समता एवं समानता के पहलुओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से अध्ययन कर सकते हैं-
1). समता के मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspects of Equity):- समता को समाज के सदस्यों के मध्य लाभकारी तथा उत्तरदायित्वों को उचित एवं न्यायपूर्ण तरीके से वितरण के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है. यदि हम निष्पक्षता को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो हम पाते हैं कि निष्पक्षता से अभिप्राय है कि जब संसाधनों का समान वितरण होता है एवं व्यक्ति आर्थिक आधार पर लाभान्वित होकर संतुष्टि अनुभव करते हैं एवं प्रसन्नता एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.
2). समता के समाजशास्त्रीय पहलू (Sociological Aspects of Equity):- समत के समाजशास्त्रीय पहलू का स्पष्टीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
i). मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार असंतुष्ट व्यक्ति असामाजिक गतिविधियों में सरलता से लिप्त हो सकता है तथा समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने में हानिकारक सिद्ध हो सकता है. समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए उन्हें समता प्रदान की जानी चाहिए.
ii). संसाधनों का वितरण करते समय व्यक्ति के साथ समान एवं उचित बर्ताव किया जाना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया जाता तो उस समाज की कभी उन्नति नहीं होती है क्योंकि उस समाज में रहने वाले अधिकांश व्यक्तियों को समान कार्य के लिए समान अवसर एवं पारितोषिक नहीं प्रदान किया जाता है जिससे वह असंतोष की प्रक्रिया से ग्रसित होने के कारण समाज के विकास में अपना पूर्ण योगदान नहीं देता है.
3). समानता के मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspects of Equality):- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मनोवैज्ञानिक रूप से खुशहाल व्यक्ति ही स्वयं के व्यक्तित्व का उचित प्रकार से निर्माण कर सकता है. इसी प्रकार जो व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ होगा, वह एक समग्रवादी समाज के विकास में योगदान देने में सक्षम होगा. बिना किसी जाति, लिंग, धर्म, वर्ग एवं संप्रदाय के भेदभाव के जीवन के समस्त क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों की समान भागीदारी ही समानता है.
4). समानता के समाजशास्त्रीय पहलू (Sociological Aspects of Equality):- समानता के समाजशास्त्र पहलू निम्नलिखित हैं-
i). लोकतंत्र की सफलता के लिए:- लोकतंत्र को भारतीय समाज की आत्मा माना जाता है. अतः इसे सुरक्षित रखने की परम आवश्यकता है. इस प्रजातंत्र को स्वयं एवं अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमने अपने संपूर्ण समाज में सामाजिक एकता स्थापित कर ली है.
ii). समतवादी समाज की स्थापना के लिए:- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. अतः इस सामाजिकता को बनाए रखने के लिए समतावादी समाज की स्थापना अत्यंत आवश्यक है. एक समतावादी समाज में सभी व्यक्ति खुशहाल तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करते हैं एवं साथ ही साथ संबंधों का निर्माण करते हैं. इस प्रकार समतावादी समाज के बगैर समाज में अव्यवस्था व्याप्त हो जाती है.
अक्षमता व्यक्ति के विकास में बहुत बड़ी बाधा होती है. अक्षमता शारीरिक भी हो सकती है, मानसिक भी और समाजिक भी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि किसी भी जनसंख्या का 10% भाग अक्षम हो सकता है. अक्षमता कई प्रकार की होती है-
1). शारीरिक अक्षमता (Physical Disability):- प्रकार के व्यक्तियों के शरीर का कोई अंग सही प्रकार से काम नहीं करता जैसे- हाथ, पैर, आंख, कान आदि. इसकी वजह से व्यक्ति लंगड़ा (Lame), अंधा (Blind), गूंगा (Dumb), बहरा (Deaf), आदि हो सकता है. यह अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और बाद में किसी दुर्घटना के कारण भी हो सकती है.
2). मानसिक अक्षमता (Mental Disability):- इस प्रकार की अक्षमता का पता बुद्धिलब्धि परीक्षण (I.Q.) के आधार पर चलता है. बुद्धिलब्धि निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है-
IQ = (Educational Age)/(Chronological Age) × 100
जिन बच्चों की बुद्धिलब्धि अंक 70 से काम आता है उन्हें मंदबुद्धि के श्रेणी में रखा जाता है. इन बालकों की सीखने की गति मंद होती है जिसकी वजह से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते. इनमें से कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते.
3). सामाजिक अक्षमता (Social Disability):- परिवार में कोई कमी होने, गरीबी शारीरिक अक्षमता, किसी भी वजह से कुछ बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं. वह अन्य छात्रों से मेलजोल नहीं कर पाते तथा शिक्षकों से अपनी समस्या भी नहीं पूछ पाते. बच्चा सामाजिक रूप से अपने आप को समायोजित नहीं कर पाता और असंतोष का शिकार हो जाता है.
4). मनोवैज्ञानिक अक्षमता (Psychological Disability):- इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं जिनके कारण बच्चे पूरी तरह से सामान्य रूप से पढ़ नहीं पाते हैं, जैसे- ध्यान केंद्रित न कर पाना अक्षरों को ना पहचान पाना अपनी बातों को सही प्रकार से संप्रेषित ना कर पाना आदि.
इस प्रकार की समस्याओं को चलते बच्चा अन्य बच्चों की भांति कक्षा में सामान्य रूप से भागीदारी नहीं कर पाता और अन्य बच्चों से पीछे रह जाता है. शिक्षक भी कई बार उनकी समस्या नहीं समझ पाते और इन बच्चों की उपेक्षित कर देते हैं. समस्या कोई भी हो परंतु बालक तो तभी समान हैं. सभी भगवान की सुंदर कृति हैं परंतु अक्षम बच्चे अधिकतर माता-पिता व शिक्षकों द्वारा भेदभाव का शिकार हो जाते हैं.
सामाजिक वर्ग सभ्य समाज में स्तरीकरण है. जाति व्यवस्था सिर्फ भारत में ही पाए जाती है परंतु वर्ग व्यवस्था पूरी दुनिया में व्याप्त है.
आगबार्न तथा निम्कॉफ के अनुसार, "सामाजिक वर्ग एक समाज में समान सामाजिक स्तर के लोगों का समूह है."
सभी प्रकार के समाजों में आर्थिक आधार पर वर्गीकरण है और व्यक्ति अपने आर्थिक स्थिति के आधार पर उच्च, मध्य या निम्न वर्ग में रखे जा सकते हैं पर यह पर वर्ग स्थाई नहीं है. व्यक्ति अपनी क्षमता या मेहनत के अनुसार एक से दूसरे वर्ग में जा सकता है. यह देखा गया है उच्च आर्थिक वर्ग के छात्र हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं. उनके माता-पिता उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं, उन्हें बेहतर संसाधन दे सकते हैं, जिससे कि वह छात्र अन्य छात्रों से आगे रहते हैं.
दूसरी तरफ निम्न आर्थिक स्थिति वाले छात्र आर्थिक कमी होने के कारण पीछे रह जाते हैं. इस तरह विभिन्न वर्गों के छात्र प्रतिभा में समान होने पर भी समान नहीं हो पाते. प्रकृति ने प्रतिभा प्रदान करने में वर्ग का भेदभाव नहीं किया है. गरीब हो या अमीर सभी वर्गों में बुद्धि, प्रतिभा, रूप रंग, क्षमताएं बराबरी से पाए जाते हैं परंतु आर्थिक रूप से सशक्त लोग बेहतर संसाधनों के कारण आगे आ जाते हैं.
ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करने के लिए कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को बराबर मौका मिले इसके लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं-
संविधान द्वारा गरीब छात्रों को यह सभी अधिकार प्राप्त हैं परंतु भ्रष्टाचार, राजनीति और जागरूकता के अभाव के कारण सही हकदार को यह सभी सुविधाएं मिल नहीं पाती.
अक्षम लोग भी समाज का विभिन्न अंग हैं. इन्हें भी अन्य व्यक्तियों की भांति भोजन, आवास, शिक्षा, प्यार, सहानुभूति और अपनी पहचान बनाने का अधिकार है.
1). लोकतंत्र की भावना की स्थापना हेतु (To Establish Spriti of Democracy):- भारत एक लोकतांत्रिक देश है. लोकतंत्र में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं. लोकतंत्र की भावना अर्थात सभी नागरिकों की सहभागिता तब तक सच्चे अर्थ हैं में स्थापित नहीं हो सकती जब तक अक्षम लोगों को भी समान भागीदारी ना मिले.
2). अनिवार्य शिक्षा (Compulsory Education):- शिक्षा का अधिकार धारा 21(A) के तहत जो मूल अधिकार हैं उनके अंतर्गत सभी बालकों का शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है. यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि अक्षम बालक भी पर्याप्त शिक्षा प्राप्त ना कर लें.
3). आत्मनिर्भरता हेतु (For Self-Dependence):- अक्षम बालक की शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो फिर दूसरों पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे. शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो उन्हें उनकी क्षमता आवश्यकता के अनुरूप संलग्न कर सकें.
