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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Swami Vivekananda par Nibandh

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे एक महान भारतीय संत, विचारक और समाज सुधारक थे। उनके गुरु, श्री रामकृष्ण परमहंस, ने उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया।

उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उन्होंने भारत की महानता को दुनिया के सामने रखा, वहां उनके भाषण ने सभी को प्रभावित किया। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”, उनके ये शब्द आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सफलता सेवा और परिश्रम से मिलती है। उनका निधन 4 जुलाई 1902 को हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएं और विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। वे हमेशा युवाओं को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते रहेंगे। उनके जीवन और कार्यों से हमें सच्ची देशभक्ति और मानवता की सेवा का पाठ मिलता है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (250 – 300 शब्द) – Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे।

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन

 एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (300 – 400 शब्द) – Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद, एक महान भारतीय संन्यासी, दार्शनिक, विचारक और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद : प्रेरणादायक जीवन और उनकी शिक्षाएँ

उनका बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था। उन्होंने बचपन में ही वेद, उपनिषद और भगवद गीता का गहन अध्ययन किया। 1881 में, उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली और सन्यास का मार्ग अपनाया। रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व भ्रमण किया। 1893 में, उन्होंने शिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया था जहां उनके भाषण ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उनके संबोधन “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” ने लोगों के दिलों को छू लिया और भारतीय संस्कृति के प्रति आदर और सम्मान उत्पन्न किया।

विवेकानंद ने अपने जीवन में युवाओं को विशेष महत्व दिया। उनका मानना था कि युवा शक्ति ही देश की असली ताकत है। उन्होंने युवाओं को अपने जीवन में अनुशासन, समर्पण और उच्च आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध उद्धरण “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करता है।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी शिक्षा, चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत है। उन्होंने “अद्वैत वेदांत” के सिद्धांत को प्रचारित किया, जो सभी जीवों में एक ही आत्मा की अवधारणा पर आधारित है। उनके अनुसार, सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं और सभी मानव जाति एक है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें सिखाता है कि आत्मविश्वास, अनुशासन और समर्पण से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक सफल और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श सदैव अमर रहेंगे।

स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनकी शिक्षाओं से हमें आत्म-निर्भरता, सेवा, और मानवता के प्रति समर्पण का संदेश मिलता है। वे हमारे लिए एक महान प्रेरणा हैं, जिनके पदचिह्नों पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (500 शब्द)

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

भारत के महापुरुष – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में मकर संक्रांति के त्योहार के अवसर पर, परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त (नरेन्द्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता (पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थी) के 9 बच्चों में से एक थे। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।”

उन्हें 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिल कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे हिन्दू शास्त्रों (वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्हें विलियम हैस्टै (महासभा संस्था के प्राचार्य) के द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला।

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया। ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन् 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में तीन घंटे ध्यान साधना करते हुए अपनें प्राणों को त्याग दिया।

अपने जीवन में तमाम विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से हटे नही और अपने जीवन भर लोगो को ज्ञान देने कार्य किया। अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi!

स्वामी विवेकानंद की गिनती भारत के महापुरुषों में होती है । उस समय जबकि भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । इस महापुरुष पर संपूर्ण भारत को गर्व है ।

इस महापुरुष का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ हुआ था । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा । नरेन्द्र बचपन से ही मेधावी थे । उन्होंने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि विषयों का अध्ययन किया । नरेन्द्र ने बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।

ADVERTISEMENTS:

नरेन्द्र ईश्वरीय सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे । लेकिन वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे । वे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्रह्मसमाज में गए । यहाँ उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली । फिर नरेन्द्र सत्रह वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए । परमहंस जी का नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा । नरेन्द्र ने उन्हें अपना गुरु बना लिया ।

इन्ही दिनों नरेन्द्र के पिता का देहांत हो गया । नरेन्द्र पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई । परंतु अच्छी नौकरी न मिलने के कारण उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । नरेन्द्र गुरु रामकृष्ण की शरण में गए । गुरु ने उन्हें माँ काली से आर्थिक संकट दूर करने का वरदान माँगने को कहा । नरेन्द्र माँ काली के पास गए परंतु धन की बात भूलकर बुद्धि और भक्ति की याचना की । एक दिन गुरु ने उन्हें अपनी साधना का तेज देकर नरेन्द्र से विवेकानन्द बना दिया ।

रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानन्द कोलकाता छोड़ वरादनगर के आश्रम में रहने लगे । यहाँ उन्होंने शास्त्रों और धर्मग्रंथों का अध्ययन किया । इसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े । वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जूनागढ़, सोमनाथ, पोरबंदर, बड़ौदा, पूना, मैसूर होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे । वहाँ से वे पांडिचेरी और मद्रास पहुँचे ।

सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म-सम्मेलन हो रहा था । शिष्यों ने स्वामी विवेकानन्द से उसमें भाग लेकर हिन्दू धर्म का पक्ष रखने का आग्रह किया । स्वामी जी कठिनाइयों को झेलते हुए शिकागो पहुँचे । उन्हें सबसे अंत में बोलने के लिए बुलाया गया । परंतु उनका भाषण सुनते ही श्रोता गद्‌गद् हो उठे । उनसे कई बार भाषण कराए गए । दुनिया में उनके नाम की धूम मच गई । इसके बाद उन्होंने अमेरिका तथा यूरोपीय देशों का भ्रमण किया । अमेरिका के बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए ।

चार वर्षों में विदेशों में धर्म-प्रचार के बाद विवेकानन्द भारत लौटे । भारत में उनकी ख्याति पहले ही पहुंच चुकी थी । उनका भव्य स्वागत किया गया । स्वामी जी ने लोगों से कहा – ” वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है, रोगी और दुर्बल की सेवा में है । ” भारतीय अध्यात्मवाद के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । मिशन की सफलता के लिए उन्होंने लगातार श्रम किया, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया । 4 जुलाई, 1902 ई. को रात्रि के नौ बजे, 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए । परंतु उनका संदेश कि ‘ उठो जागो और तब तक चैन की साँस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाय ‘ – हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा ।

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Swami Vivekananda Essay: छात्र ऐसे लिखें स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध

swami vivekananda essay writing in hindi

  • Updated on  
  • जून 29, 2024

Swami Vivekananda Essay In Hindi

स्वामी विवेकानन्द का जीवन और शिक्षाएँ प्रेरणा के एक महान स्रोत के रूप में काम करती हैं। स्वामी विवेकानन्द ने जीवन में मूल्यों और नैतिकता के महत्व पर जोर दिया। एक युवा भिक्षु से एक प्रमुख आध्यात्मिक व्यक्ति तक की उनकी यात्रा छात्रों के लिए प्रेरक है। उनके जीवन से छात्रों को प्रेरणा मिलती है जिससे उन्हें प्रयास करने और चुनौतियों पर काबू पाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए कई बार छात्रों को स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध तैयार करने को दिया जाता है। Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में निबंध जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

स्वामी विवेकानंद के बारे में 100 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद के बारे में 200 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद का बचपन, रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और भारतीय संस्कृति का समन्वय, उपसंहार , स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स , स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध लिखने के लिए महत्वपूर्ण वाइंट्स.

Swami Vivekananda Essay In Hindi 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे जिन्होंने पश्चिमी दुनिया में भारतीय विचारों को साझा करने में बड़ी भूमिका निभाई।  वे 1863 में कलकत्ता में जन्मे थे। उन्होंने हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता और लोगों को खुद को बेहतर ढंग से समझने के बारे में अपनी शक्तिशाली बातचीत और लेखन के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने महान भारतीय संत रामकृष्ण की शिक्षाओं का पालन किया और इन शिक्षाओं को फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

1893 में, उन्होंने शिकागो में धर्मों पर एक बड़ी बैठक में भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। वहां उन्होंने भाषण दिया था जिसकी बहुत अधिक व्यापक प्रशंसा हुई। उन्होंने इस बारे में बात की कि सभी धर्म कैसे जुड़े हुए हैं और दूसरों की मदद करने के महत्व पर जोर दिया। स्वामी विवेकानन्द के शब्द आज भी दुनिया भर में कई लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्होंने जो सिखाया वह आज की व्यस्त दुनिया में भी महत्वपूर्ण है।

Swami Vivekananda Essay In Hindi 200 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे। वे एक महान गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। वे आधुनिक भारत में एक अत्यधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता के रूप में खड़े हुए। उनकी शिक्षाएँ विश्व स्तर पर लाखों लोगों को प्रभावित करते हुए, सार्वभौमिक भाईचारे, सहिष्णुता और विविध मान्यताओं को स्वीकार करने पर जोर देती हैं।

जो बात स्वामी विवेकानन्द को वास्तव में प्रेरणादायक बनाती है, वह है अपने विश्वासों के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता, विशेषकर ऐसे समय में जब भारतीय संस्कृति को पश्चिम में गलतफहमी का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने स्वयं को शिक्षा देने और सांस्कृतिक अंतरालों को समझाने में समर्पित कर दिया।

उनकी प्रेरणा व्यावहारिक आध्यात्मिकता पर उनके ध्यान से भी उत्पन्न होती है। स्वामी विवेकानन्द ने व्यक्तियों को अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरों की सेवा करने और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया।

इसके अलावा गहन विचारों को स्पष्ट, सरल और शक्तिशाली तरीके से व्यक्त करने की उनकी क्षमता उनकी प्रेरणादायक विरासत बढ़ाती है। उनके भाषण और लेख प्रेरणा का एक कालातीत स्रोत बने हुए हैं, जो आध्यात्मिकता की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर देते हैं। स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व एसे व्यक्ति के रूप में कार्य करता है, अपने उच्चतम स्तर तक पहुँचने और दुनिया में सकारात्मक योगदान देने की क्षमता रखते हैं। 

स्वामी विवेकानंद के बारे में 500 शब्दों में निबंध

Swami Vivekananda Essay In Hindi 500 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। वे एक श्रद्धेय भारतीय संत थे। उन्होंने “उच्च विचार और सादा जीवन” का सार अपनाया था। स्वामी विवेकानन्द न केवल एक गहन दार्शनिक थे, बल्कि दृढ़ सिद्धांतों वाले एक समर्पित व्यक्तित्व भी थे।  उनके उल्लेखनीय दार्शनिक कार्यों में “आधुनिक वेदांत” और “राज योग” शामिल हैं।

रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य के रूप में, उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने पूरे जीवन में, स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएं और पहल, सार्थक जीवन के महत्व पर जोर देते हुए पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं।

स्वामी विवेकानंद श्री विश्वनाथ और भुवनेश्वरी देवी के घर में जन्में थे। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानन्द ने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक कौशल का प्रदर्शन किया था। शिक्षाओं पर पकड़ के कारण अपने गुरुओं द्वारा “श्रुतिधर” के नाम से जाने जाते थे। उन्होने तैराकी और कुश्ती जैसे विभिन्न कौशलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

रामायण और महाभारत की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित होने के कारण, उनके मन में धर्म के प्रति गहरा सम्मान था, और पवन पुत्र हनुमान उनके जीवन आदर्श थे। आध्यात्मिक परिवार में पले-बढ़े होने के बावजूद नरेंद्र का स्वभाव प्रश्न करने वाले व्यक्ति का था। उनकी मान्यताएँ ठोस तर्क पर आधारित थीं और उन्होंने भगवान के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया था। इसके चलते उन्हें कई संतों के पास जाना पड़ा और उन्होंने प्रश्न पूछा, “क्या आपने भगवान को देखा है?”  आध्यात्मिक उत्तरों की उनकी खोज तब तक अनुत्तरित रही जब तक उनका सामना “रामकृष्ण परमहंस” से नहीं हुआ।

स्वामी विवेकानन्द की पहली मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से तब हुई जब वे कोलकाता में एक मित्र के घर गये। रामकृष्ण ने विवेकानन्द की अलौकिक क्षमता को पहचानते हुए उन्हें दक्षिणेश्वर में आमंत्रित किया, यह महसूस करते हुए कि उनका जीवन विश्व के उत्थान के लिए एक आशीर्वाद है।

गहन आध्यात्मिक खोज के बाद, विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और अंधकार से प्रकाश की ओर गहन परिवर्तन का अनुभव किया। अपने गुरु की शिक्षाओं के प्रति आभारी होकर, उन्होंने रामकृष्ण के ज्ञान को सभी दिशाओं में साझा करने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की।

स्वामीजी को शिकागो में अपने ओजस्वी भाषण के लिए व्यापक प्रशंसा मिली, जहां उन्होंने दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित किया। उन्होंने गर्व से भारतीय धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए सभी लोगों की स्वीकृति और सहिष्णुता के मूल्यों पर जोर दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान और अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य स्थापित करने में स्वामीजी की भूमिका को स्वीकार किया। स्वामीजी का प्रभाव भारत के सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करने तक फैला।

उच्च आदर्शों के प्रतीक स्वामी जी ने भारतीय युवाओं के लिए महान प्रेरणा का काम किया। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उनका उद्देश्य युवा मन में आत्म-बोध, चरित्र निर्माण, आंतरिक शक्तियों की पहचान, दूसरों की सेवा और अथक प्रयासों की शक्ति पैदा करना था।

स्वामी विवेकानन्द के अन्य महान कार्य

स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध कथनों में शामिल हैं, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” उनका दृढ़ विश्वास था कि बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए हानिकारक किसी भी चीज़ को जहर की तरह अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए।  उनका ध्यान एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर था जो चरित्र विकास को पोषित करती हो।

“रामकृष्ण मठ” और “रामकृष्ण मिशन” की उनकी स्थापना ने उनके गुरु के प्रति उनकी गहरी भक्ति को दर्शाया। इसने भारत में आत्म-त्याग, तपस्या और गरीबों और वंचितों की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।  बेलूर मठ की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

स्वामीजी ने अथक परिश्रम से देवत्व के संदेश और शास्त्रों के सच्चे सार का प्रचार किया। इस समर्पित और देशभक्त भिक्षु ने 4 जुलाई, 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली।

स्वामीजी ने निस्वार्थ प्रेम और राष्ट्र सेवा जैसी अवधारणाओं पर जोर देते हुए भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत से अवगत कराया। महान गुणों से परिपूर्ण उनका प्रेरक व्यक्तित्व युवाओं को आलोकित करता था। उनकी शिक्षाओं ने लोगों के भीतर आत्मा की शक्ति के प्रति जागरूकता पैदा की। उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में, हम 12 जनवरी को उनके “जन्म दिवस” को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में पैदा हुए स्वामी विवेकानन्द एक महान भारतीय संत और दार्शनिक थे।
  • मूल रूप से उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, उन्होंने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक क्षमताएं दिखाईं।
  • स्वामी विवेकानन्द की अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात, उनकी आध्यात्मिक यात्रा को आकार देने में महत्वपूर्ण थी।
  • उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण को वैश्विक प्रशंसा मिली।
  • उनकी शिक्षाओं में धर्मों की एकता, सहिष्णुता और आत्म-प्राप्ति की खोज पर जोर दिया गया।
  • स्वामीजी के उद्धरण जैसे “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” प्रतिष्ठित और प्रेरणादायक बने हुए हैं।
  • भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने में उनके योगदान को हर साल 12 जनवरी को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय युवा दिवस पर मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द का 4 जुलाई, 1902 को निधन हो गया।
  • उनका जीवन और शिक्षाएँ निस्वार्थ सेवा और ज्ञान पर जोर देते हुए दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं।
  • सबसे पहले स्वामी विवेकानंद का परिचय दें।
  • इसके बाद उनके बचपन के बारे में बताएं।
  • इसके बाद उनकी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में बताएं
  • उनके महान कार्यों के बारे में लिखें।
  • अंत में उनके बारे में बताते हुए उपसंहार कर दें।

