वह पाप समझा जाता है।

(7) घटती मृत्यु दर – 1940 में भारत में जहाँ मृत्यु दर 27.4 प्रतिशत प्रति हजार व्यक्ति थी वहीं अब घटते पटते 1982 के आसपास 14 प्रतिशत प्रति हजार रह गई है। 

(8) स्वास्थ्य में सुधार और बढ़ती औसत आयु दर पिछले कुछ दशकों के लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। 1951 में जहाँ एक व्यक्ति की औसत आयु 32 वर्ष थी, वहीं 1952 में 52 वर्ष हो गयी।

भारत की इस बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा इसकी कोई सीमा नहीं रहेगी और एक दिन ऐसा आयेगा जब अन्न के अभाव में लोगों को भूखों मरना पड़ेगा। जनवृद्धि के कारण ही आज लोग बेकार हैं, दरिद्र हैं और उनका जीवन स्तर निम्न है। अनेक सामाजिक समस्यायें भी समाज को निगलने के लिए अपना मुँह फैलाये हुए हैं।

जनसंख्या की समस्या को दूर करने के निम्न उपाय हैं- 

(1) परिवार नियोजन – देश में खुशहाली लाने के लिए “दो या एक बच्चे” ही मूलमंत्र है। यद्यपि सरकार इसके लिए जागरूक है, फिर भी भारतवासियों में इस संदर्भ में जागरूक होना आवश्यक है। 

(2) देश का औद्योगीकरण- देश में यदि बड़े-बड़े उद्योग एवं छोटे कुटीर उद्योगों का विकास किया जाय तो लोगों को रोजगार उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

(3) कृषि में उन्नति उत्तम खाद और अच्छे बीज की व्यवस्था, वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग, सिचाई की सुविधाओं से कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सकती है और बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त अन्न मिल सकती है।

(4) प्रवासन अधिक आबादी वाले क्षेत्रों से कम आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों को प्रवासित किया जा सकता है। एक देश से दूसरे देश में भी लोगों को भेजा जा सकता है। 

(5) शिक्षा का प्रचार-जिन परिवारों का जीवन स्तर ऊंचा होता है, जो शिक्षित होते हैं उनमें कम बच्चे होते हैं। अतः शिक्षा भी जन- १- वृद्धि रोकने का एक माध्यम है । 

(6) विवाह की अवस्था में वृद्धि – विवाह के लिए लड़के और लड़की की व्यवस्था में उचित रोक लगाकर भी इस समस्या को हल किया जा सकता है।

21.मेरे सपनों का भारत

मेरे सपनों का भारत में एक बार फिर से रामराज्य की कल्पना साकार होगी। देश में कंगाली का नामोनिशान नहीं होगा। देश में चारों और धन-धान्य से भरपूर खेत-खलिहान होंगे। देश के हर नागरिक को पहनने के लिए वस्त्र, पेट भरने के लिए भोजन तथा रहने के लिए मकान मिल जाएँगे। उस भारत में धचपन गलियों की धूल में नहीं लौटेगा। 

उस भारत में कोई कड़कती सर्दी की रात में फुटपाथ पर नहीं मरेगा, उस भारत में अपनी लाज बचाने के लिए वस्त्रहीन नारी को घर में बंद नहीं रहना पड़ेगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में मजदूर की मजदूरी को पूजा का दर्जा मिलेगा। मजदूर को खून चूस कर कोई धनवान मुटियाने नहीं पाएगा। इक्कीसवीं शताब्दी के भारत

का शासन या तो किसान के बेटे के हाथ में होगा या मजदूर की संतान के हाथ में होगा। इतना ही नहीं, यह भारत शिक्षा की रोशनी से जगमागाएगा। अब किसी बच्चे को अज्ञानता ‘के अँधेरे में भटकना नहीं पड़ेगा। इक्कीसवीं शताब्दी के भारत में समाज वर्गहीन होगा। ऊँच-नीच, जाति-पाति का भेद-भाव समाप्त हो जाएगा। मत्स्य न्याय समाप्त होगा और सब को जीने का समान अवसर मिलेगा। भारत में शोषित, परपीड़ित, वंचित और पद दलित को स्वाभिमानपूर्वक जीने का समान अवसर मिलेगा। 

भारत में शोषित, परपीड़ित, वंचित और पद दलित को स्वाभिमान पूर्वक जीने का अवसर मिलेगा। देश के अधिकांश लोगों को पशु-तुल्य जीवन व्यतीत करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा। मेरे सपनों के भारत में मेरे देश के लोगों का चरित्र ऊँचा होगा। कोई देशवासी अपने स्वार्थ के लिए देश से विश्वासघात नहीं करेगा। किसी को विदेशी बैंकों में भारत की पूँजी चोरी में जमा नहीं करवानी पड़ेगी। 

छोटे-छोटे कामों के लिए लोगों को रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी, हिंसा का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। सब सदाचारी होंगे। मेरे सपनों का भार । में भविष्यद्रष्टा राजनीतिज्ञ होंगे। विदुर और चाणक्य के समान चतुर लोग राजनीति में होंगे। भ्रष्ट और चरित्रहीन राजनीतिज्ञों की कहानियाँ केवल लोक कथाओं में रह जाएँगी। राजनीति सुव्यवस्थित होगी और उनका लक्ष्य अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख होगा। 

मेरे सपनों का भारत ज्ञान-विज्ञान में विश्व का सिरमौर होगा। हमें अपने वैज्ञानिक प्रशिक्षण के लिए विदेशों में नहीं जाना पड़ेगा। इसके साथ-साथ यह अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं सुलझाने में विशेष भूमिका को निभाएगा। भारत की शांतिप्रिय नीति के सामने संसार की सामंतवादी नीति टिक न सकेगी। ऐसा समय आएगा कि विध्वंसकारी बमों तथा हथियारों में होड़ लेने वाले राष्ट्र भी भारत के शांतिप्रिय प्रयासों के सामने घुटने टेके बिना न रह सकेंगे।

सारांश यह है कि मेरे सपनों का भारत सब प्रकार की सुविधाओं वाला राष्ट्र होगा। भारत की यह उन्नति मानव को हानि पहुँचाने वाली नहीं प्रत्युत मानव सेवा के लिए होगी। तात्पर्य यह है कि मेरे सपनों का भारत ज्योति स्तंभ की भाँति प्रज्वलित होगा तथा संसार के सब राष्ट्रों का मार्ग-दर्शक होगा जिससे यह देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा।

22.मेरे सपनों का झारखंड

मेरे सपनों का झारखंड वैसा हो, जैसा मैं सपने में अपने भव्य एवं विशाल महल को देखता हूँ। मेरे सपनों का झारखंड विकास की पराकाष्ठा को स्पर्श करे ऐसी मेरी इच्छा है। यह आर्थिक रूप से समृद्ध और राजनीतिक दृष्टिकोण से उन्नत हो । यहाँ बड़े-छोटे, छूत-अछूत में कोई भेदभाव न हो। 

