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हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Essay on River जिससे हम हिंदी में नदी पर निबंध कहते है। इस आर्टिकल में आप नदी के बारे में बहुत कुछ ऐसी बातो को जानेंगे जो बहुत ही काम लोगो को पता है। आज हम आपको Essay on River in Hindi यानि नदी पर निबंध के बारे में बताएँगे तो अगर आप अपने बच्चे के लिए इस टॉपिक पर निबंध ढूंढ रहे है तो यह आपके बच्चे के होमवर्क में बहुत मदद करेगा।
मेरा नाम नदी है, मैं जहाँ से भी गुजर जाती हैं, वहाँ की धरती, पशु-पक्षी, खेल-खलिहानों आदि सब की प्यास-बुझा देती हूँ। मेरे आगमन से उनकी प्यास बुझ जाती है और वे फिर से हरे-भरे हो जाते हैं। समय-समय पर मेरे अनेक नाम पड़ गए हैं। नदी, नहर, तटिनी, सरिता, क्षिप्रा आदि मेरे ही नाम हैं। मैं तेज प्रवाह से बहती हैं, इसीलिए लोग मुझे प्रवाहिनी कहते हैं और बहते समय मैं ‘सर-सर’ की ध्वनि करती हैं, इसलिए लोग मुझे सरिता कहते हैं।
उद्गम तथा विकास :
मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। बचपन से ही मैं चंचल प्रवृत्ति की थी, तभी तो मैं एक स्थान पर टिक ही नहीं सकती तथा मैं बहती ही रहती हैं। जब मैं गति से आगे बढ़ती हैं तो रास्ते में पड़े पत्थर, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ इत्यादि भी मुझे नहीं रोक पाते। अनेक बार तो बड़े-बड़े शिलाखण्ड आकर मेरा रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन मैं पूरी शक्ति लगाकर उन्हें पार करती हुई आगे बढ़ जाती हैं। जहाँ-जहाँ से मैं गुजरी मेरे किनारों को तट का नाम दे दिया गया। मैदानी इलाकों में मेरे तटों में आस-पास छोटी-बड़ी अनेक बस्तियाँ स्थापित होती गई। मेरे जल से सिंचाई कार्य होने लगा तथा प्यासे जीव-जन्तुओं की प्यास बुझने लगी। लोगों ने अपनी आवश्यकतानुसार मेरे ऊपर पुल भी बना लि
खुशहाली का कारण :
मैं देश की खुशहाली के लिए सदैव अप सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहती हूँ। मेरे पानी को बिजली पैदा करने के लिए काम में लाया गया और बिजली से अनेक उपकरण चलाए जाते हैं। मैं सभी के इतने काम आती हैं लेकिन अहंकार मुझे छू तक भी नहीं गया है। मैं तो प्रसन्नता का अनुभव करती हूँ जब मेरा अंग-अंग समाज के हित में लगता है। पूरी धरती ही मेरा परिवार है, मैं तो ऐसा ही हैं।
सागर से मिलन :
लेकिन मैं भी तो थक जाती हैं। इसलिए अब मैं अपने प्रिय सागर से मिलकर उसमें अपने आप को समाने जा रही हूँ। मैंने इस लम्बी यात्रा के बीच में अनेक घटनाएँ घटती देखती हैं। मेरे ऊपर बने पुलों में से सैनिकों की टोलियाँ, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं, राजा-महाराजाओं आदि को गुजरते हुए देखा है। मैंने तो कितनी ही बस्तियाँ बसते और उजड़ते हुए देखी है। यही तो है मेरी सुख-दुख से भरी आत्मकथा। ।
मैं तो अपना पूरा जीवन मानव-सेवा के लिए अर्पित कर चुकी हैं, लेकिन मुझे दुखै तब होता है, जब लोग मुझे प्रदूषित कर देते हैं। कूड़ा-कचरा मेरे अन्दर डालकर लोग मुझे गंदा करते हैं। फिर भी मैं अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकेंगी और सदा मानव सेवा में बहती रहूँगी।
नदी की आत्मकथा मैं नदी हूं। मेरे कितने ही नाम हैं जैसे नदी, नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, क्षिप्रा आदि। ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए हैं। सर-सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत् प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है। इसी प्रकार दो तटों के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूं।
साधारण रूप में मैं नहर या नदी हूं। मेरा नित्यप्रति का काम है कि मैं जहां भी जाती हूं वहां की धरती, पशु-पक्षी, मनुष्यों व खेत-खलिहानों आदि की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूं तथा उन्हें हरा-भरा करती रहती हूं। इसी में मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है।
आज मैं जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूं वैसी मैं सदैव से नहीं हूं। प्रारम्भ में तो मैं बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप, अनजान और निर्जीव-सी पड़ी रहती थी। कुछ समय पश्चात् मैं एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढ़ती गई। जब मैं तेजी से आगे बढ़ने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर-उधर बिखरे पत्थरों ने, वनस्पतियों ने, पेड़-पौधों ने रोकना चाहा तो भी मैं न रूकी। कई बार तो मेरी राह में अनेक बड़े-बड़े शिलाखण्ड आ जाते और मेरा पथ रोकने की कोशिश करते परन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति को संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती।।
इस प्रकार पहाड़ों, जंगलों को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुंची। जहां-जहां से मैं गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योंकि मेरा विस्तार होता जा रहा था। मैदानी इलाके में मेरे तटों के आस-पास छोटी-बड़ी बस्तियां स्थापित होती गई। वहीं अनेक गांव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती-बाड़ी की जाने लगी। लोगों ने अपनी सुविधा के लिए मुझ पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।
डलनी सब बाधाओं को पार करते हुए चलते रहने से अब मैं थक गई है तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमें समाने जा रही हूं। मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएं घटते हुए देखी हैं। सैनिकों की टोलियां, सेनापतियों, राजा-महाराजाओं, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है। पुरानी बस्तियां ढहती हुई तथा नई बस्तियां बनती हुई देखी हैं। यही है मेरी आत्मकथा।।
मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है। मैं आप सभी से यह कहना चाहती हूं कि आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो।।
नदियाँ जीवित प्राणियों को प्रकृति के द्वारा दिए गए उपहारों में से एक हैं। नदियों का धरती पर वही स्थान है जो मानव शरीर में धमनियों का है। धमनियाँ खून को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं तो नदियाँ जल को सभी जीवों के लिए सुलभ बनाती हैं। कल-कल करती नदी की धारा का दृश्य हमें सुख और संतोष प्रदान करता है। जीव-समुदाय इसके जल को पीकर अपनी प्यास बुझाता है। इससे फ़सल सींचे जाते हैं।
मनुष्य इस जल से नहाने-धोने का कार्य करते हैं। आधुनिक युग में नदी जल को रोककर बाँधों का निर्माण किया गया है जो जल की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता को भी पूर्ण करता है। इन सब बातों को देखते हुए नदियों की सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। नदी जल की निर्मलता को बनाए रखने की चेष्टा की जानी चाहिए। नदियों में प्रदूषण को कम करने के लिए चहुंमुखी प्रयास करने चाहिए।
गंगा भारत की नदी है। यह हिमालय से निकलती है और बंगाल की घाटी में विसर्जित होती है। यह निरंतर प्रवाहमयी नदी है। यह पापियों का उद्धार करने वाली नदी है। भारतीय धर्मग्रंथों में इसे पवित्र नदी माना गया है और इसे माता का दर्जा दिया गया। है। गंगा केवल नदी ही नहीं, एक संस्कृति है। गंगा नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थों का निवास है।
गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। गंगा का यह नाम राजा भगीरथ के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पुत्र थे। शापवश उनके सभी पुत्र भस्म हो गए थे। तब राजा ने कठोर तपस्या की। इसके फलस्वरूप गंगा शिवजी की। जटा से निकलकर देवभूमि भारत पर अवतरित हुई। इससे भगीरथ के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ। तब से लेकर गंगा अब तक न जाने कितने पापियों का उद्धार कर चुकी है। लोग यहाँ स्नान करने आते हैं। इसमें मृतकों के शव बहाए जाते हैं। इसके तट पर शवदाह के कार्यक्रम होते हैं। गंगा तट पर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के कार्यक्रम चलते ही रहते हैं।
गंगा हिमालय में स्थित गंगोत्री नामक स्थान से निकलती है। हिमालय की बर्फ । पिघलकर इसमें आती रहती है। अत: इस नदी में पूरे वर्ष जल रहता है। इस सदानीरा नदी का जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है। करोड़ों पशु-पक्षी इसके जल पर निर्भर हैं। लाखों एकड़ जमीन इस जल से सिंचित होती है। गंगा नदी पर फरक्का आदि कई | बाँध बनाकर बहुउद्देशीय परियोजना लागू की गई है।
अपने उद्गम स्थान से चलते हुए गंगा का जल बहुत पवित्र एवं स्वच्छ होता है। हरिद्वार तक इसका जल निर्मल बना रहता है। फिर धीरे-धीरे इसमें शहरों के गंदे नाले का जल और कूड़ा-करकट मिलता जाता है। इसका पवित्र जल मलिन हो जाता है। इसकी मलिनता मानवीय गतिविधियों की उपज है। लोग इसमें गंदा पानी छोड़ते हैं। इसमें सड़ी-गली पूजन सामग्रियाँ डाली जाती हैं। इसमें पशुओं को नहलाया जाता है। और मल-मूत्र छोड़ा जाता है।
