sadachar long essay in hindi

Sadachar Essay in Hindi- सदाचार पर निबंध

In this article, we are providing Sadachar Essay in Hindi. सदाचार पर निबंध in 500 words.

Sadachar Essay in Hindi- सदाचार पर निबंध

भूमिका-  मानव जीवन का सर्वोत्तम गुण सदाचार ही है। यह सभी धर्मों का सार है। यह मनुष्य को उच्च एवं वंदनीय बनाता है। इसके अभाव में मनुष्य समाज में सम्मान नहीं प्राप्त कर सकता। किसी विद्वान् का कथन है’धन नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट नहीं हुआ, स्वास्थ्य नष्ट हो गया तो कुछ नष्ट हुआ, लेकिन चरित्र नष्ट हो गया तो सब कुछ नष्ट हो गया।” सदाचार के समक्ष धन और स्वास्थ्य तुच्छ हैं। यह एक दैवी शवित है। वास्तव में सदाचार ही सर्वश्रेष्ठ मानव-धर्म है।

सदाचार सर्वोत्तम मित्र के रूप में- सदाचार मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र है। सदाचारी में आत्म-विश्वास होता है। वह निर्भीक होता है। वह असफल होने पर भी साहस नहीं छोड़ता है। सदाचारी असत्य तथा बेईमानी से दूर रहता है। भावनाओं से पवित्र होता है। वह जानता है कि दूसरों को पीड़ा पहुंचाना सदाचार की राह से भटकना है। सभी दार्शनिक तथा धर्म गुरुओं ने सदाचार की महिमा का प्रतिपादन किया है।

सदाचारी के गुण- सदाचारी में अनेक गुण विद्यमान होते हैं। वह सत्य का अनुगामी होता है। वह काम, क्रोध, दूर रहता है। स्पस्टवाद होने पर भी दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचता। वः दूसरों के कष्टोँ का निवारण दूर रहता है।स्पष्टवादी होने पर भी दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाता। वह दूसरों के कष्टों का निवारण करने के लिएँ सदैव उद्यत रहता है।

महत्व- सदाचार के अभाव में मानव तथा शत्रु में भेद स्थापित करना कठिन है। सदाचार के बल पर ही मानव सर्वोच्च प्राणी मन गया है। हमारे ऋषियों को सदाचारी होने के कारण ही इतना मान तथा सम्मान मिला है। इसी गुण के कारण वे मार्ग दर्शक बन सके। गोखले, तिलक, गाँधी आदि नेता सदाचारी होने के कारण जनता के कठोहार बन सके। संसार सदाचारी का सम्मान करता है। लोगों के हृदय में उसके प्रति श्रद्धा होती है। उसका जीवन सुखी और शांतिमय होता है। सदाचारी व्यक्ति के सत्संग में सद्गुणों का विकास होता है। मार्ग से भटका हुआ व्यक्ति भी संमार्ग पर चलने लगता है।

कतिपय उदाहरण- भारत का इतिहास सदाचारी मानवों की जीवन गाथाओं से भरा पड़ा है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम सदाचार की साकार प्रतिमा थे। शिवजी तथा महाराणा प्रताप के उज्वल चरित्र से भारत का इतिहास आलोकित है। स्वामी रामतीर्थ, दयानन्द, विवेकानंद अदि ऋषियों ने देश-विदेश का भ्र्मण करके सदाचार की मशाल को प्रज्वलित किआ ।

चरित्र निर्माण के साधन – चरित्र निर्माण के तीन प्रमुख साधन है- सत्संग, अध्यन, अभ्यास । सदाचारी बनने के लिए महान् चरित्र वालों का सत्संग अपेक्षित है। सद्गुणों को विकसित करने वाले ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है। अध्ययन के माध्यम से जो उत्तम संस्कार किये जाएँ उन्हें सतत् अभ्यास से जीवन में ढालना चाहिए।

उपसंहार-  सफल एवं सार्थक जीवन के लिए सदाचारी होना आवश्यक है। उत्तम चरित्र का प्रभाव व्यापक एवं अचूक होता है। चरित्र का हास होने से मानव को अनेक दु:खों और कष्टों का सामना करना पड़ता है। समाज के लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। सदाचारी का तो केवल भौतिक शरीर ही नष्ट होता है। उसकी यश ज्योति संसार में बिखरी रहती है। सदाचार व्यक्तिगत, राष्ट्रीय तथा सामाजिक उन्नति का स्रोत है। सदाचारी व्यक्तियों के चरण चिहनों पर युग चलता है।

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3 thoughts on “Sadachar Essay in Hindi- सदाचार पर निबंध”

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Thanks a lot …..

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Dil Se Deshi

सदाचार पर निबंध | Essay on Sadachar in Hindi

Essay on Sadachar in Hindi

सदाचार विषय पर हिंदी भाषा में निबंध | Essay on Sadachar (Good Behavior) in Hindi | Sadachar par Nibandh Hindi me

सदाचार शब्द संस्कृत के सत् और आचार शब्दों से मिलकर बना है. इसका अर्थ है सज्जन का आचरण अथवा शुभ आचरण. सत्य, अहिंसा, ईश्वर विश्वास, मैत्री भाव, महापुरुषों का अनुसरण करना आदि बाते सदाचार में गिनी जाती है. इस सदाचार को धारण करने वाला व्यक्ति सदाचारी कहलाता है. इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति को दुराचारी कहते हैं.

सदाचार मनुष्य का लक्षण है. सदाचार को धारण करना मानवता को प्राप्त करना है. सदाचारी व्यक्ति समाज में पूजित होता है. आचारहीन का कोई भी सम्मान नहीं करता हैं. कोई भी उसका साथ नहीं देता हैं. वेद भी उनका कल्याण नहीं करते हैं इसलिए कहा गया है “आचारहीनं पुर्नान्त्ते वेदाः” अर्थात वेद भी आचार रहित व्यक्ति का उद्धार नहीं कर सकते हैं.

सच्चरित्रता

सदाचार का महत्व पूर्ण सच्चरित्रता है. सच्चरित्रता सदाचार का सर्वोत्तम साधन है. अंग्रेजी कहावत के अनुसार धन नष्ट हो जाए तो मनुष्य की विशेष हानि नहीं होती है. स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है किंतु चरित्रहीन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है. मनुष्य में जो कुछ भी मनुष्यत्व है, उसका प्रतिबिंब उसका चरित्र है. आचारहीन व्यक्ति तो निरा पशु या राक्षस के समान है. रावण के पास भी धन, वैभव और विद्या सब कुछ था किंतु अनाचार के कारण उसका सब कुछ नष्ट हो गया. महाभारत की एक कथा के अनुसार एक राजा का शील नष्ट हुआ तो उसका धर्म नष्ट हो गया. यस और लक्ष्मी उसका साथ छोड़ गए. भारत एवं पाश्चात्य के सभी विद्वानों ने शील, सदाचार और सच्चरित्रता को जीवन में सर्वाधिक महत्व दिया है.

सच्चरित्रता के लिए यह आवश्यक है कि भय की प्रवृत्ति पर नियंत्रण प्राप्त किया जाए तभी हमारे ह्रदय में ऊँचे आदर्श और स्वस्थ प्रेरणाएं पनप सकती हैं. जो भय के वश में होगा उसके चरित्र का विकास नहीं हो सकता हैं. जीवन में अच्छे चारित्रिक गुणों के विकास हेतु यह आवश्यक है कि स्वयं को बुरे वातावरण से दूर रखा जाए. अपने चरित्र निर्माण हेतु सदैव भले और बुद्धिमान लोगों का संगत करना चाहिए. बुरे लोगों का साथ छोड़कर अच्छे विचार मन में अनुग्रहित करना चाहिए. आदर्श चरित्र के लिए मन, वचन, और कर्म की एकरूपता का होना भी आवश्यक है. चरित्रवान व्यक्ति की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता हैं. वे परोपदेशक नहीं होते हैं.

धर्म की प्रधानता

भारत एक आध्यात्मिक देश है. यहां की संस्कृति तथा सभ्यता धर्म प्रधान है. धर्म से मनुष्य की लौकिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होती है. लोक और परलोक की भलाई धर्म से ही संभव है. धर्म आत्मा की उन्नति करता है उसे पतन की ओर ले जाने से रोकता है. इस प्रकार धर्म सदाचार का ही पर्यायवाची भी कहा जा सकता है. सदाचार में वह गुण है जो धर्म हमें हैं. सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिति संभव है. जो आचरण मनुष्य को ऊंचा उठाया उसे चरित्रवान बनाए वह धर्म है वही सदाचार है. महाभारत में कहा गया है धर्म की उत्पत्ति आचार्य से ही होती है. शील, सत्य, भाषण, अहिंसा, क्षमा, करुणा और परोपकार जिनके सदाचार कहा जाता हैं, वही धर्म के प्रमुख गुण हैं. अतः सदाचार को धारण करना ही धर्म को धारण करना हैं.

शील सदाचार की शक्ति

शील मानसिक भूचाल के लियें अंकुश हैं. सदाचार मनुष्य की काम, क्रोध, मोह आदि बुराइयों से रक्षा करता है. अहिंसा की भावना सेमन की क्रूरता समाप्त होती है तथा उसमें करुणा, सहानुभूति एवं दया की भावना जागृत होती है. क्षमा, सहनशीलता आदि गुणों से मनुष्य का नैतिक उत्थान होता है तथा मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी तक के प्रति उदारता की भावना पैदा होती है. इस प्रकार सदाचार का गुण धारण करने से मनुष्य का चरित्र उज्जवल होता है और उसमें कर्तव्यनिष्ठा पैदा होती है.

संपूर्ण गुणों का सार

सदाचार मनुष्य के संपूर्ण गुणों का सार है. जो उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करता है. इसकी तुलना में विश्व का कोई भी मूल्यवान वस्तु नहीं टिक सकती है. सदाचार रहित व्यक्ति कभी पूजनीय नहीं हो सकता है. सदाचार ही मनुष्य को पूज्य बनाता है. सदाचार के बिना मनुष्य कभी भी अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है. सत्य भाषण, उदारता, विशिष्टता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूति आदि गुण जिस व्यक्ति में होते हैं, वह सदाचारी कहलाता है. उस व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा होती है. उसे समाज ने आदर और सम्मान मिलता हैं.

उपसंहार(Conclusion)

वर्तमान युग में शिक्षा के प्रभाव से भारत के युवक-युवतियां सदाचार के महत्व को निरर्थक मानने लगे हैं तथा सदाचार विरोधी जीवन को अपना आदर्श मानते हैं. इसी कारण देश तथा समाज पतन की ओर जा रहा है. आसन की रक्षा हेतु युवा वर्ग को सचेत रहना चाहिए. उन्हें राम कृष्ण और गांधी के चरित्र को आदर्श मानकर न्यायप्रिय आचरण करना चाहिए. राष्ट्र का सच्चा निर्माण, सच्ची प्रगति तभी संभव है, जब प्रत्येक भारतवासी सदाचारी बनने का संकल्प लें.

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1 thought on “सदाचार पर निबंध | Essay on Sadachar in Hindi”

very nice essay thanks sir

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सदाचार पर निबंध | Sadachar Par Nibandh

सदाचार पर निबंध – सदाचार मानव जीवन के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ गुण माना जाता है। लेकिन सभी लोगो के मन में सदाचार का भाव होना आम बात नही है , इसके लिए कठोर तपस्या, धैर्य, साधना, त्याग और बलिदान की आवश्यकता पड़ती है। सदाचार के गुण अपनाकर आप अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।

एक सदाचारी व्यक्ति कभी निराश नहीं होता है। उसके जीवन में कैसी भी परिस्थियाँ हो, वह डटकर उसका मुकाबला करता है। प्रत्येक व्यक्ति और उसका परिवार समाज का अंग होता हैं। और समाज में कुछ नियम और मर्यादाएँ होतीहैं। इन्ही नियम और मर्यादाओं का पालन करके प्रत्येक व्यक्ति को अपने परिवार के साथ-साथ देश का भी नाम रौशन करना चाहिए।

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Page Contents

सदाचार का अर्थ

सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है सत् और आचार। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सज्जन का आचरण। सदाचार में व्यक्ति सत्य, अहिंसा,विश्वास और प्रेम-भाव को धारण करता है। सदाचार के गुण को धारण करने वाला व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। एक सदाचारी व्यकित ईमानदार और आत्मविश्वास से भरपूर होता है। और उसे संसार में बहुत सम्मान मिलता है।

एक सदाचारी व्यक्ति हमेशा सत्य बोलता है। और मरते दम तक सत्य की राह पर चलता है। सदाचारी व्यक्ति हमें प्रसन्न चित रहता हैं और अपने सम्पर्क में आने अन्य व्यकियों को भी प्रसन्नता देता हैं। विपत्तियाँ और प्रतिकूल परिस्थतियाँ सभी मनुष्य के जीवन में आती हैं, लेकिन सदाचारी व्यक्ति कभी इनसें डगमगाता नही हैं।

सदाचार व्यक्ति को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से कोसो दूर रहता है। वह अपने जीवन में सत्संग, अध्यन और अभ्यास के द्वारा सफलता हासिल करता है। सदाचार मनुष्य जीवन का वो अनमोल गहना है, जिसकी तुलना में दुनियाँ की सभी भौतिक वस्तुएं तुच्छ नजर आती है। सदाचार मनुष्य की सबसे बड़ी बल शक्ति भी मानी जाती है क्योंकि इसके द्वारा मनुष्य सभी प्रकार की मानसिक दुर्बलताओं से दूर रहता है।

सदाचार का महत्त्व

व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर सदाचार का बहुत बड़ा योगदान होता है। हमारे देश के ऋषि मुनि, साधु संत और महापुरुषों ने सदाचार के गुणों को अपनाकर संसार में सत्य, शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने में कामियाब रहे। सदाचार का गुण अपनाने के बाद मनुष्य को अन्य किसी चीजों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सदाचार एक ऐसा अनमोल अलंकार है जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने साथ-साथ राष्ट्र और समाज का कल्याण कर सकता है।

एक सदाचारी व्यक्ति को हर कोई पसंद करता है। क्योंकि सदाचारी बुरे कर्मों जैसे की क्रोध, ईर्ष्या, छल, मोह, क्रोध आदि से दूर रहता है और अपने जीवन में सुख-समृद्धि हासिल करता है। एक सदाचारी व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थियों में भी किसी को जितनी आसानी से कर लेता है उतनी आसानी से कोई नहीं कर पाता है।

एक चरित्रहीन व्यक्ति पशु के समान होता है और सदाचार हमें पशुओं से अलग रखता है। एक माली पौधा तैयार करने के लिए पानी, खाद डालता है, और समय-समय पर उसके आस-पास की सफाई भी करता है ताकि पेड़ का विकास अच्छी तरह हो। ठीक इसी प्रकार के बच्चों का भविष्य बनाने में माता, पिता और गुरुजनों बहुत बड़ा योगदान होता है।

सदाचार के द्वारा विश्व में प्रसिद्धि हासिल करता है। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने अपने जीवन में सदाचार का ही पालन किया था जैसे जैसे- गुरू नानक, संत कबीर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामदास, संत तुकाराम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी आदि।

सदाचार की विशेषतायें

सदाचार की निम्न विशेषतायें होती है –

  • सदाचारी व्यक्ति कर्म को सबसे ज्यादा महत्त्व देता है।
  • सदाचार से हमें सत्य बोलने की प्रेरणा मिलती है।
  • सदाचारी व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता है।
  • सदाचारी व्यक्ति नैतिक और मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करता है।
  • सदाचारी व्यक्ति अपने जीवन में कभी निराश नहीं होता है।
  • सदाचारी व्यक्ति सदैव बड़ों का समाना करता है।
  • सदाचार व्यक्ति को महान बनाता है।
  • सदाचारी का व्यवहार सदैव सरल, प्रेम भाव और मिलनसार होता है।
  • सदाचार मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है।
  • सदाचारी व्यक्ति की परिवार और समाज में बहुत इज्जत होती है।

इन्हें भी पढ़े –

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सदाचरण पर निबंध (Good Conduct Essay in Hindi)

सदाचरण संस्कृत के सत् और आचरण से मिल कर बना है, जिसका अर्थ होता है सज्जनों जैसा आचरण या व्यवहार। एक व्यक्ति अज्ञानी होने के बाद भी सदाचारी हो सकता है। और कभी-कभी व्यक्ति प्रकांड विद्वान हो कर भी दुराचारी हो सकता है, जैसे रावण इतना ज्ञानी और शिव का सबसे बड़ा भक्त था, फिर भी माता सीता के अपहरण जैसा दुष्पाप किया, और दुराचारी कहलाया।

सदाचरण पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Good Conduct in Hindi, Sadacharan par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (300 शब्द).

