भारतीय किसान पर निबंध । Essay on Indian Farmer in Hindi

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Here is a compilation of Essays on ‘Indian Farmer ’ for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Indian Farmer ’ especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Indian Farmer

Essay Contents:

  • भारत में किसानों की स्थिति । Essay on the Status of Farmer in India for College Students in Hindi Language

1. भारतीय किसान । Essay on Indian Farmer in Hindi Language

त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान । वह जीवन भर मिट्‌टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है । तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते । हमारे देश की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में निवास करती है । जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है ।

एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है जो गांवों में निवास करते हैं । किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं । यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है । किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है ।

वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है । वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है । प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है । किसान मेहनती होने के साथ-साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है ।

समय अभाव के कारण उसकी आवश्यकतायें भी बहुत सीमित होती हैं । उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी है । यदि समय पर वर्षा नहीं होती है तो किसान उदास हो जाता है । इनकी दिनचर्या रोजाना एक सी ही रहती है । किसान ब्रह्ममुहूर्त में सजग प्रहरी की भांति जग उठता है । वह घर में नहीं सोकर वहां सोता है जहां उसका पशुधन होता है ।

उठते ही पशुधन की सेवा, इसके पश्चात अपनी कर्मभूमि खेत की ओर उसके पैर खुद-ब-खुद उठ जाते हैं । उसका स्नान, भोजन तथा विश्राम आदि जो कुछ भी होता है वह एकान्त वनस्थली में होता है । वह दिनभर कठोर परिश्रम करता है । स्नान भोजन आदि अक्सर वह खेतों पर ही करता है । सांझ ढलते समय वह कंधे पर हल रख बैलों को हांकता हुआ घर लौटता है ।

कर्मभूमि में काम करने के दौरान किसान चिलचिलाती धूप के दौरान तनिक भी विचलित नहीं होता । इसी तरह मूसलाधार बारिश या फिर कड़ाके की ठंड की परवाह किये बगैर किसान अपने कृषि कार्य में जुटा रहता है । किसान के जीवन में विश्राम के लिए कोई जगह नहीं है ।

ADVERTISEMENTS:

वह निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है । कैसी भी बाधा उसे अपने कर्तव्यों से डिगा नहीं सकती । अभाव का जीवन व्यतीत करने के बावजूद वह संतोषी प्रवृत्ति का होता है । इतना सब कुछ करने के बाद भी वह अपने जीवन की आवश्यकतायें पूरी नहीं कर पाता । अभाव में उत्पन्न होने वाला किसान अभाव में जीता है और अभाव में इस संसार से विदा ले लेता है ।

अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज में व्याप्त कुरीतियां उसके साथी हैं । सरकारी कर्मचारी, बड़े जमीदार, बिचौलिया तथा व्यापारी उसके दुश्मन हैं, जो जीवन भर उसका शोषण करते रहते हैं । आज से पैंतीस वर्ष पहले के किसान और आज के किसान में बहुत अंतर आया है । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात किसान के चेहरे पर कुछ खुशी देखने को मिली है ।

अब कभी-कभी उसके मलिन-मुख पर भी ताजगी दिखाई देने लगती है । जमीदारों के शोषण से तो उसे मुक्ति मिल ही चुकी है परन्तु वह आज भी पूर्ण रूप से सुखी नहीं है । आज भी 20 या 25 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास दो समय का भोजन नहीं है । शरीर ढकने के लिए कपड़े नहीं हैं । टूटे-फूटे मकान और टूटी हुई झोपड़ियाँ आज भी उनके महल बने हुए हैं ।

हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से किसान के जीवन में कुछ खुशियां लौटी हैं । सरकार ने ही किसानों की ओर ध्यान देना शुरू किया है । उनके अभावों को कम करने के प्रयास में कई योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं । किसानों को समय-समय पर गांवों में ही कार्यशाला आयोजित कर कृषि विशेषज्ञों द्वारा कृषि क्षेत्र में हुए नये अनुसंधानों की जानकारी दी जा रही है ।

इसके अलावा उन्हें रियायती दर पर उच्च स्तर के बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, खाद आदि उपलब्ध कराये जा रहे हैं । उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने व व्यवसायिक खेती करने के लिए सरकार की ओर से बहुत कम ब्याज दर पर ऋण मुहैया कराया जा रहा है ।

खेतों में सिंचाई के लिए नहरों व नलकूपों का निर्माण कराया जा रहा है । उन्हें शिक्षित करने के लिए गांवों में रात्रिकालीन स्कूल खोले जा रहे हैं । इन सब कारणों के चलते किसान के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है । उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी हद तक सुदृढ़ हुई है ।

2. भारतीय कृषक (किसान) | Essay on Indian Farmer for Kids in Hindi Language

भारत एक कृषि प्रधान देश है । हमारी सम्पन्नता हमारे कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय कृषक की एक बड़ी भूमिका है । वास्तव में भारत कृषकों की भूमि है । हमारी 75% जनता गांवों में रहती है ।

भारतीय किसान का सर्वत्र सम्मान होता है । वह ही सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए अन्न एवं सब्जियाँ उत्पन्न करता है । पूरा वर्ष भारतीय कृषक खेत जोतने बीज बोने एव फसल उगाने में व्यस्त रहता है । वास्तव में उसका जीवन अत्यन्त व्यस्त होता है ।

वह प्रात: तड़के उठता है और अपने हल एव बैल लेकर खेतों की ओर चला जाता है । वह घन्टों खेत जोतता है । तत्पश्चात नाश्ता करता है । उसके घर-परिवार के सदस्य उसके लिये खेत में खाना लाते हैं । उसका खाना बहुत साधारण होता है ।

इसमें अधिकतर चपाती (रोटी) अचार एवं लस्सी (छाछ) होती है । खाने के पश्चात् पुन: वह अपने काम में व्यस्त हो जाता है । वह कठिन परिश्रम करता है । किन्तु कठिन परिश्रम के पश्चात भी उसे बहुत कम लाभ होता है । वह अपनी उपज को बाजार में बहुत कम दामों पर बेचता है ।

कृषक बहुत सादा जीवन जीता है । उसका पहनावा ग्रामीण होता है । वह फूस के झोपड़ी में रहता है हालांकि पँजाब हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के बहुत से कृषकों के पक्के मकान भी हैं । उसकी सम्पत्ति कुछ बैल हल एवं कुछ एकड़ धरती ही होती है । वह अधिकतर अभावों का जीवन जीता है ।

एक कृषक राष्ट्र की आत्मा होता है । हमारे दिवंगत राष्ट्रपति श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय किसान जय जवान’ । उन्होंने कहा था कि कृषक राष्ट्र का अन्नदाता है । उसी पर कृषि उत्पादन निर्भर करता है । उन्हें कृषि के सभी आधुनिकतम यंत्र एव उपयोगी रसायन उपलब्ध कराने चाहिये ताकि वह अधिक उत्पादन कर सके ।

3. भारतीय किसान । Essay on Indian Farmer for School Students in Hindi Language

1. प्रस्तावना ।

2. भारतीय किसान की एवं उसका महत्त्व ।

3. उपसंहार ।

1 . प्रस्तावना:

भारत एक कृषि प्रधान देश है । यहां की अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि ही है । कृषि कर्म ही जिनके जीवन का आधार हो, वह है कृषक । कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारे देश की अर्थव्यवस्था का लगभग समूचा भार भारतीय किसान के कन्धों पर ही है ।

चूंकि हमारे देश की अधिकांश जनता गांवों में निवास करती है, अत: भारतीय किसान ग्रामीण वातावरण में ही रहकर विषमताओं से जूझते हुए अपने कर्म में नि:स्वार्थ भाव से लगा रहता है । इस अर्थ में भारतीय किसान का समूचा जीवन उसके अपूर्व त्याग, तपस्या, परिश्रम, ईमानदारी, लगन व कर्तव्यनिष्ठा की अद्‌भुत मिसाल है ।

जीवन की तमाम विसंगतियों, विपन्नताओं एवं अभावों से जूझते हुए, सृष्टि के जीवों की क्षुधा को शान्त करता है । अपने मेहनतकश हाथों से अन्न के दानों और रोटी को तैयार करने वाला भारतीय किसान अपने कर्म में निरन्तर गतिशील रहता है ।

2. भारतीय किसान की स्थिति एवं महत्त्व:

भारतीय किसान धरती माता का सच्चा सपूत है । वह ऋषि-मुनियों, सन्त-महात्माओं के जीवन के उच्चादर्शो के काफी निकट है; क्योंकि वह भीषण गरमी में गम्भीर आघातों को सहकर, कड़ाके की ठण्ड में और बरसते हुए पानी में रहकर अपने कर्म में बड़ी ही ईमानदारी एवं तत्परता से लगा रहता है ।

धरती के समूचे प्राणियों के जीवन के लिए अन्न उपजाने वाला भारतीय किसान इतना परोपकारी एवं मेहनती है कि वह अपने स्वार्थ व सुख की तनिक भी चिन्ता नहीं करता । उसका जीवन अत्यन्त सीधा-सादा है । शरीर पर धोती, अंगरखा, गमछा और नंगे पैर रहकर भी दूसरों के लिए अन्न उपजाना ही उसका ध्येय है ।

प्रात: काल सूरज के उगने के साथ सायंकाल सूरज के डूबने तक खेतों में काम करना ही उसके जीवन की साधना है । घर पर अपने पशुओं की सेवा करने में भी वह जरा सी भी सुस्ती नहीं करता । जहां तक भारतीय किसान की स्थिति है, वह अत्यन्त दयनीय है । 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय किसान जमींदारों, पूंजीपतियों, साहूकारों के आर्थिक शोषण का शिकार है ।

ऋणग्रस्तता ने उन्हें गरीबी के मुंह में धकेल दिया है । जमींदारों के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ उसका जीवन कभी अकाल, तो कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में आ जाता है । ऐसी स्थिति में उसे असमय ही मृत्यु वरण करने को विवश होना पड़ता है । कई बार तो उन्हें सपरिवार सामूहिक रूप में भीषण गरीबी से जूझते हुए आत्महत्या भी करनी पड़ जाती है ।

कर्ज के बोझ तले दबा उसका जीवन किसी बंधुआ मजूदर के जीवन से कुछ कम नहीं होता । सच कहा जाये, तो वह कर्ज में ही पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है । उसके बैलों की प्यारी जोड़ी भी उसके हल के साथ बिक जाती है ।

अथक परिश्रम से तैयार की गयी फसल खलिहान तक पहुंचने से पहले साहूकार, जमींदार के हाथों में पहुंच जाती है । उसकी इस आर्थिक अभावग्रस्त पीड़ा की व्यथा-कथा को वही समझ सकता है ।

भारतीय किसान का जीवन तो करुणा का महासागर है । स्वयं अन्न उपजाने के बाद भी उसे तथा उसके परिवार को भरपेट खाने को अन्न नहीं मिलता । किसान के लिए कृषि एक जुआ है । प्रकृति पर निर्भरता उसके जीवन की जटिल समस्या है ।

सिंचाई के साधनों के अभाव में उसे पूरी तरह से मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है । अशिक्षा एवं गरीबी के कारण वह कृषि के परम्परागत साधनों को अपनाने के लिए मजबूर हो जाता है ।

आज के वैज्ञानिक युग के अनुरूप वह कृषि को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार व्यावहारिक रूप से अपनाने में स्वयं को असमर्थ पाता है । सरकारी नीतियां और योजनाएं उसके लिए लाभकारी होते हुए भी प्रभावी सिद्ध नहीं होती हैं । वर्तमान व्यवस्था भी कम दोषपूर्ण नहीं है, जिसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला है ।

बिचौलिये और दलाल उसे कहीं का नहीं छोड़ते । सामाजिक रूढ़ियां एवं उसकी स्वयं की संकीर्ण विचारधारा भी उसके सुविधासम्पन्न जीवन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है । वह कृषि के नये-नये वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करने में स्वयं को असमर्थ पाता है । शिक्षा एवं गरीबी के कारण उसका स्वारथ्य भी कुप्रभावित हो जाता है, जिसकी वजह से उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती ।

कृषकों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपनी बहुत-सी नीतियों एवं योजनाओं में भारतीय किसानों को प्राथमिकताएं प्रदान की है । वर्षा पर उसकी निर्भरता को कम करने के लिए सरकार द्वारा विशालकाय तालाब, कुएं, नलकूप एवं नहरों का निर्माण किया गया, जिसके सुचारु संचालन के लिए जो बिजली खपत की जाती है, सरकार उसे अत्यन्त कम दर पर प्रदान करती है ।

कई राज्यों में तो उसे मुपत भी प्रदान करने की सुविधाएं हैं । गांव-गांव में सहकारी भण्डारों एवं समितियों द्वारा उन्हें उतम बीज, उत्तम खाद, कृषि यन्त्र की सरकारी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं । कम ब्याज पर उसे बैंकों से ण प्राप्त करने की विशेष सुविधाएं प्रदान की गयी हैं । गरीब किसानों, भूमिहर किसानों को भूमि भी प्रदान करने की सरकारी योजनाएं उसके हित में हैं ।

सरकारी योजनाओं में किसानों के लिए उनके माल के उचित भण्डारण हेतु व्यवस्थित स्थान दिलाना, उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाना आदि शामिल हैं । भूमिहीन किसान, जो जमींदारों, साहूकारों के शोषण का शिकार हो रहे हैं, सरकार उन्हें इस प्रकार के शोषण से मुक्त करने हेतु पंचायती राज्य सम्बन्धी योजनाएं बना रही है । उनके शोषण के विरुद्ध कानून बनाये जाने की प्रक्रिया भी निरन्तर चल रही है । उनके रहन-सहन के स्तर को सुधारने हेतु भी कई ग्रामीण योजनाओं की व्यवस्था पंचायती राज में की गयी है ।

3. उपसंहार:

यह बात निःसन्देह रूप से सच है कि भारतीय किसान एक मेहनतकश किसान है । प्रकृति तथा परिस्थितियों की विषमताओं से जूझने की अच्छी क्षमता उसमें विद्यमान है । आधुनिकतम वैज्ञानिक साधनों को अपनाकर वह खेती करने के अनेक तरीके सीख रहा है ।

पहले की तुलना में वह अब अधिक अन्न उत्पादन करने लगा है । शिक्षा के माध्यम से उसमें काफी जागरूकता आ गयी है । वह अपने अधिकारों के प्रति काफी सजग होने लगा है । कुछ परिस्थितियों को छोड़कर अधिकांश स्थितियों में वह कृषि पर आधारित अपनी जीवनशैली में भी बदलाव ला रहा है । उसका परिवार भी अब शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं को प्राप्त कर रहा है ।

देश की प्रगति एवं विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहने वाला भारतीय किसान अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार स्तम्भ है । उसकी मेहनतकश जिन्दगी को सारा देश नमन करता है । सच कहा जाये, तो भारतीय किसान एक महान् किसान है, महान् इंसान है ।

4. भारतीय किसान | Essay on Indian Farmer for College Students in Hindi Language

भारतीय किसान भारतीय की सजीव मूर्ति है । ‘सादा जीवन उच्च-विचार । यह देखो भारतीय किसान’ इस कहावत की सत्यता हमें भारतीय किसान को देखकर सहज ही हो जाती है । ‘भारतीय किसान’ भारतीयता का प्रतिनिधि है । उसमें ही भारत की आत्मा निवास करती है । ऐसा कुछ कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है । सचमुच में भारतीय किसान भारत माँ की प्यारी संतान है ।

भारत माँ की प्यारी संतान भारतीय किसान है; इस कथन के समर्थन में हम यही कहेंगे कि हमारा भारत गाँवों में ही निवास करता है । इस संदर्भ में कविवर सुमित्रानंदन पंत की यह कविता सहज ही याद आ जाती है –

” है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ? यह बसा हमारे गाँवों में । ”

सचमुच में हमारा भारत गाँवों में ही बसता है, क्योंकि हमारे देश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में ही रहती है । जो गाँवों को छोड़कर के शहरों में किसी कारण वस चले जाते हैं, वे भी गाँव की संस्कृति और सभ्यता में ही पले होते हैं ।

भारतीय किसान का जीवन सभ्यता और संस्कृति के इस ऊँचे भवन के नीचे अब फटेहाल और नंगा है । भारतीय किसान का मुख्य धंधा कृषि है । कृषि ही उसकी भक्ति है और कृषि ही उसकी शक्ति है । कृषि ही उसकी निद्रा है और कृषि ही उसका जागरण है । इसलिए भारतीय किसान कृषि के दुःख दर्द और अभाव को बड़े ही साहस और हिम्मत के साथ सहता है । अभाव को बार-बार प्राप्त करने के कारण उसका जीवन ही अभावग्रस्त हो गया है । उसने अपने जीवन को अभाव का सामना करने के लिए पूरी तरह से लगा दिया, फिर भी वह अभावों से मुक्त न हो सका ।

भारतीय किसान अपने जीवन के अभावों से कभी भी मुक्त नहीं हो पाता है । इसके कई करण हैं-सर्वप्रथम उसकी संतुष्टि, अशिक्षा, अज्ञानता आदि है, तो दूसरी ओर आधुनिकता से दूरी, संकीर्णता, कूपमण्डूकता आदि हैं । इस कारण भारतीय किसान आजीवन दुःखी और अभावग्रस्त रहता है ।

वह स्वयं तो अशिक्षित होता ही है अपनी संतान को भी इसी अभिशाप को झेलने के लिए विवश कर देता है । फलत: उसका पूरा परिवार अज्ञानता के भँवर में मँडराता रहता है । भारतीय किसान इसी अज्ञानता और अशिक्षा के कारण संकीर्ण और कृपमण्डूक बना रहता है ।

भाग्यवादी होना भारतीय किसान की जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना है । वह कृषि के उत्पादन और उसकी बरवादी को अपनी भाग्य और दुर्भाग्य की रेखा मानकर निराश हो जाता है । वह भाग्य के सहारे अकर्मण्य होकर बैठ जाता है ।

वह कभी भी नहीं सोचता है कि कृषि कर्मक्षेत्र है, जहाँ केवल कर्म ही साथ देता है, भाग्य नहीं । वह तो केवल यही मानकर चलता है कि कृषि-कर्म तो उसने कर दिया है, अब उत्पादन होना न होना तो विधाता के वश की बात है । उसके वश की बात नहीं हैं ।

इसलिए सूखा पड़ने पर, पाला मारने पर या ओले पड़ने पर वह चुपचाप ईश्वराधीन का पाठ पढ़ता है । इसके बाद तत्काल उसे क्या करना चाहिए या इससे पहले किस तरह से बचाव या निगरानी करनी चाहिए थी, इसके विषय में प्राय: भाग्यवादी बनकर वह निश्चिन्त बना रहता है ।

रूढ़िवादिता और परम्परावादी होना भारतीय किसान के स्वभाव की मूल विशेषताएँ हैं । यह शताब्दी से चली आ रही कृषि का उपकरण या यंत्र है । इस को अपनाते रहना उसकी वह रूढ़िवादिता नहीं है । तो और क्या है? इसी अर्थ में भारतीय किसान परम्परावादी, दृष्टिकोण का पोषक और पालक है, जिसे हम देखते ही समझ लेते हैं ।

आधुनिक कृषि के विभिन्न साधनों और आवश्यकताओं को विज्ञान की इस धमा-चौकड़ी प्रधान युग में भी न समझना या अपनाना भारतीय किसान की परम्परावादी दृष्टिकोण का ही प्रमाण है । इस प्रकार भारतीय किसान एक सीमित और परम्परावादी सिद्धान्तों को अपनाने वाला प्राणी है । अंधविश्वासी होना भी भारतीय किसान के चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है । अंधविश्वासी होने के कारण भारतीय किसान विभिन्न प्रकार की सामाजिक विषमताओं में उलझा रहता है ।