इस तरह गंगा प्रदूषित होती जाती है। वह नदी जो हमारी पहचान है, हमारी प्राचीन सभ्यता की प्रतीक है, वह अपनी अस्मिता खो रही है। गंगा जल में अनेक विशेषताएँ हैं। इसका जल कभी भी खराब नहीं होता है। बोतल में वर्षों तक रखने पर भी इसमें कीटाणु नहीं पनपते। हिन्दू लोग गंगा जल से पूजा-पाठ करते हैं। गंगा तट पर बिखरी चिकनी मिट्टी ‘मृतिका’ से दंतमंजन बनाए जाते हैं। लोग इससे तिलक करते हैं।
गंगा तट पर अनेक तीर्थ हैं। बनारस, काशी, प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार आदि इनमें प्रमुख हैं। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। यहाँ प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ का विशाल मेला लगता है। लोग बड़ी संख्या में यहाँ आकर संगम स्नान करते हैं। बनारस और काशी में तो पूरे वर्ष ही भक्तों का समागम होता है। पवित्र तिथियों पर लोग निकटतम गंगा घाट पर जाकर स्नान करते हैं और पण्य लाभ अर्जित करते हैं। विभिन्न अवसरों पर यहाँ मेले लगा करते हैं।
गंगा अपना रूप बदलती रहती है। आरंभ में यह सिकुड़ी सी होती है पर मैदानी भागों में इसका तट चौड़ा हो जाता है। चौडे तटों के इस पार से उस पार जाने के लिए नौकाएँ एवं स्टीमर चलती हैं। गंगा नदी पर अनेक स्थानों पर लंबे पुल भी बनाए गए हैं। इससे परिवहन सरल हो गया है।
गंगा नदी अपने तटवर्ती क्षेत्रों की भूमि को उपजाऊ बनाकर चलती है। भूमि को यह सींचती भी है। अत: कृषि की समृद्धि में इसका बहुत योगदान है। जैसे-जैसे गंगा नदी आगे बढ़ती है, उसमें कई नदियाँ मिलती जाती हैं। इसकी धारा वेगवती होती जाती है। वर्षा ऋतु में तो इसमें कई स्थानों पर बाढ़ आ जाती है। बाढ़ से फ़सलों और संपत्ति की भारी हानि होती है। अंत में यह बंगाल में घसती है। यहाँ इसकी धारा सस्त पड जाती है जिससे बेसिन का निर्माण होता है। फिर यह बंगाल की खाड़ी (समुद्र) में समा जाती है। इस प्रकार गंगा नदी की यात्रा समाप्त हो जाती है।
गंगा नदी का भारतीय संस्कृति में अन्यतम स्थान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया है। गंगा की सफ़ाई के लिए कुछ कार्ययोजनाएँ भी बनाई गई हैं। लोगों को इसमें सहभागिता करनी चाहिए। गंगा जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए।
नदियाँ संसार की महान सभ्यताओं और संस्कृतियों की जननी है। संसार की सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। प्रागैतिहासिक काल से ही नदियाँ मानव को अनेक रूपों से उपकृत करती आयी है। यदि नदियाँ न होती तो कदाचित् मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास भी नहीं होता।
यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में पो, राइन,सीन और एड्रियेटिक सागर का महत्वपूर्ण योगदान है। इजीप्ट की सभ्यता और संस्कृति का विकास नील नदी के किनारे ही हुआ। भारतवर्ष में सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास भी नदी के किनारे ही हुआ था। आज भी बड़े-बड़े औद्योगिक नगर नदियों के किनारे ही अवस्थित हैं।
प्राचीन काल में यातायात के साधनों का अभाव था। उस समय | नदियों के रास्ते ही आवागमन होता था। वाणिज्य-व्यापार, संस्कृति, कला | के साथ-साथ नदियाँ बड़े-बड़े आक्रमणों का भी श्रोत बनी। आज भी बड़े-बड़े मालवाहक जहाज नदियों के रास्ते ही आयात-निर्यात के सस्ते और सुलभ साधन बने हुए हैं। नदियों का व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण उपयोग है।
बड़े-बड़े औद्योगिक शहरों का विकास नदी किनारे अवस्थित होने के कारण ही हुआ। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, वाराणसी, कानपुर, चेन्नई, पटना आदि शहर नदी के किनारे ही अवस्थित हैं। इसका कारण यह है कि नदियों में दूषित जल का आसानी से उत्सर्जन किया जा सकता है और पानी के नियमित बहाव के कारण कृडे-कचरे इकट्टे नहीं हो पाते। साथ ही नदियों के जल को स्वच्छ बनाकर पेय जल के रूप में आसानी से परिणत किया जाता है। फलतः पेय जल का संकट उतना नहीं रह जाता। बड़े-बड़े उद्योगों जैसे चमड़ा, जूट आदि के लिए पानी की।
अधिक आवश्यकता होती है। जो नदियों से आसानी से उपलब्ध होता है। फलतः इन उद्योगों के विकास में नदिया प्रमुख कारक तत्व है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए नदियों का महत्व अविस्मरणीय और अवर्णनीय हैं। भारत की कृषि व्यवस्था में सिंचाई का मुख्य आधार नदियों द्वारा प्राप्त जल है। यदि नदियों के जल के रख रखाव की समुचित व्यवस्था की जाय तो इससे न केवल सिंचाई की समस्या हल होगी अपितु धरती की निचली सतह में व्याप्त जल स्तर को भी बढ़ाया जा सकता है।
आधुनिक समय में नदियों की जल धारा से विद्युत पैदा किया जाता है जो आज ऊर्जा का प्रधान साधन है। साथ ही आर्थिक प्रगति में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
इसके अतिरिक्त नदियों में जलक्रीड़ा के आयोजन भी किए जाते हैं। नदी के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य की भव्य छटा के मध्य उद्यानों का निर्माण भी किया गया है जो हमें कई प्रकार से आह्लादित करते है। आधुनिक समय में बड़े शहरों में सड़क यातायात वाहनों की बहुलता के कारण व्यस्त और दुरूह होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में नदियों के रास्ते आसानी से यात्रा का आनन्द लिया जाता है। इस प्रकार आर्थिक, व्यवसायिक, सांस्कृतिक आदि सभी दृष्टियों से नदियाँ मानव समाज को निर्मित और विकसित करती आयी है। सभ्यता, संस्कृति आदि की प्रगति के लिए मानवीय समाज नदियों का ऋणी है।
मैं नदी हूँ। मेरे कितने ही नाम हैं जैसे नदी, नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी क्षिप्रा आदि। ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए हैं। सर-सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत् प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है। इसी प्रकार दो तटों के बीच में बहने के कारणं तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ। साधारण रूप में मैं नहर या नदी हूँ।
मेरा नित्यप्रति का काम है कि मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती, पशु-पक्षी, मनुष्यों व खेत-खलिहानों आदि की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हैं तथा उन्हें हरा-भरा करती रहती हैं। इसी में मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है।
आज मैं जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हैं वैसी मैं सदैव से नहीं हैं। प्रारम्भ में तो मैं बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप, अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी। कुछ समय पश्चात् मैं एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढ़ती गई। जब मैं तेजी. से आगे बढ़ने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर-उधर बिखरे पत्थरों ने, वनस्पतियों, पेड़-पौधों ने रोकना चाहा तो भी मैं न रुकी। कई बार तो मेरी राह में अनेक बड़े-बड़े शिलाखण्ड आ जाते और मेरा पथ रोकने की कोशिश करते परन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति को संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती।
इस प्रकार पहाड़ों, जंगलों को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची। जहाँ-जहाँ से मैं गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योंकि मेरा विस्तार | होता जा रहा था। मैदानी इलाके में मेरे तटों के आस-पास छोटी-बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई। वहीं अनेकों गाँव बसते गए। मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी। लोगों ने अपनी सुविधा के लिए मुझ पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है।
इतनी सब बाधाओं को पार करते हुए चलते रहने से अब मैं थक गई हूँ तथा | अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमें समाने जा रही हैं। मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी हैं। सैनिकों की टोलियाँ, सेनापतियों, राजा-महाराजाओं, राजनेताओं, डाकुओं, साधु-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है। पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी हैं। यही है मेरी आत्मकथा।।
मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सही है। मैं आप सभी से यह कहना चाहती हैं कि आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो।
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2 thoughts on “ essay on river in hindi – नदी पर निबंध @ 2019 ”.