स्वामी विवेकानन्द, भारत के एक प्रमुख हिंदू भिक्षु और दार्शनिक थे। उन्होंने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वामी विवेकानन्द को 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने प्रेरक भाषण के लिए जाना जाता है। उनके प्रसिद्ध भाषण में, दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित करते हुए भाषण दिया था जिससे विश्व धर्म संसद में उन्हें बहुत अधिक सराहा गया। 

स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं में धर्मों की एकता, आत्म-बोध के महत्व और ज्ञान की खोज पर जोर दिया गया।  उन्होंने व्यक्ति के चरित्र के विकास की वकालत की और आध्यात्मिकता की शक्ति में विश्वास किया।

भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।  

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य निबंध से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

In this Article

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन (10 Lines On Swami Vivekananda In Hindi)

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भारत में कई महान व्यक्ति हैं, जिनका जिक्र हर देशवासी बहुत ही गर्व के साथ करता है। उन्हीं महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद का नाम भी शामिल है। स्वामी विवेकानंद तत्वों का ज्ञान रखने वाले, सच्चे देशभक्त अथवा बेहतरीन वक्ता थे। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 में एक बंगाली परिवार में कोलकाता में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘विश्वनाथ दत्त’ और माता का नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ था। इनके माता-पिता ने बचपन में इनका नाम ‘नरेंद्र दत्त’ रखा था। लेकिन बाद में इनके गुरु ‘श्री रामकृष्ण परमहंस जी’ ने इन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया। इन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू धर्म के प्रचार में बिताया और विश्वभर में हिंदुत्व के बारे में जानकारी देने का प्रयास किया है। यह एक बेतरीन वक्ता थे, जिनके भाषण ने भारत का नाम रोशन किया है। आज भी लोग इनकी बातों को एक सीख मानकर चलते हैं और एक अच्छा प्रेरणावादक मानते हैं। इनका जन्मदिवस ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद एक महान व्यक्ति थे जिनके बारे में बच्चों को जानकारी होनी चाहिए। यहां पर हिंदी में स्वामी जी पर 10 वाक्य लिखें हैं, जिन्हें आपको अपने बच्चे को जरूर सुनाना चाहिए।

  • स्वामी विवेकानंद एक महान ज्ञानी और सच्चे देशभक्त थे।
  • इनका जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।
  • स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त है।
  • विद्यालय में स्वामी जी एक अच्छे विद्यार्थी थे।
  • इनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने इन्हे ‘स्वामी विवेकानंद’ का नाम दिया था।
  • इन्होनें अपने भाषण द्वारा पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन किया है।
  • इनका जन्मदिवस पूरे विश्व में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  • इनका पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार में बीता था।
  • स्वामी जी ने अपनी अंतिम सांस 4 जुलाई 1902 को ली थी।

विश्व भर में स्वामी विवेकानंद की छवि एक महान संत, देशभक्त और विचारधारक की है और लाखों युवा उनसे आज भी प्रभावित है, यदि आप भी अपने बच्चे को इनके बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो उसे हमारे द्वारा लिखे कम शब्दों वाले निबंध को जरूर पढ़ाएं।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता मे हुआ था। स्वामी जी एक सच्चे देशभक्त, महान संत और नेता थे। इनके माता-पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी था, जो कोलकाता के एक बंगाली परिवार से संबंध रखते हैं। स्वामी जी को बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था। इनकी बुद्धि हमेशा से बहुत तेज रही है। यह युवाओं के लिए हमेशा से एक प्रेरणाश्रोत रहे है, इसलिए इनका जन्म दिन हर साल ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद एक होशियार छात्र थे और उन्हें संस्कृत का बहुत ज्ञान था। सिर्फ शिक्षा में नहीं बल्कि खेल-कूद में भी इन्हे बहुत दिलचस्पी थी। विवेकानंद जी बचपन से ही काफी आध्यात्मिक थे और जब वह कोलकाता में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात गुरु रामकृष्ण परमहंस से हुई थी। उनका हिंदुत्व और हिन्दू धर्म को लेकर, भगवान के प्रति भक्ति को देखते हुए गुरु परमहंस ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था। वह सिर्फ एक संत ही नहीं बल्कि सच्चे देशभक्त, विचारक और लेखक थे। उन्होंने ‘उठो जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए’ जैसे मूलमंत्र भारत के वासियों को दिए। स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया और युवाओं के लिए एक बेहतरीन प्रेरणाश्रोत बनकर उभरे। स्वामी विवेकानंद जी ने न सिर्फ भारत बल्कि अन्य देशों में भी हिन्दू धर्म का प्रचार और प्रसार किया। भारत के लिए किये गए उनके प्रयासों को लोग आज भी याद करते हैं।

Short Essay on Swami Vivekananda in Hindi

आपके बच्चे को स्वामी विवेकानंद पर अच्छा हिंदी निबंध लिखना है? आपको यहां स्वामी विवेकानंद पर हिंदी निबंध का बेहतरीन सैंपल दिया गया है जिसकी मदद से आपका बच्चा खुद भी एक अच्छा निबंध लिख सकता है।

स्वामी विवेकानंद भारत के उन व्यक्तियों में से एक है जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है। वह शुरू से ही हिन्दू धर्म को अधिक महत्त्व देते थे और दुनिया भर में इन्होंने हिन्दुत्व का बहुत प्रचार और प्रसार भी किया है। यह युवाओं के लिए एक प्रेरणाश्रोत छवि बनकर सामने आए और लोग आज भी इनके योगदानों को याद कर के गर्व महसूस करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इनके जन्म दिवस पर हर साल ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। आइए नीचे उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं को विस्तार में जानते हैं।

स्वामी विवेकानंद का शुरूआती जीवन और बचपन (Early Life and Childhood of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1868 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। विवेकानंद के 9 भाई-बहन थे। उनके पिता कोलकाता हाई कोर्ट में वकील थे और उनके दादा श्री दुर्गाचरण दत्त संस्कृत व फारसी के विद्वान थे, उन्होंने 25 साल की उम्र में संन्यास ग्रहण कर लिया था। परिवार के अच्छे विचार व परवरिश के कारण विवेकानंद को सोच और नई दिशा मिली। उन्हें बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम जाना जाता था, वे पढ़ाई में काफी बुद्धिमान व असल जीवन में नटखट थे। उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत के किस्से सुनाया करती थी।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा (Education of Swami Vivekananda)

उन दिनों अंग्रेजी शिक्षा बेहद प्रभावशाली थी, इसलिए उनके पिता अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार से प्रभावित होकर उन्हें यह शिक्षा देना चाहते थे। लेकिन स्वामी विवेकानंद जी की रूचि संस्कृत और अध्यात्म के प्रति अधिक थी, उन्होंने साथ साथ इनका भी अध्ययन किया। साल 1884 में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। असेम्बली कॉलेज के अध्यक्ष विलियम हेस्टी का कहना था कि उनके जैसा दर्शन शास्त्र में मेधावी छात्र और नहीं है। उन्हें भगवान को पाने की चाह बचपन से ही थी, इसी वजह से उन्होंने उस दौरान प्रसिद्ध संत रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु मान लिया था और सिर्फ 25 साल की उम्र में उन्होंने संत जीवन को अपना लिया और दुनिया भर में हिंदुत्व का प्रचार और प्रसार करने निकल पड़े।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण (Chicago Speech Of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद अपने ज्ञान और विचारों की वजह से पूरे विश्व में बेहद प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म के प्रति उनका नजरिया बेहद अलग था और वह लोगों को भी इसके महत्व का ज्ञात कराने का प्रयास करते थे। शिकागो में दिए गए भाषण की शुरुआत से हर कोई प्रभावित हो गया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत, “मेरे अमेरिका के भाइयों और बहनों”, से की थी जिसको सुनने के बाद हर कोई भाषण सुनने को मजबूर हो गया और भारत में यह दिन एक ऐतिहासिक दिन के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह दिन भारत के लिए बेहद गर्व और सम्मान की बात थी।

राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth day)

स्वामी विवेकानंद भारत के युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है, उनके विचारों और शब्दों से प्रभावित होकर लोग देश के हित में कार्य करते थे। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसकी शुरुआत साल 1984 में की गई थी और उस दौरान की सरकार का ऐसा मानना था कि स्वामी जी के विचार, आदर्श और उनके काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हो सकते हैं। इसी वजह से 12 जनवरी 1984 से स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई थी।

स्वामी विवेकानंद ने अपने विचारों और सिद्धांतों द्वारा पूरी दुनिया में भारत तथा हिंदुत्व का नाम रोशन किया। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके जीवन से हम हमेशा से कुछ ना कुछ सीख ही सकते हैं। यहीं कारण है कि आज भी युवाओं के लिए यह एक प्रेरणाश्रोत व्यक्ति बने हुए हैं।

  • स्वामी जी के मठ में कोई भी महिला प्रवेश नहीं कर सकती थी, यहाँ तक कि उनकी माँ भी नहीं।
  • स्वामी विवेकानन्द को चाय पीने का बहुत शौक था, इतना ही नहीं उन्होंने अपने मठ में चाय पीने की अनुमति भी दी थी।
  • 39 साल के जीवन में स्वामी जी को मधुमेह, अस्थमा, गुर्दे की बीमारियाँ, आदि लगभग 31 बिमारियों का सामना करना पड़ा था।
  • स्वामी जी, पश्चिमी दुनिया में वेदांत और योग की शुरूआत करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।
  • स्वामी विवेकानंद को भारत के सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं में से एक माना जाता है।
  • स्वामी जी संन्यासी बने तो उनका नाम नरेंद्र से “स्वामी विविदिशानंद” था, लेकिन शिकागो जाने से पहले उन्होंने अपना नाम बदलकर “विवेकानंद” रख लिया।

1. 1893 में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण का विषय क्या था?

विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण का विषय सभी धर्मों में एकता होना था।

2. स्वामी जी ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना प्रसिद्ध भाषण कब दिया था?

स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना प्रसिद्ध भाषण साल 1893 में दिया था।

3. विवेकानन्द ‘आधुनिक भारत के निर्माता हैं’ यह किसने कहा था?

नेताजी शुभाष चंद्र बोस ने स्वामी जो को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था।

स्वामी विवेकानंद के इस निबंध से बच्चों को इतिहास में मौजूद महान विचारक और देश प्रेमी के बारे में जानने को मिलेगा। उनके द्वारा भारत के किए गए योगदानों का ज्ञात बच्चों को होगा और वह उन्हें एक प्रेरणा की तरह मानेंगे और उनका मन भी देश के लिए कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित होगा। साथ ही इस निबंध के माध्यम से बच्चे स्वामी जी पर स्पष्ट शब्दों का एक अच्छा निबंध लिखना भी सीख सकते हैं।

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Essay on Swami Vivekananda for Students and Children

500+ words essay on swami vivekananda.

Born as Narendranath Dutta on 12 th January 1863 in the holy and divine place of Kolkata, Swami Vivekananda was a great Indian saint. He was a figure with “high thinking and simple living”. He was a great pious leader, a philosopher, and also a devout personality with great principles.  His eminent philosophical works comprise of “Modern Vedanta” and “Raj Yoga”. He was a principal disciple of “Ramkrishna Paramhansa” and was an initiator of Ramkrishna Math and Ramkrishna Mission . He thus spent his whole life in the dispersion of the values embedded in the great Indian culture.

essay on swami vivekananda

Childhood Days

Swami Vivekananda , the son of Shri Vishwanath and mother Bhuvneshwari Devi was called by the name “Narendranath Dutta” in the early days. Narendra was a child of unquestioned expertise and intellectual capability who used to take grasp of all his school teachings at first sight.

This excellence was recognized by his Gurus and thus was named “Shrutidhar” by them. He possessed manifold talents and skills comprising of swimming, wrestling which were a part of his schedule. Influenced by the teachings of Ramayana and Mahabharata, he had bottomless respect for religion. “Pavan Putra Hanuman” was his ideal for life.

Narendra was a lover of heroism and mystical by nature. Despite his upbringing in a spiritual family, he owned an argumentative personality in his infancy. His entire beliefs were assisted by an apt rationale and judgment behind them. Such a quality made him even put a question on the existence of the Almighty. He thus visited several saints and asked each one “have you seen God?”His spiritual quest left unanswered until he met “Ramkrishna Paramhansa”.

Meeting with Ramkrishna Paramhansa and Harmonization of Indian Culture

Swami Vivekananda met Ramkrishna Paramhansa for the first time when the latter visited his friend’s residence in Kolkata. Conscious of the supernatural powers of Swami Vivekananda called him to Dakshineshwar. He had a deep insight that Swamiji’s birth was a boon to mankind for the upliftment of the universe. Fulfillment of his spiritual inquisitiveness made he finally acknowledge Ramkrishna Paramhansa in the figure of his “Guru”. He was moved from darkness to illumination by his “Guru”. As his deep gratitude and reverence for his Guru made him travel all the four directions for the diffusion of his Guru’s teachings.

Swamiji won the hearts of everyone by his incredible speech at Chicago by addressing the audience as “Sisters and Brothers of America”

Vivekananda quoted these words” I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal tolerance but we accept all religions as true.” Thus, he set forward the worth of Indian religion exhibiting the values of universal acceptance, oneness, and harmony despite multiplicity in cultures.

Netaji Subhash Chandra Bose once said,” Swamiji harmonized the East and the West, religion, and science, past and the present and that is why he is great.” He played a prominent role in ending India’s cultural remoteness from the rest of the world.

A figure of highest ideals and great thoughts, Swamiji was an inspiration for the Youth of India.  Through his teachings he wanted to fill the young brains with the powers of self-realization, character formation, to recognize inner strengths, service to others, an optimistic outlook, tireless efforts and a lot more.

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Other Great Works by Swami Vivekananda

His famous quotations include, “Arise, awake and stop not till the goal is reached.” He also added that anything making a child physically, intellectually and spiritually weak must be rejected as a poison. He also emphasized on an education that leads to character formation.

His establishment of “Ramkrishna Math” and “Ramkrishna Mission” was a sign of “Guru Bhakti”, his sacrifice, austerity, and service of the poor and the downtrodden people of India. He was also a founder of Belur Math.

He spread the message of divinity and the true aims of scriptures. This great patriotic monk of the Mother Earth took his last breath on 4 th July 1902 at Belur Math.

Swamiji carried the messages of the rich and varied heritage of Indian culture and Hinduism, non-duality, selfless love, and service towards the nation. His mesmerizing personality with the highest virtues illuminated the young minds. His teachings aroused the realization of the power of the soul in them.

Thus, we celebrate his “Avtaran Divas” 12 th January, as the National Youth Day with great zeal and enthusiasm.

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Swami vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani

स्वामी विवेकानंद जी का संपूर्ण जीवन परिचय, उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों तथा घटनाओं का भी अध्ययन करेंगे।

यह जीवन परिचय युवा प्रेरणा स्रोत , ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित है। इस लेख के माध्यम से आप नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाने की कहानी जान सकेंगे। उनकी स्मरण शक्ति और उनके जीवन शैली को इस लेख के माध्यम से विस्तृत अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।

प्रस्तुत लेख स्वामी विवेकानंद जी के संकल्प शक्ति, विचारों के ऊर्जा, अध्यात्म, आत्मविश्वास आदि का विस्तार है। उन्होंने अल्पायु से लेकर अपने जीवन काल तक जिस मार्ग को अपनाया, उसे आज युवा प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। स्वामी जी आज करोड़ों देशवासियों के मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनको पसंद करने वाले देश ही नहीं अभी तो विदेश में भी है। उनकी विचारधारा ऐसी थी जिसे भारत ही नहीं विदेश में भी पसंद किया गया।

यह लेख स्वामी जी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालने में सक्षम है.