इस प्रकार भारतीय किसान भाग्यवादी संकीर्ण, परम्परावादी, अज्ञानता, अंधविश्वासी आदि होने के कारण दुःखी और चिन्तित रहता है । फिर भी वह कर्मठ और सत्यता की मूर्ति है । वह मानवता का प्रतीक आत्म-संतुष्ट जीवन यापन करने वाला हमारे समाज का विश्वस्त प्राणी है, जिसे किसी कवि ने संकेत रूप से चित्रित करते हुए कहा है:

बरसा रहा है रवि अनल , भूतल तवा – सा जल रहा । है चल रहा , सन – सन पवन , तन से पसीना ढल रहा । देखो कृषक शोणित सुखाकर , हल तथापि चला रहे । किस लोभ से वे इस आंच में निज शरीर जला रहे । मध्याह्न उनकी स्त्रियाँ ले रोटियाँ पहुँची वहीं । हैं रोटियाँ रुखी – सूखी , साग की चिन्ता नहीं । भरपेट भोजन पा गए , तो भाग्य मानो जग गए ।। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारतीय किसान हमारी भारतीयता की सच्ची मूर्ति है ।

5. भारतीय किसान | Essay on Indian Farmer for College Students in Hindi Language

वर्तमान युग में भारत के कृषक, यानी किसान की स्थिति पहले की तुलना में काफी अच्छी है । पहले की तुलना में आज का भारतीय किसान निरन्तर उन्नति कर रहा है । आज के वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक सुविधाओं का लाभ किसान वर्ग को भी मिला है ।

पहले केवल बड़े जमींदार किसानों का जीवन सुविधा-सम्पन्न हुआ करता था । तब छोटे किसान अभावों में ही जीवन व्यतीत किया करते थे । पहले बुवाई, सिंचाई, कटाई आदि की वैज्ञानिक सुविधाएँ नहीं थी ।

सिंचाई के लिए किसानों को भगवान भरोसे रहकर वर्षा की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी । पहले किसान परिश्रम अधिक करता था और उसे कम फसल प्राप्त होती थी । परन्तु वर्तमान युग में बड़े किसानों के साथ-साथ कम जमीन के मालिक किसान भी फल-फूल रहे हैं । मजदूर किसान की स्थिति अवश्य दुखद है ।

वह आज भी अभावों में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश है ।हमारे देश भारत में समस्त किसानों की स्थिति एक समान नहीं है । हजारों एकड़ जमीन के स्वामी किसान स्वयं तो नाम किसान होते हैं । इनके खेत-खलीहानों में अन्य मजदूर सान काम करते हैं ।

इन बड़े किसानों का खेती में धन व्यय गेता है, परिश्रम मजदूरों का होता है । कम जमीन के स्वामी किसान धन के साथ-साथ अपना परिश्रम भी खेती के लिए खर्च करते हैं । भारत में ऐसे किसानों की संख्या भी कम नहीं है, जिनकी अपनी कृषि-भूमि नहीं है । ऐसे किसान अन्य कृषि-भूमि मालिकों की जमीन पर खेती करते हैं ।

भूमि-मालिक इसके एवज में उनसे नगद धन राशि अथवा आधी फसल लेते हैं । यहाँ ऐसे भी भूमिहीन किसान हैं जो अन्य भूमि-मालिकों की जमीन पर एक निश्चित धनराशि देकर खेती करने में सक्षम नहीं हैं ।

ये मजदूर किसान दूसरों की जमीन पर मजदूरी करके ही जीवन यापन करने का प्रयत्न करते हैं ।

भारत का मजदूर किसान आरम्भ से ही अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रहा है । दिन-रात खटने के बाद भी वह कठिनाई से अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाता है । आधुनिक वैज्ञानिक सुविधाओं से छोटे-बड़े भूमि-मालिक किसानों को लाभ हुआ है, परन्तु भूमि-हीन मजदूर किसान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है ।

वह मजदूरी के लिए कभी एक भूमि मालिक के खेतों पर जाता है कभी दूसरे के । मजदूरी के लिए उसे दूसरे गाँवों की खाक छानने भी जाना पड़ता हए । ऐसे किसानों के जीवन में कष्ट अधिक हैं । पेट की भूख शान्त करने के लिए ऐसे मजदूर किसानों की पत्नी और बच्चों को भी खेतों पर काम करने जाना पड़ता है ।

परिस्थितियों से घबराकर अनेक मजदूर किसान पलायन करके नगरों महानगरों की ओर भी बढ़ रहे हैं । नगरों, महानगरों में जाकर ये किसान मजदूर मिल-कारखानों आदि में रोजगार तलाश करते हैं । इनके पलायन के कारण गाँवों में मजदूरों का अभाव बढ़ने लगा है ।

भूमि-मालिक किसानों को आवश्यकता पड़ने पर अन्य राज्यों से मजदूर बुलाने पड़ते हैं । वर्तमान में वैज्ञानिक सुविधाओं के कारण भूमि-मालिक किसानों की स्थिति में अवश्य निरन्तर सुधार हो रहा है । किसानों को बिजली, पानी, ट्रैक्टर आदि की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो रही हैं ।

उन्हें सस्ती दरों पर सरकार से खेती के लिए ब्याज भी उपलब्ध हो रहा है । आज किसान मनचाहे ढंग से अपनी कृषि-भूमि का उपयोग कर रहा है ।

नगरों के निकट स्थित गाँब के किसान सब्जियों की फसल उगाकर भी लाभ उठा रहे हैं आज का किसान अपनी कृषि-भूमि पर मुर्गी-पालन, मछली-पालन, मधुमक्खी-पालन आदि अधिक लाभ के कार्य भी कर रहा है इसके अतिरिक्त आज का किसान गाय-भैंस की डेयरी के द्वार दूध के व्यवसाय में भी फल-फूल रहा है । आज भारत क किसान भूखा-नंगा नहीं, बल्कि समृद्ध है ।

6. भारत में किसानों की स्थिति । Essay on the Status of Farmer in India for College Students in Hindi Language

भारत कृषि-प्रधान देश है । यहाँ की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है । यह जनता कृषि-कार्य करके अपना ही नहीं, अपने देश का भी भरण-पोषण करती है । भारत में लगभग सात लाख गाँव हैं और इन गाँवों में अधिकांश किसान ही बसते हैं । यही भारत के अन्नदाता हैं ।

यदि भारत को उन्नतिशील और सबल राष्ट्र बनाना है तो पहले किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाना होगा । किसानों की उपेक्षा करके तथा उन्हें दीनावस्था में रखकर भारत को कभी समृद्ध और ऐश्वर्यशाली नहीं बनाया जा सकता ।

भारतीय किसान साल भर मेहनत करता है, अन्न पैदा करता है तथा देशवासियों को खाद्यान्न प्रदान करता है; किंतु बदले में उसे मिलती है उपेक्षा । वह अन्नदाता होते हुए भी स्वयं भूखा और अधनंगा ही रहता है  ।  वास्तव में, भारतीय किसान दीनता की सजीव प्रतिमा है ।

उसके पैरों में जूते नहीं, शरीर पर कपड़े नहीं, चेहरे पर रौनक नहीं तथा शरीर में शक्ति भी नहीं होती । अधिकांश भारतीय किसान जीवित नर-कंकाल सदृश दिखाई पड़ते हैं । आज का भारतीय किसान संसार के अन्य देशों के किसानों की अपेक्षा बहुत पिछड़ा हुआ है । इसका मूल कारण है: कृषि की अवैज्ञानिक रीति ।

यद्यपि संसार में विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है तथापि हमारे देश का अधिकतर किसान आज भी पारंपरिक हल-बैल लेकर खेती करता है । सिंचाई के साधन भी उसके पास नहीं हैं । उसे अपनी खेती की सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है । तुलनात्मक रूप से वह अन्य देशों के किसानों की अपेक्षा मेहनत भी अधिक करता है, फिर भी अन्न कम ही उत्पन्न कर पाता है ।

यदि भारतीय किसान भी खेती के नए वैज्ञानिक तरीकों को अपना लें तो उन्हें भी कृषि-कार्य में अभूतपूर्व सफलता मिलेगी । इससे वे अपना जीवन-स्तर ऊँचा उठा सकेंगे । भारतीय किसान की हीनावस्था का दूसरा कारण है: अशिक्षा ।

अशिक्षा के कारण ही भारतीय किसान सामाजिक कुरीतियों, कुसंस्कारों में बुरी तरह जकड़े हुए हैं और पुरानी रूढ़ियों को तोड़ना पाप समझते हैं । फलस्वरूप शादी-विवाह, जन्म-मरण के अवसर पर भी झूठी मान-प्रतिष्ठा और लोक-लज्जा के कारण उधार लेकर भी भोज आदि पर खूब खर्च करते हैं और सदैव कर्ज में डूबे रहते हैं । अंतत: कर्ज में ही मर जाते हैं ।

यही उनका वास्तविक जीवन है और नियति भी । भारतीय किसान खेती के अतिरिक्त अन्य उद्योग-धंधे नहीं अपनाते । फलस्वरूप खाली समय को वे व्यर्थ ही व्यतीत कर देते हैं । इससे भी उन्हें आर्थिक हानि होती है । सरकार को यदि किसानों के जीवन में सुधार लाना है तो सर्वप्रथम उन्हें शिक्षित करना चाहिए ।

गाँव-गाँव में शिक्षा का प्रसार करके अविद्या का नाश करना चाहिए । किसानों की शिक्षा के लिए रात्रि-पाठशालाएँ तथा प्रौढ़-पाठशालाएं खोलनी चाहिए, जहाँ कृषि-कार्य से छुट्‌टी पाकर कृषक विद्या प्राप्त कर सकें । शिक्षा के द्वारा ही किसान समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं । किसानों को कृषि के वैज्ञानिक तरीकों से परिचित कराना चाहिए ।

उन्हें उचित मूल्य पर नए ढंग के औजार तथा बीज एवं खाद आदि उपलब्ध कराए जाने चाहिए । किसानों के लिए सिंचाई के साधन भी जुटाने की चेष्टा करनी चाहिए, जिससे वे केवल वर्षा पर ही निर्भर न रहें । गाँव-गाँव में सरकारी समितियाँ खुलनी चाहिए, जो किसानों को अच्छे बीज तथा उचित ऋण देकर उन्हें सूदखोरों से बचाएँ ।

भारतीय किसान के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । किसानों को कपड़ा बुनने, रस्सी बनाने, टोकरी बनाने, पशु-पालन तथा अन्य उद्योग- धंधों की शिक्षा मिलनी चाहिए, जिससे वे अपने खाली समय का सदुपयोग करके अपनी आर्थिक उन्नति कर सकें ।

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हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और मैंने इस निबंध में उनके महत्त्व के हर पहलू पर चर्चा करने की कोशिश की हैं। यह छात्रों के लिए अवश्य ही बहुत लाभकारी होगा।

किसान इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं पर निबंध – 1 (250-300 शब्द)

किसान भारत की अर्थव्यवस्था के रीढ़ की हड्डी है। भारत की 50% अर्थव्यवस्था किसानो पर निर्भर करती है। फिर भी वर्तमान में किसानों की स्थिति दयनीय है। किसानो को उनकी मेहनत का उचित लाभ नहीं मिल पाता है। हमारे राष्ट्र की आधी अर्थव्यवस्था को चलाने वाले तंत्र को मजबूत बनाना हम सभी का कर्तव्य है। किसान की शक्ति और आत्मविश्वास ही इस नीव को मजबूत बनाये रख सकता है।

आर्थिक महत्व

किसान की मेहनत से हमें फल, फूल , अनाज , सब्जियां , दूध इत्यादि मिलते है जिनसे हमें आर्थिक लाभ होता है। किसानों की ही देन है कि आज हम इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन कर पा रहे है। किसानो की ही देन है की आज हमारा देश गेहूँ, चावल, दाल, दूध आदि के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। हमारी अर्थव्यवस्था के तीन भाग है – प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक। किसान जो भी उत्पादित करते है, वह द्वितीयक भाग में तैयार होता है और उसे लोगो तक पहुंचाया जाता है। इस तरह किसान हमारे अर्थव्यवस्था की नींव है।

पर्यावरणीय महत्व

किसान मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी नियमित करते है और हमारा वातावरण संतुलित रहता है। किसानों के द्वारा कृषि क्षेत्र में दिए गए योगदान से ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय परिवर्तन, अल्पवृष्टि आदि पर नियंत्रण होता है। किसान हमारी प्रकृति के सबसे आज्ञाकारी संतान है। किसानों का होना प्रकृति के संरक्षण के लिए जरुरी है।

हम सभी को किसानों के महत्व को गंभीरता से समझने की जरुरत है। अगर देश का किसान समर्थ होगा तभी हमारा देश विकास कर सकता है।सरकार को कुछ नियम लाने की आवश्यकता है जो किसानो को उनका हक़ दिला सके। हम सभी को अर्थव्यवस्था में किसानों के महत्त्व को देखते हुए उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्र का विकास हो सके।

किसान इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं पर दीर्घ निबंध (1500 शब्द)

हमारा भारत एक ऐसा देश है, जहां कृषि को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की हमारे किसानों के माध्यम से ही हमारा देश और दुनिया के अन्य राष्ट्र भी फल फूल रहे है। लगभग 60% की आबादी हमारे देश में कृषि के रूप में हैं, जो अपने मेहनत से फसलों को पैदा करते है और पूरे राष्ट्र के भोजन की आवश्यकता को पूरा करते हैं।

हमारे देश में कृषि को एक महान पेशे के रूप में जाना जाता है, ऐसे पेशे में शामिल लोगों को अपनी आजीविका चलाने के लिए खेतों में काम करना पड़ता है, और ऐसे लोगों को ही किसान कहा जाता है। इन्हीं किसानों को देश का अन्नदाता कहा जाता है। किसान ही वह इंसान है, जो सूरज की तेज गर्मी, बारिश या तेज ठण्ड की परवाह किये बिना ही वह अपने खेतों पर फसलों को अपनी मेहनत से उगाने का काम करते हैं।

अपने परिश्रम से वह कई किस्म के अन्न, फल, सब्जियों इत्यादि को खेतों में उगाता हैं, और एक उचित मूल्य पर इसे बाजारों में बेचते हैं। किसानों की कड़ी मेहनत द्वारा उगाये इन खाद्य सामग्रियों और सब्जियों का उपयोग देश का हर व्यक्ति अपने खाने के रूप में करता है।

किसानो ं की जीवनशैली

किसानों का जीवन बहुत ही कठिनाइयों और मेहनत से भरा होता है। तरह-तरह की फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किसान अपने खेतों में कड़ी मेहनत करता हैं। ताकि फसलों को नुकसान होने से बचाया जा सके और फसलों की अच्छी पैदावार हो सके। किसान दिन-रात एक चौकीदार की तरह अपने खेतों की फसलों की देखभाल में लगा रहता हैं।

हर दिन वह सुबह उठकर कड़ी मेहनत से खेतों में काम करता हैं, और देर रात तक अपने खेतों की रखवाली करते हुए सोता हैं। थोड़े आराम और खाना खाने के वक्त ही किसान अपने काम को थोड़ा आराम देते हैं। हमारी तरह वो चैन की नींद भी नहीं ले पाते है, और न ही अपने भाग्य पर निर्भर रहते हैं। किसान अपने कड़े परिश्रम पर भरोसा करता हैं, और किसी अन्य पर नहीं। वह मौसम के किसी भी परिस्थिति की परवाह किये बिना खेतों में कड़ी मेहनत से अपना काम करता हैं।

किसान सारे राष्ट्र को कई किस्मों के भोजन देने के बावजूद भी वह बहुत ही सरल भोजन करते हैं, और एक सादगी भरा जीवन जीते हैं। वो खेतों में उगाये अपनी फसलों को बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। अपनी अच्छी फसलों को बेचने के बावजूद भी उन्हें उनकी अच्छी कीमत नहीं मिलती है। यही छोटी सी कीमत ही उनके सालभर की मेहनत और उनकी कमाई के रूप में होती है।

किसान अपना पूरा जीवन फसलों को उगाने में लगा देते हैं और उनके मेहनत और परिश्रम का उचित फल भी नहीं मिल पाता। अपनी फसलों की अच्छी पैदावार के लिए वह साल भर उनकी देखभाल और मेहनत करने में लगा देते हैं, और धैर्यपूर्वक उस फसल के होने का इंतजार करते हैं। इस चक्र को वह बार-बार दोहराते हैं, पर उन्हें अपने मेहनत का सच्चा फल कभी भी नहीं मिल पाता।

भारत में किसानों की वास्तविक स्थिति

कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत को दुनिया में अन्नदाता के रूप में जाना जाता है। पूरी दुनिया में भारत की सराहना का श्रेय केवल हमारे किसानों को ही जाता है। किसान देश के ऐसे व्यक्ति के रूप में है जिनके कारण ही भारत को विश्व भर में कृषि प्रधान राष्ट्र के पहचान दिलाते हैं, पर वास्तविक रूप में किसान बहुत ही गरीब और पीड़ित अवस्था में रहने के लिए मजबूर हैं।

मुझे यह बताते हुए बड़ा दुःख हो रहा है कि भारत का किसान आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं। सारा दिन खेतों में मेहनत कर फसल उगाने वाला यही किसान बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे पाता हैं। हम सभी ने पैसे की कमी और कर्ज से दबे होने के कारण कई किसानों की आत्महत्या की खबरों के बारे में अवश्य ही सुना होगा। जो हमारे देश का अन्नदाता है, उसे अपने बच्चों की पढाई, उनकी शादी, खेती के बीज व घर में खाने के लिए साहूकारों और बैकों से सूत पर पैसे लेने पड़ते है।

उनका पूरा जीवन उन्हीं कर्ज को खत्म करने में ही बीत जाता है। हमारे समाज में सम्मानजनक किसानों की ऐसी स्थिति वास्तव में काफी चिंताजनक और दर्दनाक है। हमारी सरकार को उनके लिए यह अवश्य सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जिस सम्मान के वास्तविक रूप से वो हकदार हैं।

किसान हमारे लिए जरूरी क्यों हैं ?

देश के हर व्यक्ति के जीवन में किसान बहुत ही महत्त्व रखता हैं। कोई भी किसान के महत्त्व को नकार नहीं सकता। किसान हमारे जीवन में कितना महत्त्व रखते है मैंने निचे उसे सूचीबद्ध किया है।

  • राष्ट्र के खाद्य प्रदाता

किसान हमारे लिए विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों की आवश्यकता के अनुसार मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, इत्यादि करते हैं। इसके अलावा वो इन सभी चीजों को बाजारों में बेचने के लिए खुद ही जाते हैं। इस तरह किसान देश के हर व्यक्ति को भोजन प्रदान करते हैं। भोजन हर व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है।

हमें विभिन्न प्रकार के कार्य करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है जिससे की हमें ऊर्जा मिलती है। जब भी हमें भूख लगती है हमें भोजन की आवश्यकता होती है, और यह भोजन हमें केवल किसान ही उपलब्ध कराते हैं। लेकिन किसानों द्वारा उपलब्ध कराये गए भोजन के इस महान कार्य को हम कभी सराहना नहीं करते हैं।

  • राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान

विभिन्न प्रकार के अन्न, फल, फूल, सब्जी, मांस, इत्यादि अनेक प्रकार के भोजन किसानों द्वारा पैदा किये और बाजारों में बेचे जाते हैं। ये सभी चीजें राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान करते है। इन्हीं किसानों द्वारा उगाये फसलों व अन्य भोजनों के कारण ही भारत दुनिया भर में एक कृषि अर्थव्यवस्था के रूप में जानी जाती है।

देश के कृषि उत्पादन मुख्य रूप से हमारे राष्ट्र के अर्थव्यवस्था में अपना मूल योगदान देती है। इसके अलावा कृषि उत्पादों का विदेशों में निर्यात भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है। इस तरह से यह कहना गलत नहीं है कि किसान भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

  • लोगों के लिए एक प्रेरणा श्रोत

किसान स्वभाव से बहुत ही मेहनती, अनुशासित, समर्पित और सरल का होता हैं। किसान के जीवन में उसके हर क्षण का महत्त्व होता हैं, इसलिए वह अपने खेती का हर काम समय और सही ढंग से कर पाते हैं। यदि वो अपने जीवन में समय के पाबंद न रहे तो उन्हें खेती में उपज में कमी या फसलों की क्षति का सामना भी करना पड़ सकता हैं। वो हर बार अपने खेतों में कड़ी मेहनत करके फसल बोते हैं, और कई महीनों तक का लम्बा इंतजार करते हैं, जब तक की फसल पूरी तरह से पक न जाये। कृषि उत्पाद उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम है। एक किसान के ये सभी गुण हमें प्रेरणा देते हैं।

किसान देश के सभी लोगों के लिए अन्न का उत्पादन करता हैं। वे वही खाते हैं जो उनके पास बचा रह जाता है, इसलिए वो बहुत ही आत्मनिर्भर होते हैं। वो किसी और पर निर्भर हुए बिना जो उनके पास होता है उसी से अपने जीवन पालन करते है। वो किसी से मंगाते नहीं है इसलिए वो खुद में बहुत ही आत्मनिर्भर व्यक्ति होते हैं।

क्या किसानों की स्थिति वाकई दयनीय है ?