यहाँ सभी को अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी हो। सभी को रोटी, कपड़ा और आवास प्राप्त हो। सभी सुखी एवं खुशहाल हो। सभी को यथोचित न्याय मिले। सभी को उचित शिक्षा, चिकित्सा और मानव संबंधी जरूरी आवश्यकताएँ पूरी हो ।

मेरे सपनों का झारखंड बलात्कारमुक्त, नरसंहार मुक्त एवं उग्रवाद मुक्त हो ऐसी मेरी कामना है। यहाँ स्त्री को उचित शिक्षा एवं पुरुष के समान अधिकार प्राप्त हो। यहाँ लड़की को पैदा लेने पर दुख न व्यक्त किया जाया बल्कि यह सहर्ष स्वीकार्य हो । 

यहाँ लड़की को बोझ न समझकर ईश्वर प्रदत उपहार समझा जाए और इसका पालन पोषण ठीक उसी प्रकार किया जाए जिस प्रकार लड़…” का हो। मेरे सपनों का झारखंड भ्रष्टाचार मुक्त, उग्रवाद मुक्त एवं भयमुक्त हो। यहाँ प्रौढ़ स्त्री-पुरुष को साक्षर बनाने की व्यवस्था हो । यहाँ किसान ठीक उसी प्रकार खुशहाल हों जिस प्रकार उनके खेत की फसल लहलहाती हो कारण कि किसान देश या प्रान्त के अन्नदाता होते हैं।

इनकी उपेक्षा करने से उत्पादन प्रभावित होगा और प्रान्त या देश में गरीबी और भुखमरी का प्रकोप छा जाएगा। सभी को रोजगार प्राप्त हो, सभी खुशहाल रहें ऐसी मेरी अभिलाषा है। कहीं भी अशान्ति, भ्रष्टाचार आपसी कलह या वैर भाव देखने को नहीं मिले। यह समृद्धशाली एवं वैभवशाली हो। 

यहाँ सभी लोग चैन की साँस लें तथा अपनी रोटी का जुगाड़ कर सकें। इस प्रकार मेरी इच्छा है कि मेरे सपनों का झारखंड ठीक उसी प्रकार चमकता-दमकता प्रतीत हो, जैसा कि सपने में अपने महल को देखता हूँ।

23.परोपकार अथवा परहित सरिस धरम नहीं भाई 

‘परोपकार’ अथवा ‘परहित’ का शाब्दिक अर्थ है-दूसरों का भला । दूसरों की भलाई के बारे में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है। परोपकार महानता का सूचक परोपकार-भावना के कारण ही महात्मा गाँधी मोहनदास से महात्मा बने ।” है।

ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस प्रकार की है कि परोपकार का गुण उसके कण-कण में सम है। कविवर रहीम लिखते हैं- तरुवर फल नहि खात है, सरवर पियहि न पानि । कहि रहीम परकाज हित, संपत्ति संचहि सुजानि । वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लिए फल धारण करते हैं। नदियाँ भी अपना जल स्वयं ना पीती। परोपकारी मनुष्य संपत्ति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं। सारी प्रकू निस्वार्थ समर्पण का संदेश देती है।

वास्तव में मानव-जीवन भी एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। यदि गायक अपने सुरो गीतों को अपने कंठों में कैद कर लें, यदि वैज्ञानिक अपने आविष्कारों को अपने तक सीमित क लें, यदि चिकित्सक अपनी औषधियों को अपने इलाज में खपा दें और पुलिस अपनी शक्तियों के अपनी सुरक्षा में ही खर्च कर दे तो मानव-जीवन गतिमान ही नहीं हो सकता। अतः परोपका तो मानव जीवन की अनिवार्य शर्त है।

भारत में परोपकारी महापुरुषों की कमी नहीं है। यहाँ दधीचि जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपन जाति के लिए अपने शरीर की हड़ियाँ दान में दे दीं। यहाँ सुभाष जैसे महान नेता हुए जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना तन-मन-धन और सरकारी नौकरी छोड़ दी। बुद्ध, महावीर अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं। परोपकार दिखने में घाटे का सौदा लगता है। परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है।

महात्मा गाँधी को परोपकार करने से जो गौरव और सम्मान मिला; भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ने से जो आदर मिला, बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली, क्या वह एक भोगी राजा बनने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं। परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है।

उसे पश्चात्ताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है। उसके जीवन की सुगंध सब ओर व्याप्त हो जाती है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह परोपकार को जीवन में धारण करे। यही हमारा धर्म है। महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है- “परहित सरिस धरम नहीं भाई पर पीड़ा सम नहि अधमाई”

24.व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व

भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में उत्तरोत्तर हो रही वृद्धि चिंता का विषय बनती जा रही है। शहर से गाँव तक का युवा वर्ग एक-दूसरे की देखादेखी शिक्षित होता रहा है और इस शिक्षित होने का एकमात्र उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना होता है। इस प्रक्रिया में वे मैट्रिक, इंटर, बी.ए., एम.ए. की डिग्रियाँ तो बटोर लेते हैं, मगर इनमें से बहुत कम ऐसे सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें इन डिग्रियों की बदौलत कोई नौकरी मिल जाती है। 

शेष के समक्ष यह प्रश्न उछलकर सामने आता है कि आगे क्या किया जाय। इस सोच के कारण उनमें निराशा, कुंठा, संत्रास आदि कुवृत्तियों का विकास होने लगता है। ऐसे में वे बहुत आसानी से समाज-विरोधी तत्त्वों की गिरफ्त में आ जाते हैं और विध्वंसक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं। उनका शिक्षित होना अभिशाप बन जाता है। 

ऐसी स्थिति उत्पन्न ही न हो, इस तरफ कतिपय शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान गया है और इसके लिए उन्होंने शिक्षा को रोजगार से जोड़ने का सुझाव दिया है यानी रोजगारोन्मुख शिक्षा की आवश्यकता जतायी है। यही रोजगारोन्मुख शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा है।

ऐसे चिंतकों के विचारानुसार मैट्रिक तक तो परंपरागत शिक्षा की अनिवार्यता हो, किन्तु मैट्रिक के बाद ही उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाय जिसके बल पर वे स्वयं अपना कोई उद्यम खड़ा कर सकें। कम्प्यूटर टाइपिंग परंपरागत उद्योग जैसे काष्टकारी, चर्मोद्योग, प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी आदि का विधिवत प्रशिक्षण देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के योग्य बनाया जा सकता है। 

ऐसे प्रशिक्षण के उपरांत सरकारी स्तर पर उन्हें कम सूद पर ऋण देने की व्यवस्था भी की गयी है। अनेक अग्रणी बैंक इनमें अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं या अनेक सरकारी उपक्रम इस दिशा में कार्यरत हैं। ऐसी व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चातू बेरोजगार रहने की संभावना समाप्त जाती है। कॉलेजों में नामांकन के लिए बढ़ती भीड़ छँट सकती है।