बोहोत ही अच्छा लिखे है आपने।
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गंगा नदी पर निबंध / Essay on River Ganga in Hindi!
गंगा भारत की नदी है । यह हिमालय से निकलती है और बंगाल की घाटी में विसर्जित होती है । यह निरंतर प्रवाहमयी नदी है । यह पापियों का उद्धार करने वाली नदी है । भारतीय धर्मग्रंथों में इसे पवित्र नदी माना गया है और इसे माता का दर्जा दिया गया है । गंगा केवल नदी ही नहीं, एक संस्कृति है । गंगा नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थों का निवास है ।
गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है । गंगा का यह नाम राजा भगीरथ के नाम पर पड़ा । कहा जाता है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पुत्र थे । शापवश उनके सभी पुत्र भस्म हो गए थे । तब राजा ने कठोर तपस्या की । इसके फलस्वरूप गंगा शिवजी की जटा से निकलकर देवभूमि भारत पर अवतरित हुई ।
इससे भगीरथ के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ । तब से लेकर गंगा अब तक न जाने कितने पापियों का उद्धार कर चुकी है । लोग यहाँ स्नान करने आते हैं । इसमें मृतकों के शव बहाए जाते हैं । इसके तट पर शवदाह के कार्यक्रम होते हैं । गंगा तट पर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के कार्यक्रम चलते ही रहते हैं ।
गंगा हिमालय में स्थित गंगोत्री नामक स्थान से निकलती है । हिमालय की बर्फ पिघलकर इसमें आती रहती है । अत: इस नदी में पूरे वर्ष जल रहता है । इस सदानीरा नदी का जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है । करोड़ों पशु-पक्षी इसके जल पर निर्भर हैं । लाखों एकड़ जमीन इस जल से सिंचित होती है । गंगा नदी पर फरक्का आदि कई बाँध बनाकर बहुउद्देशीय परियोजना लागू की गई है ।
अपने उद्गम स्थान से चलते हुए गंगा का जल बहुत पवित्र एवं स्वच्छ होता है । हरिद्वार तक इसका जल निर्मल बना रहता है । फिर धीरे- धीरे इसमें शहरों के गंदे नाले का जल और कूड़ा-करकट मिलता जाता है । इसका पवित्र जल मलिन हो जाता है । इसकी मलिनता मानवीय गतिविधियों की उपज है । लोग इसमें गंदा पानी छोड़ते हैं । इसमें सड़ी-गली पूजन सामग्रियाँ डाली जाती हैं । इसमें पशुओं को नहलाया जाता है और मल-मूत्र छोड़ा जाता है । इस तरह गंगा प्रदूषित होती जाती है । वह नदी जो हमारी पहचान है, हमारी प्राचीन सभ्यता की प्रतीक है, वह अपनी अस्मिता खो रही है ।
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गंगा जल में अनेक विशेषताएँ हैं । इसका जल कभी भी खराब नहीं होता है । बोतल में वर्षों तक रखने पर भी इसमें कीटाणु नहीं पनपते । हिन्दू लोग गंगा जल से पूजा-पाठ करते हैं । गंगा तट पर बिखरी चिकनी मिट्टी ‘ मृतिका ‘ से दंतमंजन बनाए जाते हैं । लोग इससे तिलक करते हैं ।
गंगा तट पर अनेक तीर्थ हैं । बनारस, काशी, प्रयाग ( इलाहाबाद). हरिद्वार आदि इनमें प्रमुख हैं । प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है । यहाँ प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ का विशाल मेला लगता है । लोग बड़ी संख्या में यहाँ आकर संगम स्नान करते हैं । बनारस और काशी में तो पूरे वर्ष ही भक्तों का समागम होता है । पवित्र तिथियों पर लोग निकटतम गंगा घाट पर जाकर स्नान करते हैं और पुण्य लाभ अर्जित करते हैं । विभिन्न अवसरों पर यहाँ मेले लगा करते हैं ।
गंगा अपना रूप बदलती रहती है । आरंभ में यह सिकुड़ी सी होती है पर मैदानी भागों में इसका तट चौड़ा हो जाता है । चौड़े तटों के इस पार से उस पार जाने के लिए नौकाएँ एवं स्टीमर चलती हैं । गंगा नदी पर अनेक स्थानों पर लंबे पुल भी बनाए गए हैं । इससे परिवहन सरल हो गया है ।
गंगा नदी अपने तटवर्ती क्षेत्रों की भूमि को उपजाऊ बनाकर चलती है । भूमि को यह सींचती भी है । अत: कृषि की समृद्धि में इसका बहुत योगदान है । जैसे-जैसे गंगा नदी आगे बढ़ती है, उसमें कई नदियों मिलती जाती हैं । इसकी धारा वेगवती होती जाती है । वर्षा ऋतु में तो इसमें कई स्थानों पर बाढ़ आ जाती है । बाढ़ से फसलों और संपत्ति की भारी हानि होती है । अंत में यह बंगाल में घुसती है । यहाँ इसकी धारा सुस्त पड़ जाती है जिससे बेसिन का निर्माण होता है । फिर यह बंगाल की खाड़ी (समुद्र) में समा जाती है । इस प्रकार गंगा नदी की यात्रा समाप्त हो जाती है ।
गंगा नदी का भारतीय संस्कृति में अन्यतम स्थान है । इसलिए इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया है । गंगा की सफाई के लिए कुछ कार्ययोजनाएँ भी बनाई गई हैं । लोगों को इसमें सहभागिता करनी चाहिए । गंगा जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए ।
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नोट- UPSC 2023 परीक्षा नजदीक आ रही है , इसलिए आप अपनी तैयारी को बढ़ाने के लिए BYJU’S के The Hindu Newspaper के दैनिक वीडियो विश्लेषण का उपयोग करें।
भारत की अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में गिराती हैं। कुछ नदियां देश के पश्चिमी भाग से होकर बहती हैं और अरब सागर में मिल जाती हैं। अरावली पर्वतमाला के उत्तरी भाग, लद्दाख के कुछ भाग और थार मरुस्थल के शुष्क क्षेत्रों में अंतर्देशीय जल निकासी है। भारत की सभी प्रमुख नदियां तीन मुख्य जलसंभरों में से एक से निकलती हैं। ये जलसंभर हैं –
नदी प्रणाली | कुल लंबाई | भारत में लंबाई |
सिंधु नदी प्रणाली | 3180 किमी | 700 किमी |
ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली | 2900 किमी | 916 किमी |
गंगा नदी प्रणाली | 2510 किमी | 2510 किमी |
यमुना नदी प्रणाली | 1376 किमी | 1376 किमी |
नर्मदा नदी तंत्र | 1312 किमी | 1312 किमी |
तापी नदी प्रणाली | 724 किमी | 724 किमी |
गोदावरी नदी प्रणाली | 1465 किमी | 1465 किमी |
कृष्णा नदी प्रणाली | 1400 किमी | 1400 किमी |
कावेरी नदी प्रणाली | 805 किमी | 805 किमी |
महानदी नदी तंत्र | 851 किमी | 851 किमी |
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में त्संगपो के नाम से जाना जाता है। यहां इसे पानी काफी कम मात्रा में प्राप्त होता है इसलिए तिब्बत क्षेत्र में इसमें कम गाद होती है। लेकिन भारत में, ब्रह्मपुत्र नदी भारी वर्षा के क्षेत्र से होकर गुजरती है, और इस तरह, ब्रह्मपुत्र नदी वर्षा के दौरान बड़ी मात्रा में पानी और महत्वपूर्ण मात्रा में गाद बहाती है। यह आयतन की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक मानी जाती है। यह असम और बांग्लादेश में आपदा पैदा करने के लिए भी जानी जाती है।
भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड में, विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग नाम के पंच प्रयाग हैं। उत्तराखंड के ये प्रसिद्ध पंच प्रयाग यहां की मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं। भारत में नदियों को देवी का रूप माना जाता है, इसलिए नदियों के संगम को बहुत ही पवित्र माना जाता है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयाग को भारत में बहुत पवित्र माना गया है। प्रयाग के बाद गढ़वाल क्षेत्र के संगमों को सबसे पवित्र माना गया है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जिस जगह नदियों का संगम होता है उसे प्रमुख तीर्थ स्थल के रुप में माना जाता है। इन स्थलों पर कई संस्कार भी किए जाते हैं।
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गंगा की प्रमुख सहायक नदियां- यमुना, दामोदर, सप्त कोसी, राम गंगा, गोमती, घाघरा और सोन नदी हैं। गंगा नदी अपने स्रोत से 2525 किमी की दूरी तय करने के बाद बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
नोट: आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुडें , यहां हम प्रमुख जानकारियों को आसान तरीके से समझाते हैं।
कावेरी नदी में कितने बांध हैं.