हम सभी के लिए किसान कितना महत्वपूर्ण है इसके बारे में सभी जानते है। भारत में किसानों की हालात खराब है। यह सुनना वास्तव में बहुत निराशाजनक है। भारत एक कृषि उत्पादक वाला देश है, जो हमारी अर्थव्यवस्था के जी.डी.पी. में 15% का योगदान देता है। इसको देखते हुए किसानों का देश की उन्नति में एक बहुत बड़ा योगदान हैं, और यदि किसानों के हालात खराब है तो यह बहुत दुख और उल्लेखनीय विषय हैं। भारत में किसानों द्वारा आज भी पुरानी कृषि तकनीक अपनाई जाती है।

सरकार को किसानों को खेती के आधुनिक तरीकों के बारे में बताने और उन्हें अपनाने को किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता हैं। जिससे उनकी उपज अधिक हो और उनकी मेहनत भी कम लगे। इससे किसानों के सामने आने वाली वित्तीय संकट से निपटने में उन्हें मदद मिलेगी। सरकार को उनके हित के लिए कई नए कार्यक्रमों और नीतियों का गठन करने की आवश्यकता हैं। जो देश भर के किसानों को लाभान्वित कर सकें। इससे हर किसानों की वर्तमान स्थिति में काफी सुधार आ सकता हैं।

किसानों के कार्य, खेती के गुण, उनके समर्पण की भावना उन्हें समाज का एक सम्माननीय व्यक्ति बनाते हैं। खेतों से जो भी उन्हें प्राप्त होता है उसे ही बेचकर वो साल भर अपना और अपने परिवार का गुजरा करते है और उसी में वो खुश और संतुष्ट रहते हैं। हमारे देश में कई ऐसे महान नेता हुए जिन्होंने किसानों के उत्थान के लिए सराहनीय कदम उठाये है, इस क्रम में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को कभी भुलाये नहीं जा सकते हैं। ये किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते थे। इसलिए इन्होंने किसानों के वास्तविक मूल्य को समझा और उनके हित में कई सराहनीय कदम भी उठाये जो आज तक उन्हें लाभान्वित करती हैं।

Essay on Why are Farmers Important

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किसान पर निबंध - Kisan Essay in Hindi - Kisan Par Nibandh - Essay on Kisan in Hindi Language

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रुपरेखा : किसान - किसान की दिनचर्या - किसान की सेवा निष्काम - भारतीय कृषक कर्मयोगी और धार्मिक - किसान की कमजोरियाँ - उपसंहार।

'किसान' कठोर परिश्रम, त्याग और तपस्वी जीवन का दूसरा नाम है। किसान का जीवन कर्मयोगी की भाँति मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की साधना में लीन रहते है। वीतराग संन्यासी की भाँति उसका जीवन परम संतोषी है। तपती धुप, कंडकती सर्दी और घनघोर वर्षा में तपस्वी की भाँति वह अपनी साधना में अडिग रहते है। सभी ऋतुएँ उसके सामने हँसती-खेलती निकल जाती हैं और वह उनका आनंद लेते है। यह उनकी जीवन की विशेषता है। सृष्टि का पालन विष्णु भगवान् का कार्य है । मानव-समाज का पालन किसान का धर्म है। इसीलिए कहते है की, किसान में हम भगवान् विष्णु के दर्शन कर सकते हैं। प्राणिमात्र के जीवन को पालने वाले किसान का तपस्या -पूर्ण त्याग, अभिमान रहित उदारता, थकान रहित परिश्रम उनके जीवन के अंग हैं। उसमें सुख की लालसा नहीं होती। कारण, दुःख उनका जीवन साथी है। संसार के प्रति अनभिज्ञता और अज्ञानता से उसमें आत्म-ग्लानि नहीं होती, न दरिद्रता में दीनता का भाव-बोध होता है। यही उनके जीवन के गुण हैं।

किसान अहर्निश कर्म-रत रहता है। वह ब्राह्म-मुहूर्त में उठता है, पुत्र सम बैलों को भोजन परोसता है, स्वयं हाथ-मुँह धो, हल्का नाश्ता कर कर्मभूमि 'खेत' में पहुँच जाता है । जहाँ सवेरे की किरणें उसका स्वागत करती हैं। वहाँ वह दिनभर कठोर परिश्रम करेगा। स्मान-ध्यान, भजन- भोजन, विश्राम, सब कुछ कर्मभूमि पर ही करेगा। साँझ के समय अपने बैलों के साथ हल सहित घर लौटते है। धन्य है किसान का ऐसा कर्मयोगी जीवन। चिलचिलाती धूप, पसीने से तर शरीर, पैरों में छाले डाल देने वाली तपन, उस समय सामान्य जन छाया में विश्राम करता है, किन्तु उस महामानव किसान को यह विचार ही नहीं आता कि धूप के अतिरिक्त कहीं छाया भी है। मूसलाधार वर्षा हो रही है, बिजली कड़क रही है, भयभीत जन-गण आश्रय ढूँढ रहा है, किन्तु यह देवता-पुरुष कर्मभूमि में अपनी फसल को रक्षा में संलग्न है। वरुण देवता की ललकार का सामना कर रहा है। वाह रे साहसिक जीवन। प्रकृति के पवित्र वातावरण और शुद्ध वायुमण्डल में रहते हुए भी वह दुर्बल है, किन्तु उनकी हड्डियाँ वज् के समान कठोर हैं। शरीर स्वस्थ है, व्याधि से कोसों दूर है। रात-दिन के कठोर जीवन में मनोरंजन के लिए स्थान कहाँ ? रेडियो पर सरस गाने-सुनकर, यदा-कदा गाँव में आई भजन-मण्डली के गीत सुनकर या कचहरी की तारीख भुगतने अथवा आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए शहर आने पर चलचित्र देखने में ही उसका मनोरंजन मुमकिन है । जहाँ किसान अपेक्षाकृत समृद्ध है, वहाँ दूरदर्शन भी मनोरंजन का साधन है।

किसान पक्का स्वार्थी होता है, इसमें सन्देह नहीं । उनकी गाँठ से रिश्वत के पैसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं, भाव-ताव में भी वह चौकस होते है। वह किसी के फुसलाने में नहीं आते। दूसरी ओर उसका सम्पूर्ण जीवन प्रकृति का प्रतिरूप है। वृक्षों से फल लगते हैं, उन्हें आम जनता खाती है। खेती में अनाज होता है यह संसार के काम आता है । गाय के थन में दूध होता है वह दूध नहीं पीता बल्कि दूसरे ही उसे पीते हैं। इसी प्रकार किसान के परिश्रम की कमाई में दूसरों का साझा है, अधिकार है। उनके स्वार्थ में परमार्थ है और उसकी सेवा निष्काम है।

एक ओर भारतीय कृषक कर्मयोगी है, दूसरे और धर्मभीरु अथवा धार्मिक भी है। गाँव के पंडित उनके लिए भगवान् का प्रतिनिधि है । उनकी नाराजगी उनके लिए अभिशाप है । इस शाप-भय ने इहलोक में उसे नरक भोगने को विवश कर रखा है । तीसरी ओर, वह कायदे-कानून से अनजान भी है, तो साहूकार अथवा बैंक का कर्जदार भी है निम्न वर्ग का किसान कर्ज में जन्म लेता है, साहूकारी-प्रथा में जीवन-भर पिसता है और कर्ज में डूबा ही मर जाता है। उनकी मेहनत की कमाई पर ये नर-गिद्ध ऐसे टूटते हैं कि उनका सारा माँस नोंच- नोंच कर उसे ठठरी बना देते हैं । ब्याज का एक-एक पैसा छुड़ाने के लिए वह घंटो म्हणत करते है।

इस तपस्वी के जीवन की कुछ कमजोरियाँ भी हैं। अशिक्षा के कारण बातों-बातों में लड़ पड़ना, लट्ट चलाना, सिर फोड़ना या फुड़वा लेना; वंशानुबंश शत्रुता पालना, किसी के खेत जलवा देना, फसल कटवा देना, जनता के प्रहरी पुलिस से मिलकर षड्यन्त्र रचना, मुकदमेबाजी को कुल का गौरव मानकर उस पर नेतहाशा खर्च करना, ब्याह-शादी में चादर से बाहर पैर पसारकर झूठी शान दिखाना, इसके जीवन के अंधेरे पल को प्रकट करने वाले तत्त्व हैं।

आज भारतीय किसान का जीवन संक्रमण काल से गुजर रहा है। एक ओर वह शिक्षित हो गया है, खेती के लिए नये उपकरणों और सघन खेती करने के साधनों का प्रयोग करता है। जिससे आर्थिक सम्पन्नता की ओर आगे है। रहन-सहन में नागरिकता की स्पष्ट छाप उसके जीवन पर प्रकट हो रही है, तो दूसरी ओर उसमें अनुशासनहीनता व उद्ण्डता और बेईमानी, चालाकी और आधुनिक जीवन की विषमताएँ, कुसंस्कार और कुरीतियाँ घर कर रही हैं । अब उसके बेटे-पोते किसानी से नाता तोड़कर बाबू बनने लगे हैं । खेतों की सुगंध युक्त हवा में उन्हें धूल अधिक दिखाई देने लगी है, जिससे वस्त्र खराब होने का भय है। इस कठोर परिश्रमी, धर्मभीरु और स्वाभिमानी भारतीय कृषक का जीवन भविष्य में किन विचिन्न प्राराओं में प्रवाहित होगा, यह कहना कठिन है। जिस दिन देश के किसानों के जीवन से परेशानी समाप्त होगी वह दिन सभी किसानों के लिए गौरव तथा प्रसन्नता का दिन होगा।

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भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Bhartiya Kisan in Hindi

By: savita mittal

भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

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गांधी कहते थे–“ भारत का हृदय गांवों में बसता है , गाँवों की उन्नति से ही भारत की उन्नति सम्भव है। गाँवों सेवा और परिश्रम के अवतार ‘कृषक’ रहते हैं।” वास्तविकता भी यही है कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की घरी है। की कुल श्रमशक्ति का लगभग 61% भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका चलाता ब्रिटिशकाल में भारतीय कृषक अंग्रेजों एवं जमींदारों के अत्याचारों से परेशान एवं बेहाल थे।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में अधिक सुधार हुआ, किन्तु जिस प्रकार कृषकों के शहरों की ओर पलायन एवं उनकी आत्महत्या की सुनने को मिलती है, उससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी स्थिति में आज भी अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है। स्थिति विकट हो चुकी है कि कृषक अपने बच्चों को आज कृषक नहीं बनाना चाहते।

कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई ये पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक है। “” सी में पचासी जन यहाँ निर्वाह कृषि पर कर रहे, पाकर करोड़ों अर्द्ध भोजन सर्द आहे भर रहे। जब पेट की ही पड़ रही, फिर और की क्या बात है, ‘होती नहीं है भक्ति भूखे’ उक्ति यह विख्यात है।”

विश्व के महान् विचारक सिसरो ने भी कहा है-“किसान मेहनत करके पेड़ लगाते हैं पर स्वयं उन्हें ही उनके फल लब नहीं हो पाते।” निःसन्देह खून-पसीना एक कर दिन-रात खेतों में मेहनत करने वाले कृषकों का जीवन अत्यन्त उठोर व संघर्षपूर्ण है। अधिकतर भारतीय कृषक निरन्तर घटते भू-क्षेत्र के कारण गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे 1 दिन-रात खेतों में परिश्रम करने के बाद भी उन्हें तन ढकने के लिए समुचित कपड़ा नसीब नहीं होता।

सर्दी हो या गर्मी, हर हो या बरसात उन्हें दिन-रात बस खेतों में ही परिश्रम करना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें फसलों से उचित आय नहीं हत हो पाती। बड़े-बड़े व्यापारी कृषकों से सस्ते मूल्य पर खरीदे गए खाद्यान्न, सब्जी एवं फलों को बाजारों में ऊँची दरी हरेच देते हैं। इस प्रकार, कृषकों का श्रम लाभ किसी और को मिल जाता है और वे अपनी किस्मत को कोसते हैं।

किसानों की ऐसी दयनीय स्थिति का एक कारण यह भी है कि भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है और मानसून की निश्चितता के कारण प्राय: कृषकों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। समय पर सिंचाई नही होने के कारण भी उन्हें आशानुरूप फसल की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की कंमतों में वृद्धि के कारण कृषकों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है तथा उनके सामने दो वक्त की रोटी की समस्या जुड़ी हो गई है। कृषि में श्रमिकों की आवश्यकता सालभर नहीं होती, इसलिए वर्ष के लगभग तीन-चार महीने कृषकों को बाली बैठना पड़ता है। इस कारण भी कृषकों के गाँवों से शहरों की ओर पलायन में वृद्धि हुई है।

Indian Farmer Essay in Hindi

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देश के विकास में कृषकों के योगदान को देखते हुए कृषकों और कृषि क्षेत्र के लिए कार्य योजना का सुझाव देने हेतु वर्ष 2004 में डॉ. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषक आयोग’ का गठन किया गया। वर्ष 2006 में आयोग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कृषकों के लिए एक विस्तृत नीति के निर्धारण की संस्तुति की गई। इसमें कहा गया किसरकार को सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कृषकों को विशेषत: वर्षा आधारित कृषि वाले क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य उचित समय पर प्राप्त हो सके।

राष्ट्रीय कृषक आयोग की संस्तुति पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषक नीति, 2007 की घोषणा की । इसमें कृषकों के कल्याण एवं कृषि के विकास के लिए अनेक बातों पर बल दिया गया है। इसमें कही गई बातें इस प्रकार है-सभी कृषिन्न उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाए। मूल्यों में उतार-चढ़ाव से कृषकों की सुरक्षा हेतु मार्केट रिस्क स्टेबलाइजेशन फण्ड की स्थापना की जाए।

सुखे एवं वर्षा सम्बन्धी विपत्तियों से बचाव हेतु ‘एग्रीकल्चर रिस्क पण्टु स्थापित किया जाए। सभी राज्यों में राज्यस्तरीय किसान आयोग का गठन किया जाए। कृषकों के लिए बीमा योजना का विस्तार किया जाए। कृषि सम्बन्धी मामलों में स्थानीय पंचायतों के अधिकारों में वृद्धि की जाए। राज्य सरकारों द्वारा कृषि हेतु अधिक संसाधनों का आवण्टन किया जाए।

प्राय: यह देखा जाता था कि कृषकों को फसलों, खेती के तरीकों एवं आधुनिक कृषि उपकरणों के सम्बन्ध में उचित जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण खेती से उन्हें उचित लाभ नहीं मिल पाता था। इसलिए कृषको को कृषि सम्बन्धी • बातों की जानकारी उपलब्ध कराने हेतु वर्ष 2004 में किसान कॉल सेण्टर की शुरुआत की गई। इसके अतिरिक्त कृषि सम्बन्धी कार्यक्रमों का प्रसारण करने वाले ‘कृषि चैनल’ की भी शुरुआत की गई है।

केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण विकास बैंक के माध्यम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘रूरल नॉलेज सेण्टर्स’ की भी स्थापना की है। इन केन्द्रों में आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व दूरसंचार तकनीक का उपयोग किसानों को बांछित जानकारियाँ उपलब्ध कराने के लिए फेंक जाता है।

कृषकों को वर्ष के कई महीने खाली बैठना पड़ता है, क्योंकि वर्षभर उनके पास काम नहीं होता। इसलिए ग्रामीण लोगों को गाँव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम के अन्तर्गत, 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का शुभारम्भ किया गया। 2 अक्टूबर, 2009 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MANREGA) का नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (MANREGA) कर दिया गया है।

यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक वयस्क सदस्य को वर्ष में कम-से-कम 100 दिन के रोजगार की गारण्टी देता है। इस अधिनियम में इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि इसके अन्तर्गत 33% लाभ महिलाओं को मिले।

इस योजना से पहले भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की गई थी, किन्तु उनमें भ्रष्टाचार के मामले अत्यधिक उजागर हुए। अतः इससे बचने के लिए रोजगार के इच्छुक व्यक्ति का रोजगार-कार्ड बनाने का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत जो रोजगार कार्ड जारी करती है, उस पर उसकी पूरी जानकारी के साथ-साथ उसका फोटो भी लगा होता है। पंजीकरण कराने के 15 दिनों के भीतर रोजगार न मिलने पर निर्धारित दर से सरकार द्वारा बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाता है।

रोज़गार के इच्छुक व्यक्ति को पाँच किलोमीटर के दायरे के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। यदि कार्यस्थल पाँच किलोमीटर के दायरे से बाहर हो, तो उसके स्थान पर अतिरिक्त भत्ता देने का भी प्रावधान है। कानून द्वारा रोजगार की गारण्टी मिलने के बाद न केवल ग्रामीण विकास को गति मिली है, बल्कि ग्रामीणों का शहर की ओर पलायन भी कम हुआ है। आज कोबिड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है, लेकिन मनरेगा इस सकट से उबारने के लिए प्रभावशाली भूमिका अदा कर रही है।

कृषकों को समय-समय पर धन की आवश्यकता पड़ती है। साहूकार से लिए गए ऋण पर उन्हें अत्यधिक ब्याज देना पड़ता है। कृषकों की इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उन्हें साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए वर्ष 1998 में ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ योजना की भी शुरुआत की गई। इस योजना के फलस्वरूप कृषकों के लिए वाणिज्यिक बैंको क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों से त्राण प्राप्त करना सरल हो गया है। वर्ष 2016 में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने को राहत पहुँचाने की दिशा में यह एक निर्णायक एवंसक प्रधानक चहल है। इसी प्रकार कृषकों के हितों को ध्यान में रखते हुए क 2019 में प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की गई है।

अर्थव्यवस्था को सही अर्थों में प्रगति की राह पर अग्रसर कर सकेंगे और तभी डॉ. रामकुमार वर्मा की ये पंक्तियाँ सार्थक सिद्ध होगी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इसलिए अर्थव्यवस्था में सुधार एवं देश की प्रगति के लिए किसानों की प्रगति है। इस सन्दर्भ में प्रो. मूलर की कही बात महत्त्वपूर्ण है- “भारत की दीर्घकालीन आर्थिक विकास की लड़ाई कृषकद्वारा जीती या हारी जाएगी।”

केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई विभिन्न प्रकार की योजनाओं एवं नई कृषि नीति के फलस्वरूप कृषको की स्थिति में सुधार हुआ है, किन्तु अभी तक इसमें सन्तोषजनक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। आशा है विभिन्न प्रकार के सरकारी प्रयासों एवं योजनाओं के कारण आने वाले वर्षों में कृषक समृद्ध होकर भारतीय “सोने चाँदी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार, हे ग्राम देवता नमस्कार”।

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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भारतीय किसान पर निबंध Essay On Indian Farmer In Hindi And English

नमस्कार दोस्तों आज हम भारतीय किसान पर निबंध Essay On Indian Farmer In Hindi And English पढ़ेगे. भारत के किसान के जीवन, उनकी समस्याएं महत्व आदि पर आधारित सरल भाषा में हिंदी और अंग्रेजी में इंडियन फार्मर पर शोर्ट निबंध यहाँ दिया गया हैं.