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी स्मरण शक्ति और दृढ़ प्रतिज्ञा बेजोड़ है। बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। उनकी कुशाग्र बुद्धि ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया। एक छोटे से जगह पर जन्मे और देश-विदेश में अपनी ख्याति को सिद्ध करने वाले स्वामी आज करोड़ों देशवासियों के लिए आदर्श व्यक्ति हैं। देश-विदेश में उनकी ख्याति है , उनको पसंद करने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है। स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि, उन्होंने आधुनिक वेद-वेदांत धर्म आदि की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन किया था।

Read Swami Vivekananda biodata below  which includes birth date, birth place, mother and father’s name, education, early life, full name, nationality, religion, famous quotes, stories, and some unknown facts.

12 जनवरी 1863
कोलकाता ( बांग्ला )
नरेंदर नाथ दत्त
सनातन हिन्दू
भारतीय
भुवनेश्वरी
विश्वनाथ दत्त ( प्रसिद्ध वकील )
दुर्गा चरण दत्त
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण मिशन
4 जुलाई 1902 में महासमाधि में लीन हुए ( आयु 39 ) बेलूर मठ पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक जीवन – Swami Vivekananda family life

Swami Vivekananda jivani and family life

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। यह दिन हिंदू मान्यता का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सूर्य की दिशा कुछ इस प्रकार होती है जो , वर्ष भर में मात्र एक बार अनुभव करने को मिलती है। विवेकानंद जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

जन्म के उपरांत उन्हें वीरेश्वर के नाम से जाना जाता था। 

शिक्षा शिक्षा के लिए औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया। विवेकानंद उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया हुआ नाम था।

जैसा कि उपरोक्त विदित हुआ स्वामी जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के मशहूर वकीलों में से एक थे। उनकी वकालत काफी लोकप्रिय थी, अधिवक्ता समाज उन्हें आदरणीय मानता था। विवेकानंद जी के दादा दुर्गा चरण दत्त काफी विद्वान थे। उन्होंने कई भाषाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी। उन्हें संस्कृत , फारसी, उर्दू का विद्वान माना जाता था। उनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी, जिसका परिणाम यह हुआ उन्होंने अपने युवावस्था में सन्यास धारण किया।

पच्चीस वर्ष की युवावस्था में दुर्गा चरण दत्त अपना परिवार त्याग कर सन्यासी बन गए।

स्वामी जी की माता भुवनेश्वरी दत्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

वह विशेष रूप से शिव की उपासना किया करती थी। यही कारण है उनके घर में निरंतर पूजा-पाठ, हवन, कीर्तन-भजन आदि का कार्यक्रम हुआ करता था। रामायण, महाभारत और कथा वाचन नित्य प्रतिदिन का कार्य था।

स्वामी विवेकानंद जी का पालन पोषण इस परिवेश में हुआ।

उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और धर्म के प्रति लगाव , घर में बने वातावरण के कारण था । वह सदैव जानने की प्रवृत्ति को अपने भीतर रखते थे। वह अपने माता-पिता या कथावाचक आदि से नित्य प्रतिदिन ईश्वर, धर्म और संस्कृति के बारे में प्रश्न पूछा करते थे।

कई बार उनके प्रश्न इस प्रकार हुआ करते थे , जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता। स्वामी जी मे दिखने वाली कुशाग्र बुद्धि और जिज्ञासा धर्म-संस्कृति आदि की समझ परिवार की देन ही माना जाएगा।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद जी कैसे बने – Swami Vivekananda Childhood

नरेंद्र नाथ दत्त बचपन से खोजी प्रवृत्ति के थे, उन्हें किसी एक विषय में रुचि नहीं थी। वह विषय के उद्गम और विस्तार को कारणों सहित जानने के जिज्ञासु थे । नरेंद्र नाथ कि इसी प्रवृत्ति के कारण शिक्षक उनसे प्रभावित रहते थे।

उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे बालक नरेंद्र नाथ के जिज्ञासा और उनकी उत्सुकता को अपना प्रेम देते थे।

नरेंद्र नाथ दत्त में बहुमुखी प्रतिभा थी, यह सामान्य बालक से बिल्कुल अलग थे। सामान्य बालक जहां एक विषय के अध्ययन में वर्षों निकाल दिया करते थे। नरेंद्र नाथ पूरी पुस्तक का अध्ययन कुछ ही क्षण में कर लिया करते थे। उनका यह अध्ययन सामान्य नहीं था वह पृष्ठ संख्या और अक्षरसः हुआ करता था। इस प्रतिभा से रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न होकर नरेंद्र नाथ दत्त को विवेकानंद कहकर पुकारते थे।

यही विवेकानंद भविष्य में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। जो विवेक का स्वामी हो वही विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

Swami vivekananda education in Hindi - स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की आरंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। विद्यालय से पूर्व उनका ज्ञान संस्कार घर पर ही किया गया। दादा तथा माता-पिता की देख-रेख में उन्होंने विद्यालय से पूर्व ही, सामान्य बालकों से अधिक जानकारी प्राप्त कर ली थी।

आठ वर्ष की आयु में, उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्थान कोलकाता में प्राथमिक ज्ञान के लिए विद्यालय भेजा गया। यह समय 1871 का था। कुछ समय पश्चात 1877 में परिवार किसी कारणवश रायपुर चला गया। दो वर्ष के पश्चात 1879 मे कोलकाता वापस आ गया।  यहां स्वामी विवेकानंद ने प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त किए।

यह बेहद ही सराहनीय सफलता थी, अन्य विद्यार्थियों के लिए यह सपना हुआ करता था।

स्वामी विवेकानंद इस समय तक

  • राजनीति विज्ञान
  • समाजिक विज्ञान
  • अनेक हिंदू धर्म के ग्रंथ तथा साहित्य का अक्षरसः गहनता से अध्ययन कर लिया था।

स्वामी जी ने पश्चिमी साहित्य के धार्मिक और विचारों तथा क्रांतिकारी घटनाओं का व्याख्यात्मक विश्लेषण भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय कला में भी निपुण थे , उन्होंने शास्त्रीय संगीत में परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। वह शास्त्रीय संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए स्वीकार करते हैं। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहते थे।

यही कारण है उनका स्वयं के शरीर से काफी लगाव था।

वह योग, कसरत, खेल, संगीत आदि को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया करते थे। उनका मानना था अगर मस्तिष्क को संतुलित रखना है तो, शरीर को स्वस्थ रखना ही होगा। जिसके लिए वह योग और कसरत पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी खेल में भी निपुण थे, वह विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेते तथा प्रतियोगिता को अपने बाहुबल से जितते भी थे।

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देश के धर्म, संस्कृति, विचारधारा और महान लेखकों के साहित्य का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि विकसित देशों के महान दार्शनिकों की पुस्तकें और उनके शोध को गहनता से अध्ययन किया था।

1881 में विवेकानंद जी ने ललित कला की परीक्षा दी, जिसमें वह सफलतापूर्वक उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए।

1884 में उनका स्नातक भी सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था।

स्वामी जी का शिक्षा के प्रति काफी लगाव था, जिसके कारण उन्होंने संस्कृत के साहित्य को विकसित किया। क्षेत्रीय भाषा बांग्ला में अनेकों साहित्य का अनुवाद किया। संभवत उपन्यास, कहानी, नाटक और महाकाव्य हिंदी साहित्य में बांग्ला साहित्य के माध्यम से ही आया था।

Swami vivekananda biography in Hindi - स्वामी विवेकानंद

सामाजिक दृष्टिकोण – Swami Vivekananda views towards society

स्वामी विवेकानंद की सामाजिक दृष्टि समन्वय भाव की थी। वह सभी जातियों को एक समान दृष्टि से देखते थे। यही कारण है सभी जाती और मानव कल्याण के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेद-वेदांत, धर्म, संस्कृति आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। वह ईश्वर को एक मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, उसे पूजने और मानने का तरीका अलग-अलग है। उन्होंने अनेक मठ की स्थापना धर्म के विकास के लिए ही किया था।

स्वामी जी मूर्ति पूजा का विरोध किया करते थे, उन्होंने अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का एहसास दिलाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ब्रह्मांड की सभी सार्थक शक्तियां व्यक्ति के भीतर निहित होती है। अपनी साधना और शक्ति के माध्यम से उन सभी दिव्य शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।

इसलिए वह सदैव कर्मकांड और बाह्य आडंबरों, पुरोहितवाद पर चोट करते थे।

समाज के कल्याण के लिए वह जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे। जहां एक और समाज में जाति-धर्म व्यवस्था आदि की पराकाष्ठा थी। वही स्वामी जी ने उन सभी जाति धर्म और वर्ण में समन्वय स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया। स्वामी जी ने समाज कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय कार्य किया। ब्रह्म समाज की स्थापना कर उन्होंने समाज में बहिष्कृत जाति आदि को मान्यता दी।

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जहां भेदभाव जाति के आधार पर ना हो। वह इसीलिए ब्रह्मावाद, भौतिकवाद, मूर्ति पूजा पर, अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए धर्म और अनाचार के विरुद्ध वह सदैव कार्य कर रहे थे। उन्होंने समाज में युवाओं द्वारा किया जा रहा मदिरापान तथा अन्य व्यसनों को दूर करने के लिए कार्य किया। कई उपदेश दिए और अपने सहयोगियों के साथ उन सभी केंद्रों को बंद करवाया।

वह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच आदि को समाज से दूर करना चाहते थे।

उन्होंने सेठ महाजन ओ आदि के द्वारा किया जा रहा , सामान्य जनता पर अत्याचार आदि को भी दूर करने का प्रयत्न किया । स्वामी जी ने नर सेवा को ही नारायण सेवा मानकर समाज के प्रति अपना सम्मान जनक दृष्टिकोण रखा।

स्वामी विवेकानंद जी की स्मरण शक्ति – Swami Vivekananda memory powers

Swami Vivekananda memory power

स्वामी जी की स्मरण शक्ति अतुलनीय थी। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, अपनी कक्षा की पाठ्य सामग्री को कुछ ही दिनों में समाप्त कर दिया करते थे। जहां उसके अध्ययन में अन्य बच्चों को पूरा वर्ष लग जाया करता था। बड़े से बड़े धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की पुस्तकों को उन्होंने अक्षर से याद किया हुआ था। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उनसे पढ़ी हुई पुस्तक को पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित प्रत्येक शब्द बता दिया करते थे।

स्मरण शक्ति के पीछे उनके आरंभिक जीवन के ज्ञान का अहम योगदान है।

स्वामी विवेकानंद के दादाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, उन्होंने संस्कृत और फारसी पर अच्छी पकड़ बनाई हुई थी। वह इन साहित्यों का गहन अध्ययन कर चुके थे। विवेकानंद जी की माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उन्होंने पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन और धार्मिक पुस्तकों, वेद आदि को नित्य प्रतिदिन पढ़ना और सुनना अपनी दिनचर्या में शामिल किया हुआ था। पिता प्रसिद्ध वकील थे, उनकी वकालत कोलकाता हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी की थी।

इन सभी संस्कारों के कारण स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के हुए। उन्होंने ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा और स्वयं अपने भीतर के ईश्वर को पहचानने का यत्न किया। जिसके कारण उनकी स्मरण शक्ति अतुलनीय होती गई।

स्वामी विवेकानंद जी की तार्किक शक्ति – Swami Vivekananda Logical thinking

जैसा कि हम जानते हैं स्वामी जी का आरंभिक जीवन वेद-वेदांत, भगवत गीता, रामायण आदि को पढ़ते-सुनते बीता था। वह कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने घर आने वाले कथा वाचक को ऐसे-ऐसे प्रश्न जाल में उलझाया था।  जिनका जवाब उनके पास नहीं था। वह जीव, माया, ईश्वर, जगत, दुख आदि के विषय में अनेकों ऐसे प्रश्न जान लिए थे जिनका कोई तोड़ नहीं था।

इस कारण स्वामी जी की बौद्धिक शक्ति का विस्तार हुआ। वह सभ्य समाज में बैठने लगे, उनकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके जवाब इस प्रकार के होते, जिसके आगे सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता। उसे संतुष्टि हो जाती, इस जवाब के अतिरिक्त कोई और जवाब नहीं हो सकता।

उनकी तर्कशक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि, बड़े से बड़े विद्वान, नीतिवान और चिंतकों ने स्वामी विवेकानंद से शास्त्रार्थ किया।

योग के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण – Swami Vivekananda view towards Yoga

Swami Vivekananda views on Yoga in Hindi

स्वामी जी का स्पष्ट मानना था स्वस्थ मस्तिष्क के लिए , स्वस्थ शरीर का होना अति आवश्यक है। योग साधना पर उन्होंने विशेष बल दिया था। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर के भीतर निहितदिव्य शक्तियों को जागृत कर बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है। स्वयं स्वामी विवेकानंद प्रतिदिन काफी समय तक योग किया करते थे। उनकी बुद्धि और शरीर सभी उनके नियंत्रण से कार्य करती थी। इस प्रकार की दिव्य साधना स्वामी जी ने एकांतवास में किया था।

वह समाज में योग को विशेष महत्व देते हुए, योग के प्रति प्रेरित करते थे। संसार जहां व्यभिचार और व्यसनों में बर्बाद हो रहा है, वही योग का अनुकरण कर ईश्वर की प्राप्ति होती है। योग के द्वारा माया को दूर भी किया जा सकता है। एक सिद्ध योगी अपने शक्तियों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया से बचता है, आत्मा-परमात्मा के बीच का भेद मिटाता है।

स्वामी विवेकानंद जी की दार्शनिक विचारधारा – Swami Vivekananda Philosophy

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धर्म-संस्कृति में विशेष रूचि रखते थे। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म – संस्कृति तथा जीव , माया , ईश्वर आदि को जानने में प्रयोग किया। वह अद्वैतवाद को मानते थे, जिसका संस्कृत में अर्थ है एकतत्ववाद या जिसका दो अर्थ नहीं हो । जो ईश्वर है वही सत्य है, ईश्वर के अलावा सब माया है।

यह संसार माया है, इसमें पडकर व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है। ईश्वर उस माया को दूर करता है, इस माया को दूर करने का एक माध्यम ज्ञान है। जिसने ज्ञान को हासिल किया वह इस माया से बच गया।

इस प्रकार के विचार स्वामी विवेकानंद के थे, इसलिए उन्होंने अद्वैत आश्रम का मायावती स्थान पर किया था। अनेक मठों की स्थापना उन्होंने स्वयं की। देश-विदेश का भ्रमण करके उन्होंने ईश्वर सत्य जग मिथ्या पर अपना संदेश लोगों को सुनाया।

लोगों ने इसे स्वीकार करते हुए स्वामी जी के विचारों को अपनाया है।

स्वामी जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उन्होंने युक्ति संगत बातों को समाज के बीच रखा। वेद-वेदांत, धर्म, उपनिषद आदि का सरल अनुवाद लोगों के समक्ष प्रकट किया। उनके साथ उनकी पूरी टोली कार्य किया करती थी।

संभवत वह केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में भी कार्य करते थे।

1881 – 1884 के दौरान उन्होंने धूम्रपान, शराब और व्यसन से दूर रहने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। उनके दुष्परिणामों को उनके समक्ष रखा। जिससे काफी संख्या में युवा प्रभावित हुए, आज से पूर्व उन्हें इस प्रकार का ज्ञान किसी और ने नहीं दिया था। देश में फैल रहे अवैध रूप से ईसाई धर्म को भी उन्होंने प्रबल इच्छाशक्ति के साथ रोकने का प्रयत्न किया। ईसाई मिशनरी देश की भोली-भाली जनता को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रही थी।

इसका विरोध भी स्वामी जी ने किया था।

स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य वेदो की ओर लोटाना था।

स्वामी विवेकानंद जी थे धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक

विवेकानंद जी का बाल संस्कार धर्म और संस्कृति पर आधारित था। उन्हें बाल संस्कार के रूप में वेद – वेदांत, भगवत, पुराण, गीता आदि का ज्ञान मिला था। जिस व्यक्ति के पास इस प्रकार का ज्ञान हो वह व्यक्ति महान हो जाता है। समाज में वह पूजनीय स्थान प्राप्त कर लेता है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह किसी और ज्ञान का आश्रित नहीं रह जाता।