4). आत्म सम्मान प्राप्ति के लिए (For the Attainment of Self-Respect):- अक्षम बालक यदि आत्मनिर्भर हो जाएं तो वह देश की उन्नति में भाग ले सकते हैं और साथ साथ सम्मान के साथ जीविकोपार्जन कर सकते हैं. इनसे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आत्मसम्मान के साथ जीने की आदत पड़ेगी.
5). अक्षम को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए (For Joining Disabled into the Mainstream):- अक्षम छात्र यदि शिक्षा प्राप्त करेंगे, नौकरी कर जीविकोपार्जन करेंगे तो उनमें अलग-अलग रहने की प्रवृत्ति खत्म होगी और वे मुख्यधारा में जुड़ेंगे. इससे समाज में अपराधी कम होंगे और समाज की उन्नति होगी.
अक्षम छात्रों को अन्य छात्रों के सामान रखने में बहुत सी बाधाएं हैं, जैसे-
1). प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव (Deficiency of Trained Teachers):- अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए बहुत धैर्य और सहानुभूति की आवश्यकता होती है. इसके लिए उचित प्रशिक्षित शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है. उचित शिक्षा व प्रशिक्षण के अतिरिक्त शिक्षक को धैर्यवान व सहानुभूतियुक्त भी होना चाहिए परंतु ऐसे शिक्षक कम ही होते हैं जो अक्षम छात्रों को प्यार से सही तकनीक के साथ पढ़ा सकें.
2). हीन भावना (Inferiority Complex):- अक्षम छात्रों में कई बार हीन भावना आ जाती है कि वह अन्य छात्रों के बराबर नहीं हैं क्योंकि समाज, माता-पिता, शिक्षक आदि उन्हें कमतर समझते हैं और मुख्यधारा से अलग ही रखते हैं. इस व्यवहार को सहते-सहते अक्षम छात्र हीन भावना का शिकार होकर सबसे मिलकर नहीं रह पाते और चिड़चिड़े हो जाते हैं. यहाँ तक की सामान्य छात्रों से जलन का शिकार हो जाते हैं.
3). सही तकनीक का अभाव (Deficiency of Right Technique):- अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए सही प्रकार की शिक्षण सहायक सामग्री- विशिष्ट तकनीक आदि आवश्यक है जैसे- दृष्टांध छात्रों को ऐसे संसाधन द्वारा पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें उनके सुनने, स्पर्श करने आदि इंद्रियों का अधिक उपयोग हो. उसी प्रकार बहरे छात्रों के लिए दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है. इन तकनीकों का स्कूलों में अभाव होता है जिससे शिक्षकों को अक्षम छात्रों को पढ़ाने में परेशानी होती है. डिस्लेक्सिया तथा ऑटिस्म जैसे छात्रों को पढ़ाने के लिए अलग प्रकार की तकनीक की जरूरत होती है.
4). विद्यालयों में सुविधाओं का अभाव (Deficiency of Facilities in School):- विकलांग छात्र जो व्हीलचेयर पर चलते हैं उनके लिए अच्छे हॉस्पिटल व स्कूलों में पट्टीदार रास्ता होता है परन्तु सभी स्कूलों में इस प्रकार की सुविधाएं नहीं होती जिससे की छात्र स्कूल जाने से पहले ही हतोत्साहित हो जाते हैं.
5). राजनीतिक कारण (Political Reasons):- विकलांग या अक्षम बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है क्योंकि या तो ये वोट देने ही नहीं जाते और जाते भी हैं तो परिवारजनों के कहने पर वोट देते हैं. इसलिए राजनीतिक पार्टियां इनके लिए कुछ करने में रुचि नहीं लेती.
अक्षमता की समता व समानता के उपाय निम्नलिखित हैं-
1). समावेशी विद्यालय (Inclusive School):- अक्षम छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने के सबसे अच्छे उपाय हैं, समावेशी विद्यालय. जहां पर विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वाले छात्रों को सामान्य छात्रों के साथ शिक्षित किया जाए. यह विचारधारा भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 में प्रस्तावित हुई थी. इसमें अक्षम छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय परिवेश को ढाला जाता है, अधिगम अनुभव की योजनाएं बनाई जाती हैं और दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है.
2). अवसरों की अधिकता (Abundance of Opportunities):- अक्षम छात्रों को सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें किसी भी कार्य को करने में सामान्य छात्रों से अधिक समय लगता है. इसलिए समता के अंतर्गत यह उचित है कि उन्हें कार्य के लिए अधिक समय दिया जाए. सामान्य बच्चों में उन्हें अवसर भी अधिक मिले जिससे कि वे अपनी गलती सुधार लें और सामान्य छात्रों की बराबरी कर सकें.
3). संविधान प्रदत्त आरक्षण (Reservation Faciliated by Constitution):- भारतीय संविधान के अनुसार अक्षम लोगों को शिक्षा व नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त हैं परंतु आरक्षण केवल शारीरिक अक्षमता तक ही सीमित है. आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक समस्या जैसे- ऑटिस्म, डिस्लेक्सिया और एच. डी. एच. डी. आदि से पीड़ित लोगों की सही पहचान कर उनके लिए भी उनके लिए भी कुछ प्रबंध किया जाए.
4). जागरूकता (Awareness):- टी. वी., समाचार पत्र व अन्य सामाजिक मीडिया की सहायता लेकर जनता को इन समस्याओं के प्रति जागरूक किया जाए और अक्षम लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने का उपाय बताए जाएँ.
Table of Content
इस लेख में आप भारत में लैंगिक असमानता (निबंध) Gender Inequality in India in Hindi पढ़ेंगे। इसमें लैंगिक असमानता की परिभाषा, इतिहास, आँकड़े, प्रकार, कारण, प्रभाव, रोकने के उपायों के विषय में जानकारी दी गई है।
असमानता एक बेहद बुरा शब्द है, जो हर तरफ से पक्षपात की तरफ इशारा करता है। लैंगिक असमानता का तात्पर्य ऐसे पक्षपात अथवा असमानता से है, जो लिंग के आधार पर किया जाता है।
सबसे ज्यादा गति शील देशों में हमारा देश भारत भी शामिल है। लेकिन इतनी सफलता के बावजूद भी समाज में आज तक लैंगिक असमानता का दानव जीवित है। यह बहुत पुराने समय से ही लोगों के बीच अपनी जगह बना चुका है।
लैंगिक असमानता महिलाओं के लिए बेहद दयनीय परिस्थिति होती है, जहां बचपन से लेकर अंत तक उनका शोषण, अपमान और भेदभाव किया जाता है। लैंगिक असमानता का मुख्य कारण पितृसत्तात्मक विचारधारा को ठहराया जा सकता है।
न जाने कितने ही तरह की प्रथाएं और रीति-रिवाजों ने महिलाओं का जीवन बर्बाद कर दिया है। किंतु प्राचीन समय में वैदिक काल में महिलाओं का वर्चस्व बहुत अधिक था।
जिस तरह स्वेच्छा से किए गए दान को लोगों ने दहेज प्रथा में बदल दिया। इसी प्रकार न जाने कितने ही ऐसे महान रिवाज़ होंगे, जिन्हें लोग समझ नहीं पाए और उसे अंधश्रद्धा में तब्दील कर लिया।
2022 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) द्वारा ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत को 146 देशों में से 135वां स्थान पर प्राप्त हुआ है। 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर था।
घरेलू असमानता.
भारतीय समाज में पुरुषों को अधिक वरीयता दी जाती है। उनकी अपेक्षा महिलाओं को इतनी स्वतंत्रता नहीं होती है। कई बार यह असमानता माता-पिता और परिवार वालों की तरफ से किए जाते हैं।
स्वामित्व असमानता, मृत्यु दर असमानता.