Essay On Indian Farmer In Hindi & English-भारतीय किसान पर निबंध

भारतीय किसान पर निबंध Essay On Indian Farmer In Hindi And English

Indian farmer essay In English & Hindi Language:-  our country’s economy is agriculture-based. so for the development, India must be a focus on Indian farmers and help them by the government.

Essay On Indian Farmer In Hindi describe short information about our farmer condition in modern India.

whats Indian farmer’s problems? why they suicide in large number every year, in some states.  

Essay On Indian Farmer In Hindi And English helps to students they read in class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9. children and kids improve their knowledge about Indian farmers in Hindi by reading this various length essay 100, 150, 200, 250, 300, 400 and 500 words essay.

Essay On Indian Farmer In English

a farmer is a very useful person in our life. he meets our basic needs of life. he grows corn to eat and cotton for clothes to wear.

he groves many things on his farms and send them to us. he does a valuable service silently. he is the backbone of society.

he is a very simple man. he is simple in the dress. he is good at heart. he wears hand-woven clothes and handmade shoes. he lives in kachchahuts. he is true to the picture of Indian culture.

his life is very hard. he works from morning till evening. he knows no rest. whether it is scorching heat or biting cold, he works in the field.

he plows the fields, sows the seeds and waters in the fields. he removes the weeds. he looks after the crops. he is happy to see his ripe crops.

he reaps the crops and thrashes them. then he sells the corn in the market and thus earns his livelihood. but his labor is dependent upon nature. nature is sometimes cruel to him.

he is illiterate. he is easily duped by money lenders. his condition is miserable. the government is doing a lot to improve the condition of the farmers. the future of India depends upon farmers. so the government must do a lot of them.

Essay On Indian Farmer In Hindi

किसान हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भारतीय किसान देश के सवा सौ करोड़ लोगों की मुलभुत आवश्यकताओं को पूरा करता है.

यह हमारे लिए पहनने का कपड़ा बनाने के लिए कपास, खाने के लिए चावल, बाजरा, मक्का, गेहू जैसे फसलें उगाता है. तथा इसे हम तक पहुचाता है.

राष्ट्र के विकास के लिहाज से किसान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. किसान ही हमारे देश व समाज की रीढ़ की हड्डी है, जिनकें बल पर हमारी अर्थव्यवस्था खड़ी है.

भारतीय किसान बेहद साधारण व सरल इंसान के रूप में जीवन जीता है, उनका दिल सभी के लिए अच्छा होता है. यह हस्त निर्मित जूते एवं कपड़े उपयोग में लेता है. किसान का घर कच्चा होता है. भारतीय संस्कृति का असली स्वरूप गाँवों के किसान के जीवन में आज भी जिन्दा है.

इसका जीवन बेहद मुश्किलों से भरा होता है, किसान सुबह से शाम तक अपने खेत में निरंतर काम करता है. सर्दी, गर्मी हो या खराब मौसम सभी हालातों में किसान अपनी लग्न व मेहनत से खेत में लगा रहता है.

बारिश के होते ही, वह अपने खेत को बोता है तथा फसल की देखरेख करने के लिए खरपतवार हटाता है. इनकों सबसें अधिक खुशी लहलहाती फसलों को देखकर ही होती है.

फसल के पकने के साथ ही किसान इसकी कटाई करता है. तत्पश्चात इसकी थ्रेसिंग कर बाजार में बेच देता है. तब जाकर उसे अपनी आजीविका चलाने का कुछ सहारा मिलता है.

भारतीय किसान एवं कृषि मानसून पर आधारित है. कई बार अकाल या प्राकृतिक प्रकोप के कारण उनके मेहनत बेकार भी चली जाती है, तथा सारी फसल सूख जाती है.

भले ही किसान अधिक पढ़ा लिखा न हो, मगर वह अपना हिसाब किताब अच्छी तरह से रखता है. आज के समय में किसानों की स्थति बेहद खराब है. सरकारे इनके हालत में सुधार के लिए प्रयत्न भी कर रही है.

भारत का भविष्य हमारे किसान पर निर्भर करता है, इसलिए हमारी सरकार को किसानों के लिए और कुछ करने की आवश्यकता है. ताकि किसान की स्थति में कुछ सुधार आ सके.

  • भारतीय किसान पर कविता
  • किसान की आत्मकथा पर निबंध
  • किसान पर शायरी, कोट्स और स्टेटस

आशा करता हु, मित्रों  Essay On Indian Farmer In Hindi And English भारतीय किसान पर निबंध यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा.  Indian Farmer Essay  में दी गईं जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे.

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Hindi Yatra

4+ किसान की आत्मकथा पर निबंध – Kisan ki Atmakatha

Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi : दोस्तों आज हमने किसान की आत्मकथा पर निबंध  कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है.

हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है इसलिए यह देश किसानों का देश है आज हमने एक किसान की आत्मकथा लिखी है कि वह अपने जीवन में क्या करता है और क्या सोचता है.

Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi

Best Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi for Student

Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi

मैं एक किसान हूं मेरा जन्म इस धरती पर रहने वाले प्राणियों के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए हुआ है. मेरा जीवन बहुत कठिन है लेकिन फिर भी मैं इस जीवन में छोटी-छोटी खुशियां ढूंढ कर खुशहाली से रहता हूं. मैं अन्य लोगों से पहले सुबह उठकर खेतों में चला जाता हूं.

खेत केवल एक जमीन का टुकड़ा नहीं है यह मेरा जीवन है इनके बिना मैं एक पल जीवन यापन नहीं कर सकता हूं जिस प्रकार आप अपनी संतान को खूब लाड प्यार करके उसे अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा इंसान बनाते है उसी प्रकार मैं अपने खेतों की बंजर भूमि को निराई गुड़ाई करके उपजाऊ बनाता हूं.

मैं सुबह से लेकर शाम तक खेतों में काम करता हूं. मौसम चाहे कैसा भी हो मुझे हर वक्त कार्य करते रहना पड़ता है. गर्मियों की चिलचिलाती धूप में काम करना आसान नहीं होता लेकिन फिर भी मैं कठिन परिश्रम करता हूं मेरा पसीना किसी झरने की तरह मस्तक से पांव की ओर बहता रहता है.

दिन भर धूप में चलने के कारण मेरे पैर बंजर भूमि के समान फट जाते है एक फटी दरारों में बहुत असहनीय दर्द होता है

लेकिन मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं रहती है क्योंकि मुझे पता है मेरी बहाई गई पसीने की एक एक बूंद मेरे जीवन में खुशियां भर देगी. जब सर्दियों का मौसम आता है तो बहुत कड़ाके की ठंड पड़ती है उस समय सब लोग रजाई ओढ़ कर घरों में सोते रहते है.

लेकिन मैं खेतों में जाकर रात भर आवारा जानवरों से अपनी फसल की रक्षा करता हूं और फसल को पानी देता हूं. कभी-कभी तो मुझे तेज बुखार होती है लेकिन इस पापी पेट के आगे बुखार भी नरम पड़ जाती है. मेरे जीवन का ज्यादातर समय खेतों में ही बीत जाता है.

पुराने जमाने में मेरी स्थिति अच्छी थी मैं दो वक्त का भोजन जुटा लेता था लेकिन वर्तमान मैं मेरी स्थिति और भी खराब हो गई है.

आज फसल बोने के लिए बीज का मूल्य भी अधिक हो गया है और खाद तो देखने को भी नहीं मिलती फिर भी मैं इन सब को खरीदने के लिए इधर-उधर से उधार लेकर बड़ी मुश्किल से बीज और खाद लेकर आता हूं. फिर दिन रात लगकर खेतों की भूमि को उपजाऊ बनाता हूं.

बारिश के आने से पहले खेतों में बीज बो देता हूं हर दिन जा कर देखता हूं कि बीज अंकुरित हुए कि नहीं जिस दिन किसी बीच में से छोटी-छोटी पत्तियां निकलती हैं उस दिन मुझे बहुत अच्छा लगता है उसी दिन से मैं उनका ख्याल अपनी संतान से बढ़कर रखता हूं.

लेकिन मेरी किस्मत इतनी खराब है कि कभी बारिश आती ही नहीं तो कभी इतनी अधिक हो जाती है कि मेरी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है.

फसल बर्बाद होने के कारण मेरे परिवार का भरण पोषण नहीं हो पाता है हमारी जिंदगी भिखारी से भी बदतर हालत हो जाती है. लेकिन मन में कहीं ना कहीं आस रहती है कि अगली फसल अच्छी होगी इसलिए मैं फिर से मेहनत करता हूं.

फिर वह दिन आ ही जाता है जिस दिन मेहनत रंग लाती है और फसल अच्छी होती है खेतों में लहराती फसल को देखकर मुझे इतनी खुशी होती है जितनी कि किसी को स्वर्ग में जाकर भी नहीं होगी. खेतों में लहराती हुई फसल को हरा सोना भी कहते है लेकिन मेरे लिए तो यह है स्वर्ण सोने से भी बढ़कर है.

संसार भर के लोग मुझे अन्नदाता कहते है लेकिन मेरी मुश्किलों में मेरा साथ नहीं देते मैं यह नहीं कहता कि मेरे साथ आकर खेतों में काम करो लेकिन जब मेरी फसल खराब हो जाती है तो मुझे मुआवजा तक नहीं मिलता और ऊपर से महाजनो और बैंकों का ब्याज मेरे ऊपर पहाड़ बनकर टूट पड़ता है.

तंगहाली से तंग आकर पूरी जिंदगी भर जिस खेत को मैंने अपनी संतान से भी बढ़कर प्यार किया उपजाऊ बनाया आज उसी को बेचना पड़ रहा है यह मेरे जीवन का अत्यंत कठिन पल है लेकिन मैं और कर भी क्या सकता हूं मैं अपने परिवार को लोगों के ताने सुनते और भूखा नहीं देख सकता हूं.

राजनीतिक पार्टियां हर बार हमारी सहायता करने के लिए वादे तो करती है लेकिन कभी भी साथ खड़ी नजर नहीं आती है. वे तो हमारी तंगहाली पर अपनी राजनीति की रोटियां सेकते है. बात यहीं पर खत्म नहीं होती जब हम अपना हक मांगने जाते हैं तो जिन्होंने हमारे साथ खड़े होने का वादा किया था वही लोग हमारे ऊपर लाठी चार्ज करवाते है.

चलो हम यह सब सह लेते हैं लेकिन कभी कभी हमारी जमीन पर बड़े-बड़े भू माफियाओं की नजर रहती हैं वे हमारी भूमि पर कब्जा कर लेते है और वहां पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और फैक्ट्रियां लगा देते है.

मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि अगर किसी को बिल्डिंग और फैक्ट्री लगानी है तो उपजाऊ भूमि का अधिकरण क्यों करते है फैक्ट्रियां और बिल्डिंग तो बंजर भूमि पर भी बन सकती है फिर हमारे पेट पर लात क्यों मारी जाती है.

मैं मुश्किलों और मेहनत करने से नहीं घबराता मेरा खेतों मेहनत करना मैं ईश्वर की पूजा करना मानता हूं क्योंकि जो व्यक्ति किस्मत से हार कर बैठ जाता है उसका साथ सब छोड़ देते हैं फिर ईश्वर भी इसमें क्या कर सकता है.

इसलिए मैं हर वक्त मुश्किलों से लड़ता रहता हूं और निरंतर अपना कार्य करता रहता हूं जिसे पूरी दुनिया का भरण पोषण होता रहता है.

मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मुश्किल घड़ी में आप भी मेरे साथ खड़े हो क्योंकि अगर आप हमारे साथ नहीं खड़े होंगे तो वह दिन दूर नहीं जब आप सब लोग बिना किसानों के रोटी-रोटी को मोहताज हो जाओगे.

शिक्षा –

किसान के जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी कठिनाइयों से घबराकर अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटना चाहिए एक किसान की तरह बार-बार लगन से मेहनत करनी चाहिए फिर आपको जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है.

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10 thoughts on “4+ किसान की आत्मकथा पर निबंध – Kisan ki Atmakatha”

Very nice Essay for students Give your best in all essays like this one also

Rat na hoti to insan so kese sakte he aur din se aachi rat hoti he subeh he lekar sham tak kam karke rat ko sone ka maja 1 aalg hi he

बहुत अच्छा निबंध है

अर्जुन देडगे जी सराहना के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद, ऐसे ही हिंदी यात्रा पर आते रहे

Ye eassy bahut accha hai thanks home share krne ke liye

welcome Shaikh nishat, hidni yatra par aise hi aate rahe.

क्या आप यदि रात ना होती पर कोई निबंध लिख सकते हे

Malti ahire हम जल्द ही “यदि रात ना होती” पर निबंध लिखेंगे, आप हिंदी यात्रा वेबसाइट पर आते रहे.

nice stories very intresting

thank you ravi

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Bhartiya Kisan par Nibandh | भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में

Bhartiya Kisan par Nibandh

Bhartiya Kisan par Nibandh में हम आपको बतायेंगे भारतीय किसान की छवि और महत्व. किसान की दुर्दशा के कारण और कैसे हम किसानों की दशा में सुधार कर सकते हैं . Essay in Hindi ऐसी गद्य रचना है जिसमें किसी विषय पर सीमित आकार के भीतर सुंदर ढंग से क्रमबद्ध विचार प्रकट करने का प्रयत्न किया गया हो.

Bhartiya Kisan par Nibandh

कृषक – संस्कृति – गांधी जी कहा करते थे – ‘भारत की संस्कृति कृषक संस्कृति है……..भारत का ह्रदय गांवों में बसता है. गांवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं. ये किसान नगरवासियों के अन्नदाता हैं, सृष्टिपालक हैं.’ सादगी को महत्व – भारतीय किसान सीधा – सादा जीवनयापन करता है. सादगी का यह गुण उसके तन से ही नहीं, मन से भी झलकता है. सच्ची बात को सीधे-सादे शब्दों में कहना उसका स्वभाव है. पश्चिमी जीवन – भारतीय किसान बड़ा कठोर जीवन जीता है. वह धरती की छाती को अपने परिश्रम के जल से सींचता है. गर्मी की लु, सर्दी की ठंडी रातें, वर्षा की उमड़ती – घुमड़ती घटाएं उसका रास्ता रोकती हैं. किंतु वह किसी की परवाह नहीं करता. हर मौसम में अविचल रहकर कर्म करना उसका स्वभाव है. हष्ट – पुष्ट – किसान शरीर से हष्ट पुष्ट रहता है. माँ धरती और प्रकृति की गोद में खेलने के कारण न उसे बीमारियां घेरती हैं, न मानसिक परेशानियां. गरीबी – भारत के अधिकांश किसान गरीबी में जीते हैं. उनके पास थोड़ी जमीन है. छोटे किसान दिन भर मेहनत करके भी भरपेट खाना नहीं कमा पाते. उनके पास खेती के उन्नत साधनों का अभाव रहता है. किसान की दुर्दशा के कारण – अधिकांश किसान निरीक्षण हैं. अज्ञान के कारण अंधविश्वासों में आस्था रखते हैं. परिणामस्वरूप उनका परिवार बढ़ता जाता है और जमीन कम होती जाती है. किसान के अज्ञान के कारण ही व्यापारी लोग उन्हें आसानी से लूट लेते हैं. किसानों की दशा में सुधार – किसान की दशा में सुधार लाने के अनेक उपाय हैं. किसी को बैंक, सरकार तथा सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा मदद दी जाए. किसानों को उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक सस्ते दामों पर उपलब्ध कराए जाएं. उनके बच्चों को सस्ती शिक्षा भी दी जाए. उनके उत्पादन को ऊंचे दामों पर बेचने का प्रबंध किया जाए. सौभाग्य से भारत की सरकार यह कदम उठा रही है. अब तो हर गरीब किसान के खाते में 6000 रु. प्रतिवर्ष देने की व्यवस्था भी मोदी जी ने कर दी है. अतः आशा है, आज का अन्नदाता किसान कल स्वयं भी खुशहाल होगा.

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भारतीय किसान पर निबंध – Essay On Bhartiya Kisan In Hindi

नमस्कार प्यारे दोस्तों, स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट में। आज के इस पोस्ट में हम भारत के मेहनती किसानों के बारे में बात करेंगे। किसान खेतों में न केवल अपने लिए बल्कि, देश के सभी लोगों के लिए फसलें लगाकर दिन-रात मेहनत करते हैं।

इसीलिए आज के अपने लेख में हम आपके लिए भारतीय किसानों के बारे में एक अच्छा और सरल लेख लेकर आए हैं। हम आशा करते हैं कि इस निबंध को पढ़ने के बाद आप निश्चित रूप से भारतीय किसानों को जानने में सक्षम होंगे।

इस पोस्ट के माध्यम से आप जान पाएंगे की किसान कौन है, आज भारतीय किसान की क्या स्थिति है, भारतीय किसानों की क्या समस्याएं हैं, भारतीय किसान किस प्रकार अपना जीवन यापन कर रहे हैं तथा किसान हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

इस पोस्ट में आपको भारतीय किसान पर कई  निबन्ध  दिए गए है जैसे  भारतीय किसान पर निबंध 100 शब्दों में, Essay On Indian Farmer In Hindi 300 words, Bhartiya Kisan par nibandh 500 शब्दों में तथा भारतीय किसान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर  इत्यादि।

भारतीय किसान पर निबंध 100 शब्दों में

भारतीय किसान हमारे देश की रीढ़ है। वे हमें और हमारे परिवारों को खिलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वे ही हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारी थाली में हर दिन भोजन हो। वे वे हैं जो दिन-रात खेतों में मेहनत करते हैं, हर तरह के मौसम में, हमें जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन लाने के लिए।

उनके बिना, हम खो जाएंगे। हम जीवित नहीं रह पाएंगे। वे हमारे देश के गुमनाम नायक हैं। और हम उनका सब कुछ एहसानमंद हैं। खेतों में काम करने के बाद भी किसान चिलचिलाती धूप से परेशान नहीं होता हैं। इसी तरह किसान भारी बारिश और ठंड के मौसम के बावजूद अपना कृषि कार्य जारी रखता है। किसान के जीवन में कोई आराम नहीं है।

भारतीय किसान पर निबंध 300 शब्दों में

त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। वह जीवन भर मिट्‌टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है । किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है । वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है ।

किसान हमें भोजन देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर रहे हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता शहरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक स्पष्ट है। वह दिन भर कड़ी मेहनत करता है। वह प्राय: नहाता और भोजन आदि खेतों में ही करता है। संध्या के समय वह हल को अपने कंधों पर लादकर बैलों को हांकता हुआ घर लौटता है।

अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज में व्याप्त कुरीतियां उसके साथी हैं । सरकारी नौकर, बड़े जमींदार, बिचौलिए और व्यापारी उसके दुश्मन थे जिन्होंने जीवन भर उसका शोषण किया। आज भी वह जमींदारों के शोषण से मुक्ति पाकर आजादी पाकर पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। आज भी 20 या 25 प्रतिशत किसान दो समय के भोजन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शरीर ढकने के लिए कपड़े नहीं है। जर्जर मकान और टूटी हुई झोपड़ियाँ आज भी उनके महल हैं।

आजादी के बाद किसानों के जीवन में कुछ खुशियां लौटीं हैं। सरकार ने खुद ही किसानों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। उनके अभावों को कम करने के प्रयास में कई योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं ।

हमारे देश में ऐसे कई महान नेता हुए हैं जिन्होंने किसानों की दशा सुधारने के लिए सराहनीय कदम उठाए, इसी कड़ी में हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह और लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। वे एक किसान परिवार से हैं। इसलिए उन्होंने किसानों की सही कीमत को समझा और उनके हित के लिए कई सराहनीय कदम उठाए जिसका लाभ उन्हें आज भी मिला है।

इसके अलावा उन्हें रियायती दर पर उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, उर्वरक आदि उपलब्ध कराये जा रहे हैं । उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने और व्यावसायिक खेती शुरू करने के लिए सरकार बहुत कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करती है। खेतों में सिंचाई के लिए नहर व नलकूप का निर्माण कराया जा रहा है। इन सभी कारणों से किसानों के जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है। उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत हुई है।

भारतीय किसान पर लम्बा निबंध

हम सभी को अपनी भूख मिटाने और जीवन बचाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। किसान हमारे अन्नदाता हैं, वे हमारे लिए अन्न पैदा करते हैं। वे अच्छी फसल के लिए साल भर काम करते हैं और धैर्यपूर्वक इसके आने की प्रतीक्षा करते हैं।

किसान कौन है या किसान का अर्थ

किसान :- किसान का अर्थ है ‘कृषि क्षेत्र का मालिक या प्रबंधक’| कृषि और कृषि के काम से जुड़े लोगो को किसान कहा जाता है। किसान ही वह इंसान है,जो सूरज की तेज गर्मी,बारिश या तेज ठण्ड की परवाह किये बिना ही वह अपने खेतों पर फसलों को अपनी मेहनत से उगाने का काम करते हैं। ये हमारे लिए जीवन-रक्षक और किसानों को देश का अन्नदाता कहा जाता है ।

भारतीय किसान हम भारतवासियों के लिए ईश्वर के समान है।

एक कृषि प्रधान देश के रूप में, भारत की लगभग 60% आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। भारतीय किसान अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह वाकिफ हैं। इसलिए जब तक कोई आपात स्थिति न हो, उन्हें एक भी दिन की छुट्टी नहीं मिलती है। वे साल भर सुबह से रात तक खेतों में काम करते हैं,चाहे सर्दी हो,गर्मी हो या बारिश। कृषि ग्रामीण भारत की रीढ़ है। भारत को किसानों का देश कहा जाता है क्योंकि भारत की अधिकांश जनसंख्या किसान है। ये मेहनती किसान विभिन्न तरीकों से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।

भारतीय किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। वे राष्ट्रीय खाद्य और अन्य कृषि उत्पादक हैं। भारतीय किसान दुनिया के सबसे व्यस्त और सबसे अधिक उत्पादक लोगों में से हैं। वे यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं कि स्थानीय भोजन अधिक से अधिक लोगों को खिलाए। अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के बावजूद, भारतीय किसान देश के सबसे गरीब और सबसे गरीब लोगों में से हैं। उन्हें कई बार असफलताओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

उनका पूरा जीवन उनके द्वारा लिए गए कृषि ऋण को चुकाने में बीत गया। समाज में सम्मानित किसानों की स्थिति वास्तव में चिंताजनक और दर्दनाक है। भारत सरकार ने किसानों के लाभ के लिए कई पहल की हैं, लेकिन अभी और काम करने की जरूरत है। हमारी सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें वह सम्मान दिया जाए जिसके वे वास्तव में हकदार हैं।

किसान की मुश्किलें क्या – क्या है?