उन्होंने विद्यालय शिक्षा अवश्य प्राप्त की थी, किंतु उन्हें विद्यालयी शिक्षा सदैव बोझ लगा। यह केवल समय बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं था।  विद्यालयी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा नीति पर आधारित थी। जहां केवल ईसाई धर्म आदि का महिमामंडन किया गया था। यह शिक्षा समाज के लिए नहीं थी।समाज का एक बड़ा वर्ग जहां अशिक्षित था।

शिक्षा की कमी के कारण वह समाज निरंतर विघटन की ओर जा रहा था। 

अतः समाज में ऐसी शिक्षा की कमी थी जो समाज को सन्मार्ग पर ले जाए।

निरंतर सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, धर्म की हानि हो रही थी। स्वामी जी ने अपने बुद्धि बल का प्रयोग कर समाज को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी मोतियों को एक माला में पिरोने का कार्य किया।

विवेकानंद जी ने जगह-जगह घूमकर धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

लोगों को, समाज को यह विश्वास दिलाया कि वह महान और दिव्य कार्य कर सकते हैं। बस उन्हें इच्छा शक्ति जागृत करनी है। उन्होंने माया और जगत मिथ्या हे लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

ईश्वर की सत्ता को परम सत्य के रूप में प्रकट किया।

स्वामी जी ने मठ तथा आश्रम की स्थापना कर धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने ऐसे सहयोगी तथा शिष्य को तैयार किया। जो समाज के बीच जाकर, उनके बीच फैली हुई अज्ञानता को दूर करते थे।

धर्म तथा संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को सामने रखने का प्रयत्न किया।

शरीर के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वस्थ शरीर होने की वकालत सदैव स्वामी विवेकानंद जी करते रहे। वह हमेशा कहते थे , स्वस्थ शरीर के रहते हुए ही स्वस्थ कार्य अर्थात अच्छे कार्य किए जा सकते हैं। अच्छी शक्तियां शरीर के भीतर तभी जागृत होती है, जब मन और शरीर स्वच्छ हो। वह स्वयं खेल-कूद और शारीरिक प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे।

शारीरिक कसरत उनकी दिनचर्या में शामिल थी। उनका शरीर, कद-काठी उनके ज्ञान की भांति ही मजबूत और शक्तिशाली थी।

स्वामी विवेकानंद जी का वेदों की और लोटो से आशय

स्वामी जी के समय समाज में व्याप्त आडंबर, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा और विदेशी धर्म संस्कृति, भारतीय सनातन संस्कृति की नींव खोद रही थी। उन्होंने स्वयं वेद-वेदांत, पुराण तथा अन्य प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में वह निपुण हो गए थे। उन्होंने ईश्वर और जगत के बीच माया-मोह का अंतर जाने लिया था। वह सभी लोगों को ईश्वर की ओर अपना ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा बुलंद किया।

इस नारे को लेते हुए वह विदेश भी गए, वहां उन्हें काफी सराहना मिली। अमेरिका, यूरोप, रूस, फ्रांस आदि विकसित देशों ने भी स्वामी जी के विचारों को सराहा। उनके विचारों से प्रेरित हुए, जिसके कारण वहां आश्रम तथा मठ की स्थापना हो सकी। वहां ऐसे शिक्षक तैयार हो सके जो स्वामी जी के विचारों को आगे लेकर जाए।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रसिद्धि

स्वामी जी की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेश में भी थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा पूरा भारत तो मानता ही था। जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण धर्म सम्मेलन में दिया।

उनकी ख्याति रातो-रात विदेश में भी बढ़ गई।

स्वामी जी की प्रसिद्धि अब विदेशों में भी हो गई थी।

उनसे मिलने के लिए विदेश के बड़े से बड़े दार्शनिक, चिंतक, आदि लालायित रहा करते थे।

स्वामी जी से मुलाकात किसी भी विद्वान के लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। स्वामी जी भारतीय सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे। सनातन धर्म से अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने वाले अनेकों दूसरे धर्म के प्रचारक भेंट करने को आतुर रहते। स्वामी जी के तर्कशक्ति के आगे बड़े से बड़ा विचारक, दार्शनिक आदि धाराशाही हो जाते। वह किसी भी साहित्य को बिना खोले बाहर सही अध्ययन करने की क्षमता रखते थे।

इस प्रतिभा ने स्वामी जी को और प्रसिद्धि दिलाई।

फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका तथा अन्य देशों की ऐसी घटनाएं यह साबित करती है कि उनकी प्रसिद्धि किस स्तर पर थी।

फ़्रांस के महान दार्शनिक के घर जब वह आतिथ्य हुए तब उनकी पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठ की पुस्तक को एक घंटे में बिना खोलें अध्ययन किया। यह अध्ययन पृष्ठ संख्या सहित, अक्षरसः था।

इस प्रतिभा से फ्रांस का वह दार्शनिक स्वामी जी का शिष्य हो गया।

अंग्रेजी भाषा के प्रतिस्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित थे। वह बांग्ला, संस्कृत, फ़ारसी आदि भाषाओं को जानते थे। इन भाषाओं में वह काफी अच्छा ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण अलग था। वह अंग्रेजी भाषा को कभी भी हृदय से स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था जिन लुटेरों और आतंकियों ने उनकी मातृभूमि को क्षति पहुंचाई है।

उनकी भाषा को जानना भी पाप है।

इस पाप से वह सदैव बचते रहे।

जब आभास हुआ, भारतीय संस्कृति को तथाकथित अंग्रेजी विद्वानों के सामने रखने के लिए उनकी भाषा की आवश्यकता होगी। स्वामी जी ने उनकी भाषा में, उनको समझाने के लिए अंग्रेजी का अध्ययन किया। वह अंग्रेजी में इतने निपुण हो गए, उन्होंने अंग्रेजी के महान दार्शनिक, चिंतकों और विचारकों के साहित्य को विस्तारपूर्वक अक्षर से अध्ययन किया। इतना ही नहीं उनकी महानता को बताने वाले, सभी धार्मिक साहित्य का भी गहनता से अध्ययन किया। जिसका परिणाम हम अनेकों धर्म सम्मेलनों में देख चुके हैं।

मतिभूमि के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का प्रेम

विवेकानंद जी की देशभक्ति अतुलनीय थी। एक समय की बात है ,स्वामी जी विदेश यात्रा कर समुद्र मार्ग से अपने देश लौटे। यहां जहाज से उतर कर उन्होंने मातृभूमि को झुककर प्रणाम किया। यह संत यहीं नहीं रुका।जमीन में इस प्रकार लौटने लगा, जैसे प्यास से व्याकुल कोई व्यक्ति। यह प्यास अपनी मातृभूमि से मिलने की थी, जो उद्गार रूप में प्रकट हुई थी। स्वामी जी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा और सम्मान की भावना संभवत अपने बाल संस्कारों से लिए थे।

बालक नरेंद्र ने अपने दादा को देखा था।

जिन्होंने पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार का त्याग कर सन्यास धारण किया था। ऐसा कौन युवा होता है जो इतनी कम आयु में संन्यास लेता है।

संभवत नरेंद्र ने भी राष्ट्रभक्ति का प्रथम अध्याय अपने घर से ही पढ़ा था।

स्वामी विवेकानंद जी के अद्भुत सुविचार

१.  कोई तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अपनी मदद स्वयं करो तुम खुद के लिए सबसे अच्छे मित्र हो और सबसे बड़े दुश्मन भी। ।

स्वामी जी कहते हैं तुम्हारी मदद कोई और नहीं कर सकता , जब तक तुम स्वयं की मदद नहीं करते। मनुष्य को यहां तक कि किसी के मदद की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं अपनी मदद कर सकता है। व्यक्ति स्वयं का जितना अच्छा मित्र होता है, उतना ही बड़ा दुश्मन भी। यह उसके व्यवहार पर निर्भर करता है कि, वह स्वयं से दोस्ती करना चाहता है या दुश्मनी।

२.  हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला करेंगे हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होता जाएगा और परमात्मा उसमें निवास करेंगे। ।

भारत में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। स्वामी जी इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, उन्होंने कहा है व्यक्ति जितना बाहर निकल कर दीन – दुखीयों  और आवश्यक लोगों की सेवा करेगा। उस व्यक्ति का हृदय उतना ही पवित्र होगा। पवित्र हृदय में ही परमात्मा का सच्चा निवास होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह दिन दुखियों की सेवा करे।

३. कुछ ऊर्जावान व्यक्ति एक साल में इतना कर देता है , जितना भीड़ एक हजार साल में नहीं कर सकती। ।

बड़ी सफलता और उपलब्धि हासिल करने वाले कुछ ही लोग होते हैं।

ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति कुछ ही समय में ऐसा कार्य कर दिखाते हैं, जो बड़े से बड़ा जनसमूह हजारों साल में नहीं कर सकता। वर्तमान समय में भी ऐसे लोग विद्यमान है।

ऐसे ही लोगों के कारण आज का विज्ञान सूरज और चांद से आगे निकल चुका है।

४. कोई एक विचार लो , और उसे ही जीवन बना लो उसी के बारे में सोचो , उसके सपने देखो उसे मस्तिष्क में , मांसपेशियों में , नसों में और शरीर के हर हिस्से में डूब जाने दो। दूसरे सभी विचारों को अलग रख दो यही सफल होने का तरीका है। ।

स्वामी जी का मानना था किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दिन-रात की मेहनत लगानी पड़ती है। उसे अपने प्रत्येक इंद्रियों में समाहित करना पड़ता है। उसके प्रति लगन समर्पण का भाव रखना पड़ता है , तब जाकर सफलता प्राप्त होती है। जो इस प्रकार के यत्न नहीं करते उन्हें सफलता दुष्कर लगती है।

५.  विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच एतव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है जो प्रेम करता है , वह जीता है जो स्वार्थी है , वह मरता है एतव प्रेम के लिए ही प्रेम करो क्योंकि प्रेम ही , जीवन का एकमात्र नियम है। ।

माना जाता है प्रेम से शुद्ध और कोई चीज नहीं होती। व्यक्ति के जीवन में प्रेम अहम भूमिका निभाती है , प्रेम जितना शुद्ध होगा व्यक्ति उतना ही योग्य होगा। जिस व्यक्ति के मन में स्वार्थ और संकोच की भावना होती है , वह मृत्यु के समान बर्ताव करती है। जीवन का एक मात्र सत्य प्रेम है प्रेम के प्रति व्यक्ति को समर्पण भाव रखते हुए स्वीकार करना चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां

  • 12 जनवरी 1863 – कोलकाता (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में जन्म ।
  • 1871 प्राथमिक शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था कोलकाता में दाखिला।
  • 1877 परिवार रायपुर चला गया।
  • 1879 प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में अव्वल हुए।
  • 1880 जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट में प्रवेश।
  • 1881 ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की
  • नवंबर 1881 रामकृष्ण परमहंस से भेंट।
  • 1882 – 86 रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे
  • 1884  स्नातक की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया
  • 1884 पिता का स्वर्गवास
  • 16 अगस्त 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन
  • 1886 वराहनगर मठ की स्थापना किया
  • 1887 वडानगर मठ से औपचारिक सन्यास धारण किया
  • 1890-93 परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण किया
  • 25 दिसंबर 1892 कन्याकुमारी में निवास किया
  • 13 फरवरी 1893 प्रथम व्याख्यान सिकंदराबाद में दिया
  • 31 मई 1893 मुंबई से अमेरिका के लिए जल मार्ग से रवाना हुए
  • 25 जुलाई 1893 कनाडा पहुंचे
  • 30 जुलाई 1893 शिकागो शहर पहुंचे
  • अगस्त 1893 हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन राइट से मुलाकात हुई
  • 11 सितंबर 1893 विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में ऐतिहासिक व्याख्यान
  • 16 मई 1894 हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
  • नवंबर 1894 न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
  • जनवरी 1895 न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 वह पेरिस गए

  • अक्टूबर 1895 लंदन में अपना व्याख्यान दिया
  • 6 दिसंबर 1895 न्यूयॉर्क वापस आए
  • 22-25 मार्च 1886 वह पुनः लंदन आ गए
  • मई तथा जुलाई 1896 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
  • 28 मई 1896 ऑक्सफोर्ड में मैक्स मूलर से भेंट किया
  • 30 दिसंबर 1896 नेपाल से भारत की ओर रवाना हुए
  • 15 जनवरी 1897 कोलंबो श्री लंका पहुंचे
  • जनवरी 1897 रामेश्वरम में उनका जोरदार स्वागत हुआ साथ ही एक व्याख्यान भी
  • 6- 15 1897 मद्रास में भ्रमण किया
  • 19 फरवरी 1897 वह कोलकाता आ गए
  • 1 मई 1897  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
  • मई- दिसंबर 1897 उत्तर भारत की महत्वपूर्ण यात्रा की
  • जनवरी 1898 कोलकाता वापस हो गए
  • 19 मार्च 1899 अद्वैत आश्रम की स्थापना की
  • 20 जून 1899 पश्चिम देशों के लिए दूसरी यात्रा का आरंभ किया
  • 31 जुलाई 1899 न्यूयॉर्क पहुंचे
  • 22 फरवरी 1900 सैन फ्रांसिस्को में वेदांत की स्थापना की
  • जून 1900 न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा का आयोजन हुआ
  • 26 जुलाई 1900 यूरोप के लिए रवाना हुए
  • 24 अक्टूबर 1900 विएना , हंगरी , कुस्तुनतुनिया , ग्रीस , मिश्र आदि देशों की यात्रा किया
  • 26 नवंबर 1900 भारत को रवाना हुए
  • 6 दिसंबर 1900 बेलूर मठ में आगमन हुआ
  • 10 जनवरी 1901 अद्वैत आश्रम में भ्रमण किया
  • मार्च – मई1901 पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की
  • जनवरी-फरवरी1902 बोधगया और वाराणसी की यात्रा की
  • मार्च 1902 बेलूर मठ वापसी हुई
  • 4 जुलाई 1902 स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि धारण की

स्वामी विवेकानंद जी पर आधारित कहानी

बालक नरेंदर बुद्धि का धनी था। वह अन्य विद्यार्थियों से बिल्कुल अलग था, जानने की जिज्ञासा उसके भीतर सदैव जागृत रहती थी।

स्वभाव से वह खोजी प्रवृत्ति का था।जब तक किसी विषय के उद्गम-अंत आदि का विस्तार से अध्ययन नहीं करता, चुप नहीं बैठा करता ।

यही कारण है उसका नाम  नरेंद्र नाथ दत्त  से  स्वामी विवेकानंद  हो गया ।

विवेकानंद कहलाने के पीछे भी उनके गुरु की अहम भूमिका है।

नरेंद्र बचपन से ही कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वह किसी भी विषय को बेहद ही सरल और कम समय में अध्ययन कर लिया करते थे। उनका ध्यान विद्यालय शिक्षा पर अधिक नहीं लगता था।

वह उन्हें अरुचिकर विषय जान पड़ता था। 

विद्यालय पाठ्यक्रम को वह कुछ दिन में ही समाप्त कर लिया करते थे। इसके कारण उन्हें फिर भी अन्य विद्यार्थियों के साथ वर्ष भर इंतजार करना पड़ता था , यह उन्हें बोझिल लगता था।

नरेंद्र की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी , वह कुछ क्षण में पूरी पुस्तक का अध्ययन अक्षरसः कर लिया करते थे। उनकी इस प्रतिभा से उनके  गुरु रामकृष्ण परमहंस  काफी प्रभावित थे। नरेंद्र की इस प्रतिभा को देखते हुए वह प्यार से  विवेकानंद  पुकारा करते थे।

भविष्य में यही नरेंद्र स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांत, गीता, उपनिषद आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर लिया था।

यह उनके स्मरण शक्ति का ही परिचय है।

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स्वामी विवेकानंद जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। मनुष्य होते हुए भी उनमें आलौकिक गुण विद्यमान थे जो उन्हें औरों से अलग बनाता था। भारतीय ही नहीं बल्कि पुराने जमाने में विदेश में भी उनकी प्रशंसा की जाती थी और वहां के लोग विवेकानंद जी पर किताब लिखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।

ऐसे महान व्यक्ति सदी में एक बार जन्म लेते हैं। इनसे जितना हो सके उतना लोगों को सीखना चाहिए और अपने जीवन को बदलना चाहिए। आशा है यह लेख आपको काफी पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। आप अपने विचार हम तक कमेंट सेक्शन में लिखकर पहुंचा सकते हैं।

आप हमारे द्वारा लिखी अन्य महान लोगों पर जीवनी भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से

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इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

अगर आपके मन में कोई भी प्रश्न या फिर दुविधा है इस लेख से संबंधित तो आप हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित कर सकते हैं।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani”

महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद जी को मैं काफी फॉलो करता हूं और वह मेरे लिए काफी बड़े प्रेरणा के स्रोत हैं. उनके द्वारा कहा गया एक एक शब्द एक किताब के बराबर है जिसके मूल्य को नापना बहुत मुश्किल है. उनकी जीवनी लिखकर आपने बहुत अच्छा काम किया है

स्वामी विवेकानंद जी एक महान व्यक्ति थे जिनका चरित्र चित्रण आपने बहुत अच्छे तरीके से किया है. परंतु इसमें कुछ बातें नहीं लिखी जो मैं चाहता हूं कि आप यहां पर लिखें जैसे कि उन्होंने कौन सी स्पीच दी थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जी थे जो काली के उपासक थे

बहुत बहुत साधुवाद आपकी पुरी टीम को जिन्होंने इतनी मेहनत कर के हम सभी तक स्वामी जी के जीवन की अमुल्य बातें पहुचाई

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Swami Vivekananda: The Greatest Son of India

Born Narendranath Datta in 1863, Swami Vivekananda wasn't just a monk; he was a whirlwind of intellect, spirituality, and unwavering passion. He rose from the bustling streets of Calcutta to become the voice of India's ancient wisdom on the world stage, leaving an indelible mark on the 19th and 20th centuries. This essay delves into his remarkable journey, exploring his transformative teachings and their continued relevance in our lives.