“अच्छे के साथ अच्छा बनें, बुरे के साथ बुरा नहीं। क्योकि हीरे को हीरे से तराशा जा सकता है पर कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं हो सकता।”

सदाचार अच्छे आचरण पर जोर देता है। सदाचारी होने के लिए चरित्र की पवित्रता का होना बहुत जरुरी होता है। शिष्टाचार और सदाचरण में थोड़ा फर्क होता है। सदाचार के अन्तर्गत शिष्टाचार आता है। शिष्टाचार हमारे बाहरी व्यक्तित्व का आइना होता है, जबकि सदाचार आत्मिक गुण होता है।

सदाचार का अर्थ

सदाचार का अर्थ है अच्छा नैतिक व्यवहार, व्यक्तिगत आचरण और चरित्र। दूसरे शब्दों में सदाचार, व्यवहार और कार्य करने का उचित और स्वीकृत तरीका है। सदाचार जीवन को सहज, आसान, सुखद और सार्थक बनाता है। मनुष्य भी एक जन्तु ही है, लेकिन यह सदाचरण ही है, जो उसे बाकी जन्तुओं से, अलग करता है।

सच्चरित्रता एक नैतिक गुण

सच्चरित्रता सदाचार का सबसे बड़ा गुण होता है। सदाचारी व्यक्ति का हर जगह गुणगान होता है। सच्चरित्र विशेषताएं ही मानव को सबसे अलग और श्रेष्ठ बनाती हैं। तर्क और नैतिक आचरण ही ऐसे गुण है, जो मनुष्यों को श्रेष्ठतम की श्रेणी में लाते हैं। तर्क और नैतिक निर्णय लेने की क्षमता जैसे असाधारण लक्षण केवल मनुष्यों में ही पाए जाते हैं।

समाज – एक स्रोत

सच्चरित्रता एक नैतिक गुण होता है। हम समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान, अनेक नैतिक मानदंडों और मानकों का अधिग्रहण कर सकते हैं। बच्चे समाज के अन्य सदस्यों के साथ बातचीत करते समय नैतिक मूल्यों का अनुकरण कर सीख सकते हैं। इसके अतिरिक्त रीति-रिवाज भी नैतिक आचरण का एक स्रोत है, जिसे समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान विकसित किया जा सकता है।

जन्मजात गुण

पियाजे, कोहलबर्ग आदि मनोवैज्ञानिकों के सिद्धांतों के अनुसार बच्चे नैतिक मानकों के साथ पैदा होते हैं और बड़े होने पर उन्हें विकसित करते हैं। ये वह नैतिक मूल्य होते हैं जो हमारे माता-पिता और परिवार से हमें विरासत में मिलते है।

एक अच्छा आचरण या व्यवहार ही सदाचरण की श्रेणी में आता है। अच्छे आचरण से आप सबका मन मोह सकते हैं। शिष्टाचार, सदाचार से थोड़ा भिन्न होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक दुराचारी व्यक्ति भी शिष्ट आचरण कर सकता है, किन्तु एक सदाचारी मनुष्य कभी अशिष्ट नहीं हो सकता है और न ही दुराचार कर सकता है। प्रायः लोग इसे एक ही समझते हैं, और इसमें भेद नहीं कर पाते।

निबंध – 2 (400 शब्द)

“इत्र से कपड़ों को महकाना कोई बड़ी बात नहीं,

मज़ा तो तब है जब आपके किरदार से खुशबू आये।”

अच्छे आचरण ही ऐसा हथियार है जिसके प्रयोग से हम इस दुनिया से जाने के बाद भी लोगों की यादों में हमेशा जीवित रहते है। मनुष्य इस संसार में खाली हाथ आता है, और खाली हाथ ही चले जाना है। ये हमारे सत्कर्म और सदाचरण ही होते हैं जो हमें इस दुनिया में अमर करते हैं।

मानव जीवन में सदाचार का महत्व

मानव जीवन में सदाचार का बहुत महत्व होता है। इसमें सबसे प्रमुख, वाणी की मधुरता मायने रखती है। क्योंकि आप लाख दिल के अच्छे हों, लेकिन अगर आपकी भाषा अच्छी नहीं, तो सब किए-कराए पर पानी फिर जाता है। हमें कई बार लोगों की बहुत-सी बातें चुभती है, जिन्हें नज़रअन्दाज करना ही अच्छा माना जाता है।

संयम – सदाचार का गुण

अक्सर लोग हमारे साथ अच्छा आचरण नहीं करते। हमें शारीरिक और मानसिक यातना भी झेलनी पड़ सकती है, उस स्थिति में भी स्वयं पर संयम रखना सदाचरण कहलाता है।

सामाजिक नियम

हम मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः समाज के नियमों का पालन करना हमारा नैतिक एवं मौलिक कर्तव्य बनता है। हमने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ऐसा कहते सुना है कि, अगर समाज में रहना है तो सामाजिक नियमों को मानना ही पड़ता है।

सम्मान – संस्कार का अभिन्न अंग

सदाचरण हमें सबका सम्मान करना सिखाता है। इज्जत और सम्मान हर किसी को अच्छा लगता है। और यह हमारे संस्कार का अभिन्न हिस्सा भी है। बड़ों को ही नहीं वरन् छोटों को भी सम्मान देना चाहिए। क्योंकि अगर आप उनसें सम्मान की अपेक्षा रखते है तो आपको भी वही इज्जत उन्हें भी देनी होगी। सम्मान देने पर ही हमें भी सामने से सम्मान मिलता है। छोटों से तो विशेषकर अच्छे से बात करना चाहिए, क्योंकि वे बड़ो को देखकर ही अनुकरण करते है।

अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन की यात्रा बिना बाधा के निरंतर चलती रहे, तो उसके लिए हम जैसे व्यवहार की अपेक्षा स्वयं के लिए करते है, वैसा ही दूसरों के साथ भी करना चाहिए।

सनातन धर्म की सीख

सच बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य नहीं, यही सनातन धर्म है। किसी को मन, वचन और कर्म से दुख नहीं पहुँचाना चाहिए। पुरुषों को पराई स्त्रियों को बुरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। उन्हें माता सरीखा आदर देना चाहिए। ये सभी सदाचरण की सूची में आता है।

सदाचार से मनुष्य एक अच्छा इंसान बनता है। अपना पेट तो जानवर भी भर लेते हैं, किन्तु एक मनुष्य ही इस धरती पर ऐसा प्राणी होता है जो दूसरों के लिए जी सकता है। स्वयं से पहले दूसरों को वरीयता देना, सदाचरण के उल्लेखनीय गुणों में आता है। सदाचार को देवगुण कहा जाता है। कहते हैं कि एक सदाचारी पुरुष, शैतान को भी देवता बनाने की क्षमता रखता है।

Essay on Good Conduct

निबंध – 3 (500 शब्द)

“आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति स नरः”।।

“अर्थात पराई स्त्री को माता के समान और दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान मानना चाहिए।”

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वही पुरुष सच्चरित्र होता है जो दूसरों की स्त्री को बुरी नज़र से न देखे। उसे पराई स्त्रियों को अपनी माता के समान आदर-सम्मान देना चाहिए। क्योंकि पराई औरतों पर बुरी नजर करने वालों का पतन निश्चित होता है। इसी तरह जो धन अपनी मेहनत से न कमाया गया हो, उसका भी हमारे लिए कोई मोल नहीं होना चाहिए। लेकिन आजकल इसका उल्टा ही होता है।

सदाचार ही जीवन है।

सदाचार अच्छे चरित्र और आचरण का अधिग्रहण और संवर्धन करता है। अच्छे शिष्टाचार को सीखने और आत्मसात करने के लिए बचपन सर्वश्रेष्ठ अवधि है। इन्हें खरीदा या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही सबको नैतिकता का ज्ञान दिया जाना चाहिए। बचपन से ही अच्छे आचरण, और व्यवहार को विकसित किया जाना चाहिए । यही कारण है कि सभी अच्छे स्कूलों में अच्छे आचरण सिखाने और सीखने पर इतना जोर दिया जाता है।

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना – मनुष्य

मनुष्य सृष्टि का मुकुट और हर वस्तु का मापक है। भगवान ने उसे अपने बाद बनाया। मनुष्य तर्कसंगत, बुद्धिमान और सभ्य है। वह अकेले रोटी खाकर नहीं रहता। अच्छे आचार और व्यवहार जीवन में नया अध्याय और महत्व जोड़ते हैं। वह सामाजिक और नैतिक व्यवहार को सुखद और आकर्षक बनाने के लिए एक अच्छे स्नेहक की तरह काम करता है।

सदाचार – नैतिकता और अच्छे सामाजिक व्यवहार की नींव

एक अच्छे आचरण के माध्यम से हम अन्य लोगों के साथ सामाजिक सद्भाव, प्यार और दोस्ती को बढ़ावा दे सकते हैं। अच्छे शिष्टाचार हमें कई अनचाही और कड़वी स्थितियों से बचने में मदद करते हैं। सदाचार को नैतिकता और अच्छे सामाजिक व्यवहार की नींव के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

सदाचार सफलता की कुंजी

सदाचार, सफलता की एक सुनिश्चित कुंजी है। यह एक मूल्यवान अस्त्र हैं। यह दोस्त बनाने, लोगों पर जीत हासिल करने और प्रशंसा पाने में मदद करता है। व्यापार और सेवा में सदाचार अति आवश्यक हैं। यदि कोई व्यवसायी असभ्य है तो वह व्यापार में लाभ खो सकता है।

इसी तरह एक डॉक्टर या वकील बत्तमीज और अशिष्ट नहीं हो सकते, अन्यथा वो अपने क्लाइंट गवां सकते हैं। एक बस-कंडक्टर, एक बुकिंग क्लर्क, रिसेप्शन काउंटर आदि जगहों पर बैठे आदमी का अच्छी तरह से व्यवहार करना अति आवश्यक है। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अच्छा व्यवहार नितांत आवश्यक होता है। तभी कारोबार समृध्द हो सकता है।

दुराचार पशुता की निशानी होती है। चरित्रहीनता व्यक्ति को पतन के पथ पर ढकेलती है, और दुराचार का पथ प्रशस्त करती है। सदाचार का गुण एक दिन में नहीं पनप सकता। अतः बच्चों को जीवन के आरंभ से ही सदाचार की शिक्षा देना, शुरु कर देना चाहिए। बच्चों पर सर्वाधिक प्रभाव परिवार और माहौल का पड़ता है, जिसमें वो निवास करते है। वो कहते है न, चोर का बच्चा भी साधु के पास रहकर साधु बन सकता है, और साधु का बेटा चोर के साथ रहकर उसी के जैसा आचरण करने लगता है। साफ है, हम जैसे वातावरण में रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।

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सदाचार का महत्व / सच्चरित्रता / चरित्र की महत्ता पर निबंध

सदाचार का महत्व / सच्चरित्रता / चरित्र की महत्ता पर निबंध : जीवन चरित्र की महत्ता के समस्त गुणों, ऐश्वर्य, समृद्धि और वैभव की आधारशिला सदाचार है, सच्चरित्रता है। यदि हम सच्चरित्र हैं, तो संसार की समस्त विभूतियाँ, बल, बुद्धि, वैभव हमारे चरणों में लेटने लगती हैं और यदि हमारा जीवन दुश्चरित्रता और दुराचारों का घर है, तो हम समाज में निन्दा और तिरस्कार के पात्र बन जाते हैं। सच्चरित्र बनने के लिए मनुष्य को सुशिक्षा, सत्संगति और स्वानुभव की आवश्यकता होती है। वैसे तो अशिक्षित व्यक्ति भी संगति और अनभवों के आधार पर अच्छे चरित्र के देखे गए हैं। परन्तु बुद्धि का परिष्कार और विकास बिना शिक्षा के नहीं होता। मनुष्य को अच्छे और बुरे की पहचान ज्ञान और शिक्षा के द्वारा ही होती है। शिक्षा से मनुष्य की बुद्धि के कपाट खुल जाते हैं। अत: सच्चरित्र बनने के लिए अच्छी शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है।

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सदाचार पर निबंध | Essay on Moral Conduct in Hindi

sadachar long essay in hindi

सदाचार पर निबंध | Essay on Moral Conduct in Hindi!

सदाचार शब्द ‘सत् + आचार’ से मिलकर बना है । सदाचार और शिष्टाचार में अन्तर है । सदाचार चरित्र की पवित्रता को और शिष्टाचार व्यवहारिक कुशलता को प्रकट करता है ।

ADVERTISEMENTS:

मनुष्य की मनुष्यता उसके चरित्र में निहित होती है । चरित्रहीन व्यक्ति को हमारे समाज में पशु भी कहा गया है । सदाचार के गुणों का विकास करने के लिए माता, पिता और गुरुजनों को बचपन से ही ध्यान देना चाहिए । जैसे माली पौधों को स्वस्थ रखने के लिए पानी, खाद डालता है, उसके आस-पास की घास और गंदगी को साफ करता है, सूखे पत्तों और टहनियों को काट कर फेंकता है उसी प्रकार बालक में भी अच्छी आदतों का विकास कर उन्हें शिष्ट बालक बनाना चाहिए जिस से आगे चलकर राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल हो ।

दुष्ट व्यक्ति भी अपनी व्यवहार कुशलता से शिष्ट प्रतीत हो सकता है । लेकिन कभी-कभी ऋषि भी अपने क्रोध के कारण अपनी शिष्ट मर्यादा का उल्लंघन कर जाते हैं जैसे दुर्वासा ऋषि ने सोच में डूबी हुई शकुन्तला को शाप दे डाला, परशुराम ने क्रोध में आकर इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय से रहित कर दिया ।

अपने दुराचार के कारण इन्द्र महर्षि गौतम के कोप भाजन बने और उनकी पत्नी अहिल्या पाषाण प्रतिमा बनी, जिसका बाद में भगवान राम ने उद्धार किया । सदाचार की रक्षा करने के कारण युधिष्ठिर धर्मराज कहलाए । सत्य का निर्वाह करने के कारण हरिश्चन्द्र ‘सत्यवादी हरिश्चन्द्र’ कहलाए ।

सदाचार के द्वारा ही व्यक्ति महान् बनता है । विश्व में प्रसिद्धि पाने वाले जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने सदाचार का ही पालन किया था । जैसे- गुरू नानक, संत कबीर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामदास, संत तुकाराम आदि ।

आधुनिक काल में मोरारजी देसाई, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, जवाहर लाल नेहरू आदि नेताओं ने अपने सदाचार के कारण ही बड़े-बड़े आन्दोलनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया ।

विशाल जन समूह उनके पीछे ऐसे चलता था जैस बांध को तोड़कर जल बहा चला जाता है और किसी के रोके नहीं रुकता । आज भी टी॰एन॰ शेषन और किरण बेदी ने अपनी सच्चरित्रता के कारण अपनी एक अलग छवि का निर्माण किया है । उनके समक्ष यह शासन वर्ग पंगु जान पड़ता है ।