किसानों को जीवन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, हर बार सरकार नई सेवाएं दे रही है, उनके साथ धोखा हो रहा है. इस प्रकार किसानों को इस सेवा का पूरा लाभ न मिल पाने के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

जब भी कोई किसान अनाज उगाता है तो कभी बारिश, तूफान, आग आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों को नुकसान पहुंचता है और इससे किसान को काफी नुकसान होता है। और यहां भी किसानों को मुआवजा देने में धांधली हो रही है। सरकार ने हमेशा किसानों को बहुत लाभ पहुंचाया है, लेकिन सरकार इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही है। कि किसानों को हम जो सुविधा दे रहे हैं वह सुविधा उनके पास पहुंच रही है या नहीं।

भारतीय किसान निरक्षरता के कारण कृषि से संबंधित नई तकनीकों से वंचित थे। जो उसे जानते हैं, गरीबी के कारण वे इन तकनीकी साधनों का उपयोग भी नहीं कर पा रहे हैं। सिंचाई के लिए वर्षा पर आश्रित होना इनकी नियति हो गयी है। इन कारणों से अच्छी फसल नहीं मिल पाती जो इन्हें गरीबी में जीने को मजबूर करती है और अपने परिवार के लिए प्रयाप्त कपडे पौष्टिक भोजन आवश्यक चिकित्सा और शिक्षा के साधन भी नहीं जुटा पाते है। अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए कुछ किसान अब खेती छोड़कर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं।

किसानो के लिए योजना

अब सरकार ने भी किसानों के लिए काफी योजनाएं शुरू की है जिनमे से कुछ नीचे बताई गई है

  • Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana ( PMFBY )
  • Pradhan Mantri Krishi Sinchai Yojana (PMKSY)
  • Pradhan Mantri Awas Yojana (PMAY)
  • Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana (PMJDY)
  • Pradhan Mantri Gramin Awaas Yojana (PMGAY)
  • Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana (PMSBY)
  • Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana (PMJJBY)
  • Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana (PMKVY)
  • Pradhan Mantri Ujjwala Yojana (PMUY)
  • Swachh Bharat Abhiyan (SBA)

मुझे यह कहते हुए खेद है कि भारत में किसानों की आर्थिक स्थिति खराब है। भारत का किसान आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं। सारा दिन खेतों में मेहनत कर फसल उगाने वाला यही किसान बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे पाता हैं। हम सभी ने पैसे की कमी और कर्ज से दबे होने के कारण कई किसानों की आत्महत्या की खबरों के बारे में अवश्य ही सुना होगा। जो हमारे देश का अन्नदाता है, उसे अपने बच्चों की पढाई, उनकी शादी, खेती के बीज व घर में खाने के लिए साहूकारों और बैकों से सूत पर पैसे लेने पड़ते है।

किसान बहुत ही ज्यादा मेहनत करता है तब जाकर कोई अनाज तैयार होता है, और हमारे देश में अनाज की बहुत ज्यादा बर्बादी भी हो रही है अगर उस अनाज के पीछे कोई मेहनत की कद्र कोई करें तो वह अनाज नहीं फेकेगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय किसान बहुत ही दयनीय अवस्था में रहकर अपने देश के लोगों को अनाज की पूर्ति करता है। देश के लोगों का यह कर्तव्य है कि वे किसान भाइयों की मेहनत को व्यर्थ ना जाने दे शादियों त्योहारों और उत्सवों के दौरान होने वाली खाने की बर्बादी को रोककर हम उनके मेहनत की सराहना कर सकते हैं।

इन्हे भी पढ़ें:-

  • मेरा गांव पर निबंध
  • मेरे सपनों का भारत निबंध
  • मेरा भारत महान निबंध

उम्मीद करता हूं दोस्तों की “भारतीय किसान ( Bhartiya Kisan Essay In Hindi )” से सम्बंधित हमारी यह पोस्ट आपको काफी पसंद आई होगी। इस पोस्ट में हमनें किसान से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां देने का प्रयास किया है। आशा है आपको पूर्ण जानकारी मिल पाई होगी।

अगर आप यह पोस्ट आपको अच्छा लगा तो आप अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर कर सकते हैं। अगर आपके मन मे कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं हम आपसे जल्द ही संपर्क करेंगे। अपना कीमती समय देने के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद।

FAQ About Bhartiya Kisan In Hindi

Q.1. भारतीय किसान यूनियन की स्थापना कब हुई थी.

Ans: भारतीय किसान संघ की स्थापना 4 मार्च 1979 को शहर में हुई थी।

Q.2. भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नेता कौन थे?

Ans: भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नेता श्री दत्तोपंतजी ठेंगडी थे। वह एक महान भारतीय दूरदर्शी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध श्रमिक नेता थे। उन्होंने अपने अद्वितीय संगठनात्मक कौशल के साथ इस संगठन को भारत में किसानों के पुनरुत्थान के लिए एक वास्तविकता बना दिया।

Q.3. भारतीय किसान की वर्तमान स्थिति क्या है?

Ans: भारतीय किसानों की हालत बहुत खराब है। पर्याप्त संसाधनों के साथ-साथ उन्हें अच्छा वेतन भी मिलता है। किसानों को बचाने के लिए हमारी सरकार उन्हें तरह-तरह के फायदे देने की कोशिश कर रही है। सरकार उन्हें सालाना 6,000 रुपये पेंशन भी देती है। इसके अलावा, ग्लोबल वार्मिंग उनकी खराब स्थिति के प्रमुख कारणों में से एक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सीजन में देरी हो रही है। विभिन्न फसलों के पकने के अपने-अपने मौसम होते हैं। फसलों को बढ़ने के लिए सही मात्रा में धूप और बारिश की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।

Q.4. भारतीय किसान के कष्ट क्या – क्या है?

Ans: किसान जीवन भर फसल लगाते हैं, लेकिन वे कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें वह फसल नहीं मिल पाती है जिसके वे हकदार होते हैं। वे अच्छी फसल के लिए साल भर काम करते हैं और धैर्यपूर्वक इसके आने की प्रतीक्षा करते हैं। वह बार-बार चक्र दोहराता है, लेकिन उसे अपने परिश्रम का सही फल कभी नहीं मिलता है। पूरे देश को तरह-तरह के भोजन उपलब्ध कराने के बाद भी किसान बहुत सादा भोजन करते थे और सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे खेतों में उगाई गई फसल को बेचकर अपना गुजारा करते हैं। यह छोटी सी कीमत उनके वर्षों के श्रम और आय के रूप में आती है।

Q.5. किसान हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

Ans: हम सभी को अपनी भूख मिटाने और जीवन बचाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। किसान हमारे अन्नदाता हैं, वे हमारे लिए अन्न पैदा करते हैं। वे अच्छी फसल के लिए साल भर काम करते हैं और धैर्यपूर्वक इसके आने की प्रतीक्षा करते हैं। एक कृषि प्रधान देश के रूप में, भारत की लगभग 60% आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। कृषि ग्रामीण भारत की रीढ़ है। हालांकि भारतीय किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन वे दुनिया में सबसे व्यस्त और सबसे अधिक उत्पादक हैं।

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किसान की आत्मकथा पर निबंध

Kisan ki Atmakatha Essay in Hindi: हमारे देश में किसान को भगवान का दर्जा दिया गया है। क्योंकि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है, जहां किसान हमारी दो वक्त की रोटी के लिए काफी मेहनत करते है। हमारा देश भारत जो कृषि पर आधारित देश माना जाता है। क्योंकि यहां की अधिकतर जनसंख्या यानी कि 60% लोग खेती बाड़ी पर निर्भर है।

गांव में रहकर खेती-बाड़ी का काम करते हैं और उसी काम से यहां के किसानों का घर चलता है। किसान जो अपने घर को चलाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं। हर मौसम में उनको काम करना पड़ता है। कड़ी मेहनत के बाद जो अनाज तैयार होता है, उसे बेचकर किसान अपने घर को चलाते हैं।

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आज हम इस आर्टिकल में आपके साथ एक किसान की आत्मकथा हिंदी निबंध (kisan ki atmakatha in hindi) शेयर करने जा रहे है। यह निबंध परीक्षा में सभी कक्षाओं के लिए मददगार साबित होगा।

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किसान की आत्मकथा पर निबंध | Kisan ki Atmakatha Essay in Hindi

किसान की आत्मकथा हिंदी निबंध 250 शब्दों में (kisan ki atmakatha hindi nibandh).

मैं एक किसान हूँ, मुझे गर्व है कि मेरा जन्म भारत में हुआ है, जहां किसानों को काफी सन्मान दिया जाता है। मुझे लोग अन्नपूर्णा भी कहते है क्योंकि मैं लोगों को जीवन जीने के लिए अन्न प्रदान करता हूँ। मेरा जन्म एक किसान के गरीब घर में हुआ है। बचपन से ही मैं अपने बैल, हल और मिट्टी के साथ खेल कर बड़ा हुआ हूँ। मेरा जीवन सरल नहीं है। मैं 12 महीने काम करता हूँ ना धूप देखता हूँ और ना ठंड और बरसात।

मेरे पिताजी बहुत गरीब थे, इसलिए मैं कभी शिक्षा ना ले सका। लेकिन बचपन से खेतों में काम करके मैं काफी कुछ सीख गया हूँ। कुदरती आपदाओं की वजह से मेरे जीवन में काफी मुश्किलें आ जाती है। लोगों को दो वक्त की रोटी देने वाला मैं किसान कभी-कभी एक वक्त की रोटी के लिए तरस जाता हूँ।

तकनिकी में बढ़ोतरी होने के कारण आज खेती करना काफी सरल हो गया है। साथ साथ किसानों के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं भी बनाई गई है, जिसके चलते आज किसान का जीवन थोड़ा सरल हो गया है। हमारा व्यवसाय ऐसा है, जिसमें कभी बेईमानी नहीं की जाती। मैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने काम के प्रति समर्पित हूँ। इतनी मेहनत करने के बाद भी मेरे जीवन यापन के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ता है।

जीवन में इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी मैं काफी खुश हूं। क्योंकि भगवान ने मुझे जन्म इस धरती पर रहने वाले प्राणियों के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए चुना है।

Kisan ki Atmakatha Essay in Hindi

किसान की आत्मकथा पर निबंध 500 शब्दों में (Kisan ki Atmakatha Nibandh)

मैं किसान हूं, मुझे कड़ी मेहनत करना अच्छा लगता है। मुझे गर्व है कि मैं भारत जैसे महान देश में जन्म लेकर खेती का काम कर रहा हूं। मेरी जिंदगी पूरी परिश्रम और कठिनाइयों से भरी है। लेकिन फिर भी मैं दिन-रात कड़ी मेहनत करता हूं। मेरा जीवन आर्थिक तंगी से उलझा हुआ है।

लेकिन फिर भी मैं हर मौसम में हार नहीं मान कर खेती का काम करता रहता हूं। मैं अनाज उगा कर देश के सभी लोगों को भुखमरी से बताता हूं और उनकी भूख मिटाता हूं। लेकिन फिर भी लोग मुझे गरीब और कर्जदार ही समझते हैं। मैं अन्नदाता के तौर पर दिन-रात 12 महीने काम करता हूं।

मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ। इसलिए मैं शिक्षा हासिल नहीं कर सका और आज कृषि का काम कर रहा हूं, खेती का काम करना भी मुझे अच्छा लगता है। लेकिन यहां मुझे बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है। हर मौसम में मुझे चाहे धूप हो और चाहे ठंड मुझे खेती का काम करना ही पड़ता है।

हालांकि आज के समय में मेरे जीवन में टेक्नॉलजी की वजह से काफी सुविधाएं आई है और हमारा जीवन स्तर काफी ऊंचा हुआ है। लेकिन पुराने जमाने में हमें बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। बैल और हल के जरिए हमें भूमि को जोड़ना पड़ता था। लेकिन आज बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है और जिससे हमारी जिंदगी काफी सरल हुई है।

लेकिन फिर भी हम को हर मौसम में खेती के काम से फुर्सत नहीं मिलती है और हम अपने सच्चे मित्र भी हमारी भूमि और फसल को ही मानते हैं और इनसे ही हमें प्यार है।

हमारा पहनावा कोई खास नहीं है। हम बहुत ही सादा जीवन जीते हैं। पैरों में फटे जूते, कुर्ता और धोती पहनकर हम अपना जीवन निकाल लेते हैं। हमारे पास पैसा नहीं होता है। फिर भी हम जैसे-तैसे ही कपड़ों में अपना जीवन निकाल लेते हैं।

मेरे जीवन की खुशी

मेरा जीवन संघर्ष से भरा रहता है। लेकिन फिर भी मैं छोटी-छोटी खुशियों मैं ही अपनी खुशी मानकर जीवन निकाल देता हूं और मेहनत करता रहता हूं। कड़ी मेहनत के बाद खेत में जब लहराती हुई फसल देखता हूं तो मेरे जीवन को बड़ा सुकून मिलता है और मुझे अच्छा महसूस होता है।

मेरी दिनचर्या

मैं रोज सुबह उठता हूं और खेत की ओर निकल जाता हूं। वहीं पर परिवार वाले मेरे लिए खाना और पानी लाते हैं। मैं खेत में बैठकर ही खाना खा लेता हूं। खाना खाने के बाद मैं पुनः अपने काम में मगन हो जाता हूं और रात को घर आकर खाना खाकर जल्दी ही सो जाता हूं।

सरकार द्वारा हमारे लिए किए गए प्रयास

पिछले कुछ सालों से सरकार को हमारी परेशानियां समझ आ रही है और सरकार हमें हर तरफ से सहायता देने का प्रयास कर रही है। सरकार के द्वारा दिन प्रतिदिन कृषि का ज्ञान हमारे साथ साझा किया जाता है, जिससे हमें कई समस्याएं दूर हो रही है।

सरकार हमें आज के समय में आर्थिक सहायता देकर भी हमारे जीवन में एक उत्साह और जीवन जीने की चाह को बढ़ा रही है। सरकार हमारे कर्ज को माफ करके भी हमारे ऊपर बड़ा एहसान कर रही है। आज के समय में सरकार के द्वारा हमारे जीवन को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है।

परिश्रम का दूसरा नाम किसान ही है। किसान अपने जीवन में परिश्रम करके ही दो वक्त का खाना खाता है। किसान को हमारे देश की आत्मा कहां जाता है। क्योंकि किसान ही देश के सभी लोगों को भोजन उपलब्ध करवाता है।

किसान की आत्मकथा पर निबंध (850 शब्द)

मैं अपने देश का साधारण सा किसान हूँ, जो खेती करके अपना जीवन निर्वाह चलाता है। मुझे ख़ुशी है कि मैं अपने देश के नागरिकों के लिए अन्न का उत्पादन करता हूँ। लेकिन दुःख इस बात का है की मुझे सब लोग गरीब और कर्ज़दार समझते है लेकिन कोई अन्नपूर्णा नही समझता। खेती करना महेनत का काम है, जिसे मैं बड़ी ईमानदारी के साथ करता हूँ।

भारत के एक छोटे से गाँव में मेरा घर है। मेरे पिताजी और मेरे दादाजी दोनों किसान थे। मुझे विरासत में एक साधरण सा और कच्चा घर, थोड़ी जमीन, दो बैल और खेती का अनुभव मिला है। कष्टों से भरपूर जीवन होने के बावजूद भी में आत्मसन्मान के साथ जीता हूँ। कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता।

मेरी दिनचर्या दूसरे लोगों की तरह सरल नही होती। मेरा पूरा परिवार सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाता है। मेरा एक छोटा सा खेत है। दोपहर तक मैं खेत का सारा काम निपटा लेता हूँ जैसे की फसल बुआई, सिंचाई, कटाई। दोपहर के समय एक छायादार पेड़ के नीचे अपना भोजन करता हूँ और फिर थोड़ा आराम करता हूँ।

शाम को थका हारा घर लौटता हूँ। रात को खाना खाके जल्दी सो जाता हूँ। हमारा भोजन भी सादा होता है ज्यातादर रोटियां और सब्जियां। मुझे कोई छुट्टी नहीं मिलती। सभी प्रकार के मौसम में मुझे काम करना पड़ता है। मेरे साथ साथ मेरा परिवार भी खेतों में मेरी मदद करता है। खेत ही हमारा सर्वस्य होता है और अनाज के दाने मेरी मेहनत के मोती हैं।

मेरा पहनावा

मेरे पहनावा में आपको सादगी नजर आएगी। उस में कुछ तड़क-भड़क नहीं है। सादा सा कुर्ता और धोती और पावों में एक टूटे फूटे जूते। हमारे पास बहुत कम कपड़े होते है। लेकिन आज कल मेरे रहनसहन में भी छोटे छोटे बदलाव आ रहे है।

मुझे अपने खेतों में काम करने से ज्यादा फुर्शत नहीं मिलती इसलिए मेरे बहुत कम मित्र होते है। लेकिन मेरा सच्चा मित्र मेरा हल और बैल है, जो पूरे दिन मेरे साथ रहते है और कभी भी धोखा नहीं देते। मेरे पास दो बैल है।