कावेरी नदी पर कर्नाटक में चार प्रमुख बांध है- कृष्णा राजा सागर (केआरएस), काबिनी, हरंगी और हेमवती हैं।
कावेरी एक बारहमासी नदी है क्योंकि कावेरी की निचली पहुंच नमी युक्त उत्तर-पूर्वी मानसूनी हवाओं के मार्ग में पड़ती है। अधिकांश अन्य प्रायद्वीपीय नदियों में केवल दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान पानी आता है।
वनों की कटाई, सिंचाई और कृषि परियोजनाओं ने पश्चिमी घाट के जंगलों को खत्म कर दिया है। इसलिए यहां की मिट्टी, अपने अंदर पानी को बनाए रखने की अपनी क्षमता खो चुकी है। नतीजतन नदी सूखती जा रही है।
गंगा नदी प्रणाली, भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। सिंधु बेसिन में ग्लेशियरों की सबसे बड़ी संख्या (3500) है, जबकि गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में क्रमशः लगभग 1000 और 660 ग्लेशियर हैं।
भारतीय नदियों को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है – हिमालयी नदियां और प्रायद्वीपीय नदियां।
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In this article, we are providing 10 Lines on River in Hindi for students and kids for classes 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12. हिंदी में नदी पर 10 वाक्य | पंक्तियाँ, Short essay on river in hindi 10 lines.
( Set-1 ) 10 Lines on River in Hindi for kids
1. नदी एक प्रकृति रूप से बहने वाला जल है।
2. यह जल का एक सामान्य स्त्रोत है।
3. यह पहाड़ो से निकलती है।
4. नदियों का जल बहुत स्वच्छ होता है।
5. जंगलो मे जानवर नदी के पानी से प्यास बुझाते है।
6. कृषि कार्यो मे भी इसका प्रयोग किया जाता है।
7. लोग इसमें कपडे धोते है और स्नान करते है।
8. गाँव मे रहने वाले लोग पूरी तरह नदियों के जल पर निर्भर रहते है।
9. गंगा , यमुना , कावेरी, कृष्णा आदि भारत की प्रसिद्ध नदियाँ है।
10. हमे नदियों को दूषित होने से बचाना चाहिए।
जरूर पढ़े-
Essay on Nadi Ki Atmakatha in Hindi
Essay on Waterfall in Hindi
( Set-2 ) 10 Lines on River in Hindi for kids
1. भारत में नदियों को भगवान का दर्जा दिया गया है।
2. नदी,पानी का एक बहुत बड़ा संसाधन है, जो हमारे बहुत से कामों में आता हैं।
3. नदियों से हमे पीने के लिए साफ़ पानी और खेतों के लिए सिंचाई का पानी भी मिलता है।
4. नदियों के तेज धाराओं से बिजली भी बनाई जाती है।
5. इस दुनियाँ की सबसे लंबी नदी का नाम नील है
6. जब पर्वतों पर जमी बर्फ पिघलती हैं तब वो नदियों का रूप ले लेती हैं।
7. नदियों में बहुत अलग अलग प्रकार के जीव जन्तु भी रहते हैं।
8. आज के समय में लोग नदियों को बहुत ही ज्यादा प्रदूषित कर रहे है।
9. नदियों के बीना हमारा जीवन इस धरती पर संभव नहीं है।
10. जिस देश में नदियों का अभाव होता है, उस देश में कभी भी पूर्ण रूप से हरियाली नही आती।
Water is Life Essay in Hindi
10 Lines on Save Water in Hindi
Save Water Essay in Hindi
इस लेख के माध्यम से हमने Ten lines on River in Hindi Essay का वर्णन किया है और आप यह article को नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।
Nadi ke bare mein 10 line lines on river in hindi River par lines
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Narmada river essay in hindi.
दोस्तों कैसे हैं आप सभी, दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं भारत की पांचवीं सबसे बड़ी नदी नर्मदा नदी के बारे में। आप इसे जरूर पढ़ें और नर्मदा नदी के बारे में पूरी जानकारी लें तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस लिखित लेख को
नर्मदा नदी भारत की पांचवीं सबसे बड़ी नदी मानी जाती है, नर्मदा नदी को रेवा भी कहा जाता है। नर्मदा नदी का जन्म दिवस माघ शुक्ल की सप्तमी को होता है इनके जन्म दिवस को हम सभी नर्मदा जयंती महोत्सव के रूप में काफी धूमधाम से मनाते हैं। भारत देश की 4 नदियों को चार वेदों के रूप में जाना जाता है इसी तरह नर्मदा नदी को सामवेद के रूप में जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि नर्मदा नदी के तट पर कार्तवीर्य अर्जुन ने रावण को हरा दिया था। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक है यह अमरकंटक मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में है, अमरकंटक एक ऐसा तीर्थ स्थल है जहां पर तरह-तरह के प्रसिद्ध मंदिर है एवं वहां का वातावरण वास्तव में हम सभी को जरूर देखने जाना चाहिए।
कई पर्यटक वहां के रमणीय वातावरण एवं तीर्थ स्थलों को देखने के लिए आते हैं। अमरकंटक शुरू से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है ऐसा कहा जाता है कि अमरकंटक के एक कुंड से ही नर्मदा नदी का उद्गम हुआ वास्तव में नर्मदा नदी का उद्गम स्थल काफी प्रसिद्ध है।
नर्मदा नदी के इस उद्गम स्थल तक पहुंचने के लिए आप अलग-अलग मार्गों से जा सकते हैं। यदि आप सड़क मार्ग से यहां जाना चाहते हैं तो यह मार्ग मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की सड़कों से जुड़ा हुआ है।
सबसे अच्छा मार्ग बिलासपुर की सड़क से होते हुए जाता है जो बहुत ही अच्छा है इसी तरह यदि आप रेल मार्ग के द्वारा जाना चाहते हैं तो आप बिलासपुर के रेलवे स्टेशन से अमरकंटक की ओर जा सकते हैं। नर्मदा नदी एक पवित्र नदी है यह हमारे पापों को दूर करती है। हम सभी नर्मदा नदी की पूजा अर्चना करते हैं।
नर्मदा नदी को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है हमारे भारत देश में प्रमुख 7 नदियां हैं इनमें से नर्मदा नदी भी एक प्रमुख नदी है, जो काफी प्रसिद्ध है। नर्मदा नदी के उद्गम स्थल को देखने के लिए श्रद्धालु सिर्फ भारत से ही नहीं विदेशों से भी आते हैं।
अमरकंटक काफी प्रसिद्ध स्थल है हम सभी को अपने जीवन काल में यहां पर दर्शन करने के लिए जरूर जाना चाहिए। नर्मदा जयंती महोत्सव के दिन तो यहां पर और भी बहुत ज्यादा भीड़भाड़ होती है, लोग भारी संख्या में इस दिन दूरदराज से आते हैं और अपने नेत्रों का लाभ उठाते हैं।
नर्मदा नदी के जल से पितरों का तर्पण भी किया जाता है एवं कई तरह की मान्यताएं ऐसी हैं जो मानव जाति के कल्याण के लिए है। ऐसा भी कहा जाता है कि नर्मदा नदी हम सभी की परेशानियों को दूर करती हैं एवं पति पत्नी के दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाने में मदद करती हैं।
जिस व्यक्ति को भी ग्रह दोष होते हैं नर्मदा नदी उनके इन दोषों को दूर करती है वास्तव में नर्मदा नदी एक पवित्र नदी हैं हम सभी को नर्मदा नदी मैं स्नान आदि जरूर करना चाहिए और अपने जीवन में आ रही परेशानियों को दूर करना चाहिए।
नर्मदा नदी एक हिसाब से देखें तो काफी उपयोगी भी है नर्मदा नदी के जल के द्वारा कृषि को सिंचित किया जाता है, ये कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी है।
दोस्तों नर्मदा नदी पर हमारे द्वारा लिखा यह आर्टिकल Narmada river essay in hindi आपको पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें धन्यवाद।