सदाचारी का प्रभाव इतना व्यापक और असरदार होता है कि उस के सम्पर्क में आने पर ही दुष्ट व्यक्ति भी सच्चरित्र बन जाता है । जैसे डाकू अंगुलीमाल महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने पर उनका अनुयायी हो गया । स्वावलंबन सदाचार का गुण है । स्वावलम्बी व्यक्ति में एक विशेष प्रकार का तेज होता है ।

उस के चेहरे पर चमक, मन में आत्म विश्वास और कुछ बनने की ललक होती है । यही सब चीजें उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचाती हैं । आत्म विश्वासी एक अकेला व्यक्ति सुभाष चन्द्र बोस ‘आजाद हिन्द फौज’ लेकर भारत आया था । जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी । अपना नाम भारत की आजादी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा अमर हो गया ।

सदाचार ही एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाता है । कहा भी गया है- ”if character is lost everything is lost” इसका अर्थ है कि ”धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सर्वस्व चला गया ।”  सदाचारी व्यक्ति की समाज में इज्जत होती है ।

हमारी संस्कृति ज्ञान को विशेष महत्व देती है । ज्ञानहीन पुरुष को भर्तृहरि ने पूँछ विहीन पशु की संज्ञा दी है । लेकिन ज्ञान से भी बढ्‌कर है चरित्र, शास्त्र कहता है कि दूसरों की स्त्री को माता और दूसरे के धन को मिट्‌टी का ढेला समझना चाहिए ।

लेकिन लंकापति रावण वेदों का ज्ञाता, शिव भक्त, यज्ञ करने वाला था फिर भी दूसरे की स्त्री को छल से हरण करके ले आया । उसकी इस गलती को भारतीय समाज ने आज तक क्षमा नहीं किया । उसका और उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद का पुतला दशहरे वाले दिन जलाया जाता है । जिससे लोगों को शिक्षा मिले और वह ऐसी गलती को न दोहराएं ।

सत्य बोलना भी सदाचार है । लेकिन ऐसा सत्य जिससे दूसरों को नुकसान न हो । उसके सत्य से किसी की जान चली जाए, ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए । यदि डॉक्टर रोगी को पहले ही बता दे कि वह कुछ ही दिनों में मरने वाला है, तो यह सत्य सदाचार नहीं हैं ।

सत्य बोलो लेकिन अप्रिय सत्य मत करो । सत्य की परिभाषा समाज और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है । सदाचार सद्‌गुणों की खान है । सदाचारी व्यक्ति ही अपना और राष्ट्र का उत्थान कर सकता है । किसी भी राष्ट्र का इतिहास सदैव चरित्रवान् लोगों से प्रकाशित रहता है ।

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Hindi Essay on “Sadachar” , ”सदाचार ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

सदाचार – सच्चरित्रता

Sadachar – Sacharitrata

निबंध नंबर : 01 

सच्चरित्रता व्यक्ति का वह व्यवहार होता है जो किसी को हानि नही पहुँचाता, बल्कि जो सभी का हर प्रकार से शुभ एव हितकारी होता है तथा जिसके लिए कुछ भी छिपाने व मिथ्या भाषण की आवश्यकता नही पडती | सच्चरित्र वाला व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार से जीवन तथा समाज में सभी को शीघ्र एव सहज ही प्रभावित कर लिया करता है | इस कारण सभी लोग उसका सम्मान भी करते है तथा उसकी हर बात का विश्वास भी करते है |

कोई भी समाज व्यक्तियों के समूह से बना करता है | जिस समाज के सभी व्यक्ति चारित्रिक और नैतिक दृष्टि से अच्छे होते है वह समाज संसार से दुसरे के सम्मुख आदर्श स्थापित कर सकता है | सच्चरित्रता मानव के व्यक्तित्व का दर्पण है | हृदय की विशालता , त्याग, सेवाभाव, क्षमाशीलता ,विनय, ईमानदारी , सत्य भाषण, धैर्य, कर्त्तव्यपरायणता, कष्ट, सहिष्णुता , प्रतिज्ञा-पालन, आत्मसंयम तथा उदारता आदि गुणों का सामाजिक रूप ही चरित्र है | ऐसा गुणवान अथवा सच्चरित्र व्यक्ति ही विश्व को समृद्धि की राह दिखाता है |

चरित्र की वास्तविक कसौटी व्यक्ति के जीवन में आने वाली संकट की घड़ी है | जो मानव जीवन में आपदाओं से नही डरता है , वह समाज का अग्रणी नेता बनता है | परन्तु जो मानव किसी भी कारण से अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाता है , वह कायरो की भांति अपमानित होता है अर्थात उसका लोग – परलोक दोनों ही बिगड़ जाते है |

सच्चरित्रता के निर्माण का एकमात्र साधन सत्संगति है | चरित्र- निर्माण  के लिए सबसे उपयुक्त समय शैशवकाल व शिक्षण काल होता है | अंत : माता- पिता को अपने बच्चो का इस समय विशेष ध्यान रखना चाहिए | उन्हें सत्साहित्य पढने के लिए देने चाहिए | मनोरंजन के लिए शिक्षाप्रद चलचित्र दिखलाने चाहिएँ | कुसंगति से दूर रखना चाहिए | महापुरुषों के प्रवचन सुनाने चाहिएँ | तभी हम किसी व्यकित अथवा बालक को सच्चरित्र बना सकते है |

चरित्र बल जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है | जिस व्यक्ति का चरित्र नष्ट हो जाता है उसके पास कुछ नही बचता | तभी विद्वानों के ठीक ही खा है – ‘धन गया कुछ नही गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया परन्तु चरित्र गया तो सब कुछ गया’ | किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके नागरिको के चरित्र पर ही निर्भर करती है | देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के कुछ समय पश्चात से हमारे देशवासियों का निरन्तर चारित्रिक पतन होता जा रहा है | इसी कारण आज चारो और मूल्यहीनता ,आचार-विचार की भ्रष्टता आदि का राज कायम है | एक बार फिर से लोगो के चरित्र को ऊचा उठाकर ही आज के अराजकतापूर्ण वातावरण से छुटकारा पाया जा सकता है | अन्य कोई उपाय नही है |

निबंध नंबर : 02

                                मनुष्य के सर्वागीय विकास में उसके आचरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसका अच्छा आचरण उसे परिवार व समाज में विशेष स्थान दिलाता है। सदाचारी व्यक्ति का सभी आदर करते हैं तथा वह सभी के लिए प्रिय होता है। सदाचरण के बिना किसी भी समाज में मनुष्य प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता। सदाचारी होने के लिए यह आवश्यक है कि वह दुर्गुणों से बचे तथा सद्गुणों को अपनाए।

                                हमें सदैव सत्यवादी होना चाहिए। सभी मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति ईष्र्या तथा घृणा का भाव नहीं होना चाहिए। मनुष्य कर दूसरों के प्रति घृणा व ईष्र्या का भाव, दूसरे के प्रति अलगाव उत्पन्न करता है परंतु सदाचरण से दूसरों के हदय मे विशेष स्थान पाया जा सकता है। सदाचरण से परस्पर प्रेम व आदर-भाव बढ़ता है।

                                मनुष्यों को दूसरों के प्रति कभी भी इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए जिसे वह स्वयं के लिए पंसद नहीं करता हो। उसे दूसरों के प्रति नम्रता का व्यवहार रखना चाहिए। नम्र व्यवहार रखने के लिए किसी प्रकार की धन की आवश्यकता नहीं होती परंतु यह सत्य है कि नम्रता के द्वारा दूसरों के हदय पर स्थाई प्रभाव डाला जा सकता है।

                                सदाचारी व्यक्ति किसी भी कमजोर व वृद्ध की उपेक्षा नहीं करता है। वह यथासंभव उनकी मदद करता है। अपने से कमजोर व्यक्ति को वह यथोचित रूप में सहयोग कर उसे सामथ्र्यवान देखना चाहता है। वृद्ध के प्रति वह सदैव आदर-भाव रखता है तथा उनकी आवश्यकताओं के प्रति जागरूक रहता है।

                                छात्रों के लिए सदाचरण से तात्पर्य है कि वे अपने माता-पिता व गुरूजी का आदर करें तथा उनकी आज्ञा का पालन करें। अपने से कमजोर छात्रों तथा दीन-दुखियों की मदद करें। परस्पर ईष्र्या-भाव को त्याग कर मेल-जोल से रहें। यदि कोई उनकी किसी प्रकार से सहायता करता है तो उसके प्रति धन्यवाद का भाव रखें।

                                इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि मित्रों, संबंधियों व अन्य व्यक्तियों से बातचीत करते समय हमारी भाषा स्पष्ट, शुद्ध एवं मधुर हो ताकि दूसरों को वह अप्रिय लगे। वाणी की तीव्रता इतनी हो कि सामने वाला व्यक्ति आपकी बात को स्पष्ट रूप से सुन सके। यदि कोई हमारे प्रति कटु शब्द को प्रयोग करता है तो ऐसी परिस्थिति में भी हमें अपना आपा नहीं खोना चाहिए। मधुरता, प्यार, सहयोग व अपनेपन के द्वारा कठोर से कठोर हदय पर भी विजय पाई जा सकती है। यहाँ निम्नलिखित प्रसिद्ध दोहा उल्लेखनीय है –

                               ऐसी बानी बोलिए, मन का आप खोय।                                 औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। 

                सदाचारी व्यक्ति सदैव दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करता है। सभी परिस्थितियों में वह अपने सभी कर्तव्यों का निर्वाह करने का यथासंभव प्रयास करता है। वह ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था रखता है तथा स्वयं के लिए, अपने परिवाजनों व समस्त मानव जाति के कल्याण व उत्थान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है।

                                जीवन पर्यत सदाचरण में रहने वाला व्यक्ति जहाँ भी जाता है अपना एक अमिट प्रभाव छोड़ जाता है। वह सभी के लिए प्रिय एवं सम्मान का पात्र होता है। सदाचारी व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माता-पिता, वंश एवं राष्ट्र का नाम ऊँचा करते हैं। कृष्ण के कारण ही उनके माता-पिता एवं उनके वंश को प्रसिद्धि मिली। आर्दश पुत्र राम के कारण उनके माता-पिता धन्य हो गए।

निबंध नंबर : 03

सदाचार का महत्त्व

Sadachar ka Mahatva

प्रस्तावना- संसार को सभ्यता और संसार का पाठ पढ़ाने वाले देष के महापुरूष, साधु-संत, भगावान अपने सदाचार के बल पर ही संसार को शंति एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाने में सफल रहे। गौतम बुद्ध सदाचार जीवन अपना कर भगवान कहलाये-उनके विचार, आचरण और बौद्ध धर्म भारत से फैलता हुआ एषिया के अनेक देषों में पहुंचा। मनुष्य सदाचार की राह पकड़ कर मनुष्य से ईष्वर तुल्य हो जाता है।

                सदाचारी मनुष्य को सदा सुख की प्राप्ति होती है। वह धर्मिक, बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। सदाचार के बहुत से रूप हैं; जैसे माता-पिता और गुरू की आज्ञा का पालन करना उनकी वन्दना, परोपकार, अहिंसा, नम्रता और दया करना। इसीलिये नीतिकारों ने कहा है-

                                आचाराल्लभते हयायुराचारादीप्सिताः प्रजा।                                 आचाराद्धनमक्ष्यामाचारो हन्त्यलक्षणम््।।

                इसका अर्थ है-सदाचार से आयु और अभीष्ट सन्तान प्राप्न होती है। सदाचार से ही अक्षय धन मिलता है। सदाचार ही बुराइयों को नष्ट करता है।

                सदाचार का अर्थ-सज्जन शब्द संस्कृृत भाषा के सत्् और आचार शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ है-सज्जन का आचरण ! सत्य, अहिंसा, ईष्वर, विष्वास, मैत्री-भाव, महापुरूषों का अनुसरण करना आदि बातें, सदाचार में आती हैं। सदाचार को धारण करने वाले व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति दुराचारी कहलाते हैं। सदाचार का संधिविच्छद सद््$आचार बनता है। जो इन सबमें अच्छा है, वहीं सदाचारी है।

                दुराचारी व्यक्ति सदैव दुःख प्राप्त करता है-वह अल्पायु होता है और उसका सब जगह निरादर एवं अपमान होता है। सदाचाररहित व्यक्ति धर्म एवं पुण्य से हीन होता है।

                कहा गया है-“आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नही कर पाते।“

                सदाचारी व्यक्ति से देश, राष्ट्रय और समाज का कल्याण होता है। सदाचार से मनुष्य का आदर होता है, संसार में उसकी प्रतिष्ठा होती हैै। भारतवर्ष में हर काल में सदाचारी महापुरूष जन्म लेते रहे हैं।

                श्री रामचन्द्र मर्यादा पुरूषोत्तम, भरत, राणा प्रताप आदि सदाचारी यहां पुरूष थे। सदाचार से मनुष्य राष्ट्र और समाज का कल्याण करता है। इसीलिये हमें सदाचार का पालन करना चाहिये। मनु ने कहा है-

                “समस्त लक्षणों से हीन होने पर भी जो मनुष्य सदाचारी होता है, श्रद्धा करने वाला एवं निन्दा न करने वाला होता है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है।“

                सदाचार का महत्त्व-भारतीय संस्कृृति पूरे भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस संस्कृति में सदाचार का विशेष महत्त्व है। जिस आचरण से समाज का सर्वाधिक कल्याण होता है, जिससे लौकिक और आत्मिक सुख प्राप्त होता है, जिससे कोई व्यक्ति कष्ट का अनुभव नहीं करता, वह आचरण ही सदाचार कहलाता है। सदाचार और दुराचार में भेद करने की सामथ्र्य केवल मनुष्य में है। पशु, कीट आदि में नही! इसीलिये नीतिकारों ने शास्त्रों में सदाचार था। पालन करने का निर्देश दिया है।

                सच्चरिता-सच्चरित्रा सदाचार का महत्त्वपुर्ण अंग है। यह सदाचार का सर्वोत्तम साधन है। इस विषय में कहा गया है-“यदि धन नष्ट हो जाये तो मनुुष्य का कुछ भी नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है पर चरित्रहीन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है।“

                शील अथवा सदाचार की महिमा हमारे धर्म-ग्रन्थों में अनेक प्रकार से की गई है। मह््ाभारत की एक कथा के अनुसार-एक राजा का शील के नष्ट होने पर उसका धर्म नष्ट हो गया, यश तथा लक्ष्मी सभी उसका साथ छोड़ गयीं। इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य सभी विद्वानों ने शील, सदाचार एवं सच्चरित्रता को जीवन में सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इसे अपना कर मनुष्य सुख-शान्ति पाता है समाज में प्रतिष्ठित होता है।

                धर्म की प्रधानता- भारत एक आध्यात्मिक देश है। यहां की सभ्यता एवं संस्कृृति धर्मप्रधान है। धर्म से मनुष्य की लौकिक एवं अध्यात्मिक उन्नति होती है। लोक और परलोक की भलाई भी धर्म से ही सम्भव है। धर्म आत्मा को उन्नत करता है और उसे पतन की ओर जाने से रोकता है। धर्म के यदि इस रूप् को ग्रहण किया तो धर्म को सदाचार का पर्यायवाची कहा जा सकता है।

                दुसरे शब्दों मेें सदाचार में वे गुण हैं, जो धर्म में हैं। सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिति सम्भव है। जो आचारण मनुष्य को ऊंचा उठाये, उसे चरित्रवान बनाय, वह धर्म है, वही सदाचार है। सदाचारी होना, धर्मात्मा होना है। इस प्रकार सदाचार को धारण करना धर्म के अनुसार ही जीवन व्यतीत करना कहलाता है। सदाचार को अपनाने वाला आप ही आप सभी बुराइयों से दूर होता चाला जाता है।

                सदाचार की शक्ति- सदाचार मनुष्य की काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि तुच्छ वृृत्त्यिों से रक्षा करता है। अहिंसा की भावना जाग्रत होती है। इस प्रकार सदाचार का गुण धार करने से मनुष्य का चरित्र उज्ज्वल होता है, उसमें कत्र्तव्यनिष्ठा एवं धर्मनिष्ठा पैदा होती है। यह धर्मनिष्ठा उसे अलौकिक शक्ति की प्राप्ति में सहायक होती है। अलौकिक शान्ति को प्राप्त करके मनुष्य देवता के समान पूजनीय और सम्मानित हो जाता है।