भारत के कई राज्यों में महिलाओं और पुरुषों के लैंगिक अनुपात में बड़ा फर्क है। अक्सर लोग महिला शिशु की तुलना में पुरुष शिशु को वरीयता देते हैं।
जिसके कारण उनका बचपन से ही अच्छे से ख्याल रखा जाता है। यही कारण है महिलाओं की मृत्यु दर पुरुषों की तुलना में अधिक है। क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य की देखभाल और पोषण युक्त आहार तथा अन्य ज़रूरी चीजें नहीं मिल पाता।
लोगों की मानसिकता इतनी गिर गई है कि वह जन्मजात शिशुओं में भी भेद करते हैं। ऐसे ही दूषित मानसिकता वाले लोगों को यदि पता चले कि गर्भ में पल रहा शिशु एक महिला है, तो उसी समय कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध करने में यह लोग बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते हैं। भारत में टेक्नोलॉजी की सहायता से लिंग का चयन करके गर्भपात करना एक साधारण बात हो गई है।
रूढ़िवादी और पुरानी सोच लिए हुए लोग अक्सर बच्चियों को वह अवसर नहीं प्रदान करते हैं, जो कि भविष्य निर्माण के लिए बेहद आवश्यक होते हैं। उदाहरण स्वरूप शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण अवसरों में अक्सर लड़कियां पीछे रह जाती हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे अवसर ही नहीं दिए जाते हैं।
अक्सर रोजगार के साधनों में भी महिला और पुरुष कार्यकर्ताओं में पक्षपात किया जाता है। पुरुषों को उनके काम के लिए अधिक वेतन प्रदान किया जाता है, जबकि यदि उतना ही कार्य महिला करें तो लोग उसे ज्यादा महत्व नहीं देते और वेतन भी कम प्रदान करते हैं। इसके अलावा पदोन्नति के मामले में भी लैंगिक असमानता उत्पन्न होती है।
निरक्षर का तात्पर्य ऐसे लोगों से है, जिनके पास भले ही बड़ी-बड़ी शिक्षा की डिग्रियां मौजूद हों लेकिन उनकी विचारधारा वही घिसी पिटी होती है। समानता और मानवता की शिक्षा बचपन से ही दी जानी चाहिए।
पुराने समय से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच की कड़ी अभी भी जारी है। यह व्यवस्था हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। जब तक इस पक्षपाती व्यवस्था में बदलाव नहीं किया जाएगा, तब तक लैंगिक असमानता को खत्म करना असंभव है।
लैंगिक असमानता को कभी भी खत्म नहीं किया जा, सकता बसरते महिलाएं इसके लिए स्वयं जागरूक ना हो। आज भी करोड़ों महिलाएं लैंगिक असमानता का शिकार होती हैं क्योंकि वे अपने अधिकारों से वंचित है।
रोजगार का अभाव.
ज्यादातर रोजगार के कामों में पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है। रोजगार के जितने साधन पुरुषों के लिए मौजूद हैं, उतने महिलाओं के लिए नहीं है। सीमित रोजगार के कारण भी लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव.
ऐसे हजारों साक्ष्य मौजूद है जो ऊंची आवाज में चिल्ला कर कहते हैं कि जितने भी धार्मिक मान्यताएं हैं, अधिकतर वे महिलाओं पर लागू होते हैं।
दुनियां कितनी आगे बढ़ गई है, लेकिन आज भी हम पुराने विचारों को ही लेकर बैठे हैं। जब तक समाज से पूरी तरह से कुप्रथा नष्ट नहीं होंगे, तब तक महिलाओं को उनका खोया हुआ सम्मान और अधिकार वापस नहीं मिल सकेगा।
सीमित रोजगार, दूषित मानसिकता का पीढ़ी दर पीढ़ी विकास.
एक उम्र के बाद यदि लोगों के धारणाओं में परिवर्तन नहीं आया, तो वह जीवन भर उसी विचार को लिए जीते रहेंगे और अपने आने वाली पीढ़ी को भी वही शिक्षा देंगे। इस तरह लैंगिक असमानता पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती है।
ना के बराबर स्वतंत्रता और सीमित रोजगार होने के कारण अधिकतर महिलाओं को अपने परिवार वालों पर अधिक निर्भर होना पड़ता है, जिसके कारण वे हमेशा दबाव महसूस करती हैं।
राजनीति में महिलाओं की प्रधानता कई लोगों को रास नहीं आती है। बहुत ही मुश्किल से यदि कोई महिला राजनीति के बड़े पद पर पहुंच भी जाए, तो दूषित मानसिकता वाले लोग उनकी आलोचना करने से पीछे नहीं हटते हैं।
खेल की दुनिया में भी लैंगिक असमानता का प्रभाव साफ देखा जा सकता है, जहां किसी स्पर्धा में खेलने वाले पुरुषों को देखने वाली जनता के लिए भीड़ उमड़ती है। लेकिन वही महिला खिलाड़ियों के लिए ना के बराबर दर्शक आते हैं।
कई लोगों को आज भी लगता है कि महिला पुरुषों के जितना कार्य और उन्नति नहीं कर सकती। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े ही मुश्किल से महिलाओं की भागीदारी होती है। यह लैंगिक असमानता को प्रदर्शित करता है।
कई बार पारिवारिक झगड़े में महिलाओं को अपमान का सामना करना पड़ता है। उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है, जो विशेष तौर पर लैंगिक असमानता को दर्शाता है।
जब पूरा समाज ही दूषित मानसिकता लिए बैठा है, तो भला ऐसी कौन सी सुरक्षित जगह होगी जहां महिलाओं के साथ जादती न की जाए। यह बड़े दुख की बात है कि महिलाओं को केवल उनके कर्तव्य बताएं जाते हैं, लेकिन अधिकारों के विषय में कोई बात नहीं करना चाहता।
मनोरंजन जगत में पक्षपात, लैंगिक असमानता को भारत में कम करने के उपाय how to reduce gender inequality in india, महिला सशक्तिकरण, सरकारी योजनाएं.
बीतते समय के साथ सरकार भी कई योजनाएं बेटियों के पक्ष में लाती रहती है। ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ‘ योजना जैसे कई थीम्स लैंगिक समानता को बढ़ावा देती हैं और यह एक बहुत अच्छा कदम है।
बच्चियों के जन्म पर आर्थिक सहायता, बड़े पदों पर नियुक्ति, कानूनी व्यवस्थाओं का कड़ाई से पालन, शिक्षा पर बल.
अगर किसी बेटी को अच्छी शिक्षा प्रदान किया जाता है, तो इससे एक पूरा परिवार शिक्षित बनता है, जिससे समाज में भी साक्षरता आती है। असमानता को दूर करने के लिए महिलाओं की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
अपराध करने की सख्त सजा , निष्कर्ष conclusion.
बाल तस्करी पर निबंध essay on child trafficking in hindi, शिक्षा पर निबंध essay on education in hindi – saksharta mission, महिलाओं के लिए 10 कम लागत उद्योग small business ideas for women’s hindi, गुरु पूर्णिमा पर निबंध essay on guru purnima in hindi, एनसीसी दिवस पर निबंध essay on ncc day in hindi, वैदिक ज्योतिष क्या होता है what is vedic astrology in hindi, leave a reply cancel reply, one comment.
ETV Bharat / bharat
By ETV Bharat Hindi Team
Published : Aug 26, 2024, 7:01 AM IST
हैदराबादः हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिवस उस प्रतिकूलता और लचीलेपन को दर्शाता है जिसके माध्यम से महिलाओं ने पूरे इतिहास में पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए दृढ़ता से काम किया है - न केवल नागरिक क्षेत्र में बल्कि सैन्य क्षेत्र में भी. महिलाओं की समानता प्राप्त करने के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निजी और सार्वजनिक स्तरों पर निर्णय लेने और संसाधनों तक पहुंच अब पुरुषों के पक्ष में न हो, ताकि महिलाएं और पुरुष दोनों ही उत्पादक और प्रजनन जीवन में समान भागीदार के रूप में पूरी तरह से भाग ले सकें.
It's #AvaDuVernay 's birthday. We thank her for amplifying marginalized voices through her work and inspiring women and girls everywhere.👏 pic.twitter.com/3jC84VReTk — UN Women (@UN_Women) August 24, 2024
महिला समानता दिवस का इतिहास महिला समानता दिवस कई वर्षों से मनाया जाता रहा है. पहली बार इसे 1973 में मनाया गया था. तब से, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने इस तिथि की घोषणा की है. इस तिथि का चयन 1920 के दशक में उस दिन को मनाने के लिए किया गया है जब तत्कालीन विदेश मंत्री बैनब्रिज कोल्बी ने उस घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका में महिलाओं को मतदान का संवैधानिक अधिकार दिया था.
Empowering beekeepers with digital tools! 🐝 🍯 @FAO training in #BosanskiPetrovac within the joint #RuralWomen project w/UNW, supported by @SwedenBiH , taught members of the Beekeepers Association Nucleus how to harness #DigitalAgriculture to enhance & optimize their operations. pic.twitter.com/mrKkbX84WB — UN Women BiH (@unwomenbih) August 23, 2024
1920 में, यह दिन महिलाओं के लिए एक बड़े पैमाने पर नागरिक अधिकार आंदोलन द्वारा 72 वर्षों के अभियान का परिणाम था. इन जैसे कार्यों से पहले, रूसो और कांट जैसे सम्मानित विचारकों का भी मानना था कि समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति पूरी तरह से समझदारीपूर्ण और उचित थी; महिलाएं केवल 'सुंदर' थीं और 'गंभीर रोजगार के लिए उपयुक्त नहीं थीं.'
Care work sits at the heart of thriving societies and economies. ⚖️Yet it is undervalued and highly gendered which drives inequality. 👉Learn more from the UN's first-ever Care Economy Policy Guidance: https://t.co/Ady0iDqDPm pic.twitter.com/ORJacXSTVT — UN Women (@UN_Women) August 22, 2024
पिछली शताब्दी में, कई महान महिलाओं ने इन विचारों को गलत साबित किया है. दुनिया ने देखा है कि महिलाएं क्या हासिल करने में सक्षम हैं. उदाहरण के लिए, रोजा पार्क्स और एलेनोर रूजवेल्ट ने नागरिक अधिकारों और समानता के लिए लड़ाई लड़ी, और रोजालिंड फ्रैंकलिन, मैरी क्यूरी और जेन गुडॉल जैसे महान वैज्ञानिकों ने पहले से कहीं ज्यादा दिखाया है कि अवसर मिलने पर महिलाएं और पुरुष दोनों क्या हासिल कर सकते हैं.