बैल को नहलाना और खाना खिलाना मुझे काफी अच्छा लगता है। अब तो मेरे बैल की जगह ट्रेक्टर ने ले ली है लेकिन फिर भी में अपने बैल को इतना ही प्यार करता हूँ।

मेरा पूरा जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है। अगर बारिश अच्छी हो तो फसल अच्छी होती है लेकिन जब कुदरती आपदाएं आती है तब सारी फसल ख़राब हो जाती है। हमारी पूरी महेनत पर पानी फिर जाता है और मेरे पुरे परिवार की हालत ख़राब हो जाती है। मेरी छोटी सी छोटी खुशियों को भी पूरा करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ती है। लहलहाती फसलें को देखकर मुझे काफी सुकून मिलता है। ऐसा लगता है मानो कोई त्यौहार हो।

लेकिन आज मेरे जीवन में काफी बदलाव नजर आ रहे है। मैं पूरा दिन मेहनत करता हूँ और अपने बच्चों को स्कूल भेजता हूँ ताकि उनका भविष्य सुनहरा बना सके। कुछ वर्षो में सरकार के द्वारा कुछ ऐसे काम हुए है, जिसका सीधा लाभ किसानों को मिल रहा है। अब हमें सरकार की तरफ से भी काफी सहाय मिलती है।

सरकार अब हमारे खेतों के लिए बिजली और पानी देती है। हमें कृषि आधारित शिक्षा देती है। कृषि में भी अब टेक्नोलॉजी बढ़ने के कारण कम मेहनत में हम लोग ज्यादा काम कर सकते है, जिससे हमारा जीवनस्तर ऊंचा गया है।

जीवन स्तर बदलने के बावजूद भी बढ़ती महंगाई के कारण आज भी मेरे परिवार को रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती है। बीज की कीमतें दिन पर दिन बढ़ रही है, जिसके कारण अच्छी गुणवत्ता के खाद्य और बीज खरीदने में हमारे पसीने छूट जाते हैं।

समाज में किसान का स्थान

गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री ने हमें देश की आत्मा का मान दिया था। लेकिन समाज में आज भी हमारी गिनती गरीब में की जाती थी। व्यापारी लोग हम से अनाज कम दामों में लेकर उसे बाजार में ज्यादा दामों में बेचते है और ढेर सारा मुनाफा कमाते है। लेकिन इस मामले में अभी तक सरकार दवारा कोई कदम नहीं उठाया गया है। हमारी जिंदगी सिर्फ कर्ज में डूबी हुई होती है।

आज भी लोग हमें अनपढ़ और गंवार समझते है। आज भी समाज में हमारी स्थिति गुलामों की तरह है। हर साल क़र्ज़ में डूबे कई हमारे किशन भाई आत्महत्या करते है लेकिन समाज पर इन सभी घटनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

दिन रात काम करके लोगों का पेट भरने के बावजूद भी मुझे छोटी छोटी बातों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। बढ़ती टेक्नोलॉजी और एजुकेशन से आज खेती करने की पद्धति में काफी बदलाव आये है। सरकार द्वारा भी हमें काफी मदद मिल रही है।

लोगों की नज़रों में हमारा स्थान ऊँचा हो गया है लेकिन फिर भी आज बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहे हैं। इन सब के बावजूद भी मैं मेरी ज़िंदगी से काफी खुश हूँ। मैं खुद ईश्वर का सेवक मानता हूँ क्योंकि ईश्वर ने धरती पर मुझे अन्नदाता बनाकर भेजा है, जो मेरे लिए एक गर्व की बात है।

हमने यहां पर किसान की आत्मकथा निबंध( Kisan ki Atmakatha Essay in Hindi ) शेयर किया है। उम्मीद करते हैं कि आपको यह निबंध पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह निबन्ध कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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  • नदी की आत्मकथा पर निबंध
  • मेरे सपनों का भारत पर निबंध

Rahul Singh Tanwar

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किसान की आत्मकथा पर निबंध, लेख

निबंध 1. किसान की आत्मकथा पर निबंध.

प्रस्तावना :- हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश कहलाता है।  हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था का ज्यादातर आधार कृषि से ही जुड़ा हुआ है।  इसीलिए  सुनने में अत  है कि भारत के 70% लोग किसान है वे राष्ट्र की रीढ़ के समान है , और भारत की भूमि किसानों की भूमि है आज हम किसान के जीवन से जुड़े हर पहलू को किसान की आत्मकथा के माध्यम से समझाने का प्रयास करेंगे।

मैं एक किसान हूं मेरा कार्य खेत में हल जोतना है जिससे अनाज उत्पादन कर लोगों के पेट भरने का कार्य करता हूं मेरा पूरा जीवन पाको को उगाना और उनकी देखभाल करने जैसे आदि कामों में ही व्यतीत हो जाता है मेरा जन्म किसान  परिवार  में होता है ओर मेरी मृत्यु होने तक मैं किसान ही रहता हूं। किसान बनाना कोई आसान कार्य नहीं है मेरा पूरा जीवन बड़ी कठिनाइयों से गुजरता है मेरा कार्य जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं है मुझे 12 महीने काम करना पड़ता है उसमें ना ही कोई अवकाश  है। मुझे अपना कार्य पूरी ईमानदारी और लगन के साथ करना पड़ता है।

में पहले जमीन खेडता हूं जिसने मेरे मित्र “ बेल ” मेरा बहुत ही अच्छा साथ निभाता हैं। फिर खेत  उसमें बीच बोता हूं समय-समय पर पानी खाद्य और किट-नाशक दवाओं का छिड़काव कर की देखभाल करता हूं। में ऋतुओं के अनुसार पाक की वावणी करता हूं ताकि सभी प्रकार के अनाज लोगों तक पहुंचा सकूं मेंरा कार्य तीनों ऋतुओ में चलता है। में ठंडी, गर्मी, बरसात जैसी ऋतु में भी खेत के कार्य में लगा रहता हूं। मैं खेतों में काम करता हूं तभी मेरे परिवारों को खाना मिलता है फसल अच्छी हो तो कोई चिंता नहीं होती मगर जब किसी आपदा के कारण मेरी फसल निष्फल हो जाती है तब मेरे साथ साथ मेरा परिवार भी मुश्किलों में पड़ जाता है मुझे बहुत ही भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है जिसमें मेरा परिवार भी शामिल होता है वह मेरे हर सुख-दुख में हर वक्त मेरे साथ रहता है।

किसान बनकर में खुश बहुत होता हूं की सभी के जीवन को चलाने के मुख्य कार्य खाद्य उत्पादन का कार्य कुदरत ने मुझे सौंपा है। मगर यह कार्य करने में जब निष्फल होता हूं, घोर निराशा में डूब जाता हूं मैंने भी आज के बदलते युग के साथ नई पद्धतियो को सीख कर फसल को ज्यादा कैसे उगाई जाए यह सीखा है, सरकार ने भी आज नई नई योजनाएं बनाकर किसान को कभी जो फसल निष्फल हो जाए तो उनसे होने वाले नुकसान से मदद रूप होने के लिए विमा पाक जैसी कोई योजना बनाई है, इसके साथ साथ किसानों को नए उपकरण भी मुहैया कराने के लिए सब्सिडी जैसी योजनाओं की भी व्यवस्था की है जिससे आज के किसानों को बहुत ही लाभ होता है आज का किसान सफल और सक्षम हो गया है। सरकार भी किसानो के साथ कई साडी नई-नई-योजना लाते है जिससे किसान अपने काम-काज को और बेहतर बना सकते।

उपसंहार :- इसलिए हम कह सकते हैं कि किसान भारत की जान है वह अपना पूरा जीवन देश की प्रजा के खाद्य उत्पादन में और देश के आर्थिक विकास में लगा देता है भारत वासियों को हर किसान पर गर्व होना चाहिए। “ जय जवान जय किसान  भारत की शान भारत की जान “

लेखक:- हेतल जोशी (गुजरात)

भारतीय किसान की आत्मकथा

निबंध 2. भारतीय किसान की आत्मकथा पर निबंध

जागृति अस्थाना -लेखक

हिंदुस्तान में किसान को अन्नदाता कहा जाता है, भारत की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा भाग कृषि पर निर्भर करता है, एक किसान की आत्मकथा का वर्णन मैं स्वरचित कुछ पंक्तियों द्वारा करना चाहूंगी, जो इस प्रकार हैं:

हाँ मैं किसान हूँ ये मेरी आत्मकथा है (२) रोज़ सुबह उठकर जब खेतो में जाता हूँ, दिन भर की मेहनत कर जब लौट घर को आता हूँ मैं हर रात रहता इंतज़ार अगली सुबह का, क्यूंकि उन बीजो में जीवन जो डाल आता हूँ मैं लहलहाती है जब फसल खेतो मे यह देख आनंदित हो जाता हूँ मैं हाँ मैं किसान हूँ ये मेरी आत्मकथा है (२) गरीबी से है जंग मेरी, प्रकृति से है द्वन्द् मेरी, दो वक़्त् कि रोटी के लिए संघर्ष किये जाता हूँ मैं हाँ मैं किसान हूँ ये मेरी आत्मकथा है (२) कहते हैं निर्भर है अर्थव्यवस्था मुझपे, फिर भी क्यों खुद को ख़त्म किये जाता हूँ मैं हाँ मैं किसान हूँ ये मेरी आत्मकथा है (२)

वर्त्तमान परिस्थिति में ये पंक्तियाँ अक्षरशः सत्य प्रतीत होती हैं , हमारा देश आज विकसित देशो की प्रतिस्पर्धा में शामिल हो तो गया है और ये गर्व की भी बात है , परन्तु देश के किसानो की दशा आज भी शोचनीय है| ऐसा नहीं है की सरकारे कुछ नहीं कर रही, ऐसी बहुत सी योजनाए है जिससे किसान लाभान्वित भी हो रहे हैं बहुत से राज्यों ने तो किसानो के क़र्ज़ तक माफ़ कर दिए हैं फिर भी क्यों नहीं रुक रहा यह आत्महत्याओं का दौर? इसके कई सारे कारण हैं, प्राकृतिक आपदा जैसे, बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि जिसके कारण पूरी पूरी फसल का बर्बाद हो जाना, किसानो को उनकी फसल का उपर्युक्त समर्थन मूल्य नहीं मिलना, आवारा जानवरों के द्वारा फसलों को बर्बाद कर देना आदि,  इसी कारण लोग कृषि के प्रति उदासीन भी हो रहे हैं और गांव छोड़ शहर की ओर पलायन कर रहे हैं|

प्राकतिक आपदाएं पहले भी आती थी पर आजकल इन आपदाओं ने भयाभव रूप ले लिया है, महाराष्ट्र राज्य के विदर्भ जिले में विगत वर्षो में भयंकर सूखा पड़ने से किसानो ने आत्महत्या की, अब सोचने वाली बात ये है की जो भारत देश आज विकासशील देश की श्रेणी से विकसित देश की श्रेणी में शामिल होने की ओर अग्रसर है उस देश अन्नदाता की इस दशा का जिम्मेदार कौन है, इस विषय पे गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है |

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था क्यूंकि वो ये जानते थे की जवान और किसान ये दोनों एक देश की शक्ति के आधारस्तम्भ हैं | सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंसी प्रेमचंद जी की एक कहानी पुस की रात , किसान के जीवन चरित्र का सजीव वर्णन है, उन्होंने इस कहानी में ये बताया है की कैसे एक किसान खेती करने की वजह से क़र्ज़ में डूब जाता है, पूरी रात ठण्ड में बैठ कर अपनी फसल की निगरानी आवारा जानवरो से बचाने के लिए करता है फिर भी अपनी फसल नहीं बचा पाता है|

मैंने ईश्वर को तो नहीं देखा पर पृथ्वी पे ईश्वर का प्रतिनिधि किसान है ये मैं ढृणतापूर्वक कह सकती हूँ, अतः हमे किसानो द्वाराउगाये गए अन्न का आदर करना चाहिए और उन्हें बर्बाद होने से रोकने का प्रयास करना चाहिए, ये कर के शायद हम उन्हें सच्चा सम्मान दे सकेंगे |

#सम्बंधित:-Hindi Essay, Hindi Paragraph, हिंदी निबंध। 

  • भारतीय किसान पर निबंध
  • किसानो पर क़र्ज़ का बोझ निबंध
  • किसान की आत्मकथा पर निबंध
  • कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान निबंध
  • अनुशासनहीनता की समस्या और समाधान
  • जल है तो कल है निबंध
  • पोंगल पर निबंध (Festival)
  • बसंत पंचमी पर निबंध
  • जीना मुश्किल करती महँगाई
  • उज्ज्वला योजना पर निबंध
  • महान व्यक्तियों पर निबंध
  • पर्यावरण पर निबंध
  • प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध
  • सामाजिक मुद्दे पर निबंध
  • स्वास्थ्य पर निबंध
  • महिलाओं पर निबंध

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2 thoughts on “किसान की आत्मकथा पर निबंध, लेख”

प्रस्तावना :- हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश कहलाता है।  हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था का ज्यादातर आधार कृषि से ही जुड़ा हुआ है।  इसीलिए  सुनने में अत  है कि भारत के 70% लोग किसान है वे राष्ट्र की रीढ़ के समान है , और भारत की भूमि किसानों की भूमि है आज हम किसान के जीवन से जुड़े हर पहलू को किसान की आत्मकथा के माध्यम से समझाने का प्रयास करेंगे।

मैं एक किसान हूं मेरा कार्य खेत में हल जोतना है जिससे अनाज उत्पादन कर लोगों के पेट भरने का कार्य करता हूं मेरा पूरा जीवन पाको को उगाना और उनकी देखभाल करने जैसे आदि कामों में ही व्यतीत हो जाता है मेरा जन्म किसान  परिवार  में होता है ओर मेरी मृत्यु होने तक मैं किसान ही रहता हूं। किसान बनाना कोई आसान कार्य नहीं है मेरा पूरा जीवन बड़ी कठिनाइयों से गुजरता है मेरा कार्य जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं है मुझे 12 महीने काम करना पड़ता है उसमें ना ही कोई अवकाश  है। मुझे अपना कार्य पूरी ईमानदारी और लगन के साथ करना पड़ता है।

में पहले जमीन खेडता हूं जिसने मेरे मित्र “बेल” मेरा बहुत ही अच्छा साथ निभाता हैं। फिर खेत  उसमें बीच बोता हूं समय-समय पर पानी खाद्य और किट-नाशक दवाओं का छिड़काव कर की देखभाल करता हूं। में ऋतुओं के अनुसार पाक की वावणी करता हूं ताकि सभी प्रकार के अनाज लोगों तक पहुंचा सकूं मेंरा कार्य तीनों ऋतुओ में चलता है। में ठंडी, गर्मी, बरसात जैसी ऋतु में भी खेत के कार्य में लगा रहता हूं। मैं खेतों में काम करता हूं तभी मेरे परिवारों को खाना मिलता है फसल अच्छी हो तो कोई चिंता नहीं होती मगर जब किसी आपदा के कारण मेरी फसल निष्फल हो जाती है तब मेरे साथ साथ मेरा परिवार भी मुश्किलों में पड़ जाता है मुझे बहुत ही भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है जिसमें मेरा परिवार भी शामिल होता है वह मेरे हर सुख-दुख में हर वक्त मेरे साथ रहता है।

उपसंहार :- इसलिए हम कह सकते हैं कि किसान भारत की जान है वह अपना पूरा जीवन देश की प्रजा के खाद्य उत्पादन में और देश के आर्थिक विकास में लगा देता है भारत वासियों को हर किसान पर गर्व होना चाहिए। “जय जवान जय किसान  भारत की शान भारत की जान “

आपने बहुत अच्छा लिखा।

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भारतीय किसान पर निबंध – Essay on Indian farmer in Hindi

भारतीय किसान पर निबंध (Essay on Indian farmer in Hindi): भारत में 58 प्रतिशत लोग किसान हैं. किसान देश की रीढ़ हैं. किसान दिन-रात मेहनत करते हैं. उनके बिना, हमारा देश पूरी तरह से अधूरा है ; इसलिए तो किसान को देश की रीढ़ कहा जाता है.

यह बात सब जानते है की भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां की 75 से 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. इसलिए कृषि को पैदा करने वाला किसान भारतीय प्रगति की रीढ़ की हड्ड़ी है. किसान सबके लिए अनाज पैदा करता है. अन्न के बिना मानव जीवन की अस्तित्व ही खतरे में है. अतः किसान सबका अन्न दाता, जीवन दाता है. भारत की समग्र अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर है. इसलिए भारत के समग्र विकास के लिए कृषक का पूर्ण विकास आवश्यक है. लेकिन दुःख की बात है कि आज भी भारतीय किसान की दशा अत्यंत दयनीय है.

भारतीय किसान का जीवन

भारतीय किसान का जीवन अत्यंत कठोर है. उसके लिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, सर्दी-गर्मी, वर्षा सब एक समान हैं. खेत ही उसके जीवन का अभिन्न अंग है. वह सच्चा कर्मयोगी है, जिसको फल प्राप्ति के लिए ईश्वर पर पूर्ण निर्भर रहना पड़ता है. क्योंकि खेतों में कठोर परिश्रम कर देना ही उसका परम कर्त्तव्य है लेकिन फल पूर्ण रूप से ऊपर वाले के हाथ में है. लेकिन वह अपने कर्तव्य का पालन सदैव करता रहता है. अर्थात भारतीय कृषि वर्षा पर ही निर्भर करती है. यदि वर्षा सही समय पर सही रूप में हो जाये तो कृषि सही होगी अन्यथा अतिवृष्टि व अनावृष्टि से किसान की मेहनत पर पानी फिर जाता है. इसलिए किसान के भाग्य का फैसला ऊपर वाले के हाथ में है. वह भीषण गर्मी में, ठिठुरती सर्दी में, मूसलाधार वर्षा में अपने ही खेतों में लगा रहता है. खेत ही उसका जीवन हैं. हल, बैल, हंसिया, कुदाल उसके संगी साथी हैं. भारतीय किसान कच्चे मिट्टी के मकानों में निवास करते हैं. पशु ही उनका परम धन है जो उनके टूटे-फूटे घरों में उनके साथ रहते हैं.     

bhartiya kisan par nibandh

अभावग्रस्त जीवन

भारत में किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है. भारतीय किसान छल, प्रपंच से दुर बिल्कुल सीधा-साधा जीवन यापन करता है. वह शिक्षित नहीं होता है. उसके गांव में जो शिक्षित हो जाता है वह गांव छोड़कर शहर में चला जाता है, फिर गांव में रह जाता है वही पुराना, अभाव ग्रस्त, रूढ़ि ग्रस्त किसान जो अपनी प्राचीन परम्परागत पद्धति से ही कृषि करता है. उसके कठिन परिश्रम का फल अन्न, धनियों, पूंजीपतियों व सरकारी दलालों को मालो-माल बना देता है लेकिन भारतीय किसान वहीं दरिद्र नारायण बना रहता है. उसके पपास वही फटी धोती, फूटी कठोती, फटी पगड़ी ही रह जाती है. भूखा प्यासा किसान अपने कठोर परिश्रम में संलग्न हो जाता है. वह जन्म, मृत्यु, शादी और उत्सवों में इतना खर्च कर देता है कि जीवन भर धनियों का बंधक बन जाता है. कुरीतियां, रूढ़ियां, अंधविश्वास उसके दिल में घर कर जाते हैं जो उसे पीछे धकेलते रहते हैं.     

जय जवान जय किसान

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों का जीवन सुधारने के लिए और उनको प्रोस्ताहित करने के लिए देश का ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था. अब जब तक भारतीय किसानों की दशा नहीं सुधारी जाती तब तक भारतीय प्रगति भी अपूर्ण है. किसानों की स्थिति न सुधरने के कारण ही आजादी के इतने वर्षों के वाद भी देश प्रगति नहीं कर पाया है.

हमारे देश की सरकार किसानों की बेहतरी पर बहुत पैसा खर्च कर रही है. उन्हें अच्छे बीज, अच्छे उर्वरक और कम ब्याज वाले कृषि ऋण उपलब्ध कराया गया है. उनके शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और नैतिक विकास के लिए प्रयास जारी है. आशा है कि भारतीय किसान इसका लाभ उठाएंगे.