                सदाचार  सम्पूर्ण गुणों का सार-सदाचार मनुष्य के सम्पूर्ण गुणों का सार है। सदाचार मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। इसकी तुलना में विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्त नहीं टिक सकती। व्यक्ति चाहे संसार के वैभव का स्वामी हो या सम्पूर्ण विधाओं का पण्डित यदि वह सदाचार से रहित है तो वह कदापि पूजनीय नहीं हो सकता। पूजनीय वही है जो सदाचारी है।

                मनुष्य को पूजनीय बनाने वाला एकमात्र गुण सदाचार ही है। सदाचार का बल संसार की सबसे बड़ी शक्ति है, जो कभी भी पराजित नहीं हो सकती। सदाचार के बल से मनुष्य मानसिक दुर्बलताओं का नाश करता है तथा इसके बिना वह कभी भी अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए जीवन में उन्नति करना हो तो सदाचारी होने का संकल्प सवसे पहले लेना चाहिये।

                उपसंहार-वर्तमान युग में पाश्चात्य पद्धति की शिक्षा के प्रभाव से भारत के युवक-युवतियों सदाचार को निरर्थक समझ्ाने लगे हैं। वे सदाचार विरोधी जीवन को आदर्श मानने लगे हैं। इसी कारण आज हमारे देश और समाज की दुर्दशा हो रही है। युवक पतन की ओर बढ़ रहा है।

                बिगड़े हुए आचरण की रक्षा के लिए युवक वर्ग को होना चाहिये। उन्हें राम, कृृष्ण, युधिष्ठिर, गांधी एवं नेहरू के चरित्र आदर्श मानकर सदाचरण अपनाना चाहिये, अन्यथा वे अन्धकार में भटकने के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं कर पायेगे।

                सदाचार आचरण निर्माण का ऐसा प्रहरी है जो मन को कुविचारों की ओर जाने से रोकता है। मन की चंचलता पर मानव ने काबू पा लिया तो उसने पूरे विश्व को अपने काबू में कर लिया। स्वामी राम कृृष्ण नरमहंस, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द ऐसे सदाचारी पुरूष हुए हैं, जिन्होंने अपने आचरण और विचारों से पूरे विश्व को प्रभावित किया। जिस पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने में आज का युवा लगा हुआ है, उसी पाश्चात्य सभ्यता के देशों में जाकर स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचारों से वहां के बड़े-बडे विद्वानों को नतमस्तक होने पर विवश कर दिया। 

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सदाचार पर निबंध इन हिंदी Essay on sadachar in hindi

Sadachar ka mahatva essay in hindi.

Sadachar – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सदाचार पर लिखे निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं । चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस जबरदस्त लेख को पढ़कर सदाचार  के बारे में जानते हैं ।

Essay on sadachar in hindi

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sadachar par nibandh सदाचार के बारे में विस्तृत जानकारी – एक मनुष्य के जीवन में सदाचार की एक अहम भूमिका होती है । जो व्यक्ति अपना जीवन सदाचार के दायरे में रहकर , नियम कानून को अपनाकर अपना जीवन यापन करता है वह सफलता की हर ऊंचाई को प्राप्त कर लेता है । सदाचार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है । सत + आचार = समाचार । जो व्यक्ति बचपन से अपने माता पिता के द्वारा एवं गुरु के द्वारा जो आचरण ग्रहण करता है , जो शिक्षा ग्रहण करता है वह उच्च शिक्षा  प्राप्त करके  व्यक्ति अपने अंदर सदाचार ग्रहण कर लेता है । एक सदाचारी व्यक्ति कभी भी झूठ नहीं बोलता है ।

एक सदाचारी व्यक्ति को कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं होता है । सदाचारी व्यक्ति कभी भी दूसरे को देखकर जलता नहीं है । कहने का तात्पर्य है कि सदाचारी व्यक्ति झूठ बोलने से डरता है । एक  अच्छे व्यक्ति  का सबसे बड़ा धन उसका व्यवहार , सदाचार होता है । किसी व्यक्ति के पास चाहे जितनी धन दौलत हो यदि उसके पास सदाचार नहीं हैं तो वह धन किसी काम का नहीं है । सदाचार व्यक्ति को सभी व्यक्ति पसंद करते हैं , उसका सम्मान करते हैं ।

जब किसी व्यक्ति के पास सदाचार रूपी धन होता है तब वह समाज में सम्मान प्राप्त करने के लायक होता है । मनुष्य अपना जीवन बना सकता है और अपने जीवन को नष्ट कर सकता है । यह मनुष्य के हाथ में होता है । मनुष्य यदि अच्छे-अच्छे कार्य करें , कभी झूठ ना बोलने का निश्चय करें तो उसके अंदर एक अच्छे व्यक्ति की छवि दिखाई देने लगती है । सदाचार शब्द मे जो सत्य है वह सत्य आचरण की ओर अंकित किया गया है । सदाचार से मनुष्य के जीवन में कभी भी दुख नहीं आते हैं । सदाचार जीवन जीने से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है ।

सदाचार व्यक्ति कभी भी रोग ग्रस्त नहीं होता है क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता है , किसी असहाय व्यक्ति को सताता नहीं है ।सदाचार व्यक्ति निरंतर जानवरों और मनुष्यों के हित के लिए कार्य करता है । समाज में एक सदाचारी व्यक्ति को मान सम्मान प्राप्त होता है । समाज में यदि कोई व्यक्ति सदाचारी है तो वह समाज को प्रगति की राह पर ले जाने का कार्य करता है । सदाचार  देश के हित के लिए समाज के हित के लिए बहुत ही जरूरी है । इसीलिए हमारे देश में विद्यालय , गुरुकुल स्थापित किए गए हैं ।

जहां से बच्चे एक सदाचारी बनने का प्रण , शिक्षा प्राप्त करके वह अपने और अपने परिवार का नाम रोशन करते हैं । एक सदाचारी जीवन बहुत ही जरूरी होता है । सदाचार ही मनुष्य को जानवर बनने से रोकता है । यदि किसी व्यक्ति के अंदर सदाचार नहीं है तो वह एक जानवर के समान होता है । वह कभी भी झूठ बोल सकता है । दुराचारी व्यक्ति ना तो समाज के लिए अच्छा होता है ना ही देश के लिए अच्छा होता है । दुराचारी व्यक्ति  अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है , दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि उसको किसी ओर से कोई भी मतलब नहीं रहता है ।

जो सदाचारी व्यक्ति होता है वह जब किसी व्यक्ति को पीड़ा में देखता है तो उसके अंदर दया भाव की भावना जागृत हो जाती है और वह निष्पक्ष रूप से उस व्यक्ति की मदद करने के लिए तैयार हो जाता है । एक सदाचारी व्यक्ति जब किसी जानवर को पीड़ा में देखता है तब वह व्यक्ति उस जानवर की मदद करता है । यही सदाचारी व्यक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण है । एक सदाचारी  व्यक्ति अपने माता-पिता का मान सम्मान करता है , कभी भी उनको दुख नहीं देता है ।

जब एक सदाचारी बच्चे को उनके माता-पिता  अच्छाई के रास्ते पर चलने के लिए कहते हैं तब वह कठिनाइयों से लड़ते हुए सच्चाई के रास्ते पर चलता है क्योंकि वह जानता है कि सच्चाई के रास्ते पर चलने से उसके परिवार , उसके माता-पिता और उसको काफी लाभ प्राप्त होगा । जो व्यक्ति सदाचारी नहीं होता है वह अपने माता-पिता की बात को नहीं मानता है और गलत कार्य करने लगता है । जिससे उसके परिवार और उसको काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है । दुराचारी व्यक्ति अपने जीवन को नष्ट कर लेता है और समाज में उसकी कोई भी इज्जत नहीं करता है ।

इसलिए हम सभी को यह कोशिश करना चाहिए कि हम एक सदाचारी व्यक्ति बने और जो सदाचारी व्यक्ति में गुण होते हैं उन गुणों को अपनाकर हम अपने जीवन को सफलता की ऊंचाई पर ले जाएं ।

विद्यालय में सिखाए गए सदाचार के नियम – जब हम शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल जाते हैं तब हमें एक शिक्षक के द्वारा सदाचार के नियम सिखाए जाते हैं । जब हम सुबह उठकर स्नान करके विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए जाते हैं तब वहां पर प्रार्थना करवाई जाती है और सभी को एक लाइन में खड़ा किया जाता है और सभी लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान हमें सद्बुद्धि देना , हम सदैव सच्चाई के रास्ते पर चलते रहें , अपने देश , अपने परिवार का नाम रोशन करते रहे । हमारे भारत देश की शिक्षा में एक सदाचारी व्यक्ति बनने के लिए कहा जाता है ।

जो व्यक्ति सदाचारी व्यक्ति के गुण अपना लेता है वह कभी भी अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से नहीं डरता है । हर मां-बाप का एक सपना होता है कि उनकी संतान  स्कूल जाकर अच्छी शिक्षा प्राप्त करके एक सदाचारी पुत्र बने । सभी माता-पिता इसी उद्देश्य अपने बच्चे को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं । जब एक सदाचारी बच्चा स्कूल जाकर अपने गुरु के पैर छूता है तब उस बच्चे का शिक्षक उस बच्चे का सम्मान करता है और उस बच्चे को और भी अधिक शिक्षा देने की कोशिश करता है ।

एक सदाचारी पुत्र सुबह उठकर अपने माता पिता के पैर स्पर्श करता है और उनका आशीर्वाद लेकर अपने भविष्य को सफलता की ऊंचाई पर ले जाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहता है । एक व्यक्ति को सदाचार के गुण उसके माता-पिता और उसके गुरुजनों से प्राप्त होते हैं ।

एक सदाचारी व्यक्ति और एक घमंडी व्यक्ति में अंतर के बारे में – जो व्यक्ति अपने जीवन में सदाचार अपना लेता है वह निरंतर सफलता की ओर आगे बढ़ता है और जो व्यक्ति अपने अंदर छल , कपट , घृणा रखता है वह कभी भी एक सफल व्यक्ति नहीं बन पाता है । एक सदाचारी व्यक्ति  सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोचता है बल्कि सभी व्यक्ति के कल्याण के लिए कार्य करता है और एक घमंडी व्यक्ति , दुराचारी व्यक्ति को दूसरों से कुछ भी मतलब नहीं रहता है । यदि उसके फायदे के लिए किसी को नुकसान पहुंचाना जरूरी हो तो वह दूसरे को नुकसान पहुंचाने से कभी भी पीछे नहीं हटता है ।

जिस व्यक्ति के अंदर सदाचार के गुण होते हैं वह सदैव अपने माता-पिता , अपने गुरुजनों का मान सम्मान करता है और जो व्यक्ति दुराचारी होता है वह अपने माता-पिता और अपने गुरुजनों का सम्मान नहीं करता है , उनके द्वारा बताए गए रास्तों पर नहीं चलता है । दुराचारी व्यक्ति गलत कामों में अपनी रुचि दिखाता है । जो व्यक्ति सदाचार के दायरे में रहकर अपना जीवन व्यतीत करता है वह कभी भी बीमार दुखी नहीं रहता है और जो व्यक्ति घमंडी होता है वह सच बोलने से डरता है वह अंदर से बहुत कमजोर होता है और धीरे-धीरे रोग ग्रस्त हो जाता है । दुराचारी व्यक्ति अपने घमंड से अपने जीवन को बर्बाद कर देता है ।

व्यापार में सदाचार व्यक्ति की अहम भूमिका – जो व्यक्ति सदाचारी होता है वह किसी भी क्षेत्र में रहकर व्यापार कर सकता है क्योंकि वह दूसरे मनुष्यों से मुस्कुरा कर और हाथ मिलाकर उसके साथ रहता है । जब कोई व्यक्ति सदाचार व्यक्ति से मिलता है तो वह उस व्यक्ति के अच्छे गुणों से प्रभावित होता है और उसकी मदद करता है ।व्यापार मे यदि कोई सच्चाई के साथ कार्य करें , सदाचार के साथ कार्य करें तो वह कभी भी असफल नहीं हो सकता है । व्यापार सच्चाई के साथ ही आगे बढ़ सकता है । जो व्यक्ति सच्चाई के साथ व्यापार नहीं करता है वह बर्बाद हो जाता है और अपनी किस्मत को कोसता है ।

मनुष्य अपनी किस्मत खुद बनाता है । जो व्यक्ति कर्म करता है उस कर्म के हिसाब से उसको फल प्राप्त होता है । एक सदाचारी व्यक्ति ही अच्छे कर्म करता है और व्यापार में अच्छे कर्म करने से , सच्चाई के रास्ते पर चलने से बहुत जल्द ही सफलता प्राप्त होती है । यदि कोई व्यापारी अपने फायदे के लिए ग्राहक को पागल बनाए , ग्राहक से झूठ बोले तब वह थोड़े समय के लिए तो फायदा प्राप्त कर सकता है पर जब उसका झूठ ग्राहकों को पता लग जाता है तब सभी ग्राहक उस व्यापारी से अपना नाता तोड़ लेते हैं और व्यापारी अपने व्यापार में असफलता प्राप्त कर लेता है ।

इसलिए व्यापार करने के लिए व्यक्ति को अपने जीवन में सदाचारी रूपी धन अपनाना चाहिए और सच्चाई के साथ व्यापार करना चाहिए क्योंकि सच्चाई के रास्ते पर चलने से थोड़ी परेशानी जरूर आती हैं परंतु जब सफलता प्राप्त होती है तो सभी कठिनाइयां फीकी पड़ जाती हैं ।इसलिए व्यापार करने से पहले सदाचारी गुण हमें हमारे अंदर ग्रहण कर लेना चाहिए ।

एक सदाचारी मित्र के बारे में – जब हमारा एक मित्र सदाचारी हो तब वह मित्र हमें अच्छाई के रास्ते पर ले जाने के निरंतर प्रयास करता रहता है और हम उसके साथ रहकर एक सदाचारी व्यक्ति बन जाते हैं क्योंकि हम जिस माहौल में रहते हैं हम उसी माहौल में ढल जाते हैं । यदि हम गलत व्यक्ति के साथ रहेंगे , गलत इंसान के साथ रहेंगे तो हम उस गलत व्यक्ति के गुणों को ग्रहण करने की कोशिश करेंगे और हम भी उस गलत व्यक्ति की तरह अपने जीवन में गलत , गलत कार्य करने लगते हैं और हम बर्बाद हो जाते हैं । इसलिए हमारे जीवन में एक सच्चे मित्र , एक सदाचारी मित्र का होना बहुत ही आवश्यक है ।

हमें एक सच्चे मित्र से दोस्ती करना चाहिए , उसके गुणों को अपने जीवन में ग्रहण करना चाहिए । जब कोई सच्चा मित्र हमारे साथ बैठता है , उठता है , खेलता है तब उसके अंदर अच्छे-अच्छे गुण दिखाई देते हैं । सदाचारी व्यक्ति कभी भी झूठ नहीं बोलता है । सदाचारी व्यक्ति कभी भी अपनी भलाई के लिए अपने दोस्त का उपयोग नहीं करता है । सदाचारी व्यक्ति अपने साथ अपने दोस्त को भी सफलता की ऊंचाई पर ले जाने का कार्य करता है । सदाचार व्यक्ति के अंदर एक अच्छे गुणों का होना बहुत ही आवश्यक है ।

जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से दोस्ती करते हैं जो शराब पीता है , जुआ खेलता है तब हम भी उस व्यक्ति को देखकर शराब , जुआ खेलने लगते हैं और हमारा जीवन बर्बाद हो जाता है । जब हम एक ऐसे व्यक्ति से दोस्ती करते हैं जो कभी भी झूठ नहीं बोलता है और वह अपने माता-पिता , अपने गुरुजनों का सम्मान करता है तब हम भी अपने दोस्त की तरह सदाचार के गुण अपने अंदर समाहित कर लेते हैं । सदाचारी व्यक्ति कभी भी अपने दोस्तों को नुकसान नहीं पहुंचाता है ।

हम अच्छे मित्र का अच्छा व्यवहार देखकर दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने लगते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि हम सदाचारी मित्र के साथ रहकर सदाचारी मित्र कि सच बोलने की आदत को सीख जाते हैं और एक सदाचारी व्यक्ति बन जाते हैं । एक सदाचारी मित्र ही हमें सदाचार के गुण सिखा सकता है ।

सदाचार व्यक्ति के प्रमुख गुणों के बारे में – एक सदाचार व्यक्ति के अंदर सहिष्णुता जैसा गुण होना चाहिए । सदाचारी व्यक्ति कभी भी क्रोध व्यक्त  नहीं करता है ।सदाचारी व्यक्ति सदैव दूसरों के हित के लिए कार्य करता है । एक सदाचारी व्यक्ति के अंदर क्षमा करने की शक्ति होना चाहिए । यदि किसी व्यक्ति से दुर्भाग्य पूर्वक कुछ गलत काम हो गया है तो एक सदाचारी व्यक्ति उसको क्षमा करने की शक्ति रखता है क्योंकि गलतियां सभी से हो जाती हैं । जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को क्षमा नहीं करता है , उसके साथ दुर्व्यवहार करता है वह कभी भी एक सदाचार व्यक्ति नहीं बन सकता है क्योंकि भगवान भी इंसानों के कई गुनाह करने के बाद भी क्षमा कर देते हैं ।

एक सदाचार व्यक्ति के अंदर संयम का गुण होता है । सदाचारी व्यक्ति कभी भी अपने संयम को खोता नहीं है ।एक सदाचाारी व्यक्ति अपने आपको सदैव अहिंसा के रास्ते पर चलाता है और उसके साथ में रहने वाले लोगों को भी अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए कहता है क्योंकि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है । एक सदाचारी व्यक्ति के अंदर धैर्य होना चाहिए । कुछ लोग होते हैं जो अपने जीवन में धैर्य नहीं रखते हैं और वह सफलता प्राप्त करने के लिए गलत रास्ता अपना लेते हैं और अपने आप को बर्बाद कर देते हैं ।

इस तरह से एक सदाचार व्यक्ति के अंदर सत्य बोलने की शक्ति  होना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति सत्य बोलता है उसके अंदर सदाचार के सभी गुण दिखाई देने लगते हैं ।

समाज में सदाचार व्यक्ति की उपयोगिता के बारे में – समाज में एक सदाचार व्यक्ति का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि समाज में कई मानसिकता वाले लोग रहते हैं ।कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो समाज को बुराई के रास्ते पर ले जाने का कार्य करते हैं । यदि समाज में एक सदाचारी होता है तो वह सभी लोगों को एकत्रित करके पूरी समाज को विकास की ओर ले जाने का कार्य करता हैं । सदाचार व्यक्ति को देखकर पूरी समाज सदाचार व्यक्ति के बताए गए रास्ते पर चलने लगती है और समाज का विकास होता है ।

समाज के अंदर जब एक सदाचारी व्यक्ति होता है तब छोटे-छोटे बच्चे उस सदाचारी व्यक्ति को देखकर उसके गुणों को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं और वह सदा के लिए एक सदाचारी बनने का वचन अपने आप से ले लेते हैं और वह सदाचारी बन जाते हैं । एक सदाचारी व्यक्ति समाज के अंदर फैली कुरीतियों को नष्ट करने का कार्य करता है । हमारे भारत देश में कई महान पुरुषों ने जन्म लिया है और उन महान पुरुषों ने सदाचार के रास्ते पर चलकर समाज की कई कृतियों को नष्ट किया है ।

भारत देश में यह इतिहास रहा है कि महान  लोगों के द्वारा अच्छे-अच्छे कार्य किए गए हैं । इससे यह है पता चल जाता है कि समाज के अंदर सदाचारी व्यक्ति का होना कितना जरूरी होता है । सदाचार व्यक्ति ही समाज में फैली कुरीतियों को नष्ट करने का कार्य कर सकता हैं क्योंकि कोई ना कोई व्यक्ति के अंदर सदाचार के गुण अवश्य होते हैं । जब भारत देश की समाज  सशक्त होंगी तब हमारा देश  सशक्त बनेगा । इसलिए समाज को अच्छाई के रास्ते पर चलाने के लिए सभी को सदाचार व्यक्ति अवश्य बनना चाहिए ।

सदाचारी व्यक्ति के गुणों से ही समाज और देश का भविष्य निर्धारित होता है । यदि समाज के अंदर कोई गलत व्यक्ति है तो उस गलत व्यक्ति को अच्छाई के रास्ते पर लाने का कार्य सदाचार व्यक्ति कर सकता है ।

सदाचार व्यक्ति के व्यवहार के बारे में – सदाचार व्यक्ति दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार रखता है । वह कभी भी किसी अन्य व्यक्ति के प्रति छल , कपट की भावना नहीं रखता है । सदाचार व्यक्ति का व्यवहार बहुत शांतप्रिय होता है । सदाचारी व्यक्ति कभी भी किसी पर क्रोध नहीं करता है । यदि कोई व्यक्ति उसके सामने रहता है तो वह उस व्यक्ति से सम्मान पूर्वक मिलता है और उस व्यक्ति से हाथ मिलाता है । एक सदाचार व्यक्ति जब किसी मेहमान या अपने दोस्त से मिलता है तब वह सबसे पहले अपने मित्र को मिलने के लिए धन्यवाद देता है और इसके बाद वह अपने मित्र के परिवार के बारे में यह पूछता है कि तुम्हारा परिवार ठीक है ना ।

एक सदाचार व्यक्ति का व्यवहार उसको सदैव सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए अग्रसर करता है । एक सदाचारी व्यक्ति का व्यवहार  सदाचारी व्यक्ति को भगवान की ओर अग्रसर करता है । कहने का तात्पर्य है कि एक सदाचारी व्यक्ति को भगवान पर बहुत विश्वास होता है ।

पूरे संसार में जन्मे महान सदाचारी व्यक्तियों के बारे में – संसार में कई महान लोगों ने जन्म लिया है । जिनकी सच्चाई के किस्से आज भी पूरे संसार में कहे जाते हैं । कई ऐसे उदाहरण हम लोगों को पढ़ने को मिल जाते हैं जिन लोगों ने सच्चाई के रास्ते पर चलकर समाज और देश को उन्नति की राह पर ले जाने का कार्य किया है । यदि हम बात करें ईसा मसीह की तो उन्होंने पूरी दुनिया को सच्चाई के रास्ते पर ले जाने का कार्य किया है । आज पूरी दुनिया ईसा मसीह के द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करती है और ईसा मसीह को भगवान मानती है क्योंकि जो व्यक्ति सदाचार के गुण अपनाकर सत्य रूपी धन समाज को बांटता है । वह भगवान कहलाने का अधिकारी होता है ।

जब ईसा मसीह जीने दुनिया में सत्य के माध्यम से उजाला किया तब ईसा मसीह के अंदर संसार के सभी लोगों ने अच्छे गुण देखें थे । इसीलिए आज ईसा मसीह पूरी दुनिया में भगवान के रूप में पूजनीय हैं । यदि हम भी अच्छे कार्य करना चाहते हैं और लोगों को सच्चाई के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं तो हमें भी एक सदाचारी व्यक्ति बनने के लिए ईसा मसीह के गुणों को अपनाना पड़ेगी ।

मोहम्मद साहब एक ऐसे सदाचारी व्यक्ति थे जिन्होने समाज की उन्नति के लिए , समाज के विकास के लिए अपना जीवन लगा दिया था । मोहम्मद साहब के अंदर एक सदाचारी व्यक्ति के गुण समाहित थे क्योंकि वही व्यक्ति समाज की उन्नति के लिए अपना जीवन निछावर कर सकता है जो व्यक्ति एक समाज की दुर्दशा को देखकर उसके अंदर दया की भावना जागृत हो और मोहम्मद साहब एक ऐसे ही व्यक्ति थे । जिनके अंदर एक कमजोर व्यक्ति को देखकर दया भाव की भावना जागृत होती थी और उन्होंने समाज के हित में कई कार्य किए थे ।

वह निरंतर यह प्रयास में लगे रहते थे कि पूरी दुनिया को सच्चाई के , सत्य के रास्ते पर ले जाया जाए । इसी कोशिश में मोहम्मद साहब ने अपना पूरा जीवन लगा दिया था । जब मोहम्मद साहब किसी से मिलते थे तब उनके अंदर उनके व्यवहार से उनके सदाचारी गुण झलकते थे  । इसीलिए आज मोहम्मद साहब सदाचारी गुणों से पूरी दुनिया में पहचाने जाते हैं ।

हमारे भारत देश में भी कई महान लोगों ने जन्म लिया है और उन्होंने अपने सदाचारी गुणों के माध्यम से देश की  समाजों को सही रास्ते पर ले जाने का कार्य किया है । उन महान लोगों के नाम इस प्रकार से हैं गुरु नानक देव जी जिनकी आज जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है । गुरु नानक देव जी बचपन से ही एक सदाचारी व्यक्ति रहे हैं ।उन्होंने अपने माता-पिता से एक सदाचारी गुण प्राप्त किया है । जब भी अपनी समाज की रक्षा के लिए गुरु नानक देव जी को सामने आना पड़ता था तब वह निरंतर अपनी समाज की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे ।

गुरु नानक देव जी एक वचनबद्ध व्यक्ति थे गुरु नानक देव जी कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेते थे । गुरु नानक देव जी ने भारत देश में रहकर समाज को प्रगति के रास्ते पर ले जाने का काम किया है । आज हम गुरु नानक देव जी की जितनी प्रशंसा करें उतनी कम है । भारत  देश में और भी कई ऐसे सदाचारी व्यक्ति ने जन्म लिया है । जिन्होंने अपने सदाचारी गुणों के माध्यम से समाज को प्रगति के रास्ते पर ले जाने का कार्य किया है । उन व्यक्तियों के नाम इस प्रकार से हैं । स्वामी दयानंद सरस्वती जी जिन्होंने अपने सदाचारी गुणों से सत्य को पूरी दुनिया में उजागर किया है ।

रविंद्र नाथ टैगोर जी भी एक महान सदाचारी व्यक्ति रहे हैं । जिन्होंने राष्ट्र और भारत देश की समाजों के लिए कई कार्य किए हैं । आज हम स्वामी दयानंद सरस्वती जी और रविंद्र नाथ टैगोर जी की जितनी प्रशंसा करें उतनी कम है ।इसके बाद ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी भी भारत के महान सदाचारी व्यक्ति रहे हैं । जिनके अंदर सदाचार के गुण छलकते थे और वह निरंतर भारत देश के विकास में भारत देश की समाजों को प्रगति के रास्ते पर ले जाने का कार्य करते रहते थे । हमारे भारत देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी भी एक सदाचारी व्यक्ति थे ।

जिन्होंने बचपन से ही सत्य बोलने का संकल्प लिया था ।  महात्मा गांधी जी के सदाचारी गुणों के कारण ही आज पूरा भारत स्वतंत्र है । महात्मा गांधी जी ने सत्य के रास्ते पर चलकर ब्रिटिश शासन की धज्जियां उड़ाई हैं । महात्मा गांधी जी ने कभी भी असत्य का रास्ता नहीं चुना और वह पूरे देश को सत्य की रास्ते पर ले जाने का कार्य करते रहते थे । महात्मा गांधी जी के सत्य के रास्ते पर चलने के कारण ही भारत देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई है ।  आज महात्मा गांधी जी को भारत देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व सदाचार व्यक्ति के रूप में पहचानते हैं ।

महात्मा गांधी जी अपने माता-पिता का सम्मान करते थे और वह सदैव भारत देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना दिमाग लगाते रहते थे । महात्मा गांधी जी सदैव सत्य अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति थे ।इसलिए वह एक सदाचारी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बना पाए हैं । उनका कहना भी था कि एक अच्छा व्यक्ति बनने के लिए एक सदाचारी व्यक्ति  बनना जरूरी है और एक सदाचारी व्यक्ति बनने के लिए व्यक्ति को सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए ।

short essay on sadachar in hindi 

जिस व्यक्ति के अंदर क्षमा , धैर्य , अहिंसा सहिष्णुता , संयम जैसे  गुण होते हैं वह व्यक्ति एक सदाचारी व्यक्ति कहलाता है । यदि कोई व्यक्ति अपने मुंह से यह बोलता है कि मैं एक सदाचारी व्यक्ति हूं और वह व्यक्ति झूठ बोलता है , दूसरे को नुकसान पहुंचाता है तो वह सदाचारी व्यक्ति नहीं होता हैं । एक सदाचारी व्यक्ति अपने मुंह से अपनी भलाई नहीं करता  है । एक सदाचारी व्यक्ति के अंदर अच्छे गुण उसके व्यवहार से दिखाई देते हैं । एक सदाचारी व्यक्ति कभी भी झूठ नहीं बोलता है । यदि कोई व्यक्ति झूठ बोले तो वह एक सदाचार व्यक्ति नहीं है ।

यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करें तो वह सदाचारी व्यक्ति नहीं है । यदि कोई व्यक्ति भगवान पर विश्वास ना करें तो वह सदाचारी व्यक्ति नहीं है । यदि कोई व्यक्ति दूसरे मनुष्य  से घृणा करें , उसको दुश्मनी की नजर से देखें तो वह व्यक्ति सदाचारी व्यक्ति नहीं है क्योंकि सदाचारी व्यक्ति वही होता है जो दूसरों के दुखों में निष्पक्ष भाव से हिस्सा लें और उस व्यक्ति को उसके कष्टों से बाहर निकालने में उसकी मदद करें वहीं सदाचारी व्यक्ति होता है । एक सदाचारी व्यक्ति कभी भी अपने माता-पिता की बातों का अपमान नहीं करता है और वह सदैव अपने माता-पिता के सम्मान को बनाए रखता है ।

एक सदाचारी व्यक्ति के गुण अच्छे कपड़े पहनने से , सुंदर सुंदर श्रृंगार करने से नहीं बनता है बल्कि एक सदाचार व्यक्ति के अंदर दूसरे के लिए मान सम्मान की भावना , समाज को सही रास्ते पर ले जाने की भावना और उसका व्यवहार बहुत ही शांतिप्रिय होना चाहिए । यही सदाचार व्यक्ति के अच्छे गुण होते हैं । यदि किसी व्यक्ति से कुछ गलती हो जाती है तो एक सदाचारी व्यक्ति उस व्यक्ति की गलती को क्षमा करने मे कुछ भी देर नहीं करता है । एक सदाचार व्यक्ति कभी भी झूठ , फरेब के सहारे सफल व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करता है । दोस्तों सदाचार शब्द को 2 शब्दो से मिलाकर बनाया गया है ।

जिसमें सत्य शब्द को लिया गया है । कहने का तात्पर्य यह है कि सदाचारी व्यक्ति के अंदर सत्य बोलने की आदत अवश्य होनी चाहिए । जो सदाचारी व्यक्ति होता है वह कभी भी किसी भी कार्य को करने से घबराता नहीं है । जब सदाचारी व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाता है तब सदाचारी व्यक्ति अपना पहला कदम सच्चाई के साथ बढ़ाता है । सच्चाई की कीमत यदि कोई व्यक्ति जानता है तो वह व्यक्ति एक सदाचारी व्यक्ति होता है क्योंकि वह सदाचार के रास्ते पर चलकर अपने आप की गिनती उन सफल व्यक्तियों में  चुका होता है जिन लोगों को पूरी दुनिया एक सदाचार व्यक्ति के रूप में पहचानती है ।

paragraph on sadachar in hindi

एक व्यक्ति सदाचार व्यक्तित्व तब बनता है जब वह  उत्तम आचरण अपने अंदर समाहित कर लेता है । एक सदाचार व्यक्ति का सबसे बड़ा धन उसका आचरण होता है क्योंकि वह अच्छे आचरण और अच्छे व्यवहार से समाज में सम्मान प्राप्त करता है ।  हमारे भारत देश में राम एक सदाचारी व्यक्ति थे जिन्होंने कभी भी असत्य का रास्ता नहीं अपनाया और रावण एक अत्याचारी व्यक्ति था जिसे पूरी दुनिया दुराचारी व्यक्ति के रूप में पहचानती है । श्री राम भगवान सभी से मिलते थे ।

उनसे सम्मान पूर्वक बातचीत किया करते थे । इसलिए एक सदाचारी व्यक्ति के गुणों को उसका व्यवहार व्यक्त करता है । जो व्यक्ति जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति रखता है । उस व्यवहार को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि वह सदाचार व्यक्ति है या नहीं । एक सदाचारी व्यक्ति के अंदर अहिंसा , क्षमा और धैर्य जैसे गुण अवश्य होना चाहिए और उस व्यक्ति को सदैव सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए । यह सभी गुण हमें बचपन में स्कूल में पढ़ाई करने के दौरान सिखाए जाते हैं । यदि आज हम एक सदाचारी व्यक्ति के गुणों की बात करें तो एक सदाचारी व्यक्ति का सबसे अच्छा गुण उसकी सच्चाई है । यानी सत्य के रास्ते पर चलकर ही एक सदाचारी व्यक्ति बना जा सकता है ।

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Sadachar essay in hindi सदाचार पर निबंध.