We in modern society often talk about our strengths and weaknesses but long ago in the 19th Century, a boy born in a middle-class Bengali family of Kolkata reached a divine stature in his life at an early age through his spiritual thoughts and simple living concepts. He said, “Strength is Life and Weakness is Death.” He also said, “Arise, awake, and stop not till the goal is reached.” Can we guess by now who the boy is? Yes, we are talking about Narendra Nath Dutta who later went on to become Swami Vivekananda, the monk. A student who during his college days was fond of music and sports like other young boys of his age completely transformed himself into a person of exceptional spiritual vision. His works "Modern Vedanta" and "Raj Yoga" are today acclaimed all over the world. 

Life of Swami Vivekananda

Fondly referred to as Swamiji, Vivekananda was born as Narendranath Dutta in an aristocratic Bengali family in British-ruled India on 12th January 1863. His father Vishwanath Dutta was a renowned attorney at the Calcutta High Court. Narendranath Dutta regarded his mother Bhuvaneshwari Devi as a goddess and in his numerous books, he wrote that his mother was a “Divine Spirit” for him. 

Swami Vivekananda proudly upheld the greatness of Hinduism and taught the world its true essence of acceptance and tolerance. His famous speech at Chicago World Religion Congress in the year 1893 is remembered to date. “Sisters and brothers of America"- the opening lines of the speech made the audience sit up and applaud with great zeal.

Swami Vivekananda: The Inspiration to the Youth of India

He became rather still the inspiration of the youths and to pay homage to him his birthday on 12th January is celebrated as National Youth Day. We even today learn the true aim of scriptures and austerity from his works. Guru Bhakti? How can we forget that to serve the poor downtrodden people of the society he established the Ramakrishna Mission before the name of his Guru Sri Ramakrishna Paramhansa in 1897?

Vivekananda and Western Philosophy were like two sides of the same coin. This happened when Ramakrishna proved to him that he can visualize God like the way he can see Swamiji; this surprised him a lot as a person who had no traditional knowledge about Science, Literature, or the Culture of India, could visualize God. The very thought that awakened Swamiji was the spiritual knowledge that was beyond all moral ethics and values. He realized we worship God for us but his Guru worshipped God for the sake of mankind.

Life and Work of Swami Vivekananda

A man with in-depth knowledge of Vedas; Upanishads; Bhagavad Gita and much more used to believe that serving mankind is to serve God and hence he was the person who can say "God gave me nothing I wanted but He gave me everything I needed." Happiness to him was a smile on the face of the poor. He was inspired right from his childhood due to her mother's religious nature and father's rational mind who was a then Lawyer.

We all are aware of his knowledge and personality, but most of us are unaware that Swamiji was a brilliant singer. He used to enchant devotional songs on his own to keep his mind at a peaceful stake. It is due to this ability he came across Ramakrishna Dev who happened to hear young Narendra Nath sing a devotional song that impressed Paramhansa. He then invited Vivekananda to Dakshineshwar from where the life of Swamiji changed completely. 

The childhood wish to visualize God in front became a reality to Swamiji in the vicinity of Ramakrishna. Swamiji used to believe strongly that people are born to do good for the Nation with proper guidance.  The worship of one God as an idol was recognized by the Brahma Samaj which made Swamiji surprised during his college days from where the curiosity to see God arose. In one of his books, he expressed his gratitude to William Hastie, the then Principal of Scottish Church College, from whom Swamiji came to know about Ramakrishna.

Swami Vivekananda's Demise

“You can lead if you win or else you will guide if you lose"- these quotes are true even in the 21st century. It is Swamiji who taught us the spirit to fight till the last moment as the goal has to be reached. Non-duality and selfless love are the two vital lessons he taught until the end of his life. Swamiji breathed his last at Belur Math, West Bengal on the 4th of July, 1902 at the age of 39. However, his legacy endured, influencing generations to come. His teachings continue to inspire millions, encouraging them to strive for excellence, seek spiritual understanding, and contribute to the welfare of society.

Swami Vivekananda was a towering figure, a bridge between East and West, a champion of ancient wisdom in a modern world. His life and teachings are a testament to the transformative power of spirituality, urging us to rise above limitations, embrace our divinity, and contribute to a world filled with compassion, understanding, and service. Let us celebrate his legacy not just through words, but by embodying his spirit of inquiry, his unwavering dedication to service, and his unwavering belief in the inherent greatness of every human being.

Students are suggested to use this essay as a reference to practice writing essays on their own. You can get guidance on types of essays from Vedantu. Also, you can also find many other essays on Vedantu’s website. Vedantu has covered all types of essays. Practicing these will give you an upper hand and will put you in a position where you will be able to write essays on any given topic.

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FAQs on Essay on Swami Vivekananda

1. What structure should I apply for the Essay on Swami Vivekananda?

Writing an essay is the place where you can apply your imagination and writing skills and come up with your structure. There is no one fixed structure for writing an essay. If you are confused about how to structure an Essay on Swami Vivekananda then you can follow the traditional format:

Introduction: Here you can introduce the personality and talk about him in brief. You can also start this part of the essay by quoting one of his quotes.  

Main Body: This is the main part of the essay where you will fill in the main content. Here you can talk about a lot of things like his life, his teachings, his contributions, etc.

Concluding Paragraph: As the name suggests this is where you conclude your essay. Here you can talk about how the personality of Swami Vivekanand has inspired you and also talk about how his wisdom is of cultural significance. 

2. What type of essay is the Essay on Swami Vivekananda?

The Essay on Swami Vivekananda is of biographical type. It is a type of essay wherein you talk about a personality. In a limited number of words, you are expected to discuss the life of some great personality. Themes that you are expected to include are his life, his journey, his contributions, the significance of his teachings, his area of interest, etc. The motive of writing such an essay is to get to know a personality and also to inculcate in students a habit of writing biographical types of essays. You can find many such biographical essays on Vedantu’s website as well as on the mobile application.

3. Do I need to memorize the Essay on Swami Vivekananda?

No there is no need to memorize the Essay on Swami Vivekananda. You can simply focus on the structure and try to remember that. You can remember important events, dates, names, and other factual data to use in the exam. You can also try to remember a few quotes by Swami Vivekananda. You should only focus on structuring the essay properly and including all the keywords. While writing the essay in the exam make sure to add your own perspective as well such as your learnings from Swami Vivekanand’s personality, this will give you an edge over others.

4. What all topics do I need to cover in the Essay on Swami Vivekananda?

As such, there is no specific list of topics that one needs to cover while writing an essay on Swami Vivekananda. But you can still follow a basic bare minimum content structure. You can talk about his birth, life, what was the changing point in his life, his relationship with his teacher and guru, his teachings, books written by him, his philosophies, his disciples, his contribution to the reform movement, his speech at Chicago’s religious conference his demise and how he inspired generations of people. You can also talk about his influence on your life. How his journey inspired you to become a better person.

5. Is the Essay on Swami Vivekananda available on Vedantu?

Yes, Vedantu has made the Essay on Swami Vivekananda available to you for free. It is available on Vedantu’s website as well as on the mobile application which you can download from the app store. You can read it directly from Vedantu’s website and by heart it for the exam. You need not sign in to access this essay. All you have to do is visit the website. This essay is written by subject matter experts after thorough research on Swami Vivekananda’s life. Thus you need not worry about the authenticity of the essay.

स्वामी विवेकानंद की विचारधारा पर निबंध

स्वामी विवेकानंद की विचारधारा स्वामी विवेकानंद पर निबंध essay on swami vivekananda in hindi.

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन1863 में कोलकाता में बेल्लूर नामक स्थान पे हुआ था, वे वेदांत के प्रख्यात विद्वान और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे उनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था, उन्होंने भारत में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है, वह रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन अत्यंत ही सरल और सादा था, वह उच्च कोटि के संत भी थे आज भी जब हम विवेकानंद के विचारों को पढ़ते या सुनते हैं तो वह हमारे अंदर एक अलग ही तरह का जोश भर देते हैं उन्होंने विचारों को सिर्फ बोला ही नहीं अपितु अपने स्वयं के जीवन में उतारा भी, उन्हें लोग भारतीय भिक्षु के नाम से भी बुलाया करते थे।

स्वामी विवेकानंद ने विवाह नहीं किया था और फिर भी वह नारी का उतना ही सम्मान करते थे जितना कि स्वयं की मां का इस संदर्भ में मैं एक कहानी का वर्णन करना चाहूंगी….

एक बार एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर उनके पास आई और उनसे बोली मैं आपसे शादी करना चाहती हूं ताकि आप जैसा ही मुझे गौरवशाली पुत्र प्राप्त हो इस पर स्वामी विवेकानंद जी बोले क्या आप जानती हैं कि मैं एक सन्यासी हूं मैं कैसे शादी कर सकता हूं अगर आप चाहो तो मुझे अपना पुत्र बना ले और इसप्रकार मुझे आप से विवाह भी नहीं करना पड़ेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी प्राप्त हो जायेगा, ऐसे महापुरुष थे स्वामी विवेकानंद जिन्हें पता था कि मुझे हर परिस्थिति में नारी का सम्मान करना है।

स्वामी विवेकानंद ने अपना संपूर्ण जीवन अपने देश, धर्म एवं मानव जाति के उत्थान में समर्पित कर दिया वह हमेशा से मेहनत को सफलता की कुंजी मानते थे उनका ऐसा मानना था कि यदि हमें जीवन में कुछ भी प्राप्त करना है तो लक्ष्य की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा और निरंतर कर्म करते रहना होगा इस परिपेक्ष में मैं एक और कहानी का वर्णन यहां करना चाहूंगी….

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में टहल रहे थे तभी अचानक से एक दुखी व्यक्ति आया और स्वामी जी के चरणों में गिर गया और बोला महाराज में अपने जीवन मै बहुत मेहनत करता हूं खूब मन लगाकर काम करता हूं फिर भी आज तक में सफल व्यक्ति नहीं बन पाया उसकी बातें सुनकर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा ठीक है पहले आप एक काम करो मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर घुमा कर लाओ तब तक मैं आपकी समस्या का समाधान सोचता हूं इतना कहने पर वह व्यक्ति कुत्ते को लेकर घुमाने चला गया और फिर कुछ समय पश्चात जब वह लौटा तो स्वामी विवेकानंद ने उस व्यक्ति से पूछा कि यह कुत्ता इतना हाफ़ क्यों रहा है जबकि तुम थोड़े भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ था, इस पर व्यक्ति ने बोला मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था परंतु यह कुत्ता इधर-उधर रास्ते पर भागता रहा और कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था जिसके कारण यह इतना थक गया इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर-उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाए, ऐसे थे हमारे स्वामी विवेकानंद। 

स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन मानव उथान का परिचायक रहा, उन्होंने अपने देश के गौरव को देश-विदेशो में पहुंचाने का कार्य किया, भारत की धरती पे जन्म लेकर उन्होंने भारत के गौरव को बढ़ाया, ऐसी परम विभूति को सत-सत नमन।

जय हिन्द-जय भारत

जाग्रति अस्थाना-लेखक

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद पर निबंध

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे यानी की आपको Swami Vivekananda par 1200 words का essay मिलेगा इसलिए ये आर्टिकल पूरा धेयान से पूरा पढ़ना है। आपके लिए हेलफुल साबित होगी।

स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे बड़े महापुरुष और धर्म गुरु है उन्होंने हमारी संस्कृति और हिंदू धर्म को पश्चिमी देशों को परिचित कराया आज पूरा विश्व योग दिवस मनाता है और योग को अपनी पहली प्राथमिकता के तौर पर करता है इस योग्य को परिचित भी स्वामी विवेकानंद ने ही पश्चिमी देशों को कराया स्वामी विवेकानंद युवाओं के नेता और मार्गदर्शक थे.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

उन्होंने देश की संस्कृति और देश के विकास के लिए अहम कदम उठाये और कार्य किए। स्वामी विवेकानंद हमारे देश की संस्कृति और वेदांत और आध्यात्मिक के महान ग्रुप है उन्होंने हमारे वेदांत और आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

आज पूरा विश्व संस्कृति और हिंदू धर्म के वेदों और योग के मूल्य को जानता है और उन मूल्यों को पूरे विश्व में लाने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है स्वामी विवेकानंद जी हमारे संस्कृति के प्रचार के लिए पूरे विश्व भर का भ्रमण किया और लोगों को हमारे संस्कृति का परिचय कराया।

19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार और लोगों के आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास और चेतना को जगाने के लिए स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही कार्य किए उन्होंने लोगों को जागरूक किया आज पूरा विश्व हिंदू धर्म और इसके रीति रिवाज को जानते हैं।

Swami Vivekananda रामकृष्ण मठ की स्थापना की जो आज भी कार्य कर रही है इस मठ में आज भी हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार किया जाता है आज भी मठ समाज कल्याण में जुड़े हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने मठ का नाम अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा.