“मैट्रिक के बाद, जैसे युवा जो प्रतिभाशाली हैं और ज्ञान की किसी विशेष शाखा में प्रवीण होना चाहते हैं, वे ही कॉलेजों में नामांकन करायें। किसी में डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेन्ट, अनुवादक, संपादक, प्रशासक आदि बनने की क्षमता है, वे उच्च शिक्षा की दिशा में अग्रसर हो। 

मैं भी व्यावसायिक शिक्षाएँ हैं और इनमें भी देश-विदेश में रोजगार की अच्छी संभावनाएँ हैं। युवा इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि उच्च शिक्षा की इन शाखाओं में निपुणता प्राप्त करने की उनमें अतिमा है और तदनुकूल व परिश्रम भी कर सकते हैं। मात्र डिग्री लेने के विचार से वे नहीं पढ़े। 

कुछ लोग यहाँ पर सवाल उठा सकते हैं कि तब क्या उच्च शिक्षा प्राप्ति के दरवाजे बन्द कर दिये जाएँ ? क्या महाविद्यालय बन्द कर दिये जाएँ ? ऐसी बात नहीं। जीवन में ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा तो अनिवार्य है ही, मगर इसे ही वे प्राप्त करें जिनमें इनके प्रति गहरी अभिरुचि हो । महाविद्यालय और विश्वविद्यालय भी व्यावसायिक शिक्षा के केन्द्र बनें।

इस प्रकार शिक्षा को अगर विशुद्ध व्यावसायिक बना दिया जाय तो शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का हल तो निकल ही आयेगा, राष्ट्र भी प्रगति की ओर अग्रसर होगा। 

25.हमारे जीवन में पुस्तकों का महत्त्व 

लोकमान्य तिलक कहा करते थे— “मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूँगा। इसमें वह शक्ति है कि जहाँ ये होंगी वहाँ आप ही स्वर्ग वन जाएगा।” पुस्तकों की इसी विशेषता पर

मुग्ध होकर प्रॉस्टिन फिल्रस कहते हैं-“पुराने कपड़े पहनकर नई पुस्तकें खरीदिए।” पुस्तकें सचमुच हमारी मित्र हैं। वे अपना अमृत कोष सदा हम पर न्योछावर करने को तैयार रहती हैं। उनमें छिपी अनुभव की बातें हमारा मार्गदर्शन करती हैं। अच्छी पुस्तकें हमें रास्ता दिखाने के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी करती हैं। बदले में वे हमसे कुछ नहीं लेतीं, न ही परेशान या बोर करती हैं। इससे अच्छा और कौन-सा साथी हो सकता है कि जो केवल कुछ देने का हकदार हो, लेने का नहीं।

पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं। उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कर्म करने की भावना जागती है। महात्मा गाँधी को महान बनाने में गीता, टालस्टाय और थोरी का भरपूर योगदान था। जवाहरलाल नेहरू लिखते हैं कि उन्हें रॉबर्ट फ्रॉस्ट की काव्य पंक्तियों में निरंतर कर्म करने की प्रेरणा प्रदान की। भारत की आजादी का संग्राम लड़ने में पुस्तकों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। मेथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ पढ़कर कितने ही नौजवानों ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था। रूस की क्रांति में मार्क्स के विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

पुस्तकें विकास की सूत्रधार होती हैं। पुस्तकें ही आज की मानव-सभ्यता के मूल मे में हैं। पुस्तकों के द्वारा एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते सारे युग में फैल जाता है। विपिल महोदय का कथन है-पुस्तकें प्रकाश गृह हैं जो समय के विशल समुद्र में खड़ी की गई हैं।” यदि हजारों वर्ष पूर्व के ज्ञान को पुस्तकें अगले युग तक न पहुँचाती तो शायद इस वैज्ञानिक सभ्यता का जन्म न होता। पुस्तकों के माध्यम से ही हम अपने पूर्वजों के ज्ञान और अनुम्नव को समझ सकते हैं।

पुस्तकें किसी भी विचार, संस्कार या भावना के प्रचार का सबसे शक्तिशाली साधन हैं। तुलसी के ‘रामचरितमानस’ ने तथा व्यास-रचित ‘महाभारत’ ने अपने युग को तथा आने वाली शताब्दियों को पूरी तरह प्रभावित किया। हमारा वर्तमान भारत रामायण और महाभारत के संस्कारों से बना है। 

आजकल विभिन्न सामाजिक आंदोलन तथा विविध विचारधाराएँ अपने प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तकों को उपयोगी अस्त्र के रूप में प्रयोग करती हैं।  पुस्तकें मानव के मनोरंजन में भी परम सहायक सिद्ध होती हैं। मनुष्य अपने एकांत पुस्तकों के साथ गुजार सकता है। 

पुस्तकों के मनोरंजन में हम अकेले होते हैं, इसलिए मनोरं का आनंद और अधिक गहरा होता है। आज विद्वान लोग इस बात को एकमत से स्वीकार कर हैं कि पुस्तकों का प्रभाव दूरदर्शन या रेडियो से अधिक गहरा होता है। कारण स्पष्ट है कि पुस्त अध्ययन करते समय मनुष्य पूरी तरह पुस्तक के विचारों में खोया रहता है। इसीलिए किसी कहा है-पुस्तकें जाग्रत देवता हैं। उनकी सेवा करके तत्काल वरदान प्राप्त किया जा सकता है।

26.हमारे जीवन में खेलों का महत्त्व 

एक समय था, जब लोग कहा करते थे- खेलोगे-कूदोगे, होगे खराब पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाय। आज जमाना बदल गया है। आज नवाबों के बच्चे उस स्कूल में पढ़ते हैं, जहाँ खेल-खेत में शिक्षा देने का प्रबंध होता है। आज जमाने ने खेलों के महत्त्व को समझा है।

 यहाँ तक कि लोग खिलाड़ी होने में गौरव मानते हैं। खेल कैरियर के साथ जुड़ गया है। खेल मनोरंजन और शक्ति के भंडार हैं। खेतों से खिलाड़ियों का शरीर स्वस्थ और मजबूत बनता है। खेलों के द्वारा उनके शरीर में चुस्ती, स्फूर्ति, शक्ति आती है। पसीना निकलने से अंदर के मल बाहर निकल जाते हैं। नसें सक्रिय हो जाती हैं। खून का दौरा तेज हो जाता है। 

हड्डियाँ मजबूत हो जाती हैं। शरीर हलका-फुलका बन जाता है। पाचन क्रिया तेज हो जाती है। खेतों का दूसरा लाभ यह है कि ये मन को रमाते हैं। खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते हुए शेष दुनिया के तनावों को भूल जाते हैं। उनका ध्यान फुटबाल, गेंद या खेत में लीन रहता है। संसार के चक्करों को भूलने में उन्हें गहरा आनंद मिलता है। शारीरिक खेलों के साथ-साथ अन्य पीद्धिक तथा कलात्मक खेल, जैसे- कैरम बोर्ड, ताश, शतरंज भी महत्वपूर्ण हैं। इनसे हमारा मनोरंजन होता है।