“Women leaders’ power lies not only in the individual story, but in that of the collective, ‘hum, we and us’.” At #CSW68 , Hum: When Women Lead was released globally with @unwomenchief @ruchirakamboj @darrenwalker @FordFoundation @UN_Women . Watch here - https://t.co/McVERPGQHg pic.twitter.com/gQuWNp5Dgy — UN Women India (@unwomenindia) March 20, 2024
आज, महिलाओं की समानता सिर्फ वोट देने के अधिकार को साझा करने से कहीं ज्यादा बढ़ गई है. इक्वालिटी नाउ और वूमनकाइंड वर्ल्डवाइड जैसे संगठन दुनिया भर में महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के समान अवसर प्रदान करना जारी रखते हैं. महिलाओं के प्रति दमन और हिंसा और भेदभाव और रूढ़िवादिता के विपरीत काम करते हैं जो अभी भी हर समाज में होता है.
Are you a young person using digital tools to create solutions? Solutions that can shape stronger and more inclusive societies. Post videos of what you or your friends or peers are up to & tag us. Inspiring stories will receive a repost! For guidelines👉 https://t.co/UkVMekFTWY pic.twitter.com/1tIcffSw2F — United Nations in India (@UNinIndia) August 8, 2024
लोकसभा चुनाव 2024 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लोकसभा चुनाव 2024 में कुल 797 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 74 निर्वाचित हुईं. इसका मतलब है कि संसद के निचले सदन के 543 सदस्यों में से केवल 13.6 प्रतिशत महिलाएं हैं. ये संख्याएं महिला आरक्षण विधेयक, 2023 की पृष्ठभूमि में अच्छे संकेत नहीं हैं, जो अभी तक लागू नहीं हुआ है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना है. यह संख्या 2019 में देखी गई रिकॉर्ड-उच्च संख्या से थोड़ी कम है, जब 78 महिलाएं (कुल 543 सांसदों में से 14.3 प्रतिशत) लोकसभा के लिए चुनी गई थीं.
भारत में लैंगिक असमानता के कारण
भारत में लैंगिक असमानता के कई कारण हैं और उनमें से कुछ यहां सूचीबद्ध हैं.
गरीबी:- गरीबी लैंगिक असमानताओं के प्राथमिक चालकों में से एक है. विश्व बैंक के अनुसार दुनिया की लगभग 70 फीसदी गरीब आबादी महिलाएं हैं. गरीबी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है, जिससे एक दुष्चक्र मजबूत होता है.
बाल विवाह:- बाल विवाह लैंगिक असमानता का एक और खतरनाक पहलू है, जो लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करता है. यूनिसेफ का अनुमान है कि हर साल 12 मिलियन लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है.
खराब चिकित्सा स्वास्थ्य:- खराब चिकित्सा स्वास्थ्य भी समाज में लैंगिक भेदभाव को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैय
जागरूकता की कमी और पितृसत्तात्मक मानदंड:- जागरूकता की कमी और पितृसत्तात्मक मानदंड लैंगिक असमानता में और योगदान करते हैं. जब समाज लैंगिक रूढ़िवादिता और भेदभाव को कायम रखता है, तो असमानता की बेड़ियों से मुक्त होना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
निर्णय लेने में भागीदारी
कॉर्पोरेट भारत में महिलाओं की भागीदारी: कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने अगस्त 2024 में राज्यसभा को बताया कि सूचीबद्ध कंपनियों में सभी बोर्ड पदों में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 18.67 प्रतिशत है. MCA-21 रजिस्ट्री में दर्ज किए गए दस्तावेजों के अनुसार 31 मार्च 2024 तक 5,551 सक्रिय सूचीबद्ध कंपनियों, 32,304 सक्रिय गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों और 8,28,724 सक्रिय निजी कंपनियों से महिला निदेशक जुड़ी हुई हैं.
न्यायिक प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में, कार्यालय में बैठे 33 न्यायाधीशों में से मात्र 3 महिलाएं हैं. उच्च न्यायालयों में भी केवल 14 फीसदी न्यायाधीश महिलाएं हैं.
एमएसएमई में महिलाओं की भागीदारी: एमएसएमई मंत्रालय के उद्यम पंजीकरण पोर्टल (यूआरपी) के अनुसार, 1 जुलाई 2020 में इसकी स्थापना के बाद से पोर्टल पर पंजीकृत एमएसएमई की कुल संख्या में महिलाओं के स्वामित्व वाले एमएसएमई की हिस्सेदारी 20.5 फीसदी है. उद्यम पंजीकृत इकाइयों द्वारा सृजित रोजगार में इन महिला स्वामित्व वाले एमएसएमई का योगदान 18.73 फीसदी है, जिसमें कुल निवेश का 11.15 फीसदी शामिल है. उद्यम पंजीकृत एमएसएमई के कुल कारोबार में महिलाओं के स्वामित्व वाले एमएसएमई का योगदान 10.22 फीसदी है.
स्टार्ट-अप में महिलाओं की भागीदारी:- जनवरी 2016 में स्थापना के बाद से दिसंबर 2023 तक DPIIT (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग) द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप की कुल संख्या 1,17,254 है. डीपीआईआईटी द्वारा स्थापना से लेकर दिसंबर 2023 तक मान्यता प्राप्त महिला नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप्स (कम से कम 1 महिला निदेशक वाले स्टार्ट-अप्स) की कुल संख्या 55,816 है, जो कुल स्टार्ट-अप्स का 47.6 प्रतिशत है.
|
For All Latest Updates
Please write to us, for media partnership and Ad-sales inquiries. Email: [email protected]
Upi से फटाफट पैसे के बाद अब uli से मिलेगा खटाखट लोन, जानिए कैसे करेगा काम और किसे मिलेगा फायदा - rbi introduces uli, 12 करोड़ का ipo...4800 करोड़ की बोली, 2 शोरूम और 8 कर्मचारियों वाले कंपनी में ऐसा क्या खास - automobile ipo subscription, watch: जसप्रीत बुमराह ने मारी 'महाराजा' जैसी एंट्री, सिर पर मुकुट पहनकर इवेंट में पहुंचे, वीडियो वायरल - jasprit bumrah.
Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.
Gender Equality Essay: In today’s dynamic world, gender equality stands as a fundamental pillar of a just society. From historical struggles to contemporary challenges, the journey toward gender equality has been both arduous and enlightening.
The roots of gender inequality run deep, permeating historical societies across the globe. However, milestones achieved through persistent efforts have paved the way for significant advancements in the fight for equality.
As we delve into the current status of gender equality, disheartening statistics reveal persistent disparities in workplaces, educational institutions, and political arenas.
Despite the challenges, the positive impacts of gender equality on society are undeniable. However, the struggle continues, highlighting the need for sustained efforts.
Education emerges as a powerful tool for dismantling gender stereotypes. Schools play a pivotal role in fostering an environment where equality flourishes.
The gender pay gap persists, underscoring the urgency of creating workplaces that offer equal opportunities and fair compensation.
Success stories of women breaking barriers and initiatives supporting them are inspiring narratives that fuel the momentum toward gender equality.
Deep-rooted stereotypes and societal norms present formidable challenges, demanding a collective and sustained effort for change.
Men play a crucial role as allies in the fight for gender equality, challenging stereotypes and advocating for a fair and just society.
International efforts toward gender equality showcase progress while emphasizing the need for continued collaboration and shared success stories.
The media, as a powerful influencer, plays a pivotal role in shaping perceptions and fostering positive changes in societal attitudes toward gender roles.
Releated : The Problem Of Pollution Essay
While existing laws support gender equality, there is a need for continual improvement to address gaps and ensure comprehensive protection.
Local efforts and community involvement are essential in creating a groundswell of support for gender equality, effecting change at the grassroots level.
Recognizing and addressing the unique challenges faced by different demographics is crucial for achieving true inclusivity in the gender equality movement.
The future holds promise as the younger generation takes up the mantle, armed with knowledge and a commitment to creating a more equal world.
In conclusion, the journey toward gender equality essay is multifaceted, marked by progress and challenges alike. As we navigate the complexities, the commitment of individuals, communities, and nations remains paramount in shaping a future where equality prevails.
Q: Why is gender equality important? A: Gender equality ensures a fair and just society where everyone has equal opportunities and rights.
Q: How can education contribute to gender equality? A: Education breaks down stereotypes and empowers individuals to challenge societal norms, fostering a more inclusive society.
Q: What role do men play in promoting gender equality? A: Men play a crucial role as allies, challenging stereotypes and advocating for a fair and just society.