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ये था भारतीय किसान पर निबंध (Essay on Indian farmer in Hindi). उम्मीद है भारतीय किसानों के बारे में ये निबंध आपको पसंद आया होगा. अंत में बस इतना कहूंगा की, आज भारत सरकार को भारत के विकास के लिए भारत के किसान की ओर ध्यान देना होगा. किसान को विशुद्ध आधुनिक किसान बनाकर उसको दरिद्रता से मुक्ति दिलानी होगी. अगर आपके मन में हमारे किसान भाइयों बहनों को लेकर कुछ सवाल है, तो आप हमें कमेंट में पूछ सकते हैं. मिलते है अगले निबंध में. धन्यवाद.

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किसान की आत्मकथा हिंदी निबंध- Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi

In this article, we are providing an Essay on Kisan ki Atmakatha in Hindi किसान की आत्मकथा निबंध हिंदी | Nibandh। Essay in 200, 300, 500, 600 words For Class 7,8,9,10,11,12 Students.  K isan Ki Atmakatha Hindi Nibandh, Bhartiya Kisan Par Nibandh

Ek Kisan Ki Atmakatha Nibandh | Autobiography of a Farmer in Hindi

प्रस्तावना- किसान दुनियाभर का अन्नदाता है जो कोई व्यापारी नही, भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों की ज्यादा हिस्सेदारी तो नही है, लेकिन किसानों के बिना भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया का कोई अस्तित्व नही है। मैं एक किसान हु और मै जानता हूं कि कैसे एक किसान देश की वो पटरियां हैं जो देश को प्रगति के रास्ते से जोड़ती हैं।

लोग कहते हैं जैसे दुनिया के तमाम व्यवसाय हैं वैसे ही खेती किसान का व्यवसाय है,लेकिन लोगों को क्या पता किसान की आत्मकथा के बारे में, लोग कहते हैं कि किसान उन्हें अनाज देता है और उसके बदले उनसे पैसा लेता है बस हिसाब बराबर। लेकिन हिसाब अभी कहाँ बराबर हुआ आपने जितना पैसा दिया उतना पैसा तो मैंने भी लगाया था कभी खाद, कभी बीज, कभी जुताई तो कभी सिंचाई, ऐसे जाने कितने खर्चे लेकिन इन सबके बाद जो मैंने पसीना बहाया उसका हिसाब कहाँ है, जब दुनिया आराम से अपने घरों में सुबह सो रही होती हैं तब मै सुबह उठकर पानी लगा रहा था अपने खेतों में।

Phool ki Atmakatha in Hindi Essay

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Essay on Pustak ki Atmakatha in Hindi

Essay on Nadi Ki Atmakatha in Hindi

पूरी दुनिया की भूख मुझसे ही खत्म होती है। अक्सर मैं राजनीति के बीच का मुद्दा भी बनता रहता हूँ, फिर चाहे सत्तापक्ष हो चाहे विपक्ष, सबने मुझे तरह-तरह के लालच दिए लेकिन मेरे ही वोट से जीतने के बाद लौटकर मेरे बारे में कभी नही सोंचा। मैं सिर्फ दुनिया के हाथों की मशाल बनकर जला हूँ। जहाँ लोगों को मुझसे रौशनी, जिंदगी जीने की उम्मीदें मिली हैं और मुझे मिली है सिरफ़ काली राख। मुझे भी धूप में धूप लगती है, मेरे बाजुओं में भी बस उतनी ही ताकत है जितना की एक आम इंसान के बाजुओं में होती हैं।

हाथों के छाले मुझे भी उतना ही दर्द देते हैं जितना की एक आम इंसान के हाथ के छाले, अगर लोगों को आसान लगता है किसान का काम तो क्यों नहीं बन जाते सब किसान, क्यों नहीं करने लगते सब खेती। भारत में 70 % किसान हैं, मानो तो आबादी मेरी ज्यादा है लेकिन मान्यता में मैं शून्य हूँ, जहाँ मुझे इतना भी अधिकार नहीं है की मैं अपनी फसल का मूल्य निर्धारित कर सकूँ, फिर कैसे मान लूं कि मेरे साथ अन्याय नहीं हो रहा है। हमारे जैसे किसान हर रोज क्यों आत्महत्या कर रहे हूँ, आखिर क्यों मेरे जैसे किसान दुबे जा रहे हैं कर्ज में।

दुनिया भर में विज्ञान ने बहुत तरक्की की, जिससे मुझे भी लाभ हुआ, मेरे पास नए यंत्र आए, मुझे नए जल संसाधन भी मिले, नए बीजों और दवाओं के कारण आज मैं कम खेत में भी अच्छी पैदावार कर सकता हूँ, लेकिन उन महंगे यंत्रों को इस्तेमाल करने के लिए मेरे पास पैसे भी होने चाहिए। हर किसी की आमदनी में हजारों गुना तक का इजाफा हुआ लेकिन मेरी आमदनी को दोगुना होने में भी 100 साल लग गए।

जाने कितने ही संगठन मेरे हित में खड़े हुए और अपना धंधा जमा कर चले गए और मैं खड़ा रह गया वहीं के वहीं किसी नए संगठन की तलाश में, ये सोचकर कि शायद कोई तो होगा जो सोचेंगा मेरे  बारे में, लेकिन कोई नही है जो सोचे मेरे बारे में।

मैं कभी नही मांगता दुनिया भर की दौलत, मैं चाहता हूँ तो बस इतना की मेरे बच्चे भी शिक्षित बनें और वो बन जाएं बिल्कुल बाकी दुनिया जैसे न कि मेरे जैसे। मैं चाहता हूँ तो बस थोड़ी इज्जत जो काफी है मेंरे लिए।

उपसंहार- अब आप समझ गए होंगे कि किसान क्या चाहता है और किसान की कैसी आत्मकथा है देश को चाहिए कि किसानों की समस्या को देश की बड़ी समस्या समझें, किसानों को उतनी इज्जत दीजिए जितनी देते हो अपने घर में कमाने वाले अपने पिता को।

किसान इतना भी फिजूल नही की हम उनकी समस्या को सुने ही नही। भारत वासियों को हर किसान पर गर्व होना चाहिए और हमें दिल से कहना चाहिए ‘जय जवान जय किसान’।

दोस्तों आपके इस लेख के ऊपर ( किसान की आत्मकथा ) पर क्या विचार है और क्या आप खेती से संबंध रखते हो ? हमें नीचे comment करके जरूर बताइए।

‘किसान की आत्मकथा’ ये हिंदी निबंध class 1,2,3,4,5,7,6,8,9 and 10  के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है। यह निबंध नीचे दिए गए विषयो पर भी इस्तमाल किया जा सकता है।

भारतीय किसान पर निबंध।

Bhartiya Kisan Ki Atmakatha भारतीय किसान की आत्मकथा।

किसान पर भाषण।

भारतीय किसान की आत्मकथा 500 शब्दों में।

भारतीय किसान की आत्मकथा 750 शब्दों में।

10 lines on Farmer in Hindi

Essay on Indian Farmer in Hindi

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भारतीय किसान समस्या /और समाधान पर निबंध (Kisano ki Samasya aur Samadhan Essay in Hindi)

हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है। जहां पर सभी प्रकार के धान्य हमारे किसान उगाते हैं। हमारे देश में ज्यादा तौर पर किसान ही पाए जाते हैं, क्योंकि ८०% लोग किसान है।हमारे पूरे देश में जो धान्य लगता है। वह हमारा किसान उगाता है। जिसे हमारे देश में सभी लोग दोनों समय का खाना अच्छे से पाते हैं। हमारा किसान सभी प्रकार के खाने की सुविधा हमारे लिए अपने खेतों से प्राप्त करते हैं।जिसे हम किसी भी प्रकार का खाना खा सकते हैं?

भारतीय किसान समस्या /और समाधान पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Kisano ki Samasya aur Samadhan in Kisano ki Samasya aur Samadhan par Nibandh Hindi mein)

हमारा किसान अपने खेतों में अनेक प्रकार की खेती करते हैं। जिसे की गेहूं,सोयाबीन, तूर, चना, कापूस, ज्वारी ,सब्जियां ,फल भी उगते हैं। विश्व ने हमारे देश को कृषि प्रधान कहकर हमारे किसानों के सर पर एक तार जो है, वह प्राप्त करके दिया है,जिसे हमारा किसान एक राजा की तरह ही अपने समाज के लिए कार्यरत है। जो अपनी परिवार को समस्या ओ में डालकर।या कोई भी परेशानी होने पर अपनी खेती करना कभी नहीं छोड़ता। कई क्षेत्रों में अगर हमें काम में कुछ असफलता आई तो, हम वह काम छोड़ते हैं। पर किसान कभी भी अपनी खेती करना नहीं छोड़ते। चाहें उन्हें कोई भी नुकसान हुआ हो। वह अपने खेतों में पहले पैसा लगाते हैं। उनको पता नहीं होता, कि हमें कितना मुनाफा होगा, या हमारी घाटा होगा ।आखिर में हमारे हाथों में कुछ आएगा भी या नहीं। वह कुछ ना सोचते हुए अपना सब पैसा पहले से ही उस पर लगाते हैं। इसलिए किसान ही समाज में सबसे अमीर है। जो परिणाम की परवाह न करते हुए  निडरता से और निस्वार्थ पना दिखाते हैं।

खेती करते समय किसानों को कई समस्या होती है ।उन्हें एक भी लाभ सरकारी कामों से नहीं होता है।जब कई क्षेत्रों में सुविधा प्राप्त कर ली है। किसानों को खेती करने के लिए बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है।उनको कभी अपने उत्पाद किए गए फसल को भाव नहीं मिलता। सबसे पहली समस्या किसानों को है,वह साक्षरता। जिसे हमारा किसान ज्यादातर पर सक्षम नहीं हो रहा है। गांव में खेती करते समय किसानों को साक्षरता का महत्व ज्यादातर पर मालूम नहीं है। कई अनपढ़ भी है,जिसके कारण किसानों को मिलने वाली कई सुविधाएं कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारी ही बीच में खा लेते हैं।

हमें किसानों के लिए और उनके भविष्य के लिए कुछ बदलाव करने होंगे। जिसे उन्हें खेती में कोई समस्या नहीं होगी, और वह अपनी खेती ज्यादा तौर पर उगा सकते हैं। सबसे पहले किसानों के बच्चों को सब सुविधा मुक्त देखकर,उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त करनी होगी, किसानों की खेती के लिए जो कुछ भी वस्तु या कोई औजार उन्हें कम दाम में उपलब्ध करके देनी चाहिए। उन्हें खेती के लिए पानी का प्रबंध करके, उसका इस्तेमाल करने के लिए उन्हें प्रस्तावित करना चाहिए। खेतों में लगाने वाली बिजली का उन तक कम दाम में प्राप्त करनी चाहिए। जिससे उन्हें बारिश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। कृषि क्षेत्र में अनेक सुविधाएं उपलब्ध करके, उन्हें खेतों में लगने वाले यंत्र ज्यादा तौर पर प्राप्त करनी होगी। जिसे उनको मेहनत कम करनी पड़ेगी।

जिससे किसान का जीवन कुशल बनकर आरामदायक होगा। किसानों को जो सरकारी लाभ है, वह उनके हाथों में ही पहुंचने चाहिए। जिससे उनके हक का कोई और फायदा नहीं ले सकेगा।हमारा किसान हमारा अन्य दाता है।उसे कुछ भी समस्या नहीं होनी चाहिए। इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। हमारा किसान हमारे देश का मान है। एक मूलभूत आधार है। समाज का पालन करता है।

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भरतीय किसान दिवस पर निबंध Essay on Kisan Diwas in Hindi

भरतीय किसान दिवस पर निबंध Essay on Kisan Diwas in Hindi

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर भारत की ज्यादातर जनसंख्या खेती पर निर्भर होती है इसलिए किसान दिवस (Kisan Diwas) का यहाँ बहुत महत्व है। लोग अनाज उगाकर अपना जीवन यापन करते हैं और विश्व के सभी लोग इसी अनाज को खाकर जीवित रहते हैं। जब किसान अनाज उगाता है तब वह लोगों के थाली में आता है।

किसान दिवस Kisan Diwas

हमारे देश में खेती को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है ऐसे में किसानों का आदर एवं सम्मान करना चाहिए, इसी को ध्यान में रखते हुए हमारे भारत देश में किसान दिवस मनाया जाता है यह दिवस 23 दिसंबर को मनाया जाता है।

इस दिवस का आयोजन भारत देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सम्मान में तथा उनके जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। किसान दिवस की स्थापना सन 2001 ई. में की गई थी। जब चौधरी चरण सिंह जी प्रधानमंत्री पद पर थे तब उन्होंने किसानों के हित के बारे में कार्य करने का फैसला लिया था क्योंकि यह स्वयं एक किसान परिवार से संबंधित थे और किसानों की सभी समस्याओं को जानते थे। ये बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे।

चौधरी चरण सिंह ने किसानों के लिए अलग-अलग हितकारी कार्य किए थे जो किसानों को जमीदारों से लड़ने में मदद करती थी तथा इससे किसानों को कुछ लाभ भी मिल जाता था। क्योंकि पहले जमीदार किसानों को उनके अनाजों की कीमत से कम पैसा अदा करता था और खुद उसको महँगे दामों में बेचकर लाभ कमाता था, तथा कमजोर किसानों से जबरदस्ती आनाज भी ले लेता था। किसानों की रक्षा के लिए “जय जवान जय किसान” का भी नारा दिया गया था और कई प्रकार की हरित क्रांति भी चलाई गई थी जो किसानों को खेती करने की ओर अग्रसर करती हैं और फसल उगाने में उनका साहस बढ़ाती हैं।

हमारे देश में कृषि से भारत की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक अत्यधिक रूप से प्रभाव पड़ता है क्योंकि बाजारों में अत्यधिक बिकने वाले चीजें किसानों के द्वारा ही उगाई गयी होती हैं। किसान बहुत मेहनत और लगन के साथ अनाज को उगाता है और वह बाजार में बेचता है। उसके बाद हम उसे अपने प्रयोग में लाते हैं परंतु किसानों को उसकी सही लागत नहीं मिल पाती है बड़े जमींदार, सरकार आदि उसके अनाज को कम रुपए में खरीद लेते हैं इसीलिए किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय है।

किसानों को अच्छे अनाज उत्पादन के लिए बहुत कठिन कार्य एवं संघर्ष करना पड़ता है खेतों में समय समय पर खाद डालना, पानी सीखना, खरपतवार निकालना, कीड़ा मकोड़ा से बचाना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिससे कई बार किसानों की फसल खराब हो जाती है इसी सब को देखकर किसान इस दुखद स्थिति को सहन नहीं कर पाता है और आत्महत्या की ओर बढ़ने लगता है।

इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए कई प्रकार के कदम उठाए गए हैं जिसमें किसान दिवस एक महत्वपूर्ण जरिया है उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए। किसान दिवस में किसानों को नए नए तरीकों से अनाजों को उगाने के तरीके बताए जाते हैं तथा आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कार्य आसानी से और कम लागत में हो सके। पहले जो कार्य करने में किसानों को कई घंटे में कुछ दिनों का समय लगता था वह कार्य आधुनिक तरीकों से करने पर बहुत ही कम समय में हो जाता है।

किसान दिवस कई स्थानों पर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इसमें कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी की जाती हैं लोग एक दूसरे से मिलकर नए-नए तरीकों को बताते हैं एवं जानकारी प्राप्त करते हैं।

भारत सरकार द्वारा भी किसानों के हित के लिए तथा उनको प्रोत्साहन देने के लिए अलग अलग योजनाओं को लागू करता है तथा वे खेती की ओर अग्रसर रहे इसके लिये किसानों द्वारा लिया गया कर्ज भी कई बार माफ किया जाता है। जिससे किसान खुश रहे और अनाज का उत्पादन करे। किसान सभी समस्याओं को नही झेल पाता है तो वह आत्महत्या की ओर बढ़ने लगता है तब उनकी मदद ये सरकार द्वारा लायी गयी योजनायें करती है।

हमें किसानों का सम्मान करना चाहिए और बहुत खुशी होनी चाहिए कि एक बड़ा वर्ग जो हमारे लिए निरंतर कार्य करता है जिससे हमारी देश की जनता का जीवन चलता है। हमारे भारत देश में अधिकांश भूभाग पर कृषि की जाती है। भारत में ज्यादातर कृषि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि जगहों पर की जाती है और यह बड़े पैमाने पर किसान फसल उत्पादन करता है साथ ही साथ लाभ भी कमाता है।

परंतु लोग आज कल पर्यावरण को खराब कर रहे है जिससे किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है। पर्यावरण खराब होने से मौसम समय के अनुसार नही चलता है, जरूरत पड़ने पर बारिश नही होती है। कहीं बाढ़ आता है तो कही अकाल पड़ जाता है जिससे सभी लोगों को नुकसान तो होता ही है साथ ही साथ किसानों की फसल भी बर्बाद हो जाती है।

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Hindi Essay on “Bharatiya Kisan” , ”भारतीय किसान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारतीय किसान

Bharatiya Kisan

Best 5 Essays on ” Bharatiya Kisan” in Hindi

Essay No. 1

भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है | इस देश की 70% जनसंख्या गाँवों में रहती है तथा वह खेती करती है | ये लोग कृषक कहलाते है | यद्दपि ये कृषक भारतवर्ष की रीढ़ की हड्डी है तथापि वे निर्धन है | भारत के कृषक की दशा बहुत दयनीय है | वे कठिन परिश्रम करते है परन्तु फिर भी उन्हें कम तथा घटिया खाने को मिलता है | वे कम कपड़े पहनकर, कम व घटिया खाना खाकर तथा कच्चे घरो में रहकर जीवन-यापन करते है |

भारतीय कृषक प्रात : काल से लेकर देर सत तक कडकती धुप में बड़े परिश्रम से खेती करते है | वे अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार है | इस पर भी वे बहुत साधारण जीवन व्यतीत करते है | वे अशिक्षित तथा अज्ञानी है तभी वे आधुनिक वैज्ञानिक औजारों व नवीनतम तकनीकी का प्रयोग करना नही जानते | अत : उनके उत्पादन में आवश्यकतानुसार वृद्धि नही हो पाती | इन्हें अपनी खेतो की सिचाई के लिए मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है | मानसून के निशिचत न होने के कारण कई बार तो इनकी फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती है | कितनी ही बार बाढ़ का तो कितनी ही बार इन्हें सूखे का सामना करना पड़ता है , जिसका परिणाम यह होता है कि कठिन परिश्रम करने पर भी इन्हें निर्धनता तथा भुखमरी तक का भी सामना करना पड़ता है |

भारतीय किसान के लिए निर्धनता तथा अज्ञानता दोनों ही बड़े अभिशाप है, जिनके कारण वह अपने आपको कोसता रहता है | यदि हम किसानो को इस गर्त से उबारना चाहते है तो हमे इनके लिए कुछ करना होगा | सर्वप्रथम तो इन्हें शिक्षित करना होगा | तथा इनके लिए अन्य अनेक सुविधाएँ प्रदान करानी होगी | जैसे ग्रामो में पुस्तकालय , वाचनालय व टेलीविजन आदि की सुविधाए उपलब्ध करानी होगी | इनसे एक तो इनकी जानकारी बढ़ेगी दूसरा इनका मनोरंजन होगा | इनके अतिरिक्त सरकार को इनके लिए सस्ते ऋण , अच्छे बीज, औजार, खाद व सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी |

स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी राज्य में किसान देशी साहूकारों व महाजनों के चंगुल में फँसा हुआ था | परन्तु आजकल सरकार , सहकारी समितियाँ तथा बैक हमारे किसानो की बहुत सहायता कर रहे है | इनके द्वारा किसानो की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओ की पूर्ति होने से कृषि में क्रान्ति आ गई है | सरकार ने किसानो के लिए अनेक प्रकार के सुधर कार्यक्रम चलाए है जैसे सामूहिक खेती, चकबन्दी , विद्दुतीकरण , पानी की पूर्ति , विद्दालय व अस्पताल आदि | इनके द्वारा किसानो का जीवन –स्तर ऊचा उठा है और अब किसान खुशहाल रहने लगा है |