कबडी, कुश्ती, खो-खो, हॉकी, खेल-कूद आदि भारत के परंपरागत खेल हैं। आजकल यहां विन्द प्रचलित खेलों का बोलबाला है। क्रिकेट, फुटबॉल, लॉन टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन बहुत लोकप्रिय होते जा रहे हैं। भारत में क्रिकेट का बुखार जोरों पर है। जिन दिनों भारत और किसी अन्य प्रसिद्ध क्रिकेट टीम का मैच होता है, उस दिन सारे देश में उत्सव जैसा माहौल होता है। भारत गरीब देश

है, यहाँ धन और स्थान की कमी है। अतः यहीं की अधिकांश जनता महँगे खेल नहीं खेल सकती। खेलों की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानंद कहा करते थे-“मेरे नवयुवक मित्रो! बलवान बनो। तुमको मेरी यही सलाह है। गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबाल खेलने के द्वारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे तुम्हारी कलाई और भुजाएँ अधिक मजबूत होने पर तुम गीता को अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे।” स्पष्ट है कि खेलों से मनुष्य का चरित्र ऊँचा उठता है।

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन और स्वस्थ आत्मा निवास करती है। स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया से अन्याय, शोषण और अधर्म को हटा सकता है। महापुरुषों के जीवन पर दृष्टि डालें। जिन्होंने समाज में बड़े-बड़े परिवर्तन किए, वे स्वयं चलवान व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद, दयानंद, रामतीर्थ, महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगवान् कृष्ण, पुरुषोत्तम राम, गुधिष्ठिर, अर्जुन सभी शक्तिशाली महापुरुष थे। वे किसी-न-किसी प्रकार की शारीरिक विद्या में अग्रणी थे। इसी कारण वे यशस्वी बन सके। बीमार व्यक्ति तो स्वयं ही अपने ऊपर बोझ होता है।

खेल-कूद से खेल भावना का विकास होता है। खेल भावना का अर्थ है-हार-जीत में एक समान रहना। इसी से आदमी दुख-सुख में एक समान रहना सीखता है। यह खेल भावना खेलों द्वारा सीखी जा सकती है। रोज-रोज हारना और हार को सहजता से झेलना, रोज-रोज जीतना और जी को सहजता से लेना- ये दोनों गुण खेलों की देन हैं। अतः खेल जीवन के लिए अनिवार्य हैं।

class12.in

प्रश्न 1. ऊपर दिए गए निबंध 12th परीक्षा के लिए काफी हैं?

उत्तर- हां, ऊपर दिए गए निबंध आपके 12th परीक्षा के लिए काफी हैं | इनमें से कई निबंध पीछे कुछ सालों में पूछे जा चुके हैं | तो इनका अवश्य अनुसरण करें |

प्रश्न 2. ‘ऊपर दिए गए निबंध पिछले कई 12th परीक्षा में आ चुके हैं या नहीं?

उत्तर- ऊपर दिए गए निबंध कक्षा बारहवीं के विषय HINDI के लिए काफी महत्वपूर्ण है और ये काफी बार पूछे जा चुके हैं |

प्रश्न 3. ऊपर दिए गए निबंध को क्या मैं डाउनलोड कर सकता हूं?

यदि आप एक विद्यार्थी हैं तो आपके लिए हमने PDF की सुविधा उपलब्ध कराई है | ऊपर दिए गए डाउनलोड बटन के माध्यम से आप इसे आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं |

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Essay for UPSC PDF Free Download

Essay book PDF for UPSC Civil Services Mains Exams in Hindi and English for Free Download. A collections of books includes best and selected Essay, Last 7 years IAS/IPS Mains Solved Paper, for Hindi Compulsory Paper from reputed coaching Institutes and Publishers.

यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के लिए निबंध पुस्तक पीडीएफ हिंदी और अंग्रेजी में मुफ्त डाउनलोड के लिए। पुस्तकों के संग्रह में प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों और प्रकाशकों से पिछले 7 वर्षों के IAS / IPS मेन्स सॉल्व्ड पेपर, हिंदी अनिवार्य पेपर के लिए सर्वश्रेष्ठ और चयनित निबंध शामिल हैं।

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दृष्टि IAS The Vision Hindi Essay Book PDF

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Name : Essays for Civil Services Examinations 145+173 Previous CSE Essays Publisher : Prabhat Publication Dr. B. Ramaswamy Medium : English Number of Pages : 429

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यूपीएससी मेन्स से पिछले 09 वर्षों के विषय-वार निबंध प्रश्न (2013 - 2021)

UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का पेपर-I निबंध होता है। इसमें आईएएस मुख्य परीक्षा के उम्मीदवारों को कुछ दिए गए विषयों में से दो विषयों पर निबंध लिखने होते हैं। यह पेपर कुल 250 अंकों का होता है और इसके अंकों को अंतिम मेरिट सूची के लिए ध्यान में रखा जाता है। इस लेख में, हमने 2013 से 2021 तक UPSC mains exam में पूछे गए सभी निबंध विषयों को सूचीबद्ध किया है। हमने आपकी तैयारी को आसान बनाने के लिए पिछले 09 वर्षों के निबंध प्रश्नों को भी विषयों में वर्गीकृत किया है।

यूपीएससी मेन्स से पिछले 09 वर्षों के विषय-वार निबंध प्रश्न (2013 – 2021)- Download PDF Here

UPSC 2023

यूपीएससी निबंध विषय

  • “सर्वोत्तम कार्यप्रणाली” से बेहतर कार्यप्रणालियाँ भी होती हैं । (2021)
  • क्या यह नीति – गतिहीनता थी या कि क्रियान्वयन – गतिहीनता थी, जिसने हमारे देश की संवृद्धि को मंथर बना दिया था ? (2014)

आर्थिक विकास और विकास

  • व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ठ है, वह आवश्यक नहीं कि समाज के लिए भी हो | (2019)
  • भारत में अधिकतर कृषकों के लिए कृषि जीवन – निर्वाह का एक सक्षम स्रोत नहीं रही है। (2017)
  • नवप्रवर्तन आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक कल्याण का अपरिहार्य निर्धारक है |
  • क्‍या पूंजीवाद द्वारा समावेशित विकास हो पाना संभव है ? (2015)
  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ-साध सकल घरेलू खुशहाली (GDH) देश की सम्पन्नता के मूल्यांकन के सही सूचकांक होगे । (2013)

संघवाद, विकेंद्रीकरण

  • भारत में संघ और राज्यों के बीच राजकोषीय संबंधों पर नए आर्थिक उपायों का प्रभाव । (2017)
  • संघीय भारत में राज्यों के बीच जल-विवाद | (2016)
  • सहकारी संघवाद : मिथक अथवा यथार्थ | (2016)