Swami Vivekananda युवाओं के रोल मॉडल हैं। युवाओं को आगे बढ़ने और युवाओं को अपने आत्मविश्वास के बल से परिचय कराया। स्वामी विवेकानंद ने हमारे युवाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया और इसी के सहारे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम भी चलाएं। उन्होंने हमारे देश के लोगों को एक किया और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ खड़ा किया।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Biography of swami vivekananda in Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उस वक्त कोलकाता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी। स्वामी विवेकानंद जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता और उनके माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता कोलकाता हाईकोर्ट में कार्यरत उनकी माता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले थे स्वामी विवेकानंद को अपनी शुरुआत में आध्यात्मिक ज्ञान अपने माता से ही मिले स्वामी विवेकानंद के दादाजी संस्कृत और फारसी के जानकार थे उन्होंने 25 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़कर सन्यासी जीवन को अपना लिया।

Swami Vivekananda को बचपन से ही आध्यात्मिक में बहुत ही उचित है वह भगवान श्री राम और हनुमान जी के तस्वीरों के सामने अध्यन करते रहते थे। इतना ही नहीं नरेंद्र दत्ता बहुत ही नटखट भी थे उनके माता-पिता को बचपन में  संभालना बहुत ही मुश्किल होता था इसीलिए मैंने भगवान शिव से पुत्र मांगा था पर उन्होंने मुझे एक शैतान दे दिया।

1871 में 8 साल की उम्र में उनका दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में हुआ। यहां पर उन्होंने 6 साल तक पढ़ाई की इसके बाद उनका परिवार रायपुर चला गया 1879 में स्वामी विवेकानंद और उनके माता-पिता कोलकाता लौटे और उस वक्त स्वामी विवेकानंद पहले छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन अंक लाए थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की क्षमता बहुत ही अधिक थी वह एक बहुत ही अच्छे reader थे। नरेंद्र दत्त को भारतीय क्लासिक संगीत में रुचि थी। नरेंद्र दत्त को अध्यात्म धार्मिक इतिहास सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बहुत ही अधिक रूचि थी उन्हें हिंदू धर्म के वेदांत पुराण महाभारत उपनिषद में भी बहुत ही रुचि थी।

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उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई arts subject से की। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता पश्चिम में अध्यात्म और यूरोपियन इतिहास को भी पढ़ा। नरेंद्र दत्त पढ़ने में बहुत ही अव्वल थे उनके याद रखने की क्षमता बहुत ही अधिक और उनके तेज पढ़ने की क्षमता अतुल्य थी।

Swami Vivekananda तब के धर्मगुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत ही प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु माना। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक और हिंदू समाज के ज्ञान को स्वर्गीय रामकृष्ण परमहंस से ही प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पूरी जीवन को गुरु सेवा में लगा दिया।

आध्यात्मिक और इन सब चीजों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन्यासी जीवन को अपनाया उनके गुरु का एक उद्देश्य था भगवान की सेवा मानवता की सेवा में है और स्वामी विवेकानंद ने इस उद्देश्य को अपनी जीवन भर पूरा किया।

स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें किसी जाति लिंग के आधार पर भेदभाव ना हो जहां पर लोगों को एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हो और लोगों के ऊपर अत्याचार ना हो इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने भारत में भ्रमण किया और लोगों को देश के प्रति जागरूक किया।

लोगों को एक दूसरे के प्रति जागरूक 4 देशवासियों को एक किया ताकि पूरा देश मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ सके और अपने आजादी को प्राप्त कर सकें।

उन्होंने सदा ही अपने जीवन में नारियों का सम्मान किया उन्होंने समाज में नारी पर हो रहे अत्याचार को कम करने के लिए बहुत ही अहम भूमिका निभाई उन्होंने लोगों को नारी के प्रति जागरूक कराया और नारियों को उनका सम्मान दिलाया।

एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद कहीं विदेश में एक उपदेश दे रहे थे उनके स्पीच से विदेशी महिलाएं बहुत ही प्रभावित हुई उन्होंने स्वामी विवेकानंद से मिलने की इच्छा जताई जब यह स्त्रियां स्वामी विवेकानंद से मिली तब उन्होंने उनसे कहा जी आप बहुत ही गौरवशाली पुरुष हैं।

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स्वामी विवेकानंद से कहा आप हमसे शादी कर ले और तब हमें आपके जैसा पुत्र प्राप्त होगा तब स्वामी विवेकानंद ने हंसते हुए उत्तर दिया आप सभी तो जानते हैं कि मैं एक सन्यासी हूं भला मैं कैसे शादी कर सकता हूं अगर आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए तो आप मुझे अपना पुत्र बना ले इससे आप की भी इच्छा पूरी हो जाएगी और मेरा भी धर्म नहीं टूटेगा।

यह तो सुनते ही विदेशी महिलाएं Swami Vivekananda के चरणों में जा पड़ी और उन्होंने कहा आप धन्य है प्रभु आप एक ईश्वर के स्वरूप है आप किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते हैं।

अपने 30 वर्ष की छोटी से आयु में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हो रहे धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिंदू धर्म से पश्चिमी देशों को परिचित कराया। उनकी ख्याति इतनी है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था यदि आप भारत के बारे में जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए।

Swami Vivekananda भारत के लोगों को और देशवासियों को आवाहन दिया कि आओ साथ चल पड़े और इन दुराचारी अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराएं उन्हें कई शव वाहन का फल महात्मा गांधी के आजादी की लड़ाई में देखा इतना जनसैलाब स्वामी विवेकानंद के आह्वान के कारण आया स्वामी विवेकानंद अपने देश से बहुत अधिक प्रेम करते थे

उनका यह मानना था कि हमारे देश के युवा इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ युवाओं में से एक है और हमारे देश के युवा ही हमारे देश की नींव रखेंगे इसीलिए स्वामी विवेकानंद को युवा का नेता भी कहा जाता है और आज हम उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के तौर पर मनाते हैं हर साल हम 12 जनवरी को युवा दिवस के तौर पर स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देते हैं।

 मृत्यु:  उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी पढ़ना नहीं छोड़ा वह हर वक्त दो-तीन घंटे पढ़ते ही रहते थे। 4 जुलाई 1902 में अपने पढाई करते वक्त ही उन्होंने महासमाधि ली। उनका अंतिम संस्कार बेलूर मठ में किया गया। उनकी अंत्येष्टि चंदन की लकड़ी से बेलूर मठ वेट किया गया ठीक गंगा नदी के दूसरे तट में 16 वर्ष पूर्व रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

उनका जीवनकाल पूरी तरह से देश को समर्पित और सामाजिक और हिंदू धर्म को समर्पित था आज हमें स्वामी विवेकानंद के रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें स्वामी विवेकानंद के दिखाए गए रास्तों में चलना चाहिए इन्होंने समाज को एक आईना दिखाया और नए समाज की परिकल्पना की और इस परिकल्पना को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने जीवन भर कार्य किया।

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मुझे उम्मीद है की स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी और साथ ही Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में भी खेर अगर आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

swami vivekananda essay writing in hindi

By विकास सिंह

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स्वामी विवेकानंद एक महान धार्मिक हिंदू संत और एक नेता थे जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम हर साल 12 जनवरी को उनकी जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, short essay on swami vivekananda in hindi (100 शब्द)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 1863 में 12 जनवरी को विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के रूप में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। वह आध्यात्मिक विचारों वाला एक असाधारण बालक था। उनकी शिक्षा अनियमित थी लेकिन उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कोलकाता से बैचलर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री पूरी की। उनका धार्मिक और भिक्षु जीवन तब शुरू हुआ जब वे श्री रामकृष्ण से मिले और उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया। बाद में उन्होंने वेदांत आंदोलन का नेतृत्व किया और पश्चिमी देशों में हिंदू धर्म के भारतीय दर्शन को पेश किया।

11 सितंबर, 1893 को विश्व धर्म संसद में उनका शिकागो भाषण जहां उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया, वहीं हिंदू धर्म को एक महत्वपूर्ण विश्व धर्म के रूप में स्थापित करने में मदद की। वह हिंदू शास्त्रों (वेदों, उपनिषदों, पुराणों, भागवत गीता, आदि) के गहन ज्ञान वाले बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। कर्म योग, भक्ति योग, राज योग और ज्ञान योग उनके कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कार्य हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, essay on swami vivekananda in hindi (150 शब्द)

स्वामी विवेकानंद एक महान देशभक्त नेता थे, जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। वह अपने माता-पिता विश्वनाथ दत्ता और भुवनेश्वरी देवी के आठ भाई-बहनों में से एक थे। वह बहुत बुद्धिमान लड़का था और संगीत, जिम्नास्टिक और पढ़ाई में सक्रिय था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पश्चिमी दर्शन और इतिहास सहित विभिन्न विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया।

वह योगिक स्वभाव से पैदा हुए थे और ध्यान का अभ्यास करते थे और बचपन से ही ईश्वर के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। एक बार, जब वह किसी आध्यात्मिक संकट से गुज़र रहे थे, तो वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले और उनसे एक प्रश्न पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है और श्री रामकृष्ण ने उन्हें उत्तर दिया “हाँ, मेरे पास है। मैं उसे उतने ही स्पष्ट रूप से देखता हूं जितना कि मैं आपको देखता हूं, केवल एक गहन अर्थ में। ” उनकी दिव्य आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर विवेकानंद श्री रामकृष्ण के महान अनुयायियों में से एक बन गए और उनकी शिक्षाओं का पालन करने लगे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, 200 शब्द:

प्रस्तावना:.

स्वामी विवेकानंद का जन्म 18 जनवरी को 1863 में कलकत्ता में नरेंद्र नाथ दत्त के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता के नाम विश्वनाथ दत्ता (कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील) और भुवनेश्वरी देवी (एक धार्मिक गृहिणी) थे। वह एक सबसे लोकप्रिय हिंदू भिक्षु, भारत के देशभक्त संत और रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।

स्वामी विवेकानंद के कार्य:

उनकी शिक्षाएं और मूल्यवान विचार भारत की सबसे बड़ी दार्शनिक संपत्ति हैं। आधुनिक वेदांत और राज योग के उनके दर्शन युवाओं के लिए बहुत प्रेरणा हैं। उन्होंने बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो विवेकानंद की धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का प्रसार करता है और शैक्षिक और सामाजिक कार्यों में भी संलग्न है।

स्वामी विवेकानंद की जयंती 1985 के बाद से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह उत्सव युवा पीढ़ियों को प्रेरित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों में विवेकानंद के धर्मपरायण आदर्शों को उभारने में मदद करता है।

निष्कर्ष:

स्वामी विवेकानंद एक महान नेता और दार्शनिक थे जिन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और वैश्विक दर्शकों का दिल जीता। उनकी शिक्षाएं और दर्शन भारत के युवाओं के लिए मार्गदर्शक प्रकाश हैं। उनके विचारों ने हमेशा लोगों को प्रेरित किया है और हमेशा भविष्य की पीढ़ियों के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम करेंगे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, essay on swami vivekananda in hindi (250 शब्द)

परिचय.

स्वामी विवेकानंद, दुनिया भर में लोकप्रिय भिक्षु, 1863 में 12 जनवरी को कलकत्ता में पैदा हुए थे। उन्हें बचपन में नरेंद्रनाथ दत्त कहा जाता था। उनकी जयंती को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे विश्वनाथ दत्ता के आठ भाई-बहनों में से एक थे, जो कलकत्ता के उच्च न्यायालय के एक वकील और भुवनेश्वरी देवी थे। वह एक उज्ज्वल छात्र होने के साथ-साथ बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे, अपने संस्कृत ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।

स्वामी विवेकानंद की रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात:

विवेकानंद बचपन से ही स्वभाव से बहुत बौद्धिक थे और उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया था। एक दिन उनकी मुलाकात श्री रामकृष्ण से हुई जो दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी थे। उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर विवेकानंद पूरी तरह से बदल गए और उन्होंने रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु स्वीकार कर लिया। अपनी मृत्यु से पहले रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से विवेकानंद को अपने नेता के रूप में देखने और वेदांत के दर्शन का प्रसार करने के लिए कहा।

स्वामी विवेकानन्द शिकागो अधिवेशन में:

अपने गुरु की मृत्यु के बाद, विवेकानंद ने 1893 में शिकागो धर्म संसद के अधिवेशन में भाग लिया, जहाँ उन्होंने हिंदू धर्म को दुनिया के सामने पेश किया, जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा। उन्हें न्यूयॉर्क के अखबारों में से एक धर्म संसद में सबसे बड़ा व्यक्ति माना गया। शिकागो में उनका भाषण भारत को दुनिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक महान ऐतिहासिक कदम माना जाता है।

स्वामी विवेकानंद पूरे देश में एक महान देशभक्त और महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जो दुनिया में एक वास्तविक विकास, वैश्विक आध्यात्मिकता और शांति चाहते थे। उन्होंने 1897 में 1 मई को founded रामकृष्ण मिशन ’की स्थापना की जो व्यावहारिक वेदांत और विभिन्न सामाजिक सेवाओं के प्रचार में शामिल है। 04 जुलाई 1902 को, स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि प्राप्त की और इस दुनिया को छोड़ दिया लेकिन उनकी महान शिक्षाओं ने हमेशा दुनिया को प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, 300 शब्द:

स्वामी विवेकानंद का जन्म 18 जनवरी 1863 को कलकत्ता में शिमला रैली में नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक वकील थे, और माता भुवनेश्वरी देवी एक गृहिणी थीं। वह श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायी थे और बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने। वह वह व्यक्ति था जो यूरोप और अमेरिका में वेदांत और योग के हिंदू दर्शन को शुरू करने में सफल रहा और आधुनिक भारत में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित किया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन:

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कसंगत दिमाग और अपनी माँ के धार्मिक स्वभाव से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माँ से आत्म-नियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में एक विशेषज्ञ बन गए। उन्होंने अपनी युवावस्था में एक उल्लेखनीय नेतृत्व गुणवत्ता भी विकसित की थी। वह ब्रह्म समाज में जाने के बाद श्री रामकृष्ण के संपर्क में आए। वह बारानगर मठ में अपने भिक्षु-भाइयों के साथ रहे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत का दौरा करने का फैसला किया और जगह-जगह से भटकना शुरू कर दिया और सभी धर्मों के लोगों के साथ रहे और भारतीय संस्कृतियों और धर्मों के गहन ज्ञान को प्राप्त किया।

विश्व धर्म संसद में संबोधन:

विश्व धर्म संसद के लिए विवेकानंद 31 मई 1893 को शिकागो के लिए रवाना हुए। उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और दुनिया को हिंदू धर्म का परिचय देने वाले सम्मेलन में एक भाषण दिया जिसने उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया। जब स्वामी विवेकानंद ने “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के साथ अपने भाषण की शुरुआत की, तो 7000 दर्शकों की भीड़ से दो मिनट तालियाँ बजीं।

उन्होंने अपना भाषण जारी रखा और भारत की प्राचीन संस्कृति, सहिष्णुता, सार्वभौमिक भाईचारे आदि के बारे में बात की। विवेकानंद के इस भाषण ने विश्व दर्शकों का ध्यान खींचा और उन्हें सम्मेलन में सबसे महान और प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में चित्रित किया। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर कई प्रभावी भाषण और व्याख्यान भी दिए।

स्वामी विवेकानंद भारत के एक महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने हमारे राष्ट्र को दुनिया के सामने दिखाया और वैश्विक दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। उनका शिक्षण और दर्शन आज भी वर्तमान समय में प्रासंगिक है और आधुनिक युग के युवाओं का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने रामकृष्ण मिशन, रामकृष्ण मठ की भी स्थापना की और विभिन्न प्रेरणादायक पुस्तकें भी लिखीं। वह एक महान संत, दार्शनिक और भारत के अग्रणी नेता थे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, long essay on swami vivekananda in hindi (400 शब्द)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी, 1863 को एक पारंपरिक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म नाम नरेंद्रनाथ दत्ता (जिन्हें नरेंद्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता विश्वनाथ दत्ता के नौ भाई-बहनों में से एक थे, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय और भुवनेश्वरी देवी के वकील थे। उन्होंने अपने पिता के तर्कसंगत रवैये और अपनी माँ के धार्मिक स्वभाव के तहत प्रभावी व्यक्तित्व का विकास किया था।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

वह लगभग सभी विषयों में एक बहुत ही उज्ज्वल छात्र था। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्र और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया। वह अपने समय के भटकते तपस्वियों और भिक्षुओं से भी प्रेरित थे। वे हिंदू धर्मग्रंथों (वेद, रामायण, भगवद गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण, आदि) में रुचि रखने वाले बहुत धार्मिक व्यक्ति थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय थे। उन्हें विभिन्न अवसरों पर अपने स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा भी सराहा गया।