Previous post.
HiHindi.Com
HiHindi Evolution of media
नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, स्त्री पुरुष समानता निबंध हिंदी Gender Equality Essay In Hindi में आसान भाषा में लैंगिक समानता पर निबंध दिया गया हैं. स्टूडेंट्स के लिए आसान भाषा में स्त्री पुरुष समानता क्या हैं इसके महत्व पर सरल निबंध यहाँ पढ़े.
शायद हमे इस बात का ख्याल नहीं है कि स्त्री और पुरुष के चित में बुनियादी भेद और भिन्नता है. और यह भिन्नता अर्थपूर्ण है, पुरुष और स्त्री का सारा आकर्षण उसी भिन्नता पर निर्भर है.
वे जितनी भिन्न होगी वे जितनी दूर हो उनके बिच आकर्षण होगा.उतना ही उनके बिच प्रेम का जन्म होगा. जितना उनका फासला हो, उनकी भिन्नता हो जितने उनके व्यक्तित्व अनूठे और अलग अलग हो.
जितने वे एक दुसरे जैसे नही बल्कि एक दुसरे से परिपूरक, कप्लिमेटरी हो. अगर पुरुष गणित जानता हो और स्त्री भी गणित जानती हो तो ये दोनों बाते उन्हें निकट नही लाती है.
ये बाते उन्हें दूर ले जाएगी. अगर पुरुष गणित जानता हो और स्त्री काव्य जानती हो, संगीत जानती हो, नृत्य जानती हो, तो वे ज्यादा निकट आएगे.
वे जीवन में ज्यादा गहरे साथी बन सकते है. जब एक स्त्री पुरुषो जैसी दीक्षित हो जाती है तो ज्यादा से ज्यादा वह पुरुष को स्त्री होने का साथ भर दे सकती है.
लेकिन उसके ह्रद्य के उस अभाव को स्त्री के लिए प्यासा और प्रेम से भरा होता है. उस अभाव को पूरा नही कर सकती है.
पशिचम में परिवार टूट रहा है. भारत में भी परिवार टूटेगा और परिवार के टूटने के पीछे आर्थिक कारण उतने नही है जितना स्त्रियों को पुरुष जैसा शिक्षित किया जाना.
पुरुष की भाँती शिक्षित होकर स्त्री एक नकली पुरुष बन जाती है, असली स्त्री नही बन पाती है. लेकिन भिन्नता का कोई भी ख्याल नही है और भिन्न शिक्षा और दीक्षा का हमे कोई विचार नही है.
यह बात जगत की सारी स्त्रियों को कह देने जैसी है- उन्हें अपने स्त्री होने को बचाना है. कल तक पुरुषो ने उन्ही को हीन समझा था. नीचा समझा था और इसलिए नुकसान पंहुचा था.
आज अगर पुरुष राजी हो जाएगा कि तुम हमारे समान हो, तुम हमारी दौड़ में सम्मलित हो जाओं- इस दौड़ में स्त्रियाँ कहाँ पहुचेगी और सवाल यह नही है कि स्त्रियों को नुक्सान होगा, सवाल यह है कि पूरा जीवन नष्ट होगा.
सी एम जोड ने पशिचमी के एक विचारक ने एक अद्भुत बात लिखी. उसने लिखा कि जब मै पैदा हुआ तो मेरे देश में घर थे. होम्स थे लेकिन जब अब में बुढा होकर मर रहा हु तो मेरे देश में होम जैसी कोई चीज नही है.
घर जैसी कोई चीज नही है, केवल मकान केवल होउसेस रह गये है. होम और हाउस में क्या फर्क है? घर और मकान में कोई भेद है. होटल और घर में कोई फर्क है. अगर कोई भी फर्क है तो वह सारा फर्क स्त्री के ऊपर निर्भर है और किसी पर निर्भर नही है.
Your email address will not be published. Required fields are marked *
500+ words essay on gender inequality.
For many years, the dominant gender has been men while women were the minority. It was mostly because men earned the money and women looked after the house and children. Similarly, they didn’t have any rights as well. However, as time passed by, things started changing slowly. Nonetheless, they are far from perfect. Gender inequality remains a serious issue in today’s time. Thus, this gender inequality essay will highlight its impact and how we can fight against it.
Gender inequality refers to the unequal and biased treatment of individuals on the basis of their gender. This inequality happens because of socially constructed gender roles. It happens when an individual of a specific gender is given different or disadvantageous treatment in comparison to a person of the other gender in the same circumstance.
Get the huge list of more than 500 Essay Topics and Ideas
The biggest problem we’re facing is that a lot of people still see gender inequality as a women’s issue. However, by gender, we refer to all genders including male, female, transgender and others.
When we empower all genders especially the marginalized ones, they can lead their lives freely. Moreover, gender inequality results in not letting people speak their minds. Ultimately, it hampers their future and compromises it.
History is proof that fighting gender inequality has resulted in stable and safe societies. Due to gender inequality, we have a gender pay gap. Similarly, it also exposes certain genders to violence and discrimination.
In addition, they also get objectified and receive socioeconomic inequality. All of this ultimately results in severe anxiety, depression and even low self-esteem. Therefore, we must all recognize that gender inequality harms genders of all kinds. We must work collectively to stop these long-lasting consequences and this gender inequality essay will tell you how.
Gender inequality is an old-age issue that won’t resolve within a few days. Similarly, achieving the goal of equality is also not going to be an easy one. We must start by breaking it down and allow it time to go away.
Firstly, we must focus on eradicating this problem through education. In other words, we must teach our young ones to counter gender stereotypes from their childhood.
Similarly, it is essential to ensure that they hold on to the very same beliefs till they turn old. We must show them how sports are not gender-biased.
Further, we must promote equality in the fields of labour. For instance, some people believe that women cannot do certain jobs like men. However, that is not the case. We can also get celebrities on board to promote and implant the idea of equality in people’s brains.
All in all, humanity needs men and women to continue. Thus, inequality will get us nowhere. To conclude the gender inequality essay, we need to get rid of the old-age traditions and mentality. We must teach everyone, especially the boys all about equality and respect. It requires quite a lot of work but it is possible. We can work together and achieve equal respect and opportunities for all genders alike.
Question 1: What is gender inequality?
Answer 1: Gender inequality refers to the unequal and biased treatment of individuals on the basis of their gender. This inequality happens because of socially constructed gender roles. It happens when an individual of a specific gender is given different or disadvantageous treatment in comparison to a person of the other gender in the same circumstance.
Question 2: How does gender inequality impact us?
Answer 2: The gender inequality essay tells us that gender inequality impacts us badly. It takes away opportunities from deserving people. Moreover, it results in discriminatory behaviour towards people of a certain gender. Finally, it also puts people of a certain gender in dangerous situations.
Which class are you in.
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Published on 27 August 2024
BRAC Institute of Governance and Development
The Bangladesh national elections in January 2024 had dashed any hopes for political reform as the Awami League party’s power remained unchallenged and civic space, including the space to seek greater gender equality, was shrinking daily. Now that the Awami League and its leader Sheikh Hasina has been overthrown , is this an opportunity to bring about greater gender justice in Bangladesh?
Our research in Bangladesh with IDS under the Sustaining Power (SUPWR) and Countering Backlash programmes shows that various gender justice struggles seeking to bring about gender-equal changes in policies, laws or the enforcement of existing laws and policies in women’s favour, found the previous government policy makers deprioritised the gender justice agenda. This lack of engagement came out strongly in our new research on the reform of the Hindu family law that disadvantages Hindu women, and on online gender base violence and safety of feminist activists on-line (publications forthcoming).
The student-led Anti-Discrimination Movement , which has led to a new interim government in Bangladesh may have created new opportunities for furthering gender justice, both in the way it is unfolding and as part of its goal to ensure state reform that addresses the structural causes of authoritarianism, centralisation of power, corruption and injustice.
Female high school and university students had a visible and significant presence in the anti-discrimination movement. Without their participation and involvement, the struggle might have failed. In July 2024, during critical points of the movement, the female students in the residential halls of the public universities found it easy to organise and came out en masse to show support for change.
For example, after the brutal attacks on protesting students on 15 July by the ruling party cadres and the police, the female students from Ruqayyah Hall, at Dhaka University led the counter protests, coming out of the dormitory at midnight armed with steel plates, spoons, and ladles making noise and chanting slogans. They were quickly joined students from other female dormitories and then the male students.
Women students were united in their protests across social divides- whether they wore hijabs, traditional Bengali (sari or shalwar kameez) or western attire, were from the capital city or more remote areas. The protests were as safe, or as dangerous, for a young woman to come out as for a young man. Women were seen marching against the police and the armed student cadres, being beaten, carrying sticks, protecting their male and female companions from attacks the police, physically trying to stop police vans and painting graffiti on walls. There were images of women protesters wounded and killed.
It is an established tactic of student politics to put women at the front of marches, feeling that they are less likely to be physically attacked. However, the brutal attacks on female students in 2024 breaks the stereotypes of the ‘delicate frail females’ who would not be beaten and who are too frail to fight back.