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hindiinhindi Sadachar Essay in Hindi

Sadachar Essay in Hindi

सत्+ आचार, सन्धि हो जाने पर बना सदाचर। सत् का अर्थ होता है – अच्छा, सच्चाई और मानव हित पर आश्रित। आचार का अर्थ है – मानवीय चरित्र, चाल चलन और व्यवाहर। इस प्रकार हमारा जो व्यवहार अपनी राष्ट्रीयता, अपने देश और अपने काल अर्थात् समय के अनुसार उचित, अच्छा, सभी का हित साधने वाला होता है, उसे सदाचार कहा जाता है। इस परिभाषा और व्याख्या से सदाचार का महत्त्व भी स्वत: ही उजागर हो जाता है।

यह ध्यान रहे, जैसे भूख-प्यास, नींद आदि जीवन के शाश्वत सत्य हैं, उसी प्रकार सदाचार का बाहरी, स्वरूप तो देश और समाज के अनुसार कुछ अवश्य बदल जाता है, पर उसके अनेक आन्तरिक तत्त्व हमेशा एक जैसे बने रहते हैं। बड़ों का आदर करना, सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, समानता, सभी धर्मों के प्रति समान आदर का भाव रखना ही सदाचार है। इन सब गुणों के बिना व्यक्ति और समाज दोनों का कार्य नहीं चल सकता। व्यक्ति और समाज इन का तिरस्कार कर सम्मान और मानवीय गौरव के अधिकारी कदापि नहीं बन सकते। एक अलिखित सामाजिक और नैतिक समझौते के अन्तर्गत इन बातों का पालन सभी के लिए आवश्यक होता है।

सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को दूसरों के सम्पर्क में आना पड़ता है। वह अपने व्यवहार, बातचीत और क्रिया-कलापों से पहचाना जाता है। जीवन और समाज को ठीक से चलाने के लिए, उन्नत और विकसित बनाने के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बोलचाल और व्यवहार ठीक रखे। यही सदाचार है।

इन तथ्यों के आलोक में ही व्यक्ति को सदाचारी बनने की शिक्षा तथा प्रेरणा दी जाती है। कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी सदाचार की राह से विचलित न होने को कहा जाता है। आज संसार जिन्हें महापुरुष कह कर पूजता है, वे इसी प्रकार के कभी विचलित न होने वाले सदाचारी पुरुष थे।

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Sadachar Essay in Hindi 500 Words

रूपरेखा : सदाचार का अर्थ, सदाचार के नियमों का स्वरूप, सदाचार और नैतिकता, सदाचार और शिष्टाचार, सदाचार के अंग, उपसंहार।

‘सदाचार’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है – सत् + आचार। इसका अर्थ है अच्छा आचरण। अच्छा आचरण वह है जिससे व्यक्ति और समाज दोनों का हित हो। सत्य, अहिंसा, प्रेम, उदारता, सदाशयता आदि सदाचार के कुछ सनातम लक्षण हैं। सभी देशों और सभी कालों में इन्हें मान्यता मिलती रही है। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन्हें चरितार्थ करता है, सदाचारी कहलाता है। सदाचरण से व्यक्ति अपने जीवन में तो सुख और शांति का अनुभव करता ही है, उससे औरों का भला भी होता है।

सदाचार से संबंधित कुछ नियम ऐसे भी हो सकते हैं, जो समय और समाज-सापेक्ष हों। हर व्यक्ति अपने निजी जीवन में सदाचार के कुछ विशिष्ट नियम या सिद्धांत स्थिर कर सकता है। ऐसा करने में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे नियमों या सिद्धांतों से पूरे समाज का हित हो और उससे किसी वर्ग अथवा संप्रदाय के हितों या भावनाओं पर कोई आघात न पहुंचे। स्मरणीय है कि सदाचरण वह है, जिससे व्यक्ति के साथ पूरे समाज के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और नैतिकता को प्रश्रय मिले।

सदाचार और नैतिकता का गहरा संबंध है। इन्हें एक दूसरे का पर्याय कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। सदाचार का संबंध मनुष्य के मन की भावनाओं से भी और उसके बाहरी आचरण या व्यवहार से भी है। वास्तव में मन की भावनाएँ और बाहरी आचरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो मनुष्य मन से सत्यनिष्ठ और अच्छे विचारों वाला नहीं है, उसे सदाचारी नहीं माना जा सकता, भले ही परिस्थितिवश वह अच्छे व्यवहार का मिथ्या प्रदर्शन क्यों न कर रहा हो।

शिष्टाचार सदाचार का एक अंग ही नहीं है बल्कि सामाजिक व्यवहार में तो वह सदाचार का पर्याय ही हो जाता है। देश और काल के अनुसार शिष्टाचार के नियमों में न्यूनाधिक परिवर्तन होते रहते हैं। बड़ों के प्रति आदर-दर्शन सभी समाजों में मान्य है, आदर-प्रदर्शन के ढंग अलग-अलग हो सकते हैं; जैसे – दोनों हाथ जोड़कर या सिर झुकाकर प्रणाम करना या हाथ उठाकर सलाम करना। विभिन्न अवसरों के भी शिष्टाचार के नियम हैं; जैसे – ध्वजारोहण के समय सावधान की स्थिति में खड़े होना, राष्ट्रगान सुनाई पड़ने पर मौन खड़े हो जाना।

इसी प्रकार विनय, मधुर-भाषण, अथिति-सत्कार आदि भी शिष्टाचार के आवश्यक अंग हैं। गोष्ठी, औपचारिक सभा एवं समारोह, प्रीतिभोज आदि में देश-काल के अनुसार शिष्टाचार के अलग-अलग नियम हैं, जिनका पालन करना अपेक्षित है। बिना पूछे बोलना, आवश्यकता से अधिक बोलना, किसी समारोह में बिना बुलाए पहुँच जाना, किसी अन्य व्यक्ति के लिए निर्धारित स्थान पर बैठना, दो आदमियों की बातचीत में दखल देना आदि अशिष्ट व्यवहार के उदाहरण हैं।

सदाचार तभी संभव होगा जब मनुष्य संयम, श्रमनिष्ठा, अध्यवसाय, कर्तव्यपरायणता, क्षमाशीलता आदि गुणों के सतत् अभ्यास से अपने व्यक्तित्व का विकास करे। ऐसे ही व्यक्तित्व वाले मनुष्य समाज के समक्ष आदर्श उपस्थित करते हैं। उन्हीं के बारे में गीता में कहा गया है यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः ।। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।।

अर्थात् जैसा आचरण श्रेष्ठ जन करते हैं, वैसा ही दूसरे लोग भी करते हैं। वे जो मानदंड स्थापित करते हैं, लोग उसी का अनुकरण करते हैं।

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sadachar long essay in hindi

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सदाचार पर निबंध

Sadachar Par Nibandh : हम यहां पर सदाचार पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में सदाचार के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

Sadachar-Par-Nibandh

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सदाचार पर निबंध | Sadachar Par Nibandh

सदाचार पर निबंध (250 शब्द).

हमारे जीवन के लिए सदाचार महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमारी भलाई और खुशी के लिए आवश्यक बुनियादी गुण हैं। एक बहेतरीन और स्वस्थ जीवन जीने के लिए  सदाचार को जीवन में  विकसित करने की आवश्यकता होती है। सदाचार से अक्षय धन मिलता है। सदाचार ही बुराइयों को नष्ट करता है। सभी धर्मों का सार एक मात्र सदाचार ही है। सदाचार के  गुण  से मनुष्य का चरित्र उज्ज्वल बनता है।

यह शब्द संस्कृृत भाषा के सत् और आचार शब्दों से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सज्जन का आचरण। सदाचार से संसार में मनुष्य को आदर सन्मान मिलता है। संसार में उसकी प्रतिष्ठा  बढ़ती रहती है। सदाचार मनुष्य आत्मविश्वास  से भरपुर होता है।किसी भी मनुष्य के लिए सदाचार जीवन में अपनाना गौरव की बात होती है।

सदाचार हमें स्पष्ट सोच देता है। सदाचार मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार से दूर रखता है। जीवन में सदाचार सत्संग, अध्यन तथा अभ्यास के द्वारा प्रतिपादित होता है। सदाचार मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। यह वो गहना है, जिसकी तुलना में विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्तु तुच्छ नजर आती है।

सदाचार का बल संसार की सबसे बड़ी शक्ति मानी जाती है क्योंकि इसके सामने  मनुष्य  की सभी मानसिक दुर्बलताओं अपने घुटने टेक देती है। समाज के कल्याण का हिस्सा बनने के लिए सदैव सदाचार का पालन करें और अपने बच्चों को भी को सदाचार अवश्य सिखाएं। क्योंकि यह वह गुण है जिसकी वजह से हमारा व्यक्तित्व निखारता है और पूरा जीवन शांतिमय बनता है।  सदाचारी व्यक्ति मरणोपरांत के बाद भी याद किया जाता है।

सदाचार पर निबंध (800 शब्द)

हम अपने मन, वाणी और वर्तन के द्वारा जो अच्छा कार्य करते है उसे सदाचार कहा जाता है। यह हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण माना जाता है। मनुष्य जीवन में सदाचार का होना आसान बात नही है , इसके लिए हमें कठोर तपस्या, साधना, संयम और त्याग की  आवश्यकता पड़ती है। सदाचार के द्वारा आप एक मजबूत चरित्र  का निर्माण कर सकते हो।

सामाजिक व्यवस्था के लिए सदाचार का  अधिक महत्त्व  है। सदाचार मानव को पशुओं से अलग करता है और एक श्रेष्ठ मानव की पहचान देता है। सदाचारी व्यक्ति  मानसिक रूप से संतुष्ट काफी होता है, जिसकी खुशियां हमेशा द्वार पर रहती हैं और दुखों को वह अपने नजदीक भी नहीं आने देता।

सदाचार का महत्व

बड़े बड़े ऋषि मुनि, साधु संत और विश्व के महापुरुषों ने ही सदाचार को अपनाकर ही संसार को शांति एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाने में कामियाब रहे। सदाचार की राह पकड़ कर ही मनुष्य ईश्वर के समीप हो सकता है। इस गुण के द्वारा मनुष्य धार्मिक, बुद्धिमान और दीर्घायु बनता है और सदेव उसे सुख की प्राप्ति होती है। देश, राष्ट्र और समाज के कल्याण के लिए हर मनुष्य में सदाचार होना बेहद जरुरी है।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द जैसे सदाचारी पुरूष ने आचरण और विचारों से पूरे विश्व को प्रभावित किया।सदाचार मनुष्य को देवत्व प्रदान करता है। सदाचार एक ऐसा अनमोल अलंकार है, जिसे अपनाने के बाद मनुष्य को किसी भी कीमती रत्न की जरुरत नही पड़ेगी।

सदाचार का अर्थ

सदाचार दो संस्कृत शब्दों का मिलन है। सत् और आचार शब्दों से मिलकर बना यह शब्द काफी प्रभावशाली है। सदाचार सदाचार का अर्थ होता है एक अच्छा आचरण। सदाचार में सत्य, अहिंसा,विश्वास और मैत्री-भाव जैसे जीवनविकास के गुण भी शामिल होते है। सदाचार को धारण करने वाले व्यक्ति सदाचारी कहलाता है।

सदाचार को कभी बेचा या खरीदा नही जा सकता। उसकी कीमत कभी नही आंकी जा सकती। सदाचार हमें उत्तम शिक्षा, अनुशासन और सत्संगति से प्राप्त होता है। इसके अलावा इसे प्राप्त करने का कोई अन्य मार्ग नहीं है।

सदाचार और विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन पूरे जीवन की आधारशिला है। विनम्रता, परोपकार, सच्चरित्रता, सत्यवादिता जैसे गुण विद्यार्थी को सिखाने चाहिए। ताकि वो जीवन के हर क्षेत्र में बुराइयों से बच सके और खुद को नकारात्मक वातावरण से दूर रखे। विद्यार्थी को अपना अधिक से अधिक  समय सत्संगति के साथ गुजारना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में सिखाए गए सदाचार के पाठ उन्हें आदर्श विद्यार्थी बनने के पथ पर ले जाते है। एक आदर्श विद्यार्थी समाज के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायी होता है।

सदाचार के लाभ

सदाचार हमें माता-पिता और गुरू की आज्ञा का पालन करना सिखाता है। साथ ही साथ में परोपकार, अहिंसा, नम्रता और दया जैसे गुण को विकसित करता है। सदाचार से मनुष्य को हर जगह पर आदर मिलता है। संसार में उसकी पूजा और प्रतिष्ठा होती है। सदाचार जीवन में अपनाने से शरीर स्वस्थ, बुद्धि निर्मल और मन प्रसन्न रहता है। सदाचारी व्यक्ति को कोई भी कार्य कठिन और मुश्किल नहीं लगता।

यह मनुष्य को असत्य और बेईमानी से दूर रखता है। उसे जीवन में कभी असफल नहीं होने देता है। सदाचारी व्यक्ति हमेशा दूसरों के दुखों को देखकर भावुक हो जाता है और दुखी लोगों के दुःख दूर करने के लिए सदा तत्पर रहता है। सदाचारी व्यक्ति के व्यक्तित्व में एक अनोखा आकर्षण होता है। इसलिए उनके संपर्क में आने वाले दुराचारी व्यक्ति भी दुराचार को छोड़कर सदाचार को अपना लेता है।

दुराचारी  को हर जगह से दुत्कारा जाता है। इस प्रकार की व्यक्ति का जीवन दुखों से भरा रहता है। जगह जगह पर उसे अपमान मिलता है। दुराचारी व्यक्ति धर्म एवं पुण्य से हीन होता है। ऐसे लोगो को ना ही तो  सुख मिलता है और ना ही सदगति प्राप्त होती है।

सदाचार और वर्तमान समय

आज के इस विकसित युग में सदाचार की भावना लोगों में लुप्त होती नजर आ रही है। आज वर्तमान काल में समाज में भ्रष्टाचार, लांच रिश्वत, गुना खोरी कई दूषणो अपना घेरा डाला हुआ है। मानव मानव का प्रतिस्पर्धी बन गया है। सदाचार और नैतिकता जैसे गुणों को आज  बचपन से ही सीखने की जरुरत है, वरना पृथ्वी पर से सदाचार जैसे शब्दों का नामोनिशान मिट जायेगा। अगर पृथ्वीपर सदाचार ही नहीं रहेगा तो  यह इंसान एक खतरनाक नर भक्षी का रूप भी धारण कर सकता है।