विवेकानंद और हिंदू धर्म:

विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साही थे और भारत और विदेशों दोनों में हिंदू धर्म के बारे में लोगों के बीच नई समझ बनाने में बहुत सफल रहे। वह अपने गुरु, रामकृष्ण परमहंस से बहुत प्रभावित थे जिनसे वे भामा समाज की यात्रा के दौरान मिले थे। 1893 में ‘विश्व धर्म संसद’ के दौरान स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए शिकागो संबोधन ने हिंदू धर्म को शुरू करने, ध्यान, योग को बढ़ावा देने और पश्चिम में आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक तरीके को बढ़ावा देने में मदद की।

एक समाचार पत्र के अनुसार उन्हें “संसद में एक महान व्यक्ति” माना जाता था। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे। उन्होंने अपने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया और भारतीय आध्यात्मिक रूप से जागृत करने के लिए श्री अरबिंदो द्वारा भी प्रशंसा की गई। उन्हें महात्मा गांधी द्वारा हिंदू धर्म को बढ़ावा देने वाले महान हिंदू सुधारकों में से एक के रूप में भी प्रशंसा मिली।

स्वामी विवेकानंद के प्रभावी लेखन ने कई भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं जैसे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरबिंदो घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया था। उन्हें सुभाष चंद्र बोस द्वारा “आधुनिक भारत का निर्माता” कहा गया था।

विवेकानंद द्वारा स्थापित संगठन अभी भी अपनी शिक्षाओं और दर्शन का प्रसार कर रहे हैं और समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए भी काम कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएं भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे आध्यात्मिकता, शांति, सद्भाव और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रवर्तक थे।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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sir apne jo jankari di hai usme sabhi mahtpurn information hai

बहुत बढ़िया लिखा है नीस Nice Article , स्वामी विवेकानंद जी से जुडी रोचक जानकारियां जानने के लिए यहां किल्क करें।

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Vivekananda Essay in Hindi: स्वामी विवेकानंद पर हिन्दी में निबंध

July 29, 2024 by Antesh Singh Leave a Comment

स्वामी विवेकानंद , भारत के महान संत, योगी और विचारक थे, जिनका जीवन और विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके जन्म का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। उनके पिता विश्वनाथ दत्ता एक वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। विवेकानंद का जीवन मानवता, सेवा और आध्यात्मिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

कंटेंट की टॉपिक

प्रारंभिक जीवन

नरेंद्रनाथ बचपन से ही तीव्र बुद्धि और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। उन्होंने अपने विद्यालय और कॉलेज की शिक्षा कोलकाता में ही प्राप्त की। बचपन से ही वे आध्यात्मिक और धार्मिक प्रश्नों के उत्तर खोजने में रुचि रखते थे। यही जिज्ञासा उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास ले गई, जो उनके आध्यात्मिक गुरु बने। रामकृष्ण परमहंस से मिलकर नरेंद्रनाथ को उनके जीवन का उद्देश्य और दिशा प्राप्त हुई।

स्वामी विवेकानंद का परिव्राजक जीवन

स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद संन्यास धारण किया और विवेकानंद नाम धारण किया। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और देश की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थितियों का अध्ययन किया। उन्होंने देखा कि किस प्रकार से भारतीय समाज में गरीबी, अज्ञानता और अंधविश्वास व्याप्त हैं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपने जीवन को देश और समाज की सेवा में समर्पित करेंगे।

शिकागो धर्म महासभा

स्वामी विवेकानंद का विश्व में सबसे प्रमुख योगदान 1893 में शिकागो, अमेरिका में आयोजित धर्म महासभा (पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स) में हुआ। वहाँ उन्होंने “अमेरिका के बहनों और भाइयों” के साथ अपने भाषण की शुरुआत की, जिसने सबका मन मोह लिया। अपने भाषण में उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों, भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया। उनके भाषण ने पूरे विश्व में भारत की गरिमा को बढ़ाया और उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई।

सेवा और शिक्षा

स्वामी विवेकानंद ने समाज सेवा को अपने जीवन का प्रमुख उद्देश्य बनाया। उन्होंने गरीबों, अनपढ़ों और बीमारों की सेवा को ही सच्ची पूजा माना। उनके अनुसार, मानव सेवा ही भगवान की सेवा है। उन्होंने कहा, “जग उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

उन्होंने शिक्षा को समाज के उत्थान का मुख्य साधन माना। उनके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्ति नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास होना चाहिए। उन्होंने कहा, “शिक्षा वह है जो चरित्र का निर्माण करे, मन की शक्ति को बढ़ाए और आत्मा को मजबूत करे।”

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज सेवा, शिक्षा और धार्मिक जागरूकता फैलाना था। रामकृष्ण मिशन आज भी उनके आदर्शों पर चलकर समाज सेवा के कार्य कर रहा है। मिशन के विद्यालय, अस्पताल, अनाथालय और आश्रम पूरे भारत में फैले हुए हैं और लोगों की सेवा में लगे हुए हैं।

विचारधारा और संदेश

स्वामी विवेकानंद के विचार और संदेश आज भी प्रेरणादायक हैं। उन्होंने भारतीय युवाओं को आत्मविश्वास और स्वाभिमान से भरने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, “तुम एक अनंत आत्मा हो, तुम्हारी कोई सीमा नहीं है। तुम सब कुछ कर सकते हो।” उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, मानवता और एकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्म सत्य की ओर ले जाने वाले मार्ग हैं और सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी हमें प्रेरित करती हैं। उनका संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए समर्पित था। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्ची सेवा और सच्ची पूजा मानवता की सेवा में निहित है। उनका जीवन संदेश है कि हमें अपने अंदर की अनंत शक्तियों को पहचानना चाहिए और उनका उपयोग समाज और देश की सेवा में करना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद का योगदान केवल भारत तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और वेदांत के सिद्धांतों को फैलाया। उनके विचार और आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और हमें एक सशक्त और समृद्ध समाज की स्थापना के लिए प्रेरित करते हैं। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि आत्मज्ञान और मानव सेवा के माध्यम से हम अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सफल बना सकते हैं।

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About Antesh Singh

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

In this article, we are providing an Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Swami Vivekananda Par Nibandh स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500, 1000, 12000 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Swami Vivekananda Essay in Hindi लिखा है स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Swami Vivekananda information in Hindi essay & Speech.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

( Essay-1 ) Short Swami Vivekananda Nibandh- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 200 words )

इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कलकत्ता के दत्त परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। संन्यासी होने पर यह नाम बदल कर विवेकानन्द रखा गया। छात्रावस्था में ही उन्होंने यूरोपीय दर्शन-शास्त्र में अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली थी। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे नास्तिक हो गये थे। उन दिनों सारे भारत में धर्म-विप्लव मचा हुआ था। बंगाल में ईसाई-प्रचार जोरों पर था । ब्रह्म समाज की नींव पड़ चुकी थी। कृष्णमोहन बनर्जी, कालीचरण बनर्जी, माईकेल मधुसूदन दत्त जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे। इस समय नरेन्द्रनाथ का मन भी ब्रह्म समाज की ओर झुका, पर शीघ्र ही उनका परिचय महात्मा रामकृष्ण झुका, परमहंस से हो गया। परमहंस पहुँचे हुए महात्मा थे। उन्होंने नरेन्द्र से कहा, ‘क्या तुम कोई भजन गा सकते हो?’ इन्होंने कहा, ‘हाँ, गा सकता हूँ।’ तब उन्होंने तीन भजन गाये। यह सुनकर परमहंस प्रसन्न हो गये और उन्होंने नरेन्द्रमाथ को अपना शिष्य बना लिया।

फिर तो उनकी संगत पाकर नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये और देश-विदेश में इसी नाम से विख्यात हो गये। इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इन्होंने अमेरिका में जाकर वेदान्त का प्रचार किया। ये 4 जुलाई 1902 ई० को बेलूर में मृत्यु को प्राप्त कर सदा के लिए अमर हो गये।

जरूर पढ़े- 10 Lines on Swami Vivekananda in Hindi

( Essay-2 ) Swami Vivekananda in Hindi Essay- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 250 to 300 words )

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनका जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था।

बालक नरेंद्र बड़ा नटखट था । वह घर-भर में उत्पात मचाता था। उसे भूतप्रेतों में बिलकुल विश्वास नहीं था । वह कभी-कभी अपनी उम्र के बालकों के साथ घंटों ध्यान-मग्न बैठ जाता था।

पाँच वर्ष की अवस्था में नरेंद्र को स्कूल में भर्ती कराया गया। वह पढ़ता कम था और खेलता अधिक था। उसके सहपाठी उसे अपना नेता ” मानते थे। सन् 1881 में दर्शन-शास्त्र में एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद वह विवेकानंद हो गया।

रामकृष्ण परमहंस की सलाह पर विवेकानंद भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार में लग गये। उन्होंने एक बार अमेरिका में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ उनके भाषण को सुनकर लोग मंत्र-मुग्ध हो गये। उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषता उन्हें बतायी। उनके भाषण को सुनने के बाद अमेरिका के लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति जो भ्रामक विचार थे, वे दूर हो गये।

विवकानंद ने समाज-सेवा करने के उद्देश्य से भारत तथा विदेशों में कई स्थानों पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की शाखायें खोली।

विवेकानंद ने सारे भारत की यात्रा की। उन्होंने लोगों की दयनीय दशा अपनी आँखों से देखी। उन्होंने अपने भाषणों से सोयी हुई भारत जाति को जगाने का प्रयत्न किया। उन्होंने युवकों से कहा कि वे अपनी मांसपेशियों को फौलाद की बनायें। उन्होंने कहा – “युद्ध नहीं, सहायता; ध्वंस नहीं, निर्माण; भेदभाव नहीं, सामंजस्य।” उनकी मृत्यु 4 जुलाई सन् 1902 को हुई।

( Essay-3 ) Long Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 1000 words )

भूमिका

भारत महापुरूषों की धरती है जहाँ पर बहुत से महापुरुष हुए हैं। बहुत से मुनि भी हुए है जिन्होंने अपने अध्यातम और विचारों से पूरे विश्व में भारत को प्रसिद्ध किया है। भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय संस्कृति और अध्यातम से पूरे विश्व को प्रख्यात बनाया था। स्वामी विवेकानंद जी को भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य, धर्म आदि का बहुत ही ग्यान था।

बचपन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में हुआ था। इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था। इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे और उन्हें अंग्रेजी और फारसी भी अच्छे से जानते थे। नरेंद्र की माता बहुत ही धार्मिक थी। नरेंद्र बचपन से बहुत ही मेधावी थे लेकिन उन्हें धर्म और प्रभू में आशंका थी। पिता के पश्चिमी संस्कृति के ग्याता होने और माता के धार्मिक होने से नरेंद्र को दोनों ही चीजों का पूर्ण ग्यान मिला। नरेंद्र हर चीज जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति थे।

शिक्षा

नरेंद्र पढ़ने में बहुत ही तथा। थे। उनकी आरंभिक पढ़ाई कोलकता में ही हुई थी। जब वह तीसरी कक्षा में थे तो उनकी पढ़ाई को बीच मे ही रोकना पड़ा क्योंकि उनके पूरे परिवार को जरूरी काम से कोलकता सो बाहर जाना पड़ा। तीन साल बाद कोलकता लौटने पर उनकी मेहनत को देखकर उन्हें स्कूल में फिर से प्रवेश दिया गया। नरेंद्र ने तीन साल का पाठ्य क्रम एक साल में ही कर लिया था। 1889 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण की और कोलकता के जनरल असैंबली नामक कॉलज में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन ,साहित्य, राजनीतिक ग्यान आदि का अध्ययन की। नरेंद्र ने बी.ए. की परिक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। नरेंद्र को एक प्रोफेसर ने कहा था कि उन्हें बहुत से विद्यार्थि मिले लेकिन उन्होंने नरेंद्र जैसा मेधावी और कौशल विद्यार्थि कभी नहीं देखा।

आध्यातमिक ग्यान

नरेंद्र की सभी चीजों के बारे में जानने की इच्छा के चलते वह ब्रहमसमाज का हिस्सा बने लेकिन उन्हें संतुष्टी नहीं मिली। फिर वह दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। उनके आध्यातमिक ग्यान से प्रभावित होकर नरेंद्र ने उन्हें अपना गुरू बना लिया। वह रामकृष्ण की हर बात का अनुसरण करते थे और उनके सच्चे अनुयायी बन गए। इसी दौरान नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया और घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई। कमजोर आर्थिक स्थिति के समय नरेंद्र ने जब गुरू से सहायता माँगी तो उन्होंने कहा कि काली माता के मंदिर जाकर याचना करे । रामकृष्ण काली माता के भक्त थे। नरेंद्र ने मंदिर जाकर धन की बजाय बुद्धि और ग्यान की याचना की। एक दिन गुरू रामकृष्ण ने अपनी साधना के वक्त नरेंद्र को तेज प्रदान किया और तभी से वह स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

नरेंद्र गुरू के रूप में

गुरू रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद कोलकता छोड़कर वरादनगर आश्रम में आकर रहने लगे। 25 साल की उमर में उन्होंने गेहुँआ चोला पहनना शुरू कर दिया था। वरादनगर आश्रम में आकर उन्होंने धर्म और संस्कृति का अध्ययन किया। विशेष रूप से उन्होंने हिंदु धर्म के बारे में जाना। वह भारत की संस्कृति से बहुत ही प्रभावित हुए। इन सबका अध्ययन करने के बाद वह भारत भ्रमण पर निकल पड़े। वह राज्यस्थान ,जुनागड़ से होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे। वहाँ से वह पोंडीचेरी और मद्रास गए। इस सब के दौरान उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बहुत से शिष्य बन चुके थे।

विदेश यात्रा

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद के शिष्यों ने उनसे बहुत आग्रह किया। शिष्यों के आग्रह करने पर स्वामी विवेकानंद बहुत सी परेशानियों को पार कर शिकागो पहुँचे। वहाँ उन्हें सम्मेलन में बोलने का अंतिम अवसर मिला और उन्होंने हिंदु धर्म का नेतृत्व किया। उस समय विदेशों में भारत के लोगों को हीन भावना से देखा जाता था। अपने भाषण से उन्होंने सभी लोगों को भावूक कर दिया। लोग भारतीय संस्कृति और उनके आध्यातमिक ग्यान से बहुत ही प्रभावित हुए। स्वामी विवेकानंद ने हिंदु धर्म को विदेशों में भी प्रसिद्ध किया। उन्होंने चार साल तक अमेरिका और युरोप के बहुत सारे शहरों में भाषण दिया। विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के बहुत से अनुयायी बन गए।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद चार साल विदेश में भारतीय संस्कृति को प्रख्यात बनाने के बाद जब भारत लौटे तो लोगों नें उनका बड़ी धुमधाम से स्वागत किया। स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि बिना अध्यातमिक ग्यान के देश उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने समाज कल्याण हेतु अध्यातम ग्यान देने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसके विकास में वह इतने व्यस्त हो गए कि बिमार पड़ गए। 4 जुलाई, 1902 में रात के नौ बजे 39 साल की कम उमर में ही स्वामी विवेकानंद का देहांत हो गया।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद एक महान संत हुए है। उनका मानना था कि असली पूजा गरीबों की मदद करने में है। वह मानवता रो सबसे बड़ा धर्म मानते थे। स्वामी विवेकानंद महिलाओं का बहुत ही आदर करते थे। वह हर महिला को घर की रानी बताते थे। स्वामी विवेकानंद ने बहुत ली पुस्तकें भी लिखी है। वह धार्मिक मुद्दों के साथ साथ सामाजिक मुदद्धों पर भी भाषण देते थे। उनके भाषण का प्रभाव उस समय के स्वतंत्रता सैनानियों पर पड़ा क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त भी थे और उन्होंने योग, राजयोग, और ग्यानयोग जैसे ग्रंथ भी लिखे थे। सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन यानि कि 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज भी जब कभी महान संतो की बात की जाती है तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।