What increased female participation? At the university level there are almost equal numbers of women and men among students. The frustrations and demands which mobilised the students were felt keenly by both women and men. Women also has support from their peers, family and from society. The legacy of earlier movements also influenced female participation. Earlier protests have has women participating in visible and large numbers at all stages of movements from the Shahbagh movement for punishment for liberation war criminals to the more recent protests for road safety (2018) or movements such as Rage Against Rape (2020 ). But in July–August 2024 the numbers of women present in the protests seems to have beaten all previous records.
The women involved in the movement were not only students. It included parents, both fathers and mothers of the students who rallied after the violence perpetrated against them. Older women of all backgrounds, many of whom had never protested on the streets before, came out, persuaded to do so by young family members. Female artists , performers, civil society actors , lawyers , teachers were vocal in showing their support for change.
While women were fully involved in the movement, once things settle down, would they hold leadership roles? Nusrat Tabassum, one of the female student Coordinators of the movement said in a CPD discussion on August 14 2024 that when one type of discrimination would be addressed, other types would automatically be addressed too. Unfortunately, we know from history that gender discrimination often gets the least priority in political transitions.
In the period between when the former Prime Minister fled and the Interim Government was formed, the male student coordinators appeared to play a leadership role. Many women’s groups and others questioned if the female leadership was overlooked. On 8 August 2024 I attended a protest organised by “Khubdo Nari Samaj” (Angry Women) with the question “what about female representation?”. The interim government has been formed through negotiations with political parties and the student movement, mediated by the army. The interim government includes four women civil society leaders but no female student representative s.
The Anti-Discrimination Student Movement has not yet articulated any objectives directly related to gender justice. But the female coordinator’s have articulated demands for ending gender based violence and harassment free campus and society.
The initial demand for quota reform wanted removal of 30 percent quota reserved for freedom fighters and their descendants, so government jobs were available based on merit. This led to abolishing the quota for recruitment of women as well, as the female students felt that they can compete based on merit and did not need preferential treatment. This reading of the situation is yet to be backed by any kind of review of employment statistics. A greater concern is that while women are recruited, retention of women in the service has been difficult; this is where gender biases tend to come in.
The Anti-Discrimination Movement envisages state reform to set in place legal frameworks, structures and processes based on principles of antidiscrimination, accountability to citizens and representation of all interest groups, to be safeguarded. There are discussions on constitutional reforms. The women’s movement has long advocated for the removal of the 8 th Amendment which made Islam the State religion. The argument forwarded by the women’s movement was that religion itself is discriminatory towards women, particularly the religious family laws that govern women’s private lives.
Article 28 (2) of the Bangladesh constitution states that “Women shall have equal rights with men in all spheres of the State and of public life”, but therefore by implication, not equality in private life. Women’s groups have long demanded changes in the electoral system for fair representation. Discussion on changes to the electoral system stressed that the first-past-the-post system should be replaced by proportional representation. This could also mean mandatory inclusion of women in the electoral lists for positions where there is a fair chance of their being elected. These are just few examples of what changes are needed to further gender equity in Bangladesh.
Unless women of all generations can make their voices heard and have a seat at the table there is a risk that the opportunities offered by the present critical juncture will be lost. The gender dimension of every single reform needs to be identified, debated and addressed. There is an urgent need to bring together women’s rights activists’ past experience of analysis and advocacy in each of these areas with the Anti-Discrimination Students Movement’s energy and determination, so that we can bring about systemic and sustainable change.
Maheen Sultan is a Senior Fellow of Practice and Head of the Gender and Social Development cluster, BRAC Institute of Governance and Development (BIGD).
Programmes and centres, related content, gen z are ready to help build a new future for bangladesh.
15 August 2024
20 August 2024
Sustaining power: women’s struggles against contemporary backlash in south asia.
Here’s your new year gift, one app for all your, study abroad needs, start your journey, track your progress, grow with the community and so much more.
Verification Code
An OTP has been sent to your registered mobile no. Please verify
Thanks for your comment !
Our team will review it before it's shown to our readers.
“विविधता में एकता” शब्द का अर्थ है बहुत सारे मतभेद होने के बावजूद एकजुट और साथ रहना है। यह अवधारणा बताती है कि शारीरिक लक्षणों, त्वचा के रंग, जाति, पंथ, संस्कृति, धर्म और अन्य पहलुओं के बीच में अंतर को संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाता है। इसे समाज और राष्ट्र को मजबूत करने वाली समृद्ध विविधता के रूप में देखा जाता है। विविधता में एकता एक मुख्य और महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि हम एक विविधतापूर्ण दुनिया में रहते हैं। हमारी संस्कृति, पृष्ठभूमि, लिंग, अभिविन्यास या अन्य मतभेदों की परवाह किए बिना एक-दूसरे का सम्मान करना और उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण है। छात्रों को इस विषय के महत्व को समझाने के लिए कई बार उन्हें Unity in Diversity Essay in Hindi लिखने के लिए दिया जाता है, इसलिए आपकी मदद के लिए इस ब्लॉग में विविधता में एकता पर निबंध के कुछ सैंपल दिए गए हैं।
विविधता में एकता पर 100 शब्दों में निबंध , विविधता में एकता पर 200 शब्दों में निबंध, प्रस्तावना , विविधता में एकता क्या है, भारत में विविधता में एकता , विविधता में एकता के लाभ , उपसंहार , विविधता में एकता पर 10 लाइन – 10 lines on unity in diversity essay in hindi.
विविधता में एकता का अर्थ है मतभेदों के बावजूद भी लोगों का एकजुट रहना। भारत विविधता में एकता की इस अवधारणा का एक आदर्श उदाहरण है। भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोग एक ही भूमि पर सद्भावनापूर्वक रहते हैं। अलग-अलग मान्यताओं, जीवन-शैली और पूजा-पाठ के तरीकों के बावजूद, वे शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहते हैं।
सभी भारतीय खुद को भारत माता की संतान मानते हैं। इस बड़े और घनी आबादी वाले देश में, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और पारसी धर्म जैसे विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। अपने मतभेदों के बावजूद वे लोग धर्म और कर्म जैसी अवधारणाओं में समान विश्वास रखते हैं। भारतीय बहुत धार्मिक हैं, वे होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, गुड फ्राइडे, महावीर जयंती और बुद्ध जयंती सहित कई त्योहारों को एक-दूसरे की आस्थाओं के प्रति खुशी और सम्मान के साथ मनाते हैं।
भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जहाँ कई जातीय समूह सदियों से एक साथ रहते आए हैं। इतनी अधिक विविधता वाला देश है, जहाँ लगभग 1,650 बोली जाने वाली भाषाएँ और बोलियाँ हैं, जो पूरे देश में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं को दर्शाती हैं। इन मतभेदों के होने के बावजूद भारत में लोग सम्मान, प्रेम और भाईचारे की भावना के साथ एक साथ मिलकर रहते हैं।
विविधता में एकता हमेशा से भारत की एक मुख्य विशेषता रही है। यही विशेषता विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को मानवता के बंधन के तहत एक राष्ट्र में बांधती है। यह एकता भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी देखी जा सकती है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सभी धर्मों के लोग एक लक्ष्य स्वतंत्रता के लिए एक साथ आए। स्वतंत्रता आंदोलन इस बात का एक शक्तिशाली उदाहरण है कि विविधता में एकता ने भारत की पहचान को कैसे आकार दिया है।
विविधता में एकता हमें सिखाती है कि हमारे मतभेदों के बावजूद, हम शांति और आपसी सम्मान के साथ एक साथ रह सकते हैं। यह एकता एक हमारे आध्यात्मिक विश्वास को भी दर्शाती है कि हम सभी को एक सर्वोच्च भगवान द्वारा बनाया, पोषित और देखभाल किया जाता है, चाहे हमारी सांस्कृतिक या धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। भारत की विविधता में एकता एक मजबूत संदेश देती है कि प्रेम और सद्भाव में एक साथ रहना जीवन का सच्चा सुख प्रदान करता है, जो इसे एक महान राष्ट्र बनाता है।
विविधता में एकता पर 500 शब्दों में निबंध (500 Words Unity in Diversity Essay in Hindi) नीचे दिया गया है –