सदाचार भारतीय संस्कृृति का एक हिस्सा है। सदाचार को जीवन में अपनाने से लौकिक और आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। यदि धन नष्ट हो जाये तो मनुुष्य का कुछ भी नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है पर चरित्रहीन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है। इसलिए सभी को सदाचार के व्रत को जीवन में अपनाना चाहिए। सदाचार ही मनुष्य जीवन को सार्थक बनाता है।

सदाचार का मूल्य वास्तविक प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है इसलिए हमें अपने जीवन में सदाचार को पूरी गंभीरता से शामिल करना चाहिए। इस प्रकार हम अपने जीवन को तो श्रेष्ठ करेंगे ही, साथ ही औरों के लिए भी मार्गदर्शक और प्रेरणादायी बनेंगे।

हमने यहां पर “  सदाचार पर निबंध (Sadachar Par Nibandh) ” शेयर किया है। उम्मीद करते हैं कि आपको यह निबंध पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह निबन्ध कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • शिष्टाचार पर निबंध
  • समयनिष्ठता पर निबंध
  • दयालुता पर निबंध

Rahul Singh Tanwar

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सदाचार पर निबंध | Essay on Virtue in Hindi

सदाचार पर निबंध नई उम्र के बच्चों एवं युवाओं को आधुनिक युग में सदाचार का अर्थ बताने एवं बुनियादी शिष्टाचार से परिचित कराने में सहायक होगा। 

आज भी उचित अनुशासन एवं सदाचार के अभाव में कई युवा भटकते जा रहे हैं।

जिसके कारण वो अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति करने में पीछे रह जाते हैं और बाद में चलकर उन्हें पछताना पड़ता है। 

"सदाचार पर निबंध" written on white background and an animated image of boy

Table of Contents

सदाचार का अर्थ | Meaning of Virtue in Hindi

‘सदाचार’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है ‘सत्’ और ‘आचार’ । ‘सत्’ का अर्थ है ‘सही’ और ‘आचार’ का अर्थ है ‘आचरण’ । अतः ‘सदाचार’ का अर्थ हुआ ‘सही आचरण’।

मनुष्य में सदाचार का होना बहुत जरूरी है। यह न केवल मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाता है, उसे पूर्ण मनुष्य’ भी बनाता है। यह सदाचार ही है जो मनुष्यों को जानवरों से अलग करता है। कारण मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य का जन्म समाज के अन्दर होता है, समाज में ही वह पाला-पोसा जाता है, समाज में ही वह विकास करता है, जीवन यापन करता है और अंतिम सांस लेता है। इस क्रम में उसे हर पल समाज का साहचर्य प्राप्त होता रहता है, समाज के सहयोग की जरूरत होती है और बदले में समाज को कुछ देना एवं अपना कर्तव्य पालन करना होता है। बस यही सदाचार’ की जरूरत होती है। जो आदमी सदाचार से अपरिचित है अथवा जिसमें उसका संस्कार पैदा नहीं हुआ है, वैसा आदमी सही अर्थों में न तो सामाजिक मनुष्य हो सकता है, न समाज से बहुत कुछ पा सकता है और न समाज को कुछ दे हो सकता है ।

माता-पिता सिखाते है सदाचार 

‘सदाचार’ का पहला पाठ मनुष्य अपने परिवार में ही पड़ता है। परिवार में उसके माता-पिता हमेशा सबसे निकट रहनेवाले सदस्य होते हैं। बाल्यावस्था में ये ही उसे बतलाते है कि उसे किस प्रकार खाना, कपड़े पहनता, सोना, बड़ों को नमस्ते करना या बोलना चाहिए। वे उसे परिवार के अन्य छोटे-बड़े सदस्यों के साथ सही व्यवहार करने का ढंग सिखलाते हैं। इसके बाद ज्ञान देने वाले गुरु या ‘आचार्य’ का स्थान आता है, जो उसे पुस्तकीय शिक्षा देने के साथ-साथ सामाजिक शिष्टाचार को भी शिक्षा देते हैं। पुस्तकीय शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य जान पाता है। कि समाज का व्यापक स्वरूप और महत्व क्या है ? उसको नागरिकता का अर्थ क्या है? एक नागरिक के रूप में उसके अधिकारों एवं कर्तव्यों की सीमारेखा क्या है ? वह बड़ा होकर अपने पड़ोसियों को पहचान पाता है और उनके साथ प्रेमपूर्वक रहने, हमेशा सहयोग के लिए तत्पर रहने के महत्त्व को भी। ये सारी चीजें ‘सदाचार’ की सीमा में ही आती हैं। कारण जो मनुष्य सदाचार से परिचित होता है, वही अपने परिवार,

सदाचार से मिलती है कर्तव्य निर्वहन की प्रेरणा

पड़ोस और विभिन्न सामाजिक अवसरों पर शिष्टाचार का भी परिचय दे पाता है। आज के सामाजिक मनुष्य का जीवन बड़ा ही वैविध्यपूर्ण है, अतः उसके सदाचार का सन्दर्भ भी बदलता रहता है। उदाहरण के लिए, परिवार में रहनेवाले मनुष्य के लिए सदाचार का अर्थ है छोटे-बड़े सभी सदस्यों के साथ अपने कर्तव्य’ का पालन करना, यानी वह विद्यार्थी है तो मन लगाकर पढ़ना, व्यापारी है तो व्यापार के स्वीकृत नियमानुसार उचित व्यापार करना; खेतिहर गृहस्थ है तो अच्छी खेती-बारी कर अपनी उपज की उचित मूल्य लेना और किसी व्यक्ति, संस्था या राज्य की किसी प्रकार की सेवा में है तो उसके नियमानुकूल अपना कर्तव्य निर्वाह करना। अपने पेशे में ईमानदारी नहीं बरतनेवाला व्यक्ति कोई भी हो – प्राध्यापक हो, सैनिक हो या किसी कार्यालयका कर्मचारी हो- ‘सदाचारी’ नहीं माना जा सकता।

सामाजिक सदाचार से कानूनी सदाचार का स्वरूप किंचित् भिन्न होता है। कानूनी सदाचार का अर्थ है कि एक ‘नागरिक’ अपने ‘राज्य’ के एवं केन्द्रीय या संघीय कानूनों का सम्मान करे और अपने व्यवहार में उसका निर्वाह करे। वह अपने समान ही दूसरे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे, किसी की सम्पत्ति पर आंख नगड़ाये, यदि उसकी आय अधिक है तो नियमानुसार आपकर दे और अन्य विधि व्यवस्था का भी पालन करे। इनका उल्लंघन करने के कारण तस्करों को घृणा की नजरों से देखा जाता है। 

चोर-डाकुओं और धार्मिक सदाचार का स्वरूप भी भिन्न होता है। यह मुख्य रूप से धर्मशास्त्रो एवं पण्डित पुरोहितों के उचित परामर्श को आचरण में उतारने के रूप में होता है। उदाहरण के लिए, किसी धार्मिक स्थल पर वहाँ के नियमानुसार जाना एवं आचरण करना ही वहाँ का सदाचार है। भले और समझदार मनुष्य सदाचार की हर कसोटी पर खरे उतरते है और आदर्श ‘सामाजिक’ होते हैं।

आज के इस युग में जहां कदाचार, तनाव, गलत प्रतियोगिता की भावना, आर्थिक, धार्मिक समस्याएँ इतनी बढ़ गयी हैं वहाँ सदाचार का महत्व और अधिक हो गया है। मनुष्य एवं समाज, दोनों की उन्नति और मधुर सम्बन्ध के विकास के लिए सदाचार का पालन निश्चय ही आवश्यक है।

चलते-चलते :

सदाचार पर निबंध के अंतर्गत आपने जाना सदाचार का अर्थ एवं किस प्रकार से सदाचार समाज में एक आधार बनाने में सहायक है। यदि आपको यह निबंध पसंद आया तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा जरूर करें।

यदि अपने जीवन में सदाचार को अपनाने के बाद आपके जीवन शैली में कोई परिवर्तन आया है, तो आप उसे भी कमेंट बॉक्स में हमारे पाठकों के साथ साझा कर सकते हैं, जिनसे उन्हें भी प्रेरणा मिले। 

Shivam Pandey

Google DSC के डेवलपर कम्युनिटी को लीड कर चुके शिवम सैंकड़ो लोगों को गूगल क्लाउड, web एवं एंड्राइड जैसी तकनीकों में प्रशिक्षण दे चुकें हैं. तकनिकी छेत्र में शिवम को महारत हासिल है. वे स्टार्टअप, सोशल मीडिया एवं शैक्षणिक विषयों पर टपोरी चौक वेबसाइट के माध्यम से जानकारियां साझा करतें हैं. वर्तमान में शिवम एक इंजिनियर होने के साथ साथ गूगल crowdsource के इन्फ्लुएंसर, टपोरी चौक एवं सॉफ्ट डॉट के संस्थापक इसके अलावा विभिन्न स्टार्टअप में भागीदारी निभा रहें हैं.

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Hindi Essay on “Sadachar ka Mahatva ”, “सदाचार का महत्व”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

सदाचार का महत्व

Sadachar ka Mahatva 

सदाचार जीवन के समस्त गुण, ऐश्वर्य, समृद्धि और वैभव की आधारशिला है। यदि हम सच्चरित्र हैं, तो संसार की समस्त विभूतियाँ, बल, बुद्धि, वैभव हमारे चरणों में झुकती हैं और यदि हमारा जीवन दुश्चरित्रता और दुराचारों का घर है, तो हम समाज में निंदा और तिरस्कार के पात्र बन जाते हैं। अपने बल, बुद्धि और वैभव को हम अपने ही हाथों से खो बैठते हैं। चरित्रहीन व्यक्ति स्वयं अपने को, अपने परिवार को और अपने समाज को, जिसका कि वह सदस्य है, गड्ढे में गिरा देता है। दुष्चरित्र मनुष्य अपने समाज के लिए अभिशाप सिद्ध होता है। जबकि सच्चरित्र वरदान। दुष्चरित्र अपने कुकर्मों और कुकृत्यों से नारकीय जीवन की सृष्टि करता है, जबकि सच्चरित्र के लिए स्वर्ग के द्वार सदैव खुले रहते हैं। दुष्चरित्र का जीवन अंधकारपूर्ण होता है, जबकि सच्चरित्र ज्ञान के प्रकाश के उज्ज्वल वातावरण में विचरण करता है। सच्चरित्र अपने शुभ कर्मों से इसी भूमि पर स्वर्ग का निर्माण करता है। परन्तु चरित्रहीन, दुष्टात्मा व्यक्ति अपने कुकृत्यों से नारकीय जीवन की सृष्टि करता है। चरित्रहीन व्यक्ति अपने कुकृत्यों से इस पवित्र धरा को नरक बना देता है। सच्चरित्र बनने के लिए मनुष्य को सुशिक्षा, सत्संगति और स्वानुभव की आवश्यकता होती है। जैसे की अशिक्षित व्यक्ति भी संगति और अनुभवों के आधार पर अच्छे चरित्र के देखे गए हैं, परन्तु बुद्धि का परिष्कार और विकास बिना शिक्षा के नहीं होता। मनुष्य को अच्छे और बुरे की पहचान ज्ञान और शिक्षा के द्वारा ही होती है।

शिक्षा से मनुष्य की बुद्धि के कपाट खुल जाते हैं। अत: सच्चरित्र बनने के लिए अच्छी शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ मनुष्य को सत्संगति भी प्राप्त होनी चाहिए। देखा गया है कि शिक्षित व्यक्ति भी दुराचारी होते हैं। इसका केवल एक ही कारण है कि उन्हें अच्छी संगति प्राप्त नहीं हो सकी। बुरी संगति के प्रभाव ने उनकी शिक्षा-दीक्षा के प्रभाव को भी समाप्त कर दिया। क्योंकि दोष और गुण संसर्ग से ही उत्पन्न होते हैं। मनुष्य जिस प्रकार के व्यक्तियों के बीच बैठेगा-उठेगा, उनकी विचारधारा, व्यसनों, वासनाओं और अच्छे-बुरे कर्मों का प्रभाव उस पर अवश्य पड़ेगा। अतः सच्चरित्र बनने के लिए शिक्षा से भी अधिक आवश्यकता अच्छी संगति की है।

सत्संगति एक खराब मनुष्य को भी उत्तम बना देती है। पारस पत्थर का स्पर्श करते ही लोहा भी सोना बन जाता है। उसी प्रकार दुष्ट मनुष्य भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं। स्वानुभव भी मनुष्य को सच्चरित्र बनने में बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। जब बच्चे की उंगली एक बार आग से जल जाती है, तब वह दुबारा आग पर उंगली नहीं रखता। झूठ बोलने या कोई दुष्कर्म करने पर जब विद्यार्थी पर अध्यापक या माता-पिता के हाथ पड़ जाते हैं तब वह भविष्य में वैसा साहस नहीं करता। उसे अनुभव होता है कि ऐसा करने से उसे यह फल मिला। इस प्रकार व्यक्तिगत अनुभव भी मनुष्य को सच्चरित्रता की ओर ले जाते हैं।

सच्चरित्र से मनुष्य को अनेक लाभ होते हैं, क्योंकि सच्चरित्रता किसी विशेष गुण का बोध शब्द नहीं है। अनेक गुण जैसे-सत्य उदारता, विशिष्टता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूतिपरता आदि जिस व्यक्ति में होते हैं, वह व्यक्ति सच्चरित्र कहलाता है। उस व्यक्ति को समाज इज्जत देता है। उसे आदर और सम्मान का स्थान दिया जाता है। सच्चरित्र से मनुष्य अपनी आत्मा का संस्कार कर लेता है। सच्चरित्र से मनुष्य सुख और संतोष प्राप्त कर लेता है। वह शांतिमय जीवन व्यतीत करता है। वह अपने आदर्श चरित्र से समाज की बुराई को दूर कर देता है। उसके अदम्य साहस के सामने कोई भी शत्रु नहीं ठहर सकता। एक कहावत है कि ‘अगर मनुष्य का धन नष्ट हो गया तो उसका कुछ भी नष्ट नहीं हुआ और यदि उसका चरित्र नष्ट हो गया तो उसका सब कुछ नष्ट हो गया।‘

चरित्रवान बनना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। चरित्र से मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा पाता है। अपनी आत्मा का कल्याण करता हुआ वह व्यक्ति देश और समाज का भी कल्याण करता है। सच्चरित्र सुख और समृद्धि का सोपान है। सच्चरित्र के अभाव में आज देश के समक्ष अनेक समस्याएँ हैं। सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण समस्या है, अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना। जो देशवासी चरित्रहीन हैं वे नि:संदेह देश की रक्षा या देश का अभ्युत्थान नहीं कर सकते। अतः हमारा कर्त्तव्य है कि सभी देशवासी सच्चरित्र बनें, विशेष रूप से विद्यार्थियों को तो सच्चरित्र होना ही चाहिए क्योंकि देश के भावी कर्णधार वे ही हैं। उन्हें ही देश का भार अपने कन्धों पर रखना है, अतः प्राण-प्रण से अपने चरित्र को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए।

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जीवन में सदाचार का महत्व पर निबंध | Essay on Good Behaviour in Hindi

नमस्कार आज का निबंध, जीवन में सदाचार का महत्व पर निबंध Essay on Good Behaviour in Hindi पर दिया गया हैं.

विद्यार्थी जीवन में सदाचार क्या हैं इसका महत्व अर्थ आशय दस नियम आदि पर स्टूडेंट्स के लिए सरल भाषा में निबंध दिया गया हैं. आशा करते है आपको ये सदाचार का निबंध पसंद आएगा.