( Essay -4 ) Essay on Swami Vivekananda in Hindi ( 1200 words )

प्रस्तावना :

सम्पूर्ण संसार को रूढ़िगत परम्पराओं से मुक्त कर नवीन और स्वस्थ ज्ञान-ज्योति प्रदान करने वाले महापुरुष इस धरती पर कभी-कभी ही अवतरित होते हैं। ऐसे भी महापुरुषों का उदय इस धरती पर बहुत समय बाद ही होता है, जो न केवल अपने देश अपितु पूरे विश्व को अपने विवेक और प्रज्ञा से चकित कर देते हैं और अपने ज्ञान की ज्योति से पूरे विश्व को प्रकाशमान कर देते हैं। स्वामी विवेकानन्द का नाम ऐसे महापुरुषों में सादर उल्लेखनीय है।

जीवन-परिचय :

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, सन् 1863 ई. में पौष संक्रान्ति के दिन प्रातः 6 बजकर 33 मिनट 33 सेकण्ड पर कलकत्ता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। श्रीमती भुवनेश्वरी देवी शिवभक्ति परायणा महिला थीं। उन्हें विश्वास हो गया था कि उन्हें जो पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, वह वीरेश्वर शिव की कृपा का परिणाम है। इसलिए पुत्र का नाम वीरेश्वर रखा गया। लोग इन्हें घर पर वीरेश्वर बिले के नाम से पुकारते थे। बिले बचपन से ही बहुत मेधावी, कुशाग्र बुद्धि और तेजस्वी, अप्रतिम साहसी, सहृदय थे। और कहावत भी है- ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’ बाद में इन्हें नरेन्द्रनाथ के नाम से भी जाना जाने लगा। प्रज्ञा की उपलब्धि होने पर उनका नाम विवेकानन्द पड़ा और इसी नाम से वे संसार में प्रसिद्ध हुए।

स्वामी विवेकानन्द के पिता अद्भुत विद्वान, विद्यानुरागी, सदाशयी और सज्जन व्यक्ति थे। पिता के इस अद्भुत व्यक्तित्व की छाप पुत्र पर पड़ना स्वाभाविक ही था। बिले बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी और स्मृतिधर थे। स्मरण-शक्ति बड़ी ही प्रबल थी। वह बचपन से ही स्वभाव से जिद्दी थे। इस स्वभाव वाले अपने पुत्र को गोद में लिए हुए भुवनेश्वरी देवी कहा करती थीं- “मैंने बहुत मन्नत करके शिव के मंदिर में धरना देकर एक पुत्र की कामना की थी, परन्तु उन्होंने भेज दिया एक भूत। वास्तव में बालक नरेन्द्रनाथ उर्फ तेजेश्वर बिले किसी पर विश्वास नहीं करते थे। वे प्रत्यक्ष प्रमाण में ही विश्वास करते थे। बालक तेजेश्वर बिले बचपन से ही रूढ़िवाद के प्रबल विरोधी थे और भ्रामक बातों में विश्वास नहीं करते थे। भूत-प्रेत पर भी उन्हें एकदम विश्वास नहीं था। यह भी उनके आरंभिक स्वभावों में से एक अद्भुत स्वभाव रहा ।

शिक्षा-दीक्षा :

स्वामी जी की आरंभिक शिक्षा अंग्रेजी स्कूलों में हुई। सन् 1871 में नरेन्द्रनाथ मेट्रोपोलिटन स्कूल से एण्ट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। मलेरिया हो जाने के कारण उनके अध्ययन में व्यवधान पड़ा। स्वस्थ होकर प्रेसीडेंसी कॉलेज छोड़कर जनरल असेम्बली (स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में दाखिल हुए। उन्होंने उसी कॉलेज से 1881 में एफ.ए. तथा 1883 में बी.ए. परीक्षा पास की। वे पढ़ने में इतने मेधावी थे कि अठारहवें वर्ष में प्रवेश करते ही इन्होंने एम. ए. परीक्षा की तैयारी आरम्भ कर दी। लेकिन उनका मन आध्यात्मिक चिन्तन में लगने लगा। वे सांसारिक विषमता और भेद-भावों से अत्यधिक चिन्तित और अशान्त हो गए। इस प्रकार वे व्याकुल होकर कलकत्ता के विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों के पास आने-जाने लगे। इस दौरान अपने पिता द्वारा सुनिश्चित किए गये विवाह के प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकृत कर दिया- मैं किसी तरह विवाह नहीं करूँगा।

बालक नरेन्द्रनाथ बचपन से ही गम्भीर स्वभाव के थे। वे राम, सीता, शिव की पूजा किया करते थे। उनके बालमन में साधु-संन्यासियों के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा थी। वे सोने से पूर्व ज्योति-दर्शन करना कभी भी नहीं भूलते। बालक की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, उनकी मेधाशक्ति प्रखर होती गयी। विद्यालय में वे अल्पायु में ही वाद-विवाद में, आलोचना-प्रत्यालोचना करने में तथा खेलकूद में सबसे अग्रणी रहते। विद्यालय में उनकी धाक जम गयी थी।

इनका मन निरन्तर ईश्वरीय-ज्ञान की उत्कंठा-जिज्ञासा के प्रति अशान्त होता गया। अपनी उस आध्यात्मिक प्यास को बुझाने के लिए वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने उनके आश्रम में गये। वे दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में रहते थे और काली जी की पूजा किया करते थे। यह स्थान कलकत्ता के बहुत निकट था। उनकी कोई कामना न थी। वे भगवान् के अतिरिक्त और किसी सांसारिक विषय को बिल्कुल नहीं जानते थे। वे सदैव बच्चों की तरह काली माता की मूर्ति का सदैव गुणगान किया करते थे।

विश्व को सन्देश :

स्वामी जी को जब रामकृष्ण परमहंस ने निकट से देखा, तो उनमें उन्हें ईश्वर का अंश दिखाई दिया। उन्होंने स्वामी जी को देखा और कहा- “तुम कोई साधारण मनुष्य नहीं हो। ईश्वर ने तुझे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए ही भेजा है।” स्वामी जी परमहंस के मुँह से यह सुन अत्यधिक उत्साहित हुए। उन्होंने स्वयं को स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया। पिता की मृत्यु के उपरान्त स्वामी जी ने संन्यास लेने का निश्चय कर लिया। इनके इस निश्चय को देखकर स्वामी रामकृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा- “नरेन्द्र ! तू और मनुष्यों की तरह केवल अपनी मुक्ति की इच्छा कर रहा है। संसार में लाखों मनुष्य दुखी हैं। सम्पूर्ण मानवता दुखी है, आखिर उसका उद्धार कौन करेगा?”

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का आदेश स्वामी जी ने शिरोधार्य किया और उनसे दीक्षा ली। स्वामी रामकृष्ण परमहंस योग्य शिष्य पाकर प्रसन्नता पूर्वक दीक्षित करते हुए कहा – “संन्यास का वास्तविक उद्देश्य मुक्त होकर लोक-सेवा करना है। केवल अपने ही मोक्ष की चिन्ता करने वाला संन्यासी स्वार्थी होता है। साधारण संन्यासियों की तरह एकान्त में बैठकर अपना अमूल्य जीवन नष्ट न करना। भगवान के दर्शन करने हों तो मनुष्यमात्र की सेवा करना। नर में ही नारायण का वास होता है।

स्वामी रामकृष्ण के निर्वाणोपरान्त उनके सभी शिष्यों का भार स्वामी विवेकानन्द ने अपने सिर पर ले लिया। इसके बाद उन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन-मनन किया। सर्वप्रथम स्वामीजी ज्ञानोपदेश देने और ज्ञान-प्रचार के लिए अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में गए। वहाँ पर जाकर उन्होंने अपने अद्भुत ज्ञान से सबको चकित कर दिया। 31 मई, सन् 1883 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में हुए सर्वधर्म-सम्मेलन में भाग लिया। सितम्बर, सन् 1883 को आरम्भ हुए इस सम्मेलन में जब उन्होंने सभी धर्माचार्यों और धर्माध्यक्षों के सामने भाइयों-बहनों का सम्बोधन कर अपना वक्तव्य आरम्भ किया, तब वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से आपका जोरदार स्वागत किया। स्वामी विवेकानन्द ने उस धर्म-सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए बड़े ही प्रभावशाली ढंग से इस प्रकार कहा- “संसार में एक ही धर्म है और उसका नाम है- मानवधर्म। इसके प्रतिनिधि विश्व में समय-समय पर रामकृष्ण, क्राइस्ट, रहीम आदि होते रहे हैं। जब ये ईश्वरीय दूत मानव-धर्म के संदेशवाहक बनकर विश्व में अवतरित हुए थे, तो आज संसार भिन्न-भिन्न धर्मों में क्यों विभक्त है? धर्म का उद्गम तो प्राणी मात्र की शान्ति के लिए हुआ है, परन्तु आज चारों ओर अशान्ति के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे हैं हैं और ये दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। अतः विश्व-शान्ति के लिए सभी लोगों को मिलकर मानवधर्म की स्थापना और उसे सुदृढ़ करने का प्रयत्न करना चाहिए। उपर्युक्त वक्तव्य से यह धर्म-सभा ही प्रभावित नहीं हुई, अपितु पूरा विश्व ही स्वामी जी के धर्मोपदेशों का अनुयायी बन गया। आज भी स्वामी जी के उस शान्तिप्रद धर्म-संदेश से विश्व के अनेक राष्ट्र भलीभाँति प्रभावित हैं।

उपसंहार :

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्वामी जी के दिव्य उपदेश सदैव विश्व का कल्याण करते रहेंगे। यों तो स्वामी विवेकानन्द का निर्वाण 4 जुलाई, सन् 1902 ई. में हो गया तथापि उनके द्वारा प्रज्वलित आध्यात्मिक ज्ञानज्योति से समस्त विश्व का अज्ञानाधंकार दूर करने का प्रयत्न हो रहा है।

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग कब लिया था?

11 सितंबर, 1893 स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग लिया था

स्वामी विवेकानंद के पिता क्या कार्य करते थे?

-इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे

स्वामी विवेकानंद के बचपन का क्या नाम है?

-बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था

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इस लेख के माध्यम से हमने Swami Vivekananda  Par Nibandh | Essay on My Swami Vivekananda in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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Essay on Swami Vivekananda

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Important Points : Introduction - Biography of Swami Vivekananda - Education of Swami Vivekananda - Contribution of Swami Vivekananda to the Nation - Thoughts of Swami Vivekananda - Conclusion.

Narendranath, who was born in a normal family, became Vivekananda on the strength of his knowledge and brilliance. Swami Vivekananda was one of the many great men of India who did the work of illuminating the name of India all over the world. Through his speech, he provided information to the people about Hindutva all over the world and through his great works, he brought great fame to Sanatan Dharma, Vedas and Gyan Shastra in the western world and gave the message of peace and brotherhood to the people all over the world. Along with this, his life is also a lesson for all of us.

India has been witness to many saints, scholars and philosophers. Swami Vivekananda himself was a great saint, scholar and philosopher. Swami Vivekananda was born on 12 January 1863 in Shimla Pallai in Calcutta (Kolkata). His father's name was Vishwanath Dutt, who worked as an advocate in the Calcutta High Court and mother's name was Bhuvaneshwari Devi. Swami Vivekananda was one of the main followers of Sri Ramakrishna Paramhansa. His birth name was Narendranath Dutt. He was a person of Indian origin who introduced the Hindu philosophy of Vedanta and Yoga to Europe and America. He revived Hinduism in modern India. His inspirational speeches are still followed by the youth of the country. He introduced Hinduism to the World Religions General Assembly in Chicago in 1893.

Swami Vivekananda was influenced by his father's rational mind and mother's religious nature. He learned self-control from his mother and later became an expert in meditation. His self-control was truly astonishing, using which he could easily enter a state of samadhi. He developed remarkable leadership quality at a young age. He came in contact with Sri Ramakrishna after getting acquainted with the Brahmo Samaj at a young age. He started living in Boranagar Math with his sages and brothers. In his later life, he decided to visit India and started traveling from place to place and reached Triruvantapuram, where he decided to attend the Chicago Religion Conference. He became popular all over the world after delivering his influential speeches and lectures at many places. He died on 4 July 1902. It is believed that he went to his room to meditate and died during meditation.

Narendranath often studied at home. Apart from studies, he was also interested in acting, sports and wrestling. He was proficient in many arts. He was full of energy from his childhood. He was proficient in Sanskrit language. He studied at the Presidency College, Calcutta (Kolkata). He was good at philosophy. He joined the Brahmo-Samaj. He left his studies after the death of his father. This disturbed his mind a lot. During all this, he met Saint Ramakrishna Paramhansa at Dakshineswar and became his disciple. He became Vivekananda after passing through 'Nirvikalpa Samadhi'. Later, he took charge of the monastery of Saint Ramakrishna. He went to many places of pilgrimage across the country. In 1893 AD, he joined the Parliament of the Church of Chicago. There he told about the culture and characteristics of the East. His speech on 'Zero' is appreciated even today.

In 1897, he founded the 'Ramakrishna Mission'. Here the followers were taught about the Vedic religion. The mission also did social services. Schools, hospitals, orphanages etc. were opened for the poor. The mission's goal was to spread awareness about Indian culture. He was very enthusiastic about Hinduism and was successful in creating new thinking about Hinduism among the people both inside and outside the country. He became successful in promoting meditation, yoga, and other Indian spiritual paths of self-improvement in the West. He was a nationalist ideal for the people of India.

The thoughts of Swami Vivekananda are more inspiring. He was a very religious person because he was interested in Hindu scriptures (like - Vedas, Ramayana, Bhagavad Gita, Mahabharata, Upanishads, Puranas etc.). He was also interested in Indian classical music, sports, physical exercise and other activities. He attracted the attention of many Indian leaders through his nationalist ideas. He was praised by Sri Aurobindo for the spiritual awakening of India. Mahatma Gandhi also praised him as a great Hindu reformer who promoted Hinduism. His ideas worked to make people understand the true meaning of Hinduism and also changed the attitude of the western world towards Vedanta and Hindu spirituality. Chakravarti Rajagopalachari (he was the first Governor General of independent India) said that Swami Vivekananda was the person who saved Hinduism and India. His influential writings inspired many Indian independence activists such as Netaji Subhash Chandra Bose, Bal Gangadhar Tilak, Aurobindo Ghosh, Bagha Jatin, etc.

Swami Vivekananda taught the world to respect Indian culture and tradition. He was a great saint, philosopher and true patriot. Swami Vivekananda ji was such a person, who works to inspire people continuously even after his life and from whose life we ​​can always learn something. His birthday is celebrated as 'National Youth Day'.

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi Language)

आज हम इन्हीं महापुरुष की बात करने जा रहे हैं और इनका पूरा जीवन परिचय, इनके महान कार्य, इनकी शिक्षाएं और इनके जीवन की रोचक घटनाओं के बारे में बता रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

राजा अजीतसिंह उनके व्यक्तित्व और आध्यात्मिक विचारों से मंत्रमुग्ध हो गए और उन्हें सम्मानपूर्वक अपने महल में बुलवाया। विवेकानन्द उनके महल में गए और वहां उनकी खूब सेवा और खातिर की गई।

उन्होंने सर्व धर्म समभाव और आपस में सहयोग का उपदेश दिया। इन्होंने सभी लोगों को कहा की सारे धार्मिक ग्रंथ, पूजा पाठ, मस्जिद, मंदिर या फिर गिरजाघर इत्यादि, ये सभी हमें भगवान से मिलाने पर हमारे मन में श्रद्धा उत्पन्न करने का बस एक साधन हैं। हम सभी को इनके लिए झगड़ना नहीं चाहिए और सब धर्मो को समान महत्व देना चाहिए।

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