विविधता में एकता का अर्थ है संस्कृति, भाषा, विश्वास, धर्म, वर्ग, जातीयता और बहुत कुछ में मतभेद होने के बावजूद लोगों का एक साथ मिलकर रहना। विविधता में एकता का यह विचार बहुत लंबे समय से अस्तित्व में है और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों द्वारा विभिन्न लोगों और समुदायों के बीच सद्भाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। विविधता में एकता का एक स्पष्ट उदाहरण तब होता है जब विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, धर्म और सामाजिक वर्गों के लोग शांतिपूर्वक और प्रेम के साथ एक साथ रहते हैं। यह व्यवहार दुनिया के कई हिस्सों में देखा जाता है।
विविधता में एकता का वाक्यांश विभिन्न समूहों के बीच सद्भाव और शांति को दर्शाता है। इसका उपयोग जाति, पंथ, नस्ल और राष्ट्रीयता जैसे विभिन्न विभाजनों में सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। विविधता में एकता में शारीरिक बनावट, संस्कृति, भाषा और राजनीति में अंतर भी शामिल है।
यह लोगों को एक साथ आना और अपने मतभेदों के बावजूद भी जुड़ने के तरीके खोजना सिखाता है। इससे एक शांतिपूर्ण वातावरण बनता है जहाँ हर कोई सद्भाव में एक साथ रह सकता है। विविधता में एकता का विचार एक पुरानी अवधारणा है जिसकी जड़ें पश्चिमी और पूर्वी दोनों परंपराओं में हैं।
विविधता में एकता का मतलब कई मतभेदों के बावजूद एकजुट रहना है। भारत इस अवधारणा का एक बेहतरीन उदाहरण है। भारत में, विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं, संस्कृतियों और जीवन शैली के लोग एक देश में शांतिपूर्वक रहते हैं। हम भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के भारतीयों द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आंदोलनों को नहीं भूल सकते, जो विविधता में एकता को खूबसूरती से प्रदर्शित करता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और पारसी धर्म जैसे विभिन्न धर्मों के लोग धर्म अपने अपने धर्म में विश्वास रखते हैं लेकिन सभी का उद्देश्य शांति है। भारतीय बहुत आध्यात्मिक होते हैं। वे अपने त्योहारों जैसे होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, महावीर जयंती, बुद्ध जयंती और गणेश चतुर्थी को शांतिपूर्वक मनाते हैं, दूसरों की मान्यताओं का सम्मान करते हैं।
हिंदी एक प्रमुख भाषा है, लेकिन देश भर में अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, पंजाबी, बंगाली और कई अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं। इन विविधताओं के बावजूद सभी को भारतीय होने पर गर्व है। विविधता के बीच भारत की एकता वास्तव में उल्लेखनीय है, यह दर्शाती है कि देश की ताकत इसकी एकता में शामिल है। लगभग 1.3 बिलियन लोगों के साथ सद्भाव से रहने वाला भारत दुनिया का अग्रणी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जो विविधता में एकता की भावना को दर्शाता है।
विविधता में एकता की अवधारणा का पालन करने का अर्थ है विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ मिलकर रहना, जिनकी पृष्ठभूमि अलग-अलग हो सकती है। लोग विभिन्न कार्यस्थलों, स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों और अन्य जगहों पर मिलते जुलते हैं। विविधतापूर्ण लोगों के साथ काम करने से हमें दूसरों से सीखने का मौका मिलता है और सहनशीलता का निर्माण करने में मदद मिलती है। लोगों के अलग-अलग विचारों का सम्मान करने की संभावना अधिक होती है।
विविधता में एकता लोगों के बीच विश्वास और बंधन को बढ़ावा देकर टीमवर्क को भी बेहतर बनाती है। इससे लोगों में बेहतर समन्वय और सहयोग होता है, जिससे परियोजना का पूरा होना तेज़ और अधिक कुशल हो जाता है।
व्यावसायिक दुनिया में कंपनियाँ अब वैश्विक सोच के सिद्धांत को अपना रही हैं। यह दृष्टिकोण विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को स्वीकार करता है। अधिक कंपनियाँ इस अवधारणा को अपनाते हुए वैश्विक स्तर पर अलमा विस्तार कर रही हैं।
विविधता में एकता की भावना विभिन्न लोगों को एक-दूसरे को जानने के लिए प्रोत्साहित करके सामाजिक मुद्दों को हल करने में भी मदद करती है, जिससे आपसी सम्मान बढ़ता है।
भारत एक विविधतापूर्ण देश है यहां सभी लोगों को प्रेम से रहने के लिए विविधता में एकता लाभकारी है। यह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और जातियों के लोगों को शांतिपूर्वक एक साथ रहने की अनुमति देता है। विविधता में एकता में विश्वास करने से संघर्ष और अशांति की संभावना कम हो जाती है तथा सद्भाव को बढ़ावा मिलता है।
विविधता में एकता लोगों में दूसरों के प्रति सद्भाव और नैतिकता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह अवधारणा मानव समाज के भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। लोगों को इस विचार पर विश्वास करने और इसे बनाए रखने की आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें नस्लवाद, भेदभाव और उत्पीड़न की भावनाओं को दूर रखना चाहिए। विविधता में एकता के बिना, मानवता और सद्भाव गिरावट का सामना कर सकता है।
विविधता में एकता पर 10 लाइन (10 Lines on Unity in Diversity Essay in Hindi) नीचे दी गई हैं –
अनेक मतभेदों के बावजूद एकजुट रहने की अवधारणा को विविधता में एकता कहा जाता है। ये मतभेद कई प्रकार के हो सकते हैं – धार्मिक, सांस्कृतिक, जाति, पंथ, भाषा, क्षेत्रीय मतभेद और समाज में ऐसी कई अन्य चीजें। इन मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट रहना सबसे महत्वपूर्ण है।
विविधता में एकता मुहावरा नहीं है, यह एक वाक्यांश है जिसे जवाहरलाल नेहरू ने वाक्यांश सम्बोधित किया। यह शब्द पूरी तरह से भारत का वर्णन करता है, जो अपनी भाषाओं, धर्मों, जातियों और पंथों की विविधता के बावजूद, अपने नागरिकों के बीच एकता की दृढ़ भावना रखता है। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में इस वाक्यांश का प्रयोग किया है।
भारत में संविधान सभी लोगों की समान भागीदारी सुनिश्चित करता है, चाहे वे किसी भी तरह के मतभेद रखते हों। बहुसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का भी समान प्रतिनिधित्व है। स्थिति और एकता की परवाह किए बिना सभी के अधिकारों और हितों की रक्षा की जाती है।
भारत विविधताओं का देश है क्योंकि यहां के लोग विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं। विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं, अलग-अलग त्योहार मनाते हैं और भिन्न-भिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा अलग-अलग पहनावा पहनते हैं। ये विभिन्नताएँ विविधता के पहलू हैं।
संबंधित आर्टिकल
आशा हैं कि आपको इस ब्लाॅग में Unity in Diversity Essay in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। निबंध लेखन के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें
अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।
Contact no. *
Leaving already?
Grab this one-time opportunity to download this ebook
45,000+ students realised their study abroad dream with us. take the first step today..
Resend OTP in
Study abroad.
UK, Canada, US & More
IELTS, GRE, GMAT & More
Scholarship, Loans & Forex
New Zealand
Which academic test are you planning to take.
Not Sure yet
Already booked my exam slot
Within 2 Months
Want to learn about the test
When do you want to start studying abroad.
September 2024
January 2025
How would you describe this article ?
Please rate this article
We would like to hear more.
Make Your Note
|
चर्चा में क्यों.
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच ने वर्ष 2024 के लिये अपनी वार्षिक वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट या ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट का 18वाँ संस्करण जारी किया, जिसमें दुनिया भर की 146 अर्थव्यवस्थाओं में लैंगिक समानता का व्यापक मानकीकरण किया गया है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2024 में भारत के प्रदर्शन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इसमें सुधार के प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा कीजिये तथा भारत में लैंगिक समता को त्वरित करने के उपायों का सुझाव दीजिये। |
(a) विश्व आर्थिक मंच
|
You are using an outdated browser. Please upgrade your browser to improve your experience and security.
In the 19th century, a complex interplay of reformist and colonial influences emerged, particularly concerning the status of women
In the 19th century, as British colonialism reshaped the Indian socio-cultural landscape, intellectuals like Captain N. Augustus Willard and Indian reformers grappled with the status of women in India. Willard, like many British officials, viewed Indian women with a mixture of pity and a sense of moral duty, perceiving them as victims of ignorance, reflected in their preference for songs that were considered passionate and sensual. At the same time, English-educated Bengali elites, inspired by both Western ideas and traditional Hindu values, sought to reform women’s education while retaining patriarchal norms. It is pertinent to mention the role played by the renowned social reformer Ishwar Chandra Vidyasagar, a key figure among the Bengali bhadralok, who championed the cause of widow remarriage and women’s education.
Influenced by Western education, yet deeply rooted in his cultural heritage, Vidyasagar sought to balance these dual influences. He established numerous schools for girls, believing that education was essential for their empowerment and societal upliftment.
Another key figure in India’s renaissance movement, Bankim Chandra Chatterjee (Chattopadhyay), a luminary in Indian literature, is celebrated for his seminal contributions to both educational reforms and the Indian freedom struggle.
His multifaceted legacy extends beyond his literary genius, encapsulating his role as an intellectual force in the socio-political landscape of 19th-century India. Bankim Chandra was a pioneering figure in the sphere of educational reforms in India. His vision for education was grounded in the belief that a modern, enlightened society could only emerge through an educated populace. Chatterjee advocated for the modernization of the education system, emphasizing the need to integrate Western scientific knowledge with traditional Indian learning.