भारतीय कृषक Bhartiya Krishak

जब तुम, मुझे पैरों से रौंदते हो तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो धन-धान्य बनकर मातृ-रूपा हो जाती हूँ।

Essay No. 2

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के अधिकांश लोक आज भी अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। दूसरे शब्दों में, हमारी अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि है। इन परिस्थितियों में कृषक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। परंतु देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच दशकों के बाद भी भारतीय कृषकों की दशा में बहुत अधिक परिवर्तन देखने को नहीं मिला है।

स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय कृषक की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। तब देश अंग्रेजों के आधिपत्य में था कि जिनका मूल उद्देश्य व्यापारिक था। उन्होनंे कृषकों की दशा में सुधार हेतू प्रयास नहीं किए। कृषकों की दशा में सुधार हेतु कई बार कानून पारित किए गए। परंतु वास्तविक रूप में उनका कभी भी पूर्णयता पालन नहीं किया गया। किसानों को अपने उत्पाद का एक बड़ा भाग कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था। सूखा तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाती थी। कर अदा करने के लिए वे सेठ-साहूकारों से कर्ज लेते थे परंतु उसे वापस न करने की स्थिति में जीवन पर्यत उसका बोझ ढोते रहते थे। अनेकों कृषकों को अत्यंत कम वेतन पर मजदूरी के लिए विवश होना पड़ता था।

स्वतंत्रता के पश्चात् कृषकों की दशा में सुधार के लिए अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की गई। समय-समय पर विभिन्न सरकारों द्वारा कृषकों को अनेक सुविधाएँ प्रदान की गईं परंतु अनेक कारणों से इन सुविधाओं का लाभ पूर्ण रूप से उन तक नहीं मिल पाया। देश के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों मे भारी असंतोष है क्योकि उन्हे सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में न तो बिजली मिल पाती है और न ही उन्नत किस्म के बीज आदि भी समय पर उपलब्ध होते हैं।

भारतीय कृषक की सामान्य दशा का यदि अवलोकन करें तो हम पाते है कि हमारे अधिकांश कृषक निरक्षर हैं। यह कृषकों के पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण है। निर्धनता एंव अशिक्षा के कारण वे सरकार की कृषि संबंधी विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। शिक्षा के अभाव में वे उन्नत बीज, कृषि के आधुनिक उपकरणों तथा उच्च वैज्ञानिक तरीकों से वंचित रह जाते हैं। भारतीय पारंपरिक रीति-रिवाज एंव बाह्य आडंबर आदि भी उसकी प्रगति के मार्ग की रूकावट बनते हैं।

विगत कुछ वर्षों में विज्ञान एंव तकनीक के क्षेत्र में भारत ने विशेष प्रगति की है। संचार माध्यमों के विशेष प्रचार एंव प्रसार का सकारात्मक प्रभाग हमारी कृषि पर भी पड़ा है। दूरदर्शन तथा रेडियों आदि के माध्यम से हमारी सरकार एंव अन्य संस्थाएँ कृषकों को कृषि संबंधी जानकारी दे रही हैं तथा उन्हें उन्नत बीजों व विभिन्न वैज्ञानिकों तरीकों से अवगत करा रही हैं। इसके अतिरिक्त बैंकों आदि के माध्यम से किसानों को कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे वे आधुनिक उपकरण तथा सिंचाई आदि का प्रबंध कर सकें।

सरकार के इन अथक प्रयासों के सकारात्मक परिणाम आने प्रारंभ हो गए हैं। कुछ राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा आदि ने विशेष प्रगति की है। देश के अन्य राज्यों में भी सुधार दिखाई देने लगा है। निस्संदेह हम उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हमारे कृषकों की दशा में निरंतर सुधार से देश की अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ेगा। तब अवश्य ही एक स्वावलंबी, आत्मनिर्भर एंव अग्रणी भारत की हमारी परिकल्पना साकार हो सकेगी।

Bhartiya Kisan

Essay no. 3.

प्रस्तावना- भारतीय किसान का जीवन बहुत कठोर होता है। वह बहुत परिश्रमी होता है। प्रातःकाल में सूर्योदय होते ही वह अपने हल लेकर खेतों पर चला जाता है तथा दिन भर कड़ी धूप में वहीं पर काम करता रहता है। गर्मी, सर्दी, बरसात सभी ऋतुओं में वह कठिन परिश्रम करके अपने परिवार देश के अन्य लोगों के लिए अन्न उगाती है।

किसान का जीवन- भारतीय किसान का जीवन अत्यन्त सादा होता है। वह स्वयं रूखा-सूखा होता है, परन्तु देश भर के प्राणियों को अन्न की कमी नहीं होने देता। भारतीय किसान कठोर श्रम के कारण ही आज सभी के लिए आदर्श माना जाता है।

भारतीय किसान बहुत सादा जीवन व्यतीत करते हैं। शहरी व्यक्तियों की तरह चमक-दमक वाले जीवन से वह दूर रहता है। उसकी पोशाक बहुत सादी होती है। अधिकाशं किसान लम्बा कुर्ता और छोटी धोती पहनते हैं। अत्यधिक ठंड में वे कुछ ऊनी कपड़े के रूप में एक गर्म चादर का इस्तेमाल करते हैं।

देश के लिए उपयोगी- भारतीय किसान कभी भी अपने सुखों की परवाह नहीं करता। उसके जीवन पर एक मात्र लक्ष्य नहीं होता है कि देश के सभी प्राणियों को अन्न मिलता रहे। पर कभी-कभी यह देखकर अफसोस होता है कि इतना परिश्रम करने पर भी कुछ किसान निर्धन रहते हैं।

उपसंहार- जिस तरह किसान संसार के सभी प्राणियों के बारे में सोचकर अपने सुखों को त्याग देता है, उसी प्रकार हमें भी देश के लिए सादा जीवन उच्च आदर्श, कठिन श्रम और देशहित की नीतियों को अपनाकर चलना चाहिये। किसान और देश की सीमा पर तैनात सैनिकों की देशसेवा के सामने रखते हुए हमारे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था- ‘जय जवान, जय किसान।‘

Essay No. 4

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की 75% जनता गांवों में रहती है। अत: कृषि उनका मुख्य व्यवसाय है। गांवों के लोगों का जीवन कृषि पर निर्भर करता है। भारतीय किसान देश और समाज का एक उपयोगी सदस्य है। धरती उसकी मां है जिसमें बीज डालकर वह अन्न उत्पन्न करता है। अन्न उगाने के लिए उसे हल चलाना पड़ता है। हल चलाने वाले किसान अपने शरीर की आहुति दिया करते हैं। खेत उनकी हवनशाला है। ध्यान से देखा जाए तो किसान अन्न-अन्न में, फूल-फूल में न्यौछावर सा हुआ दिखाई देता है। खेती किसान के ईश्वरीय प्रेम का केंद्र है। उसका सारा जीवन पत्ते-पत्ते में, फूल-फूल में, फल-फल में बिखर रहा है। उसका जीवन एक मौन जीवन है।

भारतीय किसान अधिक पढ़ा लिखा नहीं है। मिट्टी, पानी, बीज, हल, खाद, उसकी पुस्तकें कही जा सकती हैं, फिर भी वह मानसिक रूप से पूर्णतः जागरूक है और वह जानता है कि खेत में कैसे काम किया जाए जिससे अधिक से अधिक फसल प्राप्त की जाए। भारतीय किसान का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि वह कठिन परिश्रम करता है फिर भी गरीब ही रहता है। उसे पैसे पैसे के लिए कर्ज लेना पड़ता है। यह ऋण वह गाँव के साहूकारों से लेता है। जब उसकी फसल तैयार होती है तो यह जिमींदार, साहूकार उसकी फसल समेट कर ले जाते हैं। इस तरह वह जीवन भर कर्ज के बोझ तले दबा रह जाता है और उस पर ब्याज भी बढता। जाता है। पूंजीपति वर्ग उसका खूब शोषण करते हैं।

भारतीय किसान का जीवन अभावों से भरा है। वह खले आकाश के नीचे एक छोटी सी कटिया बन कर रहता है। उसका हृदय भी आकाश की तरह विशाल है। उसे पशुओं से प्रेम है, इसलिए हर किसान के द्वार पर गाय उसके घर में दूध की पवित्र धारा बहती है। वह चमक दमक से कोसों दूर है। उसका जीवन सादा तथा विचार उच्च होते हैं। उसका जीवन अत्यन है। वह सुबह जल्दी उठकर खेतों को चला जाता है । वह मिट्टी को फसल तैयार करने के लिए उस पर हल चलाता है। इस काम में उसके बच्चे भी उसका साथ देते हैं। इसके पश्चात् वह धरती में बीज डालता है। उसे पानी देता है।

अब उसकी आँखें बीज अंकुरित होने की प्रतीक्षा करती हैं। ज्यों-ज्यों कोपलें पटती हैं उसका मन-मयूर नाच उठता है। उसके घर में खुशी की लहर दौड़ जाती है। इस समय वह फसल की रक्षा के लिए जी जान से जुट जाता है। उसकी फसल कई तरह के खतरे हैं जैसे जंगली जानवरों से हमला कई प्रकार कीटे मसल को खा जाते हैं। सर्दी, गर्मी, कोहरा भी फसल को नष्ट कर देते हैं। अपनी खेती के बचाव के लिए वह विभिन्न उपाय करता है।

भारत सरकार ने कृषि को मुख्य व्यवसाय के रूप में स्वीकार किया है। अतः वह किसानों की भलाई के लिए समय-समय पर कदम उठाती रहती है। अब किसानों को साहूकारों, जिमींदारों से ऋण नहीं लेना पड़ता। सरकार ने किसानों को बैंकों से ऋण की व्यवस्था कर दी है। यह ऋण बहुत कम ब्याज की दरों पर दिया जाता है। जिसे वह निश्चित समय की सीमा के अन्दर सुविधाजनक किश्तों में उतार सकते हैं। सरकार के इस कदम से किसानों ने सुख की सांस ली है।

आज का किसान वैज्ञानिक प्रगति से परिचित है। विज्ञान ने कृषि के नए-नए औज़ार. मशीनें आदि खोजी हैं। अब वह सारा काम इन मशीनों द्वारा करता है। हल चलाने से लेकर पानी का छिड़काव, कीटनाशक,

दवाईयों का छिड़काव, फसल काटना, छांटना सब कुछ मशीनों द्वारा किया जाता है। आज का किसान 19वीं, 20वीं सदी के किसान की अपेक्षा अधिक सभ्य हो चुका है। उसी के परिश्रम के कारण भारत कृषि के क्षेत्र में विश्व में आगे बढ़ रहा है। किसान की मेहनत ने भारत को खुशहाल बना दिया है। अतः सच है किसान धरती का भगवान है।

Essay No. 5

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए इसे किसानों का देश भी कहा जाता है। भारत एक उपजाऊ तथा संपन्न देश है। यहाँ साल भर विभिन्न प्रदेशों में तरह-तरह की फसलें उगाई जाती हैं। खेती-बाड़ी भारतीय लोगों का मुख्य पेशा है। भारत की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। इसलिए देश की प्रगति में किसानों की भूमि का बहुत महत्त्वपूर्ण है। किसान हमारे लिए फल, तरकारी, चावल, गेहूँ तथा अन्य अनाज उगाते हैं तथा इनके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। हमारे देश के किसान अत्यंत परिश्रमी हैं। वे दिन-रात मेहनत करके अपने खेतों में फसल उगाते हैं तथा हमारे जीवन का आधार तैयार करते हैं। वे अपने खेतों को जोतते हैं, उनमें अनाज बोते हैं। समय-समय पर अपने खेतों की सिंचाई, निराई, गुड़ाई करते हैं। किसान सुबह ही अपने खेतों में चले जाते हैं और शाम तक खेतों पर काम करते हैं। शाम के समय ही वे अपने घर वापस आते हैं।

बैल, गाय, भैंस, बकरी किसानों के मुख्य पालतू पशु हैं। वे इनसे दूध, खाद आदि प्राप्त करते हैं। बैलों से हल चलवाते हैं। ये पशु उनका सबसे बड़ा धन होते हैं।

भारतीय किसान का जीवन का अत्यंत सादा है। वे सदा साधारण वस्त्र पहनते हैं। धोती, कुर्ता, पाजामा तथा सिर पर पगड़ी उनकी मुख्य पोशाक है।

किंतु भारतीय किसानों की दशा अत्यंत दयनीय है। उनका पूरा जीवन गरीबी में गुजर जाता है। उनके साथ अनेक समस्याएँ होती हैं। वे निरक्षर होते हैं। गाँवों में उन्हें शिक्षा तथा चिकित्सा की पूर्ण सुविधाएँ भी नहीं मिल पातीं। उनके लिए सिंचाई व्यवस्था उतनी उत्तम नहीं है। वास्तव में उनका जीवन गरीबी तथा कष्टों से भरा हुआ है।

किसान पूरे देश के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। अतः हमें उनकी दशा सुधारने के लिए प्रयास करना चाहिए।

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bhartiya kisan essay in hindi भारतीय किसान पर निबंध

हेलो दोस्तों आज फिर में आपके लिए लाया हु Essay on bhartiya kisan in Hindi पर पुरा आर्टिकल। भारतीय किसान उतनी ही जरुरी है जितना की डॉक्टर इंजीनियर इसलिए अगर आप भी भारतीय किसान के बारे में कुछ जानना चाहते है तो हमारा आर्टिकल जरूर पढ़े।

आज के essay में आपको bhartiya kisan के बारे में बातें पता चलेंगे तो अगर आप अपने बच्चे के लिए Essay on bhartiya kisan in Hindi में ढूंढ रहे है तो हम आपके लिए india पर लाये है जो आपको बहुत अच्छा लगेगा। आईये पढ़ते है

bhartiya kisan essay in hindi

Bhartiya Kisan essay in hindi

प्रस्तावना :

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ की 70% से अधिक जनसंख्या गाँवों में बसती है। खेतीबाडी करके आजीविका कमाने वाला व्यक्ति किसान कहलाता है।

किसान का नाम लेते ही हमारे मस्तिष्क में एक ऐसे व्यक्ति की छवि आती है जो रहन-सहन, पहनावे, भोजन इत्यादि में एकदम सीधा-सादा जीवन जीता है। किसान कठिन परिश्रम से खेतों में अन्न उपजाकर संसार के सभी प्राणियों का पेट भरता है। चाहे चिलचिलाती धूप हो या कडाके की सर्दी, उसे तो सभी की मार झेलनी पड़ती है। उसका पूरा जीवन तपस्या से भरा होता है, अभिमान से परे वह दूसरों के हित के बारे में ही सोचता है। वह स्वयं भूखा रहकर दूसरों का पेट भरता है। सही अर्थों में किसान ही सच्चा साधक तथा कर्मयोगी है, जिसे फल की कोई इच्छा नहीं होती।

किसान का कर्तव्य-परिश्रम :

भारतीय किसान का जीवन मुश्किलों से भरा होता है। वह दिन-रात परिश्रम करता है। जब शहरी लोग सर्दियों में अपने बिस्तरों में छुपे होते हैं या फिर गर्मियों में वातानुकूलित का आनंद ले रहे होते हैं, उस समय भी किसान खेतों में हल चला रहा होता है। वह हर मौसम में सूर्योदय से पहले उठता है तथा सूर्यास्त तक काम करता है।

निर्धनतापूर्ण जीवन :

सबसे अधिक दुख की बात यह है कि इतना अधिक परिश्रम करने के बाद भी किसान का जीवन अभावपूर्ण होता है। वह कच्चे मकानों में रहता है, सादा भोजन करता है तथा एकदम सादे कपड़े पहनता है। वह अक्सर कर्ज में डूबा रहता है क्योंकि अचानक कोई बीमारी या शादी-ब्याह पर खर्च करने के लिए उसके पास कोई जमा-पूजी नहीं होती। मौसम की मार, बाढ़, सूखा ये सभी दुख किसान को जिन्दगी के अहम हिस्से हैं।

वास्तव में भारतीय किसान की दशा बहुत दयनीय है। ईश्वर के बाद वही तो हमारा अन्नदाता है और वही सुखी नहीं है। किसानों की शोचनीय स्थिति को देखते हुए आजकल सरकार की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं। इनके सुधार के लिए अनेक कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं जैसे-सहकारी खेती, चकबन्दी, सस्ते दरों पर ऋण, पानी व बिजली की उचित व्यवस्था, सर्व शिक्षा अभियान, गाँवों में सरकारी अस्पताल व स्कूल आदि की व्यवस्था। सरकारी तथा निजी-प्रयासों से ही किसान का जीवन स्तर ऊँचा उठ सकता है और वे खुशहाल रह सकते हैं, यदि हम सब प्रयास नहीं करेंगे तो किसान भूखमरी, निर्धनता तथा अज्ञानतावश आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे और यह हमारे लिए बहुत शर्म की बात है।

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Kisan Anndata “किसान-अन्नदाता” Hindi Essay 300 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

किसान-अन्नदाता, kisan anndata.

भारत का हृदय गाँवों में बसता है। यहीं पर सेवा और परिश्रम के अतवार किसान रहते हैं, जो हम सब के अन्नदाता और संपूर्ण सृष्टि के पालक हैं। किसान का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने एक ऐसे असहाय और दयनीय व्यक्ति की छवि घमने लगती है जिसकी आँखों में निराशा का अँधेरा दिखाई देता है किन्तु होता है वह परिश्रमी एवं स्वाभिमानी व्यक्तित्व का धनी। उसकी दरवस्था के लिए वह खुद भी ज़िम्मेदार है जिसके अनेक कारण हैं। अशिक्षा के कारण वह न तो अपने अधिकारों की ओर जागरूक है और न वर्तमान तकनीकी विकास की ओर ही उसका ध्यान जा पाता है। परिणामतः उसकी पैदावार प्रभावित होती है और उसे अपने उत्पाद का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता। अत्यंत अल्पमूल्य में वह अपना बहमल्य परिश्रम साहकार अथवा सरकार के हाथ सौंप देता है और वह सदैव फटेहाल ही रह जाता है।

इसके साथ-साथ किसानों के किसी संगठन का अभाव भी उसके विकास में सबसे बड़ा बाधक है। वह अपने खन-पसीने की गाढी कमाई को आपसी झगड़े-झंझट की बलि चढ़ा देता है। दादा की पुश्तैनी रंजिश पोते तक और उससे आगे चलती रहती है। फलतः कोर्ट-कचहरी उसके परिश्रम को खा जाती हैं। इन सबके साथ-साथ सरकारी योजनाओं के केन्द्र प्रायः नगर ही रहते हैं। जहाँ से किसान का कोसों दूर तक कोई संबंध नहीं रहता। फलतः कुछ मुट्ठी भर लोग ही उसका लाभ उठाते रहते हैं। और वहीं दीन-हीन किसान अपनी दुरवस्था पर आँसू बहाता रहता है। इन सबके अतिरिक्त अंधविश्वासी परम्परावादी होना भी उसके लिए अभिशाप होता है।

पंजी का अभाव किसान की सनातन समस्या है। बीज, खाद, उपकरण खरीदने की क्षमता प्रायः उसके पास नहीं होती और वह या तो साहकार की ओर मुंह करता है या बैंकों की ओर। फंसता वह दोनों ओर है। यदि किन्हीं प्राकतिक या मानवी कारणों से फसल मारी गई तो ऋण-वसूली में न साहूकार दया करता है, न बैंक। उसका आधार नहीं रहता। उसके पैरों तले की जमीन खिसक जाती है और उबरने का कोई रास्ता न देखकर वह आत्महत्या करने को विवश हो जाता है। ‘ग्रामदेवता’ ‘अन्नदाता’ जैसे विशेषण उसकी हँसी उडाते हैं।’

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