भारतीय संस्कृति और समाज

  • जो हम हैं, वह संस्कार; जो हमारे पास है, वह सभ्यता | (2020)
  • पितृ-सत्ता की व्यवस्था नजर में बहुत कम आने के बावजूद सामाजिक विषमता की सबसे प्रभावी संरचना है | (2020)
  • वे सपने जो भारत को सोने न दें । (2015)
  • क्या औपनिवेशिक मानसिकता भारत की सफलता में बाधक हो रही है ? (2013)

सामाजिक न्याय/गरीबी

  • बिना आर्थिक समृद्धि के सामाजिक न्याय नहीं हो सकता, किन्तु बिना सामाजिक न्याय के आर्थिक समृद्धि निरर्थक है | (2020)
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन के कारण हैं | (2019)
  • कहीं पर भी गरीबी, हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है | (2018)
  • जो समाज अपने सिद्धान्तों के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्त्व देता है, वह दोनों से हाथ थो बैठता है | (2018)
  • क्या प्रतिस्पर्धा का बढ़ता स्तर युवाओं के हित में है ? (2014)

मीडिया और समाज

  • पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है | (2019)

पर्यावरण/शहरीकरण

  • जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकें | (2018)
  • हम मानवीय नियमों का तो साहसपूर्वक सामना कर सकते हैं, परंतु प्राकृतिक नियमों का प्रतिरोध नहीं कर सकते। (2017)

आर्थिक क्षेत्र / बहुराष्ट्रीय कंपनियां

  • भारत में लगभग रोजगार विहीन संवृद्धि : आर्थिक सुधार की विसंगति या परिणाम | (2016)
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था : एक समताकारी या आर्थिक असमता का स्रोत | (2016)
  • पर्यटन : क्या भारत के लिए यह अगला बड़ा प्रेरक हो सकता है ? (2014)
  • राष्ट्र के भाग्य का स्वरूप – निर्माण उसकी कक्षाओं में होता है। (2017)
  • मूल्यों से वंचित शिक्षा, जैसी अभी उपयोगी है, व्यक्ति को अधिक चतुर शैतान बनाने जैसी लगती है । (2015)
  • अधिकार (सत्ता) बढ़ने के साथ उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है । (2014)
  • क्या मानकीकृत परीक्षण शैक्षिक योग्यता या प्रगति का बढ़िया माप है ? (2014)
  • भारत में “नए युग की नारी” की परिपूर्णता एक मिथक है। (2017)
  • स्त्री-पुरुष के समान सरोकारों को शामिल किए बिना विकास संकटग्रस्त है | (2016)

उद्धरण – आधारित/दर्शन

  • इच्छारहित होने का दर्शन काल्पनिक आदर्श (युटोपिया) है, जबकि भौतिकता माया है। (2021)
  • सत्‌ ही यथार्थ है और यथार्थ ही सत्‌ है। (2021)
  • पालना झूलाने वाले हाथों में ही संसार की बागडोर होती है। (2021)
  • शोध क्‍या है, ज्ञान के साथ एक अजनबी मुलाकात ! (2021)
  • मनुष्य होने और मानव बनने के बीच का लम्बा सफर ही जीवन है | (2020)
  • जहाज अपने चारों तरफ के पानी के वजह से नहीं डूबा करते, जहाज पानी के अंदर समा जाने की वजह से डूबते हैं | (2020)
  • सरलता चरम परिष्करण है | (2020)
  • विवेक सत्य को खोज निकालता है | (2019)
  • मूल्य वे नहीं जो मानवता है, बल्कि वे हैं जैसा मानवता को होना चाहिए | (2019)
  • स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र हैं | (2019)
  • एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है | (2018)
  • किसी को अनुदान देने से, उसके काम में हाथ बँटाना बेहतर है। (2015)
  • शब्द दो – धारी तलवार से अधिक तीक्ष्ण होते हैं । (2014)
  • जो बदलाव आप दूसरों में देखता चाहते हैं- पहले स्वयं में लाइए – गॉंधीजी । (2013)
  • आप की मेरे बारे में धारणा, आपकी सोच दर्शाती है; आपके प्रति मेरी प्रतिक्रिया, मेरा संस्कार है। (2021)
  • विचारपरक संकल्प स्वयं के शांतचित्त रहने का उत्प्रेरक है | (2020)
  • यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है, बल्कि उसकी पुष्टि करता है | (2018)
  • आवश्यकता लोभ की जननी है तथा लोभ का आधिक्य नस्‍लें बर्बाद करता है | (2016)
  • फुर्तीला किन्तु संतुलित व्यक्ति ही दौड़ में विजयी होता है । (2015)
  • किसी संस्था का चरित्र चित्रण, उसके नेतृत्त्व में प्रतिबिम्बित होता है। (2015)
  • क्या गुटनिरपेक्ष आंदोलन (नाम) एक बहुध्रुवीय विश्व में अपनी प्रासंगिकता को खो बैठा है ? (2017)

विज्ञान और तकनीक

  • इतिहास स्वयं को दोहराता है, पहली बार एक त्रासदी के रूप में, दूसरी बार एक प्रहसन के रूप में। (2021)
  • आत्म-संधान की प्रक्रिया अब तकनीकी रूप से बाह्मय स्रोतों को सौंप दी गई है। (2021)
  • प्रौद्योगिकी, मानवशक्ति को विस्थापित नहीं कर सकती । (2015)
  • राष्ट्र के विकास व सुरक्षा के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी (टेक्नॉलाजी) सर्वोपचार हैं । (2013)

इंटरनेट/आईटी

  • कृत्रिम बुद्धि का उत्थान : भविष्य में बेरोजगारी का खतरा अथवा पुनःकौंशल और उच्चकौशल के माध्यम से बेहतर रोजगार के सृजन का अवसर | (2019)
  • “सोशल मीडिया” अंतर्निहित रूप से एक स्वार्थपरायण माध्यम है। (2017)
  • साइबरस्पेस और इंटरनेट : दीर्घ अवधि में मानव सभ्यता के लिए वरदान अथवा अभिशाप | (2016)

अंतर्राष्ट्रीय संगठन / संबंध

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मौन कारक के रूप में प्रौद्योगिकी | (2020)
  • भारत के सीमा विवादों का प्रबन्धन – एक जटिल कार्य | (2018)
  • दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नहीं, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानों के ताने-बाने से बने हैं | (2019)
  • रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन की मार्गदर्शक नहीं हो सकती है | (2018)
  • ‘अतीत’ मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है | (2018)
  • हर्ष कृतज्ञता का सरलतम रूप है। (2017)
  • भारत के सम्मुख संकट – नैतिक या आर्थिक | (2015)
  • क्या स्टिंग ऑपरेशन निजता पर एक प्रहार है ? (2014)
  • ओलंपिक में पचास स्वर्ण पदक : क्या भारत के लिए यह वास्तविकता हो सकती है ? (2014)

आईएएस मेन्स की तैयारी करते समय, उम्मीदवारों को UPSC Mains Answer Writing Practise पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि इससे आपकी गति, दक्षता और लेखन कौशल में सुधार होगा। यह स्वतः ही निबंध लेखन में भी मदद करेगा।

UPSC मेंस के लिए UPSC निबंध विषयों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मैं upsc में एक अच्छा निबंध कैसे लिख सकता हूँ, क्या upsc में लिखावट मायने रखती है.