जीवन में सदाचार का महत्व पर निबंध Essay on Good Behaviour in Hindi

सदाचार का महत्व जब कोई शिक्षा आचरण और अमल में लाई जाती है तो वह प्रभावशाली हो जाती है और उसका असर होता है।

अन्यथा हमारा आत्मबल कमजोर है तो वाणी भी कमजोर होगी। इससे हमारी वाणी का असर संतान पर भी नहीं होगा। सदाचार का सीधा संबंध संस्कारों से है।

मानवता और सदाचार से आत्मीयता का विस्तार होता है। सम्पूर्ण संसार अपना परिवार नजर आता है। सदाचार के बिना मानवता का कोई अर्थ नहीं।

सदाचार मनुष्य में थोपा नहीं जा सकता, क्योंकि सद्गुण उसमें जन्म से होते हैं, किंतु संस्कारों द्वारा उन्हें विकसित किया जाता है।

भौतिकता की चकाचौंध में आज आध्यात्मिकता की उपेक्षा हो रही है, जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने आते हैं। कटुता, वैर भाव, स्वार्थपरता आदि तमाम दुष्प्रवृत्तियां जाने- अनजाने हमारे आचरण में आती हैं, जो व्यक्तित्व को धूमिल करने के साथ ही असामाजिकता को बढ़ावा देती हैं।

समझदारी इसी में है कि हम जीवन की वास्तविकता को समझें और सही समय पर सही मार्ग पर सही कदम रखें, जिससे अपने कल्याण के साथ-साथ दूसरों के कल्याण के भी माध्यम बन सकें। सही अर्थो में तभी हमारा जीवन सफल होगा।

भौतिक उन्नति केवल शारीरिक सुख पहुंचा सकती है आत्मिक नहीं। इसके लिए सदाचार के मार्ग पर हमें चलना होगा। सदाचार से ही जीवन को सुखी बनाया जा सकता है।

जीवन में सदाचार का महत्व निबंध | Sadachar Par Nibandh In Hindi

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं. समाज में रहकर वह कई काम करता हैं, परन्तु समाज के कुछ नियम हैं. नियमों के अनुसार किया गया काम  सदाचार कहलाता हैं.

जैसे गुरुजनों का आदर करना, सत्य बोलना, सेवा करना, किसी को कष्ट न पहुचाना, मधुर वचन बोलना, विनम्र रहना, बड़ो का आदर करना आदि सदाचार के उदाहरण  हैं. ये उत्तम चरित्र के गुण हैं. जिस व्यक्ति के व्यवहार में ये  गुण (virtue)  होते हैं, वह सदाचारी कहलाता हैं.

सदाचार का अर्थ व परिभाषा (moral conduct meaning arth definition in hindi)

यह सदाचार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हैं, सत+आचार सत का अर्थ हैं अच्छा और आचार का अर्थ हैं व्यवहार. इस तरह सदाचार का अर्थ हैं अच्छा व्यवहार.

अच्छे व्यवहार से ही व्यक्ति के सदाचारी होने की पहचान होती हैं. सदाचारी बनने के लिए ईमानदार होना आवश्यक हैं.

जो व्यक्ति अपने प्रति ईमानदार होता हैं, वह सबके प्रति इमानदारी बरतता हैं. चाहे वह सेवा की बात हो या कर्तव्य की, धन की बात हो या कमाई की, लेने की बात हो या देने की. सब में उसका व्यवहार ईमानदारीपूर्ण रहता हैं.

ईमानदार व्यक्ति गरीब होते हुए भी धनी होता हैं, क्योंकि ईमानदारी के कार्यों से उसे सम्मान और आनन्द मिलता हैं. बेईमान व्यक्ति धनवान तो हो सकता हैं, परन्तु वह आनन्द एवं सम्मान नही प्राप्त कर सकता हैं.

सदाचार के गुण और जीवन में सदाचार का महत्व (moral conduct  virtue  & importance In Life)

जो व्यक्ति सदाचारी होता हैं, वह अनुशासित और संयमी भी होता हैं. इन गुणों को उसके बोल-चाल, कार्य व्यवहार, खान पान और रहन सहन आदि में देखा जाता हैं.

वह स्वयं अनुशासित रहकर अच्छे व्यवहार का परिचय देता हैं.सत्य बोलना एक प्रकार की अखंड तपस्या हैं, झूठ बोलना अच्छा नही माना जाता हैं.

जों व्यक्ति ह्रदय से सत्य बोलने का व्रत लेता हैं, वह सदाचारी होता हैं. ऐसा व्यक्ति मरते दम तक सत्य बोलने के धर्म का पालन करता हैं.

सदाचारी व्यक्ति जहाँ भी जाता हैं, प्रसन्न रहता हैं और अपने सम्पर्क में आने वालों को भी प्रसन्नता देता हैं. उसके पास सद्गुण तथा सद्व्यवहार का भंडार होता हैं. वह झूठी प्रशंसा से प्रभावित नही होता हैं, वह निर्भय होता हैं.

सदाचार जीवन का आधार क्यों हैं (Why Good Behavior Basis Of Our Life)

विपत्तियाँ और प्रतिकूल परिस्थतियाँ प्रायः सभी के जीवन में आती हैं, किन्तु सदाचारी व्यक्ति इनसें कभी विचलित नही होता हैं.

ऐसे व्यक्ति के जीवन में कितनी भी बड़ी विपदा आ जाए तो भी वह उससे मुकाबला करने की क्षमता रखता हैं. उसमें असीम धैर्य एवं सहनशक्ति जैसे महान गुण होते हैं.

परोपकार करना उसका स्वभाव होता हैं. वह अपने कार्यों से सदा दूसरों का भला करता हैं. लोग उस पर विश्वास करते हैं. सभा हो या समुदाय, सदाचार से युक्त व्यक्ति सर्वत्र पूजा जाता हैं.

सदाचार सफलता का मार्ग हैं. जो व्यक्ति को मंजिल तक पहुचाता हैं. अच्छे व्यवहार के कारण कठिन काम भी सहजता से बन जाते हैं. इसके द्वारा मनुष्य अपनी असीम शक्ति को प्रकट कर सकता हैं.

सदाचार के बल पर असीम शक्ति को प्रकट करने वाला सामर्थ्यवान मनुष्य संत और महापुरुष के रूप में जाना जाता हैं. वह अपने महान कार्यों से महापुरुष कहलाता हैं. ऐसे ही महापुरुष हमारे जीवन के आदर्श होते हैं.

उनका सद्व्यवहार भी अनुकरणीय होता हैं. हमे परस्पर सद्व्यवहार करना चाहिए. सद्व्यवहार ही वास्तव में सदाचार हैं.

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  • Sandhi Viched /

Sadachar ka Sandhi Viched | जानिए सदाचार शब्द का संधि विच्छेद, संधि भेद और उदाहरण

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  • Updated on  
  • नवम्बर 7, 2023

Sadachar ka Sandhi Viched

छोटी कक्षा से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं में संधि से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। यह हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मेल। यानी दो वर्णों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे ही संधि कहा जाता है और दो शब्दों के मेल से बने शब्द को पुनः अलग अलग करना संधि विच्छेद कहलाता है। इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि सदाचार शब्द का संधि विच्छेद क्या होगा।

यह भी पढ़े :  संधि विच्छेद ट्रिक

Sadachar ka Sandhi Viched क्या है?

सदाचार का संधि विच्छेद ‘सत् +आचार’ है। इस संधि को बनाने का नियम है : त वर्ग, जो व्यंजन संधि का एक नियम है। यानी की सदाचार शब्द में व्यंजन संधि लागू होती है। तो आईये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

व्यंजन संधि की परिभाषा

व्यंजन वर्ण के साथ स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण अथवा स्वर वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन हो, उसे ‘ व्यंजन संधि’ कहते हैं।

उत+ घाटनउद्घाटन
जगत+ अंबाजगदंबा
षट+ यंत्रषड्यंत्र
उत् + नति उन्नति
जगत् + नाथजगन्नाथ

सदाचार से बनने वाले शब्दों का वाक्य में प्रयोग

सदाचार से बनने वाले शब्दों का वाक्य में प्रयोग निम्नलिखित है:

  • सदाचार का विलोम शब्द कदाचार है।
  • मेरे दोस्त का भाई बहुत ही सदाचारी है।
  • सदाचारी इंसान हर जगह सम्मान पाता है।
  • हम सभी को अपने जीवन में सदाचार का पालन करना चाहिए।
  • राहुल सदाचारी व्यक्ति होने के साथ धार्मिक भी हैं।

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आशा करते हैं कि इस ब्लॉग से आपको Sadachar ka Sandhi Viched पता चल गया होगा। संधि एवं संधि विच्छेद से संबंधित अन्य ब्लॉग्स के बारे में जानने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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हिंदी दिवस 2024 पर बड़े और छोटे निबंध स्कूली छात्रों और बच्चों के लिए

हिंदी दिवस पर निबंध: हिंदी, भारत की मातृभाषा है। यह सबसे अधिक बोली जाने वाली और सम्मानित भाषाओं में से एक है। छात्रों को नीचे दिए गए निबंधों को पढ़कर इसके बारे में अधिक जानना चाहिए।   हिंदी दिवस 2024 पर 150 - 200 शब्दों का निबंध हिंदी में पाने के लिए इस लेख को पढ़ें।.

Atul Rawal

Hindi Diwas Par Nibandh: भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक हिंदी भाषा को बढ़ावा देने और उसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन राष्ट्रीय एकता और विविध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देता है।   इस अवसर पर, स्कूल, छात्रों को हिंदी और इसके महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूल प्राधिकारी और शिक्षक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। स्कूल छात्रों को अधिक जानकार और खुद को अभिव्यक्त करने में आत्मविश्वासी बनाने के लिए निबंध लेखन और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं।

यहां आपको हिंदी दिवस पर निबंधों के कुछ उदाहरण मिलेंगे। ये हिंदी दिवस निबंध हिंदी में हैं, जिसका उद्देश्य हिंदी दिवस 2024 के लिए आयोजित निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में छात्रों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करना है। हिंदी दिवस निबंध 150-200 शब्दों के हैं। छात्रों के लिए हिंदी दिवस पर निबंध देखें।

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  • Hindi Diwas Speech For Students
  • Hindi Diwas Slogans

हिंदी दिवस पर 10 पंक्तियां (10 Lines on Hindi Diwas)

  • हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है।
  • यह भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी को बढ़ावा देने और मनाने के लिए है।
  • हिंदी भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • हिंदी भाषा का प्रयोग भारत में व्यापक रूप से किया जाता है।
  • हिंदी दिवस पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • इन कार्यक्रमों में कविता पाठ, नाटक, गायन आदि शामिल होते हैं।
  • हिंदी दिवस का उद्देश्य लोगों को हिंदी भाषा के महत्व के बारे में जागरूक करना है।
  • यह दिन हमें हिंदी भाषा का सम्मान करने और इसका उपयोग बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
  • हिंदी दिवस पर स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • हिंदी भाषा का प्रयोग भारत के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (Essay on Hindi Diwas in Hindi)

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (150 शब्द).

अधिकांश भारतीयों के लिए हिंदी एक भाषा नहीं बल्कि एक भावना है। 14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसकी लिपि देवनागरी है। यह भाषा विविध भाषाई और सांस्कृतिक परिदृश्य को एक साथ जोड़ने में एकीकृत भूमिका निभाती है। एक भाषा के रूप में हिंदी संचार के माध्यम के रूप में कार्य करती है जो लोगों और क्षेत्रों को जोड़ती है, राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देती है।

हिंदी दिवस 2024 के अवसर पर हमें अपनी भाषा का सम्मान करने और इसके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने की शपथ लेनी चाहिए। हिंदी दिवस का उत्सव भाषाई और सांस्कृतिक बहुलवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (200 शब्द)

हिंदी दिवस पर, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भारत कई क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के साथ भाषाई विविधता का देश है। हिंदी दिवस राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में हिंदी को कायम रखते हुए इस विविधता को संरक्षित और सम्मान करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। हिंदी दिवस सिर्फ एक भाषा का उत्सव नहीं बल्कि भारत की विविधता में एकता का भी उत्सव है।

14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (250 शब्द)

14 सितंबर इसी भावना को मनाने के लिए समर्पित दिन है। भारतीय इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी को अपनाने की याद दिलाता है। 26 जनवरी, 1950 को हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाया गया था, उसी दिन जब भारतीय संविधान लागू हुआ था। इस निर्णय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया, जिसने अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को भारत सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी, जिसका उपयोग एक संक्रमणकालीन अवधि के लिए किया जाना था।

14 सितंबर वह दिन है जब भारतीय हर साल हिंदी दिवस मनाते हैं। इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि यह ब्योहर राजेंद्र सिम्हा की जन्मतिथि है। वह एक प्रमुख हिंदी विद्वान थे और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे।

हिंदी दिवस मनाने के और भी कई कारण हैं; आइए उन पर चर्चा करें। समय के साथ, आधुनिकीकरण के इस दौर में विकसित होने के साथ-साथ हमारा हिंदी का ज्ञान भी कम होता जा रहा है। इस प्रकार, हिंदी दिवस का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण हिंदी को एक भाषा के रूप में बढ़ावा देना है। दूसरा कारण राष्ट्र में भाषाई इकाइयों को बढ़ावा देना है। हिंदी दिवस का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत और बहुभाषावाद को बढ़ावा देना भी है। इससे हम अपनी राष्ट्रीय पहचान, शिक्षा और साक्षरता की रक्षा कर सकते हैं। दार्शनिकों और महान शिक्षाविदों ने कहा है कि जो राष्ट्र अपनी भाषा का सम्मान और पालन नहीं करता, उसका विनाश आसान होता है। इस प्रकार, हमें अपनी विरासत को जीवित रखना चाहिए और अपनी भावी पीढ़ियों और उनकी जड़ों के ज्ञान को मजबूत करने के लिए इसका पालन करना चाहिए। आइए मिलकर इस हिंदी दिवस को मनाएं। 

हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में (500 शब्द)

हिंदी दिवस, भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी को बढ़ावा देने और मनाने के लिए मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हिंदी भाषा के महत्व और योगदान को उजागर करता है।

हिंदी दिवस का पहली बार मनाया जाना 1949 में हुआ था। उस समय, भारत की संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। हिंदी दिवस को मनाने का निर्णय इस महत्वपूर्ण अवसर को चिह्नित करने के लिए लिया गया था।

हिंदी भाषा भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देश की विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को जोड़ने में मदद करती है। हिंदी भाषा का व्यापक रूप से भारत में और दुनिया भर में उपयोग किया जाता है। यह शिक्षा, व्यापार, और सरकारी कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में कविता पाठ, नाटक, गायन, और भाषण शामिल होते हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य हिंदी भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को हिंदी भाषा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

हिंदी दिवस का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। हिंदी भाषा का उपयोग बढ़ने से देश की एकता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने में मदद मिली है। हिंदी भाषा का व्यापक उपयोग भारत के विकास और प्रगति में भी योगदान देता है।

यदि आपको 500 शब्दों का हिंदी दिवस निबंध दिया गया है, तो शब्द संख्या बढ़ाने के लिए उपरोक्त हिंदी दिवस निबंध में अधिक जानकारी जोड़ें। अधिक जानकारी के लिए आप ऊपर दिए गए हिंदी दिवस भाषण को देख सकते हैं। अपने निबंध में हिंदी दिवस के नारे जोड़ने से यह और अधिक आकर्षक हो जाएगा।

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  • हिंदी दिवस पर निबंध में क्या शामिल करना चाहिए? + आप हिंदी का इतिहास, भारतीय संस्कृति में इसका महत्व और हिंदी सीखने और बोलने के फायदों के बारे में लिख सकते हैं। आप हिंदी भाषा से जुड़े अपने व्यक्तिगत अनुभवों या कहानियों को भी साझा कर सकते हैं।
  • अपने हिंदी दिवस निबंध को आकर्षक कैसे बनाएं? + अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए उदाहरणों, कहानियों और उद्धरणों का उपयोग करें। अपनी भाषा को सरल और समझने में आसान रखें।
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