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मीठे मीठे जल का प्रमुख स्रोत नदी है हमारी पृथ्वी में 75% पानी है और 25% भूमि है, जिस पर मनुष्य निवास करता है। खारा पानी हमारे किसी काम का नहीं रोजाना की जरूरतों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हमें मीठे पानी की जरूरत होती है। हम जानते हैं कि मानव शरीर का लगभग एक तिहाई भाग पानी से बना है अर्थात एक मनुष्य को पीने के लिए औसतन 2 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पानी पीने के अलावा नहाने, घर धोने, बर्तन धोने ,कपड़े धोने तथा घर की साफ सफाई के लिए भी हमें जल की आवश्यकता होती है । अर्थात जल ही हमारा जीवन है । केवल मनुष्यों को ही नहीं बल्कि समस्त जीव-जंतुओं को पानी की आवश्यकता होती है ।
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मीठे पानी का मुख्य स्रोत नदी है । नदियों के अलावा तालाब, कुआ और हैंडपंप इत्यादि भी मीठे पानी का स्रोत है । पर इस लेख के माध्यम से हम नदियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे ।
नदियों की उत्पत्ति
नदियों की उत्पत्ति का प्रमुख स्रोत पर्वत है । पर्वतों की चोटी पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलते हैं और नदियों का रूप धारण करते हैं । विश्व का केवल 3% पानी मीठा है जिसका हम उपयोग करते हैं । आइए जानते हैं कि विश्व के प्रमुख पर्वत श्रृंखला और उन से निकलने वाली नदियों के नाम
विक्टोरिया झील | नील नदी | भूमध्य सागर |
पेरू ग्लेसियर | अमेज़ॉन | अटलांटिक महासागर |
रेड रॉक | मिस्सिप्पी | मेक्सिको की खाड़ी |
तिब्बत | चंग जियांग | चीन सागर |
अल्ताई पर्वत | ओब नदी | ओब की खाड़ी |
गंगोत्री | गंगा | बंगाल की खाड़ी |
उराल पर्वत | उराल नदी | केस्पियन सागर |
तिब्बत | सिंधु नदी | अरब सागर |
चम्यायुंग दंग | ब्रम्हपुत्र | गंगा नदी |
वल्दी पठार | वोल्गा नदी | केस्पियन सागर |
नदियों का उद्गम स्थान पर्वत है । पर्वतों से बहते हुए नदी अपने बाल्यावस्था में रहती है। जैसे बालक चंचल होता है उसी प्रकार नदी इस अवस्था में अपनी चंचलता लिए रहती है और जहां जहां इसे ढलान मिलता है । यह अपना मार्ग तय कर लेती है । रास्ते की हर कठिनाइयों का सामना करते हुए खुद अपना मार्ग प्रशस्त करती है । एक नदी की यात्रा यहां से ही शुरू होती है । नदी बहते- बहते अपने दूसरे पड़ाव पर आती है, जहां इसकी धारा बहुत तेज हो जाती है । सबसे अब यह पर्वतों से होकर मैदानों की तरफ आती है और पत्थरों को काटकर तथा मैदानों को चीर कर अपना रास्ता बनाती है । यहां नदियों में थोड़ी स्थिरता आती है । इस समय नदियां अपने यौवन अवस्था तक पहुंचती हैं । तत्पश्चात नदियां विभिन्न शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं तथा अनेक नामों से जानी जाती है । जिस रास्ते से गुजरती है । उस भूमि को उर्वर बनाती हैं । अब नदियां चौड़ी हो जाती हैं तथा उनमें एकदम स्थिरता आ जाती है । इस इस समय नदियां अपने प्रौढ़ावस्था में होती हैं । एक प्रौढ़ व्यक्ति की भांति नदियों में स्थिरता तथा गंभीरता जाती है। वह बिल्कुल शांत हो जाती हैं। इस स्थान पर नदियों का पानी भी बहुत गहरा होता है। इसके बाद नदियां अपने वृद्धावस्था में पहुंचती है और अंततः सागर में समा जाती है ।नदियों की यात्रा कि यह अंतिम पड़ाव होती है। यहां नदियों के मुहाने और अधिक चौड़े हो जाते हैं। नदियों का कल- कल आवाज बिल्कुल शांत हो जाता है और अंततः अपनी यात्रा पूरी करने के बाद यह सागर में विलीन हो जाती है।
विश्व की जितनी भी सभ्यताएं हुई हैं ।सब में एक ही बात सामान्य थी कि यह नदियों के किनारे विकसित हुए । सभ्यताओं के नदियों के किनारे विकसित होने के कारण क्या थे आइए जानते हैं-
1) खेती के लिए पानी की आपूर्ति की सुविधा
2) पीने तथा दूसरे क्रियाकलापों में सुविधा
3) पशुओं को पानी पिलाने तथा तथा नहलाने की सुविधा
4) मिट्टी का उर्वर होना यातायात करने में सुविधा
लोगों ने तब तक तालाब भी बनाना सीख लिया था ,जिसका प्रमाण हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिलता है। नदियां दो प्रकार की होती हैं -पर्वतों के बर्फ पिघल कर निकलने वाली नदियां और बारिश के पानी से निकलने वाली नदियां
पहली नंबर वाली नदियां ही दुनिया में अधिक पाई जाती हैं। नदियां मीठे जल का स्रोत होती है। बरसात के दिनों में नदियों में बाढ़ आना आम बात है, पर बाढ़ चले जाने के बाद नदियां मिट्टी की उर्वरता को बढ़ा देती है। भारत में तो नदियों की पूजा भी की जाती है। नदियां हमारे लिए बेहद उपयोगी मीठे जल का स्रोत है ।सोचिए अगर नदियां ही पूरी धरती से विलुप्त हो जाएं तो क्या होगा ? कल्पना मात्र से भी डर लगता है ना ! मीठे जल का स्रोत धीरे-धीरे घटने लगा है। मीठे पानी का स्तर अब और भी नीचे चला गया है। हमें याद रखना होगा कि मीठा जल केवल 3% ही दुनियाभर में पाया जाता है ।इसलिए इसका उपयोग भी हमें सोच समझ कर करना चाहिए। हम पानी को बगैर सोचे समझे लापरवाही से प्रयोग करते हैं। अक्सर रास्तों में कॉरपोरेशन वाले नल बहते ही रहते हैं ,तब बेहद कष्ट होता है उन लोगों के बारे में सोच कर जिन्हें मीलों का सफर तय करके एक मटका पानी मिलता है ।अभी भी भारत वर्ष में ऐसे राज्य हैं जिन्हें मीठे पानी के लिए को सोचना पड़ता है या सरकारी कॉरपोरेशन के नलों पर घंटों लाइन में लगकर पानी लाना पड़ता है। यह समस्या केवल हमारी आपकी नहीं है, पूरे भारतवर्ष की है। नदियों से हमें काफी कुछ मिला है ।नदियां बहुत से सभ्यताओं की साक्षी रही है। बहुत से महानगर नदियों के किनारे ही विकसित हो गए हैं ।भारत की प्रमुख नदियों के नाम निम्नलिखित है –गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज, गोमती, हुगली, दामोदर, ताप्ती, तीस्ता पद्मा, सिंधु, ब्रम्हपुत्र, नर्मदा तथा कावेरी । आज इस लेख में आप “ 10 Lines on River in Hindi” पढ़ेंगे।
हमें आशा है आप सभी लोगों को River in Hindi पर लिखा यह छोटा सा लेख पसंद आया होगा । आप इस लेख को 10 Lines about River in Hindi के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।
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Question- नदियाँ मीठे जल का मुख्य श्रोत है। कैसे? Ans-हमारी धरती का 75 % भाग खारे जल से भरा है,जो हमारे किसी काम का नहीं। केवल 3% ही मीठा जल पाया जाता है ,जिसका हम प्रयोग करते है। ऊंचे पर्वत श्रृंखला पर जमे हिम से पिघलकर नदियाँ बनती है। नदियाँ हमें पीने का जल से लेकर रोज़मर्रा की सभी ज़रूरतों को पूराकरतीहै। इसलिए नदियाँ ही मीठे पानी का मुख्य श्रोत है।
Question- नदियों का विलय कहाँ होता है? Ans-पर्वतो से निकल नदियाँ मैदानों,पठारों और समतल भूमि से निकलती है। जहाँ भी इसे ढलान मिलता है,ये बहती चली जाती है। नदियाँ केवल पानी ही नहीं धोती, बल्कि छोटे -छोटे पत्थरो के टुकड़े भी धोती है। अपनी लम्बी यात्रा पूरी होने के बाद ये सीधे समुद्र में पहुँचती है।
Question- नदियों की उपयोगिता के बारे में पाँच पंक्तियाँ लिखे। नदियों की उपयोगिता निम्नलिखित है – 1) नदियाँ मीठे पानी का मुख्य श्रोत है। 2)विश्व की जनसँख्या को नदियाँ ही पोषित करती है। 3)नदियों में मीठे जल की मछलियों का वास होता है। इन मछलियों को खाना लाभदायक है। 4)नदियों में कई प्रकार की खेल प्रतियोगताओं का आयोजन किया जाता है। 5)नदियाँ भूमि की नमी को बरक़रार रखती है।