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होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi): इतिहास, महत्व, 200 से 500 शब्दों में होली पर हिंदी में निबंध लिखना सीखें

Updated On: March 07, 2024 12:55 pm IST

  • होली पर निबंध 200 शब्दो में (Essay on Holi in …
  • होली पर निबंद 500 शब्दो में (Essay on Holi in …

होली पर निबंध 10 लाइन (Holi Par Nibandh 10 Lines)

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)  - होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हिन्दू धर्म के लोग पूरे उत्साह और सौहार्द के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हिन्दू धर्म के लोगो के बीच भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। होली रंगो और खुशियों का त्योहार है। होली का त्यौहार विश्व भर में प्रसिद्ध है। होली का त्यौहार (Holi Festival) हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। इस त्यौहार को रंगो के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। होली का त्यौहार भारत के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे कई देशों में भी प्रसिद्ध है। इस त्यौहार को सभी वर्गों के लोग मनाते हैं। वर्तमान में तो अन्य धर्मों को मानने वाले लोग भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाने लगे हैं। इस त्यौहार में ऐसी शक्ति है कि वर्षों पुरानी दुश्मनी भी इस दिन दोस्ती में बदल जाती है। इसीलिए होली को सौहार्द का त्यौहार भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि होली का त्योहार (Festival of Holi) हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है। होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। ये भी पढ़ें - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भाषण होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) लिखने के इच्छुक छात्र इस लेख के माध्यम से 200 से 500 शब्दों तक हिंदी में होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)  लिखना सीख सकते हैं। 

होली पर निबंध 200 शब्दो में (Essay on Holi in 200 words)

होली पर निबंध (holi par nibandh) - होली का महत्व , होली पर निबंध (essay on holi in hindi) - होली कब और क्यों मनाई जाती है.

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi) - होली के पर्व को हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अधिकतर फरवरी और मार्च के महीने में पड़ता है। इस त्योहार को बसंतोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। हर त्योहार के पीछे कोई न कोई कहानी या किस्सा प्रचलित होता है। ‘होली’ मनाए जाने के पीछे भी कहानी है। वैसे तो होली पर कई कहानियां सुनाई व बताई जाती है लेकिन कुछ कहानियां हैं जो गहराई से हमारी संस्कृति एंव भाव से जुड़ी है। तो आईये जानते है होली मनाने के पीछे का कारण और संस्कृति एंव भाव।

इसी तरह भगवान कृष्ण पर आधारित कहानी होली का पर्व किस खुशी में मनाया जाता है, इसके विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने दुष्टों का वध कर गोप व गोपियों के साथ रास रचाई तब से होली का प्रचलन हुआ। वृंदावन में श्री कृष्ण ने राधा और गोप गोपियों के साथ रंगभरी होली खेली थी इसी कारण वृंदावन की होली सबसे अच्छी और विश्व की सबसे प्रसिद्ध होली मानी जाती है। इस मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण दुष्टों का संहार करके वृंदावन लौटे थे तब से होली का प्रचलन हुआ और तब से हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती है।

होली पर निबंद 500 शब्दो में (Essay on Holi in 500 words)

प्रस्तावना .

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi):  होली भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक पर्व है। यह पर्व फागुन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है और भारत वर्ष में खुशी, आनंद, प्रेम और एकता का प्रतीक है। होली एक सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें लोग अपनी पूर्वाग्रहों और विभिन्न सामाजिक प्रतिष्ठानों को छोड़कर आपसी भाईचारा और प्रेम का आनंद लेते हैं। यह पर्व विभिन्न आदतों, परंपराओं और धार्मिक आराधनाओं के साथ मनाया जाता है और भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण और आनंदमय अवसर है।

होली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

विश्व के अलग-अलग कोने में अलग-अलग तरह से होली खेली जाती है कहीं फूल भरी होली खेली जाती है तो कहीं लठमार होली तो कहीं होली का नाम ही अलग होता है। होली खेलने का तरीका भले ही सबका अलग अलग हो लेकिन होली हर जगह रंगों के साथ ज़रूर खेली जाती है। होलिका दहन के लिए बड़कुल्ले बनाना, होली की पूजा करना, पकवान बनाना, होलिका का दहन करना इत्यादि किया जाता है।

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) - होली की तैयारी कैसे करें?

पकवान बनाने के बाद घर के सभी लोग उसे एक थाली में सजाकर होलिका दहन वाली जगह जाते हैं। इसके अलावा वे अपने साथ बड़कुल्ले और पूजा का अन्य सामान भी लेकर जाते हैं जिसमें कच्चा कुकड़ा (सूती धागा), लौटे में जल, चंदन इत्यादि सम्मिलित हैं। फिर उस जगह पहुंचकर होली की पूजा की जाती हैं, पकवान का भोग लगाया जाता हैं और बड़कुल्लों को उस ढेर में रख दिया जाता हैं। उसके बाद सभी लोग कच्चे कुकड़े को उस गोल घेरे के चारों और बांधते हैं और भगवान से प्रह्लाद की रक्षा की प्रार्थना करते हैं। पूजा करने के पश्चात सभी अपने घर आ जाते हैं। 

रात में सूर्यास्त होने के बाद पंडित जी वहां की पूजा करते हैं। सभी लोग उस स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं। उसके बाद उन लकड़ियों में अग्नि लगा दी जाती हैं। अग्नि लगाते ही, उस ढेर के बीच में रखे मोटे बांस (प्रह्लाद) को बाहर निकाल लिया जाता हैं। होलिका दहन को देखने के लिए लोग अपने घर से पानी का लौटा, कच्चा कुकड़ा, हल्दी की गांठ व कनक के बाल लेकर जाते हैं। पानी से होली को अर्घ्य दिया जाता है। दूर से उस अग्नि को कच्चा कुकड़ा, हल्दी की गांठ और कनक के बाल दिखाए जाते हैं। कुछ लोग होलिका दहन के पश्चात उसकी राख को घर पर ले जाते हैं। 

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh in Hindi) - होली कैसे खेलते है?