Bankim Chandra Chatterjee’s engagement with educational reforms is evident in his writings and his role as a Deputy Magistrate – the first in-charge (Sub-divisional magistrate) of the Arambag subdivision in West Bengal. He used his position to influence educational policies and advocate for the establishment of institutions that could impart contemporary education. Author of India’s National Song Vande Mataram became a clarion call during India’s Independence movement, Bankim Chandra’s novels, often interwoven with themes of social and educational upliftment, served as a medium to propagate his ideas to a broader audience.
Bankim Chandra Chattopadhyay’s novels often depicted strong, complex female characters, who played crucial roles in the narrative, challenging the traditional views of women in society. “Vande Mataram,” depicted in Bankim Chandra Chatterjee’s novel “Anandamath,” serves as the manifesto of the Sanyasi group, celebrating a land abundant with rice, lush greenery, vibrant flowers, and sparkling rivers.
The song idolizes the country as a goddess incarnate. While historically and politically significant, “Anandamath” unfolds through semiotic, discursive, and aesthetic dimensions. The narrative, through characters like Mohendra, Kalyani, and Sukumari, intertwines with India’s traditional and cultural contexts. The Santan of the Math, led by guru Satyananda and his disciples, embody qualities of truth, knowledge, emotion, patience, and being. “Vande Mataram” transcends patriotism, embodying philosophical renderings of existential and metaphysical human attributes, with women depicted as equals, exemplified by Shanti’s bravery and sacrifice.Bankim Chandra’s portrayal of women was significant as it challenged the prevailing societal norms and provided a progressive vision of women’s roles in society. In “Devi Chaudhurani,” (1884) the protagonist Prafulla transforms from a submissive girl into the powerful Devi Chaudhurani, a leader of a band of rebels. Her character embodies the potential for women’s empowerment and the possibility of their active participation in societal change.
By depicting women as strong, capable, and essential to the nation’s progress, his novels contributed to the broader discourse on women’s rights and empowerment in pre-independent India, which, however, is debatable.
Novels like “Kapalkundala,” “Debi Chaudhurani,” and “Durgeshnandini” feature characters such as Kapalkundala, Prafulla, and Ayesha, who exhibit depth and complexity. “Brishabriksha” (The Poison Tree) and “Krishnakanter Uil” addresses social issues like widow remarriage and polygamy through the stories of Suryamukhi, Kundanandini, and Rohini.
In “Sitaram,” the tragic effects of polygamy are highlighted, while “Anandmath” contrasts the nation’s depiction as Mother, while the exclusion of women from the fight for its cause is also depicted. It can be said that Bankim Chandra Chattopadhyay’s depiction of strong, independent female characters – despite their complexities – challenged existing gender norms and inspired a rethinking of women’s potential and place in society. By showcasing women as central figures in the fight against oppression and as leaders in their own right, Bankim Chandra’s works resonated with the growing movements for social and political reform.
(The writer is Programme Executive, Gandhi Smriti and Darshan Samiti; views are personal)
State editions, explain steps to curb pollution, sc asks caqm chief, delhi hospitals 30 per cent short of docs, lg doing nothing: bhardwaj, bjp delegation visits mcd school, refutes kejriwal’s claims of world-class facilities, atishi inspects area under dhaula kuan flyover, city ready for tackling air pollution woes in winter, non-payment of salaries to dcw employees for last 6 months takes centre stage, sunday edition, janmashtami: the celebration of divine birth, a journey through time | heritage walk at purana qila, sly granny’s new menu promises a memorable culinary fare, the pinnacle of gourmet excellence, the tuning fork | chaturashrama - our space is our ashrama - the way of life through the 4 ashramas, raksha bandhan | celebrating the beauty of pure bonds, e-mail this link to a friend..
IMAGES
COMMENTS
लैंगिक असमानता पर अनुच्छेद - 500 शब्द (Essay On Gender Inequality - 500 Words) Gender Equality Essay - समानता या गैर-भेदभाव वह राज्य है जहां प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर ...
लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi: नमस्कार साथियों आपका स्वागत हैं,. आज का लेख लिंग असमानता gender Equality & inequality और लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के विषय पर दिया ...
Gender Equality Essay in Hindi: समानता या गैर-भेदभाव वह राज्य है जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिलते हैं। समाज का प्रत्येक व्यक्ति समान स्थिति, अवसर और अधिकारों ...
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में लैंगिक असमानता के कारण और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर ...
भारत में लैंगिक असमानता के प्रकार | Types of Gender Inequality in India in Hindi. नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के अनुसार, भारत में वर्तमान में 7 प्रकार की ...
संदर्भ: भारत जहाँ एक ओर आर्थिक-राजनीतिक प्रगति की ओर अग्रसर है वहीं देश में आज भी लैंगिक असमानता की स्थिति गंभीर बनी हुई है। वैश्विक लैंगिक अंतराल ...
Published - June 17, 2024 10:58 am IST. READ LATER. दुनिया भर में भले ही लैंगिक समानता बेहतर हो रही है और ...
लड़का लड़की एक समान पर निबंध, gender equality essay in hindi (250 शब्द) लिंग समानता हमारे वर्तमान आधुनिक समाज में गंभीर मुद्दों में से एक है। यह महिलाओं और पुरुषों के लिए ...
आइए जानते हैं क्या है जेंडर आधारित डिजिटल वॉयलेंस और इसका सामना करने की ...
Article shared by: Read these 4 Essays on 'Gender Inequality' in Hindi. Essay # 1. जेण्डर का अर्थ: स्त्री एवं पुरुष में यदि अन्तर देखें तो कुछ वे अंतर दिखायी देते हैं जो शारीरिक होते ...
समता और समानता में अंतर (Difference Between Equity and Equality) समानता का अर्थ सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना है जिससे कि कोई भी अपनी विशेष परिस्थिति का ...
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत लैंगिक असमानता के कारण और समाधान से संबंधित विभिन्न ...
भारत में लैंगिक असमानता के आँकड़े Gender Inequality in India Statistics 2020-2022. 2022 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) द्वारा ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत को 146 ...
हैदराबादः हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिवस उस प्रतिकूलता और लचीलेपन को दर्शाता है जिसके माध्यम से महिलाओं ने पूरे ...
प्रमुख बिंदु: लैंगिक समानता सूचकांक (Gender Parity Index-GPI): GPI विभिन्न स्तरों पर स्कूल प्रणाली में लड़कियों की समान भागीदारी को दर्शाता है ...
Role of Men in Gender Equality. Men play a crucial role as allies in the fight for gender equality, challenging stereotypes and advocating for a fair and just society. Global Initiatives. International efforts toward gender equality showcase progress while emphasizing the need for continued collaboration and shared success stories.
लैंगिक असमानता पर निबंध हिन्दी में Gender Inequality essay in Hindihindi essay hindi लैंगिक असमानता क्या ...
500+ Words Essay on Gender Equality Essay. Equality or non-discrimination is that state where every individual gets equal opportunities and rights. Every individual of the society yearns for equal status, opportunity, and rights. However, it is a general observation that there exists lots of discrimination between humans.
स्त्री पुरुष समानता निबंध हिंदी Gender Equality Essay In Hindi में आसान भाषा में लैंगिक समानता पर निबंध दिया गया हैं. स्टूडेंट्स के लिए आसान
Essay on Gender Inequality in India (Hindi) 12:53mins. 15. Essay on Ayushmann Bharat (Hindi) 11:34mins. 16. Essay on Double income for farmers. 14:28mins. 17. Essay on The education system in India. 13:56mins. 18. Essay on Waste management (Hindi) 11:50mins. Crack SSC Exams (Non Technical)/ Railway Exams with Unacademy
It's time Gender Equality takes a front-seat in the growth and development of a child. Watch the story of two siblings - Sama and Ved, as they decode gender ...
महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये 2005 से भारत ने औपचारिक रूप से वित्तीय बजट में ...
Answer 2: The gender inequality essay tells us that gender inequality impacts us badly. It takes away opportunities from deserving people. Moreover, it results in discriminatory behaviour towards people of a certain gender. Finally, it also puts people of a certain gender in dangerous situations. Share with friends.
The gender dimension of every single reform needs to be identified, debated and addressed. There is an urgent need to bring together women's rights activists' past experience of analysis and advocacy in each of these areas with the Anti-Discrimination Students Movement's energy and determination, so that we can bring about systemic and ...
कई बार Unity in Diversity Essay in Hindi लिखने के लिए दिया जाता है, इसलिए आपकी मदद के लिए इस ब्लॉग में विविधता में एकता पर निबंध दिया गया है।
वर्ष 2024 में ग्लोबल जेंडर गैप स्कोर 68.5% है, इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 0.1% का मामूली सुधार हुआ है।. प्रगति की वर्तमान दर पर पूर्ण लैंगिक ...
In the 19th century, a complex interplay of reformist and colonial influences emerged, particularly concerning the status of women. In the 19th century, as British colonialism reshaped the Indian ...