Question- दुनिया की सबसे बड़ी नदी कौन सी है? Ans- दुनिया की सबसे बड़ी नदी अफ्रीका की नील नदी है,जो की विक्टोरिया झील से निकलकर भूमध्य सागर में विलय हो जाती है। इसकी लम्बाई 6650 किलोमीटर है।
Question- गंगा को हिन्दुओं का पवित्र नदी क्यों माना जाता है? Ans- गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है तथा अलग अलग स्थानों में भिन्न -भिन्न नामो से जानी जाती है। ये हिमालय के गंगोत्री से निकलकर हरिद्वार, इलाहबाद, पटना, प्रयागराज, कानपूर, वाराणसी तथा अंत में पश्चिम बंगाल से होते हुए बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। ऐसा माना जाता है की भगीरथ के अथक प्रयास से ये धरती पर आयी। इसकी लम्बाई 2510 किलोमीटर है। हिन्दुओं के हर पूजन में गंगा जल का प्रयोग होता है। कई जगह तो इसकी आरती भी की जाती है। इस जल की विशेषता यह है की इसमें कभी कीड़े नहीं लगते।
भारत में नदियाँ केवल जल स्त्रोत ही नहीं हैं, बल्कि उन्हें ईश्वर और देवी के रूप में पूजा जाता है और पवित्र माना जाता है। इस तरह के सम्मान की स्थिति के बावजूद, नदियों को खुले सीवेज नालियों, पर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की कमी, मिट्टी के कटाव और नदी के पानी में प्लास्टिक के कचरे को डंप करने आदि के कारण प्रदूषित किया जा रहा है, यमुना एक ऐसा उदाहरण जहां सफाई का हर प्रयास विफल रहा है।
यमुना नदी में कभी नीला पानी था, लेकिन अब यह नदी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है, खासकर नई दिल्ली के आसपास का इसका हिस्सा। राजधानी अपना 58% कचरा नदी में बहा देती है। नदी के पानी में खतरनाक दर से प्रदूषक बढ़ रहे हैं। वे दिन दूर नहीं जब दिल्ली के घरों में पहले की तुलना में प्रदूषित पानी होगा। वर्तमान में दिल्ली के 70% लोग यमुना नदी का उपचारित पानी पी रहे है।
दिल्ली सीवेज के 1,900 मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) का उत्पादन कर रही है, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड (DJB) जो सीवेज के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, शहर में उत्पन्न कुल सीवेज का केवल 54 प्रतिशत का संग्रह और उपचार कर रहा है। इसके अलावा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने पाया है कि 32 में से 15 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमताओं से नीचे काम कर रहे हैं।
यह यमुना नदी को पहले से कहीं अधिक तेज गति से प्रदूषित कर रहा है। शहरी आबादी में वृद्धि के अलावा नदी में प्रदूषण भी बढ़ रहा है। वहीं, यमुना के किनारे दिल्ली और शहरों में भूमिगत जल जल प्रदूषण के कारण प्रदूषित हो रहा है। अधिकारियों में से एक द्वारा यमुना नदी को “सीवेज नाली” भी माना जाता है।
यमुना के पाँच खंड हैं- हिमालयी खंड (उद्गम से लेकर तजेवाला बैराज तक 172 किमी), ऊपरी खंड (ताजेवाला बैराज से वजीराबाद बैराज 224 किमी), दिल्ली सेगमेंट (वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज 22 किमी), यूट्रीफाइड सेगमेंट (ओखला बैराज) 490 किलोमीटर), और पतला खंड (चंबल कंफ्लुएंस टू गंगा कॉन्फ्लुएंस 468 किलोमीटर)।
यमुना अपने दिल्ली खंड में सबसे अधिक प्रदूषित है। यमुना नदी पल्ला गाँव से दिल्ली में प्रवेश करती है। 22 नाले यमुना में गिरते हैं। इनमें से 18 नाले सीधे नदी में और 4 आगरा और गुड़गांव नहर के माध्यम से गिरते हैं।
पर्याप्त संख्या में सीवेज उपचार संयंत्रों की कमी के कारण यमुना के प्रदूषित में वृद्धि हुई है। इससे पहले यमुना का सबसे प्रदूषित हिस्सा दिल्ली में वज़ीराबाद से लेकर उत्तर प्रदेश के इटावा के बीच स्थित था। हाल ही में प्रदूषित भाग बढ़ गया है और अपने शुरुआती बिंदु को पानीपत, हरियाणा में स्थानांतरित कर दिया है। इसलिए 100 किलोमीटर प्रदूषित भाग को जोड़ा दिया गया है।
पिछले दो दशकों में यमुना की सफाई के लिए 6,500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि यमुना का प्रदूषित भाग 500 किमी से बढ़कर 600 किमी हो गया है। जलीय जीवन का समर्थन करने के लिए, पानी में 4.0 मिलीग्राम / लीटर भंग ऑक्सीजन होना चाहिए। दिल्ली में वज़ीराबाद बैराज से आगरा तक यमुना में इसकी सीमा 0.0 मिलीग्राम / लीटर और 3.7 मिलीग्राम है।
जल प्रदूषण को इसकी जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग के स्तर को मापने के द्वारा मापा जाता है और अनुमेय सीमा 3 मिलीग्राम / लीटर या उससे कम होती है। जबकि यमुना के सबसे प्रदूषित भाग में 14 – 28 मिलीग्राम / एल बीओडी सांद्रता है। बीओडी बढ़ रही है क्योंकि कई अनुपचारित सीवेज नालियां हैं जो नदी में नालियों को डालती हैं।
निज़ामुद्दीन ब्रिज और आगरा के बीच यमुना के जलस्तर में जहरीले अमोनिया का स्तर अधिक है। पानीपत और आगरा के बीच स्ट्रेच में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का उच्च स्तर होता है। तीन बैराज यानि वजीराबाद बैराज, ITO बैराज और ओखला बैराज दिल्ली में यमुना नदी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की स्थापना, एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (ईटीपी) की स्थापना, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना, यमुना एक्शन प्लान, पर्यावरण जागरूकता अभियान दिल्ली सरकार द्वारा यमुना की सफाई के लिए की गई कुछ पहलें हैं। इसके अलावा इसकी गुणवत्ता के लिए पानी की नियमित जांच की जाती है।
यमुना एक्शन प्लान (YAP) – यमुना की सफाई के लिए यमुना एक्शन प्लान है। 1993 से जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी, जापान सरकार भारत सरकार को चरणों में यमुना को साफ करने में सहायता कर रही है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 29 शहरों में 39 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना के चरण I में बनाए गए थे। यमुना एक्शन प्लान I और II के तहत लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
लेकिन यमुना की सफाई का हर लक्ष्य अब तक काम नहीं आया है और नदी अभी भी प्रदूषित है। सीवेज उपचार की अधिकांश सुविधाएं या तो कमज़ोर हैं या ठीक से काम नहीं कर रही हैं। इसके अलावा नदी में केवल बरसात के मौसम के दौरान ताजा पानी मिलता है और लगभग नौ महीने तक पानी लगभग स्थिर रहता है।
इससे हालत और बिगड़ जाती है। बिना किसी नतीजे के करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। भ्रष्ट प्रशासन और लोगों का रवैया सफाई कार्यक्रमों को छिपाने के लिए पर्याप्त है। हमें एक व्यक्ति के रूप में नदी में कुछ भी नहीं फेंकने की जिम्मेदारी लेनी होगी।
[ratemypost]
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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
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Landslide in kerala: वायनाड भूस्खलन- प्राकृतिक हादसा या मानव जनित, paris olympic 2024: “जलवायु आपातकाल” के बीच ऐतिहासिक आयोजन, 25 जुलाई को मनाया जायेगा संविधान हत्या दिवस – अमित शाह.