इन सब के बाद शुरू होता हैं असली रंगों का त्यौहार। सभी लोग अपने मित्रों, रिश्तेदारों, जान-पहचान वालों के साथ होली का त्यौहार खेलते हैं। पहले के समय में केवल प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलने का विधान था लेकिन आजकल कई प्रकार के रंगों से होली खेली जाती हैं।

इसी के साथ लोग फूलों, पानी, गुब्बारों से भी होली खेलते हैं। कई जगह लट्ठमार होली खेली जाती हैं तो कहीं पुष्प वर्षा की जाती हैं। कई जगह कपड़ा-फाड़ होली खेलते हैं तो कई लड्डुओं की होली भी खेलते है। यह राज्य व लोगों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। बस रंग हर जगह उड़ाए जाते हैं।

यह उत्सव लगभग दोपहर तक चलता हैं और उसके बाद सभी अपने घर आ जाते हैं। इसके बाद होली का रंग उतार लिया जाता हैं, घर की सफाई कर ली जाती हैं और नए कपड़े पहनकर तैयार हुआ जाता हैं। भाषण पर हिंदी में लेख पढ़ें- 

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) -  होली के हानिकारक प्रभाव

होली  का इन्तजार लोगो को पुरे साल भर रहता है। लेकिन कई बार होली पर बहुत सी दुर्घटनाएं भी हो जाती है जिसका ध्यान रखना चाहिए। लोगों द्वारा होली के दिन गुलाल का प्रयोग न कर के केमिकल और कांच मिले रंगों का प्रयोग किया जाता है। जिससे चेहरा खराब हो जाता है कई लोग मादक पदार्थों का सेवन व भाग मिला कर नशा करते हैं जिससे कई लोग दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं। ऐसे ही होली के दिन बच्चे गुब्बारों में पानी भर कर गाड़ियों के ऊपर फेंकते हैं या पिचकारी और रंगो को आँखों में फेंक के मरते हैं होली में ऐसे रंगों व हरकतों को न करें जिससे किसी व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ें इसलिए होली के दिन सावधानीपूर्वक रंगो को खेलिये जिससे किसी के लिए हानिकारक न हो।

सुरक्षित तरीके से होली खेलने के सुझाव 

होली का त्योहार (Holi Festival) ऐसा त्योहार है, जिसमें सभी लोग इसके रंग में डूबे नजर आते हैं, लेकिन इसकी मौज-मस्ती आपको इन बातों का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए ताकि इस प्यार भरे उत्सव का मजा किरकिरा न हो।

  • होली खेलने से पहले अपने पूरे शरीर और बालों पर अच्छी तरह तेल और मॉइश्चराइजर लगा लें। ताकि रंग आसानी से छूट जाएं।
  • होली खेलने के लिए नैचुरल और ऑर्गेनिक रंगों का इस्तेमाल करें, कैमिकल भरे रंगों के इस्तेमाल से बचें। क्योंकि कैमिकल वाले रंगों की वजह से कई बार स्किन एलर्जी तक हो जाती है।
  • होली में ज्यादा पानी को बर्बाद न करें।
  • होली पर फुल कपड़े पहनने की कोशिश करें, ताकि कलर ज्यादा स्किन पर न आए।
  • होली में किसी पर जबरदस्ती कलर नहीं डालें और ध्यान रखें कि मौज-मस्ती में किसी को चोट न आए।
  • होली की मौज-मस्ती में बच्चों का विशेष ख्याल रखें, कई बार ज्यादा समय तक पानी में गीले रहने से बच्चे बीमार भी पड़ जाते हैं

होली रंग का त्योहार है, जिसे मस्ती और आनंद के साथ मनाया जाता है। होली में पानी और रंग में भीगने के लिए तैयार रहें, लेकिन खुद को और दूसरों को नुकसान न पहुंचाने के लिए भी सावधान रहें। अपने दिमाग को खोलें, अपने अवरोधों को बहाएं, नए दोस्त बनाएं, दुखी लोगों को शांत करें और टूटे हुए रिश्तों को जोड़ें। चंचल बनें लेकिन दूसरों के प्रति भी संवेदनशील रहें। किसी को भी अनावश्यक रूप से परेशान न करें और हमेशा अपने आचरण की देखरेख करें। इस होली में केवल प्राकृतिक रंगों से खेलने का संकल्प लें।

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi) - होली से जुड़ी सामाजिक कुरीतियां 

होली जैसे धार्मिक महत्व वाले पर्व को भी कुछ असामाजिक तत्व अपने गलत आचरण से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। कुछ असामाजिक तत्व मादक पदार्थों का सेवन कर आपे से बाहर हो जाते हैं और हंगामा करते नजर आते हैं। कुछ लोग होलिका में टायर जलाते हैं, उनको इस बात का अंदाजा नहीं होता कि इससे वातावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुँचता है। कुछ लोग रंग और गुलाल की जगह पर पेंट और ग्रीस लगाने का गंदा काम करते हैं जिससे लोगों को शारीरिक क्षति होने की आशंका रहती है। अगर में होली से इन कुरीतियों को दूर रखा जाए तो होली का पर्व वास्तव में हैप्पी होली बन जाएगा। इसलिए होली में कुरीतियों से बचें और खुशुयों से होली मनाये यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) कुछ लाइनों में लिखने के इच्छुक छात्र इस लेख के माध्यम से होली पर निबंध 10 लाइनों (Holi Par Nibandh 10 Lines) में लिखना सीखें।

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House Approves $95 Billion Aid Bill for Ukraine, Israel and Taiwan

After months of delay at the hands of a bloc of ultraconservative Republicans, the package drew overwhelming bipartisan support, reflecting broad consensus.

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House Speaker Mike Johnson surrounded by members of the news media in the Capitol.

By Catie Edmondson

Reporting from the Capitol

The House voted resoundingly on Saturday to approve $95 billion in foreign aid for Ukraine, Israel and Taiwan, as Speaker Mike Johnson put his job on the line to advance the long-stalled aid package by marshaling support from mainstream Republicans and Democrats.

In four back-to-back votes, overwhelming bipartisan coalitions of lawmakers approved fresh rounds of funding for the three U.S. allies, as well as another bill meant to sweeten the deal for conservatives that could result in a nationwide ban of TikTok.

The scene on the House floor reflected both the broad support in Congress for continuing to help the Ukrainian military beat back Russia, and the extraordinary political risk taken by Mr. Johnson to defy the anti-interventionist wing of his party who had sought to thwart the measure. Minutes before the vote on assistance for Kyiv, Democrats began to wave small Ukrainian flags on the House floor, as hard-right Republicans jeered.

The legislation includes $60 billion for Kyiv; $26 billion for Israel and humanitarian aid for civilians in conflict zones, including Gaza; and $8 billion for the Indo-Pacific region. It would direct the president to seek repayment from the Ukrainian government of $10 billion in economic assistance, a concept supported by former President Donald J. Trump, who had pushed for any aid to Kyiv to be in the form of a loan. But it also would allow the president to forgive those loans starting in 2026.

It also contained a measure to help pave the way to selling off frozen Russian sovereign assets to help fund the Ukrainian war effort, and a new round of sanctions on Iran. The Senate is expected to pass the legislation as early as Tuesday and send it to President Biden’s desk, capping its tortured journey through Congress.