इस लेख में आप एक नदी की आत्मकथा निबंध Autobiography of a River in Hindi हिन्दी में पढेंगे। यह स्कूल और कॉलेज के परीक्षाओं में पुछा जाता है। इस आत्मकथा में एक नदी स्वयं के विषय में बखान कर रही है।
Table of Content
मुझे कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे : नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, आदि। मैं मुख्यतः स्वभाव से चंचल हूं, पर कभी-कभी मद्धम भी हो जाती हूं।
कल-कल करके बहती ही रहती हूं, निरंतर – बिना रुके, बिना अटके, बस चलती ही रहती हूं। मेरा जन्म पर्वतों में हुआ और वहां से झरनों के रूप में मैं आगे बढ़ती हूं और फिर बहते बहते बस सागर में जा मिलती हूं।
मनुष्य मुझसे अनेकों प्रकार से जुड़ा हुआ है, या यूं कहूँ के मैं मनुष्य के लिए अति उपयोगी हूँ। मनुष्य के लिए मेरे क्या क्या उपयोग हैं ? चूंकि मेरे भीतर जीव जंतु पाए जाते हैं इसलिए मैं मनुष्य के लिए भोजन का स्त्रोत हूं, मैं ना जाने कितने ही लोगों का पेट भरती हूं।
मैं पर्यावरण में पारितंत्र का संतुलन भी बनाए रखती हूं। मेरे ही पानी द्वारा मनुष्य अपने उपयोग के लिए बिजली उत्पन्न करता है और उस बिजली से मशीनरी के ढेरों काम होते हैं।
मैं किसी एक क्षेत्र, एक राज्य या किसी एक देश से बंधी हुई नहीं हूं। मुझे कोई सरहद रोक नहीं सकती है। मैं बस पाई जाती हूं, मैं बस हूं, मौजूद हूं – हर जगह, हर क्षेत्र, राज्य, देश में – अलग-अलग रूपों में, भिन्न-भिन्न प्रकार से, विभिन्न नामों के साथ।
प्रकृति बहुत कुछ, बहुत से भी ज्यादा कुछ देती है, परंतु मूक रहती है, उन चीजों का कभी हिसाब नहीं लेती। परंतु मुझे इस संदर्भ में तकलीफ महसूस होती है, मेरे भी एहसास है, मुझे भी दुख-सुख महसूस होता है।
आज परिस्थितियां यह है कि नदियों का पानी अत्यंत दूषित हो चुका है। फैक्टरियों से निकला हुआ जहरीला पदार्थ, कचरा, मलबा, घरों के कूड़े से निकला हुआ प्लास्टिक , गंदगी, त्योहारों का जमा हुआ कचरा और ना जाने कितनी ही चीजें नदियों के पानी में मिलकर प्रदूषण फैला रही है।
इन सब बिंदुओं के विपरीत कुछ अच्छे पल, कुछ अच्छे लम्हे भी हैं मेरी झोली में। एक सुनसान खूबसूरत जंगल में बहते हुए, जब मैंने एक थके हुए राहगीर की प्यास बुझाई थी, तब बहुत अच्छा महसूस हुआ था।
बाग में खेलते हुए छोटे बच्चे ने जब मिट्टी में सने अपने छोटे-छोटे हाथ मुझमे धोए थे, छप-छप करके मेरे पानी के साथ खेल किया था, तब अत्यंत आनंद आया था।
त्योहारों के वक्त में, जब मेरे आसपास भीड़ उमड़ती है, मेले लगते हैं, खूब रौनक होती है, सभी चेहरों पर मुस्कान होती है, तब बहुत अच्छा लगता है।
\त्योहारों में अलग ही खुशी होती है , सभी लोग: बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं, छोटी बच्चियां, लड़के – एक ही जगह एकत्रित होते हैं, भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन बनते हैं, हर्ष उल्लास का पर्व सा होता है, यह सभी बहुत खुशनुमा लगता है।
परन्तु बहुत से पल ऐसे भी होते है, जब मन भाव विभोर हो जाता है। जीवन काल पूरा होने पर, जब मनुष्य मृत्यु की गोद में समा जाता है और मिट्टी का शरीर चिता पर जलने के बाद राख में बदल जाता है, बस राख रह जाती है। जीवंत होने पर जो व्यक्ति प्यारा होता है, मृत्यु के बाद उसी को चिता की आग दिखाते हैं और अस्थियां नदी में बहते हैं : यही कटु सत्य है।
और बस यही सबसे बड़ा फर्क है, मनुष्य और मुझ में; मैं कभी मरती नहीं हूँ, मेरी मृत्यु नहीं होती, और न ही मेरी कोई इच्छाएँ है। यह संभव ही नहीं है, चूँकि मेरी कोई जीवन अवधि नहीं होती है।
मैं प्रकृति की देन हूं और प्रकृति तो सदा ही रही है। मैं थी, मैं हूं और मैं रहूंगी। मेरे दम पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्राणी जीवित है, मैं जीवन देती हूं। कोई ऐसी वस्तु नहीं, ऐसा हथियार नहीं, जो मेरे प्राण ले ले।
बस कहीं टूट कर बैठना नहीं है, कहीं ठहरना नहीं है, बस चलते चले जाना है – जीवन की बहती हुई धारा के संग, जैसे जैसे जीवन बहता चला जाए, बस उसी प्रकार अपने अस्तित्व को ढाल लेना है, परिस्थितियों के अनुसार।
मनुष्य के कार्यकलापों के कारण ही पारितंत्र का संतुलन खो चुका है। वनों की कटाई, बढ़ती हुई आबादी से निरंतर बढ़ता हुआ प्रदूषण : जल प्रदूषण , वायु प्रदूषण , थल प्रदूषण – इन्हीं सब परिस्थितियों के कारण ही आज हालात इतने खराब हैं।
आज दुनिया के हर कोने में, बाढ़ जैसे हालात आसानी से देखे जा सकते हैं। बाढ़ अपने आप में एक अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति हैं। हर ओर बस पानी ही पानी नजर आता है, पर पीने को एक बूंद भी नहीं मिलती। मकान, दुकानें, बाजार, सभी कुछ जलमग्न हो जाता है।
कारणवश, यह भी हो सकता है कि एक दिन ऐसा भी आए, के मेरा नीर ही सूख जाए और मुझ में जीवन ही ना रहे; इसलिए मनुष्य को मेरी यही सलाह होगी कि वह अपने आप पर काबू रखें, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें : वरना वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति में हाहाकार मच जाएगा और जन जीवन कुछ भी नहीं बचेगा।
इस लेख में आपने एक नदी की आत्मकथा निबंध Autobiography of a River in Hindi हिन्दी में पढ़ा। आपको यह कैसा लगा कमेंट के माध्यम से ज़रूर बताएं।
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500 words essay on river.
Rivers are the backbone of human civilizations which provide freshwater that is the basic necessity for human life. We cannot live without water and rivers are the largest water bodies for freshwater. In fact, all civilizations in the past and present were born near river banks. In other words, they are veins of the earth that make life possible. Through an essay on rivers, we will take a look at their importance and how to save them.
We refer to rivers as the arteries of any country. No living organism can live without water and rivers are the most important source of water. Almost all the early civilizations sprang up on the river banks.
It is because, from ancient times, people realized the fertility of the river valleys. Thus, they began to settle down there and cultivate the fertile valleys. Moreover, rivers originate from mountains which carry down rock, sand and soil from them.
Then they enter plains and water keeps moving slowly from the mountainsides. As a result, they deposit fertile soil. When the river overflows, this fertile soil deposits on the banks of rivers. Thus, bringing fresh fertile soil constantly to the fields.
Most importantly, rivers help in agriculture. In fact, a lot of farmers depend on rivers for agricultural purposes. Rivers have the ability to turn deserts into productive farms. Further, we can use them for constructing dams as well.
Further, rivers also are important highways. That is to say, they offer the cheapest method of transport. Before road and railways, rivers were essential means of transportation and communication.
In addition, rivers bring minerals down from hills and mountains. We construct damns across the river for generating hydel power and also preserve the wildlife. Further, they also come in use for encouraging tourism and developing fisheries.
As pollution is on the rise, it has become more important than ever to save rivers. We must take different measures to do so. First of all, we must use biodegradable cleaning products and not use chemical products for body washing.
Further, we must not waste water when we shower. After that, we must install the displacement device in the back of the toilet for consuming less water. It is also essential to turn the tap off while brushing or shaving.
Moreover, one must also switch off the lights and unplug devices when not in use. This way we save electricity which in turn saves water that goes into the production of electricity. Always remember to never throw trash in the river.
Insulating your pipes will save energy and also prevent water wastage. Similarly, watering the plants early morning or late evening will prevent the loss of water because of evaporation . Finally, try to use recycled water for a carwash to save water.
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Rivers are essential as they are nature’s blessings for human beings. It provides us with so many things but nowadays, they are being polluted on a very large scale. We must all come together to prevent this from happening and saving our rivers for a better future.
Question 1: What is the importance of rivers?
Answer 1: Rivers are important as they carry water and nutrients to areas all around the earth. Further, rivers play quite an important part of the water cycle, as they act as drainage channels for surface water. Most importantly, they provide excellent habitat and food for many of the earth’s organisms.
Question 2: How can we protect our rivers?
Answer 2: We can protect our rivers by segregating our household garbage into biodegradable and non-biodegradable waste. Moreover, volunteering with NGOs and community groups is also great option to save rivers from pollution.
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बाढ़ पर निबंध 200-300 शब्दों में (short essay on flood in hindi 200-300 words), बाढ़ पर निबंध 400-600 शब्दों में (essay on flood in 400-600 words), बाढ़ के बारे में रोचक तथ्य (interesting facts about flood in hindi), बाढ़ के इस निबंध से हमें क्या सीख मिलती है (what will your child learn from a flood essay), अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (faqs).
प्रकृति द्वारा पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन यापन के लिए कई संसाधन मौजूद हैं। जब प्रकृति से छेड़छाड़ करते हैं तो उसके कई दुष्परिणाम हम ही को झेलने पढ़ते हैं। ऐसी ही एक आपदा बाढ़ के रूप में हम जानते हैं। यह स्थिति मानवीय और प्राकृतिक दोनों कारणों से पैदा हो सकती है। लगातार कई दिनों तक वर्षा होने से बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है जिसमें भारी नुकसान होने की संभावना होती है। यहां तक की भूखमरी के हालात पैदा हो जाते हैं और लोगों को आर्थिक तंगी और नुकसान से गुजरना पड़ता है। बाढ़ एक भयंकर आपदा है, जब मॉनसून में अधिक बारिश होने के कारण पानी जगह-जगह जमा होने लगता है, साथ ही उसकी निकासी का कोई सही इंतजाम नहीं किया जाता, तब यह पानी बाढ़ का रूप ले लेता है। जो क्षेत्र नदी के किनारे बसते हैं उनपर इनका अधिक प्रभाव देखा जाता है। जब नदी का बांध अधिक पानी के दवाब से टूट जाता है तो देश को बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है। नदी के आसपास मौजूद क्षेत्रों को बहुत नुकसान पहुंचता है और साथ ही कई लोगों की जान भी जाती है। अक्सर स्कूल, कॉलेज में निबंध प्रतियोगिता होती है और उसमें आपको बाढ़ के बारे में निबंध या भाषण लिखने के लिए कहा जाता है, तो उसके लिए आप इस लेख का सहारा ले सकते हैं।
बच्चों को बाढ़ के बारे में सामान्य जानकारी होगी लेकिन यदि उनको बाढ़ पर एक छोटा निबंध लिखना है तो वह इन 10 वाक्यों का उपयोग कर सकते हैं।
बाढ़ के बारे में लिखने के लिए उसको बेहतर तरीके से जानने की जरूरत है और ऐसे में आप नीचे दिए गए निबंध की मदद ले सकते हैं।
बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिससे जनजीवन पूरी तरह से प्रभावित होता है। इससे लोगों की जानें जाती है और देश के आर्थिक विकास पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। बाढ़ ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों को अधिक प्रभावित करती है क्योंकि वहां पानी की निकासी के लिए सही जगह नहीं होती है। बाढ़ के प्रकोप के कई कारण हैं, जैसे अधिक बारिश, किसी बांध का टूटना, बादल फटना आदि। वैसे बाढ़ के कई अप्रत्यक्ष कारण भी हैं जैसे ग्लोबल वार्मिंग, अनगिनत पेड़ों की कटाई, प्रदूषण का बढ़ना आदि। बाढ़ के आने के बाद कई क्षेत्रों में पानी भरा रहता है, जिसकी वजह से घरों की नींव कमजोर हो जाती है और सभी पक्के और कच्चे घर टूट जाते हैं। ऐसे में लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं और जन-धन दोनों का नुकसान होता है। ऐसी स्थिति में देश को भी इसका प्रभाव झेलना पड़ता है क्योंकि इसका सीधा असर उसके आर्थिक विकास पर पड़ता है। इसकी भयानक स्थिति से हर कोई सहम जाता है और पशु, पक्षी और इन्सान सब इसकी चपेट में आ जाते हैं। कई बार बाढ़ आने के बाद बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है, जैसे डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड आदि। जो की बाद में और अधिक हानि पहुंचाती हैं। बाढ़ अक्सर नदी किनारे या पहाड़ी क्षेत्रों में आती है, इसलिए हमेशा वहां बसे लोगों को बारिश के मौसम में चेतावनी दी जाती है ताकि वह सचेत रहें और खुद को इसके प्रभाव से बचा सकें। इसलिए सरकार को बाढ़ अलर्ट सिस्टम को हमेशा सही से काम करना चाहिए ताकि आपदा से पहले लोग सचेत हो जाएं।
दुनिया भर में बाढ़ एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है, जिसके बारे में आपको सही जानकारी होना चाहिए। यदि आपको इस पर अच्छा निबंध लिखना है तो हमारे द्वारा लिखे गए निबंध को पढ़ें और अपने शब्दों में उसे लिखने का प्रयास करें।
जब किसी स्थान पर लगातार कम समय में अधिक मात्रा में बारिश होती है, तो वहां पर पानी जमा होने लगता है और पानी के अधिक दवाब के कारण वह बांध को तोड़ देता है जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बाढ़ वैसे कई कारणों से उत्पन्न होता है जैसे एक जगह पर अधिक बरसात होना, बांध का टूटना, बारिश से नदी का जल स्तर बढ़ना आदि। इस दौरान समुद्र और नदियों के पानी का प्रवाह इतना अधिक होता है कि यह आसपास के शहरों, गांवों, जंगलों आदि सभी को प्रभावित करता है। बाढ़ के कारण लोगों में अफरा-तफरी मच जाती और तबाही का माहौल नजर आता है। इस आपदा में लोग अपना घर, संपत्ति, यहां तक की परिवार को भी खो देते हैं। ऐसी परिस्थिति किसी भी इंसान के लिए कल्पना से परे है। इन हालातों में सरकार पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाती है। लेकिन देश के आर्थिक विकास में इसका बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्रभावित क्षेत्र का पुनःनिर्माण में अधिक समय और पैसा लगता है।
बाढ़ उत्पन्न होने के कई कारण हैं, उनके बारे में नीचे दिया गया है-
बाढ़ हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है, आइए जानते हैं कैसे –
इस निबंध से आपके बच्चे को प्राकृतिक आपदा के बारे जानने को मिलता है और ऐसे आपदा के समय में क्या करना चाहिए वो इस निबंध के जरिए जान सकेंगे। वह इस निबंध की मदद से बाढ़ पर एक बेहतरीन निबंध लिख सकेंगे और लोगों को इसके बारे में जागरूक कर सकेंगे।
बाढ़ तीन प्रकार ही होती हैं तटीय बाढ़, नदी बाढ़ और आकस्मिक बाढ़।
6 सितंबर 1970 को नर्मदा नदी पर आयी और 11 अगस्त 1979 को मच्छू नदी पर आयी बाढ़ को दुनिया में रिकॉर्ड तोड़ने वाली सबसे बड़ी बाढ़ माना गया है।
भारत के असम राज्य में अक्सर बाढ़ का अनुभव होता है।
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