“Our adversaries are working together to undermine our Western values and demean our democracy,” Representative Michael McCaul, Republican of Texas and the chairman of the Foreign Affairs Committee, said Saturday as the House debated the measure. “We cannot be afraid at this moment. We have to do what’s right. Evil is on the march. History is calling and now is the time to act.”

“History will judge us by our actions here today,” he continued. “As we deliberate on this vote, you have to ask yourself this question: ‘Am I Chamberlain or Churchill?’”

The vote was 311 to 112 in favor of the aid to Ukraine, with a majority of Republicans — 112 — voting against it and one, Representative Dan Meuser of Pennsylvania, voting “present.” The House approved assistance to Israel 366 to 58; and to Taiwan 385 to 34, with Representative Rashida Tlaib, Democrat of Michigan, voting “present.” The bill to impose sanctions on Iran and require the sale of TikTok by its Chinese owner or ban the app in the United States passed 360 to 58.

“Today, members of both parties in the House voted to advance our national security interests and send a clear message about the power of American leadership on the world stage,” Mr. Biden said. “At this critical inflection point, they came together to answer history’s call, passing urgently needed national security legislation that I have fought for months to secure.”

Minutes after the vote, President Volodymyr Zelensky of Ukraine thanked lawmakers, singling out Mr. Johnson by name “for the decision that keeps history on the right track.”

“Democracy and freedom will always have global significance and will never fail as long as America helps to protect it,” he wrote on social media. “The vital U.S. aid bill passed today by the House will keep the war from expanding, save thousands and thousands of lives, and help both of our nations to become stronger.”

Outside the Capitol, a jubilant crowd waved Ukrainian flags and chanted, “Thank you U.S.A.” as exiting lawmakers gave them a thumbs-up and waved smaller flags of their own.

For months, it had been uncertain whether Congress would approve new funding for Ukraine, even as momentum shifted in Moscow’s favor. That prompted a wave of anxiety in Kyiv and in Europe that the United States, the single biggest provider of military aid to Ukraine, would turn its back on the young democracy.

And it raised questions about whether the political turmoil that has roiled the United States had effectively destroyed what has long been a strong bipartisan consensus in favor of projecting American values around the world. The last time the Congress approved a major tranche of funding to Ukraine was in 2022, before Republicans took control of the House.

With an “America First” sentiment gripping the party’s voter base, led by Mr. Trump, Republicans dug in last year against another aid package for Kyiv, saying the matter should not even be considered unless Mr. Biden agreed to stringent anti-immigration measures. When Senate Democrats agreed earlier this year to legislation that paired the aid with stiffer border enforcement provisions, Mr. Trump denounced it and Republicans rejected it out of hand.

But after the Senate passed its own $95 billion emergency aid legislation for Ukraine, Israel and Taiwan without any immigration measures, Mr. Johnson began — first privately, then loudly — telling allies that he would ensure the U.S. would send aid to Kyiv.

In the end, even in the face of an ouster threat from ultraconservative members, he circumvented the hard-line contingent of lawmakers that once was his political home and relied on Democrats to push the measure through. It was a remarkable turnabout for a right-wing lawmaker who voted repeatedly against aid to Ukraine as a rank-and-file member, and as recently as a couple of months ago declared he would never allow the matter to come to a vote until his party’s border demands were met.

In the days leading up to the vote, Mr. Johnson began forcefully making the case that it was Congress’s role to help Ukraine fend off the advances of an authoritarian. Warning that Russian forces could march through the Baltics and Poland if Ukraine falls, Mr. Johnson said he had made the decision to advance aid to Kyiv because he “would rather send bullets to Ukraine than American boys.”

“I think this is an important moment and important opportunity to make that decision,” Mr. Johnson told reporters at the Capitol after the votes. “I think we did our work here and I think history will judge it well.”

Mr. Johnson structured the measures, which were sent to the Senate as one bill, to capture different coalitions of support without allowing opposition to any one element to defeat the whole thing.

“I’m going to allow an opportunity for every single member of the House to vote their conscience and their will,” he had said.

In a nod to right-wing demands, Mr. Johnson allowed a vote just before the foreign aid bills on a stringent border enforcement measure, but it was defeated after failing to reach the two-thirds majority needed for passage. And the speaker refused to link the immigration bill to the foreign aid package, knowing that would effectively kill the spending plan.

His decision to advance the package infuriated the ultraconservatives in his conference who accused Mr. Johnson of reneging on his promise not to allow a vote on foreign aid without first securing sweeping policy concessions on the southern border. It prompted two Republicans, Representatives Thomas Massie of Kentucky and Paul Gosar of Arizona to join a bid by Representative Marjorie Taylor Greene of Georgia to oust Mr. Johnson from the top job.

Ms. Greene claimed the Ukraine aid bill supported “a business model built on blood and murder and war in foreign countries.”

“We should be funding to build up our weapons and ammunition, not to send it over to foreign countries,” she said before her proposal to zero out the money for Kyiv failed on a vote of 351 to 71.

Much of the funding for Ukraine is earmarked to replenish U.S. stockpiles after shipping supplies to Kyiv.

Since Russia’s invasion in 2022, Congress has appropriated $113 billion in funding to support Ukraine’s war effort. $75 billion was directly allocated to the country for humanitarian, financial and military support, and another $38 billion in security assistance-related funding was spent largely in the United States, according to the Institute for Study of War , a Washington-based research group.

Hard-right Republican opposition to the legislation — both on the House floor and in the critical Rules panel — forced Mr. Johnson to rely on Democrats to push the legislation across the finish line.

“If Ukraine does not receive this support that it requires to defeat Russia’s outrageous assault on its sovereign territory, the legacy of this Congress will be the appeasement of a dictator, the destruction of an allied nation and a fractured Europe,” said Representative Rosa DeLauro of Connecticut, the top Democrat on the Appropriations Committee. “Gone will be our credibility, in the eyes of our allies and of our adversaries. And gone will be the America that promised to stand up for freedom, democracy, and human rights, wherever they are threatened or wherever they are under attack.”

Thirty-seven liberal Democrats opposed the $26 billion aid package for Israel because the legislation placed no conditions on how Israel could use American funding, as the death toll in Gaza has reached more than 33,000 and the threat of famine looms. That showed a notable dent in the longstanding ironclad bipartisan backing for Israel in Congress, but was a relatively small bloc of opposition given that left-wing lawmakers had pressed for a large “no” vote on the bill to send a message to Mr. Biden about the depth of opposition within his political coalition to his backing for Israel’s tactics in the war.

“Sending more weapons to the Netanyahu government will make the U.S. even more responsible for atrocities and the horrific humanitarian crisis in Gaza which is now in a season of famine,” said Representative Jonathan L. Jackson, Democrat of Illinois.

Carl Hulse , Annie Karni , and Kayla Guo contributed reporting from Washington and Marc Santora from Kyiv.

Catie Edmondson covers Congress for The Times. More about Catie Edmondson

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